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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
CHAPTER-4
गर्भदान
PART-1
वंश वृद्धि के लिए साधन
दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले कुमारो गर्भदान एक प्राचीन और स्वीकृत परंपरा है। महाराज उस समय उस प्रस्ताव को सुन कर विवेकहीन थे परन्तु शाही परिवार से जुड़े ऐसे नाज़ुक मुद्दों को गुरुओं, साधुओं और तपस्वियों के साथ साझा करने में सुरक्षा थी।
प्रत्येक शाही परिवार के पास अपने स्वयं के आध्यात्मिक परामर्शदाता होते थे और उन्होंने राज्यों से संरक्षण प्राप्त होता था। दोनों की ये व्यवस्था परस्पर ज़रूरतों को पूरा करती थी और पीढ़ी दर पीढ़ी वफादारी की कसौटी पर खरी उतरती थी। कभी भी किसी भी राजा ने प्रतिद्वंद्वी राजा के गुरु के साथ खिलवाड़ नहीं किया। गुरु और तपस्वी प्रलोभन से ऊपर थे और सैदेव राजा के हित की बात करते थे उसे शिक्षित करते थे और राजा हमेशा उनका मान सममान करते थे और उनकी सलाह के अनुसार चने का प्रयास करते l
गुरु और तपस्वियों और साधुओ ने यौन इच्छा कामनाओ सहित सभी पर अपने कठोर तप और साधना से विजय प्राप्त की थी और इस प्रकार यौन शक्ति और कौशल के लिए वह अधिकानाश तौर पर अनिच्छुक हो होते थे। उनके शरीर में योग, ध्यान, शारीरिक फिटनेस और ऊर्जा प्रवाह के उनके गहन अभ्यास से उनके पास अथाह शक्तिया उनके नियंत्रण में होती थी। उनके परिवार होते थे, लेकिन एक आदमी को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इसके लिए वे सेक्स केवल संतान के लिए करते थे इसके इतर वे संयम का अभ्यास करते थे और शास्त्रों में इस संयम को शक्ति का एक स्रोत माना जाता है।
गुरुओं के आश्रम शहरो के बाहर नदियों के तट पर तलहटी में, या हिमालय या पर्वतो में और जंगलो में होते थे। कुछ गुरुजन पहाड़ों में आगे बढ़ गए और आध्यात्मिक ऊंचाइयों को हासिल किया, जिससे वे कभी वापिस नहीं लौटे।
और जो गुरु और ऋषि शाही परिवारों के साथ जुड़े हुए थे, वे उन्हें उचित सलाह देते रहते थे और कभी-कभी ही उन्हें नियोग के लिए भी राज परिवार में याद किया जाता था और किसी-किसी मामले में राजवंश में उनका अच्छा खून कभी-कभी वंश वृद्धि के काम लिया जाता था।
यह सब महाराजा ने एक राजकुमार के रूप में प्रशिक्षण के तहत जाना और सिखा था। लेकिन उन्हों ने कभी नहीं सोचा था कि उनके साथ ऐसा होगा।
अनिच्छा से, महाराज इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए थे, लेकिन यह सब चुपचाप किया जाना था।
महाराज ने कहा, "हम महारानी और रानियों को-को विश्राम और यज्ञ के लिए गुरुदेव के आश्रम में भेज देते हैं। वहीँ पर गुरु जी की आज्ञा के अनुसार युवराज के लिए साधन किया जाएगा।"
तो फिर गुरु जी के परामर्श के छ: नौकरानियों की एक छोटी टीम बनायीं गई उनके साथ 12 पुरुष, महाराज राजमाता और महारानी और अन्य चारो जूनियर रानियों के साथ मेरा 'तीर्थयात्रा' पर जाने का कार्यक्रम बना। इस यात्रा में केवल महाराज, मैं, राजमाता और महारानी ही यात्रा का असली उद्देश्य जानते थे। यात्रा में कुछ रात्रि ठहराव शामिल थे और हमे वहाँ 4 से 6 सप्ताह बिताने के लिए निर्धारित किया गया था और हमे रानियों की गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद ही वापस लौटना था।
सबसे पहले पूरी टीम को गुरूजी के आश्रम जाना था वहाँ पर महाराजा का एक और विवाह होना तय हुआ ... इसके बाद महर्षि ने मुझे, जूही और ऐना को रुकने का ईशारा किया और महाराज, मेरे पिताजी और अन्य सभी लोग महर्षि से आज्ञा और आशीर्वाद ले कर अपने राज्य चले गए।
महर्षि बोले आप को वंश वृद्धि के लिए गर्भदान साधन और साधना करनी होगीl
शास्त्रों में धर्म के साथ-साथ अर्थ, काम तथा मोक्ष को भी महत्त्व दिया गया है। यहाँ काम को भी नकारात्मक रूप में न मान कर सर्जन के लिए आवश्यक माना गया है। हालांकि साथ ही कहा गया है काम को योग के समान ही संयम और धैर्य से साधना चाहिए। यही कारण है कि प्राचीन भारत में काम की पूजा की जाती थी और मदनोत्सव भी मनाया जाता था, जो मनोहारी और अद्भुत होता था।
प्रेम और काम का देवता माना गया है। उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है।
PART-2
नियम
दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले काम, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से सम्बंधित कई मूर्तियाँ हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं।
कई कहानियों में काम का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में काम के बारे में जहाँ कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि-कि काम का सम्बंध प्रेम और कामेच्छा से है।
लेकिन असल में काम हैं कौन? क्या वह एक काल्पनिक भाव है जो देव और ऋषियों को सताता रहता था?
मदन
मदन काम भारत के असम राज्य के कामरूप ज़िले में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका निर्माण 9वीं और 10वीं शताब्दी ईसवी में कामरूप के राजवंश द्वारा करा गया था।
मदन मुख्य मंदिर है और इसके इर्दगिर्द अन्य छोटे-बड़े मंदिरों के खंडहर बिखरे हुए हैं। माना जाता है कि खुदाई से बारह अन्य मंदिर मिल सकते हैं।
वसंत काम का मित्र है, इसलिए काम का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी जब काम जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज़ नहीं होती है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।
गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भड़काता है। तापमान न अधिक ठंडा, न अधिक गर्म। सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। यौवन इसमें अँगड़ाई लेता है। दरअसल वसंत ऋतु एक भाव है जो प्रेम में समाहित हो जाता है।
दिल में चुभता प्रेमबाण: जब कोई किसी से प्रेम करने लगता है तो सारी दुनिया में हृदय के चित्र में बाण चुभाने का प्रतीक उपयोग में लाया जाता है। प्रेमबाण यदि आपके हृदय में चुभ जाए तो आपके हृदय में पीड़ा होगी। लेकिन वह पीड़ा ऐसी होगी कि उसे आप छोड़ना नहीं चाहोगे, वह पीड़ा आनंद जैसी होगी। काम का बाण जब हृदय में चुभता है तो कुछ-कुछ होता रहता है।
इसलिए तो बसंत का काम से सम्बंध है, क्योंकि काम बाण का अनुकूल समय वसंत ऋतु होता है। प्रेम के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है। जो प्रेम में है वह दीवाना हो ही जाता है। प्रेम का गणित मस्तिष्क की पकड़ से बाहर रहता है। इसलिए प्रेम का प्रतीक हृदय के चित्र में बाण चुभा बताया जाता है।
PART-3
प्रायश्चित
दादा गुरु महर्षि अमर मुनि जी बोले मनुष्य बहुधा अनेक भूल और त्रुटियाँ जान एवं अनजान में करता ही रहता है। अनेक बार उससे भयंकर पाप भी बन पड़ते हैं। पापों के फल स्वरूप निश्चित रूप से मनुष्य को नाना प्रकार की नारकीय पीड़ायें चिरकाल तक सहनी पड़ती हैं। पातकी मनुष्य की भूलों का सुधार और प्रायश्चित भी उसी प्रकार सम्भव है, जिस प्रकार स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों के तोड़ने पर रोग हो जाता है और उससे दुःख होता है, तो थोड़ी चिकित्सा आदि से उस रोग का निवारण भी किया जा सकता है। पाप का प्रायश्चित्त करने पर उसके दुष्परिणामों के भार में कमी हो जाती है और कई बार तो पूर्णतः निवृत्ति भी हो जाती है।
उसे बाद गुरुदेव ने प्रायश्चित की पूरी विधि विस्तार से समझायी l
इसके बाद महर्षि कुछ कहते तो हमारे कुलगुरु मृदुल मुनि अंदर अनुमति ले कर अंदर आ गए l
PART-4
गर्भदान के नियम
कुलगुरु मृदुल ने महर्षि को प्रणाम किया और बोला गुरुदेव महारानी ने प्राथना की है कि सबसे पहले गर्भदान का अवसर उन्हें मिलना चाहिए क्योंकि महाराज ने उनसे वाद किया है कि महारानी की ही संतान युवराज होगी तो मैंने उन्हें बोला महर्षि ने आप को बताया था कि गर्भदान के क्या नियम है महारानी विवाहित है और कुमार अविवाहित हैं इसलिए ये संभव नहीं है।
महर्षि गुरुदेव बोले इसीलिए हमने महाराज को एक कुंवारी कन्या से विवाह करने का निर्देश दिया है जिसका गर्भदान कुमार के साथ होगा अन्यथा ये गर्भदान निष्फल रहता, अच्छा हुआ तुम ये प्रश्न किया ... इसका दूसरा हिस्सा ये है कि कुमार को भी पहले गर्भदान के बाद विवाह करना होगा और अपनी पत्नी के साथ मिलन के बाद ही बाक़ी रानियों के साथ कुमार गर्भदान कर सकेंगे
महर्षि गुरुदेव बोले प्रिय मृदुल बिलकुल ठीक समय पर आये हो अब मैं कुमार को साधना की नियम बताने वाला था इन्हीं नियमो का पालन महाराज को उनकी रानियों को और राजकुमारी को भी करना होगा जिससे महाराज का विवाह होना हैं।
किसी भी साधना मैं सबसे महत्त्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं। सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं।
उसे बाद गुरुदेव ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझायी l
महाराज को एक कुंवारी कन्या से विवाह करने का निर्देश दिया है जिसका गर्भदान कुमार के साथ होगा अन्यथा ये गर्भदान निष्फल रहता है। कुमार को भी पहले गर्भदान के बाद विवाह करना होगा और अपनी पत्नी के साथ मिलन के बाद ही बाक़ी रानियों के साथ कुमार गर्भदान कर सकेंगे l
इस प्रकार कार्य को पूजा समझ कर आरम्भ करे और शुद्ध ह्रदय से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करे तो ये कार्य पवित्र रहेगा और उत्तम फल प्रदान करेगा l
इसके बाद कुलगुरु मृदुल जी बोले धन्यवाद गुरु जी, महाराज हिमालय की रियासत के महाराज वीरसेन दर्शनों के लिए आये है और आज्ञा प्रदान करे l
तो महृषि बोले मुझे उनका ही इंतज़ार था उन्हें सादर ले आओ l
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार