औलाद की चाह 002

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गुरुजी से मुलाकात.
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Part 2 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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गुरुजी का आश्रम श्यामपुर में था, उत्तराखंड में एक छोटा-सा गाँव जो चारों तरफ़ से पहाड़ों से घिरा हुआ था। आश्रम के पास ही साफ़ पानी का एक बड़ा तालाब था। कोई पोल्यूशन ना होने-सा उस गाँव का वातावरण बहुत ही अच्छा था और जगह भी हरी भरी बहुत सुंदर थी। ऐसी शांत जगह आकर किसी का भी मन प्रसन्न हो जाएl

मुझे अनिल के साथ आश्रम में आना था लेकिन ऐन वक़्त पर अनिल किसी ज़रूरी काम में फँस गये इसीलिए मेरी सासूजी को मेरे साथ आना पड़ा। आश्रम में आने के बाद मैंने देखा की गुरुजी के दर्शन के लिए वहाँ लोगों की लाइन लगी हुई है। हमने गुरुजी को अकेले में अपनी समस्या बताने के लिए उनसे मुलाकात का वक़्त ले लिया।

काफ़ी देर बाद हमें एक कमरे में गुरुजी से मिलने ले जाया गया। गुरुजी काफ़ी लंबे चौड़े, हट्टे कट्टे बदन वाले थे, उनकी हाइट 6 फीट तो होगी ही। वह भगवा वस्त्र पहने हुए थे। शांत स्वर में बोलने का अंदाज़ उनका सम्मोहित कर देने वाला था। आवाज़ में ऐसा जादू था कि गूंजती हुई-सी लगती थी, जैसे कहीं दूर से आ रही हो।

कुल मिलाकर उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि सामने वाला ख़ुद ही उनके चरणों में झुक जाए. उनकी आँखों में ऐसा तेज था कि आप ज़्यादा देर आँखें मिला नहीं सकते।

हम गुरुजी के सामने फ़र्श पर बैठ गये। सासूजी ने गुरुजी को मेरी समस्या बताई की मेरी बहू को संतान नहीं हो पा रही है, गुरुजी ध्यान से सासूजी की बातों को सुनते रहे। हमारे अलावा उस कमरे में दो और आदमी थे, जो शायद गुरुजी के शिष्य होंगे। उनमें से एक आदमी, सासूजी की बातों को सुनकर, डायरी में कुछ नोट कर रहा था।

गुरुजी--माताजी, मुझे ख़ुशी हुई की अपनी समस्या के समाधान के लिए आप अपनी बहू को मेरे पास लायीं। मैं एक बात साफ़ बता देना चाहता हूँ की मैं कोई चमत्कार नहीं कर सकता लेकिन अगर आपकी बहू मुझसे 'दीक्षा' ले और जैसा मैं बताऊँ वैसा करे तो ये आश्रम से खाली हाथ नहीं जाएगी, ऐसा मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ।

माताजी समस्या कठिन है तो उपचार की राह भी कठिन ही होगी, लेकिन अगर इस राह पर आपकी बहू चल पाए तो एक साल के भीतर उसको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा की जैसा कहा जाए, बिना किसी शंका के वैसा ही करना होगा। तभी आशानुकूल परिणाम मिलेगा।

गुरुजी की बातों से मैं इतनी प्रभावित हुई की तुरंत अपने उपचार के लिए तैयार हो गयी। मेरी सासूजी ने भी हाथ जोड़कर फ़ौरन हाँ कह दिया।

गुरुजी--माताजी, उपचार के लिए हामी भरने से पहले मेरे नियमों को सुन लीजिए. मैं अपने भक्तों को अंधेरे में नहीं रखता। तीन चरणों में उपचार होगा तब आपकी बहू माँ बन पाएगी। पहले 'दीक्षा' , फिर 'जड़ी बूटी से उपचार' और फिर 'यज्ञ' । पूर्णिमा की रात से उपचार शुरू होगा और 5 दिन तक चलेगा। इस दौरान दीक्षा और जड़ी बूटी से उपचार को पूर्ण किया जाएगा।

उसके बाद अगर मुझे लगेगा की हाँ इतना ही पर्याप्त है तो आपकी बहू छठे दिन आश्रम से जा सकती है। पर अगर 'यज्ञ' की ज़रूरत पड़ी तो 2 दिन और रुकना पड़ेगा। आश्रम में रहने के दौरान आपकी बहू को आश्रम के नियमों का पालन करना पड़ेगा, इन नियमों के बारे में मेरे शिष्य बता देंगे।

गुरुजी की बातों को मैं सम्मोहित-सी होकर सुन रही थी। मुझे उनकी बात में कुछ भी ग़लत नहीं लगा। उनसे दीक्षा लेने को मैंने हामी भर दी।

गुरुजी--समीर, इनकी बहू को आश्रम के नियमों के बारे में बता दो और इसके पर्सनल डिटेल्स नोट कर लो। बेटी तुम समीर के साथ दूसरे कमरे में जाओ और जो ये पूछे इसको बता देना। माताजी अगर आपको कुछ और पूछना हो तो आप मुझसे पूछ सकती हैं।

मैं उठी और गुरुजी के शिष्य समीर के पीछे-पीछे बगल वाले कमरे में चली गयी। वहाँ पर रखे हुए सोफे में समीर ने मुझसे बैठने को कहा। समीर मेरे सामने खड़ा ही रहा।

समीर लगभग 40--42 बरस का था, शांत स्वभाव और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए रहता था।

समीर--मैडम, मेरा नाम समीर है। अब आप गुरुजी की शरण में आ गयी हैं, अब आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने आश्रम में बहुत-सी औरतों को देखा है जिनको गुरुजी के ख़ास उपचार से फायदा हुआ। लेकिन जैसा की गुरुजी ने कहा की आपको बिना किसी शंका के जैसा बताया जाए वैसा करना होगा।

"मैं वैसा करने की पूरी कोशिश करूँगी। दो साल से मैं अपनी समस्या से बहुत परेशान हूँ।"

समीर--आप चिंता मत कीजिए मैडम। सब ठीक होगा। अब मैं आपको बताता हूँ की करना क्या है। अगले सोमवार को शाम 7 बजे से पहले आप आश्रम में आ जाना। सोमवार को पूर्णिमा है, आपको दीक्षा लेनी होगी। मैडम, आप अपने साथ साड़ी वगैरह मत लाना। हमारे आश्रम का अपना ड्रेस कोड है और यहीं से आपको साड़ी वगैरह सब मिलेगा।

जो जड़ी बूटियों से बने डिटरजेंट से धोयी जाती हैं और मैडम आश्रम में गहने पहनने की भी अनुमति नहीं है। असल में सब कुछ यहीं से मिलेगा इसलिए आपको कुछ लाने की ज़रूरत ही नहीं है।

समीर की बातों से मुझे थोड़ी हैरानी हुई. अभी तक आश्रम में मुझे कोई औरत नहीं दिखी थी। मैं सोचने लगी, साड़ी तो आश्रम से मिल जाएगी लेकिन मेरे ब्लाउज और पेटीकोट का क्या होगा। सिर्फ़ साड़ी पहन के तो मैं नहीं रह सकती।

शायद समीर समझ गया की मेरे दिमाग़ में क्या शंका है।

समीर--मैडम, आपने ध्यान दिया होगा की गुरुजी ने मुझे आपके पर्सनल डिटेल्स नोट करने को कहा था। इसलिए आप ब्लाउज वगैरह की फ़िकर मत कीजिए. सब कुछ आपको यहीं से मिलेगा। हम हेयर क्लिप से लेकर चप्पल तक सब कुछ आश्रम से ही देते हैं।

समीर मुस्कुराते हुए बोला तो मेरी शंका दूर हुई. फिर मैंने सोचा मेरे अंडरगार्मेंट्स का क्या होगा, वह भी आश्रम से ही मिलेंगे क्या। लेकिन ये बात मैं एक मर्द से कैसे पूछ सकती थी।

समीर--मैडम, अब आप मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिए. मैडम एक बात और कहना चाहूँगा, जवाब देने में प्लीज़ आप बिल्कुल मत शरमाना और बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब देना क्यूंकी आप अपनी समस्या के समाधान के लिए यहाँ आई हैं और हम सबका यही प्रयास रहेगा की आपकी समस्या का समाधान हो जाए l

मैं थोड़ी नर्वस हो रही थी। समीर की बातों से मुझे सहारा मिला और फिर मैंने उसके सवालों के जवाब दिए, जो बहुत ही निजी क़िस्म के थे।

समीर--मैडम, आपको रेग्युलर पीरियड्स आते हैं?

"हाँ, समय पर आते हैं। कभी कभार ही मिस होते हैं।"

समीर--लास्ट बार कब हुआ था इर्रेग्युलर पीरियड?

"लगभग तीन या चार महीने पहले। तब मैंने कुछ दवाइयाँ ले ली थी फिर ठीक हो गया।"

समीर--आपकी पीरियड की डेट कब है?

"22 या 23 को है।"

समीर सर झुकाकर मेरे जवाब नोट कर रहा था इसलिए उसका और मेरा 'आई कांटेक्ट' नहीं हो रहा था। वरना इतने निजी सवालों का जवाब दे पाना मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता। डॉक्टर्स को छोड़कर किसी ने मुझसे इतने निजी सवाल नहीं पूछे थे।

समीर--मैडम आप को हैवी पीरियड्स आते हैं या नॉर्मल? उन दिनों में अगर आपको ज़्यादा दर्द महसूस होता है तो वह भी बताइए l

"नॉर्मल आते हैं, 2--3 दिन तक, दर्द भी नॉर्मल ही रहता है।"

समीर--ठीक है मैडम। बाक़ी निजी सवाल गुरुजी ही पूछेंगे जब आप वापस आश्रम आएँगी तब।

मैं सोचने लगी अब और कौन से निजी सवाल हैं जो गुरुजी पूछेंगे।

समीर--मैडम, अब आश्रम के ड्रेस कोड के बारे में बताता हूँ। आश्रम से आपको चार साड़ी मिलेंगी जो जड़ी बूटी से धोयी जाती हैं, भगवा रंग की। इतने से आपका काम चल जाएगा। ज़रूरत पड़ी तो और भी मिल जाएँगी। आपका साइज़ क्या है? मेरा मतलब ब्लाउज के लिए। "

एक अंजान आदमी के सामने ऐसी निजी बातें करते हुए मैं असहज महसूस कर रही थी। उसके सवाल से मैं हकलाने लगी।

"आपको मेरा साइज़ क्यूँ चाहिए?" , मेरे मुँह से अपनेआप ही निकल गया।

समीर--मैडम, अभी तो मैंने बताया था कि आश्रम में रहने वाली औरतों को साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट आश्रम से ही मिलता है। तो उसके लिए आपका साइज़ जानना ज़रूरी है ना।

"ठीक है। 34" साइज़ है। "

समीर ने मेरा साइज़ नोट किया और एक नज़र मेरी चूचियों पर डाली जैसे आँखों से ही मेरा साइज़ नाप रहा हो।

समीर--मैडम, आश्रम में ज़्यादातर औरतें ग्रामीण इलाक़ों से आती हैं। शायद आपको मालूम ही होगा गाँव में औरतें अंडरगार्मेंट नहीं पहनती हैं, इसलिए आश्रम में नहीं मिलते। लेकिन आप शहर से आई हैं तो आप अपने अंडरगार्मेंट ले आना। पर उनको आश्रम में जड़ी बूटी से स्टरलाइज करवाना मत भूलना। क्यूंकी दीक्षा के बाद कुछ भी ऐसा पहनने की अनुमति नहीं है जो जड़ी बूटियों से स्टरलाइज ना किया गया हो।

अंडरगार्मेंट की समस्या सुलझ जाने से मुझे थोड़ा सुकून मिला। पर मुझसे कुछ बोला नहीं गया इसलिए मैंने 'हाँ' में सर हिला दिया।

समीर--थैंक्स मैडम। अब आप जा सकती हैं और सोमवार शाम को आ जाना।

मैं सासूजी के साथ अपने शहर लौट गयी। सासूजी ने बताया की जब तुम समीर के साथ दूसरे कमरे में थी तो उनकी गुरुजी से बातचीत हुई थी। सासूजी गुरुजी से बहुत ही प्रभावित थीं। उन्होने मुझसे कहा की जैसा गुरुजी कहें वैसा करना और आश्रम में अकेले रहने में घबराना नहीं, गुरुजी सब ठीक कर देंगे।

कुल मिलाकर गुरुजी के आश्रम से मैं संतुष्ट थी और मुझे भी लगता था कि गुरुजी की शरण में जाकर मुझे ज़रूर संतान प्राप्ति होगी। पर उस समय मुझे क्या पता था कि आश्रम में मेरे ऊपर क्या बीतने वाली है।

अगले सोमवार की शाम को मैं अपनी सासूजी के साथ गुरुजी के आश्रम पहुँच गयी। मेरा बैग लगभग खाली था क्यूंकी समीर ने कहा था कि सब कुछ आश्रम से ही मिलेगा। सिर्फ़ एक एक्सट्रा साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट और 3 सेट अंडरगार्मेंट्स के अपने साथ लाई थी। मैंने सोचा इतने से मेरा काम चल जाएगा। इमर्जेन्सी के लिए कुछ रुपये भी रख लिए थे।

कहानी जारी रहेगी

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