दास्तान - वक्त के फ़ैसले (भाग-४)

Story Info
Erotic Story in Hindi about a young corporate lawyer Zubi.
6.2k words
16.1k
3
0

Part 4 of the 4 part series

Updated 03/18/2021
Created 08/19/2014
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दास्तान - वक्त के फ़ैसले (भाग-४)
लेखक: राज अग्रवाल
***********************************************

जूबी उस औरत के सामने सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने खड़ी थी। वो औरत ज़ूबी के तराशे हुए बदन को ध्यान सा देख रही थी। ज़ूबी का संगमरमर सा तराशा बदन और उस पर हल्के गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी - वो सही में बहुत सुंदर दिख रही थी।

ज़ूबी के बदन को निहारते हुए उस औरत के मुँह से हल्की सी सीटी बज गयी, “वाह, मज़ा आ गया तुम्हारे इस मखमली बदन को देख कर, लगता है कि यहाँ आने वालों पर तुम बिजली गिरा के रहोगी, थोड़ा सा घूम जाओ मेरे लिये।”

उस औरत से अपनी प्रशंसा सुनकर ज़ूबी का चेहरा सुर्ख हो गया। उस छोटी सी ब्रा से उसके भारी मम्मे तो साफ़ दिखायी दे रहे थे पर वो शरमा इसलिए गयी कि उसने बहुत ही छोटी पैंटी पहनी थी और घूमने से उसके चूतड़ साफ़ नंगे दिखायी देते।

उस औरत ने एक बर उसके बदन की तारीफ की और उसे दूसरे कमरे में जाने का इशारा किया।

ज़ूबी आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई बगल के कमरे में पहुँची। वहाँ और तीन जवान और सुंदर लड़कियाँ पहले से थी। ज़ूबी ने देखा कि वो तीनों भी काफी सुंदर और जवान थी और उन्होंने भी उसी की तरह सिर्फ़ ब्रा पैंटी और हाई हील के सैंडल पहन रखे थे।

उस औरत ने ज़ूबी का परिचय तीनों लड़कियों से कराया। ज़ूबी शरम के मारे अपनी आँखें ज़मीन पर गड़ाये हुए थी। उसे अपने इस नंगे बदन पर शरम सी आ रही थी और वो अपने आप को कोस रही थी कि आज सुबह उसने ये छोटी वाली ब्रा और पैंटी क्यों पहनी।

उन तीनों लड़कियों ने ज़ूबी का नयी जगह पर उसका स्वागत किया। तभी मेन दरवाजे की घंटी बज पड़ी। उस घंटी को सुन कर वो औरत दरवाज़ा खोलने के लिये दौड़ पड़ी। जब वो वापस आयी तो तीनों लड़कियाँ खड़ी हो गयी। ज़ूबी भी उनकी देखा देख खड़ी हो गयी पर अपनी नज़रें उस आने वाले मर्द से चुराती रही। ज़ूबी ने अपनी जाँघों को अपनी हथेलियों से ढक लिया।

“ओह राकेश लगता है तुमसे थोड़ा भी इंतज़ार नहीं किया गया, जो ऑफिस से दौड़ते चले आ रहे हो,” उस औरत ने आने वाले मर्द को चिढ़ाते हुए कहा। राकेश करीब ४५ साल का था और उसके सिर के बाल लगभग उड़ चुके थे। वो अपने माथे पे आये पसीने को अपने रुमाल से पौंछ रहा था और साथ ही चारों लड़कियों को ध्यान से देख रहा था।

एक लड़की ने अपना परिचय दिया, बाकी दो ने “हाय राकेश” कहकर उसका अभिवादन किया। जब ज़ूबी की बारी आयी तो वो थोड़ा हिचकिचा गयी, “मेरा नाम ज़ू।”

तभी एक लड़की जो शायद ज्यादा अनुभवी थी तुरंत बोल पड़ी, “ये सिमरन है।” ज़ूबी हैरानी से उस लड़की को देखने लगी तो देखा वो मुस्कुरा रही थी। उसने ज़ूबी को अपना असली नाम इस्तमाल करने से बचा लिया था। ज़ूबी बदले में उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी।

पर इसके बाद जो हुआ ज़ूबी उसके लिये तैयार नहीं थी।

उस आदमी ने अपनी जेब से अपना पर्स निकाला और उस औरत की और देखते हुए कहा, “मैं सिमरन से मिलना चाहुँगा, सिर्फ़ आधे घंटे के लिये।” ज़ूबी हैरानी से उस मर्द को देख रही थी जो अपने पर्स से नोट निकाल कर गिन रहा था। वो सोच रही थी एक लड़की को चोदने के लिये कितने पैसों की ज़रूरत हो सकती है।

वो औरत ज़ूबी और राकेश को लेकर हॉल के बगल के कमरे में लेकर आ गयी। फिर उस औरत ने बिस्तर के बगल में एक कॉंन्डम का पैकेट रख दिया।

“अब तुम दोनों मज़े करो,” ये कहकर उस औरत ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और बाहर चली गयी।

“तुम शायद यहाँ पर नयी आयी हो?” अपने जूते उतारते हुए राकेश ने कहा। फिर उसने अपनी पैंट उतारी और फिर शर्ट भी उतार दी। थोड़ी देर में वो अपनी अंडरवीयर उतार कर नंगा हो गया। राकेश की छाती, पीठ और कंधे बालों से भरे पड़े थे। उसका लंड अभी पूरी तरह खड़ा तो नहीं हुआ था पर मोटा काफी था। ज़ूबी ने देखा कि उसके अंडकोश भी काफी बड़े थे।

“सिमरन क्या मैं अकेला ही नंगा रहुँगा? तुम्हें भी अपनी ब्रा और पैंटी उतारनी होगी।” राकेश ने कहा।

ज़ूबी ने अपने कंधे उचकाये और अपनी ब्रा के हुक खोलने लगी। ब्रा उतरते ही उसके दोनों कबूतर पिंजरे से आज़ाद हो गये। शायद चुदाई के ख्याल से ही उसके निप्पल तन गये थे।

राकेश ज़ूबी की भारी और नुकिली चूचियों को देख रहा था और ज़ूबी ने अपनी पैंटी नीचे खिसकायी और अपने पैरों से उतार कर उसे दूर फेंक दिया। ज़ूबी ने देखा कि राकेश उसकी तराशी हुई चूत को देख रहा है।

राकेश ने अपनी बांहें फैलायी और ज़ूबी को पास आने का इशारा किया। ज़ूबी धीरे-धीरे चलते हुए उसकी बांहों में समा गयी। ज़ूबी की नुकिली चूचियाँ राकेश की बालों भारी छाती में धंस रही थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि उसका लंड उसकी नाभी को छू कर एक सनसनी सी उसके शरीर में पैदा कर रहा है।

राकेश उसे बांहों में भर कर उसके चूतड़ सहलाने लगा। ज़ूबी के शरीर मे भी उत्तेजना फैलने लगी। उसके भी हाथ खुद-ब-खुद उसकी पीठ पर कस गये। उत्तेजना मे ज़ूबी का शरीर काँप रहा था।

राकेश का एक हाथ अब ज़ूबी की जाँघों के अंदरूनी हिस्सों को सहला रहा था। ज़ूबी ने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दी जिससे राकेश के हाथ आसानी से उसकी चूत को सहला सकें। तभी राकेश ने उसकी चूत को सहलाते हुए अपनी दो अँगुलियाँ उसकी चूत में घुसा दीं।

ज़ूबी की चूत अभी गीली नहीं हुई थी, इसलिए राकेश की अँगुलियों से उसे दर्द हो रहा था। राकेश अब अपने दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को भींचने लगा। वो एक हाथ से उसकी चूत में अँगुली कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पल भींच रहा था। इस दोहरी हरकत ने तुरंत ही अपना असर दिखाया और ज़ूबी की चूत गीली हो गयी। अब राकेश की अँगुलियाँ आराम से उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही थी।

शरीर की उत्तेजना ने एक बर फिर ज़ूबी की अंतरात्मा को धोखा दे दिया। उसके कुल्हे उत्तेजना मे अब आगे पीछे हो रहे थे। ज़ूबी पूरी तरह से राकेश की अँगुलियों की ताल से ताल मिला रही थी। उसके मुँह से हल्की हल्की सिस्करी निकल रही थी, “ओहहहह आआआआहहह।”

राकेश अब और तेजी से अपनी अँगुली ज़ूबी की चूत में अंदर बाहर कर रहा था, “ओहहहह हाँआँआँ ऐसे ही करो ओहहह आआआआआह” ज़ूबी सिसक रही थी।

राकेश ने ज़ूबी का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया। ज़ूबी उसके लंड को अपनी हथेली की गिरफ़्त मे लेकर मसलने लगी। राकेश का लंड अब तनने लगा था। ज़ूबी ने महसूस किया कि अब उसका लंड उसकी हथेली में नहीं समा रहा है तो उत्सुक्ता में वो अपनी नज़रें घुमा कर उस मोटे और विशाल लंड को देखने लगी। लंड के सुपाड़े को देखकर तो वो हैरान रह गयी। उसने इतना मोटा और मूसल लंड पहले कभी नहीं देखा था।

समय बीतता जा रहा था। राकेश ने बिस्तर के पास पड़े कॉंन्डम के पैकेट को उठाया और अपने दाँतों से फाड़ कर ज़ूबी को पकड़ा दिया।

ज़ूबी ने कॉंन्डम को पैकेट से निकाला और राकेश के लंड को पहनाने लगी।

राकेश ने ज़ूबी की चूत से अपनी अँगुली निकाली और उसे घूमा दिया। अब वो पीछे से उसकी चूत में अपना लंड घुसाने लगा। जैसे-जैसे वो अपने लंड का दबाव बढ़ाता, ज़ूबी बिस्तर को पकड़ कर और झुक जाती, साथ ही अपनी टाँगें भी और फैला देती जिससे उसका मूसल लंड आसानी से अंदर घुस सके।

राकेश ने ज़ूबी के भरे हुए चूतड़ पकड़े और उसकी चूत में लंड घुसाने लगा। थोड़ी ही देर में उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस चुका था। वो उसके कुल्हों को पकड़ कर धक्के मार रहा था।

“हाँ ले लो मरा लंड... ओओहहह हाँ... और थोड़ी टाँगें फैलाओ,” राकेश अब जोरों से धक्के लगा रहा था।

ज़ूबी की टाँगें और फ़ैल गयी। उसे लगा कि उसकी चूत फटी जा रही है। उसे राकेश के लंड की लंबाई से उतनी परेशानी नहीं हो रही थी जितनी उसके लंड की मोटाई से। उसकी चूत पूरी तरह गीली होने के बावजूद वो हर धक्के पर कराह रही थी।

“ओहहह थोड़ा धीरे करो ओहहह मर गयी आआआआआआहह,”

“मेरा लंड ले लो जान, ओहहहह हाँ ऐसे ही... पूरा ले लो,” बड़बड़ाते हुए राकेश धक्के पे धक्का लगा रहा था।

जितना ज़ूबी कराहती, उतनी ही तेजी से राकेश धक्का मारता। ज़ूबी के कराहने में उसे मज़ा आ रहा था और उसका वहशीपन बढ़ता जा रहा था। वो जानवर की तरह ज़ूबी की चूत को रौंद रहा था।

राकेश ने तभी अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाल लिया, और ज़ूबी को पलट कर बिस्तर पर चित्त लिटा दिया। ज़ूबी को थोड़ी देर के लिए राहत महसूस हुई। वो अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगी। राकेश अब उसकी जाँघों के बीच आ गया।

ज़ूबी ने अपनी टाँगें पूरी तरह से फैला दी। उसे ऐसा करते हुए शरम सी आ रही थी पर वो जानती थी कि ऐसा करने से राकेश का लंड आसानी सी उसकी चूत में चला जायेगा, और वो दर्द से बच जायेगी।

जैसे ही राकेश उसके ऊपर आया, ज़ूबी ने अपना हाथ नीचे कर के उसके तने हुए लंड को पकड़ लिया और अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया। एक बार जब राकेश का लंड उसकी चूत में पूरा घुस गया तो वो भी अपने कुल्हे उछाल कर उसका साथ देने लगी।

ज़ूबी को भी आनंद आ रहा था। उसने अपनी टाँगें उठा कर उसकी कमर में कस के लपेट लीं और अपने हाथ उसकी पीठ पर कस लिये। अब ज़ोरों से सिसकते हुए वो उसके धक्कों का साथ दे रही थी।

“हाय अल्लाह,” ज़ूबी ने सोचा, “बाहर सभी को मालूम है कि मैं इस मर्द से चुदवा रही हूँ।”

“ओहहहहह हाँआँआँ! चोदो मुझे... और जोर से... ओहहहहह हाँ... जोर से” ज़ूबी सिसक रही थी। उसकी चूत अब पानी छोड़ने ही वाली ही थी और वो चाहने लगी कि राकेश भी उसके साथ ही झड़े।

“क्या तुम मेरे साथ झड़ सकते हो? ओहहह हाँ... छोड़ दो अपना पानी मेरी चूत में प्लीज़...! हाँ चोदो... और जोर से,” उसे खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वो ये भी कह सकती है।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, “पाँच मिनट रह गये हैं, जल्दी करो!” एक लड़की की आवाज़ आयी।

राकेश ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। वो ज़ूबी की जाँघें इतनी कस के पकड़ कर धक्के मारने लगा कि ज़ूबी की आँखों में आँसू आ गये। पर चुदाई का आनंद ऐसा था कि उसके लंड की हर चोट उसकी चूत में और उत्तेजना बढ़ा रही थी। तभी उसने महसूस किया कि राकेश का छूटने वाला है।

“अभी नहीं प्लीज़ रुक जाओओह” ज़ूबी चिल्ला पड़ी।

तभी उसे गाढ़े और गरम वीर्य का एहसास अपनी चूत में हुआ। “हाय अल्लाह! इसका तो छूट रहा है और मेरा अभी बाकी है,” ज़ूबी सोचने लगी।

“नहीं... अभी नहीं” वो चिल्ला पड़ी।

पर उसकी चिल्लाहट का कोई असर राकेश पर नहीं हुआ। वो जोर के धक्के लगा कर अपना वीर्य उसकी चूत में छोड़ रहा था। ज़ूबी की उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर थी। अब ज़ूबी खुद नीचे से धक्के लगा कर अपनी उत्तेजना को शाँत करने की कोशिश करने लगी। वो बेशरम की तरह नीचे से धक्के लगा रही थी। आखिर उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया।

राकेश ने अपने लंड को ज़ूबी की चूत से बाहर निकाला और उसके बगल में लेट गया। राकेश उसकी जाँघों को सहला रहा था, “मज़ा आ गया सिमरन,” कहकर उसने अपने कपड़े पहने और कमरे से बाहर चला गया।

ज़ूबी बिस्तर पर अपनी आँखें फ़ैलाये लेटी हुई थी कि तभी किसी लड़की की आवाज़ उसे सुनायी दी, “सिमरन अब तुम उठ कर खड़ी हो जाओ?”

ज़ूबी उछल कर बिस्तर से खड़ी हुई और अपनी ब्रा और पैंटी ढूँढने लगी। उसने देखा कि वो इस्तमाल किया हुआ कॉंन्डम बिस्तर पर पड़ा था। वो लड़की जो कमरे में आयी थी, उसने एक साफ़ टॉवल ज़ूबी को पकड़ा दिया।

ज़ूबी उस टॉवल को अपनी चूती हुई चूत पर रख कर साफ़ करने लगी। फिर उसने वो कॉंन्डम उठाया और कमरे के बाहर बाथरूम की और दौड़ पड़ी।

जैसे ही वो हॉल में आयी कि अचानक एक सूट पहने मर्द से टकरा गयी। वो औरत उस मर्द को किसी दूसरे कमरे में ले जा रही थी।

“सॉरी माफ़ करना,” ज़ूबी ने कहा।

वो मर्द उसकी हालत देख कर हँस पड़ा, “सॉरी की कोई बात नहीं है, और ये तुम्हारे हाथ में क्या है?” ज़ूबी के हाथों मे इस्तमाल किया हुआ कॉंडम देख कर वो मर्द हँसते हुए बोला।

“ये एकदम नयी है यहाँ पर,” उस औरत ने कहा।

ज़ूबी शरमा कर नंगी ही वहाँ से अपनी सैंडल खटखटाती हुई दौड़ पड़ी। उन दोनों के हँसने की आवाज़ उसे सुनायी दे रही थी।

ज़ूबी बाथरूम मे घुसी और सैंडल उतार कर गरम पानी के शॉवर के नीचे खड़ी हो कर अपने शरीर को धोने लगी। फिर सुखे टॉवल से अपने बदन को पौंछ कर वो फिर सैंडल और ब्रा-पैंटी पहन कर हॉल में आकर बैठ गयी। एक और लड़की उसकी बगल में बैठी थी और उसे देख कर मुस्कुरा रही थी।

ज़ूबी अपनी टाँग पे टाँग रख कर बैठी थी कि उसे बगल के कमरे से सिसकने की और मदक आवाज़ें सुनायी दे रही थी। ये वही कमरा था जिसमें थोड़ी देर पहले वो राकेश के साथ थी।

ज़ूबी की आँखें खुली की खुली रह गयी। उसे चुदाई की आवाज़ साफ़ सुनायी दे रही थी। उसे लगा कि कमरे की दीवार जैसे कागज़ की बनी हुई है। वो आश्चर्य से हॉल में अपने साथ बैठी लड़की की और देखने लगी।

“हाय अल्लाह,” ज़ूबी ने कहा, “क्या तुम लोगों ने भी वो सब सुना जो मेरे और राकेश के बीच हुआ?”

वो लड़की मुस्कुराने लगी। “वैसे तो राकेश के साथ चुदाई करना हर किसी के बस की बात नहीं है,” उसने ज़ूबी से कहा, “तुम्हारी किस्मत अच्छी थी कि आज उसके पास सिर्फ़ आधा घंटा ही था।”

ज़ूबी उस लड़की की बातें सुनकर जोरों से हँसने लगी।

ज़ूबी ने कईं घंटे वहाँ गुज़ारे। हर घंटे बाद उसका बुलावा आ जाता और वो फिर किसी कमरे में मर्द के साथ चुदाई करती। मर्द अपना वीर्य उसकी चूत में डाल कर चले जाते। उसे अपने इस वेश्यापन पर हैरानी हो रही थी।

ज़ूबी अब समझ गयी थी कि उसका शरीर अब उसका नहीं रहा था, वो तो राज की मल्कियत बन चुका था, या फिर इस वेश्यालय की माल्किन उस औरत का या फिर उस मर्द का जिसकी जेब में चंद रुपये हैं उसका शरीर खरीदने के लिये। वक्त ने उसकी ज़िंदगी को एक नर्क बना के रख दिया था।

ज़ूबी एक ब्रा और पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने हॉल में बैठी थी। वो अपनी आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोच रही थी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उसे चाहे जो करना पड़े वो अपनी ज़िंदगी को किसी के हाथों का खिलौना नहीं बनने देगी। वो अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जियेगी, किसी की कठपुतली बनकर नहीं। काफी मेहनत और लगन से आज वो अपने कैरियर के इस मुकाम तक पहुँची थी और फिर उसी मेहनत से वो अपनी ज़िंदगी को वापस सही राह पर लाकर रहेगी।

ज़ूबी इस मकान की व्यस्तता देखकर हैरान थी। हर उम्र के मर्द अपने शरीर की भूख मिटाने यहाँ आते थे। पर उसे आश्चर्य इस बात का था कि जब भी वो लाइन में खड़ी होती थी हर बर वो ही ग्राहकों द्वारा चुनी जाती थी। दूसरी लड़कियों को मौका तभी लगता था जब वो किसी मर्द के साथ कमरे में होती थी।

एक बार तो वो हैरान रह गयी। हुआ ऐसा कि दो दोस्त उस वेश्यालय में आये। ज़ूबी समेत उस समय हॉल में चार लड़कियाँ थी। जब वो दोनों दोस्त पसंद करने के लिये लड़कियों को देख रहे थे तो एक मर्द ने उसे पसंद किया, “मैं इसके साथ जाना चाहता हूँ,” कहकर उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।

जब ज़ूबी उसका हाथ पकड़ कर कमरे में जा रही थी तो उसने दूसरे मर्द को कहते सुना, “मेरे दोस्त का होने के बाद मैं भी इसी लड़की के साथ जाना चाहुँगा, तब तक मैं इंतज़ार करता हूँ।”

ज़ूबी उसकी बात सुनकर हैरान रह गयी, उसने माल्किन से पूछा, “क्या ये ऐसा कर सकता है?”

उसके साथ वाला मर्द और वो औरत दोनों ज़ूबी की बात सुनकर हँसने लगे।

“सिमरन,” उस औरत ने जवाब दिया, “ग्राहक यहाँ पर भगवान की तरह है। वो जो चाहे कर सकता है” वो औरत फिर हँसने लगी।

ज़ूबी उस मर्द का हाथ पकड़ कर दूसरे छोटे से कमरे में चली गयी। उसे पता था कि एक और लंड बाहर उसका इंतज़ार कर रहा है।

* * * * * * *

प्रशाँत दिल्ली के फाइव स्टार होटल में बड़ी दुविधा में चहल कदमी कर रहा था। उसने बड़ा जोखिम भरा कदम उठाया था। अगर किसी को पता चल गया कि वो किसी वेश्या से मिलने यहाँ आया है तो उसका कैरियर बर्बाद हो सकता था।

वो अभी नहाकर बाथरूम से बाहर आया था। इतनी सर्दी में भी उसके माथे पर पसीना आ रहा था। उसे मालूम था कि वो जोखिम उठा रहा है पर वो भी अपने दिल के हाथों मजबूर था।

जबसे वो दिल्ली पहुँचा था उसका लंड घोड़े की तरह तन कर खड़ा था। उसने फोन पर उस मैडम को यकीन दिलाया था कि वो एक पैसे वाला इंसान है। उसने उस औरत को साफ़ बता दिया था कि उसके आने की खबर किसी को नहीं होनी चाहिये थी। उसने अपनी पसंद के बारे में भी बता दिया था। उस मैडम ने उसे भरोसा दिलाया था कि वो उसकी हर जरूरत को पूरा करेगी।

जैसे ही उसकी टैक्सी उस मैडम के बंगले की तरफ़ जा रही थी, प्रशाँत सोच रहा था कि उसे आगे क्या करना है। क्या ज़ूबी उसे यहाँ मिलेगी और वो अपना बदला ले पायेगा। उसने अपनी घड़ी की तरफ़ देखा। बीस मिनट में उसे पता चल जायेगा कि वो अपने मक्सद में कितना कामयब होगा।

* * * * * *

ज़ूबी बिस्तर का किनारा पकड़ कर घोड़ी बनी हुई थी। उसकी टाँगें पूरी तरह फ़ैली हुई थी और उसकी गाँड हवा में ऊपर को उठी हुई थी। एक तगड़ा सा पहाड़ी मर्द पीछे से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था।

ज़ूबी ने अपना चेहरा तकिये से टिकाया हुआ था और वो सामने लगे आइने में देख रही थी कि किस तरह वो मर्द उछल-उछल कर उसे चोद रहा था। ज़ूबी सोच रही थी कि कैसे कईं बार उसके शौहर ने उसे इस अवस्था में चोदा था, और हर बार उसे उतना ही मज़ा आता था जब वो अपना वीर्य उसकी चूत मे छोड़ कर उसकी पीठ पर लुढ़क जाता था। उसके शौहर का मोटा और लंबा लंड उसे कितना मज़ा देता था।

पर आज वो अपनी मर्ज़ी के खिलाफ़ हर उस लंड को अपनी चूत में लेने पर विवश थी, चाहे वो लंड उसे पसंद है या नहीं। पर लंड चाहे जैस भी हो, जब भी कोई उसे इस आसान में चोदता था तो उसके शरीर की उत्तेजना और बढ़ जाती थी। और आज भी वैसा ही हो रहा था -- फिर उसका शरीर उसे धोखा दे रहा था। ना चाहते हुए भी उसका शरीर उस मर्द की ताल से ताल मिला कर चुदाई का आनंद ले रहा था।

* * * * *

प्रशाँत ने आखिरी बार अपने सेल फोन से उस मैडम का नंबर मिलाया, “मैं बस पहुँचने ही वाला हूँ, सब तैयारी वैसे ही है ना जैसे मैंने कहा था।”

“हाँ आप आ जाइये, सब कुछ वैसे ही होगा जैसा आप चाहेंगे” उस औरत ने जवाब दिया।

* * * * *

उस पहाड़ी मर्द ने एक हुँकार मारते हुए अपना वीर्य ज़ूबी की चूत में छोड़ दिया। फिर उसने कपड़े पहने और कमरे से चला गया। ज़ूबी का पानी नहीं छूटा था और वो निराश होते हुए नहाने के लिये बाथरूम मे घुस गयी। नहाने के बाद उसने अपना मेक-अप ठीक किया और अपनी ब्रा और पैंटी पहन ली। वो अपनी हाई हील की सैंडल पहन ही रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई और उस औरत ने बाथरूम में कदम रखा।

“सब कुछ ठीक है ना?” ज़ूबी ने उस औरत से पूछा।

“हाँ रानी सब ठीक है,” उस औरत ने जवाब दिया, “तुम कितना अच्छा काम कर रही हो, मुझे नाज़ है तुम पर।”

ज़ूबी जानती थी कि इस औरत से ज्यादा बात करने में कोई फायदा नहीं है। उसने जबर्दस्ती उस औरत को देख कर मुस्कुरा दिया, “थैंक यू,” उसने जवाब दिया। ज़ूबी सोच रही थी कि आज उसके वेश्या होने की तारीफ हो रही थी, काश ये तारीफ उसके काम के लिये होती।

“मैं मिस्टर राज को बताऊँगी कि तुमने कितना अच्छा काम किया है,” उस औरत ने कहा।

“मुझे अच्छा लगेगा अगर आप मिस्टर राज से ये कहेंगी तो,” ज़ूबी ने जवाब दिया।

“तुम्हें पता है ना कि मिस्टर राज कितने ताकतवर और पहुँच वाले इंसान हैं, पता है ना तुम्हें?” उस औरत ने कहा।

ज़ूबी ने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी।

“और उसी तरह उनके दोस्त भी,” उस औरत ने आगे कहा, “उनका एक दोस्त यहाँ अभी आने वाला है, और उसके अपने कुछ नियम हैं। हमें उन नियमों का पालन करना है... खास तौर पर तुम्हें, और एक बात... तुम्हारा भविष्य भी इसी बात पर निर्भर करता है।”

* * * * * *

ज़ूबी एक खास कमरे में बिस्तर पर बैठी थी। उसे इस कमरे में चुपचाप इंतज़ार करने को कहा गया था। उसे कईं बार कमरे के बाहर से कदमों की आहट सुनायी देती जो दूसरे कमरे में जाकर बंद हो जाती। थोड़ी ही देर में उसे कुछ कदमों की आहट सुनायी दी जो शायद उसी के कमरे की तरफ आ रही थी।

तभी दरवाज़ा खुला और सबसे पहले उस मैडम ने कमरे में कदम रखा। उसके पीछे एक जवान लड़की ने ब्रा और पैंटी पहने कदम रखा। वो लड़की बड़ी सहानुभूती से ज़ूबी को देखने लगी। वो सोच रही थी कि पता नहीं इस लड़की पे क्या गुज़रेगी।

तभी प्रशाँत ने कमरे में कदम रखा।

प्रशाँत बड़ी कामुक नज़रों से उस जवान वकील को देख रहा था जो उसके ऑफिस में काम करती थी। जो लड़की हमेशा अपने यौवन को टाइट ब्लाऊज़ और स्कर्ट में छिपा कर रखती थी आज सिर्फ ब्रा पैंटी और सैंडल पहने करीब-करीब नंगी उसके सामने बिस्तर पर बैठी थी।

प्रशाँत एक चुंबकिय आकर्षण की तरह उसके तराशे हुए बदन को देख रहा था। वो चुप चाप बिस्तर पर बैठी थी। हालाँकि उसकी चूत और चूचियाँ छुपी हुई थी फिर भी उसकी मांसल और पतली टाँगें, और तराशा हुआ बदन ठीक वैसा ही दिख रहा था जैसे उसने हमेशा मुठ मारते हुए सपने में देखा था। उसके गुलाबी और पतले होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे उनमें शहद भरा हुआ हो। उसका सुंदर चेहरा काफी मादक लग रहा था और उसकी आँखों पर एक सिल्क की पट्टी बंधी थी, ठीक जैसे उसने चाहा था।

“सीमा यहीं रुकेगी, अगर आपको किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो ये आपकी सहायता करेगी,” मैडम ने प्रशाँत से कहा और ज़ूबी की और इशारा करते हुए कहा, “ये सुंदर कन्या आप जैसे चाहेंगे आपकी सेवा करेगी, आपको किसी तरह की शिकायत नहीं होगी... ये मेरा वादा है।”

मैडम की बात सुनकर उसका लंड पैंट के अंदर हुँकार मारने लगा, “जैसे मैं चाहुँगा वैसे सेवा करेगी,” ये सोच कर वो मुस्कुराने लगा।

ज़ूबी ने तभी दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी। कमरे में गूँजती कपड़ों की सर्सराहट से उसे लगा कि अब वो अपने कपड़े उतार रहा है।

ज़ूबी ने तभी उस मर्द के हाथों को अपने कंधों पर महसूस किया। फिर वो हाथ कंधों से नीचे उसकी कमर पर आये और फिर उसके हाथ को पकड़ लिया। प्रशाँत ने उसके हाथ को पकड़ कर उसे बिस्तर से नीचे उतारा और खड़ा कर दिया। वो अपने सैंडल पहने हुए पैरों से चलती हुई दो तीन कदम आगे बढ़ कर कमरे के बीच में खड़ी हो गयी। उसे उस मर्द का एहसास तो हो रहा था पर वो कह नहीं सकती थी कि वो कमरे में कहाँ खड़ा था।

प्रशाँत असल में ज़ूबी से दूर हट गया था। वो बिस्तर के सामने पड़ी चमड़े की कुर्सी पर नंगा बैठा अपनी उस नौजवान सहयोगी को देख रहा था। उसका लंड अभी पूरी तरह तना नहीं था, फिर भी उत्तेजना में हुँकार रहा था। उसने सीमा को ज़ूबी की ब्रा उतारने का इशारा किया।

सीमा ने उसकी ब्रा के हुक खोले और फिर ब्रा के स्ट्रैप को उसके कंधों से निकाल कर ब्रा को ज़मीन पर गिर जाने दिया। ज़ूबी ने अपनी ब्रा को अपने पैरों पर गिरते हुए महसूस किया।

प्रशाँत ने अब सीमा को ज़ूबी के निप्पलों से खेलने का इशारा किया। सीमा ने आगे बढ़ कर ज़ूबी की चूचियों को अपने हाथों में ले लिया। वो उसकी चूचियों को अपने हाथों मे तौलने लगी और फिर अपनी अँगुली और अंगूठे से उसके निप्पल को भींचने लगी। तुरंत ही उसके निप्पल तन कर खड़े हो गये।

सीमा जानती थी कि प्रशाँत उसे रुकने को कहने वाला नहीं था, इसलिए अब वो उसकी चूचियों को मसल रही थी और निप्पल को भींच रही थी। ज़ूबी ने अपने हाथ सीमा के कंधों पर रख दिये जिससे उसे खड़े होने मे आसानी हो। सीमा की हर्कतों ने उसकी चूत में खुजली मचा दी थी और उसकी चूत पूरी तरह से गीली हो गयी थी।

सीमा ने पलट कर प्रशाँत की ओर देखा और ज़ूबी की पैंटी की ओर इशारा किया। प्रशाँत ने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी।

सीमा ने अपने घुटने थोड़े से मोड़े और अपनी अँगुलियाँ ज़ूबी की पैंटी की इलास्टिक में फँसा दी। प्रशाँत हैरानी भारी नज़रों से सीमा को ज़ूबी की पैंटी उतारते हुए देख रहा था। उसका लंड अब पूरी तरह से तन गया, और लंड की नसें इतनी फूल गयी थी कि उससे सहन नहीं हो रहा था। उसने अपने लंड को अपनी हथेली में लिया और हिलाने लगा। उसे डर था कि कहीं ज़ूबी को छूने से पहले ही कहीं उसका लंड पानी न छोड़ दे।

ज़ूबी आँखों पर पट्टी बाँधे हुए, नंगी उस ठंडे कमरे में सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने खड़ी थी, उसके निप्पल उत्तेजना में तने हुए थे और उसकी छोटी और गुलाबी चूत उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ उत्तेजना में छू रही थी।

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