औलाद की चाह 024

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लाइन में धक्कामुक्की
4.3k words
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Part 25 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 4 तीसरा दिन

Update 2

लाइन में धक्कामुक्की

मेरे पति ने कभी भी ऐसे अपनी नाक से मेरे निप्पल को नहीं दबाया था। छोटू के ऐसा करने से मैं उत्तेजित होने लगी। मेरे निप्पल एकदम से तन गये। शायद पांडेजी के नितंबों को दबाने से भी ज़्यादा मुझे छोटू की ये हरकत उत्तेजित कर दे रही थी।

पांडेजी मेरे नितंबों को दबाकर अब संतुष्ट हो गया लगता था। उसकी अँगुलियाँ साड़ी के बाहर से मेरी पैंटी के सिरों को ढूँढने लगी। मेरे नितंबों पर उसको पैंटी मिल नहीं रही थी क्यूंकी वह तो हमेशा की तरह सिकुड़कर बीच की दरार में आ गयी थी। पर उसकी घूमती अंगुलियों से मेरी चूत पूरी गीली हो गयी।

अब पांडेजी मेरे नितंबों के बीच की दरार में अँगुलियाँ घुमा रहा था और आख़िरकार उसको पैंटी के सिरे मिल ही गये। वह दो अंगुलियों से पकड़कर पैंटी के सिरों को दरार से उठाने की कोशिश करने लगा। उसकी इस हरकत से मैं बहुत उत्तेजित हो गयी। अब ऐसे कोई मर्द अँगुलियाँ फिराएगा तो कोई भी औरत उत्तेजना महसूस करेगी ही।

मैंने शरमाकर फिर से इधर उधर देखा पर किसी को देखते हुए ना पाकर थोड़ी राहत महसूस की। वहाँ पर थोड़ी रोशनी भी कम थी तो ये भी राहत वाली बात थी। आगे से छोटू को धक्के लगे तो सहारे के लिए उसने मेरी कमर पकड़ ली। दो तीन बार ज़ोर से उसका मुँह मेरी चूचियों पर दब गया। उसने माफी मांगी और मेरी चूचियों से मुँह दूर रखने की कोशिश करने लगा।

पर मैं जल्दी ही समझ गयी की ये लड़का छोटू है बहुत बदमाश, सिर्फ़ नाम का छोटू है। क्यूंकी अब अपना मुँह तो उसने दूर कर लिया पर सहारे के लिए दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली, मेरे बदन को हाथों से छूने का मौका उसे मिल गया।

मुझे लगा आगे पीछे से इन दोनों की ऐसी हरकतों से जल्दी ही मुझे ओर्गास्म आ जाएगा। पर मुझे ये उत्सुकता भी हो रही थी की ये दोनों मेरे साथ किस हद तक जा सकते हैं, ख़ासकर ये छोटू।

छोटू ने ब्लाउज और साड़ी के बीच की नंगी कमर पर अपने हाथ रखे थे। उसकी अँगुलियाँ और हथेली मुझे अपने बदन पर ठंडी महसूस हो रही थी क्यूंकी उसने अभी ठंडे पानी से नहाया था। कुछ देर तक उसने अपने हाथ नहीं हिलाए. फिर धीरे-धीरे नीचे को खिसकाने लगा। अब उसके हाथ साड़ी जहाँ पर फोल्ड करते हैं वहाँ पर पहुँच गये।

मेरी नंगी त्वचा पर उसके ठंडे हाथों के स्पर्श से मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी। मुझे ऐसा मन हो रहा था कि थाली को फेंक दूं और छोटू का सर पकड़कर उसका मुँह अपनी चूचियों पर ज़ोर से दबा दूं।

पांडेजी को अच्छी तरह से पता था कि मैं भले ही कोई रिएक्शन नहीं दे रही हूँ पर उसकी हरकतों से बेख़बर नहीं हूँ। उसकी अंगुलियों ने मेरी पैंटी के सिरों को पकड़ा, खींचा फिर खींचकर फैला दिया। अब वह इस खेल से बोर हो गया लगता था। कुछ देर तक उसके हाथ शांत रहे। मुझे लग रहा था अब ये कुछ और खेल शुरू करेगा और ठीक वैसा ही हुआ। सभी मर्दों की तरह अब वह मेरी रसीली चूचियों के पीछे पड़ गया।

हम उस पतले गलियारे में दीवार का सहारा लेकर खड़े थे। मैंने महसूस किया की पांडेजी ने अपना दायाँ हाथ दीवार और मेरे बीच घुसा दिया और मेरी कांख को छू रहा है। मुझे बड़ी शरम आई क्यूंकी अभी तक तो जो हुआ उसे कोई नहीं देख रहा था पर अब अगर पांडेजी मेरी चूचियों को छूता है तो छोटू देख लेगा क्यूंकी छोटू मेरी तरफ़ मुँह किए था। मुझे कुछ करना होगा। लेकिन उन दोनों मर्दों के सामने मैं एक गुड़िया साबित हुई. उन दोनों ने मुझे कोई मौका ही नहीं दिया और उनकी बोल्डनेस देखकर मैं अवाक रह गयी।

अब लाइन जहाँ पर खिसक गयी थी वहाँ और भी अँधेरा था जिससे उन दोनों की हिम्मत और ज़्यादा बढ़ गयी। एक तरह से उन दोनों ने मुझ पर दोहरा आक्रमण कर दिया। छोटू अपने हाथ मेरी कमर से खिसकाते हुए साड़ी के फोल्ड पर ले आया था और अब एक झटके में उसने अपना दायाँ हाथ मेरी नाभि के पास लाकर साड़ी के अंदर डाल दिया।

उसकी इस हरकत से मैं ऐसी भौंचक्की रह गयी की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी। क्या हो रहा है, ये समझने तक तो छोटू ने एक झटके में अपना हाथ साड़ी के अंदर घुसा दिया। उसकी इस हरकत से मैं उछल गयी और मेरी बाँहें और भी ऊपर उठ गयी। मेरी बाँह उठने का पांडेजी ने पूरा फायदा उठाया और मेरी कांख से अपना हाथ खिसकाकर मेरी दायीं चूची को ज़ोर से दबा दिया।

"आआआअहह..." मैं बुदबुदाई. पर मैं ज़ोर से आवाज़ नहीं निकाल सकती थी, मुझे अपनी आवाज़ दबानी पड़ी। क्यूंकी छोटू का हाथ मेरी साड़ी के अंदर था और पांडेजी का हाथ मेरे ब्लाउज के ऊपर था। अगर लोगों का ध्यान हमारी तरफ़ आकर्षित हो जाता तो मुझे बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ती।

अब तो मुझे कुछ करना ही था। भले ही वहाँ कुछ अँधेरा था पर हम अकेले तो नहीं थे। आगे पीछे सभी लोग थे। मुझे शरम और घबराहट महसूस हुई. मैंने दाएँ हाथ में थाली पकड़ी और बाएँ हाथ को अपनी नाभि के पास लायी और छोटू का हाथ साड़ी से बाहर खींचने की कोशिश करने लगी। मैं अपनी जगह पर खड़े-खड़े कुलबुला रही थी और कोशिश कर रही थी की लोगों का ध्यान मेरी तरफ़ आकर्षित ना हो। लेकिन तभी छोटू ने नीचे को एक ज़ोर का झटका दिया और मैं एक मूर्ति के जैसे जड़वत हो गयी। शर्मिंदगी से मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरे दाँत भींच गये। मैं बहुत असहाय महसूस कर रही थी। हालाँकि बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी।

छोटू का हाथ मेरी साड़ी में अंदर घुस गया था और अब मेरी चूत के ऊपरी हिस्से को पैंटी के ऊपर से छू रहा था। उस अंधेरे गलियारे में वह लड़का छोटू मेरे सामने खड़े होकर करीब-करीब मेरा रेप कर दे रहा था। अब वह अपना हाथ मेरी पैंटी के ऊपर नीचे करने लगा। कुछ पल तक मेरी आँखें बंद रही और मेरे दाँत भिंचे रहे।

उसके माहिर तरीके से हाथ घुमाने से मुझे ऐसा लगा की छोटू शायद पहले भी कुछ औरतों के साथ ऐसा कर चुका है। ज़रूर वह इस बात को जानता होगा की अगर तुम्हारा हाथ किसी औरत की चूत के पास पहुँच जाए तो फिर वह कोई बखेड़ा नहीं करेगी।

पांडेजी का हाथ मेरी दायीं चूची को कभी मसल रहा था, कभी दबा रहा था, कभी उसका साइज़ नापने की कोशिश कर रहा था, कभी निप्पल को ढूँढ रहा था। अब मैं पूरी तरह से कामोत्तेजित होकर गुरुजी के दिए पैड को चूतरस से भिगो रही थी।

अब मुझे अपनी आँखें खोलनी ही थी। मैं ऐसे कैसे लाइन में खड़ी रह सकती थी ये कोई मेरा बेडरूम थोड़ी था यहाँ और लोग भी तो थे। मैं कमजोर से कमजोर होते जा रही थी। थाली पर भी मेरी पकड़ कमजोर हो गयी थी, मैं तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। ये दो मर्द मेरी जवानी को ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए थे। पांडेजी मेरी गोल गांड पर हल्के से धक्के लगा रहा था जैसे मुझे पीछे से चोद रहा हो। मैं इतनी कमज़ोर महसूस कर रही थी की विरोध करने लायक हालत में भी नहीं थी।

और सच बताऊँ तो उन दोनों मर्दों के मेरे बदन को मसलने से मुझे जो आनंद मिल रहा था उसे मैं बयान नहीं कर सकती। मैं चुपचाप खड़ी रही और छोटू के हाथ का अपनी पैंटी पर छूना, पांडेजी के मेरे भारी नितंबों पर धक्के और मेरी दायीं चूची पर उसका मसलना महसूस करती रही। सहारे के लिए मैं पीछे पांडेजी के ऊपर ढल गयी थी।

छोटू अब मेरी पैंटी के कोनो से झांट के बालों को छू रहा था। आज तक मेरे पति के अलावा किसी ने वहाँ नहीं छुआ था। मैं कामोन्माद में तड़पने लगी। वह तो खुश-किस्मती थी की मेरे पेटीकोट का नाड़ा कस के बँधा हुआ था और अब उसका हाथ और नीचे नहीं जा पा रहा था क्यूंकी हथेली का अंतिम हिस्सा मोटा होता है तो वहाँ पर उसका हाथ पेटीकोट के टाइट नाड़े में अड़ गया था।

मेरी चूत से बहुत रस बह रहा था और कमज़ोरी से सहारे के लिए मेरा सर पांडेजी की छाती से टिक गया था। मुझे मालूम था कि मेरे ऐसे सर टिकाने से मैं उन्हें और भी मनमानी की खुली छूट दे रही हूँ पर मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी। पांडेजी तो इससे बहुत उत्साहित हो गया क्यूंकी उसे मालूम पड़ गया था कि उनकी हरकतों से मुझे बहुत मज़ा आ रहा है।

अब पांडेजी अपने बाएँ हाथ से मेरे नितंबों को दबाने लगा और दायाँ हाथ तो पहले से ही मेरी दायीं चूची और निप्पल को निचोड़ रहा था। मेरे निप्पल भी अब अंगूर के दाने जितने बड़े हो गये थे। पता नहीं पांडेजी के पीछे खड़े आदमी को ये सब दिख रहा होगा या नही। भले ही वहाँ थोड़ा अँधेरा था पर उसकी खुलेआम की गयी हरकत किसी ने देखी या नहीं मुझे नहीं मालूम। अब लाइन गलियारे के अंतिम छोर पर थी और यहाँ दिन में भी बहुत अँधेरा था। हवा आने जाने के लिए कोई खिड़की भी नहीं थी वहाँ पर।

कुछ फीट की दूरी पर एक दरवाज़ा था जो मैं समझ गयी की पूजा में मुख्य स्थान का था। उसे देखकर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश की पर मैं ऐसा ना कर सकी। मैं इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी की मेरा ध्यान कहीं और लग ही नहीं पा रहा था। सिर्फ़ अपने बदन को मसलने से मिलते आनंद पर ही मेरा ध्यान था।

छोटू जल्दी ही समझ गया की अब उसका हाथ और नीचे नहीं जा पा रहा तो उसने मेरी साड़ी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लिया। ये मेरे लिए बहुत ही राहत की बात थी।

छोटू जल्दी ही समझ गया की अब उसका हाथ और नीचे नहीं जा पा रहा तो उसने मेरी साड़ी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लिया। ये मेरे लिए बहुत ही राहत की बात थी। लेकिन अब उसका इरादा कुछ और था। वह थोड़ा झुका और मेरी साड़ी के निचले सिरों को पकड़कर मेरी टाँगों के ऊपर साड़ी खिसकाने लगा। मैं उसको रोक नहीं पायी क्यूंकी उस लड़के की बदमाशी से मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। बिना समय लगाए छोटू ने मेरे घुटनों तक साड़ी ऊपर खिसका दी और एक अनुभवी मर्द की तरह मेरी मांसल जांघों को अपने हाथों से मसलने लगा।

पांडेजी भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहा। उसने तुरंत अपना बायाँ हाथ मेरी जाँघ में रख दिया और वह मेरी साड़ी को कमर तक उठाने की जल्दी में था। पांडेजी थोड़ा बायीं तरफ़ खिसक गया ताकि पीछे से किसी की नज़र मेरी नंगी टाँगों पर ना पड़े। बाहर से कोई देखे तो उसे मेरी साड़ी नॉर्मल दिखती पर अगर ध्यान से देखे तो मेरी साड़ी ऊपर उठी हुई दिखती। साड़ी के अंदर उन दोनों मर्दों के हाथ मेरी जांघों पर थे। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी की ऐसी हालत में एक मंदिर में खड़ी होऊँगी और दो अंजाने मर्द मेरी टाँगों पर ऐसे हाथ फिराएँगे।

पांडेजी ने ज़बरदस्ती मेरी साड़ी और पेटीकोट को कमर तक उठा दिया। मेरी टाँगें और जाँघें पूरी नंगी हो गयीं।

"आउच......प्लीज़ मत करो।"

मैं धीरे से बुदबुदाई ताकि कोई और ना सुन ले।

पांडेजी शायद बहुत उत्तेजित हो गया था। उसने मेरी दायीं चूची के ऊपर से अपना हाथ हटा लिया था और दोनों हाथों से मेरी साड़ी ऊपर खींचने लगा। मैं घबरा गयी क्यूंकी उन दोनों ने मुझे नीचे से नंगी कर दिया था। छोटू खुलेआम मेरे नंगे नितंबों को दबा रहा था। मेरे एक हाथ में थाली थी । मैंने बाएँ हाथ से पांडेजी को रोकने की कोशिश की और अपनी साड़ी नीचे करने की कोशिश की पर वह मेरे पीछे खड़ा था और उसके लिए मेरी साड़ी को ऊपर खींचना आसान था, मेरे विरोध से उसे कुछ फ़र्क नहीं पड़ा।

"पांडेजी आप हद से बाहर जा रहे हो। अब बंद करो ये सब। लोगों के बीच में मैं ऐसे नहीं खड़ी रह सकती।"

मैं मना करने लगी पर उसने जवाब देना भी ज़रूरी नहीं समझा। उसकी ताक़त के आगे मेरा बायाँ हाथ क्या करता। उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी की मैं साड़ी नीचे नहीं कर पायी। मैं बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी। मेरी कमर तक साड़ी उठाकर उन दोनों ने मुझे नीचे से गी कर दिया था।

"पांडेजी रुक जाओ. अब बहुत हो गया।"

पांडेजी--चुपचाप खड़ी रहो वरना मैं तुम्हारी ये हालत सबको दिखा दूँगा।

उसकी धमकी सुनकर मैं शॉक्ड रह गयी। ऐसा लग रहा था कुछ ही पलों में ये आदमी बदल गया है।

"लेकिन।"

पांडेजी--लेकिन वेकिन कुछ नहीं मैडम। अगर तुमने शोर मचाया तो मैं यहाँ अंधेरे से निकालकर तुमको इस हालत में सबके सामने धूप में ले जाऊँगा। इसलिए चुपचाप रहो।

"लेकिन मैं गुरुजी के आश्रम से आई हूँ।"

पांडेजी--भाड़ में गया गुरुजी. अगर एक शब्द भी और बोला ना तो मैं तुम्हारी पैंटी नीचे खींच दूँगा और सबके सामने ले जाकर खड़ी कर दूँगा। समझी?

मैं समझ नहीं पा रही थी की क्या करूँ। एक तरफ़ तो उनके मसलने और मुझे ऐसे नंगी करने से मैं बहुत कामोत्तेजित हो रखी थी। लेकिन अब पहली बार मैं डरी हुई भी थी। मैंने शांत रहने की कोशिश की ताकि कोई बखेड़ा ना हो और लोगों का ध्यान मेरी इस हालत पर ना जाए. एक 28 साल की शादीशुदा औरत के लिए मंदिर की लाइन में ज़बरदस्ती ऐसे अधनंगी खड़ी रहना, ये तो बहुत हो गया था, पर मैंने अपने मन को दिलासा दी और शांत रहने की कोशिश की।

लाइन बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। पांडेजी ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर मोडकर कमर में घुसा दिया था और मैं इसी हालत में अधनंगी होकर बेशर्मी से लाइन में आगे चल रही थी। ठंडी हवा मेरी नंगी टाँगों में महसूस हो रही थी। उनके ऐसे ज़बरदस्ती मुझे अधनंगी करने से मैं आगे चलते हुए शरम से मरी जा रही थी। अपमानित महसूस करके आश्रम में आने के बाद पहली बार मेरी आँखों में आँसू आ गये । इससे पहले जो भी हुआ था उसमें मर्दों के मेरे बदन को छूने का मैंने भी पूरा मज़ा लिया था। पर यहाँ पांडेजी मुझसे ज़बरदस्ती कर रहा था और मैं असहाय महसूस कर रही थी।

छोटू की नज़रें मेरी नग्नता पर ही थी। उस अधनंगी हालत में मेरे लाइन में खड़े होने और चलने का वह मज़ा ले रहा था। छोटू और पांडेजी मेरी नंगी मांसल जांघों और नितंबों पर मनमर्ज़ी से हाथ फिरा रहे थे।

अचानक मुझे महसूस हुआ पांडेजी ने धोती से अपना लंड बाहर निकालकर मेरे नंगे नितंबों पर छुआ दिया। मैंने एकदम से चौंक कर पीछे को सर घुमाया और मेरी आँखें बड़ी होकर फैल गयीं।

"उफ......कितना बड़ा लंड" मैंने मन ही मन कहा।

पांडेजी का लंड बहुत बड़ा था। कोई भी औरत उसके लंड को देखकर चौंके बिना नहीं रहती। पांडेजी अपने लंड को मेरे नंगे नितंबों पर छुआने लगा। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि लाइन में हमारे आगे और पीछे लोग हैं लेकिन अंधेरे और पतले गलियारे की वज़ह से कोई नहीं देख पा रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे मेरे साथ वह दोनों क्या करने वाले हैं। मेरे नंगे नितंबों पर गरम लंड के छूने से ही मैं गीली होने लगी और अब मेरे डर की जगह कामोत्तेजना ने ले ली।

फिर पांडेजी ने एक झटका दिया और लंड को मेरी गांड की दरार में घुसाने लगा।

"ऊऊओह......"

मैं कामोत्तेजना से तड़पने लगी। पांडेजी मेरे कान में मुँह लगाकर मेरे जवान बदन और बड़े नितंबों के बारे में अनाप शनाप बोलने लगा। वह मेरी गांड की दरार में ज़ोर से लंड घुसा रहा था पर खुशकिस्मती से लंड अंदर नहीं जा पा रहा था क्यूंकी मैंने पैंटी पहनी हुई थी। फिर वह मेरे मुलायम नितंबों को अपने तने हुए मोटे लंड से दबाने लगा। मेरे आँखें फैल गयी और उत्तेजना से मैंने छोटू का हाथ पकड़ लिया।

मेरे मुलायम नितंबों में पांडेजी का लोहे जैसा सख़्त लंड बहुत चुभ रहा था। मैं बहुत ही उत्तेजित हो गयी । वह पीछे से धक्के लगाने लगा जैसे मुझे चोद रहा हो। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मज़ा लेने लगी। छोटू ने मुझसे अपना हाथ छुड़ा लिया और मेरी दायीं चूची पकड़ ली। अब वह ज़ोर-ज़ोर से चूची को दबाने लगा। मुझे लगा अगर ये ऐसे ही चूची दबाएगा तो मेरे ब्लाउज के सारे बटन तोड़ देगा। पांडेजी मेरे सुडौल नंगे नितंबों में हर जगह अपने लंड को चुभा रहा था, सिर्फ़ गांड के बीच की दरार पैंटी से ढकी हुई थी।

मेरा बदन भी पांडेजी के धक्कों की ताल से ताल मिलाकर हिलने लगा। मेरे होंठ खुल गये, मुझे उन पर चुंबन की इच्छा होने लगी। अब मैं हल्की सिसकारियाँ लेने लगी और उत्तेजना से छोटू को अपने बदन से भींच लिया। मेरी चूत रस से पूरी गीली हो चुकी थी। मुझे लगा इन दोनों की छेड़खानी से मुझे ओर्गास्म आने ही वाला है। मैंने छोटू को अपने बदन से चिपका लिया था । उसका मुँह मेरी तनी हुई चूचियों पर दब रहा था। अब छोटू ने मेरे बाएँ हाथ को पकड़ा और अपने निक्कर पर लगा दिया। उसने झट से अपने निक्कर की ज़िप खोली और मेरा हाथ निक्कर के अंदर डाल दिया।

"आआआआअहह...।ऊऊहह......"

मैं सिसकारियाँ ले रही थी। मैंने छोटू का तना हुआ लंड हाथ में पकड़ा हुआ था और पांडेजी का मोटा लंड मेरी मुलायम गांड को मसल रहा था। उत्तेजना से मैं छोटू के लंड को अपनी अंगुलियों से सहलाने लगी। मैं बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी और एक रंडी की तरह व्यवहार कर रही थी। कामोन्माद से मेरा बदन तड़प रहा था और अब मेरी चूत से बहुत रस बहने लगा।

पांडेजी और छोटू की कामातुर नज़रों के सामने ही मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं लाइन में खड़े-खड़े झड़ने लगी। मुँह से सिसकारियाँ ज़ोर से ना निकले इसके लिए मुझे अपना मुँह पांडेजी के चौड़े कन्धों से चिपटाना पड़ा। ये अश्लील दृश्य कुछ पल तक चलता रहा जब तक की मैं पूरी तरह झड़ नहीं गयी।

जब मेरा ओर्गास्म ख़त्म हो गया तो मैं होश में आई. मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की मैं छोटू और पांडेजी से आँखें नहीं मिला पा रही थी।

पांडेजी--हाँ अब तुम एक अच्छी लड़की के जैसे व्यवहार कर रही हो।

मैंने अपने कान में पांडेजी की फुसफुसाहट सुनी। उसने फुसफुसाते हुए कुछ गंदे कमेंट्स भी किए. अब हम पूजा में मुख्य स्थान के पास पहुँच गये थे।

"पांडेजी अब लोग देख लेंगे। मुझे कपड़े ठीक करने दो।"

पांडेजी ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी कमर से साड़ी और पेटीकोट को निकालकर नीचे कर दिया। आख़िरकार अब मैं पूरी ढकी हुई थी। छोटू ने भी आगे को मुँह कर लिया और पांडेजी ने अपनी धोती ठीक कर ली। पलक झपकते ही सब कुछ नॉर्मल लग रहा था। लेकिन जो कुछ हुआ था उससे मैं अभी भी हाँफ रही थी।

कुछ ही देर में हमारी बारी आ गयी और मैं पूजा में मुख्य स्थान के पास वाले कमरे के अंदर चली गयी। वह दोनों भी मेरे साथ ही अंदर घुस गये और कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।

पांडेजी--मैडम, मुझे नहीं लगता की इस हालत में तुम पूजा कर पाओगी।

"हाँ, मैं पूजा करने की हालत में नहीं हूँ।"

पांडेजी--लेकिन तुम मुझे तो कुछ करने दे सकती हो।

"क्या?"

पांडेजी--मैडम, तुम्हारा काम तो हो गया। लेकिन अभी मेरा नहीं हुआ है।

"क्या मतलब?"

पांडेजी--मतलब ये की तुम्हारा ओर्गास्म तो निकल गया। मेरा क्या मैडम?

उसकी बात से मैं अवाक रह गयी । कुछ कहती इससे पहले ही छोटू ने मेरे हाथ से पूजा की थाली ली और एक तरफ़ रख दी। पांडेजी भी मेरे एकदम नज़दीक़ आ गया।

"लेकिन......तुम...।तुम ऐसा नहीं कर सकते......"

पांडेजी--मैडम, अगर तुम शोर मचाओगी तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ तुम अच्छी तरह से जानती हो।

वो फिर से मुझे रौबीली आवाज़ में धमकाने लगा।

"लेकिन प्लीज़ समझने की कोशिश करो। मैं शादीशुदा हूँ और वैसी औरत नहीं हूँ जैसी तुम समझ रहे हो।"

पांडेजी--मैं जानता हूँ की तुम रंडी नहीं हो । इसीलिए मैं तुम्हें अपने बिस्तर पर नहीं ले गया। समझी?

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ? मैं मन ही मन गुरुजी और विकास को कोसने लगी की उन्होने मुझे यहाँ भेज दिया।

पांडेजी--हमारे पास समय नहीं है। छोटू इसे यहाँ ला।

पांडेजी पीछे आने का इशारा कर-कर रहा था, वहाँ छोटी-सी जगह थी। छोटू जल्दी से मेरे पीछे आया और मेरे हाथ पकड़े और मुझे खींचते हुए पीछे ले गया। पांडेजी ने मुझे सामने से आलिंगन में कस लिया, मेरी तनी हुई चूचियाँ उसकी छाती से दब गयी। मैं अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी, क्यूंकी छोटू ने मेरे हाथ पीछे को पकड़े हुए थे।

पांडेजी मेरे नितंबों को दोनों हाथों से पकड़कर दबा रहा था और मेरी गर्दन और कंधे में अपना चेहरा रगड़ रहा था। मुझे थोड़ी हैरानी हुई की पांडेजी ने मेरे होठों और गालों को चूमने की कोशिश नहीं की, जैसा की मर्दों का स्वभाव होता है। उसने मुझे अपने बदन से चिपकाए रखा।

मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी क्यूंकी इससे लोगों के सामने और भी अपमानित होना पड़ता। तो मैंने उसकी छेड़खानी का आनंद उठाने की कोशिश की। मुझे अभी कुछ ही मिनट पहले बहुत तेज ओर्गास्म आया था लेकिन पांडेजी के मेरे बदन को छूने से मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी।

मेरी उछलती हुई बड़ी चूचियाँ उसकी चौड़ी छाती में दब रही थीं और उनकी सुडौलता और गोलाई उसे महसूस हो रही होगी। मेरे हाथ पीछे छोटू ने पकड़े हुए थे पर मैं अपने पैरों को हिलाकर विरोध करने की कोशिश कर रही थी पर पांडेजी ने मुझे मजबूती से जकड़ रखा था।

थोड़ी देर तक मेरे सुडौल नितंबों और चूचियों को दबाने, मसलने और सहलाने के बाद उसने मुझे छोड़ दिया। उसके ऐसे मुझे अधूरा उत्तेजित करके छोड़ देने से मुझे हैरानी भी हुई और इरिटेशन भी हुई. लेकिन जल्दी ही मुझे उसके इरादे का पता चल गया। वह मेरे पीछे आया, अपनी धोती खोल दी और दोनों हाथों से एक झटके में मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरी कमर तक ऊपर उठा दी।

एक बार फिर से उन्होंने मुझे बेशर्मी से नीचे से नंगी कर दिया। अब छोटू ने मुझे सामने से आलिंगन कर लिया और पांडेजी ने मेरे हाथ पीछे को पकड़ लिए. अब पांडेजी अपने तने हुए मोटे लंड को मेरी गांड में चुभाने लगा। दो मर्दों ने आगे पीछे से मेरे बदन को जकड़ लिया था। मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ था और मैं हांफने लगी। उन दोनों मर्दों के बीच दबने से मैं स्वाभाविक रूप से कामोत्तेजित होने लगी।

मैंने अब उन दोनों के आगे समर्पण कर दिया। छोटू मुझे कस के पकड़े हुए था और मैं भी अपनी रसीली चूचियों को उसके मुँह में दबा रही थी। वह मेरे ब्लाउज के बाहर से ही चूचियों पर दाँत गड़ा रहा था। पांडेजी पीछे से धक्के लगाए जा रहा था और उसका मोटा सख़्त लंड मेरे मुलायम नितंबों को गोद रहा था। मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था। पर दो मिनट में ही पांडेजी चरम पर पहुँच गया और उसने मेरे नंगे नितंबों पर वीर्य छोड़ दिया।

छोटू को अपने से बड़ी उमर की जवान औरत को बिना किसी रोकटोक के आलिंगन करने में बहुत मज़ा आ रहा था। उसने मुझे सभी गुप्तांगों पर छुआ। पांडेजी ने मेरे हाथ पीछे को पकड़े हुए थे इसलिए मैं छोटू को रोक नहीं पायी। उसने मुझे ब्लाउज के ऊपर से छुआ, मेरी ब्रा के स्ट्रैप को छुआ, मेरी पैंटी के ऊपर से छुआ, पैंटी के कपड़े को बाहर को खींचकर अंदर झाँका और यहाँ तक की मेरे प्यूबिक हेयर्स (झांट के बालों) को भी खींचा।

पांडेजी ने मेरे नितंबों पर वीर्य गिरा दिया था। फिर उसने अपनी धोती से मेरे नितंबों को पोंछ दिया। उतने समय तक मेरी साड़ी कमर तक ऊपर उठी हुई थी और मैं बेशर्मी से अधनंगी खड़ी थी। शुक्र है कि ये सब पूजा में मुख्य स्थान के पास हो रहा था।

आधे घंटे बाद विकास आ गया। वापसी में रास्ते भर गुस्से से मैं उससे कुछ नहीं बोली। मैं विकास से इस बात पर बहुत गुस्सा थी की मुझे पांडेजी जैसे आदमी के पास भेजा।

आश्रम में अपने कमरे में आकर मैंने देर तक नहाया और फिर लंच करने के बाद मैंने बेड में आराम किया।

जिस तरह का व्यवहार उस लुच्चे लफंगे पांडेज़ी ने मेरे साथ किया, उसके कारण मैं विकास से बहुत नाराज़ हो गयी थी और मन ही मन उसे कोस रही थी की मुझे ऐसे लफंगे के पास भेजा। लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ की विकास की इसमें कोई ग़लती नहीं है, वह तो सिर्फ़ गुरुजी के आदेश का पालन कर रहा था। मुझे याद आया की गुरुजी ने इस दो दिन के उपचार के शुरू में क्या कहा था। उन्होने कहा था कि दो दिन तक रोज़ कम से कम दो बार ओर्गास्म लाने हैं।

और इसके लिए जो भी सिचुयेशन वह देंगे वहाँ मुझे सिर्फ़ अपने शरीर से स्वाभाविक प्रतिक्रिया देनी है और अच्छा बुरा ये सब दिमाग़ में नहीं सोचना है, जो हो रहा है उसे होने देना। बिस्तर में लेटे हुए मेरे मन में मंदिर की घटना घूमने लगी। मुझे ऐसा लगा, मेरे खूबसूरत बदन की वज़ह से पांडेजी बहक गया होगा और मेरा ओर्गास्म निकलने के बाद भी उसने मुझे नहीं छोड़ा।

अपना पानी निकालने के लिए उसने मेरे बदन का इस्तेमाल किया। शायद कामोत्तेजना में वह गुरुजी के निर्देशों से भटक गया होगा। आख़िरकार वह था तो एक मर्द ही, अपने ऊपर काबू नहीं रख पाया।

ये सब सोचकर अब मेरा मन शांत हो गया था। बल्कि मैं गर्व महसूस करने लगी थी की 30 वर्ष के करीब पहुँचने वाली हूँ और अब भी छोटू से लेकर पांडेजी और गोपालजी जैसे छोटी बड़ी सभी उम्र के मर्द मेरे खूबसूरत बदन की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं। मुझे अब सिर्फ़ इस बात का अपराधबोध रह गया था कि पूजा के मुख्या स्थान जैसी पवित्र जगह के पास में मैंने उन दो मर्दों को अपने बदन से छेड़खानी करने दी। मैंने प्रार्थना की और इस ग़लत काम के लिए क्षमा माँगी।

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