छाया - भाग 02

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"छाया उठो पढ़ाई नहीं करनी है क्या?"

उनकी इस बात में हक भी दिखाई दे रहा था. मैं आंखे मीचती हुई उठ खड़ी हुई. मेरी धड़कने अब सामान्य हो गई थी पर मैं आगे पढ़ पाने की स्थिति में नहीं थी. मानस भैया के साथ मेरे रिश्ते का नया अध्याय शुरू होने वाला था. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रही थी. बाकी कल पढ़ेंगे यह कहकर में मानस भैया के कमरे से चली आयी.

मानस भैया कल वापस दिल्ली जाने वाले थे. माँ पड़ोस में होने वाले किसी सांस्कृतिक समारोह में जा रही थी. उन्होंने मानस भैया को आवाज देकर बोला यदि कोई जरूरत हो तो छाया को आवाज दे देना. पता नहीं क्यों मुझे अंदेशा हो रहा था कि वह मुझसे मिलने जरूर आएंगे. मैंने एक सुंदर सा घाघरा और चोली पहनी तथा अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गई. दस मिनट बीत गए अचानक मानस भैया की आवाज सुनाई दी वह मुझे पुकार रहे थे. मैंने जानबूझकर उनकी बात को अनसुना किया कुछ ही देर में वह मुझे ढूंढते हुए मेरे कमरे में आ गए. मैंने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ मैं सोने का नाटक करती रही. मेरा घाघरा मैंने स्वयं अपने घुटने तक उठा दिया था. मैं आंखें बंद कर मानस भैया के अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी. तभी मैंने अपने घाघरे को ऊपर की तरफ उठता महसूस किया. उस दिन वाली घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी.

मैंने अपनी धड़कनों पर काबू कर कर रखा था. मैं मानस भैया की तरफ पीठ करके लेटी हुई थी. मेरी चोली के पीछे से मेरी अधनंगी पीठ दिखाई पड़ रही थी. घाघरा अब जांघों तक आ गया था और मेरे नितंबों से कुछ ही नहीं नीचे रह गया था. इससे ऊपर वह घाघरे को नहीं ले जा पा रहे थे क्योंकि वह मेरे पैरों से दबा हुआ था. कुछ देर तक वह शांत रहे उन्हें आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था. मैं मुड़ते हुए पीठ के बल हो गई. मैंने उन्हें एहसास ना होने दिया कि मैं जाग रही हूं. फिर भी वह सहम गए मेरी जांघें सामने से दिखाई पड़ रही थी. मेरे चोली में बंद स्तन भी अब दिखाई देने लगे थे. कुछ देर में उन्होंने हिम्मत जुटाई और मेरे घागरे तक अपने हाथ लाये पर उसे छूने की हिम्मत नही जुटा पाए.

मैं उनके मन में चल रही भावनाओं को समझ रही थी पर पहल उनको ही करनी थी. मैं तो अपना मन बना ही चुकी थी.

मानस और छाया के बीच प्रेम पनप रहा था जो समाज द्वारा थोपे गए रिश्ते के ठीक विपरीत था.

आकस्मिक आगमन .

कॉलेज में वापस आने के बाद मुझे छाया का चेहरा हमेशा याद आता था. गांव में इस बार उसने मेरे साथ जो पल बिताए थे वह मेरे लिए यादगार बन गए थे. उसका सुंदर और प्यारा चेहरा तथा कोमल तन मुझे आकर्षित करने लगे थे. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस होता जैसे मेरा उसके साथ कोई नया रिश्ता जुड़ने वाला था. मेरे मन में उसके प्रति कामुकता जरूरत थी पर वह उसकी खूबसूरती को देखने के बाद स्वाभाविक थी. मैंने छाया को केंद्र में रखते हुए कभी भी हस्तमैथुन नहीं किया. वह मेरे लिए प्यार की मूर्ति बन रही थी.

समय बीत रहा था और कुछ दिनों बाद होली आने वाली थी. मैंने छाया से मिलने की सोची. मुझे पता था यदि मैं पापा से बात करूंगा तो शायद वह मेरी पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए मुझे आने के लिए रोक देंगे. होली के एक महीने बाद ही मेरी परीक्षा थी. मेरा मन छाया से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा था. और अंततः मैं बिना किसी को बताए अपने गांव के लिए निकल पड़ा. स्टेशन पर उतरने के बाद मैंने ऑटो किया और घर पहुंच गया.

सुबह के लगभग 10:00 बज रहे थे मुझे दूर से ही छत पर छाया दिखाई पड़ गई. वह धूप में अपने बाल सुखा रही थी. मैंने घर में प्रवेश किया और देखा की पापा की स्कूटर घर पर नहीं थी. मैं समझ गया की वो कॉलेज गए हुए हैं. घर के अंदर प्रवेश करने पर मुझे माया जी कहीं दिखाई नहीं पड़ रहीं थीं. मेरे इस आकस्मिक आगमन के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. मैंने अपना बैग नीचे रखा और सीधा छत पर छाया से मिलने चला गया.

छत पर आते ही मैंने देखा छाया मेरी तरफ पीठ किए हुए खड़ी है. उसने एक घाघरा और चोली पहनी हुई थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और पीछे से उसकी आंखों पर अपनी हथेलियाँ रख दीं. वह मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी.

उसने अपनी कोमल उंगलियों से मेरी उंगलियों को छू कर पहचानने की कोशिस की और उन्हें अपने आंख से हटाने लगी. उसने खुश होकर कहा ...

"मानस भैया?" उसकी आवाज में प्रश्न छुपा हुआ था.

"हां" मैं अपने हाथ नीचे की और ले गया और उसे उसके पेट से पकड़ कर हवा में उठा लिया उसकी कमर मेरी नाभि से सटी हुई थी. मेरा राजकुमार उसके नितंबों से सटा हुआ था. उसके पैर जमीन से ऊपर आ चुके थे मैं उसे गोल गोल घुमाने लगा. मेरा राजकुमार अब तक तनाव में आ चुका था वह छाया के नितंबों में निश्चय ही चुभन पैदा कर रहा होगा और अपनी उपस्थिति का एहसास दिला रहा होगा. उसे घुमाते समय मेरी हथेलियां छाया में पेट पर थी. उन्होंने घाघरा और चोली के बीच में अपनी जगह बना ली थी. अपनी हथेलियों से छाया के पेट की कोमलता को महसूस करते हुए मुझे काफी आनंद आ रहा था. कुछ देर बाद मैंने छाया को नीचे उतार दिया वह खिलखिला कर हंस रही थी. उसे भी इस तरह घूमने में आनंद का अनुभव हुआ था. नीचे उतरने के बाद वह मुझसे लिपट गई उसका शरीर मेरे शरीर से पूरी तरह सटा हुआ था. स्तन और पेट पूरी तरह से मुझसे चिपके हुए थे. एक दूसरे से चिपके होने के कारण मेरा राजकुमार उसके पेट पर कछु रहा था.

उसने कहा

"अच्छा हुआ आप होली पर आ गए मैं इस बार आपका इंतजार कर रही थी" यह कहते हुए वह मुझसे अलग हो गइ और भागती हुई नीचे गइ.

"मां देखो मानस भैया आए हैं" माया जी भी खुश हो गयीं. उन्होंने मेरा स्वागत किया और कहा

"होली के त्योहार पर घर आ गए अच्छा किया. छाया भी तुम्हें याद करती है." शाम को पापा के आने के बाद वो भी खुश थे. मैं रात्रि में छाया को याद करते हुए सो गया .

अगले तीन-चार दिन मेरे लिए रोमांचक होने वाले थे. अगली सुबह मैं अपने दोस्तों से मिलने घर से बाहर गया था. लगभग 11:00 बजे वापस घर आया तो माया जी ने कहा छाया पढ़ने के लिए तुम्हारे कमरे में कब से इंतजार कर रही हैं. मैं खुश हो गया और अपने कमरे में जाकर देखा छाया वहां मेरे बिस्तर पर लेटी हुई थी. उसकी किताब उसके चेहरे के पास गिरी हुई थी. वह अत्यंत सुंदर और मासूम लग रही थी. वह करवट लेकर सोई हुई थी. त्योहार के अवसर पर उसके पैरों में आलता लगा हुआ था और एक छोटी सी पायल पहनी थी जिससे उसके पैर अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे. मेरे मन में फिर एक बार उसकी जांघों को देखने की इच्छा प्रबल हो गई. मैंने घागरे को ऊपर करना शुरू कर दिया घागरा तुरंत ही घुटनों के ऊपर आ गया मैंने थोड़ा और प्रयास किया. घाघरा अब जांघों तक आ गया पर अभी भी उसकी राजकुमारी दूर थी. पर मेरे लिए दृश्य अत्यंत लुभावना था. आज तीन चार महीने बाद मुझे यह दृश्य मेरी आँखों के सामने था. पता नहीं मेरे मन में क्या आया मैंने अपने राजकुमार को छू लिया. वह शायद मेरी ही प्रतीक्षा कर रहहा था. मैंने अपने पजामे के अंदर ही उसे सहलाने लगा. छाया की नग्न जांघों को देखते हुए उसे छूने में एक अद्भुत आनंद आ रहा था. कुछ देर तक मैं ऐसे ही अपने राजकुमार को सहलाता रहा. अंततः मेरे राजकुमार में अपना वीर्य त्याग दिया. आज पहली बार मैंने छाया को ख्वाबों में कुछ और दूर तक नंगा कर दिया था. उसकी राजकुमारी की परिकल्पना मात्र से राजकुमार ने अपना वीर्य त्याग दिया था. मैं मजबूर था राजकुमार पर मेरा कोई बस नहीं था उसे अपनी राजकुमारी को याद कर अपना प्रेम जता दिया था. मैंने अपने आपको व्यवस्थित किया. सारा वीर्य मेरे पाजामें में ही लगा हुआ था. मैंने अपना कुर्ता नीचे किया और छाया की जांघों को उसके लहंगे से ढक दिया. मैंने छाया को पुकारा

"छाया उठो मैं आ गया." वह आंखें मींचती हुई उठ खड़ी हुई. अगले दो-तीन घंटे तक हम लोग पढ़ाई की बातें करते रहे.

मेरे आकस्मिक आगमन का उपहार मुझे मिल चुका था.

छाया के साथ यादगार होली.

[मैं छाया]

मानस भैया ने इस बार कुछ नया कर दिया था. उस दिन छत पर मुझे गोल-गोल घुमाते समय उनके राजकुमार का तनाव मुझे स्पष्ट रूप से अपने नितंबों के बीच महसूस हुआ पर मैंने उस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी. उनसे गले लगते समय मेरे स्तन उनसे टकरा रहे थे तब मुझे अपनी राजकुमारी में उसकी अनुभूति हो रही थी. मैं भी मन ही मन उनसे निकटता बढ़ाने के आतुर थी. उस दिन उनके कमरे में जब उन्होंने मेरे लहंगे को ऊपर करना शुरू किया तो मुझे पूरा विश्वास था कि वह इसे और ऊपर तक ले जाएंगे पर शयद वो डर गए. पर उन्होंने मेरे सामने ही अपने राजकुमार को सहलाना शुरू किया. यह मेरे लिए एक अलग अनुभव था. मुझे राजकुमार की कद काठी तो नहीं दिखाई दे रही पर एक अलग अनुभव हो रहा था. मेरी राजकुमारी से निकलने वाला प्रेम रस मेरी पैंटी को गीला कर रहा था. यदि वह घाघरे को थोड़ा और ऊपर करते तो मेरी चोरी उस दिन पकड़ी जाती. पर ऐसा हो ना सका.

होली के दिन मैंने अपनी तरफ से भी स्वीकृति देने की सोच ली थी. होली के दिन मैंने सुबह-सुबह एक पतला लहंगा तथा एक पतला टॉप पहना था.

मुझे पता था की अगर मैं भीग गइ तो मेरे अंग प्रत्यंग के अर्ध दर्शन मानस को अवश्य हो जाएंगे. पर मैं इसके लिए मन ही मन तैयार थी. सुबह १० बजे के आसपास मैं मानस भैया के कमरे में कई. वह तौलिया पहने हुए थे और अपने कपड़े पहनने जा रहे थे. मैंने जाते ही उनकी पीठ पर रंग गिरा दिया और उन्हें कहा "हैप्पी होली"

वह इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नहीं थे.

"अरे रुको तो, पहले कपड़े तो पहन लेने दो"

मैं नहीं मानी और उनकी पीठ और छाती पर ढेर सारा रंग डाल दिया. मैंने उनकी तौलिया को भी पीछे की तरफ खीचा और उसमें भी रंग डाल दिया जो निश्चय ही उनके नितंबों से होता हुआ पैरों की तरफ जा रहा था. वह मुझे पकड़ने के लिए सामने की तरफ मुड़े पर छीना झपटी में उनका तौलिया नीचे गिर गया. वह पूरे तरह से नग्न हो गए थे. मैंने अपनी आँखे बाद कर ली. उनका राजकुमार एक झलक मुझे दिखाई पड़ गया. मैं कमरे से निकलकर छत पर भाग गयी. उन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर वो नग्न अवस्था में बाहर नहीं आ सके..

वह अभी भी अपने कमरे में थे और शायद कपड़े पहनने की कोशिश कर रहे थे मैं उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थी. मैं मन ही मन डर भी रही थी. हमारी अठखेलियाँ कहां तक जाएंगी यह तो समय ही बताता पर मैं मन ही मन उन सब के लिए तैयार भी थी. उनके राजकुमार के दर्शन मैं कर ही चुकी थी वो शायद अभी तैयार नहीं था. जैसा सीमा ने बताया था वैसा तो बिल्कुल भी नहीं था. शायद वह भी मानस भैया की तरह मेरे आगमन के लिए तैयार नहीं था.

होली का त्यौहार मिलन का प्रतीक होता है, प्रेमियों की लिए ये उनकी कामुकता को आगे बढ़ने में भी मदद करता है.

मानस भैया के छत पर आते ही मैं फिर भागने लगी. कुछ ही देर में उन्होंने मुझे पकड़ लिया. उनकी हथेलियां रंग से सराबोर थी. उन्होंने अपनी हथेलियां मेरे गालों पर मलीं और वह धीरे-धीरे मेरे कंधों तक आ गए. उनके हाथ रुक ही नहीं रहे थे. पर उन्होंने मेरे स्तनों को जरूर छोड़ दिया. पर अब उनके हाथ मेरे पेट तक पहुंच चुके थे. मेरे पेट और नाभि प्रदेश को पूरी तरह रंगने के बाद वह अपने हाथों को और नीचे ले जाने लगे. उनकी उंगलियां मेरे घाघरे के अंदर प्रवेश कर चुकीं थी पर पैंटी तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपनी उंगलियों को रोक लिया और वापस पेट की तरफ आ गए.

अब उन्होंने मुझे आगे की तरफ घुमा दिया. मैं उनके सामने आ चुकी थी. मेरा शरीर रंग से सराबोर हो चुका था. स्तनों और योनि प्रदेश को छोड़कर सामने से पूरा शरीर रंग से सना हुआ था. मैं अपने हाथों में रंग लेकर उनके चेहरे पर लगाने लगी. उनके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए मुझे एक अलग आनंद की अनुभूति हो रही थी. मेरे मन में इच्छा हुए की मैं उन्हें चूम लू पर मैंने अपने आप को रोक लिया. मैंने उनके गर्दन और सीने पर भी रंग लगाया. अपने कोमल हाथ उनके कुर्ते के अंदर ले जाते हुए मुझे एक अलग अनुभव हो रहा था. इसी दौरान उनके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे . कुछ ही देर में उनके हाथ मेरे नितंबों की तरफ बढ़ रहे थे. मैने अपने हाथों पर लगा हुआ रंग अनायास ही उनके राजकुमार पर न सिर्फ लगा दिया बल्कि कुछ देर तक उसे पकड़ी रह गई फिर उन्हें हैप्पी होली कहकर पीछे हट गयी. . राजकुमार पर रंग लगाते समय मैंने यह महसूस कर लिया था कि वह पूरी तरह तना हुआ है. उन्हें शायद इसकी उम्मीद नहीं थी. मेरे पीछे हटते ही एक बार उन्होंने फिर से मुझे खींच लिया और इस बार मेरे नितंबों के नीचे दोनों हाथ लगाकर मुझे ऊपर उठा लिया गोल गोल घुमाने लगे. मेरे स्तन उनके चेहरे के ठीक सामने थे.

कुछ देर यूं हीं अठखेलियां करने के बाद हम नीचे आ गए. नीचे सारे बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे छोटे रोहन ने बोला

"मानस भैया ने तो छाया दीदी को अपने रंग में सराबोर कर दिया है" उसकी बात बिल्कुल सही थी.

बच्चों की वाणी में भगवान बसते है यह बात सच ही थी.

रोहन ने अपनी पिचकारी से ढेर सारा रंग मेरे ऊपर डाल दिया. मानव द्वारा लगाया गया रंग बहते हुए मेरे शरीर के हर हिस्से पर पहुंचने लगा. कुछ देर रंग खेलने के बाद मानस ने पूरी बाल्टी मेरे सिर पर डाल दी. मैं पूरी तरह भीग गई मुझे हल्की ठंड लगी और मैं छत पर भाग गइ. मेरी चोली और घाघरा बहुत पतला था पानी से भीगने के बाद वह मेरे शरीर में चिपक गया मैं छत पर आ चुकी थी मेरे पीछे-पीछे मानस भी आ गए. मेरे कपड़े मेरे शरीर से चिपके हुए थे मेरे स्तनों का आकार पूरी तरह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. भीगने के बाद मेरा घाघरा मेरी जांघों से चिपक गया था दोनों पैरों के बीच की बनावट स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. यहाँ तक की मेरी पैंटी का रंग और आकार भी दिखाई दे रहा था.

मैं मानस भैया के सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी मेरी नजरे झुकी हुई थी वह मुझे एकटक देखे जा रहे थे धीरे-धीरे वह मेरे पास आ गए उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में ले लिया और कहां...

"छाया मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूं मुझे अपना भाई मत समझना"

मैंने भी इस रिश्ते को सीमा से मुलाकात के बाद ही छोड़ दिया था. मैंने कहा...

" जिस तरह आप सीमा दीदी के भैया थे उसी तरह मेरे भी रहिएगा" और मुस्कुराते हुए मैं नीचे आ गयी.

अगले एक-दो दिनों में उनसे अंतरंग मुलाकात ना हो पायी पर जाते समय मैं उनसे एक बार फिर आलिंगनबद्ध हुई. हमने एक दूसरे को वस्त्रों के ऊपर से ही छुआ और महसूस किया.

मानस भैया के विदा होने से पहले मैंने उनके राजकुमार को भी यह एहसास करा दिया था आखिर आने वाले समय में मेरे पास उसके लिए बहुत कुछ था.

नटखट छाया

मैं वापस अपने हॉस्टल आ चुका था. समय का पहिया तेजी से घूम रहा था मेरे केंद्र बिंदु में अब सिर्फ और सिर्फ छाया थी. छाया की सुंदरता देखकर मेरा मन मंत्रमुग्ध हो गया था उसकी जांघें कितनी कोमल और सुडौल थीं.. मैं अपनी कल्पना में उसकी योनि और नितम्बों को महसूस कर पा रहा था. उसके स्तन किसी परिचय के मोहताज नहीं थे. चोली में बंद होने के बाद भी वह अपनी उपस्थिति सबसे पहले दर्ज कराते थे. छाया की परिकल्पना के लिए आप अबोध सिनेमा की माधुरी दीक्षित को याद कर सकते हैं. मैं मन ही मन छाया को अपनी प्रेमिका मान चुका था.

सीमा से मेरे संबंध में दोस्ती और वासना का महत्व ज्यादा था. राजकुमारी दर्शन और होंटो के चुम्बन के दौरान मुझे उससे कुछ समय तक प्यार की अनुभूति हुई थी और उसके जाने के बाद मेरी आँखों मे आँसू भी आए थे पर छाया के साथ बात अलग थी. में उस पर मर मिटने को तैयार हो रहा था.

समय तेजी से बीत रहा था. छाया 12वी की परीक्षा दे चुकी थी. मेरा तीसरा वर्ष पूरे हो चुका था. मैं छुट्टियों घर आ गया था. अब छाया के समीप रहना मेरी पहली प्राथमिकता थी. कुछ ही दिनों में छाया का रिजल्ट भी आ गया वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई थी. रिजल्ट आने के बाद वह मेरे पास आई और मेरे सीने से लिपट गई. मैंने उससे इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए एक वर्ष तक तैयारी करने के लिए कहा वह मान गयी. मैंने उसे उसकी तैयारी में मदद करने की सहमति दी. इन पूरी छुट्टियों में मैंने छाया को सिर्फ और सिर्फ पढ़ाया उसे कामुक परिस्थितियों से बिल्कुल दूर रखा और स्वयं पर भी अपना नियंत्रण कायम रखा. जब भी मेरी छुट्टियां होतीं मैं छाया के पास आ जाता इस दौरान कामुकता सिर्फ मेरे मन जन्म लेती पर मैं उसे वहीं दफन कर देता,

इसी बीच एक दुर्घटना घट गई मेरे पापा हमें छोड़ कर चले गए. दीपावली के पहले हुई इस घटना ने मुझे और छाया को झकझोर दिया था. मैं दीपावली की छुट्टियों पर घर आया मैंने माया जी और छाया को सांत्वना दी तथा उन्हें संयम बरतने को कहा. घर में पैसों की कोई कमी न थी परंतु माया जी और छाया को अगले कुछ महीनों तक अकेले ही रहना था. मैंने छाया को अपनी तैयारी जारी रखने के लिए प्रेरित किया और वापस कॉलेज लौट आया.

मेरी इंजीनियरिंग खत्म होने के पहले ही बेंगलुरु की एक बड़ी कंपनी में मेरी नौकरी लग चुकी थी. मुझे 2 महीने बाद वहां जाना था मेरी कंपनी के द्वारा मुझे एक पूर्णतयः सुसज्जित दो कमरे का आवास दिया गया था. मैंने उस आवास को देखा तो नहीं था पर अपने वरिष्ठ साथियों से उसके बारे में सुना जरूर था. उस घर में रहने के लिए सिर्फ अपने कपड़ों की आवश्यकता थी बाकी उस घर में सभी साजो सामान उपलब्ध थे. इन 2 महीनों की छुट्टियों में मैं अपने घर वापस आ चुका था . अपनी नौकरी लगने के उपलक्ष में मैंने माया जी के लिए एक सुंदर साड़ी तथा छाया के लिए एक बहुत ही सुंदर गुलाबी रंग का लहंगा और चोली खरीदा था. यह लहंगा वास्तव में बहुत सुंदर था. मैंने छाया के लिए अपने अंदाज से अधोवस्त्र भी खरीदे थे.

जब उपहार लेकर मैं वापस गांव आ गया तो छाया वह लहंगा देखकर बहुत खुश हुई और मेरे सीने से लिपट गई. छाया की इंजीनियरिंग की परीक्षा 15 दिनों बाद थी. मैं छाया के साथ दिनभर रहकर उसकी पढ़ाई में मदद करता वह लगभग मेरे कमरे में ही रहती. माया जी मेरे आने से बहुत खुश थी. और छाया की इस तन्मयता से मदद करते देखकर बहुत खुश होती. शायद मैंने अपने समय पर भी इतनी मेहनत नहीं की थी जितनी इस समय कर रहा था.

छाया अपनी इंजीनियरिंग की परीक्षा दे आई थी. वह बहुत खुश थी उसे अच्छे नंबरों से पास होने की पूरी उम्मीद थी. परीक्षा खत्म होने के बाद वह पूर्णता तनाव मुक्त हो गई थी. अगले दिन उसने स्वयं आकर मेरा कमरा जो लगभग पुस्तकालय बना हुआ था उसे बहुत करीने से साफ किया. उसने सारी किताबें उठाकर एक बक्से में डाल दी. वह अब भी मेरे साथ समय गुजारती थी और अब मुझसे खुलकर बात करती थी. उसने मुझसे अपने कॉलेज के अनुभवों के बारे में पूछा फिर अचानक सीमा की बात छेड़ कर उसने मुझसे कहा

"सीमा दीदी छुपन छुपाई खेल को बहुत याद करती थी." मैं उसकी बात सुनकर शरमा गया

" उन्होंने शायद आपको कुछ गुरु दक्षिणा भी दी थी बताइए ना उन्होंने क्या दिया था"

मैं निरुत्तर था.

कभी मुझे लगता कि वह मुझे छेड़ रही है. शायद सीमा ने उसे सब कुछ खुल कर बता दिया था. पर मैं इस पर बात करने की स्थिति में नहीं था. कुछ दिनों बाद छाया का इंजीनियरिंग का रिजल्ट आ गया वह अच्छे नंबरों से पास हुई थी. माया जी और मैं बहुत खुश थे वह मेरे पास आई और मेरे सीने से लिपट गई मैंने पूछा ...

"अब तो खुश हो ना?"

वह दोबारा मेरे गले से लिपटी और मेरे गालों पर चुंबन देकर कहा

"सब आपके कारण ही हैं" मैं मन ही मन प्रसन्न हो गया था. अचानक मेरे मुंह से निकला

"छाया मुझे क्या मिलेगा" उसने अपनी गर्दन झुका ली और मुस्कुराते हुए बोली "राजकुमारी दर्शन" और पीछे मुड़कर हंसते हुए भाग गई.

जन्मदिन और अनूठा उपहार.

2 दिन बाद छाया का जन्मदिन था. वह १९ वर्ष की होने वाली थी. माया जी ने मुझसे राय कर उस दिन घर में पूजा का आयोजन रखा था. इस शुभ अवसर पर माया जी ने मेरे द्वारा लाई गई साड़ी पहनी थीं. छाया भी मेरे द्वारा लाये खूबसूरत गुलाबी रंग का लहंगा चोली पहनी. माया जी ने मेरे लिए भी एक सफेद रंग का मलमल का कुर्ता मंगाकर रखा था. छाया आज पूजा का केंद्र बिंदु थी. वह अत्यंत खूबसूरत लग रही थी आस पड़ोस की स्त्रियों ने उसे खूब अच्छे से तैयार किया था. उसके केस खुले और व्यवस्थित थे. मुझसे नजर मिलते ही वह शरमा गई. पूजा खत्म होने के पश्चात सभी मेहमान अपने अपने घर वापस चले गए. माया जी भी थक चुकी थी वह भी भोजन करने के उपरांत अपने कक्ष में विश्राम के लिए चली गई. मैं अभी भी नीचे था व्यवस्था में शामिल अपने दोस्तों को विदा करने के बाद मैं अपने कमरे में आया.

मेरे कमरे से मनमोहक खुशबू आ रही थी.

मेरे बिस्तर पर सफेद चादर बिछी हुई थी. और उस पर मेरी छाया लाल तकिए पर सर रख कर सो रही थी. मैं उसे देखते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ गया. छाया मेरी तरफ करवट ली हुई थी. चोली में बंद उसके दोनों स्तन उभरे हुए दिखाई पड़ रहे थे. उसकी दोनों जांघें लहंगे के पीछे से अपने सुडोल होने का प्रमाण दे रहीं थीं. उसका लहंगा थोड़ा ही ऊपर था उसके पैर में लगा हुआ आलता और पाजेब अत्यंत मोहक लग रहे थे. मैं इस खूबसूरती को बहुत देर तक निहारता रहा.

अपने स्वभाव बस मैं छाया के लहंगे को ऊपर उठाने की चेष्टा करने लगा. मैंने उसके लहंगे को घुटनों तक उठा दिया. लहंगे को इससे ऊपर उठाना संभव नहीं हो पा रहा था. तभी छाया करवट से अपनी स्थिति बदलते हुए पीठ के बल आ गई. कुछ देर बाद मैंने उसके लहंगे को थोड़ा और ऊपर किया. अब लहंगा उसकी जांघों तक आ गया. लहंगे को इसके ऊपर ले जाने में मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. बिना छाया की अनुमति के मेरे लिए यह करना उचित नहीं था. छाया अभी भी शांत थी परंतु उसकी धड़कनें तेज थी. मैंने धड़कते हृदय से छाया पुकारा. उसने एक पल के लिए अपनी आंखें खोली मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए दोनों हथेलियों से अपनी आंखें बंद कर लीं मानो वह राजकुमारी दर्शन के लिए अपनी मौन स्वीकृति दे रही हो.

मेरे प्रसन्नता की सीमा न रही मैं छाया के चेहरे के पास गया और उसे गाल पर चुंबन दिया वह मुस्कुरा रही थी. मैंने उसकी चोली के धागों को खोल दिया. स्तनों के आजाद होने से चोली का ऊपरी भाग एसा लग रहा था जैसे उसने स्तनों को सिर्फ ढका हुआ है. मैंने एक झटके में उसे भी हटा दिया छाया के नग्न और पूर्ण विकसित स्तन मेरी नजरों के सामने थे. मेरे मन में उन्हें छूने की तीव्र इच्छा हुई पर मैं इस खूबसूरत पल का धीरे धीरे आनंद लेना चाह रहा था. छाया के दोनों स्तन उसकी धड़कनों के साथ थिरक रहे थे. मैं छाया के लहंगे की तरफ बढ़ा और कमर में बंधी लहंगे की डोरी को ढीला कर दिया. छाया के पैरों की तरफ आकर मैंने लहंगे को नीचे की तरफ खींचने की कोशिश की परंतु लहंगा छाया के नितंबों के नीचे दबा हुआ था. छाया स्थिति को भांप कर अपने अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर उठाया और मैंने लहंगे को उसकी जांघों के रास्ते खींचते हुए बाहर निकाल दिया. छाया ने सुर्ख लाल रंग की मेरे द्वारा लाई गई पेंटी पहनी हुई थी. मैंने उसके खूबसूरत लहंगे को अपनी टेबल पर रख दिया. मेरी छाया लाल रंग की पेंटी में अपने खुले स्तनों के साथ लाल तकिए पर अपना सर रखे हुए अधखुली आंखों से मेरी प्रतीक्षा कर रही थी.

मैं छाया के चेहरे के पास गया तथा उससे राजकुमारी दर्शन की अनुमति मांगी. उसने मेरे गालों को पकड़कर मेरे होठों पर चुंबन कर दिया. मैं इस प्रेम की अभिव्यक्ति को बखूबी समझता था. मैंने बिना देर किए उसके होठों को अपने होठों से चूसने लगा. उसके होंठ इतने कोमल थे कि मुझे डर लग रहा था कहीं उसके होठों से रक्त ना आ जाए. इस दौरान मेरे हाथ बिना उसकी अनुमति लिए उसके स्तनों को सहला रहे थे.

मैंने उसके होंठों से अपने होंठ हटाए. मेरे होठों पर रक्त देखकर उसने अपनी उंगलियों से उसे पोछने की कोशिश की. उसकी कोमल उंगलियों के होठों पर आते ही मैंने उन्हें अपने मुंह में लेकर चूसने लगा. उसने मुस्कुराकर अपनी उंगलियां वापस खींच ली.

राजकुमारी दर्शन का वक्त आ चुका था मैं उठकर उसके दोनों पैरों के बीच आ गया. मैंने अपने दोनों हाथों की उंगलियां उसकी पैंटी में फसाई और धीरे-धीरे नीचे की तरफ खींचने लगा. छाया ने एक बार फिर अपने नितंबों को ऊपर उठाया. और पेंटी जांघों से होते हुए घुटनों तक आ गई. क्योंकि मैं दोनों पैरों के बीच बैठा था इसलिए पेंटी का बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. छाया ने अपने दोनों पैर छत की तरफ उठा दिए. और मैंने उसकी पैंटी को धीरे-धीरे बाहर निकाल दिया. मैंने अपनी आंखें बंद की हुई थीं. मैंने छाया से कहा