औलाद की चाह 005

Story Info
आश्रम में आगमन पर साक्षात्कार.
911 words
4.75
353
00

Part 6 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 2 पहला दिन

आश्रम में आगमन - साक्षात्कार

फिर मैंने दरवाज़े के ऊपर ब्लाउज डाल दिया। फ़र्श से पैंटी उठाकर देखी तो उसमें भी कुछ गीले धब्बे थे। मैं सोचने लगी ऐसे कैसे दे दूं ब्रा पैंटी समीर को, वह क्या सोचेगा । पहले धो देती हूँ।

तभी कमरे से समीर की आवाज़ आई, "मैडम, ये आपके उतारे हुए कपड़े मैं धोने ले जाऊँ? आप नये वाले पहन लेना। पसीने से आपके कपड़े गीले हो गये होंगे।"

वो आवाज़ इतनी नज़दीक से आई थी की जैसे मेरे पीछे खड़ा हो। घबराकर मैंने जल्दी से टॉवेल लपेटकर अपने नंगे बदन को ढक लिया। वह दरवाज़े के बिल्कुल पास खड़ा होगा और दरवाज़े के ऊपर डाले हुए मेरे कपड़ों को देख रहा होगा। दरवाज़ा बंद होने से मैं सेफ थी लेकिन फिर भी मुझे घबराहट महसूस हो रही थी।

"नही नही, ये ठीक हैं।" मैंने कमज़ोर-सी आवाज़ में जवाब दिया।

समीर--अरे क्या ठीक हैं मैडम। नये कपड़ों में आप फ्रेश महसूस करोगी और हाँ मैडम, आप अभी मत नहाना, क्यूंकी दीक्षा के समय आपको नहाना पड़ेगा।

तब तक मेरी घबराहट थोड़ी कम हो चुकी थी । मैंने सोचा ठीक ही तो कह रहा है, पसीने से मेरे कपड़े भीग गये हैं। नये कपड़े पहन लेती हूँ। लेकिन मैं कुछ कहती उससे पहले ही...।

समीर--मैडम, मैं आपकी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज धोने ले जा रहा हूँ और जो आप एक्सट्रा सेट लाई हो, उसे यही रख रहा हूँ।"

मेरे देखते ही देखते दरवाज़े के ऊपर से मेरी साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज उसने अपनी तरफ़ खींच लिए. पता नहीं उसने उनका क्या किया लेकिन जो बोला उससे मैं और भी शरमा गयी।

समीर--मैडम, लगता है आपको कांख में पसीना बहुत आता है। वहाँ पर आपका ब्लाउज बिल्कुल गीला है और पीठ पर भी कुछ गीला है।

उसकी बात सुनकर मैं शरम से मर ही गयी। इसका मतलब वह मेरे ब्लाउज को हाथ में पकड़कर ध्यान से देख रहा होगा। ब्लाउज की कांख पर, पीठ पर और वह हिस्सा जिसमे मेरी दोनों चूचियाँ समाई रहती हैं।

मैं 28 बरस की एक शर्मीली शादीशुदा औरत और ये एक अंजाना-सा आदमी मेरी उतरी हुई ब्लाउज को देखकर मुझे बता रहा है कि कहाँ-कहाँ पर पसीने से भीगा हुआ है।

"हाँ .........वो... ...वो मुझे पसीना बहुत आता है।"

फिर मैंने और टाइम बर्बाद नहीं किया और अपनी ब्रा पैंटी धोने लगी। वरना उनके गीले धब्बे देखकर ना जाने क्या-क्या सवाल पूछेगा।

मैं अपनी ब्रा पैंटी धोने लगी तभी दरवाज़े के ऊपर कुछ आवाज़ हुई. मैंने पलटकर देखा समीर ने दरवाज़े के ऊपर मेरी दूसरी साड़ी और ब्लाउज लटका दिए थे पर पेटीकोट दरवाज़े से फिसलकर मेरी तरफ़ बाथरूम में फ़र्श पर गिर गया था।

समीर--सॉरी मैडम, पेटीकोट फिसल गया।

मैंने देखा पेटीकोट फ़र्श में गिरने से गीला हो गया है।

समीर--मैडम, पेटीकोट सूखी जगह पर गिरा या गीला हो गया?

मैं क्या बोलती एक ही एक्सट्रा पेटीकोट लाई थी वह भी गीला हो गया। मैंने झूठ बोल दिया वरना वह ना जाने फिर क्या-क्या बोलता।

"ठीक है। सूखे में ही गिरा है।"

समीर--चलिए शुक्र है। मुझे ध्यान से रखना चाहिए था।

तब तक मैंने अपने अंडरगार्मेंट्स धो लिए थे।

फिर मैं अपने बदन में लिपटा टॉवेल उतारकर अपने हाथ पैर पोछने लगी। मेरे हिलने से मेरी बड़ी चूचियाँ भी हिल डुल रही थी, बड़ा मिरर होने से उसमें सब दिख रहा था। मैंने देखा मेरे निपल तने हुए हैं और दो अंगूर के दानों जैसे खड़े हुए हैं।

फिर मैंने दरवाज़े के ऊपर से ब्लाउज उठाया और पहनने लगी। मैं बिना ब्रा के ब्लाउज नहीं पहनती पर आज ऐसे ही पहनना पड़ रहा था। बदक़िस्मती से मेरे सफेद ब्लाउज का कपड़ा भी पतला था।

मैंने मिरर में देखा सफेद ब्लाउज में मेरे भूरे रंग के ऐरोला और निपल साफ़ दिख रहे हैं। मैं अपने को कोसने लगी की ये वाला ब्लाउज मैं क्यूँ लेकर आई पर तब मुझे क्या पता था कि बिना ब्रा के ब्लाउज पहनना पड़ेगा।

समीर--मैडम, जल्दी कीजिए. मुझे गुरुजी के पास भी जाना है।

मैंने जल्दी से गीला पेटीकोट पहन लिया और कोई चारा भी नहीं था। बिना पेटीकोट के साड़ी में बाहर कैसे निकलती। फिर मैंने साड़ी पहन के ब्लाउज को साड़ी के पल्लू से ढक लिया।

जब मैं बाथरूम से बाहर आई तो समीर मुझे देखकर मुस्कुराया। तभी मैं लड़खड़ा गयी, जिससे पतले ब्लाउज में मेरी चूचियाँ उछल गयी। मैंने देखा समीर की नज़रों ने मेरी चूचियों के हिलने को मिस नहीं किया। समीर के सामने बिना ब्रा के मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हुआ और मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और जितना हो सकता था उतना ब्लाउज ढक दिया।

फिर मैंने अपने धोए हुए अंडरगार्मेंट्स समीर को दे दिए. मुझे नितंबों और जांघों पर गीलापन महसूस हो रहा था क्यूंकी पेटीकोट उन जगहों पर गीला हो गया था। अजीब-सा लग रहा था पर क्या करती वैसी ही पहने रही।

समीर--ठीक है मैडम, अब आप आराम कीजिएl

समीर के जाने के बाद मैंने जल्दी से कमरे का दरवाज़ा बंद किया और गीला पेटीकोट उतार दिया। इस बार मैंने साड़ी नहीं उतारी। साड़ी को कमर तक ऊपर करके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया। पेटीकोट गीला होने से मेरे भारी नितंबों में चिपक रहा था, तो मुझे खींचकर उतारना पड़ा। फिर पेटीकोट को सूखने के लिए फैला दिया। अब मैं बिना ब्रा, पैंटी और पेटीकोट के सिर्फ़ ब्लाउज और साड़ी में थी।

करीब एक घंटे तक मैंने आराम किया। तब तक पेटीकोट भी सूख गया था। मैं सोच रही थी की अब तो पेटीकोट लगभग सूख ही गया है, पहन लेती हूँ। तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया।

कहानी जारी रहेगी

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