छाया - भाग 05

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अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एवं उभरता प्रेम.
5k words
4.4
1.4k
00

Part 5 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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छाया सीमा की गहराती दोस्ती.

कुछ दिनों से मैं बहुत उदास थी. मुझे सीमा दीदी की याद आई उन्हें अपने आने की सुचना उनके आफिस में फ़ोन करके दे दी. रविवार को मैं निर्धारित समय पर उनके घर पहुच गयी. वह घर पर ही थी

"आओ छाया आज मैं बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी"

"जाने दीजिए मैं आ गई ना"

हम दोनों अंदर आ गये. मैं उनके लिए बहुत सारी चाकलेट लायी थी. वह बहुत खुस हुईं और मुझे गले से लगा किया. हम दोनों के ही स्तन पूर्ण रूप से उन्नत थे गले लगते ही सबसे पहले उनकी ही मुलाकात हुई. मैं और सीमा दीदी दोनों हँस पड़े. कुछ समय बाद उन्होंने पूछा

"छाया क्या खाओगी"

"कुछ भी बहुत भूख लगी है"हम दोनों ने झटपट कुछ खाने की सामग्री बनाई और बिस्तर पर बैठ कर खाना खाने लगे. कुछ ही देर में बाते करते करते हमें नींद आने लगी और मैं बिस्तर पर ही लेटने लगी. उन्होंने कहा..

"अरे अपनी जींस उतार दो मेरा पायजामा पहन लो"

"नहीं दीदी ठीक है"

"अरे क्या ठीक है"

"इतनी चुस्त जींस में क्या तुझे नींद आएगी"

मैं शर्मा रही थी. पर सीमा तुरंत जाकर एक सफेद कलर का पजामा ले आइ और मुझ पर हक जताते हुए बोली "खुद खोलेगी या मैं खोलू."मैंने उनकी बात मान ली और पैजामा लेकर बाथरूम में जाने लगी. उन्होंने कहा "यही बदल लो मैं कौन सा तुम्हें खा जाऊंगी"

मुझे फिर भी शर्म आ रही थी.

"अच्छा लो मैं आंखें बंद कर लेती हूँ. और उन्होंने सच में आंखें बंद कर लीं. मैंने अपनी जींस उतार दी और उनका दिया पायजामा पहन लिया. हम लोग फिर से बातें करने लगे. बातों ही बातों में मैंने उनके दोस्त सोमिल के बारे में पूछा वह थोड़ी रुवासीं हो गयीं. उन्होंने बताया

"गांव से आने के बाद मैं सोमिल के साथ दो वर्षों तक मिलती-जुलती रही पर पिछले दो ढाई सालों से उसका कुछ अता पता नहीं है. मैंने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की पर मैं सफल नहीं हो पाई. उसके माता-पिता अब उस पते पर नहीं रहते. मैं प्रयास कर कर के थक गइ अब उससे मुलाकात होगी भी या नहीं यह मैं नहीं जानती. पर मैं उसे बहुत याद करती हूँ."

मैंने स्थिति को सामान्य करते हुए हंसते हुए पूछा..

"सीमा दीदी आपका कौमार्य अभी तक बचा है या सोमिल ने ले लिया"

वह मुस्कुरा पड़ी

"तुझे बड़ा मेरे कौमार्य की पड़ी है. तुम खुद इतनी सेक्सी और खूबसूरत हो गई हो किब मुझे लगता है कि तुम्हारी राजकुमारी अब रानी बन चुकी होगी"

मैं उनके इस पुराने संबोधन पर हंस पड़ी. उनके इन्ही संबोधनों ने कुछ समय पहले तक मानस और मेरे संबधों को जीवंत कर रखा था. मैंने एक बार फिर पूछा

"क्या सच मे आपने अभी तक अपना कौमार्य बचा कर रखा है"

वह हंस पड़ी और कहा..

"तुम्हें देखना है"

"दिखाइए"मेरा कौतूहल चरम पर था. मैंने आज तक अपनी राजकुमारी के अलावा किसी और की वयस्क राजकुमारी नहीं देखी थी. अपनी राजकुमारी को भी मैंने सिर्फ आईने में देखा था. मुझे राजकुमारी की गुफा देखने की बड़ी तीव्र इच्छा थी. मैं देखना चाहती थी की कौमार्य की झिल्ली किस प्रकार दिखाई देती है. मैं अपनी उत्सुकता ना रोक पाइ और सीमा दीदी से कहा...

"क्या मैं आपकी कौमार्य झिल्ली देख सकती हूं"वह हसीं और बोली

"तुम्हारी उत्सुकता आज भी वैसी ही है"और यह कह कर अपने पजामे को ढीला करने लगीं. कुछ ही देर में उनका पजामा जमीन पर पड़ा था. उनकी गोरी और सुडौल जांघे देखकर मुझे इर्ष्या हो रही थी. उनका रंग गेहुआ था पर जांघों के पुष्ट उभार उन्हें एक अलग किस्म की खूबसूरती प्रदान कर रहे थे. उन्होंने काले रंग की पैंटी पहनी हुई थी. मेरे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने अपनी पेंटी उतारना शुरू कर दिया कुछ ही देर में वह कमर के नीचे नंगी हो गयीं थीं. उन्होंने बिना मुझसे पूछे बिना मेरी कमर से अपनी दी हुई सफेद पजामी उतारना शुरू कर दी. मैं अब धीरे-धीरे नंगी हो रही थी उन्होंने मेरी लाल पैंटी को भी उतार दिया.

हम दोनों को नग्न होने का कुछ ऐसा विचार आया कि हम दोनों ने बिना बात किए एक दूसरे का टॉप उतारना शुरू कर दिया. मैं आज कई महीनों बाद नंगी हो रही थी मानस से दूरियाँ बढ़ने के बाद यह पहली बार हो रहा था. इतना सब होने के बाद अकेले हम दोनों के ब्रा क्या करते उन्होंने भी हमारा साथ छोड़ दिया अब हम दोनों पूर्णतया नंगे थे. हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर को बहुत ध्यान से देखें सीमा दीदी का तो पता नहीं पर मैंने किसी वयस्क लड़की को आज पहली बार नंगा देखा था. और वह भी मेरी सीमा दीदी उनके स्तन अत्यंत खूबसूरत थे. उनका रंग मुझसे जरूर सावला था पर उनके पुष्ट शरीर के आगे मुझे मेरी खूबसूरती कम लगती थी. हूम दोनों के शरीर की परिकल्पना ले लिए आप मुझे "१९४२ एक लव स्टोरी की मनीषा कोइराला "( जैसा मानस मुझे कहते हैं) और आज की जेक्लीन फर्नाडिस से सीमा दीदी की तुलना कर सकते हैं.

सीमा तो मुझे देखकर मंत्रमुग्ध हो गइ थी. मैं इतनी हष्ट पुष्ट तो नहीं थी पर अत्यंत कोमल थी. उन्होंने मुझे आलिंगन में ले लिया और बोली यदि मैं लड़का होती तो तुम्हारे जैसी नवयुवती के दर्शन कर धन्य हो जाती. इतना कहकर उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मेरी पीठ को सहलाने लगी. हम दोनों के स्तन आपस में टकरा रहे थे जिसका आनंद हम दोनों के चेहरे पर देखा जा सकता था. धीरे धीरे हमारे हाथ एक दूसरे के नितंबों को भी सहलाने लगे. हमारी जांघे एक दूसरे में समा जाने के लिए बेकरार थी. सीमा दीदी मेरे गालों पर लगातार चुम्बनों की बारिश कर रही थी मैंने भी उनका साथ दिया. कुछ ही देर में हम दोनों पूरी तरह उत्तेजित हो गए थे. मैं सीमा दीदी के पैरों के बीच आ गइ उन्होंने अपनी दोनों जांघे फैला दी मेरे सामने उनकी राजकुमारी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. राजकुमारी के होंठो पर हुआ प्रेम रस अत्यंत सुंदर लग रहा था. सीमा दीदी ने कहा

"लो देख लो जो तुम्हें देखना है"

मैंने कांपती उंगलियों से उनकी राजकुमारी के होठों को फैलाया. अंदर अद्भुत नजारा था चारों तरफ गुलाबी रंग की चादर फैली हुई थी. अंदर उनकी मांसल राजकुमारी अत्यंत खूबसूरत लग रही थी. मैंने अपनी दोनों उंगलियां राजकुमारी के मुख में डालकर उसे फैलाने की कोशिश की पर मुझे कुछ विशेष दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने उसे और फैलाने की कोशिश की ताकि उनकी कौमार्य झिल्ली को देख सकूं पर मैं इसमें सफल न हो सकी. मैंने अपनी उंगलियां और अंदर की. सीमा दीदी चीख पड़ी और बोलीं....

"छाया बस"मैं समझ गई कि मेरी उंगलियां उनकी कौमार्य झिल्ली तक पहुंच चुकी हैं. मैंने एक बार फिर राजकुमारी के मुख को फैलाया मैंने देखा की राजकुमारी का मुख आगे जाकर सकरा हो गया था. शायद यही उनकी कौमार्य झिल्ली थी. राजकुमार को इसके आगे जाने के लिए इस सकरे रास्ते की दीवार को तोड़ना जरूरी था.

सीमा दीदी की राजकुमारी इस छेड़छाड़ से अत्यंत उत्तेजित हो गई थी. मैंने अपनी हथेलियों से उनकी राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उनकी राजकुमारी में कंपन उत्पन्न होने लगे थे. उसके कम्पन और प्रेम रस की धार ने मुझे यह एहसास करा दिया कि वह स्खलित हो चुकी हैं. उन्होंने मुझे अपने आगोश में फिर से ले लिया. कुछ देर शांत रहने के बाद मैंने अपनी जांघे फिर उनकी जांघों में घुसा दी वह समझ गई कि मेरी राजकुमारी भी स्खलित होना चाहती है. उन्होंने मेरे स्तनों को अपने मुंह में ले लिया तथा अपने हाथ मेरी राजकुमारी के ऊपर ले गयीं. वो राजकुमारी को सहलाने लगी थोड़ी ही देर में मैं भी स्खलित हो गई. हम दोनों इसी प्रकार एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए थोड़ी देर के लिए सो गए. उठने के बाद हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और अपने कपडे पहने. सीमा दीदी ने मुझे चाय पिलाई और मैं वापस अपने घर के लिए चल दी.

सीमा दीदी और मेरे बीच बना यह संबंध आने वाले समय में और मधुर होते गए. हम अक्सर एक-दूसरे से मिलते और एक दूसरे की बाहों में वक्त गुजारते सीमा के साथ मैंने कई बार इसी तरह एकांत में समय गुजारा और हर बार सीमा से कुछ नया सीखने को मिलता.

मानस से दूरियां बढने के बाद मैं सीमा के साथ ज्यादा वक्त गुजारती पिछले कुछ महीनों से मानस ने मेरे शरीर को नहीं छुआ था. अब सीमा के साथ ही मेरी काम पिपासा शांत हो रही थी. अभी तक मैंने सीमा को मैंने अपने और मानस के संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं बताया था.

छाया वापस दोस्त बनते हुए.

वक्त का पहिया घूमता हुआ एक दिन हमारे लिए खुशी ले आया. मैं घर पर अकेला था छाया कॉलेज से आई वह बहुत खुश थी. उसके चेहरे की चमक उसकी प्रसन्नता की परिचायक थी. मैंने उससे पूछा

"क्या बात है बहुत खुश लग रही हो"

"आज कॉलेज में एक बड़ी कंपनी आई थी उसने प्लेसमेंट के लिए टेस्ट लिया था मैं उस टेस्ट में अव्वल आई हूं. कल हम लोगों का फाइनल इंटरव्यू है"यह कहकर वह बिना कुछ कहे मुझसे आकर लिपट गई. मैंने उसकी पीठ पर थपथपाई और उसे अपने से अलग करते हुए बोला

"मुझे तुम पर गर्व है. तुमने अपनी पढ़ाई के लिए जो मेहनत की है अब उसका परिणाम सामने आ रहा है"

"मुझे कल होने वाले इंटरव्यू के बारे में कुछ बताइए आपने हमेशा मेरा साथ दिया है और मुझे यहां तक ले आए मुझे उम्मीद है कि आप का मार्गदर्शन कल भी मेरा साथ देगा"

वह बहुत खुश थी और एक बार फिर मेरे गले से लिपट गई. पर आज आलिंगन में कहीं भी कामुकता नहीं थी. वह कुछ देर मुझसे यूं ही लिपटी रही फिर अलग होने के बाद उसने कहा

"क्यों ना आज हम लोग आज खाना बाहर खाएं". मैं उसकी बात कभी नहीं टालता था. मैंने कहा ...

"ठीक है"

हम माया आंटी के आने का इंतजार करने लगे. काफी दिनों के बाद हमारी शाम अच्छी बीत रही थी. छाया के चेहरे पर दिख रही खुशी से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने हमारे वियोग से उत्पन्न दुःख पर विजय प्राप्त कर ली हो और आने वाले समय में वह खुशियों के साथ जीना सीख रही हो.

[ मैं छाया ]

अगले दिन मेरा इंटरव्यू था. मैं सबका आशीर्वाद लेकर कॉलेज पहुची. इंटरव्यू समाप्त होने के कुछ ही समय पश्चात सेलेक्ट किए गए प्रत्याशियों की सूची नोटिस बोर्ड पर टांग दी गई. मेरा नाम सबसे ऊपर था. मैं अपना नाम देखकर बहुत खुश हुई. मुझे मानस की याद आई. मैं इस दुनिया में सबसे ज्यादा शायद मानस से ही प्रेम करती थी. मैं जितनी जल्दी हो सके अपने घर जाना चाहती. मेरे सेलेक्ट होने की सबसे ज्यादा खुशी मानस को होती. आखिर आज मैं जो कुछ भी थी मानस की बदौलत थी.

घर पहुंच कर मैंने अपने सेलेक्ट होने की सूचना दी मानस ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया वह जब भी खुश होते थे मुझे अपने आगोश में लेकर कर उठा लेते थे और मुझे गोल गोल घुमाते. हमारे पेट चिपके हुए हुए थे और मेरे पैर बाहर निकले हुए . थोड़ी देर घुमाने के बाद उन्होंने मुझे छोड़ा. मुझे हल्का हल्का मुझे चक्कर आ रहा था. मैं बहुत खुश थी. उन्होंने मुझे फिर अपने आगोश में ले लिया और मेरे गालों पर एक चुम्मी दे दी. यह बहुत दिनों बाद हुआ था. हम दोनों घर पर अकेले ही थे मैंने भी प्रतिउत्तर में उनके गालों पर चुंबन दे दिया. एक पल के लिए मैं भूल गइ कि मानस अब मेरे प्रेमी नहीं थे.

पर उद्वेग में हुई क्रिया आपके नियंत्रण में नहीं होती हम स्वभाविक रूप से एक दूसरे को प्रेम करते थे आज इस खुशी के मौके पर एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए हम अपनी वर्तमान स्थिति भूल चुके थे.

राजकुमार अपनी राजकुमारी से मिलने के लिए बेताब हो रहा था और इसका तनाव मैंने अपने पेट पर महसूस कर लिया था. मैं उनसे दूर हटी और बोली

"मेरी हर सफलता के पीछे आपका ही योगदान है. आप मेरे गुरु हैं:

वो भी मजाक में बोले

"फिर मेरी गुरु दक्षिणा कहां है"

मैं कुछ बोली नहीं और शरमाते हुए उनके पास चली गयी. जाने मुझे क्या सूझा मैंने राजकुमार को अपनी हथेलियों के बीच ले लिया. मैंने कहा

"अब मैं आपकी मंगेतर या प्रेयसी नहीं हूं पर बहन भी नहीं हूँ. मैं अपने राजकुमार का ख्याल आगे भी रखती रहूंगी यही मेरी गुरु दक्षिणा है"मैं खुश थी.

माँ के आने के बाद हम सब भगवान के मंदिर गए और सबने भगवान से मेरे उज्जवल भविष्य की कामना की. रात्रि में मैं समय मानस के पास गयी और हम दोनों ने कसी दिनों बाद बाद एक दूसरे की प्यास बुझाय. पर आज हमारी कामुकता में एक अजब सी सादगी थी. हम दोनो ने सिर्फ अपने हाँथो से ही एक दुसरे के गुप्तांगों की सहलाया और स्खलित हो गए. हमारे प्रेमरस भी हमारे कपड़ों में लगे रह गए.

[मैं मानस]

विधि का यही विधान है हर दुख की घड़ी के बाद सुख की घड़ी आती है. मुझसे वियोग के बाद उसके चेहरे पर जो कष्ट या दुख आए थे वह धीरे धीरे छट रहे थे. एक नई छाया उभर कर सामने आ रही थी जो पूर्णतयः परिपक्व थी.

माया जी का पश्चाताप

[मैं माया]

छाया की नौकरी लगने के दुसरे दिन मैं शर्मा जी की बाहों में संभोग के पश्चात नग्न लेटी हुई थी . शर्मा जी ने अपना चरमसुख प्राप्त कर लिया था परंतु मेरा चरमोत्कर्ष कुछ दिनों से नहीं हो रहा था.

शर्मा जी ने पूछा

"माया जी आजकल आप उदास रहती हैं और संभोग के समय भी आप में उत्तेजना कम प्रतीत होती है."

"मुझे आत्मग्लानि है"

"पर क्यों आपने तो ऐसा कुछ नहीं किया"

"नहीं मुझे इस बात का दुख है कि मैंने छाया को मानस से अलग कर दिया और आपके साथ इस तरह संभोग सुख का आनंद ले रही हूँ. जब यह विचार मेरे मन में आता है तो मेरी उत्तेजना कम हो जाती है."

"हां यह बात तो है. जब से मानस और छाया अलग हुए हैं मेरे मन में भी दुख है. पिछले कई दिनों से वह दोनों अपने जीवन का अनूठा सुख ले रहे थे. बिना संभोग किये निश्चय ही उन दोनों ने साथ में उन खुबसूरत पलों को जी भर कर दिया होगा."

"अब मैं क्या करूं मैं समझ में नहीं पा रही हूँ."

"ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं? तुमने छाया से बात की क्या?"

"क्या बात करूं मैं उससे. जब मानस और उसका विवाह टूट ही गया है तो अब वो मानस के पास क्यों जाएगी? मैं उससे यह तो नहीं कह सकती कि तुम अपनी और मानस की यौन इच्छाओं की पूर्ति वैसे ही करती रहो जैसे करती आई थी."

"हां यह बात तो सही है. अब वह दोनों भविष्य में जब कभी एक नहीं हो सकते. उनका इस तरह साथ रहना उचित नहीं होगा."शर्मा जी भी चिंतित थे.

"पता नहीं छाया के मन में क्या चल रहा होगा? उससे पूछ पाने की मेरी हिम्मत नहीं है."

अगली सुबह मानस के पीठ में खिचाव था. छाया और शर्मा जी बाहर गए हुए थे. मैं मानस को देखकर द्रवित हो गयी. वह स्नान करने जा रहा था.

मैं अपने पुराने दिनों के बारे में सोचने लगी जब मैंने पहली बार मानस का वीर्य अपने हाथों में से छुआ था. मानस का वीर्य अपने हाथों से छूने के बाद कुछ दिनों तक वह मेरे ख्वाबों का शहजादा था. मैंने अपने मन में उसे लेकर कई प्रकार की कामुक कल्पनाएं अवश्य की थी परंतु उसके साथ इस तरह की बातें करना और उसे उकसाना मुझे पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि वह उस समय एक किशोर था .

मैंने कुछ समय इंतजार करने की जरूरत होती पर समय बीतता गया वह छाया को पढ़ाता और दोनों साथ रहते मुझे उसके साथ कामुक होने में असहजता महसूस होती पर एकांत में मैंने हस्तमैथुन के लिए उसका सहारा अवश्य लिया था.

बेंगलुरु आने के बाद मैंने यह महसूस किया उसकी और छाया की दोस्ती हो चली थी. मुझे यह तो नहीं पता था कि दोनों अन्तरग कार्यों में लिप्त थे पर अपनी बेटी के साथ घूम रहे नवयुवक के से मैं इस तरह अन्तरंग सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी. अततः मैंने मानस को लेकर पनपती कामुकता का परित्याग कर दिया.

छाया और मानस को एक साथ नग्न देखने के बाद एक बार फिर मुझमे कामुकता ने जन्म ले लिया. मानस का नग्न और मांसल शरीर और बेहद खुबसूरत लिंग देखने के बाद मेरी योनि अक्सर गीली रहती और मैं अनजाने पुरुष के साथ संभोग के लिए लालायित रहती.

शर्मा जी से मुलाकात के पश्चात ही मेरी तृप्ति हुयी थी.

छाया की नौकरी लग जाने के पश्चात मेरा मन ख़ुशियों से भर गया था . मैंने और मेरी छाया ने जीवन की ढेर सारी ख़ुशियाँ पा लीं थीं। हम मानस के साथ खुश तो कई वर्षों से थे पर अब मेरी बेटी के नौकरी पाने के बाद मेरे मन में गजब का उत्साह था। इन सभी खुशियों के पीछे सिर्फ एक ही इंसान था मानस।

पिछले दो-तीन महीनों से छाया और मानस की नजदीकियां खत्म हो गयी थी. छाया अब अपने कमरे में रहती वह मानस के कमरे में नहीं जाती थी मुझे यह बात जानकर दुख होता कि जिस मानस ने छाया के साथ न जाने कितनी रातें नग्न होकर गुजारी होंगी उसे छाया के बिना कैसा महसूस होता होगा। मैंने उन दोनों को कामदेव और रति के रूप में एक दूसरे की बाहों में नग्न देखा था मुझे वह दृश्य कभी नहीं भूलता। छाया जैसी सुकुमारी और कोमलांगी के साथ नग्न हो कर कई रातें के बिताने के पश्चात अचानक मानस को जिस विरह का सामना करना पड़ता होगा यह मैं समझ सकती थी. मैंने अपने जीवन में वियोग का इतना दंश झेला था कि मुझे इन दो-तीन महीनों में ही मानस पर दया और करुणा आ रही थी।

मैं बाथरूम में नहाते समय एक बार फिर मानस के बारे में सोचने लगी। मैंने उसके एकांत को मैंने आनंद में बदलने की सोची यह कैसे होगा मैं नहीं जानती थी पर मैं उसके लिए कुछ ना कुछ करना चाहती थी। मेरी उम्र उससे इतनी भी ज्यादा नहीं थी की उसने कभी मेरे बारे में कुछ गलत ना सोचा हो।

इतना तो मैं दृढ़ प्रतिज्ञ थी कि मैं उसके साथ संभोग नहीं कर सकती थी परंतु मैंने अपने मन में कुछ सोच रखा था और आज मैं उसे अमल में लाना चाहती थी। नहाने के पश्चात मैंने अपनी सबसे सुंदर नाइटी पहनी जिसमें मेरा शरीर तो पूरा ढका हुआ था परंतु शरीर के उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे।

बेंगलुरु आने के बाद मेरे रंग और चहरे पर निखार भी आ चुका था। यह सब मानस की ही देन थी और आज मैं इस सुंदरता का कुछ अंश उसे देना चाहती थी। मैं पूरी तरह तैयार होकर हॉल में आ गयी। मैंने एक कटोरी में तेल गर्म किया और मानस के कमरे की तरफ चल पड़ी।

[ मैं मानस]

बाथरूम से नहाकर निकलने के बाद मुझे अपनी पीठ का दर्द बढ़ता हुआ लगा मैंने मुश्किल से अपने शरीर को पोछा और बिस्तर पर आकर तोलिया पहने हुए ही लेट गया। मैं पेट के बल लेटा हुआ था । माया आंटी कब अंदर आई मैं देख नहीं पाया। मेरे बिल्कुल पास आने के बाद उन्होंने मेरी नंगी पीठ को छुआ और बोला

"मानस कहां पर दर्द है।"

मैं उनकी तरफ मुड़ा और इससे पहले मैं कुछ बोल पाता मेरा ध्यान उनकी नाइटी पर चला गया। यह नाइटी उनके ऊपर खूब खिल रही थी। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे माया जीअपनी उम्र से आंख मिचोली कर युवा हो गयीं थीं।

मेरा ध्यान कई दिनों बाद उनके स्तनों पर चला गया उनके स्तन उभरे हुए थे उनका आकार निश्चय ही छाया से बड़ा था। ( मेरे पास तुलना करने के लिए सिर्फ छाया ही थी सीमा से उनकी तुलना बेमानी थी मैंने उसे कई वर्ष पहले देखा था) उन्हें इस तरह देखकर मैं कुछ देर निशब्द रहा फिर मैंने अपनी पीठ पर हाथ लगाकर वह जगह दिखाई जहां दर्द हो रहा था.

उन्होंने अपने हाथों में तेल लगा कर उस जगह पर हल्की मालिश शुरू कर दी मुझे अच्छा लगा मैंने अपना सर वापस तकिये पर रख दिया और उनके कोमल हाथों के स्पर्श को अपनी पीठ पर महसूस करने लगा. उनका स्पर्श मेरे शरीर पर इस तरह शायद पहली बार हो रहा था. उनके हाथों की कोमलता छाया जैसी तो नहीं थी पर शायद उस से कम भी नहीं थी. उनके हाथ मेरी पूरी पीठ पर घूम रहे थे मैं इस अद्भुत आनंद में खोया हुआ था. अभी तक मुझे किसी उत्तेजना का एहसास नहीं हुआ था मैं अपनी पीठ दर्द में मिल रहे आराम से ही खुश था पर मैं मन ही मन माया आंटी के बारे में सोच जरूर रहा था कि आज वह इस तरह कैसे मेरे कमरे में आ गयीं. मैंने उनके हाथ अपनी कमर पर महसूस किया उनकी उंगलियां तोलिए के अंदर जाकर मेरे कमर के निचले भाग को मसाज दे रही थी. मैंने उनके हाथों को नहीं रोका कुछ समय पश्चात वह मेरे पैरों में भी तेल लगाने लगीं. उनमें यह कला अद्भुत थी उनकी उंगलियों का दबाव पैरों पर हर जगह पड़ता और मैं आनंद में खोया चला जा रहा था. उनके हाथ जब मेरी जाँघों की तरफ बढ़ते तब मुझे थोड़ा अजीब एहसास होता. मेरे राजकुमार ने अब मुझ से बगावत करना शुरू कर दिया था. वह छाया का गुलाम था पर शायद इन दो-तीन महीनों के एकांतवास से वह दुखी हो गया था. आज उसके आस पास नारी के कोमल हाथों की ठंडी बयार मिल रही थी इसीलिए वह उत्तेजित हो रहा था.

मुझे पेट के बल लेट होने की वजह से उसे व्यवस्थित करना अनिवार्य था अन्यथा दर्द बढ़ता ही जा रहा था मैंने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसे व्यवस्थित करने की कोशिश की. शायद माया आंटी में मेरी इस हरकत को देख लिया था उन्होंने कुछ कहा तो नहीं पर उनके हाथ मेरी जांघों पर और अंदर तक पहुंच गए थे. कुछ ही देर में उन्होंने अपने हाथों से मुझे पीठ के बल आने के लिए इशारा किया.

मैं शर्मा रहा था पर मैं पीठ के बल आ गया. मुझे माया आंटी को इस तरह मुझे मालिश करते हुए देखने में शर्म आ रही थी. परंतु मैं राजकुमार की उत्तेजना के अधीन था. मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं और सब कुछ नियति पर छोड़ दिया.

बंद आंखों में कल्पना को नई ऊंचाइयां मिलती हैं. मैंने आंखें बंद कर माया आंटी से नजरे चुराई थी पर आंखें बंद करते ही माया आंटी का चेहरा और कामुक शर्रीर मेरी आंखों के सामने आ गया. बंद आंखों से आज मैंने माया आंटी का नग्न शरीर देख डाला. नाइटी का आवरण मेरी कल्पना ने नोच कर फेंक दिया था.

माया आंटी के हाथ मेरे पैरों पर फिसल रहे थे और मेरी नजरें मेरी कल्पना में उनके शरीर पर एकतक लगी हुई थी. मैं अपनी निगाहों से अपने विचारों में उन्हें पैरों से लेकर सिर तक नग्न कर रहा था और वह अपने हाथों से मेरे पैरों की मालिश.

अब वह मेरे पेट और सीने पर तेल लगा रहीं थीं. मैं उनके सामने साक्षात था और वह मेरी कल्पना में थी. अचानक मुझे अपना तोलिया हटा हुआ महसूस हुआ यह अकस्मात हुआ था उसे खोलने की प्रक्रिया में माया आंटी का कोई योगदान था यह मैं नहीं जानता पर मेरा तनाव से भरा हुआ लिंग निश्चय ही माया आंटी की दृष्टि में आ गया होगा. मेरी आंखें अभी भी बंद थी पर सांस तेजी से चल रही थी. आगे क्या होने वाला था मैं खुद नहीं जानता. मुझे नेयाति पर भरोसा था. माया जी के हाथ मेरी जांघों के ऊपर मेरी कमर तक आ रहे थे पर बेचारा राजकुमार अभी किसी भी स्पर्श से वंचित था.

वह सिर्फ पूर्वानुमान में ही अपनी उत्तेजना कायम किए हुए तन कर खड़ा था. शायद कभी कोई उसका भी ख्याल रखेगा पर माया जी एक सुरक्षित दूरी बनाते हुए मेरी कमर और जाँघों के आसपास अपना हाथ घुमा रहीं थीं. मैं स्वयं उत्तेजना से पागल हो रहा था मैं चाहता था कि कब मेरा राजकुमार उनके हाथों में खेले पर मुझे सिर्फ और सिर्फ इंतजार करना था. अचानक मैंने माया आंटी को अपने दोनों पैरों पर बैठता हुआ महसूस किया उन्होंने मेरे दोनों पैरों को आपस में सटा दिया था और स्वयं मेरे घुटनों के थोडा उपर मेरी जाँघों पर पर बैठ गई थी. उन्होंने अपना सारा वजन अपने घुटनों पर ही रखा था जो मेरे दोनों तरफ बिस्तर पर थे.

मेरे पैर उनकी नंगी जांघों से टकराते ही मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बैठते समय उनकी नाइटी स्वतः ही ऊपर उठ गई थी. उनकी नग्न जाँघों का स्पर्श अपनी जांघों से स्पर्श होता महसूस कर मेरा राजकुमार और तन गया.

मैंने अपनी आंखें अभी भी बंद की हुई थी मैंने माया आंटी को पिछले कई वर्षों में उन्हें कामुक निगाहों से नहीं देखा था. वह एक खूबसूरत महिला थी और मेरी होने वाली सास थीं. उनके हाथ मेरी जांघों पर से होते हुए मेरे पेट और छाती तक आ रहे थे. जब वह आगे की तरफ आती तो कई बार उनका पेट मेरे राजकुमार से टकराता उसकी उत्तेजना लगातार बढ़ रही थी. माया आंटी ने अपनी नाइटी उतारी थी या नहीं अब तो मैं नहीं जानता परंतु उनकी जांघे मेरे पैरों से छूती हुए एक कोमल और कामुक एहसास जरूर दे रही थी.

कुछ ही देर में मैंने उनके नग्न दिन नितंबों को अपने पैरों पर महसूस किया यह अद्भुत एहसास था मुझे ऐसा लगा जैसे वह पूरी तरह नग्न हो गई थी. मैं अपनी आंखें बंद किए हुए इस सुख को अनुभव कर रहा था अचानक वह अपनी कमर और पीछे की तरफ ले गई उनके कोमल नितंब मुझे अपने पैर के पंजों से छूते हुए महसूस हुए. वह मेरे पैरों की मालिश करते हुए और मेरे पेट तक आप आ रही थी इसके ऊपर आना संभव नहीं हो पा रहा था जब वह मेरे पेट तक पहुचातीं उनका मुख मंडल मेरे राजकुमार के समीप होता उनकी सांसों की गर्मी मेरे राजकुमार को कभी-कभी महसूस हो रही थी. राजकुमार का इंतज़ार ख़त्म हो रहा था.

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