हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है

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कविता की कमसिन चूत बड़ी कमाल की ...
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हाए भैय्या,धीरे से, बहुत मोटा है
प्रेषक : रविराम69 © "लॅंडधारी" (मस्तराम मुसाफिर)

Note:
This story has adult and incest contents. Please do not read who are under 18 age or not like incest contents. This is a sex story in hindi font, adult story in hindi font, gandi kahani in hindi font, family sex stories

पटकथा: (कहानी के बारे में) :
=====================================================
// कविता की कमसिन चूत बड़ी कमाल की ...\\
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Tags:
बहू बूढ़े बहुत चोदा चुचियों छाती चोली पहनी थी चोली काफ़ी टाइट थी और छोटी भी थी चूसने चूत गाल गाँड गाउन होंठ जाँघ जिस्म जांघों उतारने कमली झड़ कमल खूबसूरत किचन कमर क्लीवेज लूँगी, लंड लंबा चौड़ा लंड मज़ा मुलायम माधुरी नाइटी नंगा निपल्स पिताजी पतली रवि ससुर सास टाइट उतारने

कहानी के कुछ अंश
==============
भैय्या, बहुत दर्द हुआ, इतने जोर से मत कीजिए। धीरे धीरे कीजिए न।….. लंड उसकी चूत पर रखकर एक जोरदार झटका मारा। …. कविता ने कहा, हाए भैय्या! ज़ोर ज़ोर से............


मेरा परिचय
========
दोस्तो, मेरा नाम रविराम है, दोस्त मुझे 'लॅंडधारी' रवि के नाम से बुलाते हैं। मेरा लंड 9 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा है। जब मेरा लंड खड़ा (टाइट) होता है तो ऐसा लगता है जैसे किसी घोड़े या किसी गधे का लंड हो । जिसके अन्दर जाये, उसकी चूत का पानी निकाल कर ही बाहर आता है, और वो लड़की या औरत मेरे इस लंबे, मोटे और पठानी लंड की दीवानी हो जाती है । आज तक मैंने बहुत सी शादीशुदा और कुवांरियों की सील तोड़ी है।

Story : कहानी:
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कई विद्यार्थी दूर दूर से आए हुए थे। आसपास के सारे होटल भरे हुए थे। मैं कई होटलों में भटक चुका था लेकिन कोई कमरा खाली नहीं मिला। मेरी चचेरी बहन, कविता जिसकी उमर 20 साल हो चुकी थी (Now she is 20 years old), जिसे जीव विज्ञान में स्नातक की प्रवेश परीक्षा देनी थी वो भी मेरे साथ घूमते घूमते थक चुकी थी। ऊपर से जानलेवा गर्मी। हमारे कपड़े पसीने से भीग चुके थे।

एक दो होटलों में और देखने के बाद उसने कहा- भैय्या अब जहाँ भी जैसा भी कमरा मिले तुरंत ले लेना मुझसे और नहीं चला जाता। थोड़ी और परेशानी झेलने के बाद एक घटिया से होटल में सिंगल बेड रूम मिला। होटल दूर दूर से आए परीक्षार्थियों से भरा हुआ था। मैंने होटल के मैनेजर से एक अतिरिक्त गद्दा जमीन पर बिछाने के लिए कहा तो उसने एक घटिया सा कंबल लाकर जमीन पर बिछा दिया।

मैंने कविता से कहा- तुम थक गई होगी चलो बाहर कहीं से खाना खाकर आते हैं इस गंदे होटल में तो मुझसे खाना नहीं खाया जाएगा।

फिर हम लोग पास के एक रेस्टोरेंट से खाना खाकर आए। कविता को मैंने बेड पर सो जाने के लिए कहा और खुद नीचे सो गया।

रात को मैं बाथरूम जाने के लिए उठा और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण कविता घोड़े बेचकर सो रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना।

उस वक्त मैं राजनीति शास्त्र में एमए करके इलाहाबाद से प्रशासकीय सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा ज्यादातर समय पढ़ाई में ही बीतता था। लड़कियों के बारे में मैंने दोस्तों से ही सुना था और युवाओं के मशहूर लेखक मस्तराम को पढ़कर हस्तमैथुन कर लिया करता था।

अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई और मैं बाथरूम में चला गया। बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट ठीक कर दूँ। फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए इसलिए मैं बत्ती बुझाकर नीचे लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन मुझे नींद कहाँ आ रहा थी।

ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। मस्तराम की कहानियाँ रह रहकर मुझे याद आ रही थीं। मस्तराम की कहानियों में भाई बहन की बहुत सी कहानियाँ थीं मगर मैं उन्हें देखते ही छोड़ देता था। मुझे ऐसी कहानियाँ बेहद ही बचकाना एवं बेवकूफ़ी भरी लगती थीं। भला ऐसा भी कहीं होता है कि लड़की जिसे भैय्या कहे उसके साथ संभोग करे।

अगला एक घंटा ऐसे ही गुजरा। कामदेव ने मौका देखकर अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं उठा और मैंने कमरे की बत्ती जला दी। कविता की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और मुम्मे भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लंड मेरे पजामे में तम्बू बना रहा था। अगर इस वक्त कविता जग जाती तो पता नहीं क्या सोचती।

फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे कविता ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता रहा।

फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लंड में आवश्यकता से अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख दिया।

धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। कविता वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।

धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों से हटाकर उसकी पैंटी के ऊपर रखा। मेरी हिम्मत और बढ़ी। मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया। अचानक मुझे लगा कि उसके जिस्म में हरकत होने वाली है। मैंने तुरंत अपना हाथ हटा लिया। उसके जिस्म में वाकई हरकत हुई और उसने करवट बदली। मैं फौरन जाकर नीचे लेट गया। फिर वो उठी और उसने कमरे की लाइट जलाई। मैंने कस कर आँखें बंद कर लीं और ईश्वर से दुआ करने लगा- प्रभो इस बार बचा ले ! आगे से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा। वो बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर चली गई। अब मेरी समझ में आया कि वो बाथरूम गई है। वो वापस आई। ट्यूबलाइट की रोशनी सीधे मेरी आँखों पर आ रही थी इसलिए आँख बंद करने के बावजूद ट्यूब लाइट की रोशनी की तीव्रता कम होने से मैंने महसूस किया कि वो ट्यूबलाइट के पास जाकर खड़ी हो गई है। वो थोड़ी देर तक वैसे ही खड़ी रही मेरा दिल फिर धड़कने लगा।

अचानक उसने ट्यूबलाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। तब मुझे समझ में आया कि वो ट्यूबलाइट के पास क्यूँ खड़ी थी। मेरे लंड ने पजामे में तंबू बनाया हुआ था और मैं बनियान पहनकर सो रहा था। हो न हो ये जरूर मेरे लंड को ही देख रही होगी आखिर जीव विज्ञान की छात्रा है मुझसे ज्यादा तो मैथुन क्रिया के बारे में इसे पता होगा।

यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं हस्तमैथुन करने लगा। थोड़ी देर बाद ढेर सारा वीर्य फर्श पर गिरा। मैंने उस गंदे कंबल के निचले हिस्से से फर्श पोंछा और सो गया।

अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो वह बाथरूम में थी। मेरी निगाह अब उसके लिए बदल चुकी थी और मेरी हिम्मत भी इस वक्त बहुत बढ़ी हुई थी। मैंने तलाश किया तो उस घटिया होटल के घटिया से बाथरूम के पुराने दरवाज़े में एक छोटा सा सुराख फर्श से एक फीट ऊपर दिखाई दिया। अंदर से कपड़े धोने की आवाज़ आ रही थी लेकिन बैठकर भी उस सुराख से झाँका नहीं जा सकता था। तो मैं वहीं फर्श पर लेट गया और अपनी आँखें उस सुराख पर लगा दीं।

अंदर का दृश्य देखकर फौरन मेरा लंड उत्तेजित अवस्था में आ गया। कविता बिल्कुल नंगी होकर कपड़े धो रही थी। उसके निर्वस्त्र पीठ और चूतड़ मेरी तरफ थे। जैसे दो पके चूतड़ रात्रिभोज का निमंत्रण दे रहे थे। फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में चूत के दर्शन पाने का इंतजार करने लगा।

आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको चखने के लिए मैं कल रात से बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई चूत ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी होने का इंतजार कर रही थी। पहली बार मैंने सचमुच की चूत देखी।

अच्छी चीजें कितनी जल्दी नज़रों के सामने से ओझल हो जाती हैं। साबुन लगाकर वो खड़ी हो गई और फिर मुझे उसके कपड़े पहनने तक सिर्फ़ उसकी टाँगें ही दिखाई पड़ीं।

प्रवेश परीक्षा का पहला पेपर दिला कर मैं उसे होटल वापस लाया। दूसरा और आखिरी पेपर अगले दिन था। वो प्रवेश परीक्षा दे रही थी और मैं परीक्षा हाल के बाहर बैठा अपनी वासना की पूर्ति के लिए योजना बना रहा था। शाम को हम खाना खाने गए। वापस आकर मैंने उससे कहा- कविता , कल रात मैं ठीक से सो नहीं पाया, यह कंबल बहुत चुभता है, इस पर मुझे नींद नहीं आती।

वो बोली- भैया, आप बेड पर सो जाओ मैं नीचे सो जाती हूँ।

इस पर मैं बोला- नहीं, तुम्हारा ठीक से सोना जरूरी है तुम्हारी परीक्षा चल रही है। चलो कोई बात नहीं मैं एक दिन और अपनी नींद खराब कर लूँगा।

इस पर वो बोली- नहीं भैय्या, ऐसा करते हैं, हम दोनों बेड पर सो जाते हैं।

मेरी योजना सफल हो गई थी। मैंने उसे दिखाने के लिए बेमन से हामी भर दी।

वो दूसरी तरफ मुँह करके सो रही थी और मैं धड़कते दिल से उसके सो जाने का इंतजार कर रहा था। मेरा पजामा और उसका स्कर्ट एक दूसरे को चूम रहे थे।

जब मुझे लगा कि वो सो गई है तो मैंने अपना लंड उसके चूतड़ो के बीच बनी खाई से सटा दिया।

थोड़ी देर तक मैं उसी पोजीशन में रहा। जब उसकी तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो मैंने लंड का दबाव बढ़ाया। फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। तब मैंने धीरे से अपना हाथ उसके चूतड़ पर रख दिया। मेरे हाथ में हल्का हल्का कंपन हो रहा था। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद मैंने उसके चूतड़ पर अपने हाथों का दबाव और बढ़ा दिया।

अचानक उसके चूतड़ थोड़ा पीछे हुए और उनमें संकुचन हुआ, उसके चूतड़ो ने मेरे लंड को जकड़ लिया। पहले तो मैं यह सोचकर डर गया कि वो जगने वाली है पर उसकी तरफ से और कोई हरकत नहीं हुई तो मैं समझ गया कि इसे भी मजा आ रहा है।

कल यह मेरा लंड देख रही थी और आज बिना ज्यादा ना नुकुर किए मेरे साथ इस सिंगल बेड पर सोने को तैयार हो गई। यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने अपना हाथ उसके चूतड़ से सरकाकर उसकी जाँघ पर ले गया फिर थोड़ा इंतजार करने के बाद मैंने अपनी हथेली उसकी डबल रोटी पर रख दी। उसका पूरा बदन जोर से काँपा वो थोड़ा और पीछे होकर एकदम मुझसे सट गई और मेरा लंड उसके चूतड़ो की दरार में और गहरे सरक गया।

अब मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है।

फिर मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी डबल रोटियों को सहलाने लगा। उसका बदन धीरे धीरे काँप रहा था और गरम होता जा रहा था। मैंने अपना हाथ ऊपर की तरफ ले जाना शुरू किया। कविता ने अभी ब्रा पहनना शुरू नहीं किया था। कारण शायद यह था कि उसका शरीर अभी इतना विकसित नहीं हुआ था कि ब्रा पहनने की जरूरत पड़े। उसने टीशर्ट के अंदर बनियान पहन रखी थी।

मेरा हाथ किसी साँप की तरह सरकता हुआ उसके पेट पर से होता हुआ जब उसके नग्न उभारों पर आया तो उसके मुँह से सिसकारी निकल गई।

मैंने धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाना और दबाना शुरू किया तो उसके चूतड़ो ने मेरे लंड पर क्रमाकुंचन प्रारंभ किया। मेरी जो हालत थी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। कामदेव जरूर अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहा होगा। दुनिया की सारी बुराइयों की जड़ यह कामदेव ही है।

थोड़ी देर बाद जब मैं उसके उभारों से उब हो गया तो मैंने अपना हाथ नीचे की तरफ बढ़ाया। उसके स्कर्ट की इलास्टिक फिर पैंटी की इलास्टिक को ऊपर उठाते हुए जब मेरे हाथ ने उसके दहकते हुए रेत के टीले को स्पर्श किया तो उसने कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया। यह मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैंने समझा कि कविता मुझे और आगे बढ़ने से रोक रही है। उस वक्त मेरी समझ में कहाँ आना था कि यह प्रथम स्पर्श की प्रतिक्रिया है।

वो मेरी चचेरी बहन थी और मैं उससे बहुत प्यार करता था। अपनी उस खराब हालत में भी मैं उसके साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता था। मैंने अपना हाथ बाहर निकाल लिया और उसके पेट की त्वचा को सहलाने लगा। थोड़ी देर बाद उसने मेरा खुद ही मेरा हाथ पकड़ कर स्कर्ट के अंदर डाल दिया।

मेरी खोई हुई हिम्मत वापस लौट आई और मैंने उसके टीले को आहिस्ता आहिस्ता सहलाना शुरू किया और उसको झटके लगने शुरू हो गए। इन झटकों से उसके चूतड़ मेरे लंड से रगड़ खाने लगे। उफ़ क्या आनन्द था ! जो आनन्द किसी वर्जित फल के अचानक झोली में गिरने से प्राप्त होता है वो दुनिया की और किसी चीज में नहीं होता।

जब मेरे हाथों ने उसके टीले को दो भागों में बाँटने वाली दरार को स्पर्श किया तो उसे फिर से एक जोर का झटका लगा। अगर मेरा पजामा और उसकी स्कर्ट पैंटी बीच में न होते तो मेरा लंड पिछवाड़े के रास्ते से उसके शरीर में प्रवेश कर जाता। उसकी दरार से गुनगुने पानी का रिसाव हो रहा था जिसके स्पर्श से मेरी उँगलियाँ गीली हो गईं। गीलापन मेरी उँगलियों के लिए चिकनाई का कार्य कर रहा था और अब मेरी उँगलियाँ उसकी दरारों में गुप्त गुफ़ा ढूँढ रही थीं।

न जाने क्यों सारे खजाने गुप्त गुफ़ाओं में ही होते हैं। जल्द ही मेरी तर्जनी ने गुफा का मुहाना खोज लिया और उसमें प्रवेश करने की चेष्टा करने लगी। गुफ़ा के रास्ते पर बड़ी फिसलन थी और जैसे ही मेरी तर्जनी सरकते हुए मुहाने के पार गई कविता के मुँह से हल्की सी चीख निकल पड़ी, वो करवट बदलकर मुझसे लिपट गई।

इस प्रक्रिया में मेरी तर्जनी और लंड दोनों उस असीम सुख से वंचित हो गए जो उन्हें मिल रहा था।

थोड़ी देर मैंने उसे खुद से लिपटे रहने दिया फिर मैंने धीरे से उसे खुद से अलग किया और चित लिटा दिया। फिर मैंने नीचे से उसका स्कर्ट उठाना शुरू किया और उसकी टाँगों को चूमना शुरू किया। मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर जाती थी। जब मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से उसके गर्म रेतीले टीले को चूमा तो वो जोर से काँपी। अब मैं उसके टीलों को देखने का आनंद लेना चाहता था। बाथरूम में इतनी दूर से देखने में वो मजा कहाँ था जो इतने करीब से देखने पर मिलता।

मैंने कविता से पूछा- बत्ती जला दूँ?

इतनी देर में वो पहली बार बोली- नहीं मुझे शर्म आएगी।
(उफ़ ! ये लड़कियाँ भी ज्यादा बेशर्म हो जाएँ तो बेमजा, ज्यादा शर्मीली हो जाएँ तो बेमजा।)

बहरहाल मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक में अपनी उंगली फँसाई और उसे नीचे खींचने लगा। उसने अपने चूतड़ ऊपर उठा दिए और मेरा काम आसान हो गया। पैंटी उतारने के बाद मैं अपना मुँह उसकी चूत के पास ले गया। एक अजीब सी गंध मेरे नथुनों से टकराई। मैंने साँस रोककर उसकी चूत को चूम लिया।

वो उछल पड़ी।

अब स्वयं पर नियंत्रण रख पाना मेरे लिए मुश्किल था। मैंने तुरंत पजामा उतार दिया। शायद "आदमी हो या पजामा" वाली कहावत यहीं से बनी है। ऐसी स्थिति में भी जो पजामा पहने रहे वो वाकई आदमी नहीं पजामा है। मैंने बनियान भी उतारी और उसके बाद अपने अंतिम अंतर्वस्त्र को भी बेड के नीचे फेंक दिया। कविता की टाँगें चौड़ी की और महान लेखक मस्तराम की कहानियों की तरह लंड उसकी चूत पर रखकर एक जोरदार झटका मारा।

लंड तो घुसा नहीं कविता चीख पड़ी सो अलग।

यह क्या हो गया मैंने सोचा। मस्तराम की कहानियों में तो दो तीन झटकों और थोड़े से दर्द के बाद आनन्द ही आनन्द होता है। यहाँ कविता कराह रही है।

मैं तुरंत कविता के बगल लेट गया और उसे कसकर खुद से चिपटा लिया, मैंने पूछा- क्या हुआ बेबी?

वो बोली- भैय्या, बहुत दर्द हुआ, इतने जोर से मत कीजिए। धीरे धीरे कीजिए न।

बार बार मेरी हिम्मत टूट रही थी और कविता बार बार मेरी हिम्मत बढ़ा रही थी। शायद कामदेव ने उसके ऊपर भी अपने सारे अमोघ अस्त्रों का प्रयोग कर दिया था। मैं दुबारा उसकी जाँघों के बीच बैठा और इस बार महान लेखक मस्तराम के लिखे को न मानते हुए मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ना शुरू किया। वो भी अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी। फिर मैंने उसकी गुफा के मुहाने पर लंडमुंड का दबाव बढ़ाया। इस बार उसने कुछ नहीं कहा।

मैंने थोड़ा और दबाव बढ़ाया तो वो बोली- भैय्या।

मैंने कहा- हाँ।

वो बोली- आपकी भी प्रवेश परीक्षा चल रही है।

उसकी बात सुनकर मेरे मुँह से बेसाख्ता हँसी निकल गई। मैं समझ गया कि लंड रगड़ने के दौरान ही कविता आनंद के चरम पर पहुँच गई थी और अब वो केवल मेरा साथ देने के लिए लेटी हुई है। ऐसी स्थिति में अंदर घुसाने की कोशिश करना बेकार भी था और खतरनाक भी।

मैं उसकी चूत पर ही अपना लंड रगड़ने लगा और रगड़ते रगड़ते एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरे भीतर सारा लावा फूट कर उसकी चूत पर बिखरने लगा। फिर मैंने उसकी पैंटी उठाई और उसकी चूत पर गिरे अपने वीर्य को साफ करने के पश्चात अपने हाथों से उसे पहना दी। फिर मैंने उठकर अपने कपड़े पहने और कविता को बाहों में भरकर सो गया।

सुबह ग्यारह बजे मेरी नींद खुली, कविता तब भी घोड़े बेचकर सो रही थी, मैंने उसे जगाया।

उसकी प्रवेश परीक्षा दस बजे से थी। अब कुछ नहीं हो सकता था।

मैंने कहा- ट्रेन तो शाम को है, चलो इस बहाने आज घूमते हैं।

हम दोनों तैयार होकर निकल पड़े। रास्ते में मैं सोच रहा था कि हम दोनों की प्रवेश परीक्षा अधूरी रह गई लेकिन हम दोनों ही बहुत खुश थे। यह कालेज नहीं तो कोई और कालेज सही। कहीं न कहीं तो दाखिला मिलेगा ही।

विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के दो सप्ताह बाद कविता को विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देनी थी। उन दिनों में किराए पर कमरा लेकर प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहा था। मेरा कमरा प्रयाग स्टेशन से दो मिनट की दूरी पर था। मेरे मकान मालिक, उनकी माँ, उनकी पत्नी और उनकी बेटी वहाँ रहते थे। उनका एक बेटा भी था जो पंतनगर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक कर रहा था।

उनका मकान दो मंजिला था लेकिन ऊपर की मंजिल पर केवल एक कमरा, रसोई और बाथरूम थे जो उन्होंने मुझे किराए पर दे रखा था। उनका परिवार नीचे की मंजिल में रहता था। ऊपर चढ़ने के लिए घर के बाहर से ही सीढ़ियाँ थीं ताकि किराएदार की वजह से उन लोगों को कोई परेशानी न हो। मकान मालिक मुझे बहुत पसंद करते थे। कारण था कि मैं अपनी पढ़ाई लिखाई में ही व्यस्त रहता था। मेरे दोस्त भी एक दो ही थे और वो भी बहुत कम मेरे पास आते थे। लड़कियों से तो मेरा दूर दराज का कोई नाता नहीं था। उनकी बेटी मुझे भैय्या कहती थी।

जब मैं कविता के साथ प्रयाग स्टेशन पर उतरा तो मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। बनारस से लौटने के बाद मैं इलाहाबाद चला आया था। कल रात कविता को इलाहाबाद लाने के लिए गाँव रवाना हुआ था। उस समय से ही कविता के साथ फिर से रात गुजारने के बारे में सोच-सोच कर मेरे लंड का बुरा हाल था। कविता ने सलवार सूट पहना हुआ था और देखने में बिल्कुल ही भोली भाली और नादान लग रही थी।

मैं उसको लेकर पहले मकान मालिक के पास गया। उनको बताना जरूरी था कि कविता कौन थी और मेरे साथ क्या कर रही थी। मकान मालिक कहीं बाहर गए हुए थे। मैंने मकान मालकिन का परिचय कविता से कराया और यह भी बताया कि यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देने आई है। अगर इसका दाखिला हो गया तो यहीं महिला छात्रावास में रहकर पढ़ाई करेगी।

परिचय कराने के बाद मैं कविता को लेकर ऊपर गया। कविता के अंदर आते ही मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मुझे पता था कि अब यहाँ कोई नहीं आने वाला।

कविता मेरी तरफ देख रही थी, मैंने तुरंत उसे कसकर अपनी बाहों में भर लिया। उफ़ क्या आनन्द था। वो भी लता की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। फिर मैंने उसे चूमना शुरू किया गाल, गर्दन, पलकें, ठोढ़ी और होंठ। उसके होंठ बहुत रसीले नहीं थे। मैंने अपनी जीभ से उसके होंठ खोलने चाहे लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। फिर मैंने अपना एक हाथ उसके सूट के अंदर डाल दिया और उसके रसीले संतरों को मसलने लगा। उसके चूचूकों को अपनी दो उँगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा तो उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।

कविता ने धीरे से कहा,"भैय्या कोई आ जाएगा।"

मैंने भी उतने ही धीरे से जवाब दिया,"यहाँ कोई नहीं आता मेरी जान, आज मुझे मत रोको। तुम नहीं जानती पिछले दो हफ़्ते मैंने कैसे गुजारे हैं तुम्हारी याद में। प्लीज आज मुझे मत रोको कविता , प्लीज।"

ऐसा कहने के बाद मेरे हाथ उसके सलवार के नाड़े से उलझ गए। कुछ ही पलों बाद उसकी सलवार उसके घुटनों के नीचे गिरी हुई थी और उसकी चिकनी जाँघें खिड़की के पर्दे से छनकर आ रही रोशनी में चमक रही थीं। मैं तुरंत घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चिकनी जाँघों को चूमने लगा। मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर उठती थी। उसके मूँह से सिसकियाँ निकल रही थी, फिर मैंने उसका कमीज़ ऊपर उठाया। उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहन रखी थी। कमीज़ उठाते हुए मैंने उसके शरीर से बाहर निकाल दिया। अब वो सफेद बनियान और गुलाबी पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी।

उफ़ ! क्या नजारा था !

कितना तरसा था मैं किसी लड़की को इस तरह देखने के लिए। फिर मैंने उसकी बनियान उतारनी शुरू की। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने पूछा,"क्या हुआ?"

वो बोली,"वो पर्दा ठीक से बंद नहीं है।"

ये लड़कियाँ भी जब देखो तब खड़े लंड पर डंडा मार देती हैं। अरे यहाँ कुत्ता भी नहीं आता। पर्दा न भी लगाऊँ तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, मैंने सोचा।

बहरहाल मैं उसको नाराज नहीं करना चाहता था। मैंने पर्दा अच्छी तरह से खींच-खींचकर बंद किया। फिर मैं उसके पास आया और बिना देर किए उसकी बनियान उतार दी। उसने शर्म के मारे अपनी हथेलियों में मुँह छिपा लिया। उसके हल्के साँवले मुम्मे मेरी तरफ तने हुए थे, जिनके बीचोंबीच छोटे छोटे कत्थई रंग के चूचुक चूसने का निमंत्रण दे रहे थे।

मैंने दोनों मुम्मों को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाना शुरू कर दिया। उफ़ क्या आनन्द था। आज पहली बार मैं उसके चूचुकों को रोशनी में देख रहा था और उनसे खेल रहा था। कुछ देर बाद मैंने उसके एक चूचुक को अपने होंठों के बीच दबा लिया। उसके मुँह से सीत्कार निकल पड़ी। मैंने धीरे धीरे उसके चुचुकों को चूसते हुए उसके उभारों को और ज्यादा अपने मुँह में लेना शुरू किया। उसका बदन मस्ती से काँपने लगा था। यही क्रिया मैंने उसके दूसरे उभार के साथ भी दुहराई।

फिर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। अंडरवियर को छोड़कर मैंने सबकुछ उतार दिया। कविता अभी तक अपना मुँह हथेलियों में छुपाये हुये थी।

मैंने उसकी हथेलियाँ पकड़ीं और उसके मुँह से हटाकर अपनी कमर पर रख दीं और उसे खुद से चिपका लिया। उसके मुम्मे मेरे सीने से चिपक गये। कुछ भी कहिये, जो मजा किसी काम को पहली बार करने में आता है वो उसके बाद फिर कभी नहीं आता।

मैंने उसके नंगे बदन को चूमना शुरू किया। नीचे आते हुए जब मैंने उसकी पैंटी को चूमा तो उसने मेरे बाल पकड़ लिये। मैंने अपनी उँगलिया पैंटी की इलास्टिक में फँसाई और उसके घुटनों से नीचे खींच दिया। फिर मैं अपना मुँह उसकी चूत के पास ले आया। इस बार मैं इतना उत्तेजित था कि चूत की अजीब सी गंध भी मुझे अच्छी लग रही थी। उसने अभी चूत के बाल साफ करना शुरू नहीं किया था।

मैंने उँगलियों से उसकी चूत की संतरे जैसी फाँकें फैला दीं तो हल्का साँवला रंग अंदर गहराई में जाकर लाल रंग में बदलता हुआ दिखा। इसी लाल गुफा के अंदर जीवन का सारा आनन्द छुपा हुआ है, मैंने सोचा।

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