बाबूजी तनी धीरे से... दुखाता 02

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उन्होनें आदर्श ससुर की तरह आशीर्वाद दे तो दिया पर उन्हें तुरंत ही वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। उन्होंने अपनी नजरें झुका कर फिर कहा

...हो सके तो हमरा के माफ कर दिहा...

सरयू सिंह ने आखरी वाक्य कहकर सुगना की दुखती रग पर हाथ रख दिया. वह कुछ बोल नहीं पाई पर उसे एक बार फिर उसके दिल में दर्द का एहसास हुआ। वह वहां से चली गई । सुगना ने उनके करीब आकर अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। सरयू सिंह को भगवान ने होली का उपहार सुगना की खुशी के रूप में दे दिया था।

सरयू सिंह सुगना से दिल से प्यार करते थे उस समय उनके मन मे वासना कतई नहीं थी। वह कल रात ही उसकी पसंद की मिठाई और कपड़े ले आए थे। उन्हें पता था सुगना उसे स्वीकार नहीं करेगी पर आज सुगना ने उनके चरण छुए थे उन्हें कुछ उम्मीद जगी थी। वह भागकर कजरी के पास गए और लाए हुए उपहार लेकर सुगना को पुकारा। सुगना चहकती हुई बाहर आ गयी।

...सुगना बेटा इ ला होली में तोहरा खातिर ले आइल बानी... सुगना ने हाथ बढ़ाकर सहर्ष उपहार स्वीकार कर लिया। सरयू सिंह बहुत खुश थे। सुगना अपनी पसंद की मिठाई और कपडे देखकर खुश हो गई। सरयू सिंह द्वारा लाई गई लहंगा चोली बेहद खूबसूरत थी। सुगना ने एक बार फिर सरयू सिंह के पैर छुए और बोली

...बाबूजी, हमरा के माफ कर द... सरयू सिंह की छाती चौड़ी हो गई उन्होंने कहा

...सुगना बाबू, बहू और बेटी एक जैसन होवेले, हम तोहरा के हमेशा खुश राखब। जौन तू चहबू उहे ई घर मे होई. हमार गलती के माफ कर दिह...

सुगना स्वतः ही सरयू सिंह से सटती चली गई। उसके कंधे सरयू सिंह के सीने से सट गई पर उसने अपनी चुची सरयू सिंह से दूर ही रखी। वह परिस्थितिजन्य बाबूजी थे यह बात वह जानती थी और अब से कुछ देर पहले कि वह उनका अद्भुत और कामुक रूप देख चुकी थी।

होली के 2 दिनों बाद हरिया की बड़ी बेटी लाली का गवना था। पड़ोस में त्यौहार जैसा माहौल था। सुनना के उजड़े जीवन में यह खुशी का मौका था। वह सज सवरकर नई बहू की तरह हरिया के घर जाती और लाली के गवना की तैयारी में मदद करती। लाली भी बेहद सुंदर थी पर सुगना तो सुगना थी।

गांव की सभी महिलाएं सुगना को छेड़ती। वह उनके सामने शर्माती पर अंदर ही अंदर दुखी हो जाति। उसके मन की वेदना बाहर वाले क्या समझते हैं इतनी खूबसूरत और जवानी से भरपूर सुगना की जांघों के बीच उसकी कोमल और रिस रही चूत मायूस पड़ी हुयीं अपने उद्धारकर्ता की तलाश कर रही थी।

सुगना की कद काठी देखकर आस-पड़ोस के लड़के जो रिश्ते में उसके देवर थे उसके आसपास मंडराते जरूर तो थे वे अपनी आंखें भी सेंकते पर उसके करीब जा पाने की हिम्मत किसी में नहीं थी आखिर सरयू सिंह का साया सुगना के सर पर था वो उनके घर की बहू थी।

गाँव के बाहर पशु मेला लगा हुआ था। सरयू सिंह ने वहां से एक सुंदर सी बछिया खरीद लाई उनकी गाय अब बूढ़ी हो चली थी।

सुगना बछिया देखकर खुश हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में चमक देख कर बड़े प्यार से कहा

...सुगना बेटा ई तहरे खातिर आइल बिया...

बछिया बहुत सुंदर थी. वह कुछ ही दिनों में बच्चा जनने योग्य हो जाती. बछिया और सुगना की दोस्ती हो चली थी. दालान में बाँधी हुई बछिया के पास जब सुगना जाती बछिया खुश हो जाती। सुगना अपने हाथों से उसे घास और चारा खिलाती और वह बछिया खुशी-खुशी मुह बा कर चारा सुगना के कोमल हाथों ले लेती। सुगना खुशी से उछलने लगती।

कजरी और सरयू सिंह दालान में बैठे हुए यह दृश्य देखकर मन ही मन प्रसन्न होते।

आज से कुछ दिनों पहले तक सुगना के चेहरे पर जो उदासी छाई थी अब वह दूर हो रही थी। सरयू और कजरी दोनों इस खुशी के माहौल में आराम से चुदाई करते। पर एक कसक अभी भी थी। आखिर सुगना का होगा क्या? क्या वह ऐसे ही अविवाहिताओं की तरह पूरा जीवन बिता देगी। रतन क्या उसे अपनाएगा? या हमें सुगना का दूसरा विवाह करना चाहिए?

यह बात सरयू सिंह बोल तो गए थे पर उन्हें पता था गांव के परिवेश में यह संभव नहीं था। सरयू सिंह का मन बेचैन हो उठा था अपनी यादों में हुई इस बेचैनी की वजह से उनकी नींद खुल गई और वह उठ कर बैठ गए।

पुरानी यादों से दूर आज उनका दिन बहुत अच्छा गया था। अपनी प्यारी बहू सुगना की चूत चोदने के बाद आज नींद भी अच्छी आई थी। आंगन से हँसने खिलखिलाने की आवाज आ रही थी। कजरी और सुगना का हंस हंस कर बात करना यह साबित कर रहा था कि सूरज के दूध न पीने की समस्या का अंत हो चुका है।

सुगना स्वयं भी अपनी चूची से दूध निकालने में महारत हासिल कर चुकी थी और उसकी मदद के लिए सरयू सिंह सदैव एक पैर पर तैयार थे।

बच्चे को जन्म देने के बाद सुगना को तेल की मसाज देने के लिए एक नाउन आया करती थी। वह सुगना के पूरे शरीर की तेलमालिश करती और उसके शरीर का कसाव वापस लाने का प्रयास करती। उसका विशेष ध्यान चूचियों, पेट ,पेड़ू और जाँघों तथा उनके जोड़ पर नियति द्वारा बनाई गई अद्भुत कलाकृति पर रहता जो बच्चे के जन्म से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।

उस दिन वह नाउन नही आई थी। कजरी पर आज दोहरा भार आ गया था छोटे बच्चे सूरज को तो वह हमेशा से तेल लगाती थी पर आज उसे कजरी को भी तेल लगाना था।

कजरी सुगना को बहुत प्यार करती थी। सुगना उसकी बहू थी पर वह दोनों कभी सास बहू की तरह रहती कभी मां बेटी की तरह और कभी एक दूसरे की सहेली की तरह. वह दोनों एक दूसरे को समझने लगी थीं । सरयू सिंह को लेकर इन दोनों में कोई मतभेद या जलन नहीं थी अपितु वह दोनों एक दूसरे को सरयू सिंह के करीब आने का ज्यादा से ज्यादा मौका देतीं।

अपनी मालिश करने के बाद छोटा सूरज सो गया। कजरी बड़ी कटोरी में तेल दोबारा गर्म कर कर ले आई। सुगना ने अपनी साड़ी उतार दी थी। अब वह पेटीकोट और ब्लाउज में बेहद सुंदर दिखाई पढ़ रही थी कजरी की निगाहों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. नाउन की मेहनत से सुगना का बदन वापस पहले जैसा हो गया था पर बच्चा जनने के बाद उसकी जांघें और चूचियां गदरा गई थी। कोमल बछिया अब गाय बन चुकी थी। पेट का हिस्सा भी पिचक गया था पर बच्चा जनने के बाद और पहले का अंतर अभी भी थोड़ा नजर आ रहा था। नियति ने पेट पर पतली लकीरों के रूप में अपना निशान छोड़ दिया था जो सुगना को हमेशा मां होने का एहसास दिलाता रहता.

सुगना की ब्लाउज और पेटीकोट अपेक्षाकृत नए थे। कजरी ने कहा

...बाबू सुगना एहू के उतार द नया बा नु तेल लाग जाई... कजरी ने सुगना के ब्लाउज और पेटीकोट की तरफ इशारा किया। सुगना हिचकिचा रही थी। पर उसकी आंखें कजरी से मिलने के बाद उसने बिना तर्क किए अपनी पीठ कजरी की तरफ कर दी। कजरी की उंगलियां उसके ब्लाउज के हुक से खेलने लगी और इसी दौरान सुगना का पेटीकोट जमीन पर आ गया निश्चय ही यह सुगना की उंगलियों का ही कमाल था। सुगना का मादक जिस्म कजरी की निगाहों के ठीक सामने था। कजरी ने सुगना को इसके पहले सिर्फ एक बार ही पूरा नंगा देखा था। उसने सुगना को माथे पर चूम लिया और कहा..

...कुंवर जी के हाथ लगला से हमार बहू, रानी के नियन लाग तारी। भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे... सुगना के प्रति सरयू सिंह की आसक्ति का कारण अब कजरी जान चुकी थी। सुगना सच बेहद खूबसूरत लग रही थी सीने पर बड़ी-बड़ी तनी हुयी चूचियां और गदराई हुई जांघों के जोड़ पर हल्के हल्के बाल और उसके पीछे झांक रही उसकी प्यारी बुर... ओह... कजरी सुगना की खूबसूरती में खो गई थी।

कजरी अपने बेटे रतन को कोस रही थी। जिसके भाग्य में इतनी सुंदर कली भगवान ने दी थी पर वह उसकी कदर न कर पाया था...

कजरी ने सुगना को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ को सहलाते हुए उसने सुगना के कान में कहा..

...अब हम जान गईनी तोहर बाबूजी दिन भर काहें तोहरा आगे पीछे घुमेले... इतना कहकर कजरी में सुगना के कोमल नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया सुगना ने कजरी के गालों को चुम लिया और बोली

...सब आपेके कइल धइल हा...

कजरी ने सुगना को चौकी पर लेट जाने का इशारा किया सुगना पेट के बल लेट गई और कजरी ने मालिश शुरू कर दी। पैरों और पीठ की मालिश करने के बाद कजरी उसके कोमल नितंबों की मालिश करने लगी। वह अपने दोनों हाथों से सुगना के चूतड़ों को फैलाती और छोड़ देती वह दोनों वापस अपनी जगह पर आते पर कुछ देर तक हिलते रहते। कजरी ने कटोरी का गर्म तेल सुगना की दोनों चूतड़ों के बीच डाल दिया जो बीच की दरार से होता है सुगना की गदरायी गांड तक पहुंच गया। उसकी कोमल चमड़ी पर उस गर्म तेल के स्पर्श से सुगना चिहुँक उठी। उसने कहा

... माँ पोछ ढेर गरम बा...

कजरी ने अपनी उंगलियों से उसे पोछने की कोशिश की पर आज वह शरारत के मूड में थी उसने सुगना की गांड में अपनी तर्जनी उंगली कुछ ज्यादा ही अंदर तक कर दी तेल लगे होने की वजह से तर्जनी का ऊपरी भाग सुगना की गांड में घुस गया वह ज्यादा अंदर तक तो नहीं गया पर निश्चय ही मांसल भाग के आखिरी किनारे तक पहुंच गया था। इसके पश्चात जाना कजरी की उंगलियों को गंदा कर सकता था। कजरी की सधी हुई उंगलियां अपनी मर्यादा में रहते हुए वापस आ गयीं पर उसकी इस क्रिया ने सुगना के मन में एक अजीब सी संवेदना पैदा कर दी। उंगलियां हटने के बाद भी ऊपर से आता हुआ तेल सुगना की गांड के अंदर जाने का प्रयास करने लगा एक बार फिर कजरी ने अपनी उंगलियां कुछ दूर अंदर तक ले जाकर उसे पोछने का प्रयास किया पर यह क्रिया तेल पोछने की कम सुगना को उत्तेजित करने की ज्यादा लग रही थी। कजरी की उंगलियों ने सुगना की गांड का फूलना पिचकना महसूस कर लिया था। सुगना की सांसे अब तेज चल रही थीं।

वह कुछ बोल नहीं रही थी पर उसकी सासू मां कजरी अपनी बहू को जानती थी। एक बार फिर कटोरी का गर्म तेल सुगना के चूतड़ों पर गिर रहा था कुछ देर सुगना की गांड को सहलाने के बाद कजरी की उंगलियां स्वता ही नीचे चली गई सुगना की बुर से रिस आया मदन रस कजरी की उंगलियों में चासनी की भांति लग गया। कजरी ने अपने अंगूठे और तर्जनी से सुगना के प्रेम रस की सांद्रता को नापना चाहा। दोनों उंगलियों के बीच सुगना का प्रेम रस चासनी की बात सटा हुआ था उसका चिपचिपा पन निश्चय ही कुंवर जी के लंड को अपने भीतर समाहित करने के लिए आवश्यक था। कजरी मन ही मन उत्तेजित हो रही थी उसने कहा.

...लागा ता तू अपना बाबूजी के याद कर तारू... सुगना शर्मा गई उसने अपनी गांड को पूरी तरह से सिकोड़ लिया और जांघों को आपस में सटा लिया एक पल के लिए कजरी की उंगलियां उन कोमल दरारों के फसी गई।

सुगना अब पीठ के बल आ चुकी थी। सुगना की गोरी और मखमली चूत अब कजरी के ठीक सामने थी और प्रेम रस से पूरी तरह भीग कर चमक रही थी। जिस तरह गुलाब की पंखुड़ियों पर ओस की बूंदे दिखाई पड़ती है उसी तरह सुगना की चूत के होंठो पर पर प्रेम रस की छोटी-छोटी बूंदे दिखाई पड़ रही थी। दिए रूपी बुर के निचले भाग से मदन रस चूने को तैयार था। उत्तेजनावश बुर की फांके फुल कर अलग हो गई थी और छोटे बालक सूरज का जन्म स्थान दिखाई पड़ने लगा था।

सुगना के उस सुनहरे छेद को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था की उसने कुछ दिनों पहले उसी छेद से एक बच्चे को जन्म दिया हुआ था। आज सुगना की वही चूत कजरी की उंगली के लिए भी दबाव बनाये हुए थी।

सुगना के लिए अब अपनी उत्तेजना छुप पाना कठिन हो रहा था। कजरी की हथेलियां अब सुगना की जांघों की मसाज कर रही थी। जैसे ही उसकी उंगलियां सुगना की चूत से सटती सुगना की सांसे तेज हो जाती। वह कजरी के हाथ पकड़ने की कोशिश करती। कजरी अब मूड में आ चुकी थी। उसने उसकी नाभि के आसपास भी तेल लगाया और अब सीधा उसकी चुचियों पर आ गई।

हाथों से उसकी चुचियों को मीसते हुए उसने सुगना से पूछा

...अब दूध त भरपूर होला ना?...

... हां मां...

... तब बाप बेटा बेटा दोनों पियत होइहें?...

...सुगना मुस्कुरा रही थी...

उसने फिर पूछा

...अच्छा के ढेर पीयेला...

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी उसने अपने हाथ से सरयू सिंह का लंड बनाने की कोशिश की. अपनी दाहिने हाथ की हथेलियों को मुट्ठी का रूप दिया और बाएं हाथ की हथेली से अपनी कोहनी के ऊपर का भाग पकड़ लिया और कजरी को दिखाते हुए कहा

... इहे ढेर पीएले ...राउर.. कुँवर जी...

कजरी भी हंस पड़ी तभी सरयू सिंह की आवाज आई...

...अरे उ मुखिया के यहां जाए के रहे नु. जा ना तुही परसादी लेले आव।...

...हम रहुआ बाबू के तेल लगाव तानी...

सुगना आश्चर्य से कजरी की तरफ देख रही थी कजरी ने सुगना को बाबू कह कर पुकारा था।

सरयू सिंह ने कहा

...तू चल जा बाबू के तेल हम लगा देब ओसहूं हम नहाए जा तानी...

...ठीक बा हम जा तानी।. जल्दी आयी ना त राउर बाबू के ठंडा मार दी कपड़ा नइखे पहिनले।

इतना कहकर कजरी ने सोते हुए सूरज को अपनी गोद में उठाया और पड़ोस में मुखिया के घर प्रसाद लेने चली गई। सुगना मुस्कुरा रही थी उसकी सासू मां कजरी ने मन ही मन कुछ और सोच रखा था जो अब सुगना को तो समझ आ चुका था । सुगना ने अपने ऊपर चादर डाल दी और अपने बाबूजी का इंतजार करने लगी...

Chapter 7

चौकी पर लेटी हुई नंगी सुगना की सांसे तेज चल रहीं थीं। कजरी ने उसके शरीर की मालिश करते हुए उसे उत्तेजित कर दिया था। बस अंदरूनी मालिश बच गई थी जो सरयू सिंह के अद्भुत और मजबूत लंड से ही होनी थी. सुगना अपनी कोमल बुर में प्रेम रस भरे हुए अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी...

अपनी उत्तेजना को कायम रखने के लिए अपनी कोमल बुर को सहलाते हुए अपनी पुरानी यादों मे खो गयी...

सरयू सिंह द्वारा लाई गई बछिया के साथ खेलते खेलते सुगना अपने दर्द भूल गयी थी। उसका दिन बछिया के सहारे बीत जाता और रात को वह कजरी और सरयू सिंह का मिलन याद कर उत्तेजित हो जाती और अपनी बूर को चारपाई के बांस पर रगड़ कर वह स्खलित हो जाती।

पर जब भी वह सरयू सिंह के जादुई लंड को याद करती वह सिहर उठती। जैसे जैसे वो उत्तेजित होती वह लंड उसे अपने बेहद करीब महसूस होता। कभी वह अपने ख्यालों में उसे छूती कभी अपने कूल्हों और जाँघों से सटा हुआ महसूस करती। सुगना उस समय एक अधखिली कली की तरह थी जो शासकीय तौर पर जवान हो चुकी थी पर इतनी भी नही के सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और कामुक मर्द की उत्तेजना झेल सके।

वह सरयू सिंह के लंड के बारे में सोच कर अपनी बुर की प्यास तो वो मिटा लेती पर मन ही मन खुद को कोसती. वो आखिर उसकी पिता के उम्र के थे.

यह गलत है... यह गलत है... उसकी अंतरात्मा चीख चीख कर यह बात उसको समझाती पर उसकी चूत की मनोदशा ठीक उलट थी जो इन सब रिश्तों से दूर अब चुदने के लिए बेचैन हो रही थी।

एक दिन सुगना और कजरी दालान में बैठकर मटर छील रही थीं। सरयू सिंह अपनी गाय को नहला रहे थे। बाल्टी और मग्गे से उन्होंने गाय के पूरे शरीर को धोया वो एक साबुन की बट्टी भी ले आये थे। गर्म धूप में गाय को वह स्नान अच्छा लग रहा था। बछिया भी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी।

सुगना उत्साहित थी जैसे ही गाय का नहाना खत्म हुआ उसने कहा

...बाबूजी हमरो बछिया के...

सरयू सिंह हंसने लगे और एक बाल्टी पानी लेकर वापस उस बछिया के पास आ गए। सुगना खुश हो गई। वह उस बछिया को धोने लगे। अचानक उनके हाथ बछिया के पेट पर चले गए वह उसके पेट की सफाई करते करते उस बछिया के स्तनों को भी साफ करने लगे। सुगना सिहर उठी। घूंघट के अंदर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

वह सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों को उस बछिया की चूचियों को धुलते देखकर स्वयं गनगना गई थी। उसे एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के हाथ उसकी ही चूचियों पर हैं। वाह भाव विभोर होकर वह दृश्य देख रही थी।

कजरी ने कहा ...बेटी जल्दी-जल्दी छील... सुगना की उंगलियां फिर चलने लगी पर उसकी कजरारी आंखें अभी भी सरयू सिंह की हथेलियों पर थीं। सरयू सिंह ने बछिया के स्तनों पर लगे छोटे-छोटे कीड़ों को हटाना शुरू किया। ( गांव में अक्सर मवेशियों के स्तनों में छोटे-छोटे कीड़े चिपक जाते हैं) सरयू सिंह अपने हाथों से वह निकालने लगे बीच-बीच में वह बछिया के स्तनों को सहला देते। उसकी चूचियों पर हाथ पढ़ते ही सुगना से बर्दाश्त ना होता उसे अब उसे अपनी जांघों के बीच गजब गीलापन महसूस हो रहा था।

बछिया को धोते समय सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा ताकि वह उसकी प्रतिक्रिया देख सकें पर सुगना ने शर्म से अपना सर झुका लिया।

कजरी की उपस्थिति में वह अपनी बुर को छू भी नहीं सकती थी और न ही अपनी चूचियों को सहला सकती थी। वह उत्तेजना से भर चुकी थी और जल्द से जल्द वहां से हटना चाहती थी। उसने कजरी से अनुमति मांगी और भागकर गुसलखाने में चली गई।

जब वह मूतने के लिए नीचे बैठी, उसकी बुर से रिस रही चिपचिपी लार जमीन पर छू गयी।

सुगना की उंगलियां अपनी बुर के दाने पर चली गयीं। उत्तेजना में मूत पाना उसके लिए संभव नहीं हो रहा था।

उसने अपने दाने को मसलना शुरू किया। सुगना की जाँघें तन गयीं। वह कभी अपनी जांघों को आपस में सटाती कभी दूर करती, कभी अपने कोमल नितंबों को ऊपर करती। वह तड़प रही थी उसकी कुवांरी चूत पानी छोड़ने लगी उत्तेजना धीमी पड़ते ही मूत्र की तेज धार भी बाहर आ गई। सुगना तृप्त हो गई थी। आज उसकी कामुकता में एक नया अनुभव जुड़ गया था।

सुगना के कोमल मन में सरयू सिंह की छवि धीरे-धीरे बदल रही थी। वह उनके प्रति आकर्षित हो रही थी। उसे भी यह बात पता थी कि सरयू सिंह उसके पिता तुल्य थे और ससुर थे। पर वह एक बलिष्ठ और दमदार मर्द थे इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता था। सुगना को वह पसंद आने लगे थे। पर क्या वह अपने शरीर को उन्हें छूने देगी? जब वह सोचती वह शर्म से पानी पानी हो जाती पर जब एक बार उसके मन में यह विचार आ गया तो वह इस बारे में बार-बार सोचने लगी. जितना ही वह सोचती उतना ही वह उनके प्रति आसक्त होती. यह अद्भुत अनुभव था।

अपने ससुर को अपनी कल्पना में रख उसने कई बार अपनी चूत को सहलाया और मन ही मन उनके उस विशालकाय लंड को छूने और अपनी चूत पर रगड़ने के लिए खुद को तैयार किया। उसे अपनी चूत के अंदर ले पाना अभी भी उसकी कल्पना से परे था। सरयू सिंह का मूसल खलबट्टे के लायक था और सुगना की चूत अभी अदरख कूटने वाली ओखली के जैसे छोटी थी। इन सब के बावजूद सुगना अपनी कल्पनाओं में धीरे-धीरे सरयू सिंह के नजदीक आ रही थी।

सुगना को इस घर मे आये कई दिन बीत चुके थे पर सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे। घूंघट होने की वजह से चेहरा देखना संभव नहीं था न ही उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास किया था । वैसे भी सरयू सिंह के मन में उस समय तक सुगना के प्रति कोई कामुक भावनाएं नहीं थी। वह अपनी आत्मग्लानि से उबर रहे थे और सुगना को भरसक खुश करने का प्रयास कर रहे थे।

समय तेजी से बीत रहा था।उधर नियति उन्हें करीब लाने की साजिश रच रही थी। उस दिन बड़ी वाली गाय रंभा रही थी। उसकी योनि से चिकना द्रव्य बह रहा था। कजरी और सरयू सिंह बाहर टहल रहे थे। कजरी ने कहा

...लागा ता टाइम हो गइल बा जाइं ना भुवरा के बोल दी सांडवा के लेले आयी।... भूवरा पास के गांव का ही एक व्यक्ति था जिसने एक बलशाली सांड पाला हुआ था वही आसपास की सभी गायों को गर्भवती करने के काम आता था।

शाम तक भूवरा सांड लेकर दरवाजे पर आ चुका था। कजरी, सरयू सिंह और हरिया बाहर ही थे बाहर की गहमागहमी देखकर सुगना भी अपनी कोठरी से खिड़की खोल कर बाहर के दृश्य देखने लगी।

सांड निश्चय ही बेहद बलिष्ठ और मजबूत था। कुछ ही देर में सांड को गाय के पास लाया गया। बगल में बछिया भी टुकुर टुकुर देख रही थी। उसकी जवानी फूटने में ज्यादा वक्त नहीं था बस कुछ ही दिनों की बात थी ।

वह सांड बार-बार बछिया की तरफ ही आकर्षित हो रहा था। हरिया और सरयू सिंह उसे खींचकर गाय की तरफ लाते पर वह अपनी ताकत से वापस बछिया की तरफ चला जाता। सांड बार बार अपना चेहरा बछिया के पिछले भाग की तरफ ले जाता और उसे सूंघने का प्रयास करता।

कजरी यह देख कर मुस्कुरा रही थी। वह शर्माकर वहां से हट गई और दालान में आकर बैठ गयी। उधर कोठरी के अंदर सुगना सिहर रही थी। वह यह दृश्य अपने बचपन मे भी देख चुकी थी पर आज अलग बात थी। आज वह बलिष्ठ सांड उसकी बछिया के साथ मिलन का प्रयास कर रहा था। सुगना की खुद की चूत संभोग के लिए आतुर थी। उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया था। उसकी कल्पना में सांड की जगह सरयू सिंह दिखाई पड़ने लगे और उस गाय की जगह उसकी अपनी सास कजरी।

सुगना अपनी सोच पर मुस्कुराई पर उसकी मुस्कुराहट पर उसकी उत्तेजना भारी थी। वह सांसे रोक कर यह दृश्य देख रही थी पर उसकी धड़कन तेज थी। उसने अपनी जाँघे आपस में सटाई हुई थी जैसे वह अपनी चूत से बह रहे मदन रस को वही रोके रखना चाहती हो।

सरयू सिंह सांड को खींच कर गाय की तरफ ले जाते पर वह बार-बार बछिया के पीछे जा रहा था और उछलकर उस पर चढ़ने का प्रयास करता। हरिया के कहा

...सार, इनको के नइकी माल चाहीं...

सरयू सिंह मुस्कुरा दिये। उधर सुगना अपनी जाँघों के बीच बहते मदन रस को अपने पेटीकोट से पोछ रही थी। उसे यह तो पता था की जानवरों में भी संभोग उसी प्रकार होता है जैसा मनुष्यों में पर क्या भावनाएं भी उसी प्रकार होंगी। क्या बाउजी भी उसके बारे में ऐसा सोचते होंगे?

उसे अपनी सोच पर शर्म आयी पर चूत तो विद्रोही हो चुकी थी। वह इस सोच पर सिहरने लगी। सुगना अपनी कोमल हथेलियों से अपनी बुर को मुट्ठी में भरकर अपनी उत्तेजना को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

हरिया ने बछिया को वहां से हटा दिया। सांड के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। वह कुछ देर इधर-उधर देखता रहा और फिर गाय के ऊपर चढ़ गया। सुगना एक पल के लिए उस सांड के लिंग को देख पायी। सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह एक बार फिर कजरी को ही चोद रहे थे सुगना और उसकी बछिया को को शायद अभी और इंतजार करना था...

परन्तु आज सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था सरयू सिंह के कदमों की आहट सुगना सुन पा रही थी। जैसे-जैसे उनके कदम करीब आ रहे थे सुगना की सांसे रुक रही थी पर उसकी कोमल चूत मुस्कुराने लगी थी

दरअसल सरयू सिंह नहाने ही जा रहे थे तब तक उन्हें मुखिया के घर हो रही पूजा का ध्यान आ गया था। वह अपनी लंगोट उतार चुके थे कजरी के कहने पर वह अपने सूरज बाबू को तेल लगाने के लिए उन्हीने वापस अपनी कमर में धोती लपेटी और सुगना के रूम में प्रवेश कर गए। चौकी पर सुगना लेटी हुई थी और चारपाई खाली थी छोटा बाबू हमेशा चारपाई पर ही सोता था उन्होंने पुकारा...

...सुगना बेटा...

सुगना ने कोई उत्तर नहीं दिया.

...सुगना बेटा... इस बार आवाज और भी मीठी थी पर सुगना ने फिर भी कोई उत्तर न दिया परंतु उसके होठों पर मुस्कान आ चुकी थी।

वो सुगना की चादर धीरे-धीरे खींचने लगे। जैसे-जैसे चादर हटती गयी सुगना का तेल से भीगा हुआ कोमल और सुंदर शरीर सरयू सिंह की निगाहों के सामने आता गया एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह खजुराहो की किसी मूर्ति का अनावरण कर रहे हों।

अपनी नग्न चूत का एहसास जब सुगना को हुआ उसने अपनी जाँघे एक दूसरे पर चढ़ा लीं और अपनी अध खुली आंखों से अपने बाबू जी को देखने लगी। उन आखों ने आज सरयू सिंह की धोती को उठते हुए देख लिया। धोती के अंदर छुपी हुई अनुपम कलाकृति अपना आकार बड़ा रही थी।

अपनी जान से प्यारी बहू को इस अवस्था में देखकर सरयू सिंह अपनी उत्तेजना को काबू में ना रख पाए और लंगोट न पहने होने की वजह से उनका लंड खुलकर सामने आ गया.

सरयू सिंह सुगना की आंखों में वासना देख चुके थे उनकी खुद की आंखें अब लाल हो चुकी थी सूरज कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। सुगना को इस हाल में देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न था। वह खुशी को काबू में नहीं रख पा रहे थे फिर भी उन्होंने सुगना से पूछा

...भवजी कहत रहली बाबू के तेल लगावे के, कहां बा? लाव लगा दी...

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी. उसने इतराते हुए कहा

...उ का तेल धइल बा लगा दीं?...

...लेकिन बाबू कहां बा?...

...हम राउर बाबू ना हईं? सासू मां हमरे के तेल लगावत रहली हा रउआ उनका के भेज देनी हां. उ सूरज के लेके पूजा में चल गइली...

सुगना ने यह बात बड़ी मासूमियत से कह दी पर उसकी मासूमियत ने सरयू सिंह के लंड को उछलने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था वह चौकी पर आ गए। धोती जाने कब उनके शरीर से अलग हो चुकी थी।