घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा Pt. 02

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विवेक और गौरव ने एक दुसरे की बीवी को चोदा.
2.8k words
3.47
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2
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Part 2 of the 3 part series

Updated 11/02/2022
Created 08/29/2014
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इस कहानी के समस्त पात्र 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं.
All the characters of this story are 18 years or older.

ये कहानी का दूसरा भाग है. पूरे मजे के लिए कृपया पहला भाग अवश्य पढ़ें. ये कहानी आपको कैसी लगी, ये मुझे मेरे प्रोफाइल पर ईमेल पर जरूर बताएं.

कविता और विवेक नंगे बदन एक दुसरे की बाँहों में समाये साड़ी रात सोते रहे. दोनों ने पिछली रात एक दुसरे को चोद चोद कर इतना थकाया था की जब वो एक बार सोये तो सुबह कब हुई ये पता नहीं चला. विवेक की आँख 9:30 पर खुली और वो तुरंत ब्रश करने चला गया. वापस आकर कविता के होठों पर होंठ रखे और धीरे से बोला, "बाय". विवेक अपने सामने के घर में कल ही शिफ्ट हुए पड़ोसी की बीवी रेनू से मिलने जा रहा था.

कविता को विवेक के वापस आने के लिए लगभग दो घंटे इंतज़ार करना पड़ा. विवेक को देखते ही कविता समझ गयी को वो रेनू को जम कर छोड़ कर आया है. विवेक ने उसे साड़ी आपबीती सुनाई. उसने बताय की जब वो उसके घर पहुंचा रेनू बिस्तर पर नंगी लेट कर उसका इंतज़ार कर रही थी. दोनों ने एक दुसरे पहले तो चूस चूस कर पानी निकाला फिर चोद चोद कर.

"कविता उन्होंने हमें शाम को ड्रिंक्स के लिए बुलाया है. तुम अभी भी राजी हो ना?"

कविता हंसी और बोली,
"अरे ये भी कोई पूछने की बात है... ऐसा मौका छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता."

"अच्छा एक बात - रेनू पूछ रही थी की क्या तुम्हें औरत के साथ सेक्स पसंद है"

कविता बोली ... "मुझे लगता है की ये कला भी सीखने का वक़्त आ ही गया है...."

दोनों ने बाकी का दिन शाम का इंतज़ार करते हुए ही गुज़ारा. शाम को जब वो पड़ोसियों के लिए निकलने ही वाले थे, उसके घर की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो देखा पड़ोसियों की बेटी सायरा खडी थी.

"मैंने सोचा की मैं तृषा को यहाँ कंपनी दूंगी, ताकि आप दोनों को मेरी मम्मी और पापा को ठीक से जानने का पूरा मौका मिले."

सायरा अन्दर आई. वो मिनी स्कर्ट और लो कट ब्लाउज पहने हुए थी. कविता अभी भी ऊपर तैयार हो रही थी. विवेक ने सायरा की चून्चियों को घूरा और बोला,

"ये बड़ी अच्छी बात है सायरा.. ये तो बड़ा अच्छा होगा अगर तुम और तृषा अच्छी सहेलियां बन जाओ.."

सायरा मुस्करा रही थी उसे अच्छे तरह पता था की विवेक इस समय उसके चुन्चियों को मजे ले कर घूर रहा है. वो बोली,
"मुझे पूरा यकीन है की हम दोनों बेस्ट सहेलियां बनेंगे ... क्या आप मेरे दोस्त बनेंगे
विवेक अंकल? मुंबई में मेरी कई सहेलियों के पिता लोग मेरे बड़े अच्छे दोस्त थे”

विवेक मन ही मन सोच रहा था की सायरा क्या उसे हिंट दे रही थी कि मुंबई में वो अपनी सहेलियों के पिताओं के साथ मौज कर रही थी. इस ख़याल से ही उसका लंड खड़ा हो गया. उसने सायरा की आँखों में आँखें डाल कर बोला,
"मुझसे दोस्ती करोगी सायरा?"
"ओह.. बिलकुल"

उसी समय कविता सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आई. उसकी ड्रेस बहुत ही सेक्सी थी, विवेक और सायरा जैसे कविता को घूरते जा रहे थे. तृषा कविता के पीछे पीछे आई और कविता की ड्रेस का बिलकुल ध्यान न देते हुए उसने सायरा का हाथ पकड़ा और अपने ऊपर कमरे में चली गयी.

कविता और विवेक हाथों में हाथ डाले जब पड़ोसियों के यहाँ पहुचे, गौरव और रेनू दोनों ने बड़े ही खुशी से उसका दरवाजे पर उनका स्वागत किया. जल्दी गौरव ने सबको ड्रिंक्स बना दिए. इस परिस्थिति में सब के लिए ड्रिंक्स जरूरी था. जैसे ही थोडा सरूर चढ़ा, वो चार लोग एक दुसरे के साथ और भी खुलते गए. गौरव के चुटकुले और विवेक के जवाबी चुटकुले नॉन-वेज होते चले जा रहे थे. लड़कियां उन गंदे चुटकुलों पर जम के ताली बजा बजा कर हंस रही थीं. विवेक और गौरव एक दुसरे की बीवियों के साथ खड़े थे. थोड़े समय में ही दोनों जोड़ियाँ एक दुसरे से थोडा दूर होती गयीं. एक दुसरे के कानों में फुसफुसाना शुरू हो गया. एक दुसरे को छूने का छोटा से छोटा मौका भी कोई छोड़ नहीं रहा था. सारा मामला बिलकुल ठीक दिशा में जा रहा था. कुल मिला कर गौरव के बनाए हुए ड्रिंक्स जैसे बिलकुल ठीक काम कर रहे थे. विवेक ने कविता को चेक किया. कविता के मम्मे आनंद में कड़े हो गए थे, उसके गाल शायद थोडा नर्वस होने की वज़ह से लाल हो गए थे.

कविता भी विवेक को बीच बीच में देख लेती थी. वैसे उसे विवेक और रेनू के बारे में कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वो दोनों तो आज सुबह ही अपनी चुदाई की शुरुआत कर चुके थे. बात ये थी की उसके और गौरव के बीच की बात कुछ आगे बढेगी या नहीं?

गौरव शायद कविता की इस अदृश्य उलझन को भांप गया. वो बोला,

"कविता तुमने अपने घर में मुझे अपना स्टोव दिखाया था. आओ मैं तुम्हें अपना होम थिएटर रूम दिखाता हूँ.”

कविता तो मानों पहले से ही तैयार बैठी थी. गौरव ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और बढ़ गया. अब ध्यान देने की बात ये है कि होम थिएटर रूम देखने का निमंत्रण विवेक और रेनू को क्यों नहीं मिला. शायद गौरव और कविता जल्दी से जल्दी रेनू और विवेक से बराबरी करना चाहते थे. क्योंकि सुबह कि चुदाई के बाद विवेक और रेनू का स्कोर इनके मुकाबले में 1-0 था. जैसे ही वे दोनों वहां से निकले, रेनू ने दीवाल पर अलग हुआ स्विच आन कर दिया. वो विवेक की तरफ मुडी और मुस्कराते हुए बोली,

"अब हम गौरव और तुम्हारी प्यारी और मासूम बीवी के बीच जो कुछ भी होगा वो सारा हाल इस स्पीकर पर सुन सकेंगे."

उन्हें स्पीकर पर दरवाजा खुलने की आवाज आई और फिर गौरव और कविता के परों की आहट सुनाई पडी. साड़ी चीजें बिलकुल साफ़ सुनाई पड़ रही थीं. उन्होंने क्लिक की आवाज सुनी, लगता है गौरव ने दरवाजा लॉक कर लिया हो. कविता मुंह दबा कर हंस रही थी. उसकी दिल की धडकनें जोर से चल रही थीं. गौरव ने लाइट ऑफ कर के वहां अँधेरा कर दिया. कविता ने जोर से सांस भरी और उई की अव्वाज निकाली क्योंकि गौरव अपना हाथ उसकी स्कर्ट के अन्दर डाल कर उसकी चूत सहला रहा था. कविता ने अपने पैरों को फैला दिया ताकि गौरव उसकी चूत को मजे से सहला सके और बोली,
"मौका मिला की की दरवाजा बंद और बत्ती बंद और काम चालू गौरव जी?"

"अरे मै तो तुम्हारे लिये कब से कितना बेकरार हूँ, बस मौका मिलने की ही देर थी जानेमन."

"ओह नो .... ओह... नो ..... बड़ा मजा आ रहा है, तुम जिस तरह से मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी रगड़ रहे हो.... ओह गौरव ... तुम तो बड़े खिलाडी निकले..आह्ह..."

"आओ यहाँ इस काउंटर पर बैठो, ताकि मैं तुम्हारी बुर चाट सकूं कविता."

बाहर विवेक और रेनू स्पीकर पर चलने की आवाज फिर गीली चीज चाटने की आवाज और साथ में कविता के सिहरने की आवाज सुन रहे थे.

"ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ... यस गौरव... बहुत अच्छे ... कितना मजा आ रहा है..... ओह शिट गौरव लगता है की झड जाऊंगी... फक......."

भरी साँसों के आवाजों से सारा कमरा भर उठा. थोडी समय बाद कविता एक धीमी से चीख मार कर शांत हो गयी. कविता बोली,
"अब कुछ खाने का मेरा टर्न गौरव.... चलो खोलो और दिखाओ यहाँ क्या छुपा रखा है ..."

और इसके बाद स्पीकर पर गौरव के लंड के ऊपर कविता का गीले मुंह की आवाजें सुनाई दीं. गौरव को मजा लेने की आवाजें भी बीच में आ रही थीं.

और कुछ ही छड़ों बाद

"मैं तुम्हारी बुर चोदना चाहता हूँ कविता... अभी के अभी..."

"यस .... जल्दी से.... ओह यस ...मजा आ रहा है ..... सो गुड. ओह तुम्हारा बड़ा लंड बड़ा प्यारा है गौरव... पेल दो इसे .... छोड़ दो मुझे...मुझे चोदो....... फक...फक...”

थोड़ी देर में जब आवाजें आनी बंद हो गयीं, गौरव बोला,
"ओह कविता, कपडे वापस पहनने की जरूरत नहीं है. चलो वापस विवेक और रेनू के पास चलते हैं... मुझे पूरा यकीन है की वो दोनों ऐसा की कुछ कर रहे होंगे"

"मुझे भी ऐसा जी लगता है"

जब गौरव और कविता नंगे बदन वापस विवेक और रेनू के वापस आये, रेनू फर्श पर फैले कालीन पर पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी. उसने अपने पैर पूरी तरह से फैला रखे थे. विवेक उसकी दोनों लम्बी और सुन्दर टांगों के बीच में बैठा उसकी चूत को अपने मोटे लंड से धीरे धीरे धक्के लगाता हुआ छोड़ रहा था. दोनों काफी आवाजें निकाल रहे थे. कविता ने विवेक को दूसरी औरत को चोदते हुए कभी नहीं देखा था. ये नज़ारा देख कर उसके बदन में जैसे ऊपर से नीचे तक चीटियाँ रेंग गयीं और उसकी चूत फिर से चुदाई के लिए बिलकुल तैयार हो गयी.
गौरव को तो बस इशारा ही काफी था. उसने खड़े खड़े ही पीछे से अपना लंड कविता की बुर में डाल दिया और उसे तब तक चोदा जब तक दोनों झड नहीं गए.

सबने बाद में बैठ कर बड़े ही आराम से डिनर खाया. खाने की टेबल पर बैठ कर उन्होंने खूब सारी बातें की. ध्यान देने वाली बात ये थी की सारी की सारी बातें सेक्स से ही सम्बंधित थीं और चारों लोग डिनर टेबल पर पूरी तरह से नंगे बैठ कर खाना खा रहे थे. खाना ख़तम कर के जब वे वापस उस कमरे में लौटे तो रेनू कविता के साथ चल रही थी. रेनू ने कविता की नंगी कमर को अपने हाथो में भर कर पूछा,
"तुमने कभी किसी औरत के साथ सेक्स किया है कविता?"

"अभी तक तो नहीं ... पर ऐसा लगता है की आज इस चीज पर भी हाथ साफ कर ही डालूँ..पर मुझे पता नहीं है की कैसे करते हैं..."

"अरे कभी न कभी तो जब आदमी के साथ किया होगा तो पहली बार ही हुआ होगा न? करना चालू करो तो बाकी सब अपने आप हो जाएगा..देखो, पहले मैं तुमारी बुर चाटना शुरू करती हूँ...उसके बाद तुम जैसा मैं तुम्हारे साथ करू वो तुम्हें अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ करते जाना.. बस मजा आना चाहिए..”

विवेक और गौरव दोनों लोग अपने हाथ में स्कॉच का जाम ले कर बैठ गए. ऐसा लग रहा था की जैसे लड़के लोग नाईट क्लब में बैठ कर दारू पीते हुए कोई शो देख रहे हों. रेनू ने कविता को सोफे के इनारे पर बिठा कर लिटा दिया और अपने तजुर्बेकार मुंह से कविता की बुर को चाटने लगी. रेनू की जीभ कविता की बुर के बाहर की खल के ऊपर थिरकती और दुसरे ही पल वह उसके बुर के दाने को चाट लेती, अगले पल वह कविता की बुर के छेद में अपनी जीभ घुसेड कर जैसे उसे थोडा सा अपनी जीभ से छोड़ सा देती थी. कविता उन्माद में सिस्कारिया भर रही थी. रेनू धीरे धीरे बुर के दोनों तरफ की खाल चाट रही थी और उसने अपने एक उंगली कविता की बुर में डाल राखी थी और दूसरी उंगली उसके गांड में. कविता के लिए यह अनुभव एकदम नया था और वो इसे जी भर के मजे ले कर ले रही थी. कविता अपना बदन एक नागिन की तरह उन्माद में घुमा रही थी. वो उन्माद में चीख रही थी. इतना आनंद उसके बाद के बाहर हो गया और एक चीत्कार के साथ ही उसने रेनू की जीभ पर अपनी बुर का रस उड़ेल दिया. कविता का बदन शिथिल पद गया. वह रेनू के कन्धों पर अपने पर डाले हुए सोफे पर टाँगे फैला कर नंगे पडी हुई थी.

कविता ने लेटे लेटे अपनी बुर की तरफ देखा. रेनू ने अपना चेहरा उसकी दोनों टांगों के बीच से ऊपर उठा. दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्काये. कविता उठी और रेनू को पकड़ कर उसके होठों से होठों का चुम्बन दिया. कविता ने रेनू के होठों पर लगा हुआ अपनी ही बुर का रस चाट चाट कर स्सफ कर दिया.

"ये तो वाकई बड़ा मजे वाला था रेनू... थैंक यू डार्लिंग. मुझे लगता है की मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए”

कविता रेनू को लिटा कर उसके ऊपर 69 का पोज बना कर लेट गयी. दोनों लड़कियां एक दुसरे की चूत मस्त हो कर चाट रहीं थीं.

गौरव के पास क्यूबा से लाये हुए सिगार थे. उसने एक गौरव को दिया और एक खुद के लिए रखा. दोनों लड़कियों के पास गए. गौरव ने रेनू की चूत में लगभग 2 इंच सिगार घुसेढ़ दिया. विवेक ने भी इसकी पूरी नक़ल करते हुए कविता की बुर में सिगार दाल दिया.
रेनू बोली, “क्या तुम लोगों के लंड अब इतना थक गए हैं की हम लोगों को अब सिगार से चुदना पड़ेगा”

“अरे नहीं मेरी जान, ये तो हम तुम्हें चोदने के पहले तुम्हारी चूतों को थोडा धूम्रपान करा रहे हैं” कहते हुए गौरव ने सिगार दुसरे सिरे से जलाने की कोशिश की. पर वो जला नहीं क्योंकि सिगार को फूंकने की जरूरत होती है. और रेनू की चूत में शायद फूंकने का हुनर नहीं था.

कविता ने जोर से डांट लगाई, “अरे ये आग हटाओ यार, हम लोग जल गए तो.. पागल हो क्या तुम लोग”

दोनों ने तुरंत अपनी बीवियों की आज्ञा का पालन करते हुए सिगार चूत से निकाल कर जला लिया. सिगार चूत के रस से लबालब था तो दोनों को सिगार पीने में ख़ास ही मज़ा आ रहा था. कमरे में चूत के रस के साथ शराब और सिगार के धुंएँ की गंध भर गयी.

कविता और रेनू एक दुसरे की चूत चूसते हुए लगता है झड़ने ही वाले थे. विवेक बाथरूम के लिए गया. जब वो वापस लौटा, उसने देखा की गौरव चेयर पर बैठा है और कविता उसकी बाहों में बाहें डाले उसके ऊपर बैठी हुई है. गौरव का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है. कविता धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रही मानों घोड़े की सवारी कर रही हो. विवेक मुस्काराया और कविता के पीछे जा कर खड़ा हो गया. कविता के चूतर गौरव के मोटे लंड के ऊपर उछालते देख कर उसका लंड फटाक से खड़ा हो गया. रेनू को समझ आ गया की विवेक की मन्सा क्या है. उसने ड्रावर खोली और उसी KY जेली की ट्यूब निकाली और आँख मारते हुए विवेक को थमा दी. विवेक ने ट्यूब से क्रीम अपने लौंडे पर लगाई और ढेर सारी क्रीम उंगली में लगा कर कविता की गांड के छेद पर लगाने लगा. जैसे ही ठंडी क्रीम कविता की गांड में लगी, कविता चौंक कर उचक गयी. पीछे मुड़ कर देखा तो समझ गयी की विवेक के गंदे दिमाग में की योजना है. वो गौरव के लौंडे को चोदते हुए हाँफते हुए बोली,

"हाँ विवेक.... जल्दी करो... मैंने इस पोज के के बारे में कितना सोचा हुआ है... आज वो सपना हकीकत में बदलने जा रहा है....कम ऑन विवेक...गो फॉर इट..."

रेनू आगे आई और विवेक का क्रीम से सना हुआ लौंडा कविता की गांड के छेद के मुहाने पर टिकाया, ऊपर विवेक को देख कर आँख मारी, जैसे कि वो 100 मीटर रेस में रेस स्टार्ट के लिए फायर कर रही हो. विवेक ने एक धक्का दिया और उसका लौंडा कविता की गांड में जा घुसा. वैसे तो कविता ने विवेक का लौंडा अपनी गांड में कई बार लिया हुआ था. पर ये पहली बार था जब लंड गांड में तब घुसा, जब बुर में एक मोटा सा लंड पहले से घुस कर कमाल कर रहा था. ये अनुभव बड़ा ही अनोखा था और बड़ा की मजेदार भी. जैसे जैसे दो मोटे लंड उसके दोनों छेदों में अन्दर बाहर जाते थे, वह वासना के उन्माद में पागल सी हो जा रही थी. आनंद के चरम शीर्ष पर थी वो और कुछ भी बडबडा रही थी.

“चोदो मुझे तुम दोनों....ओह मई गॉड...मेरी गांड मारो विवेक....मेरी बुर को चोद डालो गौरव....ओह्ह...मैं झड़ने वाली हूँ...मेरी मारो जोर से ....आ...आ...आ..आह...उईईईईई.......”, कविता ये बडबडाते हुए जोरों से झड गयी.

उस रात बहुत कुछ हुआ. रेनू और कविता ने विवेक और गौरव से डबल-चुदाई कराई. कविता ने रेनू से अपनी बुर फिर से चुस्वाई और फिर कविता ने रेनू की चूत चूसी. गर्मी की ये लम्बी शाम चारों ने बहुत से खेल खेलते हुए गुजारी.

जब वे चलने लगे तो रेनू ने कहा,
“मुझे बड़ी खुशी है की हम लोगों का परिचय इतनी जल्दी तुम लोगों से हो गया. बड़ा अच्छा हो की और 4-5 कपल्स हमारे खेल में शामिल हो सकते. तुम लोगों किसी और कपल्स को जानते हो जो इसमें शामिल हो सकें? मैं अगले हफ्ते नया जॉब पर स्टार्ट कर रही हूँ. वहां पर मैं और लोगों को अन्दर लाने की कोशिश करूंगी. जल्द ही हमारे पास एक बड़ा और बढ़िया सा ग्रुप होगा. बहुत मजा आएगा न? हम यहाँ पर पार्टी करेंगे. हम हिल स्टेशन पर जा कर पार्टी करेंगे”

सब लोगों ने फिर से किस किया एक दुसरे के बदन को अच्छे से छुआ. उन्होंने अगले हफ्ते की पार्टी विवेक और कविता के घर पर तय की. चारों लोग अपनी इस नयी शुरुआत से बड़े खुश थे. वो जानते थे कि आने वाला समय उस सबके जीवन में नए नए आनंद ले कर आने वाला था और सब लोग इस बात से बड़े खुश थे.

शेष अगले भाग में ....

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