औलाद की चाह 042

Story Info
कुंवारी लड़की, मादक बदन.
2.9k words
4.6
184
00

Part 43 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 5-चौथा दिन-कुंवारी लड़की

Update-3

मादक बदन

अब मुझे अपनी ब्रा और ब्लाउज ठीक करनी पड़ी क्यूंकी गुप्ताजी ने मेरी चूचियों को ऐसे दबाया था कि मेरी चूचियाँ ब्रा के अंदर कड़क हो गयी थीं। मैं अपनी पैंटी उतारकर गुप्ताजी के कड़े लंड को अपनी गांड में पूरी तरह महसूस करने को भी बेताब हो रखी थी, तो मुझे एक तरीक़ा सूझा।

"गुरुजी, क्या मैं एक बार बाथरूम जा सकती हूँ?"

गुरुजी मुस्कुराए और सर हिलाकर हामी भर दी। उनकी मुस्कुराहट ऐसी थी की जैसे उन्हें सब मालूम हो। जैसे उस कमरे में सबको मालूम हो की मैं बाथरूम क्यूँ जा रही हूँ। मैंने अपनी नज़रें झुका ली और कमरे से बाहर चली आई. लेकिन बाहर आकर मुझे ध्यान आया की बाथरूम कहाँ है ये तो मुझे मालूम ही नहीं है।

"समीर, बाथरूम किधर है?"

उसी समय गुप्ताजी ने भी गुरुजी से बाथरूम जाने की इच्छा जताई.

गुरुजी--कुमार, तुम रश्मि को भी बाथरूम का रास्ता दिखा दो।

वो थोड़ा रुके फिर बोले,

गुरुजी--ओह्ह!.तुम्हें तो वहाँ किसी की सहायता की ज़रूरत पड़ेगी। रश्मि तुम इसकी मदद कर दोगी?

मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और हकलाने लगी।

"पर, वो. ठीक है गुरुजी."

मैं फिर से कमरे के अंदर गयी और कुमार को खड़े होने में मदद की। इस बार उसने मुझे अपनी बीवी की तरह पकड़ लिया और दूसरे हाथ में उसने छड़ी का सहारा लिया हुआ था।

कुमार--यहाँ को रश्मि।

उसने अपनी छड़ी से इशारा करके मुझे रास्ता बताया।

मैं फिर से कमरे के अंदर गयी और कुमार (गुप्ताजी) को खड़े होने में मदद की। इस बार उसने सहारे के लिए मुझे अपनी बीवी की तरह कंधे में हाथ रखकर पकड़ लिया और दूसरे हाथ में उसने छड़ी का सहारा लिया हुआ था।

कुमार--इस तरफ़, रश्मि।

उसने अपनी छड़ी से इशारा करके मुझे रास्ता बताया। अब हम पूजा घर से बाहर आकर सीढ़ियों के पास पहुँच गये। गुप्ताजी ने पीछे मुड़कर देखा शायद ये जानने के लिए की कोई आ तो नहीं रहा। सीढ़ियों से नीचे उतरते समय मैंने भी पीछे मुड़कर देखा पर कोई नहीं था। मैंने सोचा किसी को ना पाकर अब ये बुड्ढा मेरे साथ कुछ ना कुछ हरकत करेगा। मैं उससे अपेक्षा कर रही थी की शायद वह मेरी चूचियाँ पकड़ लेगा या मेरे नितंबों को मसल देगा या मुझे अपने आलिंगन में कस लेगा। इस विकलांग आदमी से मैं इससे ज़्यादा और क्या उम्मीद कर सकती थी। लेकिन गुप्ताजी ने मेरे साथ कुछ भी नहीं किया । मुझे बड़ी फ्रस्ट्रेशन हुई पर वह सीधा बाथरूम की तरफ़ चला जा रहा था और फिर हम बाथरूम में पहुँच गये।

मैं करूँ तो क्या करूँ? मैं उस बुड्ढे को मन ही मन कोस रही थी। पूजा घर में तो बहुत छेड़छाड़ कर रहा था पर अब अकेले में वह वास्तव में विकलांग लग रहा था। उसने मुझे गरम कर दिया था और अब मैं किसी मर्द के आलिंगन में समा जाने को बेकरार हो रखी थी और ये बुड्ढा अपना पैर घिसटते हुए सीधे बाथरूम की तरफ़ चला जा रहा था।

मैंने चिड़चिड़ी आवाज़ में उससे कहा, "आप यहीं रूको। मैं फ्रेश होकर आती हूँ।"

कुमार: लेकिन रश्मि मैं अकेला खड़ा नहीं रह सकता। मैं गिर जाऊँगा।

"तो क्या करूँ फिर?"

मैं झल्लाते हुए बोली । मुझे मालूम नहीं था कि ये आदमी चाहता क्या है।

कुमार: हम दोनों को साथ ही बाथरूम जाना होगा।

"क्या?"

मैंने गुस्से से उसकी तरफ़ देखा। ये बुड्ढा सोच क्या रहा है? ठीक है, मैंने थोड़ी देर उसकी छेड़छाड़ सहन कर ली, लेकिन वह तो गुरुजी ने उसको मेरे ऊपर लिटा दिया था तो मैं कर ही क्या सकती थी। पर इसका मतलब ये नहीं की ये मुझसे कुछ भी कह देगा और मैं मान लूँगी।

"क्या मतलब?"

कुमार--रश्मि प्लीज़ नाराज़ मत हो। तुम मेरी हालत देख ही रही हो। प्लीज़ मुझे बाथरूम में पकड़े रहना।

"हाँ ठीक है। मैंने तो सोचा!"

कुमार कुछ और नहीं बोला और धीरे-धीरे बाथरूम के अंदर जाने लगा। मैं भी उसके साथ थी। बाथरूम के अंदर आकर कुमार ने दीवार में बने हुक में अपनी छड़ी लटका दी। मैं बाथरूम का दरवाज़ा बंद करने लगी तब तक उसने अपने पैजामे का नाड़ा खोलकर अंडरवियर नीचे किया और अपना अधखड़ा लंड बाहर निकाल लिया। लंड देखकर मैं अपने ऊपर काबू नहीं रख पाई और जल्दी से उसका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया, लेकिन ऐसे दिखाया जैसे मैं पेशाब करने में उसकी मदद के लिए ऐसा कर रही हूँ। उसने बाएँ हाथ से दीवार का सहारा लिया हुआ था और दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रखा हुआ था। मेरे हाथ में पकड़ने और हिलाने से उसके अधखड़े लंड में जान आने लगी।

उसका दायाँ हाथ धीरे-धीरे मेरे कंधे से खिसककर मेरी पीठ में गया फिर कांख के नीचे से होता हुआ मेरी दायीं चूची को छूने लगा। उसने मेरा पल्लू थोड़ा-सा खिसका दिया ताकि वह मेरे ब्लाउज में कसी हुई चूचियों और उनके बीच की गहरी खाई को देख सके. मैं अब दोनों हाथों से उसका लंड हिलाने लगी थी और मुझे हैरानी हुई की इस उमर में भी कुछ पलों में ही उसका लंड कड़क होकर एकदम तन गया था। मैं समझती थी की उमर बढ़ने के साथ मर्दों का लंड खड़ा होने में ज़्यादा समय लेता है लेकिन इस बुड्ढे का तो कुछ ही सेकेंड्स में पूरी तरह से खड़ा हो गया था। उसका साइज़ मेरे पति के लंड के बराबर ही था, मैंने जल्दी से उसके सुपाड़े से खाल को पीछे खिसका दिया।

मैं थोड़ा झुकी हुई थी और गुप्ताजी के खड़े लंड को आगे पीछे हिला कर सहला रही थी। शायद उसकी उमर को देखते हुए उसके लिए ये बहुत ज़्यादा हो गया था और अब वह बहुत कामोत्तेजित हो गया। पहले तो वह गहरी साँसें ले रहा था और मेरी दायीं चूची को ज़ोर से दबा रहा था। लेकिन अब उसने अचानक दीवार से अपना बायाँ हाथ हटा लिया और मेरी चूची से भी दायाँ हाथ हटा लिया और दोनों हाथों से मेरा चेहरा पकड़कर अपने चेहरे की तरफ़ खींचा। स्वाभाविक रूप से दोनों हाथ से सहारा हटते ही उसका संतुलन बिगड़ गया और वह मेरे बदन पर झुक गया, मैं भी अचानक से उसका वज़न नहीं ले पाई, जैसे तैसे मैंने उसको सम्हाला। सम्हलते ही उसने ज़बरदस्ती मुझे चूमना शुरू कर दिया। उसकी दाढ़ी मुझे अपनी नाक, होठों, गालों और ठुड्डी में हर जगह चुभने लगी और इससे एक अजीब-सी गुदगुदी होने लगी। मुझे कभी किसी दाढ़ीवाले आदमी ने नहीं चूमा था तो मुझे पता नहीं था कि कैसा फील होता है।

मैंने उसकी लार से गीले होठों से अपने होंठ छुड़ाने की कोशिश की। मैंने ख़्याल किया की वैसे तो गुप्ताजी विकलांग था लेकिन उसकी पकड़ बहुत मज़बूत थी। मैंने होंठ हटाने की कोशिश की तो वह और ज़ोर से मुझे चूमने लगा और मेरे मुँह के अंदर अपनी जीभ डाल दी और मुझे बालों से पकड़ लिया ताकि मैं अपना सर ना हिला सकूँ। मैं अब भी उसका लंड अपने हाथों में पकड़े हुए थी। लेकिन फिर उसने जो किया उससे मुझे उसका लंड छोड़ना पड़ गया। अचानक उसने एक हाथ मेरे सर से हटा लिया और मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर उठाने लगा।

मेरे कुछ समझने तक तो उसने मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरी कमर तक उठा दी और मेरी पैंटी दिखने लगी। मैंने तुरंत उसका लंड छोड़ दिया और अपनी इज़्ज़त बचाने का प्रयास करने लगी। मैंने साड़ी और पेटीकोट को अपने नितंबों से नीचे खींचने की कोशिश की पर वह ज़बरदस्ती उनको ऊपर को खींच रहा था। अब उसने मेरे बाल छोड़ दिए और दोनों हाथों से मेरे कपड़े ऊपर करके मेरी गांड को नंगी करने पर तुल गया । उसके हाथों की ताकत देखकर मेरा विरोध कमज़ोर पड़ गया।

वो अब भी मुझे चूम रहा था और मेरे होठों को चबा रहा था और मुझे नीचे से नंगी करके अब उसने मुझे अपने आलिंगन में कस के पकड़ लिया। मैं उसकी बाँहों में थी और छोटी-सी पैंटी में मेरी गांड साफ़ दिख रही थी। एक पल के लिए उसने मेरे होंठ अलग किए । मैं बेतहाशा हाँफ रही थी । मेरे मुँह से बस यही निकल पायाl

"प्लीज़ मत करो!"

उसने मेरी विनती अनसुनी कर दी। अब उसने मेरी पैंटी के एलास्टिक में हाथ डाला और उसे नीचे करने लगा। मैं समझ गयी थी की ये बुड्ढा मुझे पूरी नंगी करने पर आमादा है। मैं कामोत्तेजित ज़रूर थी पर मैंने होश नहीं खोए थे और एक अंजाने आदमी, वह भी बुड्ढा, उसके सामने नंगी होने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मैंने सोचा इस हरामी बुड्ढे से पीछा छुड़ाने का एक ही तरीक़ा है कि मैं इसका पानी निकाल दूँ। तो मैंने उसके तने हुए लंड को सहलाना और मूठ मारना शुरू कर दिया।

मैं उसके लंड को हिला-हिला कर मूठ मारती रही और उसका लंड फनफनाने लगा की अब पानी छोड़ ही देगा। पर तब तक गुप्ताजी ने अपनी इच्छा पूरी कर ही ली। उसने मेरी पैंटी को मेरे नितंबों से नीचे खिसकाकर जांघों तक कर दिया और मेरे बड़े नितंबों को मसलने लगा। उसने मेरी साड़ी और पेटीकोट को कमर में खोस दिया था और अब पैंटी नीचे करके मेरे मुलायम नितंबों को निचोड़ रहा था। ये तो स्वाभाविक ही था कि अब वह मेरी चूत में अपना लंड घुसाने को उत्सुक था लेकिन मेरी मेहनत आख़िर रंग लाई और मेरे फुसलाने से ठीक समय पर उसके लंड ने पानी छोड़ दिया। मेरे हाथ उसके वीर्य से सन गये । गुप्ताजी बहुत खिन्न लग रहा था कि वह अपने को झड़ने से रोक नहीं पाया।

बाथरूम के फ़र्श पर उसका सफेद वीर्य गिर गया था। मैंने उसको दीवार के सहारे खड़ा किया और उसके हाथ में छड़ी पकड़ा दी। अब मैं उसकी पकड़ से आज़ाद थी। देखने से ही लग रहा था कि उसका मूड ऑफ हो गया है, स्वाभाविक था क्योंकि झड़ जाने से उसकी इच्छा अधूरी रह गयी थी। मैंने जल्दी से अपनी पैंटी जांघों से ऊपर करने की कोशिश की लेकिन उस कम्बख़्त ने जल्दबाज़ी में ऐसे नीचे को खींची थी की अब वह गोल मोल हो गयी थी। अब मुझे पैंटी उतारनी पड़ी क्योंकि मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरी कमर तक उठे हुए थे और एक मर्द के सामने मैं अपनी जांघों तक उतरी हुई पैंटी के घुमाव ठीक करने तक नंगी थोड़ी खड़ी रहती। मैंने अपनी साड़ी कमर से निकाली और नीचे कर दी और फिर पैंटी उतार कर हुक में लटका दी। मैं अपने कपड़े ठीकठाक करने लगी।

गुप्ताजी दीवार के सहारे खड़े-खड़े मुझे ही देख रहा था। झड़ने के बाद उसका लंड सिकुड़कर छोटा हो गया था। मैंने उसका पैजामा ऊपर किया और नाड़ा बाँध दिया। ऐसा लग रहा था कि झड़ने के बाद भी उसकी गर्मी अभी पूरी शांत नहीं हुई है क्यूंकी जब मैं उसके पैजामे का नाड़ा बाँध रही थी तो उसने मेरी दोनों चूचियों को पकड़ लिया और सहलाने लगा। मैंने उसकी इस हरकत पर कुछ नहीं कहा पर मुझे मालूम था कि ये कितना अश्लील लग रहा होगा की एक जवान औरत एक बुड्ढे का नाड़ा बाँध रही है और वह ब्लाउज के बाहर से उसकी चूचियाँ पकड़कर दबा रहा है।

उसका काम हो गया था अब मुझे भी पेशाब लगी थी।

"थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रह सकोगे?"

गुप्ताजी ने सर हिला दिया। मैं बगल के टॉयलेट में गयी और साड़ी उठाकर बैठ गयी। पेशाब निकलने से आती हुई सीटी जैसी आवाज़ गुप्ताजी को साफ़ सुनाई दे रही होगी क्यूंकी वह पास में ही खड़ा था। मुझे देर तक पेशाब आई और बेशर्मी से सीटी जैसी आवाज़ निकालते हुए मैं करती रही और वह हरामी बुड्ढा सब कुछ साफ़ सुन रहा होगा। पेशाब निकल जाने के बाद मुझे ऐसी राहत मिली की पूछो मत। मैं उठी और अपनी साड़ी नीचे की और गुप्ताजी के पास आ गयी। मैंने पैंटी उतार दी थी तो मुझे महसूस हुआ की पेशाब की कुछ बूँदे मेरी अंदरूनी जांघों में बह गयी हैं। मैंने अपने दाएँ हाथ से जांघों पर साड़ी दबा दी ताकि पेटीकोट से गीलापन सूख जाएl

मैं गुप्ताजी के साथ बाथरूम से बाहर आने लगी तभी मुझे ध्यान आया की मेरी पैंटी तो हुक पर टंगी हुई है। मैंने जल्दी से पैंटी उठा ली लेकिन वह ठरकी बुड्ढा कमेंट करने से बाज़ नहीं आया।

कुमार--इसको कहाँ रखोगी? ऐसे हाथ में पकड़कर गुरुजी के पास कैसे जाओगी?

ये तो मुझे भी मालूम था कि हाथ में पकड़कर तो गुरुजी के पास जाऊँगी नहीं। फिर भी इस बुड्ढे का ऐसा बोलना ज़रूरी था। कमीना कहीं का।

कुमार--अगर बुरा ना मानो तो मैं रख लेता हूँ। मैं इसे अभी अपने कुर्ते की जेब में रख लूँगा।

मैंने सोचा था कि पैंटी छुपाने के लिए और तो कोई जगह है नहीं, मैं ब्लाउज में ही रख लूँगी लेकिन उससे मुझे परेशानी होती।

"लेकिन।"

कुमार--यज्ञ के बाद तुम मुझसे ले लेना। मैं सबकी नज़र बचाकर तुम्हें वापस दे दूँगा।

मैंने ज़्यादा नहीं सोचा और उसे अपनी गीली पैंटी दे दी। गुप्ताजी ने अपने कुर्ते की जेब में पैंटी डाल ली। अब हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गये, गुप्ताजी अपनी छड़ी और मेरे कंधे के सहारे चल रहा था।

कुमार--यज्ञ के बाद तुम मुझसे ले लेना। मैं सबकी नज़र बचाकर तुम्हे वापस दे दूँगा।

मैने ज़्यादा नहीं सोचा और उसे अपनी गीली पैंटी दे दी। गुप्ता जी ने अपने कुर्ते की जेब में पैंटी डाल ली। अब हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गये, गुप्ता जी अपनी छड़ी और मेरे कंधे के सहारे चल रहा था।

कुमार--रश्मि, एक बात कहना चाहता हूँ। तुम्हारा बदन बहुत मादक है। तुम्हारा पति बहुत ही खुसकिस्मत इंसान है।

मैं मुस्कुराइ और हम धीरे-धीरे पूजा घर की तरफ़ बढ़ते रहे।

कुमार--शादीशुदा औरतों को तुम्हारे बदन से जलन होती होगी।

ऐसा कहते हुए उसके होठ मेरे चेहरे के बहुत नज़दीक़ आ गये और मेरे गालों से छू गये। वह मेरे ब्लाउस में झाँक रहा था। उसका दाया हाथ मेरे कंधे से खिसककर मेरी दाई चुचि पर आ गया और उसे ज़ोर से दबा दिया। खुली गॅलरी में उसकी इस हरकत से मैं कांप गयी। उसकी दाढ़ी मेरे चेहरे में गुदगुदी कर रही थी।

"प्लीज़ मत करो।"

कुमार--तुम मुस्कुरा रही हो और मुझसे मत करो भी कह रही हो।

"वो तो आपकी दाढ़ी के लिए कहा। इससे मुझे गुदगुदी हो रही है।"

अब हम गॅलरी के मोड़ पर पहुँच गये थे जहाँ से पूजा घर के लिए उपर को सीडीयाँ जाती थी। यहाँ पर एकदम से किसी की नज़र नहीं पड़ती थी और गुप्ता जी ने ये मौका हाथ से जाने नहीं दिया।

कुमार--मुझे एक मौका दो प्लीज़। मैं तुम्हारे नंगे बदन को अपनी दाढ़ी से गुदगुदाना चाहता हूँ, तुम्हारा पति ऐसा कर ही नहीं सकता।

वो मेरे कान में फुसफुसाया और अब उसने अपना दाया हाथ मेरे ब्लाउस के अंदर डाल दिया। मैने हल्का-सा विरोध किया क्यूंकी अब हम बाथरूम में नहीं थे बल्कि खुली जगह में थे इसलिए मैं हिचकिचा रही थी। गुप्ता जी समझ गया कि मैं क्या सोच रही हूँ।

कुमार--रश्मि यहाँ कोई नहीं आएगा। तुम बस मेरी छड़ी पकड़ लो।

"नही। अब फिर से मत शुरू हो जाओ. प्लीज़।"

कुमार--अरी इस विकलांग आदमी पर कुछ तो दया करो। तुम तो परी हो परी।

अभी मुझे उसकी छेड़खानी से कोई ऐतराज नहीं था। सच कहूँ तो वह आदमी विकलांग था और बुड्ढ़ा लग रहा था लेकिन उसके हाथों की पकड़ मेरे पति से भी ज़्यादा मज़बूत थी। ये बात सही है कि मैं उसे विकास की तरह प्यार नहीं कर सकती थी लेकिन उसकी दाढ़ी को छोड़ कर बाक़ी मुझे उससे ऐतराज नहीं था। मैने उसके हाथ से छड़ी ले ली और गुप्ता जी को पकड़ लिया ताकि वह गिरे ना।

गुप्ता जी इसी बात का इंतज़ार कर रहा था। मेरे छड़ी लेते ही उसने मुझे अपनी बाँहो में ज़ोर से कस लिया। मेरी जवान चुचियाँ उसकी छाती से दब गयी और मई कोई आवाज़ ना निकाल सकूँ इसलिए उसने मेरे होठों पर अपने मोटे होठ रख दिए और ज़ोर से चूमने लगा। उसकी दाढ़ी फिर से मेरे चेहरे पर चुभने लगी। मुझे मज़ा भी आ रहा था और साथ ही साथ उसकी दाढ़ी से अनकंफर्टबल भी फील हो रहा था। लेकिन गुप्ता जी ने मुझे उसकी दाढ़ी के बारे में सोचने का मौका नहीं दिया क्यूंकी उसने पीछे से मेरी सारी के अंदर हाथ डाल दिए और मेरे नंगे नितंबों को पकड़ लिया क्यूंकी पैंटी तो मैने उतार दी थी। मैने पेटिकोट का नाडा बहुत टाइट नहीं बाँधा था इसलिए उसके हाथ अंदर घुस गये।

मेरे नंगे नितंबों पर उसकी गरम और सख़्त हथेलियों के स्पर्श से मई उत्तेजित हो गयी। कुछ ही पलों में उसने अपने हाथ सारी से बाहर निकाल लिए और मेरी रसीली चुचियों पर रख दिए और मेरे ब्लाउस के हुक खोलने की कोशिश करने लगा।

"उम्म्म्मममम।"

मैं कुछ बोल नहीं पाई क्यूंकी उसके मोटे होठ मेरे नरम होठों को चूस रहे थे । मैने अपना सर ना में हिलाने की कोशिश की ताकि वह रुक जाए और मेरा ब्लाउस ना खोले। लेकिन गुप्ता जी ने ठान रखी थी की वह मेरी चुचियों को नंगा करके ही रहेगा। उसने दो हुक खोल भी दिए थे और मेरी बड़ी चुचियों को ब्लाउस के उपर से ही दबा भी रहा था। अब मैने अपने हाथों से ब्लाउस पकड़ लिया और बाक़ी हुक खोलने से उसे रोकने लगी तभी एक आवाज़ सुनाई दी और हम दोनों ही जड़वत हो गये।

समीर--मेडम, मेडम!

समीर हमारी खोजबीन करने आ रहा था।

"हे भगवान!"

कुमार--रश्मि चुप रहो। मुझे नहीं लगता वह हमें यहाँ देख पाएगा।

हम दोनों सीडियों के पीछे चुपचाप खड़े रहे और समीर सीडियों से उतरकर गॅलरी से बाथरूम की तरफ़ चला गया। उत्तेजना से हम दोनों की साँसे भारी हो चली थी फिर भी हम ने शांत रहने की पूरी कोशिश की। समीर के जाते ही मैने गुप्ता जी के हाथ में छड़ी पकड़ा दी और अपनी सारी ठीक करने लगी। सारी मेरी कमर से खुल गयी थी और पेटिकोट दिख रहा था। मैने जल्दी से सारी ठीक से बाँध ली और ब्लाउस के हुक लगा लिए. फिर हम पूजा घर के लिए सीडियों में चढ़ने लगे। हमें मालूम था कि बाथरूम में हम दोनों को ना पाकर समीर लौट आएगा।

कहानी जारी रहेगी

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