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CHAPTER 3 दूसरा दिन
जड़ी बूटी से उपचार
Update 1
"मैडम, मैडम ।"
किसी औरत की आवाज़ थी। मेरी नींद खुल गयी । मेरी नाइटी खिसककर ऊपर हो गयी थी जिससे मेरी गोरी मांसल जांघें दिख रही थी। मैंने नाइटी नीचे को खींची और अंगड़ाई लेते हुए बेड से उठ गयी। मेरे मन में ख़्याल आया आश्रम में तो मुझे कोई औरत नहीं दिखी, फिर ये आवाज़ देने वाली कौन होगी?
मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा एक औरत बाहर खड़ी है।
"मैडम, मेरा नाम मंजू है। मैं गुरुजी की शिष्या हूँ। मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गयी थी इसलिए आपसे नहीं मिल पाई. कल रात को ही आश्रम वापस आई हूँ।"
मैंने मंजू को ध्यान से देखा, लगभग 35 बरस की होगी, रंग कुछ सावला, थोड़ी मोटी थी। चेहरा मुस्कान लिए हुए और बड़ी-बड़ी चूचियाँ और बड़े नितंब। मंजू भी आश्रम के कपड़े पहने हुए थी।
मैंने उसे अंदर बुलाया।
"आपको यहाँ देखकर अच्छा लगा। वरना मैं तो सोच रही थी की मैं ही यहाँ अकेली औरत हूँ। आपकी वज़ह से मेरा साथ हो जाएगा।"
मंजू--मैडम, यहाँ औरत और मर्द में भेदभाव नहीं किया जाता। गुरुजी अपने सभी शिष्यों को एक-सा मानते हैं। इसलिए आप उसकी फिकर ना करें। जय लिंगा महाराज।
"जय लिंगा महाराज।"
आश्रम का मंत्र मैंने भी बोला। फिर मैंने मंजू से कहा, मैं बाथरूम हो आती हूँ।
जब मैं बाथरूम से वापस आई तो देखा, मंजू ने बेड सही कर दिया है और कमरे में झाड़ू लगा रही है।
मंजू--मैडम, आप जल्दी से तैयार हो जाओ. 6: 30 पर गुरुजी के सामने उपस्थित होना है। ये आपके स्टरलाइज़्ड अंडरगार्मेंट्स हैं। समीर ने मुझसे कहा की ये अब सूख गये हैं मैडम को दे देना।
"थैंक्स मंजू। कल शाम तो मैं आश्रम के मर्दों के सामने बिना ब्रा पैंटी के थी। ज़रा सोचो, मेरी क्या हालत हुई होगी और ये टाइट ब्लाउज से परेशानी और बढ़ गयी।"
ऐसा कहते हुए मैंने अपने ब्लाउज की तरफ़ इशारा किया।
मंजू मुस्कुरायी।
मंजू--हाँ मैडम, परिमल बता रहा था कि आपकी चूचियों के लिए ब्लाउज का कप साइज़ छोटा हो रहा है।
मैं हक्की बक्की रह गयी। इस आश्रम में हर कोई मेरे बारे में सब कुछ ज़ानता है। कोई भी बात किसी से कहो तो पूरे आश्रम को पता चल जाती है।
मैं सोचने लगी की क्या परिमल ने ये भी सबको बता दिया की मेरे झुककर टॉवेल उठाने से उसे क्या नज़ारा दिखा था?
मंजू--मैडम, आप फिकर मत करो। गुरुजी से आज्ञा ले लेना, फिर मैं मदद कर दूँगी।
"एक ब्लाउज चेंज करने के लिए गुरुजी को परेशान करने की क्या ज़रूरत है?"
मंजू--हाँ मैडम, आश्रम के नियमो के मुताबिक हर चीज़ गुरुजी को बतानी पड़ती है। चाहे हमारे कपड़ो की बात हो या कुछ और।
फिर मैंने ब्लाउज पहनकर मंजू को दिखाया की ऊपर के दो हुक नहीं लग रहे और कल शाम मुझे ऐसे ही आश्रम में रहना पड़ा।
मंजू-मैडम, बिना हुक लगे हुए आप बहुत आकर्षक लग रही हो। बिना ब्रा के भी आपकी चूचियाँ तनी हुई रहती हैं।
मैं शरमा गयी, लेकिन मुझे अच्छा भी लगा। मेरे पति अनिल ने भी मुझसे कहा था कि तुम्हारी चूचियाँ उठी हुई रहती हैं।
फिर मैंने मंजू की तरफ़ पीठ कर ली और ब्रा पहनने लगी। मुझे ऐसा लग रहा था कि ना जाने कितने समय बाद मैं ब्रा पहन रही हूँ जबकि कल शाम की ही तो बात थी। ब्रा पहनकर मुझे बड़ी राहत महसूस हुई, फिर मैंने जल्दी से पैंटी पहन कर पेटीकोट और साड़ी पहन ली। अपने अंडरगार्मेंट्स वापस पाकर मुझे एक सेक्यूरिटी जैसी कुछ फीलिंग आई, वरना तो कपड़े पहने होने के बावजूद कुछ असुरक्षित-सा महसूस कर रही थी।
फिर कमरा बंद करके हम गुरुजी से मिलने गये। मंजू मेरे आगे चल रही थी। एक औरत होने के बावजूद मेरा ध्यान उसके हिलते हुए भारी नितंबों पर गया। वह पूरी गोल मटोल दिखती थी, उसका चेहरा, उसकी चूचियाँ, उसके नितंब सब गोल मटोल थे। लेकिन फिर भी वह चुस्त थी और तेज चाल से चल रही थी। मुझे उसके साथ थोड़ा तेज चलना पड़ रहा था।
गुरुजी ध्यान मग्न थे। उस समय वहाँ पर और कोई नहीं था। हमें देखकर गुरुजी मुस्कुराए.
फिर कुछ ऐसा हुआ जो इससे पहले तो मैंने नहीं देखा था।
मंजू--गुरुजी एक समस्या है।
गुरुजी--क्या समस्या है मंजू?
मंजू--गुरुजी, कल रात मेरी कमर में तेज दर्द उठा । अब दर्द काफ़ी कम हो गया है, लेकिन थोड़ी परेशानी हो रही है।
गुरुजी--हम्म्म ...।शायद कुछ मांसपेशियों का दर्द होगा। यहाँ आओ, मैं देखता हूँ।
गुरुजी फ़र्श में बैठे हुए थे। हम दोनों उनसे कुछ फीट की दूरी पर खड़े थे। मंजू गुरुजी के पास गयी और उनके सामने खड़ी हो गयी। जो मैंने देखा वह मैं बता रही हूँ, सामने खड़ी थी मतलब इतने नज़दीक़ की गुरुजी की आँखों के सामने कुछ इंच की दूरी पर उसकी चूत थी। फिर वह पीछे मुड़ी और मेरी तरफ़ मुँह कर लिया, अब उसके भारी नितंब गुरुजी के चेहरे को लगभग छू रहे थे। फिर गुरुजी ने अपने दोनों हाथों से मंजू की कमर को पकड़ा और पूछा, यहाँ पर दर्द है?
मंजू ने हाँ कहा।
फिर गुरुजी ने जो किया उससे मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया। उन्होने दोनों हाथों से साड़ी के बाहर से मंजू के नितंबों को दबाना शुरू किया। जहाँ पर मैं खड़ी थी उस एंगल से सब मुझे साफ़ दिख रहा था। पहले उन्होने हल्के-हल्के दबाया जैसे कुछ टटोल रहे हों कोई नस वगैरह। फिर दोनों हाथों में मंजू के नितंबों को कस कर दबाने लगे। मंजू के नितंब ख़ूब फैले हुए थे तो गुरुजी की हथेलियों में नहीं आ रहे थे। गुरुजी बैठे हुए मंजू के नितंबों को निचोड़ रहे थे और मंजू चुपचाप खड़ी थी।
हे भगवान! ये मैं क्या देख रही हूँ। कोई औरत किसी मर्द को ऐसे कैसे अपने बदन में हाथ लगाने दे सकती है। मेरे तो पति भी ऐसा करें तो मुझे बहुत शरम आएगी।
मुझे बड़ी हैरानी हुई की मंजू के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, कोई शिकन नही। कुछ देर तक ऐसा चलता रहा। फिर मैंने देखा गुरुजी ने दोनों हाथों से ज़ोर से नितंबों को निचोड़ा और फिर अपने हाथ हटा लिए. मंजू चुपचाप खड़ी थी लेकिन नितंबों को इतना मसलने से उसके बदन में गर्मी तो चढ़ी होगी। मैं ख़ुद उत्तेजना महसूस कर रही थी। फिर मंजू ने गुरुजी की तरफ़ मुँह कर लिया।
मैं सोचने लगी की क्या मैं फ़िज़ूल में गुरुजी के बारे में गंदा सोच रही हूँ? हो सकता है दर्द करने वाली मांसपेशी को ढूँढने के लिए उन्होने ऐसा किया हो। पर जो भी हो, अगर ऐसा करना ज़रूरी हो तो ये एकांत में करना चाहिए था । दूसरों के सामने इतनी निर्लज़्ज़ता ठीक नही। किसी को ग़लतफहमी भी हो सकती है।
गुरुजी--मंजू तुम्हें अपनी कमर और नितंबों पर गरम पानी का सेक करना होगा और ये दवाई दिन में दो बार लेना।
ऐसा कहते हुए गुरुजी ने वहीं पर रखा हुआ एक बॉक्स खोला जिसमे 40--50 बॉटल रंग बिरंगी दवाइयों की थी। शायद जड़ी बूटियों वाली दवाइयों के घोल बने हुए थे।
अपनी दवाई लेकर मंजू वहाँ से चली गयी।
अब गुरुजी ने मेरी तरफ़ ध्यान दिया और मुझसे बैठने को कहा।
गुरुजी--रश्मि मुझे खेद है कि तुम्हें इतनी देर खड़े रहना पड़ा। अपने अंडरगार्मेंट्स वापस पाकर तो तुम अच्छा महसूस कर रही होगी, क्यूँ है ना? "
गुरुजी मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोले।
अब मैं ऐसे कमेंट्स की आदी होने लगी थी। लेकिन फिर भी ऐसे प्रश्न से मुझे शरम तो आनी ही थी। मैंने सिर्फ़ अपना सर हाँ में हिला दिया।
कहानी जारी रहेगी