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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
CHAPTER-5
रुपाली-मेरी पड़ोसन
PART-6
विवाह प्रस्ताव
दोपहर का खाना खाने के बाद मैं सोने की तयारी करने लगा तभी मेरे मोबाइल फ़ोन पर किसी अनजान फ़ोन नंबर के कॉल आयी ... एक दो बार घण्टी बजी और फिर फ़ोन कट गया ...l
मैं देख रहा था किसका फ़ोन हो सकता है पर मुझे कुछ भी समझ नहीं आया ... मैंने सोचा फ़ोन मिला कर पूछता हूँ फिर लगा शायद किसी से ग़लत फ़ोन लग गया होगा इसलिए काट दिया ... ... तभी फ़ोन की घंटी बजी और ऐना का फ़ोन आया और उसने कहा क्या आपने राजकुमारी ज्योत्सना से बात की है ... मैंने बोला नहीं अभी नहीं की है ... तो वह बोली मैंने उसे भी आपका नंबर दिया है ... ... तो आप उससे बात कर लेना और उसने दुबारा नंबर भेज दिया ... मैंने अब जैसे ही नंबर सेव किया तो पता लग गया वह मिस काल राजकुमारी ज्योत्सना की ही थी l
मैं उसे फ़ोन मिलाने ही जा रहा था कि पिता जी का फ़ोन आ गया l
मैंने उन्हें प्रणाम कहा l
तो उन्होंने मुझे आयुष्मान और खुश रहने का आशीर्वाद दिया l
फिर बोले कैसे हो और भाई महाराज हरमोहिंदर की शादी के लिए परसो ही वह दिल्ली से गुजरात आ रहे है और मुझे उनके साथ महाराज हरमोहिंदर के घर ही चलना होगा और उन्होंने मुझे ऑफिस से छुट्टी लेने को भी बोल दिया ...l
फिर पिताजी ने पुछा कुमार एक बात बताओ क्या तुमने अपने लिए कोई लड़की पसंद की हुई है या तुमने किसी को शादी के लिए वादा किया हुआ है l
तो मैंने कहा पिता जी नहीं ऐसा अभी कुछ नहीं है l
तो वह बोले ठीक है अपने माता जी से बात करो l
उसके बाद फ़ोन माता जी ने ले लिया तो मैंने उन्हें प्रणाम किया उनशो ने भी आशीर्वाद दिया और बोली महर्षि ने तुम्हारे भाई महाराज हरमोहिंदर के द्वारा सन्देश भिजवाया है ही उनके ससुर हिमालय की रियासत के महाराज वीरसेन के मित्र कामरूप क्षेत्र के (आसाम) के महाराज उमानाथ अपनी राजकुमारी ज्योत्सना का विवाह तुम से करना चाहते है ... तो तुम्हारी क्या राय है?
मेरे तो मन में लडू फुट पड़े और लगा ख़ुशी से नाचने लग जाऊँ पर मैंने भावनाओ पर नियंत्रण किया और मैंने कहाः आप जो करेंगे मुझे मंजूर होगा l
तो पिताजी बोले फिर तुम्हे ये विवाह जल्द ही करना होगा ऐसा महाराज और महृषि की आज्ञा है ... तो मैंने कहा मैं एक बार राजकुमारी ज्योत्सना से भी सहमति लेना चाहूंगा और मुझे महर्षि के आश्रम से उनकी शिष्य ऐना का फ़ोन भी आया था कि राजकुमारी ज्योत्सना भी मुझ से बात करना चाहती है l
तो पिताजी ने बोलै ठीक है तुम राजकुमारी ज्योत्सना से बात कर लो हम परसो शाम को गुजरात आ रहे है फिर आगे बात करेंगे l
फिर पिताजी बोले महर्षि अमर गुरुदेव ने कुछ काम करने को बोले है उन्हें ध्यान से नॉट करलो और वह हररोज बिना भूल के करने हैं l
महर्षि अमर गुरुदेव ने अंजाने में हुए पापों से मुक्ति के लिए रोज़ प्रतिदिन 5 प्रकार के कार्य करने की सलाह दी। ये 5 कार्य मनुष्य को अनजाने में किए गए बुरे कृत्यों के बोझ से राहत दिलाते हैं।
पहला-आकाश-यदि अनजाने में हम कोई पाप कर देते हैं तो हमें उसके प्रायश्चित के लिए रोजाना गऊ को एक रोटी दान करनी चाहिए। जब भी घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ के लिए निकाल देना चाहिए।
दूसरा पृथ्वी-प्राश्चित करने के लिए चींटी को 10 ग्राम आटा रोज़ वृक्षों की जड़ों के पास डालना चाहिए। इससे उनका पेट तो भरता ही है, साथ ही हमारे पाप भी कटते हैं।
तीसरा वायु-पक्षियों को अन्न रोज़ डालना चाहिए और जल की व्यवस्था भी करनी चाहिए। ऐसा करने से उनके भोजन की तलाश ख़त्म होती है और व्यक्ति को अपनी गलतियों का अहसास होने के साथ ही उसके दोषों से बचने का एक मौका मिलता है। -
चौथा जल आटे की गोली बनाकर रोज़ जलाशय में मछलियों को डालना चाहिए। इसके अलावा मछलियों का दाना भी डाला जा सकता है।
पांचवां अग्नि महर्षि के अनुसार, रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमें घी-चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाएँ। उन्होंने कहा कि यदि कोई रोजाना ये 5 कार्यसम्पन्न करता है तो वह अंजाने में हुए पापों के बोझ से मुक्ति पाता है और अंजाने में हुए पापों से मुक्ति होती है l
इसके इलावा अब तुमने हर रोज़ मंदिर में जाकर दूध फल फूल और मिठाई अर्पण करनी है और आज ही से करना है और अभी चले जाओ और फ़ोन बंद हो गया l
मैं तो ख़ुशी से नाचने लगा और मैंने राजकुमारी ज्योत्सना को फ़ोन मिला दिया ... उसने बहुत मीठी आवाज़ में हेलो कुमार कहा l
तो मैंने कहा राजकुमारी मैं भी आपसे बात करना चाहता था । आपके पिताजी हमारा विवाह करना चाहते है ... आपकी रजामंदी है ... क्या मैं आपको पसंद हूँ l
तो ज्योत्सना बोली जी, आप ...?
मैंने कहा आयी लव यू ... मैंने जब से आपको देखा है तब आपसे बात करना चाहता था ... l
उसके बाद मैंने कहा और आप ... वह बोली मैं भी ...l
और उसके बाद मैंने कहा मैं भाई महाराज हरमोहिंदर के विवाह के लिए महर्षि के आश्रम में जल्द ही आऊँगा आप वहाँ कब आएँगी तो वह बोली हम तो तब से हिमालय राज के यहाँ पर ही हैं उनकी राजकुमारी मेरी मित्र हैं l
फिर हमने मिलने की बात की और उसके बाद मैंने सोनू को बुलाया और मैं मंदिर गया और वहाँ पुजारी से मिला। उन्होंने महर्षि अमर गुरुवर के निर्देशानुसार मुझे पूजा करने में मदद कीl उस समय कुछ भजनों को वहाँ समृद्ध संगीत की धुन के साथ बजाया जा रहा था, जिसने मुझे भक्ति भाव और प्रशंसा से भर दिया, वहाँ थोड़ी भीड़ थी। तभी वह एक युवा लड़की मुझसे टकरा गई जब मैंने उसे देखा। वह लगभग अठारह वर्ष की एक युवा लड़की थी जिसका बदन गदराया हुआ और सेक्सी था, लेकिन वह-वह बहुत शांत और मिलनसार थी, क्योंकि वह मुस्कुरायी और क्षमा मांगने लगी। मैं उसके पास चला गया उसे ध्यान से देखा तो मुझे याद आया वह मेरे पड़ोसी जिनसे मैंने बंगलो खरीदा है उनकी भतीजी ईशा थी।
ईशा के पास ही वहाँ बैठ गया और वहाँ भजनों को सुना। जल्द ही ईशा खड़ी हुई और वह चलने लगी तो मैंने उसके पीछे चलने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
रास्ते में मैंने देखा वह भीड़ से गुजरी तो एक युवा लड़के ने सफेद काग़ज़ के एक छोटे से मुड़े हुए टुकड़े को युवती के सुंदर हाथों में फंसा दिया। वह अपनी मौसी के साथ थी l
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार