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Click hereजिस समय यह समझौता हुआ था सुगना छोटी थी। उसका विवाह तो हो गया था पर गवना होना बाकी था। नियति ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। गवना के बाद सुगना घर में बहू बनकर आई पर रतन और उसके बीच कभी नजदीकियां नहीं बनी। अपितु तीसरे दिन ही रतन वापस मुंबई चला गया।
रतन अपनी महाराष्ट्रीयन पत्नी के प्रति वफादार था वह सुगना के करीब आकर खुद को व्यभिचारी की श्रेणी में नहीं लाना चाहता था।
आज सभी लोग रतन को बधाइयां दे रहे थे वह बधाइयां स्वीकार भी कर रहा था। उसके मन में बार-बार यह प्रश्न आ रहा था की सुगना की मांग पर सिंदूर तो उसके नाम का था पर उसकी क्यारी किसने जोती थी जिसकी सुंदर फसल सुगना की गोद में थी। इस प्रश्न का उत्तर वह सरयू सिंह और अपनी मां से नहीं पूछ सकता था एक दिन बातों ही बातों में उसने सुगना से ही पूछ लिया।
सुगना ने हंसकर कहा
" अरे, ई आपि के बेटा ह, लीं खेलायीं" और अपने पुत्र को रतन को पकड़ा कर काम करने चली गई। रतन बच्चे को गोद में लिए हुए सुगना का मुंह ताकता रह गया। सरयू सिंह के करीब आकर सुगना हाजिर जवाब और समझदार हो गई थी।
रतन घर पर एक हफ्ते तक रहा इस दौरान सुगना भी धीरे-धीरे सामान्य हो गई। तथा घर के कामकाज मैं हाथ बटाने लगी। सुगना को घर के आंगन में इधर उधर घूमते देख सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई।
शेष अगले भाग में।
Badhiya likhte ho. Mazza aa gaya
Hindi type Karna mushkil jata hai.
Par Padh k aisa lagta hai jaise Tumhari likhavatki jo shaili hai wo bahot sundar aur bahot uttejak dono hai