औलाद की चाह 053

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ठरकी लंगड़ा.
2.5k words
4.6
299
00

Part 54 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

Update 1

मूर्ति

रात को सोने से पहले हर रात की तरह गुरु माता द्वार दी गयी क्रीम को अपने पूरे शरीर, सेक्स अंगों और जननांगों पर लगाया। आज का दिन थोड़ा अलग था पर फिर भी आज शरीर कुछ हल्का लग रहा था॥ शायद ये दिन में हुई मालिश का असर था। सोने से पहले मैंने जय लिंगा महाराज का जाप किया और अपना उपचार सफल होने की प्रार्थना की और उसके बाद नाइटी पहन मैं सो गयी।

रात में मुझे ठीक से नींद नहीं आई। अपनी आँखों के सामने जो जबरदस्त चुदाई मैंने देखी उसी के सपने आते रहे। गुरुजी का तना हुआ मूसल भी मुझे दिखा और मैं सपने में उसे 'लंड महाराज' कह रही थी। मैं सुबह जल्दी उठ गयी क्यूंकी गुरुजी ने कहा था कि सवेरे आश्रम वापस चले जाएँगे। हाथ मुँह धोकर फ्रेश होने के बाद मेरा दरवाज़ा समीर ने खटखटाया। मैंने थोड़ा-सा दरवाज़ा खोला क्यूंकी अभी मैं सिर्फ़ नाइटी में थी और उसके अंदर अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे।

समीर--मैडम, हम तैयार हैं। आप नीचे डाइनिंग हॉल में आ जाओ।

वो चला गया और मैं कपड़े पहनकर नीचे डाइनिंग हॉल में चली गयी। वहाँ गुप्ताजी, नंदिनी, काजल, गुरुजी और समीर सभी लोग मौजूद थे।

नंदिनी--गुड मॉर्निंग रश्मि। उम्मीद करती हूँ की तुम्हें अच्छी नींद आई होगी।

मैंने हाँ में सर हिला दिया और चाय का कप ले लिया।

गुरुजी--नंदिनी, तुम कह रही थी की पूजा घर में मूर्ति लगानी है। समीर तुम्हें बता देगा की कहाँ पर लगानी है और किधर को मुँह करना है।

समीर--जी गुरुजी।

नंदिनी--ठीक है गुरुजी। हम इस काम को कर लेते हैं।

गुरुजी--हाँ, जाओ।

मैंने देखा नंदिनी ख़ुशी खुशी समीर के साथ डाइनिंग हॉल से बाहर चली गयी। वैसे भी उसके लिए समीर के साथ थोड़ा समय बिताने का ये आख़िरी मौका था क्यूंकी कुछ देर बाद तो वह वापस आश्रम जाने वाला था। अपनी टाइट पहनी हुई साड़ी में चौड़े नितंबों को मटकाती हुई नंदिनी को जाते हुए हम सभी देख रहे थे सिवाय काजल के। काजल का ध्यान कहीं और था, जाहिर था कि वह अपने कौमार्यभंग होने की घटना से अभी उबर नहीं पाई थी और उसने ये बात ज़रूर अपने पेरेंट्स से छुपाई होगी।

गुरुजी--रश्मि, तुमने इनका छोटा-सा मंदिर नहीं देखा होगा ना?

मैंने ना में सर हिला दिया।

गुरुजी--ये छोटा-सा बड़ा अच्छा मंदिर है। एक बार तो देखना ही चाहिए। कुमार तुम रश्मि को क्यूँ नहीं दिखा लाते? तब तक नंदिनी भी वापस आ जाएगी।

कुमार--ज़रूर गुरुजी। मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। आओ रश्मि।

मैंने देखा अचानक गुप्ताजी के चेहरे में मुस्कुराहट आ गयी। सच कहूँ तो उस समय मुझे उसके गंदे इरादों का ख़्याल नहीं आया था। वह अपनी बैसाखी के सहारे धीरे-धीरे चलने लगा और मैं उसके पीछे थी। हम उनके घर के पिछवाड़े में चले गये। अब गुरुजी ने सबको इधर उधर भेज दिया था और काजल उनके साथ अकेली थी। मैं सोच रही थी की ना जाने गुरुजी उससे क्या कह रहे होंगे। लेकिन जल्दी ही मुझे समझ आ गया की काजल और गुरुजी के बारे में सोचने की बजाय, ये सोचना है कि अपने को कैसे बचाऊँ? मंदिर बहुत अच्छा बनाया हुआ था और अंदर जाने के लिए 2-3 सीढ़ियाँ थी। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मैं मन ही मन तारीफ कर रही थी तभी मेरी पीठ में हाथ महसूस हुआ। मैंने भौंहे चढ़ाकर गुप्ताजी की ओर देखा।

कुमार--रश्मि, सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए सहारा ले रहा हूँ।

मुझे इस विकलांग आदमी को सहारा देना पड़ा पर उसने तुरंत इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। वह मेरे ब्लाउज के कट में गर्दन के नीचे अँगुलियाँ फिराने लगा। मैंने उसके छूने पर ध्यान ना देकर मंदिर की तरफ़ ध्यान देने की कोशिश की। जैसे ही हम सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर के फ़र्श में पहुँचे तो उसका हाथ मेरी पीठ में खिसकते हुए दाएँ ब्रा स्ट्रैप पर आ गया। मैंने उसकी तरफ़ मुड़कर आँखें चढ़ायीं। उसने अपना हाथ फिराना बंद कर दिया लेकिन ब्रा स्ट्रैप के ऊपर हाथ स्थिर रखा।

कुमार--रश्मि, छत का डिज़ाइन देखो।

"बहुत सुंदर है।"

गुंबद के आकर की छत में अंदर से बहुत अच्छी पेंटिंग बनी हुई थी। मैं सर ऊपर उठाकर उस सुंदर पेंटिंग को देख रही थी और गुप्ताजी का हाथ खिसककर मेरी नंगी कमर में आ गया। मुझे इतना असहज महसूस हो रहा था कि अब मुझे टोकना ही पड़ा।

"क्या है ये? बंद करो अपनी हरकतें और।"

मैं अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही उसने मुझे अपने आलिंगन में भींच लिया। ये इतनी जल्दी हुआ की मैं अपनी चूचियाँ भी नहीं बचा पाई और वह गुप्ताजी की छाती से दब गयीं।

कुमार--रश्मि, मेरी सेक्सी डार्लिंग।

"आउच।"

कुमार--रश्मि, मैं कल सारी रात सो नहीं पाया, तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा।

"आआआआह! तमीज से रहो। क्या कर रहे हो?"

मैं गुप्ताजी की बाँहों में संघर्ष कर रही थी और अपने कंधों और कमर से उसके हाथों को हटाने की कोशिश कर रही थी। उसका चेहरा मेरे इतने नजदीक़ था कि उसका चश्मा मेरी नाक को छू रहा था और उसकी दाढ़ी मुझे गुदगुदी कर रही थी। लेकिन उसकी पकड़ मज़बूत होते गयी और मेरे विरोध का कोई असर नहीं हुआ। मेरी बड़ी चूचियों को अपनी छाती में महसूस करने के लिए वह मुझे और भी अपनी तरफ़ दबा रहा था। फिर वह मेरे गालों, होठों और नाक को चूमने की कोशिश करने लगा। अचानक मेरे पेट में कोई चीज चुभने लगी।

"आआह। इसे हटाओ। मुझे चुभ रहा है।"

गुप्ताजी की बैशाखी मेरे पेट में चुभ रही थी, उसने बिना मुझे अलग किए बैशाखी को थोड़ा खिसका दिया। क्यूंकी घर के पिछवाड़े में कोई नहीं था इसलिए गुप्ताजी ने मौके का फायदा उठना शुरू कर दिया था। अब गुप्ताजी ने मेरे विरोध करते हाथों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए मुझे साइड से आलिंगन कर लिया। उसका दायाँ हाथ मेरी दायीं बाँह को पकड़े हुए था और उसका बायाँ हाथ मेरी बायीं बाँह को मेरे ब्लाउज में दबाए हुए था। अपनी दोनों टाँगों के बीच उसने मेरी बायीं जाँघ दबाई हुई थी। एक दो मिनट तक संघर्ष करने के बाद मुझे समझ आ गया की कोई फायदा नहीं, इस ठरकी बुड्ढे से छुटकारा पाने के लिए मेरे पास उतनी ताक़त नहीं थी।

कुमार--शशश! रश्मि, तुम कितनी सेक्सी हो आआहह!

वो कपटी बुड्ढा मेरी बायीं चूची को अपनी हथेली में दबाते हुए ऐसा कह रहा था। उसने मेरे दाएँ हाथ को छोड़कर मेरी चूची पकड़ ली थी और मेरे गाल को चूमते हुए चूची को दबाए जा रहा था। वह मेरे होठों को चूमना चाह रहा था पर मैंने मुँह घुमा लिया।

"उम्म्म्म! आआह!"

गुप्ताजी ने ज़ोर से मेरी बायीं चूची मसल दी। उसकी अँगुलियाँ ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची के हर हिस्से को दबा रही थीं। उसका अंगूठा मेरे निप्पल को दबा रहा था। उत्तेजना से कुछ पल के लिए मेरी आँखें बंद हो गयीं और मेरी सिसकी निकल गयी। वह अनुभवी आदमी था और एकदम से मेरी हालत समझ गया। अब वह कमीना बार-बार मेरे निप्पल को ब्लाउज के बाहर से मसलने लगा।

"ऊऊओ! प्लीज रुक जाओ। प्लेआस्ईईईई।"

अब वह रुकनेवाला नहीं था। उसने मेरे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर चूची को मसल दिया। मैं भी गरम हो गयी और काजल की चुदाई मेरी आँखों के सामने घूमने लगी। अब गुप्ताजी ने अपनी बैशाखी फ़र्श में फेंक दी और मेरे बदन का सहारा लेकर मुझे कमरे की दीवार की तरफ़ धकेलकर दीवार से सटा दिया। अब मैं दीवार और गुप्ताजी के बीच फँस गयी थी। मैंने अपनी पीठ पर ठंडी दीवार महसूस की। उसने अपनी बैशाखी फेंक दी थी इसलिए सहारे के लिए पूरा वज़न मुझ पर ही डाला हुआ था। वह मेरे पूरे बदन में हाथ फिराने लगा।

उसका दुस्साहस बढ़ता गया। मैं ज़्यादा विरोध नहीं कर पायी और धीरे-धीरे समर्पण कर दिया। वह दोनों हाथों से मेरे नितंबों को दबा रहा था और मेरे पूरे चेहरे पर अपनी दाढ़ी चुभा रहा था। उसके हाथ मेरे अंगों को सिर्फ़ सहलाने और दबाने तक ही सीमित नहीं थे। अब उसने मेरी साड़ी भी ऊपर उठाकर मेरी नंगी टाँगों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। स्वाभाविक रूप से अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी और उसकी कामुक हरकतों से मेरी पैंटी गीली हो गयी थी। उस कमीने ने मेरी ऐसी हालत का फायदा उठाया और मेरे होठों को चूमने लगा, अबकी बार मैंने कोई विरोध नहीं किया। मुझे चूमते हुए उसने मेरे नितंबों से अपना दायाँ हाथ हटाया और मेरी दायीं चूची पकड़ ली। मेरे बदन में जैसे तीन तरफ़ से आग लग गयी, उसके मोटे होंठ मेरे होठों को गीला कर रहे थे, उसका बायाँ हाथ साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को मसल रहा था और उसका दायाँ हाथ मेरी चूची के निप्पल को दबा रहा था।

मेरी आँखें बंद हो गयी थीं और सच कहूँ तो अब मुझे भी मज़ा आ रहा था। तभी किसी के कदमों की आवाज़ आई।

"गाता रहे मेरा दिल।"

कोई गाना गाते हुए मंदिर की तरफ़ आ रहा था। मैंने देखा गुप्ताजी के हाथ जहाँ के तहाँ रुक गये।

कुमार--शशश...॥। वो हमारा माली है। लेकिन ये यहाँ क्यूँ आ रहा है?

मैंने जल्दी से अपना पल्लू उठाया और साड़ी ठीक करने की कोशिश की लेकिन गुप्ताजी ने मेरी साड़ी कमर से करीब-करीब निकाल दी थी और पेटीकोट दिखने लगा था। मेरे ब्लाउज के दो हुक भी उसने खोल दिए थे। इतनी जल्दी ये सब ठीक करने का समय नहीं था।

"वो अंदर आएगा क्या?"

गुप्ताजी ने तुरंत मेरे होठों पर अंगुली रख दी। गाने की आवाज़ अभी भी आ रही थी लेकिन हमारी तरफ़ नहीं बढ़ रही थी। इसका मतलब था कि माली बाहर कुछ कर रहा था।

कुमार--रश्मि बहुत धीमे बोलो। ये माली नंदिनी का ख़ास है। अगर वह यहाँ आकर हमें ऐसे देख लेगा तो मैं बहुत बुरा फँस जाऊँगा।

वो मेरे कान में फुसफुसाया।

कुमार--रश्मि जल्दी से मेरी बैशाखी उठा लाओ। अगर यहाँ से गुजरते हुए उसने देख ली तो वह ज़रूर अंदर आ जाएगा।

"लेकिन मैं ऐसे चलूं कैसे? देखते नहीं आपने मेरी साड़ी खोल दी है!"

मैंने थोड़ा ज़ोर से बोल दिया और तुरंत गुप्ताजी ने मेरे पेटीकोट के बाहर से मेरे नितंबों पर चिकोटी काट दी और धीरे बोलने का इशारा किया। इस तरह से मुझे धीरे बोलने को कहने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई और मैंने पक्का उसे झापड़ मार दिया होता लेकिन अभी मेरी हालत ऐसी थी की मुझे चुपचाप सहन करना पड़ा।

कुमार--रश्मि, समझने की कोशिश करो। अगर वह मुझे तुम्हारे साथ ऐसे देख लेगा तो!.तुम बस मेरी बैशाखी ले आओ! जल्दी से।

मैं अभी भी अपनी साड़ी पकड़े हुए थी और उसे ठीक करने की कोशिश कर रही थी। शायद ये देखकर गुप्ताजी ने एक हाथ से मेरी बाँह पकड़ी और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं उसके सामने सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी। मेरी पीठ अभी भी दीवार से सटी हुई थी।

"प्यार हुआ।"

माली दूसरा गाना गाने लगा था लेकिन शुक्र था कि वह हमारी तरफ़ नहीं बढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था कि माली एक जगह पर ही रुक कर कुछ कर रहा है।

कुमार--रश्मि, प्लीज। मेरी बैशाखी ला दो।

जिस तरह से उसने मेरी साड़ी उतार दी थी उससे मैं थोड़ी हक्की बक्की रह गयी थी लेकिन अभी हालत थोड़ी गंभीर थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने उसे दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी बैशाखी लाने गयी। चलते हुए मैंने अपने ब्लाउज के खुले हुए दोनों हुक लगा लिए और अपनी आधी खुली हुई चूचियों को ढक लिया। बिना साड़ी के चलना बड़ा अजीब लग रहा था ख़ासकर इसलिए क्यूंकी मैं जानती थी की गुप्ताजी की नज़र मुझ पर ही होगी। मैंने बैशाखी उठाई और एक नज़र दरवाज़े से बाहर देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था। मैं जल्दी से उसके पास दौड़ गयी और बैशाखी दे दी। मैंने तुरंत अपनी साड़ी लपेटनी शुरू कर दी तभी गाने की आवाज़ हमारी तरफ़ बढ़ने लगी।

कुमार--रश्मि, एकदम चुप रहो। वह इसी तरफ़ आ रहा है।

उसने एक हाथ से बैशाखी पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से ज़ोर से मुझे अपनी तरफ़ खींचा। मेरी बड़ी चूचियाँ फिर से उसकी छाती से जा टकराई और मेरा चेहरा उसके चश्मे से। अब मेरा दिल भी ज़ोर जोर से धड़कने लगा क्यूंकी मैं भी ऐसी हालत में किसी के द्वारा पकड़े जाने से डरी हुई थी, मैं सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में थी और मेरी साड़ी फ़र्श में गिरी हुई थी और उस बुड्ढे ने मुझे अपने से चिपटाया हुआ था।

कुमार--शायद वह दरवाज़े के पास है।

उसने मेरे कान में फुसफुसाया और पकड़े जाने की चिंता से मैंने उसकी छाती में अपना मुँह छुपा लिया। कुछ पल तक शांति रही। फिर गाना शुरू हो गया।

"गाता रहे मेरा दिल।"

इस बार वह आवाज़ हमारे बहुत करीब थी। अब गुप्ताजी ने मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया शायद घबराहट की वज़ह से। मैंने भी कोई विरोध नहीं किया। लेकिन उसकी हरकतों से मैं कन्फ्यूज हो गयी। वह मेरी दोनों चूचियों को अपनी छाती में दबा रहा था। मुझे अपने पेट के निचले हिस्से में उसका लंड भी महसूस हो रहा था। अपने हाथों से मेरे पतले पेटीकोट के बाहर से वह मेरी गांड भी दबा रहा था। कोई आदमी ऐसे कैसे बिहेव कर सकता है अगर वह पकड़े जाने के डर से घबरा रहा है तो?

मैं अपने हाथ पीछे ले गयी और अपनी गांड से उसकी हथेलियों को हटाने की कोशिश की। वह मेरे हाथ से बचते हुए मेरे नितंबों में अपनी हथेलियाँ घूमने लगा। मेरे हाथ पीछे होने से मेरा बदन गुप्ताजी की तरफ़ झुक गया और मेरी चूचियाँ उसकी छाती से और भी ज़्यादा दबने लगी। मुझे समझ आ गया की उसके हाथों को मैं हटा नहीं सकती क्यूंकी एक जगह से हटाने पर वह दूसरी जगह मेरे नितंबों को पकड़ लेता था।

"ठीक से रहो ना!"

मैंने ऐसा कहते ही अपनी जीभ बाहर निकाल ली क्यूंकी मुझे एहसास हुआ की मैंने ज़ोर से बोलकर ग़लती कर दी है।

कुमार--रश्मि डार्लिंग, वह चला गया है।

अरे हाँ। अब तो गाने की आवाज़ नहीं आ रही थी। माली ज़रूर चला गया होगा।

"आउच! अरेरेरेर! रुको!"

इससे पहले की मैं अपने नितंबों से हाथ आगे ला पाती उस कमीने ने मेरा पेटीकोट कमर तक ऊपर उठा दिया और दोनों हाथों से मेरी नंगी मांसल जाँघें पकड़ लीं। मैंने उसको रोकने की कोशिश की पर तब तक उसने मेरी पूरी टाँगें नंगी कर दी थीं। मुझे मालूम था कि अब वह मेरी पैंटी नीचे करने की कोशिश करेगा, इस बार मैंने उसका विरोध करने की ठान ली, चाहे कुछ भी हो जो इसने मेरे साथ बाथरूम में किया था अब नहीं करने दूँगी।

"देखो, अगर तुम नहीं माने तो मैं चिल्लाऊँगी।"

मैंने दृढ़ स्वर में उसे चेतावनी दी। गुप्ताजी एक पल के लिए रुक गया। उसने अभी भी मेरा पेटीकोट मेरी कमर तक उठाया हुआ था जिससे मेरी सफेद पैंटी दिखने लगी थी। लेकिन उसने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया और फिर से मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की। लेकिन इस बार मैंने उसके आगे समर्पण नहीं किया क्यूंकी मुझे मालूम था कि अबकी बार ये हरामी बुड्ढा मेरी चूत में लंड घुसाए बगैर मानेगा नहीं। मैंने उसको थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया तभी।

"कुमार! कुमार!"

दूर से नंदिनी ने आवाज़ लगाई। उसकी आवाज़ सुनते ही गुप्ताजी में आया बदलाव देखने लायक था। उसने मुझे अलग किया, अपने कपड़े ठीक किए और बैशाखी लेकर मंदिर के दरवाज़े की तरफ़ जाने लगा। अपनी बीवी की आवाज़ सुनकर वह घबरा गया था और उसकी शकल देखने लायक थी। उसकी हालत देखकर मैं मन ही मन मुस्कुरायी। मेरी ख़ुद की हालत भी देखने लायक नहीं थी इसलिए मैंने जल्दी से साड़ी पहनी और ब्लाउज ठीक करके बाहर आ गयी।

कहानी जारी रहेगी

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