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Click hereअंतरंग हमसफ़र भाग 43-में पढ़ा:
अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे फिराते हुए मैं अपने हाथ धीरे-धीरे ऊपर और ऊपर उनकी जांघो तक ले गया और ख़ुद को उनकी नरम और गुलाबी त्वचा पर चुंबन करने से नहीं रोक सका। श्रीमती लिली ने एक गहरी कराह भरी और बोली, " ओह! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, मुझे बहुत नाज़ुक जगह पर दर्द हुआ था और वह ऐंठन अब दूर हो गई है और दर्द चला गया है। अगर आप नहीं होते तो पता नहीं मुझे कितनी देर ये कष्ट और सहना पड़ता ।
"नहीं, नहीं, मैडम, आपकी खूबसूरत जांघों का तंत्रिका संकुचन मुझे विश्वास दिलाता है कि दर्द का केंद्र ऊपर है और वह दर्द कुछ ही क्षणों में फिर से वापस आ जाएगा, और आप कृपया मुझे पूरा मुआयाना करने दीजिये ताकि मैं इसका स्थायी इलाज़ कर सकूँ और आपको पूरी राहत मिले वास्तव में आपको इसके लिए मुझ से शर्म नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मैं एक मेडिकल छात्र हूँ ।" हर पल और अधिक साहसी होते हुए और उसके जोशपूर्ण स्वभाव का लाभ उठाते हुए मैंने झट से जवाब दिया।
आपने मेरी कहानी " अंतरंग हमसफ़र-- 1 से 43" में अब तक पढ़ा:
मैं अपनी पत्नी प्रीती को अपनी अभी तक की अंतरंग हमसफर लड़कियों के साथ मैंने कैसे और कब सम्भोग किया। ये कहानी सुनाते हुए बता रहा था की, किस तरह मेरी फूफरी बहन की पक्की सहेली हुमा की पहली चुदाई जो की मेरे फूफेरे भाई टॉम के साथ होने वाली थी। टॉम को बुखार होने के बाद मेरे साथ तय हो गयी। फिर सब फूफेरे भाई, बहनो और हुमा की बहन रुखसाना तथा मेरी पुरानी चुदाई की साथिनों रूबी, मोना और टीना की मेरी और हुमा की पहली चुदाई को देखने की इच्छा पूरी करने के लिए सब लोग गुप्त तहखाने में बने हाल में ले जाए गए। मैं दुल्हन बनी खूबसूरत और कोमल मखमली जिस्म और संकरी चूत वाली हुमा ने अपना कौमर्य मुझे समर्पित कर दिया उसके बाद मैंने उसे सारी रात चोदा और यह मेरे द्वारा की गई सबसे आनंदभरी चुदाई थी। उसके बाद सब लोग घूमने मथुरा आगरा, भरतपुर और जयपुर चले गए और घर में एक हफ्ते के लिए केवल मैं, हुमा और रोज़ी रह गए। जाते हुए रुखसाना बोली दोनों भरपूर मजे करना। उसके बाद मैं और हुमा एक दूसर के ऊपर भूखे शेरो की तरह टूट पड़े और हुमा को मैंने पहले चोदा और फिर उसके बाद बहुत देर तक चूमते रहे।
उसके बाद मैं फूफा जी के कुछ जरूरी कागज़ लेकर श्रीमती लिली से मिलने गया पर इस कारण से हुमा नाराज हो कर चली गयी । लिली वास्तव में बहुत सुंदर थी और उसका यौवन उसके बदन और उसके गाउन से छलक रहा था। उसके दिव्य रूप, अनिन्द्य सौन्दर्य, विकसित यौवन, तेज। कमरे की साज सज्जा, और उसके वस्त्र सब मुझ में आशा, आनन्द, उत्साह और उमंग भर रहे थे। अचानक वह दर्द से चिल्लाने लगी और बोली, "आह! हाय! ओह! ओह! ओह! मेरे पैरों में ऐंठन आ गयी है। मैंने इस अवसर आका फायदा उठाने के लिए हिम्मत करते हुए उसके गाउन को ऊपर उठाते हुए और उसकी प्यारी पिंडलियों को अपने हाथों से सहलाया, और नरम और गुलाबी त्वचा पर चुंबन कर दिया।
अब आगे:-
वह बोली "ओह दीपक! तुम वास्तव में एक जवान बदमाश हो, तुम्हारे छुअन ने और चुंबन ने मुझे बेकरार कर दिया है, मैं एक सुन्दर छात्र का विरोध नहीं कर पा रही हूँ? ओह, दीपक, मैं तो केवल तुम्हारी हिम्मत देखने के लिए और तुम्हे आकर्षित करने के लिए कोशिश कर रही थी लेकिन अब मैं और अब मैं अपने ही जाल में फँस गयी हूँ!"
उसके स्पर्श और उसकी सुंदरता ने मुझ पर अपना प्रभाव दिखाएँ शुरू कर दिया था, उसकी बाते सुन और उसके स्पर्श से और खूबसूरती के कारण मेरी पैंट में मेरा लंड खड़ा हो गया था और टेंट नज़र आने लगा था और उसके आँखों तुरंत निचली दिशा में गयी । उसने अपने परी जैसे सफेद और परिपूर्ण सुंदर टांगो को एक दूसरे पर मेरी उत्सुक आँखों में प्रदर्शित करने के लिए रखा ।
कोमल और स्वादिष्ट सुगंध जो केवल युवावस्था में महिला से निकलती है वह मुझे महसूस हुई और उसके प्रचुर लहराते सुनहरे बाल मेरे गालो से टकराये जो रेशम की तरह लग रहे थे। मेरे हाथ उसके चमकते हुए आकर्षणो को छूने के लिए तरस रहे थे! फिर कुछ क्षण हम मौन में बैठे रहे।
उसके सुन्दर टांगो और छोटे-छोटे पैर, इतने प्यारे, सुंदर पैर और ऐसी उत्कृष्ट रूप से मुड़े हुए नंगे टखने, उसने अपनी चप्पलें की जोड़ी उतार फेंकी थीं। उसके छोटे से खुले हुए गाउन ने उसके कंधों और छाती के कुछ हिस्से को ढँका हुआ था, लेकिन वह गाउन उसके पूरे आकार को, सफेद भुजाओं, उसकी पतली कमर या उसके शानदार और चौड़े कूल्हों को छिपाने के लिए नाकाफी था। उसके इस रूप और इन नंगे पैरों और टांगो ने मेरी कामिच्छा को भड़का दिया और मैंने उसे पकड़ कर उसकी टांगो में सर घुसा कर उसकी जांघो पर एक चुंबन कर दिया।
"आह! दीपक! इतनी जल्दी यह सब! आप तो दुःसाहसी होते जा रहे हैं।"
फिर मैंने महसूस किया कि उसका हाथ मेरी सफेद पैंट के नीचे रेंगा और उसने मेरे पेण्ट के ज़िप को खोल दिया । और अपना हाथ धीरे से मेरी जाँघ के ऊपर रख दिया। और धीरे से अपनी विस्तारित उंगलियों को मेरी जांघ के अंदर की ओर खिसकाते हुए: वह मेरे लंड को छुआ जो-जो अब उग्र रूप से खड़ा और कठोर था!
"प्लीज दीपक!" उसने मुझे थोड़ा मुझे दूर धकेलने की कोशिश की क्योंकि मैं उसकी प्यारी जांघों के बीच जाने की कोशिश कर रहा था। " श्रीमान, पहले सारे वस्त्र निकालिये मुझे औजार को देखना है, क्योंकि आपकी खुशियों के खजाने की गुफा अब बेपर्दा हो, अब आपके सामने ख़ुद को प्रकट कर रही है और उसने अपने गाउन को उतार कर नीचे फेंक दिया जो उसके द्वारा पहना गया एकमात्र कपडा था।
फिर एक छोटे से विराम के बाद वह आगे बढ़ी उसने गर्व से अपने सूजे हुए स्तन पर नज़र डाली, "तो क्या आपको लगता है कि मैं खूबसूरत हूँ?"
ओह! "मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा," श्रीमती लिली! मुझे लगता है कि मैंने दुनिया में इतना प्यारा चेहरा और फिगर पहले कभी नहीं देखा था! "
"क्या सच में! क्या आप जानते हैं कि मैंने क्या सोचा था, जब मैंने आपको टैक्सी में देखा था?" और आप मुझे लिली कहें!
"नहीं लिली!"
"मैंने सोचा था कि अगर मैं इतने अच्छे दिखने वाले, सुंदर युवक के साथ यात्रा कर रहा होती तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती!" और मैंने उसे अपने पास खींचा और उसके स्तन सहलाने लगा।
मैंने कहा, "लिली! अब मैं अपने आप को संयमित करने में असमर्थ हूँ। मुझे नहीं याद कि मैंने कभी पहले इस तरह की प्यारी छाती और इस तरह के मोहक, सुस्वादु चुलबुले स्तन कब देखे हैं!" और इसके साथ ही उसकी छाती में मेरा हाथ फिसल गया और उसके एक स्तन को मेरे हाथ ने जब्त कर लिया और मैं उसे धीरे से दबाने लगा है और अपनी उंगलियों के बीच उसके कड़े हो चुके निपल्स को निचोड़ा और उसके बाद मेरे सामने प्रस्तुत चूचक के सुंदर उभरे हुए मुंह को चूमा और फिर चूसा।
"आह!" वह कराही, "दीपक तुम्हें ऐसा करने की अनुमति किसने दी है? ठीक है अब इसके बदले में मेरे पास आपको अच्छा महसूस कराने के कुछ है!"
उसकी फुर्तीले उँगलियों में मेरी खुली हुई पतलून में से अपने हाथ की एक फुसफुसाहट से मेरी कमीज़ निकाल दी थी और इसके साथ ही मेरे गर्म सख्त और उग्र, पागल घोड़े पर उसने तुरंत अपना कब्जा कर लिया ।
मैंने उसका स्पर्श अपने लंड पर महूस करते हुए उसके निप्पल को हल्का-सा कुतर दिया "आह!" वह फिर कराही, " आह! ओह! वाह ये कितना सुंदर है! कितना सुन्दर!! और इतना बड़ा! और ये सिर्फ़ कठोर ही नहीं है बल्कि लोहे की रोड की तरह इसका सर गर्म और लाल भी है! और तुम्हारे पास कितने अच्छे बड़े अंडकोष हैं जिनमे मेरे लिए ढेर सारा रस है! ये बहुत सुंदर है! ओह! मैं उन्हें खाली करना चाहूंगी! ओह! अब तुम मुझे पाओगे!
और मेरे चेहरे को अपने पास खींचकर, मेरे ओंठो को चूम कर उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी, सबसे कामुक और स्वादिष्ट शैली में मेरी जीभ चूसते हुए वह मेरे खड़े हुए लंड पर हाथ चलाती और साथ में मेरे अंडकोषों को संभाल रही थी। जबकि मैं एक हाथ से उसके स्तनों को दबाते हुए दुसरे हाथ से उसकी योनि के दाने को छेड़ रहा था। यह मेरे अधीर लंड के लिए बहुत अधिक था, और जल्द ही उसके हाथों और शरीर पर मैंने पिचकारियाँ मार दी।
कहानी जारी रहेगी। आगे क्या हुआ? ये अगले भाग में पढ़िए।
आपका दीपक