औलाद की चाह 033

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मेडिकल चेकअप.
4k words
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Part 34 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 5- चौथा दिन

Medical चेकअप

Update 2

गुरुजी ने अभी भी नॉब को मेरी बायीं चूची के ऊपर दबाया हुआ था। उनके ऐसे दबाने से अब ब्लाउज के अंदर मेरी चूचियाँ टाइट होने लगीं। फिर उन्होंने मेरी छाती से स्टेथेस्कोप हटा लिया लेकिन उनकी नज़रें मेरी चूचियों पर ही थीं। औरत की स्वाभाविक शरम से मैंने चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक करने की कोशिश की पर ठीक करने को कुछ था ही नहीं क्यूंकी गुरुजी ने पल्लू नहीं हटाया था।

गुरुजी--रश्मि तुम कोई छोटी बच्ची नहीं हो की तुम्हें मालूम ही ना हो की तुम्हारी नाड़ी और हृदयगति तेज क्यूँ हैं। तुम एक परिपक़्व औरत हो और तुम्हें मुझसे कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए.

अब मैं दुविधा में थी की क्या कहूँ और कैसे कहूँ? गुरुजी से कुछ तो कहना ही था । मैंने बात को घुमा दिया।

"गुरुजी वह ...मेरा मतलब......मुझे रात में थोड़ा वैसा सपना आया था शायद उसका ही प्रभाव हो ..."

गुरुजी--लेकिन तुम कम से कम एक घंटा पहले उठ गयी होगी। अब तक उस सपने का प्रभाव इतना ज़्यादा तो नहीं हो सकता ।

मैं ठीक से जवाब नहीं दे पा रही थी। इस सब के दौरान मैं टेबल पर लेटी हुई थी और गुरुजी मेरी छाती के पास खड़े थे।

गुरुजी--रश्मि जिस तरह से तुम्हारी चूचियाँ ऊपर नीचे उठ रही हैं, मुझे लगता है कुछ और बात है।

अपनी चूचियों के ऊपर गुरुजी के डाइरेक्ट कमेंट करने से मैं शरमा गयी । मैंने उनका ध्यान मोड़ने की भरसक कोशिश की।

"नहीं नहीं गुरुजी. ये तो आपके ..."

मैंने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी और अपने दाएँ हाथ से इशारा करके बताया की उनके मेरी चूची पर स्टेथेस्कोप लगाने से ये हुआ है। मेरे इशारों को देखकर गुरुजी का मनोरंजन हुआ और वह ज़ोर से हंस पड़े।

गुरुजी--अगर इस बेजान स्टेथेस्कोप के छूने से तुम्हारी हृदयगति इतनी बढ़ गयी तो किसी मर्द के छूने से तो तुम बेहोश ही हो जाओगी।

वो हंसते रहे। मैं भी मुस्कुरा दी।

गुरुजी--ठीक है रश्मि । मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ की तुम्हें रात में उत्तेजक सपना आया था और अब मेरे चेकअप करने से तुम थोड़ी एक्साइटेड हो गयी।

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली।

गुरुजी--लेकिन मैं तुम्हें बता दूं की ये अच्छे लक्षण नहीं हैं। तुम्हारी नाड़ी और हृदयगति इतनी तेज चल रही हैं कि अगर तुम संभोग कर रही होती तब भी इतनी नहीं होनी चाहिए थी।

मैंने गुरुजी को प्रश्नवाचक नज़रों से देखा क्यूंकी मेरी समझ में नहीं आया की इसके दुष्परिणाम क्या हैं?

गुरुजी--अब मैं तुम्हारे शरीर का तापमान लूँगा। इसको अपनी बायीं कांख में लगाओ.

कहते हुए गुरुजी ने थर्मामीटर दिया। अब मेरे लिए मुश्किल हो गयी। घर में तो मैं मुँह में थर्मामीटर लगाती थी पर यहाँ गुरुजी कांख में लगाने को बोल रहे थे। लेकिन मैं तो साड़ी ब्लाउज पहने हुए थी और कांख में लगाने के लिए तो मुझे ब्लाउज उतारना पड़ता।

"गुरुजी, इसको मुँह में रख लूँ?"

गुरुजी--नहीं नहीं रश्मि। ये साफ़ नहीं है और अभी यहाँ डेटोल भी नहीं है। मुँह में डालने से तुम्हें इन्फेक्शन हो सकता है।

अब मेरे पास कोई चारा नहीं था और मुझे कांख में ही थर्मामीटर लगाना था।

गुरुजी--अपने ब्लाउज के दो तीन हुक खोल दो और ।

गुरुजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी । पूरी करने की ज़रूरत भी नहीं थी। मैं उठ कर बैठ गयी और पल्लू की ओट में अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी। गुरुजी सिर्फ़ एक फुट दूर खड़े थे और मुझे ब्लाउज खोलते हुए देख रहे थे। मैंने ब्लाउज के ऊपर के दो हुक खोले और थर्मामीटर को कांख में लगाने को पकड़ा।

गुरुजी--रश्मि एक हुक और खोलो नहीं तो थर्मामीटर ठीक से नहीं लगेगा और फिर ग़लत रीडिंग आएगी।

मेरे ब्लाउज के हुक्स के ऊपर उनके डाइरेक्ट कमेंट से मैं चौंक गयी । मेरे पति को मेरे ब्लाउज को खोलने का बड़ा शौक़ था। अक्सर वह मेरे ब्लाउज के हुक ख़ुद खोलने की ज़िद करते थे। मुझे हैरानी होती थी की मेरी चूचियों से भी ज़्यादा मेरा ब्लाउज क्यूँ उनको आकर्षित करता है ।

मैं गुरुजी को मना नहीं कर सकती थी। मैंने थर्मामीटर टेबल में रख दिया और पल्लू के अंदर हाथ डालकर ब्लाउज का तीसरा हुक खोलने लगी। मैंने देखा पल्लू के बाहर से मेरी गोरी-गोरी चूचियों का ऊपरी भाग साफ़ दिख रहा था। मैंने अपनी आँखों के कोने से देखा गुरुजी की नज़रें वहीं पर थी। मुझे मालूम था कि अगर मैं ब्लाउज का तीसरा हुक भी खोल दूं तो मेरे अधखुले ब्लाउज से ब्रा भी दिखने लगेगी। लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं था और मुझे तीसरा हुक भी खोलना पड़ा।

गुरुजी--हाँ अब ठीक है। अब थर्मामीटर लगा लो।

मैंने अपनी बायीं बाँह थोड़ी उठाई और आधे खुले ब्लाउज के अंदर से थर्मामीटर कांख में लगा लिया। फिर मैंने पल्लू को एडजस्ट करके गुरुजी की नज़रों से अपनी चूचियों को छुपाने की कोशिश की।

गुरुजी--दो मिनट तक लगाए रखो।

ये मेरे लिए बड़ा अटपटा था कि मैं आधे खुले ब्लाउज में एक मर्द के सामने ऐसे बैठी हूँ। इसीलिए मैं चेकअप वगैरह के लिए लेडी डॉक्टर को दिखाना ही पसंद करती थी। वैसे मैं गुरुजी के सामने ज़्यादा शरम नहीं महसूस कर रही थी ख़ासकर की पिछले दो दिनों में मैंने जितनी बेशर्मी दिखाई थी उसकी वज़ह से। वरना पहले तो मैं बहुत ही शरमाती थी।

गुरुजी--टाइम हो गया। रश्मि अब निकाल लो।

मैंने थर्मामीटर निकाल लिया और गुरुजी को दे दिया। फिर फटाफट अपने ब्लाउज के हुक लगाने लगी, मुझे क्या पता था कुछ ही देर में फिर से खोलना पड़ेगा।

गुरुजी--तापमान तो ठीक है। लेकिन इतनी सुबह तुम्हें पसीना बहुत आया है।

ऐसा कहते हुए उन्होंने थर्मामीटर के बल्ब में अंगुली लगाकर मेरे पसीने को फील किया। मुझे शरम आई और मेरे पास जवाब देने लायक कुछ नहीं था।

फिर मैंने जो देखा उससे मैं शॉक्ड रह गयी। गुरुजी ने थर्मामीटर के बल्ब को अपनी नाक के पास लगाया और मेरी कांख के पसीने की गंध को अपने नथुनों में भरने लगे। उनकी इस हरकत से मेरी भौंहे तन गयीं पर उनके पास हर बात का जवाब था।

गुरुजी--रश्मि, तुम्हें ज़रूर हैरानी हो रही होगी की मैं ऐसे क्यूँ सूंघ रहा हूँ। लेकिन गंध से इस बात का पता चलता है कि हमारे शरीर का उपापचन (मेटाबॉलिज़म) कैसा है। अगर दुर्गंध आ रही है तो समझ लो उपापचन ठीक से नहीं हो रहा है। इसीलिए मुझे ये भी चेक करना पड़ता है।

ये सुनकर मैंने राहत की साँस ली। अब गुरुजी ने थर्मामीटर, बीपी मीटर एक तरफ़ रख दिए. मैं टेबल में बैठी हुई थी। गुरुजी अब मेरे अंगों का चेकअप करने लगे। पहले उन्होंने मेरी आँख, कान और गले को देखा। उनकी गरम अंगुलियों से मुझे बहुत असहज महसूस हो रहा था। उनके ऐसे छूने से मुझे कुछ देर पहले विकास के अपने बदन को छूने की याद आ जा रही थी। गुरुजी का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास था और किसी-किसी समय उनकी गरम साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी, जिससे मेरे बदन में कंपकपी दौड़ जा रही थी। उसके बाद उन्होंने मेरी गर्दन और कंधों की जाँच की। कंधों को जाँचने के लिए उन्होंने वहाँ पर से साड़ी हटा दी। मुझे ऐसा लग रहा था विकास के अधूरे काम को ही गुरुजी आगे बढ़ा रहे हैं। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था पर मैंने बाहर से नॉर्मल दिखने की भरसक कोशिश की।

गुरुजी--रश्मि अब तुम लेट जाओ. मुझे तुम्हारे पेट की जाँच करनी है।

गुरुजी--रश्मि अब तुम लेट जाओ. मुझे तुम्हारे पेट की जाँच करनी है।

मैं फिर से टेबल में लेट गयी। गुरुजी बिना मुझसे पूछे मेरे पेट के ऊपर से साड़ी हटाने लगे। स्वाभाविक शरम से मेरे हाथों ने अपनेआप ही साड़ी को फिर से पेट के ऊपर फैलाने की कोशिश की पर गुरुजी ने ज़ोर लगाकर साड़ी को मेरे पेट के ऊपर से हटा दिया। मेरे पल्लू के एक तरफ़ हो जाने से ब्लाउज के ऊपर से साड़ी हट गयी और चूचियों का निचला भाग एक्सपोज़ हो गया।

गुरुजी ने मेरे पेट को अपनी अंगुलियों से महसूस किया और हथेली से पेट को दबाकर देखा। मैंने अपने पेट की मुलायम त्वचा पर उनके गरम हाथ महसूस किए. उनके ऐसे छूने से मेरे बदन में कंपकपी-सी हो रही थी। मेरे पेट को दबाकर उन्होंने लिवर आदि अंदरूनी अंगों को टटोला। फिर अचानक गुरुजी मेरी नाभि में उंगली घुमाने लगे, उससे मुझे गुदगुदी होने लगी । गुदगुदी होने से मैं खी-खी कर हंसने लगी और लेटे-लेटे ही मेरे पैर एक दूसरे के ऊपर आ गये।

गुरुजी--हँसो मत रश्मि। मैं जाँच कर रहा हूँ और अपने पैर अलग-अलग करो।

"गुरुजी, मैं वहाँ पर बहुत सेन्सिटिव हूँ।"

मैंने साड़ी के अंदर अपने पैर फिर से अलग कर लिए. पर उनके ऐसे मेरी नाभि में उंगली करने से गुदगुदी की वज़ह से मैं अपने नितंबों को हिलाने लगी और मुझे हँसी आती रही।

गुरुजी--ठीक है। हो गया।

मैंने राहत की साँस ली पर उनकी ऐसी जाँच से मेरी पैंटी गीली हो गयी थी।

गुरुजी--रश्मि अब पलटकर नीचे को मुँह कर लो।

ये एक औरत ही जानती है कि किसी मर्द के सामने ऐसे उल्टा लेटना कितना अटपटा लगता है। मैं टेबल में अपने पेट के बल लेट गयी। अब मेरे बड़े नितंब गुरुजी की आँखों के सामने ऊपर को थे और मेरी चूचियाँ मेरे बदन से दबकर साइड को फैल गयी थीं। अब गुरुजी ने स्टेथेस्कोप लगाकर मेरी पीठ में जाँच की। उन्होंने एक हाथ से स्टेथो के नॉब को मेरे ब्लाउज के ऊपर दबाया हुआ था और दूसरा हाथ मेरी पीठ के ऊपर रखा हुआ था। मैंने महसूस किया की उनका हाथ ब्लाउज के ऊपर से मेरी ब्रा को टटोल रहा था।

गुरुजी--रश्मि एक गहरी साँस लो।

मैंने उनके निर्देशानुसार लंबी साँस ली। लेकिन तभी उनकी अँगुलियाँ मुझे ब्रा के हुक के ऊपर महसूस हुई । उनकी इस हरकत से मैं साँस रोक नहीं पाई और मेरी साँस टूट गयी।

गुरुजी--क्या हुआ?

"क......क......कुछ नहीं गुरुजी. मैं फिर से कोशिश करती हूँ।"

मेरा दिल इतनी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था कि शायद उन्हें भी सुनाई दे रहा होगा। मैंने अपने को संयत करने की कोशिश की। गुरुजी ने भी मेरी ब्रा के ऊपर से अपनी अँगुलियाँ हटा ली । मैंने फिर से लंबी साँस ली।

स्टेथो से जाँच पूरी होने के बाद, मैंने गुरुजी के हाथ ब्लाउज और साड़ी के बीच अपनी नंगी कमर पर महसूस किए. मुझे नहीं मालूम वहाँ पर गुरुजी क्या चेक कर रहे थे पर ऐसा लगा जैसे वह कमर में मसाज कर रहे हैं। गुरुजी की अँगुलियाँ मुझे अपने ब्लाउज के नीचे से अंदर घुसती महसूस हुई. मैं कांप-सी गयी। मेरी कमर की नंगी त्वचा पर और ब्लाउज के अंदर उनके हाथ के स्पर्श से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी।

मैं सोचने लगी अब गुरुजी कहीं नीचे को भी ऐसे ही अँगुलियाँ ना घुसा दें और ठीक वैसा ही हुआ। गुरुजी ने मेरे ब्लाउज के अंदर से अँगुलियाँ निकालकर अब नीचे को ले जानी शुरू की और फिर साड़ी और पेटीकोट के अंदर डाल दी। उनकी अँगुलियाँ पेटीकोट के अंदर मेरी पैंटी तक पहुँच गयी।

"आईईईईई!

मेरे मुँह से एक अजीब-सी आवाज़ निकल गयी। उस आवाज़ का कोई मतलब नहीं था वह बस गुरुजी के हाथों में मेरी असहाय स्थिति को दर्शा रही थी।

गुरुजी--सॉरी रश्मि। आगे की जाँच के लिए मुझे तुमसे साड़ी उतारने को कहना चाहिए था।

उन्होंने मेरी कमर से हाथ हटा लिए और मुझसे साड़ी उतारने को कहने लगे।

गुरुजी--रश्मि, साड़ी उतार दो। मैं तुम्हारे श्रोणि प्रदेश (पेल्विक रीजन) की जाँच के लिए ल्यूब, टॉर्च और स्पैचुला (मलहम फैलाने का चपटा औजार) लाता हूँ।

ऐसा कहकर गुरुजी दूसरी टेबल के पास चले गये। अब मैं दुविधा में पड़ गयी, साड़ी कैसे उतारूँ? टेबल बहुत ऊँची थी। अगर टेबल से नीचे उतरकर साड़ी उतारूँ तो फिर से गुरुजी की मदद लेकर ऊपर चढ़ना पड़ेगा। मैं फिर से उनके हाथों अपने नितंबों को मसलवाना नहीं चाहती थी जैसा की पहली बार टेबल में चढ़ते वक़्त हुआ था। दूसरा रास्ता ये था कि मैं टेबल में खड़ी होकर साड़ी उतारूँ। मैंने यही करने का फ़ैसला किया।

गुरुजी--रश्मि देर मत करो। फिर मुझे अपने एक भक्त के घर 'यज्ञ' करवाने भी जाना है।

मैं टेबल में खड़ी हो गयी । उतनी ऊँची टेबल में खड़े होना बड़ा अजीब लग रहा था। मैंने साड़ी उतारनी शुरू की और देखा की गुरुजी की नज़रें भी मुझ पर हैं, इससे मुझे बहुत शरम आई. अब ऐसे टेबल में खड़े होकर कौन औरत अपने कपड़े उतारती है, बड़ा अटपटा लग रहा था। साड़ी उतारने के बाद मैं सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में टेबल में खड़ी थी और मुझे लग रहा था कि ज़रूर मैं बहुत अश्लील लग रही हूँगी।

गुरुजी--ठीक है रश्मि। अगर तुमने पैंटी पहनी है तो उसे भी उतार दो क्यूंकी मुझे तुम्हारी योनि की जाँच करनी है।

गुरुजी ने योनि शब्द ज़ोर देते हुए बोला, शरम से मेरी आँखें बंद हो गयी। उन्होंने ये भी कहा की अगर चाहो तो पेटीकोट रहने दो और इसके अंदर से सिर्फ़ पैंटी उतार दो। मैंने पैंटी उतारने के लिए अपने पेटीकोट को ऊपर उठाया, शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था। फिर मैंने पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी को नितंबों से नीचे खींचने की कोशिश की। टेबल में खड़ी होकर पेटीकोट उठाकर पैंटी नीचे करती हुई मैं बहुत भद्दी दिख रही हूँगी और एक हाउसवाइफ की बजाय रंडी लग रही हूँगी। तब तक गुरुजी भी अपने उपकरण लेकर मेरी टेबल के पास आ गये थे और वह नीचे से मेरी पेटीकोट के अंदर पैंटी उतारने का नज़ारा देखने लगे। लेकिन मैं असहाय थी और मुझे उनके सामने ही पैंटी उतारनी पड़ी।

गुरुजी--रश्मि, अपनी साड़ी और पैंटी मुझे दो। मैं यहाँ रख देता हूँ।

ऐसा कहकर उन्होंने मेरे कुछ कहने का इंतज़ार किए बिना टेबल से मेरी साड़ी उठाई और मेरे हाथों से पैंटी छीनकर दूसरी टेबल के पास रख दी। मैं फिर से टेबल में लेट गयी। अब गुरुजी का व्यवहार कुछ बदला हुआ था । उन्होंने मुझसे कहने की बजाय सीधे ख़ुद ही मेरे पेटीकोट को मेरी कमर तक ऊपर खींच दिया और मेरी टाँगों को फैला दिया। उसके बाद उन्होंने मेरी टाँगों को उठाकर टेबल में बने हुए खाँचो में रख दिया। अब मैं लेटी हुई थी और मेरी दोनों टाँगें ऊपर उठी हुई थी। मेरी गोरी जाँघें और चूत गुरुजी की आँखों के सामने बिल्कुल नंगी थी। शरम और घबराहट से मेरे दाँत भींच गये।

मैं लेटे-लेटे गुरुजी को देख रही थी। अब गुरुजी ने मेरी चूत के होठों को अपनी अंगुलियों से अलग किया। गुरुजी ने मेरी चूत के होठों पर अपनी अंगुली फिराई और फिर उन्हें फैलाकर खोल दिया। उसके बाद उन्होंने अपनी तर्जनी अंगुली (दूसरी वाली) में ल्यूब लगाकर धीरे से मेरी चूत के अंदर घुसायी। मेरी चूत पहले से ही गीली हो रखी थी, पहले विकास की छेड़छाड़ से और अब चेकअप के नाम पर गुरुजी के मेरे बदन को छूने से । मेरी चूत के होंठ गीले हो रखे थे और गुरुजी की अंगुली आराम से मेरी चूत में गहराई तक घुसती चली गयी।

"ओओओऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"

मेरी सिसकारी निकल गयी।

गुरुजी--रश्मि रिलैक्स, ये सिर्फ़ जाँच हो रही है। मुझे गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) की जाँच करनी है।

गुरुजी ने अपनी अंगुली मेरी चूत से बाहर निकाल ली, मैंने देखा वह मेरे चूतरस से सनी हुई थी। उन्होंने फिर से अंगुली चूत में डाली और गर्भाशय ग्रीवा को धीरे से दबाया। गुरुजी के मेरी चूत में अंगुली घुमाने से मैं उत्तेजना से टेबल में लेटे हुए कसमसाने लगी। गुरुजी अपनी जाँच करते रहे। फिर मैंने महसूस किया की अब उन्होंने मेरी चूत में दो अँगुलियाँ डाल दी थी।

गुरुजी--मुझे तुम्हारे गर्भाशय (यूटरस) और अंडाशय (ओवारीस) की भी जाँच करनी है कि उनमे कोई गड़बड़ी तो नहीं है।

गुरुजी के हाथ बड़े बड़े थे और उनकी अँगुलियाँ भी मोटी और लंबी थीं. उनके अँगुलियाँ घुमाने से ऐसा लग रहा था जैसे कोई मोटा लंड मेरी चूत में घुस गया हो. मुझे साफ समझ आ रहा था की गुरुजी जाँच के नाम पर मेरी चूत में अँगुलियाँ ऐसे अंदर बाहर कर रहे थे जैसे मुझे अंगुलियों से चोद रहे हों. मेरा पेटीकोट कमर तक उठा हुआ था और मेरा निचला बदन बिल्कुल नंगा था. मेरी चूत उस उम्रदराज बाबा की आँखों के सामने नंगी थी. ऐसी हालत में लेटी हुई मैं उनकी हरकतों से उत्तेजना से कसमसा रही थी.

"ओओओओऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! गुरुजी!"

मुझे अपनी चूत के अंदर गुरुजी की अँगुलियाँ हर तरफ घूमती महसूस हो रही थीं गुरुजी ने एक हाथ की अँगुलियाँ चूत में डाली हुई थीं और दूसरे हाथ से मेरी चूत के ऊपर के काले बालों को सहला रहे थे। फिर उन्होंने एक हाथ में स्पैचुला को पकड़ा और दूसरे हाथ से चूत के होठों को फैलाकर स्पैचुला को मेरी चूत में डाल दिया।

"आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह! गुरुजी प्लीज़ रुकिये। मैं इसे नहीं ले पाऊँगी।"

मैं बेशर्मी से चिल्लाई। मेरे निप्पल तन गये और ब्रा के अंदर चूचियाँ टाइट हो गयीं। ठंडे स्पैचुला के मेरी चूत में घुसने से मैं कसमसाने लगी। उत्तेजना से मैं तड़पने लगी। स्पैचुला ने मेरी चूत के छेद को फैला रखा था । इससे गुरुजी को चूत के अंदर गहराई तक दिख रहा होगा। कुछ देर तक जाँच करने के बाद गुरुजी ने स्पैचुला को बाहर निकाल लिया।

गुरुजी -- ठीक है रश्मि। इसकी जाँच हो गयी। अब तुम अपनी टाँगें मिला सकती हो।

लेकिन मैं ऐसा करने की हालत में नहीं थी। मैं एक मर्द के सामने अपनी टाँगें, जांघों और चूत को बिल्कुल नंगी किए हुए थोड़ी देर तक उसी पोजीशन में पड़ी रही। फिर कुछ पलों बाद मैंने अपने को संयत किया और अपने पेटीकोट को नीचे करके चूत को ढकने की कोशिश की।

गुरुजी -- रश्मि पेटीकोट नीचे मत करो। अब मुझे तुम्हारी गुदा (रेक्टम) की जाँच करनी है।

मैं इसकी अपेक्षा नहीं कर रही थी पर क्या कर सकती थी।

गुरुजी -- रश्मि पेट के बल लेट जाओ। जल्दी करो मेरे पास समय कम है।

मुझे उस कामुक अवस्था में टेबल में पलटते हुए देखकर गुरुजी की आँखों में चमक आ गयी । उन्होंने पेटीकोट को जल्दी से ऊपर उठाकर मेरी बड़ी गांड को पूरी नंगी कर दिया। मुझे मालूम था की मेरी सुडौल गांड मर्दों को आकर्षित करती है , उसको ऐसे ऊपर को उठी हुई नंगी देखना गुरुजी के लिए क्या नज़ारा रहा होगा। अब गुरुजी ने मेरी जांघों को फैलाया , इससे मेरी चूत भी पीछे से साफ दिख रही होगी। मुझे उस शर्मनाक पोजीशन में छोड़कर गुरुजी फिर से दूसरी टेबल के पास चले गये।

फिर वो हाथों में लेटेक्स के दस्ताने पहन कर आए। अपनी तर्जनी अंगुली के ऊपर उन्होंने थोड़ा ल्यूब लगाया। फिर गुरुजी ने अपने बाएं हाथ से मेरे नितंबों को फैलाया और दाएं हाथ की तर्जनी अंगुली मेरी गांड के छेद में धीरे से घुसा दी।

"ओओओओऊऊह्ह्ह्ह्ह!"

मैं हाँफने लगी और मैंने टेबल के सिरों को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया।

गुरुजी -- रिलैक्स रश्मि। तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी।

गुरुजी मुझसे रिलैक्स होने को कह रहे थे पर मुझे कल रात विकास के साथ नाव में गांड चुदाई की याद आ गयी थी। सुबह पहले विकास के साथ और अब गुरुजी के मेरे बदन को हर जगह छूने से मैं बहुत उत्तेजित हो चुकी थी। मेरी चूत से रस बहने लगा। उनके मेरी गांड में ऐसे अंगुली घुमाने से मुझे मज़ा आने लगा था , पर ये वाली जाँच जल्दी ही खत्म हो गयी। अंगुली अंदर घुमाते वक़्त गुरुजी दूसरे हाथ से मेरे नंगे मांसल नितंबों को दबाना नहीं भूले।

जाँच पूरी होने के बाद मैं टेबल में सीधी हो गयी और पेटीकोट को नीचे करके अपने गुप्तांगो को ढक लिया। फिर गुरुजी ने मुझे टेबल से नीचे उतरने में मदद की। मैं इतनी उत्तेजित हो रखी थी की जब मैं टेबल से नीचे उतरी तो मैंने सहारे के बहाने गुरुजी को आलिंगन कर लिया। और जानबूझकर अपनी तनी हुई चूचियाँ उनकी छाती और बाँह से दबा दी। मुझे हैरानी हुई की बाकी मर्दों की तरह गुरुजी ने फायदा उठाकर मुझे आलिंगन करने या मेरी चूचियों को दबाने की कोशिश नहीं की और सीधे सीधे मुझे टेबल से नीचे उतार दिया। मुझे एहसास हुआ की गुरुजी जल्दी में हैं, पर उनका चेहरा बता रहा था की मेरे गुप्तांगों को देखकर वो संतुष्ट हैं।

गुरुजी -- रश्मि साड़ी पहनकर अपने कमरे में चली जाओ। चेकअप के नतीजे मैं तुम्हें शाम को बताऊँगा।

मैंने सर हिलाकर हामी भर दी और गुरुजी कमरे से बाहर चले गये। मैं एक बार फिर से अधूरी उत्तेजित होकर रह गयी। मुझे बहुत फ्रस्ट्रेशन फील हो रही थी । विकास और गुरुजी दोनों ने ही मुझे उत्तेजना की चरम सीमा तक पहुँचाया और बिना चोदे ही छोड़ दिया। सच्ची बताऊँ तो अब मैं चुदाई के लिए तड़प रही थी। मैं विकास को कोसने लगी की सुबह मेरे कमरे में आया ही क्यूँ और मुझे गरम करके तड़पता छोड़ गया।

मैं अपने कमरे में चली आई और दरवाज़ा बंद करके बेड में लेट गयी। मेरा दिल अभी भी जोरो से धड़क रहा था और अधूरे ओर्गास्म से मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी। मैंने तकिये को कसकर अपनी छाती से लगा लिया और ये सोचकर उसे दबाने लगी की मैं विकास को आलिंगन कर रही हूँ। वो तकिया लंबा नहीं था इसलिए मैं तकिये में अपनी टाँगें नहीं लपेट पा रही थी और मुझे काल्पनिक एहसास भी सही से नहीं हो पा रहा था। मेरी फ्रस्ट्रेशन और भी बढ़ गयी। मुझे चूत में बहुत खुजली हो रही थी जैसा की औरतों को चुदाई की जबरदस्त इच्छा के समय होती है। मैंने अपनी साड़ी उतार कर बदन से अलग कर दी।

मेरे निप्पल सुबह से तने हुए थे और अब दर्द करने लगे थे। मैंने अपना ब्लाउज भी खोल दिया और ब्रा को खोलकर चूचियों को आज़ाद कर दिया। अब मैं ऊपर से नंगी होकर बेड में लेटी हुई थी और एक हाथ से अपनी चूचियों को सहला रही थी और दूसरे हाथ से पेटीकोट के ऊपर से अपनी चूत को खुज़ला रही थी। मैं बहुत चुदासी हो रखी थी।

मेरी बेचैनी बढ़ती गयी और अपने बदन की आग को मैं सहन नहीं कर पा रही थी। मैंने अपना पेटीकोट भी उतार दिया और गीली पैंटी को फर्श में फेंक दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी। मैं बाथरूम में गयी और अपने बदन को उस बड़े शीशे में देखा। मैं शीशे के सामने खड़ी होकर अपने बदन से खेलने लगी और कल्पना करने लगी की विकास मेरे बदन से खेल रहा है।

लेकिन मुझे हैरानी हुई की मेरे मन में वो दृश्य घूमने लगा की जब कुछ देर पहले गुरुजी मेरी चूत में अपनी अँगुलियाँ घुमा रहे थे। मेरी चूत से फिर से रस बहने लगा। मैंने अपने तने हुए निपल्स को मरोड़ा और दोनों हाथों से अपनी चूचियों को मसला। लेकिन इससे मेरी बेचैनी शांत नहीं हुई।

अब मैं शीशे के बिल्कुल नज़दीक़ खड़ी हो गयी और अपनी बाँहों को ऊपर उठाकर शीशे को पकड़ लिया और अपनी नंगी चूचियों को शीशे में रगड़ने लगी। मैं अपने चेहरे और गालों को भी शीशे से रगड़ने लगी। मैं पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी थी। ऐसे अपने नंगे बदन को शीशे से रगड़ते हुए मैं बेशर्मी से अपनी बड़ी गांड को मटका रही थी। फिर मैंने नल की टोंटी से अपनी चूत को रगड़ना शुरू किया।

मैं इतनी बेकरार थी की ऐसे रगड़कर ही मैंने आनंद लेने की कोशिश की। मैंने अपनी जांघों के संवेदनशील अंदरूनी हिस्से को अपने हाथों से मसला । फिर अपनी तर्जनी अंगुली को गीली चूत में घुसाकर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी और अपनी क्लिट को बुरी तरह मसलकर ओर्गास्म लाने की कोशिश की। कुछ देर बाद मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं थकान से पस्त हो गयी।

मैंने जैसे तैसे अपने बदन को बाथरूम से बाहर धकेला और बिस्तर में गिर गयी। मेरे बदन में कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था। ऐसे ही मुझे गहरी नींद आ गयी , सुबह विकास ने मुझे जल्दी उठा दिया था इसलिए मेरी नींद भी पूरी नहीं हो पाई थी। पता नहीं कितनी देर बाद मेरी नींद खुली । ऐसे नंगी बिस्तर में पड़ी देखकर मुझे अपनेआप पर बहुत शरम आई। मैं बिस्तर से उठी और बाथरूम जाकर अपने को अच्छी तरह से धोया और फिर कपड़े पहन लिए।

मैं सोचने लगी सिर्फ़ दो तीन दिनों में ही मैं कितनी बोल्ड और बेशरम हो गयी हूँ। मैं अपने कमरे में आराम से नंगी घूम रही थी , मेरी बड़ी चूचियाँ उछल रही थीं और मेरे हिलते हुए नंगे नितंब मेरी बेशर्मी को बयान कर रहे थे। सिर्फ़ कुछ दिन पहले मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। जब मैं अपने पति के साथ बेडरूम में होती थी और मुझे बेड से उतरना होता था तो मैं पैंटी ज़रूर पहन लेती थी और अक्सर ब्रा से अपनी चूचियों को ढक लेती थी। कभी अपने बेडरूम में ऐसे नंगी नहीं घूमती थी। कितना परिवर्तन आ गया था मुझमें। मुझे खुद ही अपने आप से हैरानी हो रही थी।

कहानी जारी रहेगी...

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