मधुयामिनी प्रसंग

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मधुयामिनी प्रसंग

(PREMONMAYEE SARAS RATI SARITA-157)

(एक)

सखि आई सखि से मिलने बेचैन हुई अकुलाई
था अधीर मन सखि से पूछे कैसे रात बिताई
लप-लप लपका जिया धड़कता सुनने मन अकुलाया
लिपट सखी से कहा बता री रात गज़ब क्या ढाया

चूम कपोल चिकोटी काटे सखि हंस सखि से बोली
छोड़ संग-साथ तूने अब मेरी छुट्टी हो ली
दोनों लेने मरीं जिसे तूने वह पहले पा ली
कह करतब उसका मुझसे सुनने मरती मैं साली

“सुना बहुत नटखट अनदेखा जिसने बहुत लुभाया
मुझसे हुई सयानी अब तू कह कैसा वह पाया
अब तक रहीं खेल इक-दूजीं सपन धरे जो नटखट
देख न पाईं कभी करें क्या हाय बता तू झटपट

सच-सच कह तू हाल रात का इक-इक बिना छिपाए
सुनने अकुलाया मन मेरा रखे मुझे तरसाए”
कर सखि बात याद वह जो हम-दोनों में हो आई
कह हवाल चुलबुली चूत की कैसी हुई धुनाई

प्यारी मुझसे कुछ न छिपाना तुझे कसम देती हूँ
सच न कहा जो ठीक न होगा अभी कहे देती हूँ
तेरी थी मधु-निशा मगर हलचल मुझमें थी भारी
हाय गुजरती तुझपर क्या सोचे यह रात गुजारी

मुरझाया मुखड़ा आँखें अलसाई सखि मुसकाई
बोली हाय कहूँ कैसे सखि मैंने रात बिताई
आँखों में तिरता पल-पल मैं किये याद कंप आऊं
गुज़री पहली रात मधुनिशा कैसे तुझे बताऊँ

“साली नखरे छोड़ बता” कह सखि चोली चिटकाई
“ऊह छोड़ ना री” कह दुलहन फिर हवाल कह आई

(दो)
दिन तो बीता जैसे तैसे घिरी भीड़ रह आई
काटे कटा न पल तक छिन-छिन रात धुक-धुकी छाई
घेर रात चपलाएं ठेल मुझे बिस्तर तक लाईं
चिबुक थाम चिमटे कपोल तक हौले से मुसकाईं

बोलीं हाय कली प्यारी हो पहली रात मुबारक
सोना तू न उसे सोने देना अब भोर हुए तक
फिर जेठानी भाभी आई धर देवर को खींचे
मुसकाए रख भरा कटोरा दूध पलंग के नीचे

घुंघटा उठा चिकोटी काटे चूम कान तक डोली
“हा री प्यारी बन्नो मेरी बलि जाऊं मैं” बोली
बोली “लल्ली रात तुम्हारी पहली मत घबराना
रखे जगा नटखट देवर को रह-रह रात छकाना

भरी शरारत झाँक नयन में मुसकाती कह आई
“पूछूँगी मैं सुबह बताना कैसे रात बिताई”
जाते पलट तकी हंस भाभी किये चुहल बतलाने
“लल्ला इतर तेल चन्दन का रक्खा है सिरहाने

दूध कटोरे दिया रखे है मिल दोनों पी लीजो
मिले खूब आराम बदन को भिगा तेल से लीजो”
हुआ बंद दरवज्जा सिहरा बदन कंपकंपी छाई
हाय न जाने क्या हो अब बुर सोचे सिमट लजाई

(तीन)
(पहली रात भाभी की सीख)

रखा सिखाए भाभी ने था पहली रात न देना
खड़ा चढ़े ठेले लल्ली वह पर घुसाने ना देना
चढ़-चढ़ रहा टटोले वह तू कस कस सिकुड़ छिपाना
पगली तू न पिघलना तड़पा उसे रखे पिघलाना

हाथ पाँव दाबे मनुहारे हार टटोले झिल्ली
कस पंजे रखना पर उसको मार न पाए बिल्ली
पिघल न जाना अपनी उसपर रखना काबू भींचे
चढ़ा उसे मत लार बहाती लेना ‘गप..गप’ खींचे

रखना याद न आना पहली रात टांग के नीचे
जो यूं हारा बन गुलाम हरदम भागे फिर पीछे
एक रात बस एक रात तरसाना उसे जगाए
दौड़ जनम फिर तू अपने रख पीछे उसे भगाए

(चार)

सखि बोली “उइ हा रे गुर अच्छा यह मुझे बताया
हाय..हाय कह फिर आगे कैसा क्या होता आया”
बोली दुलहन “किया वही मैंने जो था समझाया
दिया पहुँचाने नहीं वहाँ तक उसको खूब खिझाया

कलाकार वह हाय गज़ब री जिसने तिया रचाई
दुष्कर लेना कली लाल धर ऐसी जगह छुपाई
चूमा चाटा झिंझोडा पर हठ थी धुन में छाई
देना पहली रात न रह-रह बात याद हो आई

हाथ फेर नन्हीं पर अपने आई किये गरब मैं
रात सता बालम को जीते मुसकाई मन-मन मैं
रही जानती सब कुछ पर भोली यूं मैं आई बन
जैसे सकुच रहे नाज़ुक कोई शरमाई दुलहन

किये जतन सारे मैने रख उसको खूब छकाया
खीझ फुला मुख आखिर वह रूठा मुंह फेरे आया
छोड़ा उधर मुझे उसने मैं हाय इधर रह रोई
रखे मना उसको लेने फिर जगी कामना सोई

करना था जो किया न करने दिया सोच पछताई
हाय मनाऊँ कैसे उसको सोचे पहर बिताई
रह-रह देखे थे सपने कस-कस कर की तैयारी
झुरस हाय मधुनिशा सखी पर बैठी मैं मनमारी


(पांच)
(XXX छिपाने पर दूल्हे का रूठना और पछताई दुलहन का उसे
मनाने जतन)

पहली रात पड़ा मुंह फेरे यूं मुझसे रह आया
हुई न मैं उसकी जैसे हो मुझसे रहा पराया
कोस-कोस भाभी की सीखें मन ही मन पछताई
मुख उसका देखे रह-रह री छूटी मुझे रुलाई

उधर पड़ा वह खड़ा लंड ले इधर कुलबुलाई बुर
प्यासी मैं प्यासा वह बीच अड़ी थी सिखलाई गुर
घंटों रही अड़ी भाभी की सीख बीच रह आई
उसको तडपा रखे संग हा री तडपी मैं आई

हो आया क्या से क्या उफ़ मन रोने-रोने आता
मरी तड़प जिस पल को वह था बीता पल-पल जाता
रही उमंगें प्यासी बैठीं कर भिड़ने तैयारी
सता रही थी मुझे मरी बुर चुदने कुलबुल भारी
मैं तो मूरख पर बुद्धू क्यों बलम रही मैं सोचे
पलट-पटक-धर-फाड़-जांघ दे क्यों न लंड बुर ठोके

बेबस बीत रही घड़ियाँ थीं सपने छूटे जाते
मन में मची उतावल काश लिपट सुख लूटे आते
उलटा पड़ा दाँव वह जीता मैं हारी रह आई
मधुर मिलन की चाह चुदाई रह आँखों में छाई


तरस तड़प खीझा तन बुर रिस चली लाज रह छूटी
मन आया खुद चढ़ी लपट गुंथ क्यों न रहूँ सुख लूटी
वह मेरा मैं क्यों न पहल कर चूमी उसे मनाऊँ
क्यों न लंड धर झपट प्रेम से दे बुर मैं चुदवाऊँ

हुई बावली रह न गया आखिर सूझी चतुराई
होश न हो ज्यों चिपक पीठ से उसके मैं रह आई
हाथ-पाँव लादे उस पर करवट ले यूं मैं सोई
ज्यों मासूम न जाने कुछ सोया चिपका हो कोई

करवट-करवट तड़प मचल यूं बड़ी देर रह आई
किये बहाना ज्यों सोई बेसुध फिर चिपक समाई
हुआ असर जाने क्या मौसम फ़ौरन आया बदला
अंगडाया तन जैसे छेड़ जगाया उसका मचला


(छह)
मधुनिशा वर्णन

बौराया फौरन पलटे वह फाड़ टांग चढ़ आया
झटक तोड़ अंगिया चोली फेकी साड़ी बिखराया
किये बहाना था वह औचक तन्नाता उठ आया
“खूब छकाया तुमने प्यारी” कहे नोच तन खाया

रुका न इक पल झपट लंड दे गुदगुद मुझे चुभाता
टूट भिड़ा बुर चूमे-चाटे मुझको खूब लुभाता
“उइ हा क्या करते कहती रह गयी मगर ना माना
समझ गयी मैं अब बिन चोदे रहे न यह दीवाना

फूली छाती चापक –मसक झिंझोड़ चूचियां चिमटे
बेकाबू कर दिया हाय री अलट-पलट कस लिपटे
रह न सकी मैं बेकाबू बुर रिसी फुरकाती फूली
उठ लहराती झटक लंड धर बुर-पट सब मैं भूली

सखि ने आह भरी बोली कह फिर जल्दी क्या आगे
सुन-सुन लगी आग बुर री क्यों भाग न मेरे जागे
“हट साली” बोली दुलहन सखि “शरम मुझे है आती
अब रहने दे कहूँ और क्या समझ न तू क्यों जाती”

क्या फिर हुआ न पूछ रखा कैसे कस-कस कर मारा
तोड़ बाँध टूटे कैसे उसने रस रह-रह झारा
आह जुबाँ थक रही कहे सखि जो फिर मैंने पाया
सोचा कभी न जैसा तन पर स्वर्ग उतर वह आया

सपने देख-देख जिसके आईं हम दोनों जीती
सच जब हुआ कहूँ बातें सब हो रह आईं फीकी
हुआ वही आखिर जो होना था सखि तू सब जाने
रह न गया तैयार हो चले इक-दूजे को पाने

हठ सारा रह गया धरा फिर रति-पुराण चल आया
चला खूब संवाद सुबह तक किस्सा वह मनभाया
क्या बरनन मैं करूँ आह सखि समझ न पाऊँ प्यारी
छाय नयन मद जुबाँ थके मति रहे डूब सुध हारी

सच का मज़ा और देखे सपनों में जो ना आता
जाने वही कहूँ सच री जो सच में मज़ा उठाता
पूछ न आगे फिर तफसील न काबू रख पाएगी
छोड़ें चल अब बात बिरथ सुन-सुन तू पछताएगी

जब वह पल आएगा आएगी बारी जब तेरी
क्या कैसा वह मज़ा तभी जाने सखि प्यारी मेरी
कहने में वह मज़ा कहाँ जो करने में मिल आये
बिछे सुहाग-सेज सखि जब तू समझ आप ही जाये


(सात)

मौन रहा दो पल सखि-सखि अनाबोली चुप रह आईं
सदमा लगा बात सुन सखि की सखि रह मुख-मुरझाई
हो उदास बोली “तू कहती ठीक समझ मैं पाई
इक-दिन में हो चली पराई मुझसे तोड़ मिताई

उठी कहा चलती सखि अब मैं तुझसे कुछ न कहूंगी
हुई जुदाई आज न तेरा नाम कभी अब लूंगी
एक रात में हुई सयानी बड़बोली अब जाना
हुई भूल सखि करना माफ मुझे जो अपना जाना

देखा मुख मुरझाया सखि का दुलहन सखि सकुचाई
रूठ चली सखि-मुख देखे झुरसी उदास हो आई
धरी बांह खींचे लग गर सखि को रक्खा लिपटाए
हा प्यारी सखि क्या कहती तू” कहती अंक लगाए

तुझसे भेद न कोई बस कहते मैं रही लजाई
कैसे वह सब कहूँ सोच रह मैं तुझसे सकुचाई
बोली “सखि रूठी क्यों छोड़ मुझे तू यूं है जाती
“मुश्किल बयाँ आह किस्सा वह पर सुन हूँ बतलाती

(आठ)
आगे बयाँ दुलहन का
(बदला मौसम उर्फ XXX का माहौल उर्फ़ भिड़ंत )

छूटी लाज सरम इक दूजी रह न भेद कुछ आया
चूमे सखि को दुलहन ने आगे का हाल सुनाया
बोली “अरी लिपट भी उससे मैं थी कुछ घबराई
पर था चतुर सुजान चढ़े चूमा तब राहत पाई

कस-कस भींचे चूम-चाटना शुरू हुआ फिर तब क्या
दबी रही चिनगी जो भडकी तपे आग तन तडपा
मन आया तूफ़ान डुले तन चढ़ा गज़ब का जादू
बुर थिरकी फडका लौड़ा आया उफान बेकाबू

लपट झिंझोड़ खूब बुर उसने सखि यूं रख पिघलाया
रही सकल मति भूल बदन टूटा चुदने बौराया
पोर-पोर थिरकी बेकाबू हाथ-पाँव लहराये
रहा छूट धीरज चुदने बुर लपकी होश गंवाये

उमग-उमग सखि बात किये जिसकी बुर बह-बह आयी
कहूँ आह क्या सखि जब उसकी झलक सामने आयी
इक-दो-तीन नहीं सखि पंच-अंगुरी भर खड़ा मुटाया
काढे मुंडा बुर्र लाल घूरे था वह मनभाया

चूहे सा सोया वह सखि औचक तन-तन लंबाता
उइ हा री फिर खड़ा नाग सा काढे फन लहराता
ठप्प..ठप्प’ दे टाप चढ़ा फिर दौड़ अश्व सा आये
देखे कंपी फुरकती बुर हा री वह पटक न खाये

रहा छूट धीरज सखि झुक जकड़े मैं मुट्ठी आई
चूम चुहक गालों पर फेरे मस्ती मुझमें छाई
औचक खड़ा ताना गुद-गुद वह छू जांघें टकराया
सखि भूली मैं होश गंवा सब चढ़ा नशा सा छाया

पास-पास फिर और पास कस लुढके दोनों लपटे
चढ़ा ज्वार तन धर बेकाबू इक-दूजे पर झटके
निकली मुख से ‘आह’ अंत सखि जो चाहा वह पाया
चूत कुलबुला उठी चुदाने थिरकी अंग-अंग काया

झपट लंड धर खींच टिका बोली मैं “हा अब आओ”
आग लगी बुर तरसी चुदने और न अब तरसाओ”
धर मुठ्ठी भर उठी समाया लंड न फूला जाता
फटीं निहारे औचक आँखें देख उसे तन्नाता

(नौ)
जैसा मेरा हाल उधर भी मची उतावल भारी
बेकरार लेने इक-दूजे थे पूरी तैयारी
जांघें चिकनी संगमरमरी देखे रह रह तडपा
छिपी चूत गुलगुल लेने फन्नाया लौड़ा फडका

बाँध कमर बांहों में कस टांगों को ठेल उठाया
‘चप-चप’ चूम फाड़ बुर प्यारी ठोके लंड धंसाया
भूलूँ हाय न मुख दमका वह चढ़ी ललाई छाई
फाड़ी मार झपट्टा चोली धर अंगिया बिखराई

चमकी आँख चपल चपला सी लहंगा रख पलटाया
कसी दाब जांघें थपकाई चढ़ बुर ठेले आया
खड़ा कड़क फूला जबरा रगड़े बुर छील समाया
“ऊ’..हा रे स्सी.सी..” कर चीखी लेते जी घबराया

चूत कड़क फांसे झुक चूम अधर अलकें कर फेरे
सटा गाल पर गाल कहा भुज से कटि उसने घेरे
“रानी प्यारी सिमट न कस यूं पसर ज़रा बुर खोले
डर न तनिक गुडिया नाज़ुक बुर लूं मैं हौले-हौले”

(दस)
आया ज्यूं तूफ़ान झटक उफ़ चढ़ा बदन वह छाया
चमकी बिजुरी पोर-पोर तोड़े अंग-अंग चटकाया
मैं कसमस-कस कर हारी कह “प्लीज़ छोड़ भी दो ना
सच कहती तन दुखे बात मानो मुझको चोदो ना”

फिरा गाल पर गाल अधर धर अधर चूमता आया
घूंघट उठा निहार नयन धर छाती से लिपटाया
बम्म लाल फूला अकड़ा देखा जब बाहर आया
फटी आँख साँसें अटकीं जी धड़क-धड़क घबराया

औचक चढ़ा नशा ऐसा फूली साँसें रह आईं
रहा न होश गया धीरज लिपटी मैं अंग समाई
रहा आया जो खड़ा लंड सन ठिठक चूत में अटका
चल आया फिर सरपट मारे चूत भका-भक झटका

खड़ा फाडता कसे गज़ब बुर सरसर लंड समाया
हुआ न जो पहले घंटों में इक-पल में हो आया
कहूँ आह उस पल की क्या सखि समां गज़ब का छाया
पोर-पोर अंग-अंग उतरा सखि जैसे स्वर्ग समाया

लिये ‘भकाभक’ फिर धुन मगन भिड़े हम दोनों टूटे
होता रहा बाद क्या होश न रहा लंड के लूटे
पोर-पोर रसभरी उफनती टांगें लपट फिसलतीं
थप्प-थपाथप भर उछाह जंघाएँ ठुकी पिघलतीं
जकड घेर कस पीठ भुजाएं बाँधे भींच दबातीं
चोंच निकाले फूल छातियाँ गुदगुद भिड़ टकरातीं

“रहे जीत लौड़ा ‘गच-गच’ चोदे” बुर खूब मनाती
लंड मनाता “लिए ‘गप्प-गप’ चुद बुर रहे छकाती”
झटके रगड़ कपोल केस मुख अधर गूँथ उरझाए
अपलक रम इक-दूजे डूब मदिर आँखें रम आए

जोड़ा अटक फंसा भूला सुध-बुध जग भूली आई
कसर निकाले सारी जमकर जोड़ी रमी चुदाई
‘आह..आह’ कर मुंदी पलक ले लंड चूत मैं हारी
लगी होड़ बुर-लंड ‘खब्ब-खब’ बहा चुदन-रस भारी

(ग्यारह)
(रतिरण में भिडंत)

कुटी चूत पटके लौड़े ने तोड़े अंग-अंग मारा
उड़ी चूत चिथड़े जितने री और लगा वह प्यारा
खड़ा पटक बुर फाड़ टूटता वह मैं कसे फंसाती
उछली उसको लपक दौड़ सरपट मैं रही समाती

टोह-टोह पटके बुर का कोना-कोना झारा री
कूट रगड़ता चूत फाड़ तोड़े अंग-अंग मारा री
उधड़ उड़ी बुर दुखी टांग टूटती कमर रह आई
पिये लंड का नशा मगन पर चुदती मैं न अघाई

आहें भर-भर ठोक छिला वह ठुक बुर चीखी आई
‘ले..ले’ कह पेले वह चुद मैं ‘और..और’ कह आई
लगी होड़ थी मानो किसको कौन रहे धर लूटा
लण्ड चूत हठ किये लड़े टकराते जोड़ न टूटा

घुस-घुस चढ़े हुमक इक-दूजे ठोक लड़े यूं दौड़े
मानो मिले न दिन दूजा निबटा तमाम रख छोड़ें
चढ़ा नशा इक बार सखी जो उतर न फिर वह पाया
खुली छोड़ बुर खींच-खींच लौड़ा मैंने चुदवाया


(बारह)
रतिलीला दृश्यावली

छनक छन्न बाजी करधनिया ठुनक-ठुनक कटि डोली
लहराती ‘लप..लप’ पुट्ठे बुर ‘और..और दे’ बोली
भिड़ी छातियाँ मचल-मसल धंस रगड़े कस टकरातीं
फँस अंगुलियां कस पंजे इक दूजे पटक दबातीं

रह-रह उठता ज्वार उठा वह पटक ‘घप्प’ बुर जाता
कर मदहोश ‘भका-भक’ ठोके बुर जितना वह भाता
रमी आँख में आँख निहारे अपलक डूबी जाती
मची होड़ इक-दूजे लेने लगी हुई थी बाजी

रह-रह उलझ अधर रस पीते इक-दूजे पर टूटे
भिड़-भिड़ टांगें लड़ीं खूब फिसली जांघें रस लूटे
लूटा जो इक बार दौर पर दौर चला फिर थम-थम
चुद-चुद हुई निहाल चूत सखि लेती उसमें रम-रम

बजती रही संग ‘भक-भक’ ठोके पैजनिया छुन-छुन
पलंग हिला उछली मैं लिये ‘रबा-रब’ रमती धुन सुन
आह गज़ब क्या समां बंधा री हाय बताऊँ कैसे
लय-सुर-ताल रमी डूबी बुर लंड चोदता जैसे

‘पुक-पुक’ खूब बजी बुर ठुकती चुदी लंड से धुन-धुन
जोड़ी जमी खूब थी खोए होश मगन री सुन-सुन
खूब ‘खबा-खब’ मची लंड साने रस बुर कस आई
ठुकती बुर संग पैजनिया बज छुन-छुन रही लुभाई


(तेरह)
(भोर भये दरवज्जे थप-थप)

चला भोर तक दौर मची री ‘गच..गच’खूब चुदाई
भिड़े जंग में गज़ब चूत-लौड़े में थी ठान आई
जैसे चढ़ा नशा कोई बुर लिये ‘खबा-खब’ आया
रह-रह चढ़ा चढ़े दिन तक वह रहा चूत पर छाया

यूं कह आह भरे तन तोड़े दुलहन सखि अंगडाई
निकल चुभीं चूचियां गज़ब छाती गुलगुल तन आई
बोली रहा फाडता बुर वह रही मगन मैं लीले
उठा-पटकता वह मारे कस मैं रगड़े थी छीले

जी न भरा था होश डुबाता रमा खेल था ‘खब-खब’
ऊह बताऊँ क्या री तभी द्वार सुन आई ‘थप-थप’
किये चुहल बोली ननदी “भैया-भाभी जग जाओ
राह देखते सब बैठे नीचे हैं मत तरसाओ
बना गरम जलपान देर से रक्खा नीचे ढक्का
फिर कर लेना काम बाद में बचा अभी जो रक्खा”

सुना खिलखिलाती बतियातीं सब को हौले-हौले
टोक रही थी दूजी “साली बोल किये सुर हौले”
रहीं खिलखिला आईं कुछ इक बोली “जतन करो री
झाँक देख लें मज़ा ज़रा किस पर है कौन चढ़ा री”
“हटो न खेल करो” कह-कह भाभी बरजे थी जाती
“लल्ला-लल्ली उठो” कहे द्वारे आवाज़ लगाती

देर रात तक रही सुलग भडकी थी जो चिंगारी
रही धधक उठ बैठा वह मनमारे मैं मनमारी
आह हुआ क्या यह सोचे री जी रह आया धडका
सुने बोल तमतमा रहा मन-मन वह खीझा भड़का

(चौदह)

उसने चौंके औचक सना लंड बुर बीच निकाला
मिटी न भूख चुदन की यूं छूटा अधबीच निवाला
उठ आए मजबूर आँख मिल केवल कह रह आई
जानम बुझी न आग छिड़ेगी कस फिर रात लड़ाई

‘चप-चप’ चूमे चूत उठा री मनमारे वह भारी
कहा “चतुर तुम बहुत सताया तुमने मुझको प्यारी”
चिमट थपथपा गाल कहा उसने “अब मेरी बारी
रात आज बदला लूँ मैं ठुकने रखना तैयारी”

मुस्काई हौले बोली मैं “जो तुम कहो करूंगी
जितना लोगे बदला उतना प्यार तुम्हें मैं दूंगी”
सुन बातें रसभरी प्यार की री मैं थी मदमाती
किये याद मन गुदगुद अब भी बुर है उछली जाती”

आह भरे तन तोड़ गज़ब दुलहन सखि रह अंगडाई
निकल चुभीं चूचियाँ गज़ब छाती गुलगुल तन आई
“ऊह याद कर भिडन रात की” बोली “जिया मचलता
हर पल नया स्वाद ले मौसम बुर का रहा बदलता

रही मज़े की रात लंड संग खेल चूत ने जाना
क्या सुख मिले चुदाई में क्या होता है चुदवाना
सुना बयाँ जितना था पहले उससे ज़्यादा पाया
लब्ज़ न कहने को री जो उन लम्हों में हो आया

उठी छलछला कीच मचा बुर लंड थिरकता बरसा
उठा हरस ले मन उसको पाने जिसको था तरसा
‘ऊह ऊह’ मत पूछ हाय री “आह, मज़ा जो आया
कहने की वह बात नहीं जाने जिसने वह पाया “


(पन्द्रह)
(कथा सुनकर सखी की xxx का उबाल)

इक-इक बात बयाँ कर मचली दुलहन हांफी आई
कह अब कैसा लगा हाय पूछे सखि गर लपटाई
बोली सुनी बात तूने कुछ कह गर रही अधूरी
हो न शिकायत तुझे कसर कर दूँ वह भी मैं पूरी

चिपक तान तन तोड़ सखी का बदन लहराता आया
सुन बरनन बेहाल हुआ मन चुदने-चुदने आया
ताब न देखा झपट मसक सखि यह उसपर चढ़ आई
बोली चुदी खूब तू सुन बुर आग इधर लग आई

आह सखी बुर चूमूं तेरी क्या किसमत है पाई
उबली जाती चूत इधर सुन तेरी गज़ब चुदाई
कसी चिपक छातियाँ मसल चढ़ ज्वार बदन पर छाया
भिड़ी चूत से चूत ‘थपा-थप’ समां खूब बंध आया


(सोलह)
(सखियों में प्यार की भिडंत और बिदाई)

इक-दूजी को लिये झटकती मिल-मिल चमकी आँखें
फुरक-फुरकती बहीं मगन खुल उड़ी पसारे पांखें
कसी भुजाएं थाप हथेली फाँस झटकतीं तगड़ा
उलझ फाड़ टांगें चढ़ फिसलीं बुर ने धर बुर रगडा

अलट-पलट करवट-करवट बुर ने ठोका बुर कस-कस
अघा बहीं चूतें जांघों तक सिसियायीं “उइ री बस”
बोली दुलहन “चूत बही री साली क्या कर डाला
आखिर रगड़ चोद बुर मुझसे तूने कसार निकाला”

मुसका उत्तर में बोली सखि “बस इतने से हारी
आह मान ले बात चुदें चल संग उसे ले प्यारी
पक्की कर लें आज मिताई चल हम–तुम मिल प्यारी
साझा करती लंड लिये मिल खाएं बारी-बारी

जब चोदे ले तुझे ‘घपाघप’ तके मगन मैं देखूँ
तू देखे फड़वाती बुर जब मैं उसका लौड़ा लूँ
एक निहारे बैठ मगन दूजी चुदती रह आये
ऊह सोच प्यारी तब कैसा मज़ा देखते आये

परे धकेल चिकोट गाल दुलहन सखि कह मुसकायी
“हा री बहुत चतुर साली तू लंड बंटाने आयी
ज़रा ठहर आने दे मौक़ा फिर मैं बदला लूंगी
बैठ देखना तू तेरे उससे मैं चुदवाऊंगी

साली तेरी यही सजा तू नहीं सुधर पाएगी
किये ठिठोली तू बिंदास रही हरदम आएगी
देखूँ आती कब तेरी बारी मत मुझे भुलाना
लंड लिये गुज़री क्या तुझपर बिन-भूली बतलाना

मिल-मिल गले प्रेम से भर-भर आहें हुई विदाई
सखि संवाद मधु-निशा वर्णन की इति यूं हो आई
रसिकाओं रस-रसिक कहो वर्णन यह कैसा भाया
आगे और लिखूं हवाल जो मजा तुम्हें हो आया


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