योनि का दीपक (The Lamp of Vagina)

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योनि का दीपक (भाग -3)

बाहर मैंने टैक्सी रुकवाई और बैठ गई। मैंने ड्राइवर को तेज गाड़ी चलाने कहा। मैं आवेश में थी, क्या बोल गई। इतना बेशरम मैं कैसे हो सकती हूँ? क्या सोचकर आई थी और क्या हो गया। उसने मेरी भावनाओं और इतने सुंदर आर्ट की कद्र न की।

खिड़की से बाहर खंभे, मकान, पेड़ आदि तेजी से गुजर रहे थे। मैं भी इस गाड़ी की तरह आज कितनी ही चीजों को पीछे छोड़ते बढ़ी जा रही थी। कहाँ तो एकदम परम्परागत लड़की थी - शादी से पहले नो किसिंग, न हगिंग, फकिंग तो बहुत दूर की ही बात थी। लेकिन आज एकबारगी न सिर्फ टैटूवाले के सामने टांगें खोलकर चूत पर चित्र बनावाया बल्कि अपने ब्वायफ्रेंड, जिसको लाख मनाने के बावजूद अपनी छातियों को महसूस भी न करने दिया था, उससे बूब्स और पुसी दोनों को चुमवा और चुसवा भी लिया।

लेकिन उसने मेरी हिम्मत और लगाव को किस रूप में लिया? मुझे बार-बार आँखें पोछनी पड़ रही थी।

कलाकार की दुकान को देखकर मैं चौंकी कि मैं सचमुच यहीं आ गई। मैंने गुस्से में टैक्सीवाले को यहीं का पता दिया था। मुझे देखते ही खड़ा हो गया। "अरे तुम?, इतनी जल्दी? वहाँ गई भी कि नहीं?"

"मैं वहीं से आ रही हूँ।"

"ओके, गुड" उसने मुझे इज्जत से बिठाया और बोला "वेलकम अगेन!"

"How was it?"

"वंडरफुल, फैंटास्टिक।"

"You did it?"

"हाँ।"

"But you finished so early? Did you enjoy?"

इस सवाल में उसका अपना मतलब भी निकलता था। निकलने दो, कौन ये मेरा प्रेमी है। प्रेमी ने तो फूल बरसाए और फिर अपमानित किया। यह क्या करेगा? करने दो जो करता है। मेरी नजर उसकी पैंट में चेन के पास चली गई। आज मैं अपने व्वायफ्रेंड का वो भी देखना चाहती थी। उसका मौका ही नहीं आया।

मैंने कहा, "हाँ और नहीं दोनों।"

"अरे! ऐसा कैसे?"

"तुम अब ये टैटू मिटा दो।" कहकर मैं उसी टेबल पर जा बैठी जिसपर गुदना बनवाया था।

"वहाँ नहीं, यहाँ बैठो" उसने मुझे अपनी सुंदर गद्देदार कुर्सी पर बैठाया।

"वो खास तौर पर दीवाली का गिफ्ट है। कम से कम आज भर तो रखो। वैसे भी मुझे अपने आर्ट को इतना जल्दी रिमूव करने में दुःख होगा।"

मैं उसके चेहरे को देखती रह गई। क्या बोल रहा है। इसको आज फिर से मेरी पुसी देखने का मौका मिल रहा है और यह उसे छोड़ रहा है। कह रहा है अपने आर्ट को रिमूव करने में दुख होगा। मेरे प्रेमी ने तो ठीक से देखा तक नहीं और तुरंत उसपर मुँह लगा दिया। और यह उतनी देर तक देखकर भी अविचलित रहा। दुबारा आई हूँ तब भी फायदा उठाने की चिंता में नहीं है। आर्ट की कद्र करने को कह रहा है।

मैंने सिर झुका लिया। आँखें डबडबाने लगीं। उसने मेरे कंधे थपथपाए। मेरे हाथ से आँसुओं से भींगा रुमाल लेकर सूखने के लिए फैला दिया। "Nice hanky." उसका इतना अधिकार दिखाना और अप्रत्यक्ष तारीफ करना मुझे अच्छा लगा।

"If u don't mind, Can u tell me what happened? तुमने कहा कि एंजॉय किया भी और नहीं भी किया?"

मैंने शब्दों के लिए अटकते अटकते उसे संक्षेप में घटना कह सुनाई। घटना ही ऐसी थी। मैंने उसको ब्वायफ्रेंड को बोली हुई अंतिम बात नहीं बताई कि उसी कलाकार के पास फिर से जा रही हूँ - to get properly fucked." सुनता हुआ वह नॉर्मल रहा। लेकिन साथ ही मैंने नोटिस किया कि उसकी पैंट में उभार लगातार बना रहा था। उसे अपने मनोभावों पर नियंत्रण करना आता था।

"You are such a nice girl. He didn't appreciate."

"अब क्या फायदा। मिटा दो इसे।"

"No no, rather let me improve it."

"वो क्यों?"

"यह तुम्हारा डिसीजन था, तुम्हारी उसके लिए वेल विशिंग थी। यू लव्ड हिम। इसलिए तुमको सॉरी फील नहीं करना चाहिए। Rather you should celebrate it."

मुझे लग रहा था कि यह मुझे फिर से वहाँ पर देखना करना चाहता है। मैं सोचने लगी।

"क्या तुम फिर से मुझे वहाँ पर देखना चाहते हो?" मैंने पूछ ही लिया।

वह हँस पड़ा, "यू आर सो इन्नोसेंट!"

इसका मतलब क्या हुआ? मैं सोच में पड़ गई। क्या मैं बेवकूफ हूँ? ऐसे काम करनेवाली लड़की बेवकूफ न होगी तो क्या होगी।

वह गया और अपनी पेंसिलें कूचियाँ ले आया। मेरे पैरों के पास एक पिढ़िया रखकर बैठ गया। इस बार उसका नीचे बैठना भी खास मकसद का लगा।

उसने मेरे पैर उठाकर कुर्सी की सीट पर ही मेरे नितम्बों के पास रख दिए।

मैंने अपना मोबाइल चेक किया। स्क्रीन पर कोई मिस्ड कॉल का नोटिफिकेशन नहीं था। कहीं साइलेंट तो नहीं है? नहीं, रिंग का वॉल्यूम फुल था।

कलाकार मेरी 'उस' जगह को गौर से देख रहा था। मैंने कुर्सी की बैकरेस्ट पर सिर रख दिया। होने दो जो होता है। आज दीपावली है। मैरी कैसी दीपावली मन रही है! मुझे पेंसिल की चुभन महसूस हुई। मैंने आँखें मूंद लीं। माता लक्ष्मी, मुझे माफ करना।

पेंसिल की नोक की चुभनें, ब्रश की सरसराहटें, कभी कभी कुछ रगड़ना मैं इन सबको महसूस करके भी जैसे नहीं कर रही थी।

चित्रकार ने ज्यादा समय नहीं लिया। "here is your pic," उसने मुझे आइना दिया. मैंने देखा, 'शुभ' और 'दीपावली' शब्दों के नीचे उसने एक एक कलश और स्वस्तिक का निशान बना दिया था।

मुझे लगा, यह भी ज्यादा हो गया। मैं इतनी शुभ कहाँ थी। "तुम मुझे ओवररेट कर रहे हो। आय एम ए चीप गर्ल।"

"नेवर से सो (ऐसा हरगिज मत कहना)"

मेरे मोबाइल की घंटी बजी। लपककर मैंने उठाया। उसी का फोन था। इतनी देर लगी उसे फिर से फोन करने में! मैंने फोन काट दिया।

वह मुझे देख रहा था - मेरी पुसी से लेकर चेहरे तक, एक सीध में। जलती हुई लौ के अंदर मेरी योनि। उसके दोनों तरफ स्वस्तिक और कलश के शुभ के प्रतीक|

"keep it for a day or two." कहता हुआ वह उठने लगा|

मैंने उसके कन्धे दबा दिये| वह पुनः बैठ गया |

(अपनी प्रतिक्रिया happy123soul@yahoo.comपर जरूर भेजें)

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योनि का दीपक (भाग -4)

मैंने उसका सर पकड़ा और अपनी ओर झुकाकर धीरे धीरे जांघें बंद कर लीं| वह कुछ कहना चाहता था मगर सामने आते चित्र को देखकर चुप रहा| एक क्षण के लिए मेरे भगों पर उसके मुँह का दबाव महसूस हुआ और मैंने जांघें अलग कर लीं| उसने जरुर समझा होगा कि मैं उसे चाटने को बोल रही हूँ लेकिन मैंने उसका चेहरा हटा दिया तो वह मुझे सवालिया निगाह से देखने लगा|

मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया| देखकर वह मुस्कुरा पड़ा| कच्चे रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान|

"शुभ दीपावली" मैंने कलाकार को कहा|

"Very very happy deepawali." उसने खुश होते हुए कहा| वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था - "You too are an artist!"

"I'll also keep it for day or two."

"अजीब नहीं लगेगा?लोग क्या कहेंगे?"


उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया |

मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी| मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।

कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ। (आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था|)

और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन - बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर। लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की 'पलकें' खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं।

खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?

"मैं तुम्हें exploit तो नहीं कर रहा हूँ?" उसका प्रश्न कानों में पड़ा |

"You are a lovely man...", "very caring and......


"And...?"

"handsome too." हिम्मत करके मैंने कह दिया|


कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ | मैंने प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही|

उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया | थरथरा रहा था | मैंने अनिच्छा से देखा - उसी का फोन था। इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.


"तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी|"

मैं कुछ नहीं बोली|

"प्लीज, बोलो ना| मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना|"


मुझे गुस्सा आया| मैंने फिर काट दिया।

"You do it. " मैंने कलाकार को कहा|

वह हिचकता रहा - "Are you sure?"

"तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो |"


"I love it" उसने होठोंपे जीभ फिरायी|

"Then do it."

फोन फिर थरथराया| ओफ्फ! "क्या है?"

"प्लीज,फोन बंद मत करना| सॉरी-सॉरी-सॉरी, तुम कहाँ हो?"

एक चुम्बन मेरे (भग)होठों पर पड़ा| आ...ह|

"I have told you." मैंने फोन में कहा।

"उसी टैटू वाले के यहाँ?"

दूसरा चुम्बन - होठों के मध्य से ऊपर|

"क्या करोगे जानकर?" मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की|

"प्लीज, बोलो ना|"

"हाँ| और कुछ कहना है?"

"क्या कर रही हो वहाँ?" उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी| उसकी घबराहट पर हंसी आई| तभी उसने कहा, "आइ लव यू|" और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया|

"जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना| चालू रखो।"

मैंने सर उठाकर देखा| कलाकार का सर झुका हुआ था|

चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर| यह और मीठा था| मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी, "आ....ह...!"

"क्या कर रही हो?" उसने फोन में पूछा।

जवाब में पुनः मैंने आह भरी। चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी।

अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट| मेरी और बड़ी कराह|

"क्या कर रही हो, बोल ना?"

"मैंने बताया था|"

"नहीं मालूम| बोलो ना|"

"Don't disturb, just keep listening" कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी| मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी|

मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था| उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था|

"कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?"

उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया|

"बताओ ना कौन जगह है|"

"फोन बंद कर रही हूँ|"

"प्लीज... सिर्फ जगह बता दो... प्लीज|"

मैंने कलाकर से कहा, वह जगह पूछ रहा है| कलाकार ने पूछा कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था|

"पता नहीं|" मैंने कहा|

"मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो| I don't fear."

वह फिर चाटने लगा| मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया| मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी|

कलाकार ने मेरे हाथ से फोन लेकर रख दिया और पुनः भक्ति भाव से काम में लग गया| बहुत अच्छा फील हो रहा था। पता लग रहा था क्यों मेरी फ्रेन्ड्स इसके लिए बार बार कहती थीं|

वो आकर मार-पीट तो नहीं करेगा? बड़ा possessive है| लेकिन उसके इसी स्वामित्व भाव की तो मैं उसे सजा देना चाहती थी|

"आ....... ह.........!" मैंने अपने पेडू को और आगे ठेलने की कोशिश की| मेरी मुड़ी हुई टांगें दुखने लगी थीं| लेकिन इस आनंद के सामने ये दर्द क्या था! आ.....ह|

वह दबाव के साथ कुरेद रहा था| कोमल होंठों और जिह्वा की ये रगड़ अद्भुत थी| आह आह आह! कुछ और बढ़ो यार!

मेरी भगनासा को उसने जड़ के आसपास से घेरा और होंठों के नीचे दांत छिपाकर कचड़ दिया|

"अरे ब्बा.....!" मैं घबरा सी गयी|

उसने भगनासा को छोड़ दिया| मुझे राहत मिली|

उसने ये क्रिया फिर से दुहराई, लेकिन इस बार उसने भगनासा को छोड़ा नहीं, बल्कि जोर जोर चूसने लगा| आनंद पीड़ा में बदल गया और मैं उससे निकलने के लिए छूटने लगी| आह आह आह आह... मैं रोने के जैसी कर रही थी| मैंने उसे छोड़ने के लिया कहा तो उसने मेरे नितम्ब पकड़ लिए| मैंने अंतिम जोर लगाया, "ओ.......ह, छोड़ो!"

उसने छोड दिया| पहला चरम सुख! मैंने धीरे धीरे आँखें खोलीं| नजर डबडबा गयी| आंसू निकल आए थे| वह मेरी आँखों में देख रहा था|

उसने मेरा रुमाल लिया और मेरी आँखें पोंछीं| झुककर मुझे चमा| इच्छा हुई thanks बोलूँ| अपनी योनि की गंध उसके मुँह पर पाकर शर्म आई और अच्छा लगा|

"let's go. He may come any time."

मैं यही तो चाहती थी, boyfriend से बदला लेना| मैं उसकी कमर के बटन खोलने लगी|

"You want it?"

जवाब में मैंने उसकी चेन खींच दी| एक ये है, इस अवस्था में भी यह मुझसे पूछ रहा है कि चाहती हूँ कि नहीं| एक वो है, मेरा boyfriend, जबरदस्ती कर रहा था| कितने अलग हैं दोनों| मैंने पैंट को कमर से नीचे खिसका दिया| चड्ढी में बहुत बड़ा उभार था| पता नहीं, इस मामले में कैसे हैं दोनों|

उसने पैंट पैरों से बाहर निकल लिया| मैं चड्ढी के अन्दर की वस्तु के प्रति डरी हुई थी| पता नहीं कितना बड़ा है।

वह मेरा इन्तजार कर रहा था| "You remove it."

आख़िरकार मैंने हिम्मत करके उसकी कमर में उंगलियाँ फंसाईं और झटके से नीचे खींच दी। उछलकर लिंग बाहर आ गया।

बाप रे। उस व्वायफ्रेंड के लिए मेरा गुस्सा और बढ़ गया। उसकी खातिर मुझे इतना बड़ा अपने अंदर लेना पड़ेगा।

कलाकार ने मेरे टॉप को उतारने के लिए पकड़ा। अब ये मामला प्यार का होता था। मैं ब्वायफ्रेंड से प्यार का बदला नहीं लेना चाहती थी। उसने मेरे साथ विश्वासघात नहीं किया था। उसने मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश की थी। मुझे सेक्स का ही बदला लेना था। मैंने कलाकार को रोक दिया, "रहने दो।"

मैने कलाकार के चेहरे को पकड़कर उसे चुम्बन दिया। चुम्बन उसकी कला-प्रतिभा, सज्जनता और शालीनता के लिए थे। फिर चुम्बन, फिर चुम्बन, और क्रमशः लम्बे होते चुम्बन। इस सुख को अपने ब्वायफ्रेंड से पति के रूप में सुहाग सेज पर पाना चाहा था। मैं उसको मन में दिखाती हुई और जोर से चुम्बन ले रही थी।

दरवाजे पर दस्तक हुई।

मैने कलाकार की कमर अपनी तरफ खींची। उसका लिंग अबतक मेरे योनि होंठों को कभी छू, कभी अलग हो रहा था। मैंने उसे अपने पर दबा लिया।

"कम इन।"

"दरवाजा खुला है?" मैंने कलाकार से पूछा।

"यस, इट्स ओपन।" कलाकार ने लिंग को दाहिने बाएँ हिलाकर मेरे योनि द्वार को ढूंढते और उसपर लिंग को सेट करते हुए कहा।

"तब भी तुम इतना कर गए? डर नहीं लगा?"

"For you only. अगर तुम्हें डर नहीं लगा तो मुझे कोई डरनहीं?"

"One lady customer is here?" ब्वायफ्रेंड की ऊँची आवा ज बाहरी कमरे से आई।

हम दोनों में से कोई नहीं बोला। खुद आएगा।

"दीपिका, यहाँ हो?" कहता हुआ वह अंदर आया।

मैंने कलाकार की कमर पकड़ ली। वैसे भी उसे बढ़ावा देने की जरूरत नहीं थी। उसने धक्का दिया। लिंग होंठों के पार हो गया। स्स्स... मैंने दाँत पर दाँत रख लिये। पहला खिंचाव! ओह...!

"ये क क्क क्या कर रही हो!!!" विस्मय से उसकी आवाज हकला सी गई।

कलाकार शायद मुझे फैलने देने के लिए रुकना चाहता था। मैंने उसे लगातार दबाते रहने के लिए प्रेरित किया।

"Is this your first time?" पता नहीं मैंने उसे बताया था कि नहीं। पर इस सवाल में उसके पौरुष की घोषणा थी। मेरे प्रेमी के सामने मुझसे पूछ रहा था इज दिस योर फर्स्ट टाइम? उसके गालों पर मेरे स्वस्तिक और कलश चमक रहे थे।

ब्वायफ्रेंड स्तम्भित खड़ा था। अवाक! कलाकार के गालों, उसके नंगे नितम्बों और मेरी खुली जांघों को देखता।

"हाँ...." मैंने कहा।

फिर मैंने ब्वायफ्रेंड से पूछा, "Do you love me?"

"दीपिका, प्लीज..." उसके बोल फूटे।

"Kick me hard bastard!" मैं कलाकार पर चिल्लाई। उसकी इतनी शराफत असह्य थी। मैं कोई खुरदुरा, कठोर व्यवहार चाहती थी। मैं अपने प्रति गुस्से से भरी थी।

कलाकार ने जोर से धक्का दिया और मेरे कौमार्य पटल को फाड़ता जड़ तक घुस गया। दर्द से मेरी चीख निकल गई।

"Don't stop!" मैने दाँत पीसते हुए कहा। मेरा प्रेमी सामने खड़ा है।

कलाकार जैसे जागा और जोर जोर धक्के लगाने लगा। मैं दाँत पीसती दर्द से चिल्लाती रही और सुन सुनकर वह और जोर जोर ठोकता रहा।

मैने चिल्लाकर ब्वायफ्रेंड से पूछा, "You didn't tell me? Do you love me?" मैं धक्कों में ऊपर नीचे हो रही थी, और पेड़ू पर थप थप जोर जोर बज रहा था।

कलाकार अब और नहीं थम सका। गुर्राता हुआ मेरे अंदर छूटने लगा - हुम्म, हुम्म, हुम्म....

थप थप थप - वीर्य की लहरें खून के साथ मिलकर सब तरफ लिथड़ने लगीं। कुछ छींटे मेरे चेहरे पर आ पड़े।

पूरी ताकत से ठेल ठेलकर उसने अंतिम बूंद तक खाली किया और मेरे गर्भ-कलश को अपने बीज से भरकर बाहर निकल आया।

उसके लिंग पर गाढ़े लाल द्रव की मोटी लकीरें खिंची थीं। मेरे जीवन का पहला पुरुष अंग, मेरा उद्घाटन करनेवाला। मेरा प्रेमी भी उसे देख रहा था।

मेरी क्षत-विक्षत योनि से उड़ेल-उड़ेलकर लाल द्रव निकल रहा था। कुर्सी की सीट गंदी हो गई थी। मैंने रूमाल छेद पर दबा लिया। घाघरे को खींचकर पैरों को ढँक लिया।

कलाकार बाथरूम की ओर प्रस्थान कर गया।

ब्वायफ्रेंड जैसे किसी आवेग से दौड़कर मेरे पास आया। "ये क्या कर लिया दीपू?"

"बड़े उतावले थे। कर लो तुम भी।"

"प्लीज, इतना इंसल्ट न करो।"

"अब बोलो 'आय लव यू'!"

"प्लीज दीपू!"

"मैंने इतना तुम्हारे लिए किया...!" भावावेग से मेरा गला रुंध गया।

"मुझे मालूम नहीं था कि तुम मेरे किए का बदला खुद से लोगी।" उसने मेरा सिर सहलाया।

"मैं अपनी जान भी ले लूंगी। मैंने क्या सोचा था, तुमने क्या किया?"

"इस तरह खुद को कोई आग में झोंक देता है भला!"

कलाकार बाहर आया। कपड़े पहने। पैंट कसी। उसके गालों पर मेरी योनि के प्रथम स्पर्श के स्वस्तिक कलश बड़े प्यारे लग रहे थे। उस क्षण कलाकार मुझे बहुत अपना-सा लगा। मैं उठी और बाथरूम चली गई।

घाघरा भींग गया था। दूसरा घाघरा नहीं था।

बाहर कमरे में गई तो देखा, मेरा ब्वायफ्रेंड कलाकार से कुछ बोल रहा था।

कलाकार ने मुझे देखकर कहा, "madam, he wants to pay for the art-work. But how can I take money from him without your permission."(मैडम, ये मुझे मेरी कलाकारी के पैसे चुकाना चाह रहा है। मैं आपकी इजाजत के बगैर पैसे कैसे ले सकता हूँ।)

ब्वायफ्रेंड -- "प्लीज दीपू। Please allow me."

कलाकार -- मैंने कहा है कि मैं इस काम के पैसे तभी लूंगा, जब उसे पसंद किया जाएगा।

ब्वायफ्रेंड --"I liked this art very much, and..." (मुझे यह कलाकारी बहुत पसंद आई है, और...) वह मेरी ओर मुड़ा, "I love you!"

मैंने लज्जा से सिर झुका लिया।

पैसे अदा करके ब्वायफ्रेंड मेरी तरफ आया, "थोड़ी देर रुकना।"

वह जल्दी से नया घाघरा लेकर आया। मैंने आर्टिस्ट के स्वस्तिक-कलश छपे गालों को चूमा और ब्वायफ्रेंड के साथ बाहर निकल गई।

आगे क्या हुआ वह सपने जैसा है। उसने उस दिन पता नहीं कैसे तुरत-फुरत एक बहुत ही खूबसूरत होटल का प्रबंध करके मुझे वहाँ ले गया। वह दीपावली की रात हमने साथ मनाई, साथ फुलझड़ियाँ छोड़ीं। मेरी योनि का दीपक सचमुच प्यार के तेल से प्रज्वलित हो गया।देर रात जब अभी अमावस का अंधेरा दीपकों की रोशनी से दूर हो रहा था, मेरी योनि में एक नई सुबह का आगमन हो रहा था।

कहने की जरूरत नहीं कि दो महीने बाद मैंने उल्टियाँ कीं। उनकी माँ ने बेटे को चेताया था, "बेटा, बहू को ध्यान से रखना।" पता नहीं वह उलटी किसकी देन थी, कलाकार की या पति बन चुके बवायफ्रेंड की। "मैं तुम्हें अब ऐसे खुली असुरक्षित नहीं छोड़ सकता। पता नहीं क्या कर बैठो। पागल हो तुम।" उसने कहा था।

तीन हफ्ते में ही शहनाई बज गई। योनि के दीपक का प्रकाश जीवन में फैल गया।

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