बाबूजी तनी धीरे से... दुखाता 04

Story Info
सुगना का खजाना और सरयु सिह.
7.9k words
4.5
354
00

Part 4 of the 5 part series

Updated 06/10/2023
Created 02/23/2021
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शहर से आने के बाद सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी। उसने आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।

उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन उचाई पर रख दी थी जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।

सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।

कजरी ने कहा...

...कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब...

कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।

सुगना बेसब्र मन से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।

कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे...

कजरी के हाथ सरयू सिंह के लंड तक पहुंच गए । कजरी ने उनकी जांघों पर लंगोट न पाकर पूछा

...पहिलही तैयारी कर के आइल बानी...

वह मुस्कुराने लगे उनका लंड अब तनाव में आ चुका था। कजरी ने उनके लंड को बाहर निकाल लिया और अपने हाथों में तेल लेकर उसे सहलाने लगी। जैसे जैसे कजरी के हाथ उस पर चल रहे थे लंड का तनाव बढ़ता जा रहा था। कुछ ही देर में वह अपने पूर्ण आकार में आ गया। काला लंड तेल लग जाने से चमक रहा था। उसका मुखड़ा चुकंदर के जैसा लाल था।

सुगना अपने झरोखे से वह दृश्य देख रही थी उसका बहुप्रतिक्षित जादुई यंत्र उसके आंखों के सामने था जिस पर उसकी सास ने अधिकार जमा रखा था। कजरी के गोरे हाथों में उस काले लंड को देखकर वह सिहर उठी। कितना सुंदर था वह लंड । वह उसे छूना चाहती थी उसे महसूस करना चाहते थी। उसके सुपारे पर बना हुआ छोटा छेद सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। यही वह द्वार था जहां से प्रेम रस आता होगा वह लंड की कल्पना में खोई हुई थी उधर उसकी हथेलियां अपने बुर तक पहुंच गयीं।

वह कभी उसे सहलाती कभी थपथपाती कभी उसे पकड़ने की कोशिश करती। बुर ने प्रेम रस छोड़ना शुरू कर दिया था जो उसकी हथेलियों को भिगो रहा था।

उधर कजरी ने लंड को तेजी से आगे पीछे करना शुरू कर दिया। सरयू सिंह की आंखें बंद हो रही थी। सरयू सिंह के हाँथ हरकत में आ गए उन्होंने कजरी की साड़ी खींचना शुरू कर दी। कजरी भी उनका साथ दे रही थी। कुछ ही देर में कजरी सिर्फ पेटीकोट में चारपाई पर थी।

सरयू सिंह ने कहा

...एकरो के खोल द...

...पहले तेल त लगा दी...

... हमु लगाइब...

कजरी खुश हो गई वह चारपाई से नीचे उतरी और अगले ही पल उसका पेटीकोट जमीन पर आ गया। लालटेन की रोशनी में सुगना के बाबूजी और उसकी सास जन्मजात नग्न अवस्था में आ गए थे।

कजरी ने कहा

...लालटेनवा त बुता (बंद) दीं...

...जरे द तहर बुर देखले ढेर दिन हो गइल बा...

सरयू सिंह के इस उदगार वाक्य में आलस और उत्तेजना दोनो का ही अंश था।

सुगना, कजरी की सुंदरता देख कर आश्चर्यचकित थी। इस उम्र में भी उसके बदन खासकर चूँचियों और नितंबों का आकार और कसाव कायम था।

कजरी अब सरयू सिंह के पेट पर बैठ चुकी थी। उसका चेहरा उनके पैरों की तरफ और सुगना की कोठरी कि तरफ था। उसकी बुर ठीक सरयू सिंह की नाभि पर थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की नाभि कजरी की बुर से रिस रहे लार को इकठ्ठा करना चाह रही हो।

सुगना अपनी सास का चेहरा देख पा रही थी जो अब वासना से ओतप्रोत था। अब सरयू सिंह का चेहरा देखना उसके लिए संभव नहीं था फिर भी सुगना को सरयू सिंह के जिस अंग से सबसे ज्यादा प्यार था वह उसकी आंखों के ठीक सामने था।

कजरी फिर अपने हाथ एक बार उस लंड पर लायी और उसे सहला दिया। वह आगे बढ़कर उनके पैरों की मालिश करने लगी।

कजरी मालिश करने के लिए जैसे ही उनके पैरों तक पहुंचती उसकी चूचियां सरयू सिंह के लंड से टकरा जाती। सरयू सिंह का लंड भी उन मुलायम चूँचियों के स्पर्श से उछल जाता। लंड की उछाल सुगना अपनी आंखों से देख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कजरी की चूचियाँ सरयू सिंह के काले नाग को छेड़ रही हैं वह बार-बार उछलकर चुचियों के निप्पल से टकराने की कोशिश करता तब तक कजरी आगे बढ़ जाती।

उधर सरयू सिंह कजरी की फूली हुई बुर् का दीदार कर रहे थे। जब कजरी उनके पैरों तक पहुंचती कजरी की बुर थोड़ा सिकुड़ जाती पर वापस आते समय उसका बुर के होठों में छुपा पनियाया गुलाबी मुख सरयू सिंह की आंखों के सामने आ जाता। सरयू सिंह को वह गुलाबी गुफा बेहद प्यारी थी।

आखिर में कजरी की बुर सरयू सिंह की नाभि पर आकर टिक जाती। कजरी की बुर से बह रहा चिपचिपा रस सरयू सिंह की नाभि में भर चुका था। जब कजरी आगे बढ़ती एक पतली चिपचिपी लार नाभि और बुर के बीच में बन जाती सरयू सिंह को स्त्री उत्तेजना का यह प्रतीक बेहद आकर्षक लगता जितना ज्यादा रस बुर से निकलता सरयू सिंह उतना ही खुश होते ।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपनी हथेलियों में तेल लिया और कजरी की पीठ पर लगाने लगे कुछ ही समय में हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया और वो कजरी की चुचियों को मीसने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह मैदे की दो बड़ी-बड़ी गोलाइयों को अपने हाथों से गूंथ रहे थे।

सुगना सिहर उठी उनकी मजबूत हथेलियों में अपनी सास कजरी की चूँची को देखकर वह वासना से भर गई। वह अपने हाथों से ही अपनी चूचियां दबाने लगी। सुगना की चूचियां पूरी तरह तनी हुई और कड़ी थी वह चाह कर भी अपनी चुचियों को उतनी तेजी से नहीं दबा पा रही थी जितनी तेजी से सरयू सिंह कजरी की खुशियों को मसल रहे थे। सुगना के कोमल हाथ उसकी चूचियों को वह सुख दे पाने में नाकाम थे जो सरयू सिंह की हथेलियां कजरी को दे रही थी।

सरयू सिंह कजरी की चूचियों को तेजी से मसल रहे थे। कजरी ने कहा

...कुंवर जी तनी धीरे से ...दुखाता...

सरयु सिंह ने कजरी को और पीछे खींच लिया. अब कजरी के गदराये नितंब उनके चेहरे के पास आ चुके थे। कजरी जैसे ही तेल लगाने के लिए आगे की तरफ झुकी उसने अपनी कमर पीछे कर दी। उसकी बुर सरयू सिंह के होठों पर बिल्कुल करीब आ गयी। सरयू सिंह ने देर न की और अपने होंठ अपनी भौजी कजरी के बुर् के होठों से सटा दिए।

कजरी चिहुँक उठी उसने सरयू सिंह की तरफ देखा। पर वह तो अपना चेहरा उसके नितंबों में छुपाए हुए थे। होंठ कजरी की बुर चूस रहे थे और नाक कजरी की गांड से छू रही थी।

सुगना अपने बाबू जी का चेहरा तो नहीं देख पा रही थी पर कजरी की कमर में हो रही हलचल से वह अंदाज जरूर लगा पा रही थी। तभी एक पल के लिए कजरी ऊपर उठी। सुगना को सरयू सिंह की ठुड्डी दिखाई पड़ गई। कजरी की भग्नासा सरयू सिंह की ठुड्डी से टकरा रही थी। कजरी की बुर् सरयू सिंह के होठों से सटी हुयी थी। सरयू सिंह बुर के होठों को चूसे जा रहे थे बीच-बीच में उनकी लंबी जीभ दिखाई पड़ती जो कजरी की बुर में न जाने कहां गुम हो जा रही थी।

सुगना तड़प उठी एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के होंठ उसकी अपनी ही बुर पर आ गए हों. बुर के अंदर एक मरोड़ सी उठी। उसने अपनी जांघों को तेजी से सिकोड लिया बुर को सहला रही उसकी हथेलियां स्वतः ही सिकुड़ गई और छटक कर बाहर आ गयीं।

सरयु सिंह की जीभ अपना कमाल दिखाने लगी और कजरी की कमर तेजी से हिलने लगी। वह स्वयं अपनी बुर को अपने कुंवर जी के चेहरे पर रगड़ने लगी। कजरी ने अपने होंठ खोलें और अपने कुंवर जी के मोटे लंड को अपने होंठों के बीच ले लिया। सुगना से अब और बर्दाश्त ना हो रहा था। सुगना को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी सासु मां ने उसका लॉलीपॉप छीन लिया हो। बात सही थी चुदने की उम्र सुगना की थी और चुद कजरी रही थी। नियति का यह खेल निराला था। सुगना के लॉलीपॉप पर उसकी सास ने कब्जा कर रखा था।

सुगना अपनी चिपचिपी बुर को अपनी उंगलियों से फैला रही थी वह अपनी उंगली को बुर के अंदर प्रवेश कराना चाहती थी पर उसकी कौमार्य झिल्ली उसे रोक रही थी। वह जैसे ही अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाती एक दर्द की लहर उसकी बुर में उठती। अपनी उंगलियों को हटा लेती। इस खुशी के मौके पर वह दर्द सहने के मूड में नहीं थी। उसने अपना ध्यान बुर् की भग्नासा पर लगा दिया। उसे सहलाने में उसे अद्भुत आनंद मिलता था।

उधर कजरी सरयू सिंह के लंड को तेजी से चूसने लगी। कजरी के मुंह में उनके लंड का एक चौथाई भाग ही जा पाता इससे ज्यादा जाना संभव भी नहीं था। कजरी के मुख से लार बहने लगा था जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिस रहा वीर्य भी शामिल था। कजरी की हथेलियां उसे लंड पर बराबरी से लगा रही थी। वह उनके अंडकोशो को भी सहला रही थी जो लंड के साथ सहबाला ( विवाह के समय दूल्हे के साथ जाने वाला छोटा बच्चा जो सामान्यतः छोटा भाई या रिश्तेदार होता है ) की तरह सटे हुए थे।

कुछ देर सरयु सिंह का लंड चूसने के बाद अचानक कजरी सरयू सिंह के ऊपर से उठ गयी। यह दृश्य देख रही सुगना अचानक हुए दृश्य परिवर्तन से हड़बड़ा गयी। वह जिस डिब्बे पर खड़ी होकर यह दृश्य देख रही थी असंतुलित होकर उसके पैरों से हट गया एक टनाक... की आवाज आई कजरी और सरयू सिंह सचेत हो गए. आवाज सुगना के कमरे से आई थी।

कजरी ने कहा

...जाकर देखी ना का भईल बा...

...तू ही चल जा...

...हमरा कपड़ा पहिने कें परि आप धोती लपेट के चल जायीं।...

सरयू सिंह का लंड पूरी तरह तना हुआ था वह कजरी की बुर का इंतजार कर रहा था पर अचानक आई इस आवाज ने उनकी उत्तेजना में विघ्न डाल दिया था।

सुगना को देखना जरूरी था। उसके हाथ में प्लास्टर पहले से लगा हुआ था वह किसी अप्रत्याशित घटना को सोचकर घबरा गए।

तभी कजरी ने वहीं से आवाज दी

...सुगना..., सुगना...

सुगना अपनी सास की आवाज सुन रही थी पर उसने कोई जवाब न दिया वह अपने जगे होने का प्रमाण नहीं देना चाह रही थी कजरी ने फिर कहा

...एक हाली जाके देख आयीं...

उन्होंने अपनी धोती कमर में लपेटी पर वह अपने लंड को धोती से नहीं छुपा पाये। उसे अपने हाथों से अपने पेट से सटाए हुए अपनी टॉर्च लेकर आगन में आ गए और सुगना के दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने टॉर्च जला दी। अंदर का दृश्य देखकर वह सन्न रह गए।

सुगना अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी। उसकी ब्लाउज सामने से पूरी तरह खुली हुई थी दोनों चूचियां खुली हवा में सांस ले रहीं थीं। टॉर्च की रोशनी से सुगना ने आंखे मीच ली थीं जिसे सरयू सिंह ने देख लिया। कमर के नीचे सुगना के शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी कमर और जाँघों को ढका हुआ था। सुगना की चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी वह अपनी सांसों को सामान्य रखने की कोशिश कर रही थी पर यह संभव नहीं था उत्तेजना अपना अंश छोड़ चुकी थी।

कजरी के कमरे से आ रही लालटेन की रोशनी सरयू सिंह की आंखो को नजर आ गई उस झरोखे के ठीक नीचे टीन का डिब्बा लुढ़का हुआ पड़ा था।

सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया वह यह जान चुके थे कि सुगना उनके और कजरी के बीच में चल रही रासलीला को देख रही थी और उत्तेजित होकर अपनी चुचियों और हो सकता है जांघों के बीच छुपी कोमल बुर् का मर्दन कर रही थी।

शायद इसी दौरान असंतुलित होकर वह डिब्बे से फिसल गई और अपनी लज्जा बचाने के लिए वह तुरंत ही चारपाई पर लेट गई थी।

सरयू सिंह अपनी बहू की इच्छा जान चुके थे वह हमेशा उसे खुश करना चाहते थे आज उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया और चुपचाप कजरी के कमरे में वापस आ गए।

उनके लंड ने उछल कर उनके फैसले पर मुहर लगाई और वह तन कर कजरी की बुर में जाने के लिए तैयार हो गया।

सरयू सिंह मन ही मन मुस्कुरा रहे थे कजरी अपनी जांघें फैलाए लेटी हुई थी। सरयू सिंह को देखते ही उसने पूछा

...सुगना ठीक बिया नु?...

...हां आराम से सुतल बिया एगो टीन के डिब्बा बिलरिया गिरा देले रहे... सरयू सिंह ने अपना उत्तर कुछ तेज आवाज में ही दिया था। सुगना ने भी सरयू सिंह का वह उत्तर सुन लिया और अपनी चोरी न पकड़े जाने से वह खुश हो गयी। खुशी ने उसकी उत्तेजना को फिर जागृत कर दिया और वह एक बार फिर टिन के डब्बे पर चढ़कर अपनी सास की चुदाई देखने आ गयी।

सुगना की चूचियों को देखने के बाद सरयू सिंह सिंह की उत्तेजना नए आयाम पर जा पहुंची थी। उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी। कजरी अचानक उन्हें सुगना दिखाई पड़ने लगी। कजरी की दोनों जाँघों के बीच उस फूली हुई चूत में वह सुगना की बुर ढूंढने लगे। उनके मन से सुगना के प्रति बहू और पुत्री का भाव बिल्कुल खत्म हो चुका था। वह उन्हें कामोत्तेजना से भरी एक युवा नारी के रूप में दिखाई पड़ने लगी जो अब से कुछ देर पहले उनकी और कजरी की रासलीला देख रही थी।

सरयू सिंह ने जब सुगना की मां पदमा को चोदा था तब उसकी उम्र भी सुगना के लगभग बराबर थी। सुगना की कामुकता और मादकता ने सरयू सिंह के मन में सुगना को एक भोगने योग्य नारी के रूप में प्रस्तुत कर दिया था। रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर जब सुगना स्वयं ही उनके करीब आना चाहती थी तो उनका यह कर्तव्य बनता था कि वह कामोत्तेजना से भरी उस सुंदरी की इच्छा पूरी करें।

उधर कजरी और सरयू सिंह के बीच हुआ वार्तालाप सुगना ने सुन लिया था उसने अपने न पकड़े जाने पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और एक बार फिर उसी टीन के डिब्बे पर चढ़कर कजरी और सरयू सिंह की रास लीला देखने लगी।

सरयू सिंह का दिमाग लंड के आधीन हो चुका था। उन्होंने मन ही मन यह सोच लिया की उनकी बहू सुगना एक बार फिर झरोखे से उनकी चुदाई देख रही होगी इस ख्याल मात्र से ही उनकी उत्तेजना भड़क उठी वह अपनी सुगना बहू को अद्भुत नजारा दिखाने के लिए बेताब हो उठे। उन्होंने झुककर कजरी की बुर को चूम लिया।

उन्होंने कजरी की जांघों को फैला कर उसके बुर को सुगना की निगाहों के ठीक सामने कर दिया। वह अपनी उंगलियों से कजरी की बुर फैलाने लगे। सुगना सिहर रही थी। सरयू सिंह कजरी के बगल में थे उन्होंने अपनी जीभ कजरी के भगनासे पर रगड़ना शुरू कर दिया। कजरी अपनी जाँघें कभी फैला रही थी और कभी सिकोड रही थी।

सरयू सिंह अपनी एक हथेली से अपने लंड को सहला रहे थे वह बार बार उस झरोखे को देख रही थे। सुगना वह दृश्य देख रही थी कभी-कभी उसे लगता जैसे आज कुछ नया हो रहा है। कभी-कभी वह सोचती कहीं उसके बाबूजी को उसकी इस चोरी का पता तो नहीं चल गया? परंतु उसकी उत्तेजना इस संभावना को नजरअंदाज कर उसे झरोखे पर बनाए रखती।

उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके बाबू जी उसकी इस चोरी को पकड़ चुके थे। उधर कजरी अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी उसने कहा

...कुंवर जी अब तड़पाई मत आ जायीं...

सरयू सिंह ने कहा

...का जाने काहें आज तहरा के खूब चोदे के मन करता...

... का बात बा शहर में कोनो नया छोकरी पसंद आई गइल हा का?...

सुगना को अचानक ही उस होटल में हुयी रात की घटना याद आ गई जब उसके बाबूजी ने उसकी चुचियों पर टॉर्च मारा था और आज एक बार फिर उसकी चूचियां उसकी बाबूजी के टॉर्च से प्रकाशमान हो गई थीं। सरयू सिंह ने कजरी की चारपाई को खींचकर इस तरह व्यवस्थित कर दिया जिससे सुगना को चुदाई स्पस्ट दिखाई पड़े।

कजरी सरयू सिंह के उत्साह को देखकर आश्चर्यचकित हो गयी उसने पूछा

... चारपाई काहे खींच तानी... उन्होंने उत्तर दिया

...आज शुभ दिन भर पूरब ओरे मुंह करके चोदला पर ढेर मजा मिली...

कजरी और सुगना दोनों को यह बात कतई समझ ना आई पर सुगना मुस्कुरा रही थी अब कजरी की बुर उसे और अच्छे से दिखाई देने लगी थी।

सरयू सिंह ने अपना लंड अपनी कजरी भौजी की चूत में डालना शुरू कर दिया। कजरी की आंखें बड़ी होती चली गई। दस पंद्रह साल चुदने के बाद भी जब सरयू सिंह का मूसल कजरी की ओखली में प्रवेश करता उसकी आंखें फैल जाती। वह आज भी एक नवयौवना की तरह चुदने का आनंद लेती सरयू सिंह भी अपनी कजरी भौजी की चूत के मुरीद थे।

सुगना इस बात से घबरा रही थी कि जब उसकी सास की फूली हुई चुदी चुदाई बुर सरयू सिंह के लंड को आसानी से नहीं ले पा रही थी तो वह अपनी छोटी सी कोमल बुर में यह मोटा मुसल कैसे ले पाएगी। वह सिहर रही थी। उसकी उत्तेजना ने उसके डर को नजरअंदाज कर दिया था। वह उसकी आंखों के सामने हो रही इस चुदाई से अभिभूत थी। सरयू सिंह ने अपना लंड आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह कजरी की चूचियों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगे।

कमरे में घपा... घप ...घपा...घप... की आवाजें गूंजने लगी. कजरी के कहा...

...कुंवर जी तनी धीरे धीरे...

सरयू सिंह उसे लगातार चोद रहे थे। बीच-बीच में वह अपनी निगाह झरोखे के तरफ ले जाते जैसे वह सुगना से पूछना चाहते हों

...सुगना बाबू ठीक लगा ता नु...

जब भी सुगना उन्हें अपनी तरफ देखते हुए पाती वह सिहर उठती। उसके मन में एक बार फिर डर आ जाता कि कहीं बाबूजी उसकी असलियत जान तो नहीं रहे हैं। जितना ही वह सोचती उतना ही वह सिहर उठती पर उत्तेजना ने उसे अब बेशर्म बना दिया था। सुगना अपनी बुर को तेजी से सहलाए जा रही थी। वह इस अद्भुत चुदाई को देखकर सुध बुध खो बैठी थी। एक हाथ से कभी वह अपनी चूची सहलाती कभी बुर। दूसरा हाँथ प्लास्टर लगे होने के कारण अपनी उपयोगिता खो चुका था।

कजरी की जाँघे तनने लगीं। वह ... कुंवर जी... कुंवर जी... आह...ईईईई।।।।आ।।ई...हुऊऊऊ हम्म्म्म। की आवाजें निकालते हुए स्खलन के लिए तैयार हो गयी। सरयू सिंह ने आज अपने मन में अपनी बहू सुगना को कमर के नीचे भी नग्न कर लिया था। वह उसकी कोमल बुर के आकार की कल्पना तो नहीं कर पा रहे थे और उन्होंने मन ही मन उसकी खूबसूरती को जरूर सोच लिया था। कजरी की बुर चोदते समय उनके दिमाग में कभी सुगना की मां पदमा आ रही थी कभी स्वयं सुनना ।

सरयू सिंह सुगना को अपने जहन में रखकर कजरी की बुर चोद रहे थे इसी कारण अब वह उस झरोखे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। आज उन्होंने कजरी के साथ साथ अपनी बहू सुगना को भी अपनी वासना के दायरे में ले लिया था।

कजरी की हिलती हुई चूचियां उन्हें सुगना की चूचियां प्रतीत होने लगी। सरयू सिंह से अब बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने झुक कर सुगना ( कजरी) की चुचियों को मुंह में भर लिया उनकी आत्मग्लानि एक पल के लिए गायब हो गयी। कजरी की चुचियों को चूसते हुए उन्हें सुगना की चूचियां ही याद आती रहीं। वह मन ही मन सुगना की चूचियों को चूसते रहें और अपने ख्वाबों में अपनी बहू सुगना की बुर चोदते रहे। कुछ पलों के लिए वासना पूरी तरह उनके दिमाग पर हावी हो चली थी।

कजरी सरयू सिंह के इस उत्तेजक व्यवहार से आश्चर्यचकित थी । सरयू सिंह की अद्भुत चुदाई और चूची पीने के अंदाज से वह अद्भुत तरीके से झड़ने लगी। वह कभी अपनी जांघों को फैलाती कभी सिकोडती कभी उनकी कमर पर लपेट लेती।

वह हांफ रही थी और उनकी पीठ पर नाखून गड़ा रही थी। वह सरयू सिंह के विशाल शरीर में समा जाना चाहती थी। कजरी के शरीर की हलचल कम होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया। लंड से वीर्य की धार फूट पड़ी। कजरी के गोरे शरीर पर लंड से निकल रहा सफेद वीर्य गिर रहा था। कभी वह कजरी के चेहरे पर जाता कभी गर्दन पर कभी चुचियों पर। सरयू सिंह अपने हाथों से अपने लंड को पकड़ कर अपनी भाभी के हर अंग को सींच रहे थे।

उत्तेजना से भरे उनके मन में एक बार आया कि वह वीर्य की एक धार अपनी बहू सुगना के लिए झरोखे की तरफ भी उछाल दें पर वह ऐसा नहीं कर पाए।

उत्तेजना का खेल खत्म हो रहा था वीर्य की आखिरी बूंद निकल चुकी थी तना हुआ लंड सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी के भग्नासे पर अभी भी पटक रहे थे। कजरी अपनी हथेलियों से अपनी बुर को ढक कर उस प्रहार से बचना चाह रही थी। उसकी बुर अब संवेदनशील हो चली थी।

उधर सुगना आज अपनी उंगलियों से ही स्खलित हो गई थी। आज देखे गए दृश्य उसके जेहन पर छा गए थे। सरयू सिंह अब उसकी ख्वाबों के शहजादे बन गए थे। उसने मन ही मन सरयू सिंह से चुदने के लिए ठान लिया था। वह उसके आदर्श और अपेक्षित पुरुष बन गए थे। रिश्ते नाते त्याग कर सुगना अपनी जांघें फैलाकर अपने बाबू जी का स्वागत करने को तैयार हो रही थी। वह सरयू सिंह से मिलन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह ससुर और बहू को मिलाने का प्रण कर चुकी थी।

Chapter new

सुबह सुबह दालान में बैठे हुए सरयू सिंह धूप सेंक रहे थे। कजरी ने जो तेल कल रात उनके शरीर पर लगाया उसका अंश अब भी उनके शरीर पर था। वह अपने घर की बदली हुई परिस्थितियों के बारे में सोच रहे थे।

सुगना को ससुराल आए को चार-पांच महीने बीत चुके थे। सुगना जब इस घर में आई थी उन्होंने उसे एक बहू और पुत्री के रूप में ही माना था। उसके प्रति उनके मन में कामुकता कतई न थी। ऐसा नहीं था की सुगना की कद काठी उन्हें दिखाई नहीं पड़ती थी। वह तो नारी शरीर के पारखी थे पर जब मन में भाव गलत ना हो तो यह आवश्यक नहीं कि सुंदरता हमेशा उत्तेजना को जन्म दे।

परन्तु पिछले एक दो महीनों में सुगना के व्यवहार में परिवर्तन आया था। वो उस परिवर्तन के बारे में खो गए। कैसे उन्होंने हैण्डपम्प पर बर्तन धोते समय उसकी चूँचियों का उपरी भाग देखा वो भी एक बार नहीं की कई बार। क्या सुगना उन्हें वह दिखाना चाहती थी? क्या वह अकस्मात हुआ था? पर कई बार? यह महज संयोग था या सुगना उन्हें उकसा रही थी? प्रश्न कई थे और उत्तर सरयू सिंह के विवेकाधीन था। उत्तेजना और पारिवारिक संबंध दो अलग-अलग पलड़ों पर थे तराजू की डंडी सरयू सिंह के हाथ में थी। दिमाग पारिवारिक संबंधों का साथ दे रहा था पर लंड उत्तेजना की तरफ झुक रहा था। नियति समय-समय पर उत्तेजना का पलड़ा भारी कर रही थी। उनके और सुगना के बीच दूरियां तेजी से कम हो रही थीं।

विशेषकर होटल में बितायी गयी उस रात जब उन्होंने सुगना की चूँचियों को नग्न देखा था उनकी उत्तेजना ने सुगना से पुत्री का दर्जा छीन लिया। और कल की रात ... वो उत्तेजना की पराकाष्ठा थी... सारे संबंध कामुकता की भेंट चढ़ गए थे।

कैसे वह अपनी भौजी कजरी को चोद रहे थे वह भी सुगना को दिखा दिखा कर और तो और उत्तेजना के उत्कर्ष पर वह अपने मन मे अपनी पुत्री समान बहु को चोदने लगे थे।

उन्हें एक बार फिर आत्मग्लानि होने लगी। सुगना जवान थी उसे सम्भोग सुख प्राप्त नहीं हो रहा था इसके कारण भी वही थे जिन्होंने बिना रतन की सहमति से उसका विवाह सुगना से कर दिया था। ऐसी युवती यदि किसी जोड़े को सम्भोग करते हुए यदि देखती भी हो तो उसमें क्या बुराई थी? क्या इस देखने मात्र से वह उनकी बहू बेटी न रहेगी?

सरयू सिंह की दुविधा कायम थी। तभी सुगना की पायल की आवाज आई वो पास आ रही थी...

...बाबुजी दूध ले लीं... सुगना ने अपनी नजरें झुकाई हुई थी कल रात के दृश्य के बाद वह अभी उनसे बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी।

सरयू सिंह ने दूध ले लिया। सुगना वापस जा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें उसकी गोरी और बेदाग पीठ से चिपक गयीं जब तक वो निगाहें फिसलते हुए नितंबो तक पहुंचतीं सुगना निगाहों से ओझल हो गयी।

सुगना जिस आत्मीयता से उन्हें बाबूजी कहती थी वह भाव सरयू सिंह के विचारों पर तुरंत लगाम लगा देता। सरयू सिंह की कामुक सोच तुरंत ठंडी पड़ जाती। उन्हें यह प्रतीत होने लगता कि सुगना उनके बारे में कभी कामुक तरीके से नहीं सोच सकती। वह कभी-कभी दुखी भी हो जाते। परंतु मन के किसी कोने में उनकी कामुकता ने सुगना को अपनी मलिका का दर्जा दे दिया था।

कुछ ही दिनों बाद दशहरा आने वाला था. सुगना का पति रतन सुगना के आने के कुछ दिनों बाद मुंबई चला गया था जो अभी तक नहीं लौटा था वह साल में दो बार आया करता एक बार दशहरा या दिवाली पर दूसरी बार होली के अवसर पर।

शहर में उसकी महाराष्ट्रीयन पत्नी बबीता एक होटल की रिसेप्शनिस्ट थी वह अनुपम सुंदरी थी और शहर की आधुनिकता में ढली हुई थी। होटल के रिसेप्शन पर रहने के कारण उसे हमेशा टिपटॉप रहना पड़ता था। रतन से उसकी मुलाकात भी उसी होटल में हुई थी जब वह अपने बॉस के साथ उस होटल में किसी कार्य के लिए गया हुआ था। रतन एक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। वह सरयू सिंह का भतीजा था और सरयू सिंह के परिवार का अंश था। उसमें सरयू सिंह जैसी मर्दानगी तो नहीं थी पर कम अभी नहीं थी।

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