छाया - भाग 11

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छाया का विवाह और मिलन.
5.1k words
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Part 11 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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छाया के विवाह की तैयारी

[मैं सीमा]

बेंगलुरु शहर में मोबाइल की उपलब्धता धीरे-धीरे होने लगी थी. हम सब ने भी अपने लिए एक एक मोबाइल खरीद लिया था. मोबाइल पर हम सब की बातें आसान हो चुकी थी. एक दूसरे से मिलना भी अब इतना कठिन नहीं रहा था हम आपस में एक दूसरे से बात करते और कभी कभार मिल लिया करते थे. शादी के दिन धीरे-धीरे करीब आते जा रहे थे. हम सब शादी की तैयारियों में मशगूल थे.

मानस में छाया की शादी की तैयारी में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. उसने गांव के सभी लोगों को न्योता भेजा था. अब जब समाज की नजरों में छाया उसकी बहन हो ही चुकी थी तो वह उसकी शादी बहुत धूमधाम से करना चाहते थे. गांव में उनकी प्रतिष्ठा वैसे ही बनी हुई थी. सभी उनकी तारीफ करते थे कि कैसे उन्होंने छाया को अपनी बहन के रूप में अपना लिया था और उसका जीवन ग्रामीण स्तर से उठाकर उसने उच्च स्तर पर ले आया था. मैं जानती थी कि मानस छाया को बहन नहीं मानता था बल्कि वो उसकी प्रेमिका थी. पर अब तो उसकी शादी थी. हम तीनों हमेशा एक साथ रहते थे. वह हम दोनों की प्यारी थी. वो मेरी छोटी बहन, ननद और कभी कभी सौतन लगती थी. सौतन बोलने पर वह दुखी हो जाती थी. वो कहती

"दीदी मैंने अपने आप को मानस को आपको समर्पित किया है. आप जब चाहेंगी मैं आप दोनों के बीच से हट जाउंगी."

मैं उसे चुम्बन लेती और बोलती

"तुम हम दोनों के बीच की कड़ी हो. जब तक जीवन हैं तुम हम दोनों की प्यारी रहोगी." वह खुश हो जाती. छाया बहुत ही अच्छी थी.

हम लोगों ने शादी में अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाया था. पर छाया ने अपनी सहेलियों को बुलाने से साफ मना कर दिया था. उन्हें मानस और उसकी असलियत मालूम थी. छाया यह बात अपनी सहेलियों को नहीं बता सकती थी कि मानस से उसका ब्रेकअप हो गया है. मानस उसका भाई था यह बताना उसके लिए संभव नहीं था. पर उसकी सहेली पल्लवी यह बात जानती थी.

मानस ने एक बहुत बड़ा मैरिज हॉल बुक किया हुआ था. जिसमें गांव से आने वाले सभी लोग रुके हुए थे. गांव की महिलाएं और बच्चे इस भव्य व्यवस्था से बहुत खुश थे. वह इस उत्सव का पूरा आनंद लेते थे. वहां पर सभी के अलग-अलग कमरे बुक थे. खानपान की भी उत्तम व्यवस्था थी. गांव के लोग इन बातों में बहुत खुश थे और मानस की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे थे. हम सब भी सुबह-सुबह वही पहुंच जाते और दिन भर उन लोगों के साथ रहते थे. छाया की खूबसूरती गांव वालों के लिए आश्चर्य का विषय थी. मैं भी उतनी ही खूबसूरत थी परंतु छाया की कोमलता उसे मुझसे दो कदम आगे रखती.

मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं था मैं छाया से बहुत प्यार करती थी. जब हम दोनों एक साथ होते तो गांव वाले यही कहते आ गई ननद भाभी की जोड़ी . हम दोनों पक्की सहेलियां भी थी. गांव की महिलाएं और लड़कियां छाया को अपने साथ बैठा आशीर्वाद देतीं और अपने अंदाज में उससे सुहागरात और शादी के बाद की बातें करतीं. मैंने एक बार देखा, एक गांव की एक लड़की अपने घुटनों को मोड़कर और घुटने के ऊपर और नीचे के दोनों मांसल भागों को अपनी उंगलियों से सटाकर योनि का आकार बना रही थी और अपनी उंगली को उसमें फंसा कर छाया को सम्भोग के बारे में बता रही थी. छाया भी मुस्कुराते हुए वह सब सुन रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे आई आई टी के प्रोफेसर को कोई पाइथागोरस थ्योरम समझा रहा हो...

छाया साक्षात रति थी यह उन्हें नही पता था. उसके चेहरे की मासूमियत उसका सबसे बड़ा हथियार थी. विवाह समारोह में आया हुआ कोई भी व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला या कितना भी कुत्सित विचारों वाला हो वह यह बात सोच नहीं सकता था कि छाया मेरे और मानस के बीच की कड़ी थी. मैं और मानस यह सोच कर ही उत्तेजना से भर जाते थे कि हमारी प्यारी छाया की शादी हो रही है और कुछ ही दिनों मैं वह संभोग सुख का आनंद ले पाएगी.

छाया ने अपनी कामुकता को बड़ी खूबसूरती से जिया था. बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने आसपास में मानस जैसा साथी मिल जाता है और वह उनकी सारी इच्छाओं की पूर्ति करता है. छाया मानस से तीन-चार महीनों के लिए दूर थी पर भगवान ने उसे मुझसे मिला दिया था. मैंने उसकी कामुकता को उस दौरान भी सीचतीं रही. मेरे विवाह के बाद से तो उसे दोहरा मजा मिल रहा था मैं और मानस उसकी हर इच्छा पूरी करते थे.

अब कुछ दिनों बाद उसे संभोग सुख प्राप्त होने वाला था. हम सब बहुत खुश थे. उसने एक दिन मुझसे बातों ही बातों में एक बात बोली

"सीमा दीदी जब तक मेरी शादी नहीं हो जाती पूरे विवाह समारोह में आप अपनी पैंटी नहीं पहनियेगा और मैं भी नहीं पहनूंगी. हम दोनों बीच-बीच में मानस भैया का ख्याल रखते रहेंगे. जब तक वह उत्तेजित रहेंगे तब तक वह दुखी नहीं होंगे"

मैंने उससे कहा

"अरे इसकी फुर्सत कहां मिलेगी."

"आप सिर्फ मानस भैया को यह बात बता दीजिएगा"

मैने मुस्कुराते हुए कहा

"मैं यह बात सोमिल को भी बता दूंगी"

वह हंसते हुए बोली

"अरे वह एकदम सज्जन है. वह यह सब काम शादी के पहले नहीं करेंगे"

हम दोनों हँसने लगे.

छाया मेरे गले लगते हुए कान में बोली

"आपकी शादी में भी मैंने पैंटी नहीं पहनी थी. मानस भैया सुहाग रात मनाने तक मुझे सहलाते रह गए थे." वह हसते हंसते भाग गयी. सच में वह बड़ी नटखट थी.

हम सब अपने काम में मशगूल हो गए. छाया ने सच ही कहा था मेरे बताने से पहले ही उसने मानस को बता दिया था. जहां भी मौका मिलता वह मेरे पास आते मेरे घागरे को ऊपर करते मेरी रानी और नितंबों को सहला देते तथा अपने राजकुमार में तनाव भर कर चले जाते. मैं भी कभी-कभी उनके राजकुमार को अपने हाथों में लेकर दबा देती और उनके तनाव को महसूस करती. यह बड़ा आकर्षक लगता था. दिन भर हम एक दूसरे को उत्तेजित करते रहते मुझे पता था वह यही काम छाया के साथ भी कर रहे थे. मुझे यह और भी उत्तेजक लगता है कि छाया की दो-तीन दिनों में शादी है और वह अपने मानस भैया के साथ यह सब काम कर रही है पर छाया की यही मादकता और कामुकता उसका स्वभाव था. हम इसका आनंद ले रहे थे. छाया कभी-कभी मेरे पास भी आती और और मेरी रानी को हाथ लगा कर देखती और बोलती

"दीदी इसको सूखने नहीं देना है"

रात में घर पहुंचते-पहुंचते हम लोग पूरी तरह उत्तेजित रहते और अपने अपने अंदाज में अपना स्खलन करते. कभी कभी छाया विवाह भवन में भी स्खलन करा देती थी.

छाया की राजकुमारी अब राजकुमार को आगोश में लेने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी थी

छाया का विवाह

[मैं सीमा]

छाया का विवाह विधि विधान से सम्प्पन हुआ. हल्दी की रस्म में मैंने मुख्य भूमिका निभाई थी. मैंने छाया की राजकुमारी को हल्दी में भिगो दिया था और हल्दी छुड़ाते छुड़ाते उसे स्खलित करा दिया था वह उत्तेजित भी थी और खुश भी. शर्माजी ने कन्यादान दिया. गाव वाले उन्हें मानस का बॉस समझते थे और पितातुल्य मानते थे. हमारे लिए वो माया जी के भावी पति थे.

सुबह विदाई का कार्यक्रम संपन्न हुआ और छाया की विदाई भी हो गई. छाया विवाह मंडप के एक भाग से हटकर दूसरे भाग में चली गई थी. हम लोगों में से किसी को भी विदाई का पता भी नहीं चला. छाया की सुहागरात के लिए मैंने पांच सितारा होटल में कमरा बुक किया हुआ था. सोमिल की माता जी से मैंने पहले ही अनुमति ले ली थी. वह मुझसे बोली

"बेटा तुम सोमिल को भी बचपन से जानती हो और छाया को भी. वह तो तुम्हारी सहेली भी है और ननद भी. तुम दोनों की सुहागरात को जितना यादगार बना सकती हो बनाओ. मैं तो यही कहूंगी की उस दिन यह दोनों उस होटल में अकेले रहें इसकी बजाय तुम और मानस भी एक कमरा लेकर वहीं होटल में ही रहो. इससे उन दोनों को मानसिक बल मिलेगा." सोमिल की मम्मी की यह बात मुझे पसंद आ गई. विवाह की भागा दौड़ी में मैंने भी मानस के साथ कई दिनों से खुलकर संभोग नहीं किया था मुझे पता था उन्हें इसकी सख्त आवश्यकता थी उनकी छाया भी उसी समय सुहागरात मना रही होगी ऐसे में उनकी वेदना को कम करना आवश्यक था।

मैं छाया को लेकर ब्यूटी पार्लर चली गई. वह ब्यूटी पार्लर ब्राइडल मेकअप के लिए विख्यात था. वह दुल्हन को उसकी मनोदशा और इच्छा के अनुसार सजाता था. अपने विवाह के समय मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी पर मेरी सहेली ने इस बारे में मुझे बताया था. यहां पर लड़कियों के स्तनों और जांघों पर भी मेहंदी से कलाकृति बनाई जाती थी. यह अत्यंत कामुक अनुभव होता होगा ऐसा मैंने सोचा था. मैंने छाया से उसकी राय मांगी उसने कहा चलो कराते हैं. फिर यह दिन बार-बार थोड़ी आएगा हम सब ब्यूटी पार्लर में दाखिल हो गए थे. लड़कियों ने हमारा स्वागत किया और हमारा मेकअप करने ले गई छाया ने मुझसे कहा

"सीमा भाभी आपको भी वैसा ही मेकअप करना पड़ेगा."

"क्यों मेरी शादी थोड़ी है"

"आप भी करा लीजिए। आज आप मानस भैया के साथ ही रहिएगा. आप इस तरह सज धज कर उनके पास जाएगी तो उन्हें अच्छा लगेगा. जब मैं अपनी सुहागरात मना रही होउंगी उस समय आप मानस के साथ सुहागरात मनाईएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा और मानस भैया भी खुस हो जाएंगे." उसकी आँखों में आसूं थे. वो मानस को बहुत प्यार करती थी.

मैं उसकी बात मान गई मुझे उसकी बातों में प्यार भी दिख रहा था और मुझे अंदर ही अंदर हंसी भी आ रही थी. उन लड़कियों ने हम दोनों को अगल-बगल लिटा कर हमारा मेकअप शुरू कर दिया. उन्होंने हम दोनों की जाँघों, नितंबों और स्तनों पर तरह-तरह की कलाकृतियां बनाई जिससे हमारे अंग प्रत्यंग और निखर गए छाया की राजकुमारी के आसपास उन्होंने सजावट कर दी थी. मैंने अपनी राजकुमारी के ठीक ऊपर आई लव यू और एक दिल का निशान बनवा लिया था. हम दोनों एक दूसरे को देख कर खुश हो गए और मेकअप रूम में चले गए.

वहां पर हम दोनों को ब्राइडल मेकअप में तैयार किया गया. छाया की सुहागरात थी इसलिए उसकी सजावट मैंने कुछ ज्यादा करने के लिए कहा. पर हम दोनों को देखने के पश्चात यह कहना मुश्किल था असल में सुहागरात किसकी है. छाया ने सुर्ख लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और मैंने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी.

शाम को लगभग 9:00 बजे हम लोगों ने थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और अब वक्त आ चुका था कि छाया और सोमिल को होटल पहुचाया जाए.

कुछ ही देर में हम लोग होटल के लिए निकल चुके थे.

मैं और मानस अलग गाड़ी में थे. छाया और सोमिल एक विशेष रूप से सजी-धजी गाड़ी में थे. मानस बहुत खुश थे वह मुझे बार-बार धन्यवाद देते और कहते

"सीमा इस शादी को संपन्न कराने में तुमने जो किया है मैं उसके लिए तुम्हारा शुक्रगुजार हूं. तुमने छाया और मुझे हमेशा के लिए ऋणी बना दिया" शायद मानस यह जानते थे कि मैंने सोमिल के वचन की लाज रख ली थी.

"छाया की खुशी में ही मेरी खुशी है" मैंने कहा. मैं खिड़की से बाहर देखने लगी.

मैं हमारे संबंधों में आये बदलाव के बारे में सोच रही थी. मुझे छाया से कुछ दिनों पहले हुए वार्तालाप की याद आ रही थी.

एक बार मैंने अंतरंग पलों के दौरान छाया से पूछा था

"सुहागरात के दिन तुम्हें अपना कौमार्य खोने के स्वप्न आते हैं"

"हां कभी-कभी आते हैं"

"तब तो मल्होत्रा जी सपने में आते होंगे?"

वह मुस्कुराने लगी. मैंने कहा

"बता ना"

"अरे छोड़िए दीदी"

"नहीं नहीं प्लीज बताओ ना. तुम तो मेरी अतरंग सहेली हो मुझसे क्या छुपाना"

"सच कहूं तो अभी भी मानस भैया ही आते हैं"

"क्या?"

"वाह री भैया की प्यारी बहना" कह कर मैंने उसके गाल पर चिकोटी काट ली.

"भगवान करे तेरा सपना सच हो"

"दीदी आप भी मजाक करतीं हैं"

"कई बार सपने सच भी हो जाते हैं"

"सच हो गया तो तो मैं इस धरती की सबसे भाग्यशाली इंसान होउंगी." यह कह कर वह मुस्कुरा दी थी.

टायरों के चीखने की आवाज से मेरी तन्द्रा भंग हुयी. हम होटल पहुच चुके थे.

हमारी गाड़ी होटल के पोर्च में रुकी. हम सब होटल में रिसेप्शन की तरफ बढ़ रहे थे. हमारे साथ सामान के नाम पर दो ब्रीफकेस थे. एक छाया का और एक ब्रीफकेस में मैंने अपने कुछ कपड़े रख लिए थे. रिसेप्शन पर हमें दो कमरों की चाबी ने दी गई और हम आठवीं मंजिल पर स्थित अपने कमरों की ओर चल पड़े. लिफ्ट में जाते समय हम चार लोग थे पर पूरी शांति थी. दो सजी-धजी नवयौनाए संभोग सुख लेने के लिए होटल के कमरे में जा रहीं थीं। कोई भी एक दूसरे से बात नहीं कर रहा था पर सभी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे. कुछ नया होने वाला था.

सुहागरात

[मैं सीमा]

मैंने होटल वाले से बोलकर दोनों ही कमरों को सुहागरात के हिसाब से सजाया था. मानस की खुशी के लिए मैंने एक कमरे को उनकी पसंद से सजाया था. लॉबी में चलते हुए सबसे पहले जो कमरा आया उसकी चाबी सोमिल के पास थी सोमिल ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और हम सब उसके कमरे में दाखिल हो गए. कमरा अत्यंत सुंदर तरीके से सजाया हुआ था मैंने सोमिल से कहा आप यहां इंतजार कीजिए हम लोग दूसरा कमरा देख कर आते हैं. छाया ने कहा

"मैं भी आती हूं" वह भी हमारे पीछे पीछे आ गई. हम लोगों ने बगल वाला कमरा भी खोला वह कमरा भी वैसे ही सजा हुआ था. छाया आश्चर्यचकित होकर बोली

"अरे आप लोगों ने भी अपना कमरा वैसे ही सजाया है" यह तो बड़ा आनंद दायक है मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप लोग भी मुझे याद कर इस घड़ी का आनंद उठाएंगे" यह कहकर वो मुझसे लिपट गई. मैंने उसके कान में कहा

"छाया मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हें आज सुहागरात इसी कमरे में मनानी है वह भी तुम्हारे मानस भैया के साथ. तुम्हारा सपना पूरा होने जा रहा है. मानस से सिर्फ इतना कहना कि सीमा भाभी वचन निभाने गई है. वह समझ जाएंगे" इतना कहकर मैं उस कमरे से चली आई और दरवाजा बंद कर दिया.

[मैं मानस]

"अरे सीमा कहां चली गई"

"पता नहीं वह अचानक चली गयीं और मुझसे कहा कि आपको बता दूं कि वह अपना वचन निभाने गई है"

"पर आज तो तुम्हारी सुहागरात है."

"हां पर उन्होंने ऐसा ही कहा है"

सीमा के वचन से मुझे तो सारी परिस्थितियां समझ में आ गई थी. सीमा आज के दिन ही सोमिल का वचन पूरा करेगी यह मुझे उम्मीद कतई नहीं थी. उसने आज छाया की सुहागरात खराब कर दी थी. आज के दिन छाया को सोमिल के साथ होना चाहिए था. तभी छाया मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई. छाया ने मुझसे पूछा

"सीमा दीदी किस वचन की बात कर रही थी?"

मैंने उसे सब कुछ बता दिया वह खुश हो गई थी. उसने मुझसे कहा

"सीमा दीदी की आज्ञा है कि मैं आपके साथ ही सुहागरात मनाऊं"

हम दोनों सारी बात समझ चुके थे और सीमा को दिल से धन्यवाद दे रहे थे कि उन्होंने हम दोनों के इस बहुप्रतीक्षित मिलन को इतना शुभ और आसान कर दिया था साथ ही साथ उसने सोमिल के वचन की लाज भी रख कर छाया के आने वाले वैवाहिक जीवन को खुशहाल करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. दोनों अप्सराएं एक दुसरे के लिए ही बनीं थी. पहले छाया ने सीमा को मुझसे मिलाया और अब सीमा ने मेरी प्रियतमा को इस पावन अवसर पर संभोग के लिए प्रस्तुत कर दिया था।

छाया अब मेरी बाहों में आ चुकी थी. हमारे मन में कोई मलाल नहीं था. छाया का विवाह हो चुका था और अब वह संभोग के लिए तैयार थी. हम दोनों एक दूसरे के होंठों का चुंबन प्रारंभ कर चुके थे.

[मैं छाया]

मानस की बातें सुनने के बाद मैं पूरी तरह तैयार हो चुकी थी. मुझे मानस के साथ अपना सुहागरात मनाने का बहुप्रतीक्षित अवसर आ चुका था. मैं मानस के होठों को लगातार चूमे जा रही थी. मेरा सपना जो एक बार टूट चुका था आज पुनः जीवंत हो उठा था. मानस के चुंबन में आज अधीरता थी. आज मेरे प्यारे राजकुमार और राजकुमारी का पूर्ण मिलन होने वाला था. आज मैं पूरे तन मन से मानस की हो जाना चाहती थी. मेरे शरीर का रोम रोम उन्हें अपने से जोड़ लेना चाहता था. मेरे शरीर के हर अंग को उनका ही इन्तजार था. मेरे स्तनों को उन्होंने ही आकार दिया था. मेरी जाँघों और नितम्बों पर उनकी ही हथेलियों में मालिश की थी. मैं भावविभोर थी. मानस के हाथ धीरे धीरे मेरे घागरे तक पहुंच चुके थे. उन्होंने उसका नाडा धीरे से खोल दिया था. घागरा भारी होने की वजह से तुरंत ही नीचे गिर पड़ा. मैं नीचे से नग्न हो गयी थी. मानस अभी भी मुझे चुमने में व्यस्त थे उनके हाँथ नितम्बों को सहला रहे थे. कुछ ही देर में उन्हें मेरे स्तनों का ख्याल आया. धीरे से चोली ने भी मेरा साथ छोड़ दिया अब मैं उनके सामने नग्न खड़ी थी. शादी में सीमा भाभी ने मेरे लिए कई सारे गहने लिए थे. सिर से पैर तक लगभग हर अंग पर ज्वेलरी के अलावा और कुछ नहीं बचा था. मानस अभी मुझे लगातार चुम्बन दिए जा रहे थे.

[मैं मानस]

मैंने छाया को अपने शरीर से थोड़ा दूर किया ताकि मैं देख सकूं कि वह कैसी दिखाई दे रही है. छाया आज एक अप्सरा की तरह दिखाई पड़ रही थी. उसके शरीर से सारे वस्त्र निकले हुए थे परंतु सीमा द्वारा दी गई ज्वेलरी उसके शरीर पर अभी तक विद्यमान थी और उसे एक अद्भुत खूबसूरती प्रदान कर रही थी. उस समय छाया आदिकाल की कामुक मूर्ति लग रही थी. छाया छाया के आभूषण उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे. उसके स्तनों पर मेहंदी से जो कलाकृति बनाई गई थी वह अत्यंत मादक थी. स्तन उभरकर बाहर आ रहे थे. निप्पलों के आसपास भी मेहंदी की सजावट की गई थी. छाया का कटी प्रदेश और नाभि अत्यंत मोहक लग रहे थे. नाभि प्रदेश के ठीक नीचे उसका कमरबंद दिखाई पड़ रहा था. मैंने और माया आंटी ने उसे बड़ी पसंद से चुना था और आज मैं छाया को उसी कमरबंद में नग्न देखकर अत्यंत खुश हो रहा था. उसके राजकुमारी के चारों तरफ भी सजावट की गई थी. छाया की मांसल जाँघों पर करीने से मेहंदी लगाई गई थी. मैं यकीन नहीं कर पा रहा था की छाया को इस ढंग से किसने सजाया होगा और वह खुद कितना उत्तेजित हुआ होगा. छाया ने नाक की नथ खूबसूरत थी. वह मुझे उसकी सुहागरात की याद दिला रही थी. छाया सिर झुकाए खड़ी थी वह मेरे अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी. मैंने उसे फिर से अपने आलिंगन में ले लिया और बारी-बारी से उसके आभूषण खोलने लगा. उसकी अंगुलिया मेरे वस्त्रों की साथ खेलने लगी और मैं नग्न होता चला गया. हम दोनों हमेशा की तरह एक दुसरे के आलिंगन में नग्न खड़े थे. उसके माथे का सिन्दूर उसका मंगलसूत्र और नथ जो उसके सुहागरात की निशानी थे मुझे विशेष दिन की याद दिला रहे थे. मैंने उसके माथे पर चुम्बन लिया और उससे बोला

"तुम्हारी इच्छा थी की तुम जिसे चाहती थी वही तुम्हारा कौमार्य भेदन करे. मुझे उम्मीद करता हूं कि तुम खुश होगी"

उसने कुछ कहे बिना मेरे लिंग को अपने दोनों हाथों में ले लिया और बोली.

"मैंने सोते जागते इस दिन का अपने जीवन में पिछले ३ -४ सालों से प्रतीक्षा की है और सीमा दीदी की वजह से मुझे आपके राजकुमार से यह सुख मिलेगा यह मेरा सौभाग्य है."

यह कहकर वह नीचे झुकी और राजकुमार को चूम ली. मैंने उसे गोद में उठा लिया. उसे इस तरह नंगी होकर मेरी बाहों में आना बहुत अच्छा लगता था. मेरा एक हाथ उसके नितंबों के नीचे था तथा दूसरे हाथ से मैंने उसकी पीठ को सहारा दिया था वह अपना दाहिना हाथ मेरे गर्दन में फसाई हुई थी. उसके स्तन मेरे स्तनों से टकरा रहे थे. इस अवस्था में उसे बहुत अच्छा लगता था वह बार-बार मुझे इसी तरह गोद में लेने के लिए बोलती थी. आज छाया बहुत खुश थी. मेरा राजकुमार बार बार उसके नितंबों से छू रहा था. मैं उसे बेड के साइड में लगे एक बड़े आईने के पास ले गया. वह यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध हो गई थी. उसने अपने आप को इतना सजे धजे कभी नहीं देखा था और वह भी इस तरह मेरी बाहों में. वह मदमस्त थी मैं उसके गालों पर लगातार चुंबन ले रहा था. उसके माथे पर लगा हुआ सिंदूर जरूर मेरे नाम का नहीं था पर आज वह विवाहिता थी. उसने अपनी राजकुमारी को देखने की लिए अपनी जांघे फैलाई. हम दोनों उसकी सजावट देखकर खुश हो गए. उसने मुझे चूम लिया और कहा

"आज मैं और मेरी राजकुमारी आप के लिए सजे हैं"

मैं उसे लेकर धीरे-धीरे बिस्तर पर आ गया. श्वेत धवल चादर पर उसका यह सजा धजा गोरा और कोमल बदन मेरी उत्तेजना को ऊंचाइयों तक ले गया. मैंने छाया को बिस्तर पर लिटा दिया उसके सर के नीचे लाल रंग का सुनहरा तकिया रख दिया. उसने अपने दोनों हाथ सिर के नीचे रख लिए. उसने अपनी जांघों को थोडा फैला दिया था. मैंने उसकी जाँघों को थोडा ऊपर उठाने को कोशिश की. वो समझ गयी और अपनी जाँघों को अपने हांथो से ऊपर खीच लिया ठीक वैसे ही जैसे उसने राजकुमारी दर्शन के समय किया था. मैंने आज राजकुमारी के दिव्य रूप के दर्शन कर रहा था उसकी राजकुमारी की सजावट राजकुमारी की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी. छाया मंद मंद मुस्कुरा रही थी. उसकी मुस्कुराहट में अजीब किस्म की मादकता थी. उसने अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिए. मैं अब उसकी जांघों के बीच आ चुका था इस दौरान सीमा की राजकुमारी के होठों पर प्रेम रस की बूंदें छलक आई थी. आज उसे किसी और उत्तेजना की आवश्यकता नहीं थी. छाया के हाथों का बुलावा देखकर मैं उसके आलिंगन में आने को बेताब हो गया और कुछ ही देर में मैं छाया के ऊपर आ चुका था . मेरा सीना छाया के स्तनों से टकरा रहा था और मेरा राजकुमार राजकुमारी के मुख पर दस्तक दे रहा था.

छाया ने दोनों हाथों से मेरे गाल को पकड़ा और बहुत प्यार से बोली

"मानस भैया इस दिन का इंतजार हम लोग कब से कर रहे थे. आज वह दिन आ गया. आज अपनी छाया की राजकुमारी को रानी बना दीजिए" इतना कहकर उसने मेरे होठों को चूम लिया.

मैंने उसकी नथ उतारी वह मुस्कुरा रही थी.

मैंने भी अपने राजकुमार को उसकी राजकुमारी के मुख पर रखकर अपना दबाव बढ़ा दिया. जैसे ही राजकुमार उसकी कौमार्य झिल्ली से टकराया छाया की कमर में हलचल हुई. मैंने उसके होठों को और तेजी से चूसना शुरू कर दिया इसके पहले कि वह कुछ समझ पाती मैंने एक झटके में उसका कौमार्य भेदन कर दिया. इससे उसे पीड़ा अवश्य हुई यह उसकी आंखों और चेहरे के हाव भाव से स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. उसकी आंखों में आंसू भी आ गए थे पर वह जैसे इन सब के लिए तैयार थी. मैं उसी अवस्था में कुछ देर रुका रहा. वह मुझे लगातार चूम रही थी. मैंने अपने दोनों हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके माथे पर चुंबन किया और एक बार फिर अपने राजकुमार का दबाव बढ़ा दिया. राजकुमार अब और गहराइयों में उतर चुका था लिंग का अंतिम भाग भी राजकुमारी में पूरी तरह उतर चुका था. अब इसके आगे जाने की संभावना नहीं थी छाया बेसुध होकर मेरे अगले कदम का इंतजार कर रही थी. उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी.

मैंने इसी अवस्था में उसको सामान्य करने के लिए उसके स्तनों पर हाथ फेरना शुरू किया. स्तनों पर हाथ फेरने और उन्हें सहलाने के बाद छाया को आनंद का अनुभव होने लगा. मैं लगातार चुंबन लेकर उसे खुश कर रहा था. सामान्य होते ही उसने कहा

"आज मेरी राजकुमारी रानी बन गई" यह कह कर उसने मुझे चूम लिया . मैं अब अपनी कमर को धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगा और वह इस का आनंद लेने लगी. संभोग का सुख अतुलनीय है छाया यह बात समझ रही थी और इसका आनंद उठा रही थी. उसकी राजकुमारी के कंपन आज अति शीघ्र चालू हो गए. राजकुमार उन कम्पनों के बीच में स्वयं भी उछलने लगा था. मुझे लगा जैसे मैं छाया के अंदर ही स्खलित हो जाऊंगा. मैंने अपने आप को नियंत्रित किया. मेरे संभोग क्रिया के दौरान छाया अब स्खलित होने की कगार पर पहुंच चुकी थी. उसकी राजकुमारी के कंपन बढ़ते जा रहे थे. अचानक उसकी जांघें पूरी तरह फैल गई उसके चेहरे पर एक अजीब किस्म का खिंचाव आ गया. और उसके नाखून मेरी पीठ में गड गए. छाया स्खलित हो रही थी. स्खलित हो रही राजकुमारी में राजकुमार का तेज आवागमन अत्यंत सुख देता है ऐसा अनुभव मुझे सीमा ने बताया था. मैं वही अनुभव छाया को महसूस करना चाहता था. मैंने अपनी पूरी शक्ति से अपने राजकुमार को उसके राजकुमारी के अंदर आगे पीछे करने लगा. तेज गति से राजकुमार के आवागमन के कारण छाया का आनंद बढ़ता जा रहा था. उसके चेहरे पर दिख रहा यह आनंद अद्भुत था. मेरे राजकुमार का भी लावा फूटने वाला था पर मैं किसी भी हालत में छाया को स्खलित किए बिना अपना लावा नहीं छोड़ना चाहता था. अंततः छाया के जाँघों का तनाव कम पड़ते ही मैंने अपने राजकुमार की अंतिम झटका देते हुए राजकुमारी की पूरी गहराइयों तक उतार दिया . गहराइयों में जाने के बाद राजकुमार स्खलित होने लगा. मैंने उसे बाहर निकाल लिया और हमेशा की तरह मेरे वीर्य ने छाया के शरीर को ढक लिया. मैं छाया के बगल में लेट गया और उसे अपने आलिंगन में ले लिया. हम दोनों ही हांफ रहे थे. और एक दूसरे को प्यार से सहला रहे थे.

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