कमली की कहानी

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कमली ने कैसे रवि का लंबा मोटा लंड लिया
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कमली की कहानी
कमली ने कैसे रवि का लंबा मोटा लंड लिया

प्रेषक : रविराम69 © (मस्तराम मुसाफिर)

Note:
This story has adult and incest contents. Please do not read who are under 18 age or not like incest contents. This is a sex story in hindi font, adult story in hindi font, gandi kahani in hindi font, family sex stories


पटकथा: (कहानी के बारे में) :
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/ / कमली ने कैसे रवि का लंबा मोटा लंड लिया / /
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ये कहानी है कमली की, कमली की कहानी उसकी ज़ुबानी ==========

दोस्तो , मेरे नाम कमली है. मेरी शादी हुए करीब दस साल हो गये थे / मेरे पति का नाम फकीर चंद है / इन दस सालों में मैं अपने पति से ही तन का सुख प्राप्त करती थी / उन्हें अब डायबिटीज हो गई थी और काफ़ी बढ़ भी गई थी / इसी कारण से उन्हें एक बार हृदयघात भी हो चुका था / अब तो उनकी यह हालत हो गई थी कि उनके लण्ड की कसावट भी ढीली होने लगी थी / लण्ड का कड़कपन भी नहीं रहा था / उनका शिश्न में बहुत शिथिलता आ गई थी / वैसे भी जब वो मुझे चोदने की कोशिश करते थे तो उनकी सांस फ़ूल जाती थी, और धड़कन बढ़ जाती थी / अब धीरे धीरे फकीर चंद से मेरा शारीरिक सम्बन्ध भी समाप्त होने लगा था / पर अभी मैं तो अपनी भरपूर जवानी पर थी, 35 साल की हो रही थी।

जब से मुझे यह महसूस होने लगा कि मेरे पति मुझे चोदने के लायक नहीं रहे तो मुझ पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव होने लगा / मेरी चुदाई की इच्छा बढ़ने लगी थी / रातों को मैं वासना से तड़पने लगी थी / फकीर चंद को यह पता था पर मजबूर था / मैं उनका लण्ड पकड़ कर खूब हिलाती थी और ढीले लण्ड पर मुठ भी मारती थी, पर उससे तो उनका वीर्य स्खलित हो जाया करता था पर मैं तो प्यासी रह जाती थी।

मैं मन ही मन में बहुत उदास हो जाती थी / मुझे तो एक मजबूत, कठोर लौड़ा चाहिये था ! जो मेरी चूत को जम के चोद सके / अब मेरा मन मेरे बस में नहीं था और मेरी निगाहें फकीर चंद के दोस्तों पर उठने लगी थी / एक दोस्त तो फकीर चंद का खास था, वो अक्सर शाम को आ जाया करता था।

उसके साथ अब मैं चुदाई की कल्पना करने लगी थी / मेरा दिल उससे चुदाने के लिये तड़प जाता था / मैं उसके सम्मुख वही सब घिसी-पिटी तरकीबें आजमाने लगी / मैं उसके सामने जाती तो अपने स्तनो को झुका कर उसे दर्शाती थी / उसे बार बार देख कर मतलबी निगाहों से उसे उकसाती थी / यही तरकीबें अब भी करगार साबित हो रही थी / मुझे मालूम हो चुका था था कि वो मेरी गिरफ़्त में आ चुका है, बस उसकी शरम तोड़ने की जरूरत थी / मेरी ये हरकतें फकीर चंद से नहीं छुप सकी / उसने भांप लिया था कि मुझे लण्ड की आवश्यकता है।

अपनी मजबूरी पर वो उदास सा हो जाता था / पर उसने मेरे बारे में सोच कर शायद कुछ निर्णय ले लिया था / वो सोच में पड़ गया ...

"कमल, तुम्हें भोपाल जाना था ना... कैसे जाओगी ?"

"अरे, वो है ना तुम्हारा दोस्त, रवि , उसके साथ चली जाऊंगी !"

"तुम्हें पसन्द है ना वो..." उसने मेरी ओर सूनी आंखो से देखा।

मेरी आंखे डर के मारे फ़टी रह गई / पर फकीर चंद के आंखो में प्यार था।

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है ... बस मुझे उस पर विश्वास है।"

"मुझे माफ़ कर देना, कमल... मैं तुम्हें सन्तुष्ट नहीं कर पाता हूं, बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?"

"जी... ऐसी कोई बात नहीं है ... यह तो मेरी किस्मत की बात है..."

"मैं जानता हूं, रवि तुम्हें अच्छा लगता है, उसकी आंखें भी मैंने पहचान ली है..."

"तो क्या ?..." मेरा दिल धड़क उठा ।

"तुम भोपाल में दो तीन दिन उसके साथ किसी होटल में रुक जाना ... तुम्हें मैं और नहीं बांधना चाहता हूं, मैं अपनी कमजोरी जानता हूँ।"

"जानू ... ये क्या कह रहे हो ? मैं जिन्दगी भर ऐसे ही रह लूंगी।" मैंने फकीर चंद को अपने गले लगा लिया, उसे बहुत चूमा... उसने मेरी हालत पहचान ली थी / उसका कहना था कि मेरी जानकारी में तुम सब कुछ करो ताकि समय आने पर वो मुझे किसी भी परेशानी से निकाल सके / रवि को भोपाल जाने के लिये मैंने राजी कर लिया।

पर फकीर चंद की हालत पर मेरा दिल रोने लगा था / शाम की डीलक्स बस में हम दोनों को फकीर चंद छोड़ने आया था / रवि को देखते ही मैं सब कुछ भूल गई थी / बस आने वाले पलों का इन्तज़ार कर रही थी / मैं बहुत खुश थी कि उसने मुझे चुदाने की छूट दे दी थी / बस अब रवि को रास्ते में पटाना था / पांच बजे बस रवाना हो गई / फकीर चंद सूनी आंखों से मुझे देखता रहा / एक बार तो मुझे फिर से रूलाई आ गई... उसका दिल कितना बड़ा था ... उसे मेरा कितना ख्याल था... पर मैंने अपनी भावनाओं पर जल्दी ही काबू पा लिया था।

हमारा हंसी मजाक सफ़र में जल्दी ही शुरू हो गया था / रास्ते में मैंने कई बार उसका हाथ दबाया था, पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी / पर कब तक वो अपने आप को रोक पाता... आखिर उसने मेरा हाथ भी दबा ही दिया / मैं खुश हो गई...

रास्ता खुल रहा था / मैंने टाईट सलवार कुर्ता पहन रखा था / अन्दर पैंटी नहीं पहनी थी, ब्रा भी नहीं पहनी थी / यह मेरा पहले से ही सोचा हुआ कार्यक्रम था / वो मेरे हाथों को दबाने लगा / उसका लण्ड भी पैंट में उभर कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था / उसके लण्ड के कड़कपन को देख कर मैं बहुत खुश हो रही थी कि अब इसे लण्ड से मस्ती से चुदाई करूंगी / मैं किसी भी हालत में रवि को नहीं छोड़ने वाली थी।

"कमल ... क्या मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं...?" (रवि प्यार से मुझे कमल बुलाता था.)

"हूं ... अच्छे लोग अच्छे ही लगते हैं..." मैंने जान कर अपना चहरा उसके चेहरे के पास कर लिया / रवि की तेज निगाहें दूसरे लोगों को परख रही थी, कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है / उसने धीरे से मेरे गाल को चूम लिया / मैं मुस्करा उठी ... मैंने अपना एक हाथ उसकी जांघो पर रख दिया और हौले हौले से दबाने लगी / मुझे जल्दी शुरूआत करनी थी, ताकि उसे मैं भोपाल से पहले अपनी अदाओं से घायल कर सकूं।

यही हुआ भी ...... सीटे ऊंची थी अतः वो भी मेरे गले में हाथ डाल कर अपना हाथ मेरी चूचियों तक पहुँचाने की कोशिश करने लगा / पर हाय राम ! बस एक बार उसने कठोर चूचियों को दबाया और जल्दी से हाथ हटा लिया / मैं तड़प कर रह गई / बदले में मैंने भी उसका उभरा लण्ड दबा दिया और सीधे हो कर बैठ गई /

पर मेरा दिल खुशी से बल्लियों उछल रहा था / रवि मेरे कब्जे में आ चुका था / अंधेरा बढ़ चुका था... तभी बस एक मिड-वे पर रुकी। रवि दोनों के लिये शीतल पेय ले आया / कुछ ही देर में बस चल पड़ी / दो घण्टे पश्चात ही भोपाल आने वाला था / मेरा दिल शीतल पेय में नहीं था बस रवि की ओर ही था /

मैं एक हाथ से पेय पी रही थी, पर मेरा दूसरा हाथ ... जी हां उसकी पैंट में कुछ तलाशने लगा था ... गड़बड़ करने में मगशूल था / उसका भी एक हाथ मेरी चिकनी जांघों पर फ़िसल रहा था / मेरे शरीर में तरावट आने लगी थी / एक लम्बे समय के बाद किसी मर्द के साथ सम्पर्क होने जा रहा था / एक सोलिड तना हुआ लंबा और मोटा रवि का लण्ड चूत में घुसने वाला था / यह सोच कर ही मैं तो नशे में खो गई थी।

तभी उसकी अंगुली का स्पर्श मेरे दाने पर हुआ / मैं सिहर उठी / मैंने जल्दी से इधर उधर देखा और किसी को ना देखता पा कर मैंने चैन की सांस ली / मैंने अपनी चुन्नी उसके हाथ पर डाल दी / अंधेरे का फ़ायदा उठा कर उसने मेरी चूचियाँ भी सहला दी थी / मैं अब स्वतन्त्र हो कर उसके लण्ड को सहला कर उसकी मोटाई और लम्बाई का जायजा ले रही थी।

मैं बार बार अपना मुख उसके होंठों के समीप लाने का प्रयत्न कर रही थी / उसने भी मेरी तरफ़ देखा और मेरे पर झुक गया / उसके गीले होंठ मेरे होंठों के कब्जे में आ गये थे / मौका देख कर मैंने पैंट की ज़िप खोल ली और हाथ अन्दर घुसा दिया / उसका लण्ड अण्डरवियर के अन्दर था, पर ठीक से पकड़ में आ गया था।

वो थोड़ा सा विचलित हुआ पर जरा भी विरोध नहीं किया / मैंने उसकी अण्डरवियर को हटा कर नंगा लण्ड पकड़ लिया / मैंने जोश में उसके होंठों को जोर से चूस लिया और मेरे मुख से चूसने की जोर से आवाज आई / रवि एक दम से दूर हो गया / पर बस की आवाज में वो किसी को सुनाई नहीं दी / मैं वासना में निढाल हो चुकी थी / मन कर रहा था कि वो मेरे अंगों को मसल डाले / अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा डाले ... पर बस में तो यह सब सम्भव नहीं था /

मैं धीरे धीरे झुक कर उसकी जांघों पर अपना सर रख लिया / उसकी जिप खुली हुई थी, लण्ड में से एक भीनी भीनी से वीर्य जैसी सुगन्ध आ रही थी / मेरे मुख से लण्ड बहुत निकट था, मेरा मन उसे अपने मुख में लेने को मचल उठा / मैंने उसका लण्ड पैंट में से खींच कर बाहर निकाल लिया और अपने मुख से हवाले कर लिया / रवि ने मेरी चुन्नी मेरे ऊपर डाल दी /

उसके लण्ड के बस दो चार सुटके ही लिये थे कि बस की लाईटें जल उठी थी / भोपाल आ चुका था / मैंने जैसे सोने से उठने का बहाना बनाया और अंगड़ाई लेने लगी / मुझे आश्चर्य हुआ कि सफ़र तो बस पल भर का ही था ! इतनी जल्दी कैसे आ गया भोपाल ? रात के नौ बज चुके थे।

रास्ते में बस स्टैण्ड आने के पहले ही हम दोनों उतर गये / रवि मुझे कह रहा था कि घर यहाँ से पास ही है, टैक्सी ले लेते हैं / मैं यह सुन कर तड़प गई- साला चुदाई की बात तो करता नहीं है, घर भेजने की बात करता है।

मैंने रवि को सुझाव दिया कि घर तो सवेरे चलेंगे, अभी तो किसी होटल में भोजन कर लेते हैं, और कहीं रुक जायेंगे / इस समय घर में सभी को तकलीफ़ होगी / उन्हें खाना बनाना पड़ेगा, ठहराने की कवायद शुरू हो जायेगी, वगैरह।

उसे बात समझ में आ गई / रवि को मैंने होटल का पता बताया और वहाँ चले आये।

"तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे भला..."

"तुम्हें क्या ... मैं कोई भी बहाना बना दूंगी।"

कमरे में आते ही फकीर चंद का फोन आ गया और पूछने लगा / मैंने उसे बता दिया कि रास्ते में तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई, और हम दोनों होटल में रुक गये हैं।

"किसका फोन था... फकीर चंद का ...?"

"हां, मैंने बता दिया है कि हम एक होटल में अलग अलग कमरे में रुक गये हैं।"

"तो ठीक है ..." रवि ने अपने कपड़े उतार कर तौलिया लपेट लिया था, मैंने भी अपने कपड़े उतारे और ऊपर तौलिया डाल लिया।

"मैं नहाने जा रही हूँ ..."

"ठीक है मैं बाद में नहा लूंगा।"

मुझे बहुत गुस्सा आया ... यूं तो हुआ नहीं कि मेरा तौलिया खींच कर मुझे नंगी कर दे और बाथ रूम में घुस कर मुझे खूब दबाये ... छीः ... ये तो लल्लू है / मैं मन मार कर बाथ रूम में घुस गई और तौलिया एक तरफ़ लटका दिया / अब मैं नंगी थी।

मैंने झरना (शावेर) खोल दिया और ठण्डी ठण्डी फ़ुहारों का आनन्द लेने लगी।

"कमल जी, क्या मैं भी आ जाऊं नहाने...?"

मैं फिर से खीज उठी... कैसा है ये आदमी ... साला एक नंगी स्त्री को देख कर भी हिचकिचा रहा है / मैंने उसे हंस कर तिरछी निगाहों से देखा / वो नंगा था ...

उसका लण्ड तन्नाया हुआ था / मेरी हंसी फ़ूट पड़ी।

"तो क्या ऐसे ही खड़े रहोगे ... वो भी ऐसी हालत में ... देखो तो जरा..."

मैंने अपना हाथ बढ़ाकर उसका हाथ थाम लिया और अपनी ओर खींच लिया / उसने एक गहरी सांस ली और उसने मेरी पीठ पर अपना शरीर चिपका लिया / उसका खड़ा लण्ड मेरे चूतड़ों पर फ़िसलने लगा / मेरी सांसें तेज हो गई / मेरे गीले बदन पर उसके हाथ फ़िसलने लगे / मेरी भीगी हुई चूचियाँ उसने दबा डाली / मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था / हम दोनों झरने की बौछार में भीगने लगे /

उसका लण्ड मेरी चूतड़ों की दरार को चीर कर छेद तक पहुंच गया था / मैं अपने आप झुक कर उसके लण्ड को रास्ता देने लगी / लण्ड का दबाव छेद पर बढ़ता गया और हाय रे ! एक फ़क की आवाज के साथ अन्दर प्रवेश कर गया / उसका लण्ड जैसे मेरी गाण्ड में नहीं बल्कि जैसे मेरे दिल में उतर गया था / मैं आनन्द के मारे तड़प उठी।

आखिर मेरी दिल की इच्छा पूरी हुई / एक आनन्द भरी चीख मुख से निकल गई।

उसने लण्ड को फिर से बाहर निकाला और जोर से फिर ठूंस दिया / मेरे भीगे हुये बदन में आग भर गई / उसके हाथों ने मेरे उभारों को जोर जोर से हिलाना और मसलना आरम्भ कर दिया था / उसका हाथ आगे से बढ़ कर चूत तक आ गया था और उसकी दो अंगुलियां मेरी चूत में उतर गई थी / मैंने अपनी दोनों टांगें फ़ैला ली थी। जिस कारण मेरी चूत का मूह थोड़ा सा खुल गया था /

उसके शॉट तेज होने लगे थे / अतिवासना से भरी मैं बेचारी जल्दी ही झड़ गई।

उसका वीर्य भी मेरी टाईट गाण्ड में घुसने के कारण जल्दी निकल गया था।

हम स्नान करके बाहर आ गये थे / पति पत्नी की तरह हमने एक दूसरे को प्यार किया और रात्रि भोजन हेतु नीचे प्रस्थान कर गये।

तभी फकीर चंद का फोन आया," कैसी हो / बात बनी या नहीं...?"

"नहीं जानू, वो तो सो गया है, मैं भी खाना खाकर सोने जा रही हूँ !"

"तुम तो बुद्धू हो, पटे पटाये को नहीं पटा सकती हो...?"

"अरे वो तो मुझे भाभी ही कहता रहा ... लिफ़्ट ही नहीं मार रहा है, आखिर तुम्हारा सच्चा दोस्त जो ठहरा !"

"धत्त, एक बार और कोशिश करना अभी ... देखो चुद कर ही आना ...।"

"अरे हां मेरे जानू, कोशिश तो कर रही हूँ ना ... गुडनाईट"

मैं मर्दों की फ़ितरत पहचानती थी, सो मैंने चुदाई की बात को गुप्त रखना ही बेहतर समझा / रवि मेरी बातों को समझने की कोशिश कर रहा था / हम दोनों खाना खाकर सोने के लिये कमरे में आ गये थे / मेरी तो यह यात्रा हनीमून जैसी थी, महीनों बाद मैं चुदने वाली थी / गाण्ड तो चुदा ही चुकी थी / मैंने तुरंत हल्के कपड़े पहने और बिस्तर पर कूद गई और टांगें पसार कर लेट गई।

"आओ ना ... लेट जाओ ..." उसका हाथ खींच कर मैंने उसे भी अपने पास लेटा दिया।

"रवि , घर पर तुमने खूब तड़पाया है ... बड़े शरीफ़ बन कर आते थे !"

"आपने तो भी बहुत शराफ़त दिखाई... भैया भैया कह कर मेरे लण्ड को ही झुका देती थी !"

"तो और क्या कहती, सैंया... सैंया कहती ... बाहर तो भैया ही ठीक रहता है।"

मैं उसके ऊपर चढ़ गई और उसकी जांघों पर आ गई।

"यह देख, साला अब कैसा कड़क रहा है ... निकालूँ मैं भी क्या अपनी फ़ुद्दी..." मैंने आंख मारी।

"ऐ हट बेशरम ... ऐसा मत बोल..." रवि मेरी बातों से झेंप गया।

"अरे जा रे ... मेरी प्यारी सी चूत देख कर तेरा लण्ड देख तो कैसा जोर मार रहा है।"

"तेरी भाषा सुन कर मेरा लण्ड तो और फ़ूल गया है..."

"तो ये ले डाल दे तेरा लण्ड मेरी गीली म्यानी में...।"

मैंने अपनी चूत खोल कर उसका लाल मोटा सुपाड़ा अपनी चूत में समा दिया / एक सिसकारी के साथ मैं उससे लिपट पड़ी / मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी गैर मर्द का मोटा लण्ड मेरी प्यासी चूत में उतर रहा है / मैंने अपनी चूत का और जोर लगाया और उसे पूरा समा लिया / लंड मेरी चूत में जाकर पूरा फस गया था / उसका फ़ूला हुआ बेहद कड़क लौड़ा मेरी चूत के अन्दर-बाहर होने लगा था / मैं आहें भर भर कर अपनी चूत को दबा दबा कर लण्ड ले रही थी /

मुझमें अपार वासना चढ़ी जा रही थी / इतनी कि मैं बेसुध सी हो गई / जाने कितनी देर तक मैं उससे चुदती रही / जैसे ही मेरा रस निकला, मेरी तन्द्रा टूटी / मैं झड़ रही थी, रवि भी कुछ ही देर में झड़ गया।

मेरा मन हल्का-हल्का हो गया था / मैं चुदने से बहुत ही प्रफ़ुल्लित थी / कुछ ही देर में मेरी पलकें भारी होने लगी और मैं गहरी निद्रा में सो गई /

अचानक रात को जैसे ही मेरी गाण्ड में लण्ड उतरा, मेरी नींद खुल गई / रवि फिर से मेरी गाण्ड से चिपका हुआ था / मैं पांव फ़ैला कर उल्टी लेट गई / वो मेरी पीठ चढ़ कर मेरी गाण्ड मारने लगा / मैं लेटी लेटी सिसकारियाँ भरती रही / उसका वीर्य निकल कर मेरी गाण्ड में भर गया / हम फिर से लेट गये / गाण्ड चुदने से मेरी चूत में फिर से जाग हो गई थी / मैंने देखा तो रवि जाग रहा था / मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और मैं एक बार फिर से रवि के नीचे दब गई / उसका लण्ड मेरी चूत को मारता रहा / मेरी चूत की प्यास बुझाता रहा / फिर हम दोनों स्खलित हो गये / एक बार फिर से नींद का साम्राज्य था /

जैसे ही मेरी आंख खुली सुबह के नौ बज रहे थे।

"मैं चाय मंगाता हूँ, जितने तुम फ़्रेश हो लो !"

नाश्ता करने के बाद रवि बोला,"अब चलो तुम्हें घर पहुंचा दूँ..."

पर घर किसे जाना था... यह तो सब एक सोची समझी योजना थी।

"क्या चलो चलो कर रहे हो ?... एक दौर और हो जाये !"

रवि की आंखे चमक उठी ... देरी किस बात की थी... वो लपक कर मेरे ऊपर चढ़ गया।

मेरे चूत के कपाट फिर से खुल गये थे / भचाभच चुदाई होने लगी थी / बीच में दो बार फकीर चंद का फोन भी आया था / चुदने के बाद मैंने फकीर चंद को फोन लगाया।

"क्या रहा जानू, चुदी या नहीं...?"

"अरे अभी तो वो उठा है ... अब देखो फिर से कोशिश करूंगी..."

तीन दिनों तक मैं उससे जी भर कर चुदी, चूत की सारी प्यास बुझा ली / फिर जाने का समय भी आया /

रवि को अभी तक समझ नहीं आया था कि यहाँ तीन तक हम दोनों मात्र चुदाई ही करते रहे... मैं अपने घर तो गई ही नहीं।

"पर फकीर चंद को पता चलेगा तो...?"

"मुझे फकीर चंद को समझाना आता है !"

घर आते ही फकीर चंद मुझ पर बहुत नाराज हुआ / तीन दिनों में तुम रवि को नहीं पटा सकी।

"क्या करूँ जानू, वो तो तुम्हारा सच्चा दोस्त है ना... हाथ तक नहीं लगाया !"

"अच्छा तो वो चिकना रवि कैसा रहेगा...?"

"यार उसे तो मैं नहीं छोड़ने वाली, चिकना भी है... उसके ऊपर ही चढ़ जाऊंगी..."

रवि ने मुझे फिर प्यार से देखा और मेरे सीने को सहला दिया।

"सीऽऽऽऽऽऽ स स सीईईईई ...ऐसे मत करो ना ... फिर चुदने की इच्छा हो जाती है।"

"ओह सॉरी... जानू ... लो वो रवि आ गया !"

रवि को फ़ंसाना कोई कठिन काम नहीं था, पर फकीर चंद के सामने यह सब कैसे होगा... / उसे भी धीरे से डोरे डाल कर मैंने अपने जाल में फ़ंसा लिया / फिर दूसरा पैंतरा आजमाया / सुरक्षा के लिहाज से मैंने देखा कि रवि का कमरा ही अच्छा था / उसके कमरे में जाकर चुद आई और फकीर चंद को पता भी ही नहीं चल पाया।

मुझे लगा कि जैसे मैं धीरे धीरे रण्डी बनती जा रही हूँ ... मेरे पति देव अपने दोस्तों को लेकर आ जाते थे और एक के बाद एक नये लण्ड मिलते ही जा रहे थे ... और मैं कोई ना कोई पैंतरा बदल कर चुद आती थी... है ना यह गलत बात !

पतिव्रता होना पत्नी का पहला कर्तव्य है / पर आप जानते है ना चोर तो वो ही होता है जो चोरी करता हुआ पकड़ा जाये ... मैं अभी तक तो पतिव्रता ही हूँ ... पर चुदने से पतिव्रता होने का क्या सम्बन्ध है ? यह विषय तो बिल्कुल अलग है / मैं अपने पति को सच्चे दिल से चाहती हूँ / अब आप ही बताएँ मेरा क्या दोष है ?


दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,

कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...

आपके जवाब के इंतेज़ार में ...

आपका अपना

रविराम69 (c) (मस्तराम - मुसाफिर)

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