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Click here"ऊह यस।" लूसी कराही और उसने चुंबन तोड़ दिया। उसने वासना भरी आँखों से मुझे देखा और उसे फिर मुझे उतनी ही उत्तेजना से दुबारा चूमा, मैंने अपने जीभ उसके मुँह में सरका दी तो वह मेरी जीभ चूसने लगी। मेरा हथियार अपने पूरे जोश पर था वह भी उसके बदन पर अपने चुम्मे दे रहा था म्यान प्रवेश के लिए मचल रहा था। वह अभी भी अपने हाथों को मेरी पीठ और नितंब पर चला रही थीl
वो हैरान-परेशान ये सब देख रही थी कि मैं अपना हाथ नीचे ले गया और चूत और गांड पर पूरा हाथ फेरा। बिल्कुल मक्खन जैसी चूत और गांड देख कर मैंने कहा-ओह, वाह ... मज़ा आ गया जेन मेरी जान मुझे तुझसे यही उम्मीद थीl ऐसा लगता है जैसे लूसी के बाल आते ही ना हों। तुमने इसके बाल इतने बढ़िया साफ़ करे हैंl यह कहकर मैंने अपने होंठ, लूसी के लबों पर रख दिये और चूसने लगा।
इस बार यह किस कुछ और ही था ... ज़बरदस्त। मैं मुँह में मुंह डाल कर वह किस नहीं कर रहा था बल्कि लूसी को घूंटें भर के पी रहा था।
मैंने अपना हाथ बूर पर रख दिया, लूसी ओह्ह्ह्हह आमीररर कहकर चिहुँक उठी, उसका पूरा बदन थरथरा और गनगना उठा, मेरे को हाथ लगाते ही ये महसूस हुआ कि उसकी बूर तो पहले से ही भट्ठी की तरह जल रही है, मैं मदहोश हो गया इतनी नरम और गरम बूर को छूकर, बूर तो फूलकर अपने सामान्य आकार से काफ़ी ज़्यादा बड़ी हो चुकी थी पर उसका प्यारा-सा नरम-नरम संकरी छेद वैसे ही कसा हुआ था, बूर की फांकें संभोग की आग में गरम होकर जल रही थी। मैं लूसी की
बूर को हथेली में भरकर मीजने लगा, फांकों पर तर्जनी उंगली से दबाने लगा, पूरी बूर का मानो मुआयना कर रहा हो, कभी अपनी बीच वाली उंगली को बूर की दरार में डुबोता तो कभी फांकों को सहलाता।
लूसी का बदन अब थरथराने लगा, उत्तेजना चरम सीमा तक इतनी जल्दी चढ़ जाएगी ये लूसी को विश्वास नहीं था, उसकी बूर नदी की तरह बहकर कामरस छोड़ने लगी।
लूसी हाय-हाय करने लगी, उसको असीम आनद की अनुभूति होने लगी, काफ़ी देर मैं लूसी की बूर को छेड़ता, सहलाता और भींचता रहा, कभी वह दाने को दो उंगलियों से पकड़कर सहलाता, कभी अपनी तर्जनी उंगली दाने पर गोल-गोल घुमाता और फिर कभी उँगलियों से बूर के मदमस्त नरम-नरम छोटे से छेद को छेड़ता। जैसे ही मैं लूसी की बूर के भागनाशे को छेड़ता लूसी बुरी तरह थरथरा जाती, उसका पूरा बदन ऐंठ जाता और उसके मुंह से आहह, ह्ह्ह्हआआईइइइ, उफ़, धीरे-धीरे सिसकारियों के साथ निकलने लगता। लूसी को इतना मज़ा अभी तक कभी नहीं आया था वह तो जैसे जन्नत में पहुँच गयी थी।
नीचे से मैंने अपनी एक उंगली जब लूसी की भीगी चूत में डाली तो वह बेचारी हिल गयी। वह अगले ही पल मैं कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगी और मुझ से चिपट गयी। यह देखकर मैंने अपनी उंगली का अगला हिस्सा चूत में घुसा दिया। होंठ अभी होंठों में थे और मैं उसी तरह उसे पी रहा था।
इन 5-7 मिनटों में ही काम के समुन्दर की जिन गहराइयों में वह मुझे ले गयी, मैं वहाँ तक पहले कभी नहीं गया था और लूसी तो अनछुयी हुई थी ही। इसलिए उसके मुंह से एक तेज़ 'ऊंह...' निकली क्योंकि मैंने अपने होठों के शिकंजे से उसके लबों को भींचा हुआ था।
अब इसी तरह वह मेरी मज़बूत बांहों में लेटी रही क्योंकिउसे अब अहसास हो गया था कि प्रतिरोध एकदम व्यर्थ है। उसने अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और उसमें गुम होने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई सपना हो।
मैं अपनी आधी उंगली चूत में आगे पीछे कर रहा था। एक बार फिर दर्द एक असीम आनंद में बदल गया था। कुछ पलों बाद वह बड़ी तेज़ी से झड़ने की कगार पर पहुँची ही थी कि मैंने अचानक उंगली एकदम बाहर निकाल ली। ऊँगली बाहर निकालते ही उसने होंठों को भी आज़ाद कर दिया।
लूसी के काम रस से मेरी पूरी उंगली काफ़ी पहले ही भीग चुकी थी, अब वह लंड खाकर उसकी जबरदस्त चुदाई से झड़ना चाहती थी। मैंने उंगलियों को अपनी नाक के पास लाके सूंघा और कामरस को चाटने लगा
लूसी ने अपना हाथ वहाँ से हटा लिया और पीठ के बल लेट गयी, उसने महसूस किया कि मैं बड़े चाव से कामांध होकर उसकी बूर का रस चाट रहा हूँ, मैंने तर्जनी उंगली डालकर मक्ख़न निकाला, जैसे ही मैंने तर्जनी उंगली को बूर की दरार में डुबोया, लूसी के मुंह से फिर से एक बड़ी आआह्ह्ह्ह निकल गयी।
महक में सना बूर का मक्ख़न मैं मदहोश होकर चाट गया, फिर लूसी की ही बूर का मक्ख़न अपनी उंगली में लगा के उसके होंठो तक ले गया, लूसी उसकी महक से फिर मदहोश हो गयी और लब खोल दिये, मैंने उंगली उसके मुँह में डाल दी और वह चाटने लगी जैसे बरसों की प्यासी हो, मैं कभी उसके होंठों पर अपनी उंगली से वह रस लिपिस्टिक की तरह लगाता और लूसी जीभ होंठों पर फिरा-फिरा के चाटती तो कभी अपनी पूरी उंगली उसके मुँह में घुसेड़ देता और लूसी लॉलीपॉप की तरह चूसती, ऐसे ही मैंने तीन बार बूर का रस छाता और लूसी को चटाया।
हैरान-परेशान लूसी ने उस समय इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि एक लफ्ज़ भी मुँह से निकाल सके।
कहानी जारी रहेगी