छाया - भाग 07

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अनचाहे रिश्तो में पनपती कामुकता एवं उभरता प्रेम
3.4k words
4.53
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Part 7 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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विवाह की तैयारी

(मैं मानस)

हम लोगों ने तय किया की विवाह बेंगलुरु से ही किया जाए. सीमा के घर वाले चंडीगढ़ में थे पर वह बेंगलुरु आने के लिए तैयार हो गये थे. हम लोगों ने एक शादी का बड़ा हॉल बुक कर लिया था जिसमें वर वधू पक्ष के रहने के लिए अलग-अलग अवस्थाएं थी. मैरिज हाल खूबसूरत और अच्छी लोकेशन पर था तथा सर्व सुविधा सम्पन्न था.

मैंने गांव से सभी परिचित लोगों को निमंत्रित किया जो कमजोर लोग थे उनको फ्लाइट की टिकट तक भेज दी. निमंत्रण से बहुत खुश थे. सही समय पर गांव से सभी परिचित लोग आ चुके थे. गांव वालों की उपस्थिति ही विवाह कार्यक्रम में एक अलग किस्म का आनंद जोड़ देती है. उन्हें इन बड़ी शादियों की प्रतीक्षा होती है. शहर में रहने वाले लोग तो सिर्फ कुछ घंटों के लिए विवाह कार्यक्रम का आनंद लेते हैं और रात्रिभोज के बाद अपने अपने रास्ते चले जाते हैं पर गांव से आए लोग पूरे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए रखते हैं और विवाह को रंगीन बनाए रखते हैं.

सीमा की ओर से मंजुला चाची ने कमान संभाल रही थी. थी और हमारी तरफ से माया आंटी ने. छाया इस क्कार्यक्रम की मुख्य निर्देशिका थी. सब उसकी राय से कार्यक्रम को आगे बढ़ाते. शर्मा जी भी अपनी विदेश यात्रा से आकर इस विशेष कार्यक्रम के शामिल थे. गांव वालों से उनका परिचय मेरे सीनियर अधिकारी के रूप में कराया गया था. वह इस कार्यक्रम में मेरे पिता की भूमिका में दिखाई पड़ रहे थे. वह पूरे जोर-शोर से इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे.

गांव की शादियों में महिलाओं के झुण्ड का बड़ा योगदान होता है वह सब तरह तरह की रस्में करतीं हैं और इन रस्मो का भी एक अपना आनंद होता है. हमारा विवाह अंततः सभी की सहमति से हो रहा था. मुझे सिर्फ छाया की चिंता थी पर वह अब परिपक्व हो चुकी थी। उसका दुःख कभी उसके चेहरे पर नहीं आता. रस्मों के दौरान वह मेरे पास आती तो मुझे कभी कभी उसके चेहरे के पीछे उसके आंसू दिखाई दे जाते.

लड़कियां कितनी भी परिपक्व हो जाए अपनी भावनाएं नहीं छुपा पाती. आखिर मेरी प्यारी छाया भी एक लड़की ही थी।

इस विवाह में एकमात्र दुख मुझे छाया को लेकर ही था. पर धीरे-धीरे कार्यक्रम आगे बढ़ रहे थे. भविष्य में क्या होने वाला था मैं नहीं जानता पर मैं कहीं न कहीं इस बात को लेकर थोड़ा दुखी अवश्य था. महिलाओं का झुंड जब भी आता अलग-अलग प्रकार की रस्में करता इतनी सारी महिलाओं को एक साथ देख कर मन में अजीब अनुभूति होती अपने इस शादी में मैं मुख्य अतिथि जैसा महसूस कर रहा था. गांव के सभी लोग मुझे इज्जत और सम्मान की निगाहों से देख रहे थे मेरी प्रतिष्ठा शिखर पर थी. छाया को सजा धजा और खुश देख कर सब उसकी खुशी में मेरी उपलब्धता देखते. छाया अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी उसकी नौकरी के बारे में जानकर सब गांव वाले मुझे ही बधाई देते. पिछले कुछ दिनों में छाया ने अपना दुख को छुपाने के लिए अपनी कामुकता को और जीवंत कर दिया था. वह मुझे हर मौके पर खुश करने के लिए कुछ नया करती और मैं उसे अपनी पत्नी न बना पाने की लिए थोड़ा दुखी हो जाता.

अनूठा उपहार

(मैं छाया)

मानस भैया के तिलक का कार्यक्रम संपन्न हो चुका था. विवाह तींन दिन बाद होने वाला था. जिस विवाह की कल्पना में हम दोनों ने पिछले 3-4 वर्ष निकाले थे वो दिन आ चुका था. पर नियत की विडंबना थी मेरी जगह वहां सीमा दीदी को बैठना था. मानस और मैं एक दूसरे से अभी भी बहुत प्यार करते थे पर जो होना था वह हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मानस को क्या उपहार दूं पर मैं उसे यादगार बनाना चाहती थी. अंततः दृढ़ निश्चय करने के बाद मैंने मानस से कुछ घंटे एकांत में बिताने का समय मांगा. वह बोले

" इस शादी के बीच में यह कैसे संभव होगा "

" मैंने कहा यह आप देखिए."

"तुम खुद भी कैसे फ्री हो पाओगी सब तैयारी तुम्हारे ही मार्गदर्शन में हो रही है"

"मैं ब्यूटी पार्लर के नाम पर समय निकाल लूंगी"

मेरी बातों में जिद थी वो मान गये. मेरी बात टालना उनके लिए असंभव था. वो मुझे बहुत प्यार करते थे.

हमने विवाह मंडप के अलावा कुछ होटलों में भी कमरे से ले रखे थे. एक होटल के कमरे के गेस्ट को आने में समय था. मानस ने दो दिन बाद दोपहर में ३.०० बजे का समय निर्धारित किया. मेरे पास २ दिन का वक्त था. मैंने अपनी पूरी तैयारी कर ली और हम तय वक्त पर होटल के लिए निकल चुके थे. मानस बार-बार मुझे प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहे थे वह समझ नहीं पा रहे थे कि मैं उनके साथ क्या करने वाली हूँ. आपसी प्यास तो हम समारोह के बीच भी बुझा ही लेते थे. कार की सीट पर पीछे बैठे बैठे हैं वह मेरे हाथों को सहला रहे थे. मेरे चेहरे पर भी घबराहट भी और मन में भी. एक कुछ ही देर में हम होटल के कमरे में थे.

[मैं मानस]

कमरे में पहुंचते ही छाया ने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे राजकुमार को अपने हाथों सहलाते हुए कहा

"इस राजकुमार को मैंने बहुत प्यार किया है और कल से यह किसी और का हो जाएगा" मैं इसे एक अनूठा उपहार देना चाहती हूँ. आपको मुझे इसमें सहयोग करना होगा."

मैं अभी भी उसकी मंशा समझ नहीं पा रहा था पर उसके हाथों में आते ही राजकुमार स्वयं उठ खड़ा होता था इसमें मेरा कंट्रोल बिल्कुल भी नहीं होता था.

जैसे छोटे बच्चे अपनी माँ को देखते ही उसके गोद में आने के लिए अपना हाँथ आगे बढ़ा देते हैं वैसे ही मेरा राजकुमार तन कर छाया के हाँथ में आ जाता था.

मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया मैंने कहा

" ठीक है जो तुम्हें लगता है वह करो" उस दिन उसने एक सुंदर सा सलवार सूट पहना हुआ था. उसने दुपट्टे से मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया. मेरे कपड़े उसने पहले ही खोल दिए थे मैं बिस्तर पर नग्न लेटा हुआ था. मेरा राजकुमार पूरी तरह अपना छाया के हाथो अपना स्खलन कराने के लिए तैयार था. मेरी आंखों पर पट्टी बंधी होने की वजह से मैं छाया को नहीं देख पा रहा था. छाया अब मेरे ऊपर आ चुकी थी और मुझे उसके स्तनों का एहसास हो रहा था. मेरे हाथ उसके स्तनों को सहला रहे थे. उसके होंठ मेरे होंठों पर थे. राजकुमार राजकुमारी के होंठो में अपना स्थान तलाश रहा था. कुछ ही देर में छाया धीरे-धीरे मेरे छाती को चुमती हुई नीचे की तरफ बढ़ी. अब राजकुमार उसके मुख में अठखेलियां कर रहा था. उसने अबकी बार अपने मुख से एक कृत्रिम योनि का निर्माण किया और राजकुमार को वह सुख देने लगी. राजकुमार को यह क्रिया बहुत पसंद थी और वह उछल रहा था अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे छाया उसके ऊपर कोई चीज लपेट रही थी. राजकुमार उस अनजाने आवरण के अंदर आ गया था. एक बार के लिए मैं डर गया की कही छाया ने बदला लेने के लिए कुछ और तो नहीं सोचा है?

पर वह मेरी प्यारी छाया थी. बदला? यह असंभव था. हम दोनों एक दुसरे के लिए जान भी दे सकते थे.

मेरी आंखें बंद थी और कौतुहल चरम पर. राजकुमार का तनाव कुछ कम जरूर हुआ पर वह वापस सामान्य रूप से तन गया था. छाया अपने हाथों से राजकुमार को सहला रही थी कुछ ही देर में मुझे अपनी कमर पर छाया के बैठने का एहसास हुआ. उसके दोनों पैर मेरी जांघों के दोनों ओर थे. उसकी राजकुमारी राजकुमार के संपर्क में थी. पर उस लिपटी हुए चीज की वजह से दोनों में सीधा संपर्क नहीं हो पा रहा था. मैं अपने हाथ उस चीज को हटाने के लिए बढाया पर उसे छाया ने रोक लिया छाया. वह एक बार फिर मेरे होठों तक आई और मुझे प्यार से चूम लिया.

कुछ ही देर में मुझे अपने राजकुमार के मुख पर किसी पतले और सकरे रास्ते का अनुभव हुआ. छाया का वजन मेरे राजकुमार पर बढ़ता जा रहा था. राजकुमार अब दर्द में था पर वह उस पतले रास्ते में प्रवेश कर रहा था. जैसे जैसे छाया की कमर धीरे-धीरे नीचे आ रही थी राजकुमार उस अनजानी सकरी और तंग गुफा में जा रहा था. छाया हांफ रही थी. मैं समझ नहीं पा रहा था की छाया यह क्या कर रही हैं. मैं तो अद्भुत आनद में था. राजकुमार ने यह अनुभव पहली बार प्राप्त किया था. मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपना कौमार्य आज ही परित्याग कर रही हो. यह मेरे लिए पीड़ादायक चीज होती मैंने उसे वचन दिया था कि उसका कौमार्य भंग नहीं होने दूंगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह भावावेश में आकर ऐसा कर रही हो. मैं इतना सोच ही रहा था की तभी छाया के नितंबों का एहसास मुझे अपनी जाँघों पर हुआ. राजकुमार अनजानी गुफा में पूरी तरह प्रवेश कर चुका था. छाया की कोई और गतिविधि मुझे महसूस नही ही रही थी।

राजकुमार उस गहरी गुफा में जाने के बाद पूरी तरह तन चुका था. अचानक छाया मेरी तरफ झुकी और मेरे होठों को अपने होंठों के बीच ले लिया और मेरी आंखों पर पड़ी हुई पट्टी स्वयं ही हटा दी. मैंने आंखें खोली और अपनी उसकी आंखों में आंसू थे. आंसू की एक बूंद मेरे गाल पर भी गिरी. मैंने अपने हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके गाल अपने गाल से सटा लिए . मैं उससे यह भी नहीं पूछ पा रहा था उसने मेरे राजकुमार के साथ क्या किया. कुछ ही देर में वह सामान्य हो गई और वापस मेरे होठों को चूमने लगी. अब वह अपनी कमर को आगे पीछे कर रही थी. मेरा राजकुमार उस अनजानी और गहरी गुफा मैं आगे पीछे हो रहा था. वह तो इन्हीं गुफाओं की प्रतीक्षा में पिचले २५ वर्षों से था. उसे पतले और तंग रास्ते हमेशा से पसंद थे. उसकी उछल कूद बढ़ रही थी. मैं इस अद्भुत आनंद के लिए छाया का ऋणी हो रहा था. मुझे बार-बार चूमती जा रही थी. उसने कमर हिलाने की गति बढ़ा दी. कुछ ही देर में मेरे राजकुमार ने गहरी गुफा की चाल से अपनी गति मिला ली. अब मेरी कमर भी उसी गति में हिलने लगी. छाया मुझे चूमती जा रही. कुछ ही देर में राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार था मैं अपने राजकुमार को उस गुफा से बाहर निकालना चाहता था और हमेशा की तरह अपनी प्यारी छाया को भिगोना चाहता था पर मैंने राजकुमारी के कंपन अभी तक महसूस नहीं किये थे. राजकुमार राजकुमारी को छोड एक अलग ही दुनिया में आनंद ले रहा था. एक बार के लिए मुझे लगा जैसे छाया ने कोई कृत्रिम योनी लायी थी. पर छाया मुझसे सटी हुए थी मैं नीचे नहीं देख पा रहा था. राजकुमार का लावा फूटने वाला था मैं उसे बाहर निकालना चाह रहा था पर बिना छाया के सहयोग के बाद संभव नहीं था. वह अपनी गति को विराम नहीं दे रही थी अंततः राजकुमार ने अपना वीर्य उसी गहरी गुफा में छोड़ दिया. इसका आनंद भी अद्भुत था. वीर्य प्रवाह के दौरान थे मैं अपनी कमर को बड़ी तेजी से हिला रहा था. राजकुमार भी गहरे तक उतर जाना चाह रहा था.

वीर्य स्खलन समाप्त होते ही मैं सुस्त हो गया. छाया मुझे अभी भी चूम रही थी. कुछ देर बाद छाया उठ रही थी. मेरा राजकुमार उसकी इस अनजानी गुफा से बाहर आ रहा था. मुझे उसकी राजकुमारी मुझे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. और मेरा राजकुमार अभी भी अनजानी गुफा के अंदर था.

मुझे समझते देर न लगी कि आज छाया ने मेरे वचन की लाज रखते हुए मेरे राजकुमार को उपहार में अपनी प्रिय दासी को समर्पित किया था. छाया की दासी से राजकुमार अब बाहर आ रहा था वह पूर्णता स्वच्छ और साफ दिखाई दे रहा था. छाया ने अपने हाथों से उस रबड़ नुमा चीज को बाहर निकाला. मेरा सारा वीर्य उस रबड़ नुमा थैली में एकत्रित हो गया था. छाया उसे लेकर बाथरूम की तरफ चल पड़ी. वापस आने के बाद उसने मुझे फिर से चुमाँ और राजकुमार को अपने हाथों से सलाया राजकुमार बहुत खुश था. उसने उछल कर अपने अंदाज में छाया को धन्यवाद दिया.

मैंने छाया की राजकुमारी को सहलाने की कोशिश की उसने रोक दिया और कहा

"चलिए देर हो रही है कुछ ही देर में हम दोनों वापस टैक्सी में थे" मैंने छाया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा

" छाया तुम अनूठी हो और तुम्हारा उपहार भी अनूठा था" मेरी बातें सुनकर वह बहुत खुश हो गई थी उसने मेरा हाथ चूम लिया और कहां

"मानस भैया मुझे भूख लगी है. आपके लिए मैंने दो दिन से अन्न नहीं खाया है."

मैं समझ गया और फिर से उसे चूम लिया. मैंने उसकी पसंद का पिज्जा लिया वो उसे खाते हुए बोली

"मैं आपकी और अपने राजकुमार की खुशी के लिए किसी हद तक जा सकती हूँ" मैं मुस्कुरा रहा था पर मेरी आँखों में आसू थे. कुछ ही देर में हमारी गाड़ी विवाह मंडप के पोर्च में थी.

विवाह कार्यक्रम

(मैं छाया)

मानस की हल्दी का कार्यक्रम हो रहा था। गांव से आई हुई सारी महिलाएं मानस को हल्दी लगा रही थी और तरह-तरह के विवाह गीत गा रही थीं। विवाह गीत की मधुरता हर सुनने वाले के कान में शहद घोल देती है। कुंवारी लड़कियां और कुंवारे लड़के इन गीतों को सुनने के पश्चात स्वयं को एक बार अवश्य उस जगह रख इन गीतों का आनंद लेते हैं। मानस भैया की हल्दी और चुमावन की रस्म में गाए जाने वाले गीतों में मुझे उनकी बहन कह कर संबोधित किया जा रहा था। मेरे लिए यह रिश्ता असहनीय हो गया था। मेरे और मानस के अलग होने में इसी रिश्ते का सबसे ज्यादा योगदान था। परंतु जो होना था वह रोका नहीं जा सकता था।

हल्दी की रस्म के पश्चात मानस कमरे से लगे बाथरूम में जाने लगे और सारी महिलाएं उस कमरे से बाहर आ गयीं। मेरी मां ने कहां अरे मानस की हल्दी तो ले लो बहू (सीमा) को भेजना होगा। सीमा की हल्दी के लिए शायद यह एक रस्म थी। मेरे मुंह से तपाक से निकला "मां मैं लेकर आती हूं" मैंने कमरे का दरवाजा खटखटाया और मानस ने दरवाजा खोला। वह अब तक तोलिया लपेटकर नहाने की तैयारी कर रहे थे। मैंने पास पड़ी हल्दी का कटोरा उठाया और उनके पास आकर तोलिया हटा दिया। राजकुमार पता नहीं क्यों तनाव में था। मुझे लगा शायद हल्दी की रस्म में कई महिलाओं के हाथ शरीर पर लगने से राजकुमार उत्तेजित हो गया था। मैंने मुस्कुराते हुए अपने हाथों से हल्दी निकाली और राजकुमार पर लगा दी। मानस भैया बोले छाया मत करो कोई आ जाएगा। मैंने कहा

*मां ने कहा है आपके शरीर की हल्दी सीमा भाभी के लिए जाएगी इसलिए मैं आपसे शरीर से हल्दी ले रही हूँ" वह मेरी हल्दी लेने की इस विधि को देखकर मुस्कुराने लगे और अपने आलिंगन में ले लिया। मैंने राजकुमार को हल्दी से पूरा भिगो दिया और फिर अपने हथेलियों से दबाव बढ़ाते हुए उसके ऊपर लगी हुई सारी हल्दी उतार ली। मानस भैया के राजकुमार से निकली हुई लार इस हल्दी में शामिल हो चुकी थी। शायद यह लार सीमा भाभी के लिए उनका प्यार था। मैं उस अनूठी हल्दी को लेकर बाहर आ गयी। जब मैं मानस भैया के लिंग से अठखेलियां कर रही थी तो उन्होंने मेरे स्तनों को छू लिया था जिससे मेरे कंधों पर और स्तनों के ऊपर कपड़ों पर हल्दी के दाग लग गए थे। जैसे ही मैं कमरे से बाहर आई गांव की एक लड़की ने टोका "छाया दीदी मानस भैया के साथ साथ आपको भी थोड़ी हल्दी लग गई" मैं शरमा गई पास में खड़ी कई सारी महिलाएं हंसने लगी. वह यह तो नहीं समझ पायीं कि यह मानस के हाथों का कमाल था पर मेरी मां मुस्कुरा रही थी वह जान रही थी कि मैंने और मानस ने हल्दी की रस्म अपने हिसाब से ही निभा ली थी।

मां ने कहा छाया हल्दी लेकर जा और सीमा के घर वालों को दे दे वो इंतजार कर रहे होंगे। मैं मुस्कुराते हुए सीमा दीदी के कमरे की ओर चल पड़ी कुछ ही देर में सीमा भाभी की भी हल्दी की रस्म शुरू हो गई कमरे से आ रही हंसी की आवाजें आ रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे महिलाएं सीमा दीदी के प्यारे स्तनों और कोमल शरीर पर हल्दी लगा रही होंगी मैं भी उसमें शामिल होना चाह रही थी पर यह संभव नहीं था। मैंने इंतजार किया मैंने उस हल्दी में से कुछ भाग अपने हिस्से के लिए बचा कर रख लिया था। जैसे ही हल्दी की रस्म खत्म हुई और सारी महिलाएं बाहर आ गई तो मैंने सीमा दीदी को मोबाइल पर मैसेज कर मुझे बुलाने के लिए कहा । वह नहाने जाने से पूर्व मुझे बुलाने के लिए किसी लड़की को भेजा। मैं बाहर लॉन में इंतजार ही कर रही थी उनके बुलावे पर मैं अपने हाथ में थोड़ी सी हल्दी लिए हुए उनके कमरे में आ गयी। सीमा ने दरवाजा बंद कर लिया वह निश्चय ही यह जानती थी कि मेरे मन में कुछ ना कुछ जरूर चल रहा था उसने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया मैं पूरी सजी-धजी थी और वह हल्दी में डूबी हुई। मैंने सीमा दीदी का घाघरा खोल दिया वह अपने वजन से नीचे की तरफ सरक गया और सीमा दीदी मेरी आंखों के सामने कमर के नीचे नंगी हो गयीं। महिलाओं ने उनकी जांघों तक में हल्दी लगा दी थी पर उनकी राजकुमारी एकद साफ बची थी। मैंने अपने हाथों में ली हुई हल्दी को उनकी राजकुमारी पर लगा दिया मानस भैया के राजकुमार के लार में डूबी हुई वह हल्दी उनकी राजकुमारी पर लगाते समय मुझे हर्ष हो रहा था। वह मुस्कुरा रही थी उन्होंने कहा

"मेरा सारा शरीर तो हल्दी से मेरे रिश्तेदारों ने ढक दिया था सिर्फ यही जगह बाकी थी जो मेरी प्यारी छाया के लिए ही बची थी सच कहूं तो मुझे भी तुम्हारी इसी अदा का इंतजार था उन्होंने मुझे होठों पर चूम लिया हमारे पास समय कम था।

(मैं मानस)

मैं छाया को तैयारियों में व्यस्त देखकर उसका ऋणी हो रहा था। पिछले दिन उसका दिया हुआ अनूठा उपहार अद्भुत था। मुझे नहीं पता की सुहागरात के बाद संभोग में मुझे ज्यादा सुख मिलता या नहीं पर जो सुख छाया ने दिया था वह अद्भुत था. विवाह के दिन भी वह कई बार मेरे राजकुमार को तनाव में ले आती उसे सहलाती और बिना स्खलित किये हट जाती. एक दो बार मैंने भी उसके नितंबों को छुआ और राजकुमारी को सहला दिया इस भरी भीड़ भाड़ में ऐसा करना पर्याप्त रिस्क लेने जैसा था. पर यही तो उसकी आदत थी वह विषम परिस्थितियों में भी उत्तेजना कायम रखती थी.

लड़के की बहन होने के कारण इस कार्यक्रम में वह मुख्य भूमिका में थी. बारात जाने के दौरान उसने जी भर कर डांस किया था. सभी लोग उसके नृत्य के कायल थे। नृत्य कला में वह पहले भी पारंगत थी. उसने अपने कालेज में भी कई प्रोग्राम किए थे. उस नवयौवना का मादक नृत्य देखकर सारे लोग अचंभित थे. उसका नृत्य सबको अलग-अलग सुख दे रहा था। विवाह में आए मनचले लड़के उस नृत्य को देखकर अपने अपने राजकुमार में जरूर तनाव महसूस कर रहे होंगे. घोड़े की पीठ पर बैठा मैं स्वयम उसका नृत्य देखकर अचंभित हो रहा था. पर आज वह एक अलग किस्म के नशे में थी. उसने पूरे रास्ते नृत्य किया. उसकी वेशभूषा अत्यंत सुंदर थी. वह पूरे समय हमारे साथ विवाह कार्यक्रम में रही उसकी सुंदरता वधू पक्ष में भी चर्चा का विषय थी. हम दोनों एक आदर्श भाई बहन की भांति दिखाई पड़ रहे थे।

पुरुष और स्त्री में संबंध आपकी निगाहों से होता है. आज से 1 वर्ष पहले माया आंटी को हम दोनों कामदेव और रति दिखाई पड़ रहे थे पर आज लोगों की निगाहों में हम आदर्श भाई बहन के रूप में खड़े थे. हमें यह रिश्ता पूर्णतयः अस्वीकार था. छाया मेरी ऐसी प्रेमिका थी जिससे मेरा विवाह ना हो पाया था. पर हमारी आत्माएं पहले ही मिल चुकीं थीं।

अंततः विवाह संपन्न हुआ छाया ने मेरा और सीमा दोनों का ख्याल रखा था। विवाह संपन्न होने के बाद हम दोनों को बधाई दी. वह बहुत खुश लग रही थी. उसने सीमा के गाल पर पप्पी ली और मेरे चरण छुए.

विवाह संपन्न हो चुका था मैं सीमा के घरवालों के बीच कुछ देर और रहा उनके द्वारा दिए गए उपहारों को स्वीकार करता रहा.

आप इस पुस्तक को अमेजन किंडल पर पढ़ सकते हैं जो छाया नाम से उपलब्ध है।

अगले दिन दोपहर तक सारे कार्यक्रम खत्म हो चुके थे. विवाह कार्यक्रम में आए लोग भी वापस जा रहे थे. छाया भी आज रात की तैयारियों में लग गई थी. आज मेरी और सीमा की सुहागरात थी.

आप इस पुस्तक को अमेजन किंडल पर पढ़ सकते हैं

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