एक नौजवान के कारनामे 073

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घायल वृद्ध ​.
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Part 73 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II

विवाह, यज्ञ और शुद्धिकरन

CHAPTER-1

PART 04

घायल वृद्ध ​

उसके बाद मैं भ्रमण के लिए आगे निकल गया तो कुछ दूर जाने पर काली चींटिया नज़र आयी तो मैंने देखा एक जगह से बहुत सारी चींटिया निकल रही थी तो मैंने उधर आटा डाला... थोड़ा आगे गया तो देखा वहाँ पानी की एक छोटी-सी धारा बह रही थी । जो दूसरी तरफ़ जा रही थी अचानक उसमे पानी बढ़ने लगा और लगा तो ये धारा अब बह कर उसी चींटियों के घर की तरफ़ जायेगी जिससे उन चींटोयो को ख़तरा हो सकता है तो मैंने वहाँ पर थोड़ी-सी मिटटी और पत्थर के टुकड़े इकठे करके बाँध-सा बना दिया जिससे पानी उधर न जा पाए और चींटियों का घर सुरक्षित रहे। मैंने फिर पानी में हाथ धोये और एक अंजुली भर कर पानी पिया तो पानी साफ़ था और काफ़ी ठंडा और मीठा था ।

मैंने थोड़ा आगे ए मुझे वहाँ एक छोटा-सा तालाब नज़र आया और उसने तैरती हुई मछलिया नज़र आयी तो मैंने तालाब में अपने साथ लायी हुई आटे की गोलिया उस तालाब में-में डाल दी।

फिर आगे गया तो वहाँ जंगल काफ़ी घना हो गया जिसके कारण अँधेरा भी घना हो गया और बादलों ने चाँद को ढक लिया। कभी-कभी बादलों और पेड़ो के बीच से छन्न कर चाँद की चांदनी में सब कुछ रोशन हो जाता था। कच्चेी पगडण्डी काफ़ी लम्बी लग रही थी और वहाँ जानवरों की आवाज़ के आ रही थी मैंने टोर्च जला ली थी।

चाँद की रौशनी में पगडण्डी के किनारे मुझे एक ढेर के जैसा कुछ नज़र आया दूर से यह किसी प्रकार के घायल जानवर की तरह लग रहा था लेकिन चांदनी में मुझे लगा किसी शिकारी या जानवर ने किसी अन्य जानवर को पकड़ लिया था और शिकार हो गया था और मैंने वहाँ पर टार्च की रोशनी फेंकी जिससे वह ढेर हिलने लगा।

मैंने टोर्च के प्रकाश को चारों ओर फेंक कर ये सुनिश्चित किया की आसपास कोई जानवर या मानव हमलावर तो छिपा हुआ नहीं है जब मुझे सब सुरक्धित लगा तो मैं आगे बढ़ा और उस ढेर के पास पहुँचा, साथ ही साथ अपनी आंखों को तेजी से बाईं और दाईं ओर घुमाते हुए, सभी दिशाओं को स्कैन करते हुए मामूली संकेतों की तलाश की-की कोई और तो वहाँ नहीं है। ढेर में मुझे धूल से ढका किसी इंसान का चेहरा दिखाई दिया जो खून से लथपथ था । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि वह जीवित था और उसके होठों से कराह निकल रही थी।

मैंने अपनी टोर्च से प्रकाशित क्षेत्र की परिधि यह सोचकर को स्कैन किया कि क्या यह एक जाल हो सकता है, दोस्तों से कहानियाँ सुनी थीं और उसे कई मौकों पर पुलिस बल के द्वारा भी चेतावनी दी गई थी, इस तरह की स्थिति में रुकें नहीं क्योंकि ये एक जाल हो सकता है जिसमे बदमाश लोग जो इसके साथी हो सकते हैं झपट्टा मारने के लिए झाड़ी में छिपे हमला कर सकते हैं। मुझे कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा तो मैंने फ़ैसला किया कि मैं इस जंगल में एक घायल इंसान को ऐसे नहीं छोड़ सकता। मैं सहज रूप से जानता था कि अगर मैं चला गया, तो पगडण्डी के किनारे वह इंसान मर सकता है और यह मेरे विवेक पर हमेशा के लिए एक भार होगा और फिर डॉक्टर होने के नाते मेरा कर्तव्य था इस इंसान की मदद करना और उसे इलाज़ देना।

मैंने अपनी पानी की बोतल निकाल ली और पगडण्डी के किनारे निष्क्रिय पड़े हुए घायल के पास गया, उसका सिर एक कोहनी पर टिका हुआ था मैं घायल व्यक्ति को अर्ध-बैठने की स्थिति में सहारा देने के लिए उसके नीचे अपना हाथ ले गया और उसके फटे और सूखे होंठों पर अपनी बोतल से थोड़ा-सा पानी डाला।

करीब से देखने पर मुझे पता चला कि उस घायल के पैर स्पष्ट रूप से टूटे गए थे और उसका कई अलग-अलग जगहों से बुरी तरह से खून बह रहा था, मैंने अपने मन में आकलन किया ये इंसान बुरी तरह घायल और बहुत गंभीर स्थिति में था। मैंने तुरंत फ़ैसला किया कि उसे जल्द से जल्द अस्पताल ले जाना चाहिए और उस समय मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि उस आदमी को और कौन-सी चोटें लगी हुई है जो मैं देख नहीं पाया था और यदि मैं उसे उठाता तो उसे और नुक़सान होने का भी डर था।

मुझे याद आया कि मैंने अपने टॉर्च बैग में कुछ जीवन रक्षक होम्योपैथिक दवाएँ और आयुर्वेदिक जीवन रक्षक दवाएँ रखी थीं जो मैंने एक डॉक्टर होने के नाते उनके मुँह में उनकी जान बचाने ले लिए डाल दी मैंने तुरंत मेरे पीछे आ रहे मेरे सुरक्षा दोनों गार्डों को बुलाया और दो लकड़ी के टुकड़े लाने के लिए जिससे स्ट्रेचर बनाया जा सके और मैंने फुर्ती से अपना कुर्ता और पायजामा निकाल दिया।

मैंने इस बीच उस बूढ़े आदमी से बात की और पूछा कि उसे और कहाँ दर्द है, चोट लगने से घायल और खून बहने से कमजोर हो चुके उस वृद्ध व्यक्ति ने मेरी आँखों में देखा और बोलने की व्यर्थ कोशिश की, फिर अचानक गहरी सांस लेते हुए वह घायल व्यक्ति कराह उठा और बेहोश हो गया।

मैंने चारों ओर देखा और गार्ड से चाकू ले कर पास के पेड़ की मोटी छाल की निकाला और उसे टूटे हुए अंगों के साथ रखा, उन्हें स्थिर करते हुए जंगल से लताये काट कर उनसे उस छाल की बाँध दिया और वृद्ध के घायल पैरों को स्थिर किया।

इस बीच वह दोनों सुरक्षा कर्मी दो लकड़ी के टुकड़े ले लाए और मैंने मेरे कपड़ों का उपयोग करके जल्दी से एक स्ट्रेचर बनाया और बूढ़े को स्ट्रेचर पर लिटा दिया, उसे उठाया और वापस महल की ओर दौड़ पड़े। इसी बीच मैंने अपनी सचिव हेमा को फ़ोन किया और उन्हें जल्दी से जंगल की ओर एम्बुलेंस भेजने के लिए कहा। अगले कुछ मिनटों में एम्बुलेंस आ गई और अस्पताल पहुँच कर उस घायल को आपातकाल हताहत विभाग में ले गया।

मुझे ये स्पष्ट था कि बूढ़ा बहुत बुरी तरह से घायल हो गया था और मैंने अस्पताल में मरीज के इलाज़ के लिए स्वेच्छा से भुगतान किया और अपना परिचय दिया ताकि बूढ़े व्यक्ति को जल्दी से इलाज़ मिल सके। मैंने तुरंत अपना सारा विवरण अस्पताल को दिया और उन्हें बताया कि मैं एक डॉक्टर हूँ फिर मैंने रोगी की जांच की और पाया कि वह बुरी तरह से घायल था।

जब अस्प्ताल के कर्मचारियों ने पूछा "क्या हम आपका पता जान सकते हैं? हमें पुलिस के लिए इसकी आवश्यकता पड़ेगी। ये घायल आपको कहाँ और कब मिले, इसके बारे में पुलिस आपसे जानना चाहेगी मुझे पता था इस प्रकार के विवरण सभी अस्पताल लेते हैं ताकि अस्पताल में मरीज के इलाज़ के लिए भुगतान होने के बारे में पता चले। उस समय ड्यूटी पर कोई डॉक्टर नहीं था और ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारियों ने अपनी चिंता व्यक्त की" रोगी एक गंभीर स्थिति में लग रहा है और यह कि आपके दवरा किये गए उन सभी प्रयासों और सहायता के बावजूद मामले की वास्तविकता यह है कि मरीज का बचना काफ़ी कठिन है। "

मैंने नर्स से कहा मैं एक होमेओपेथिक ही सही पर एक डॉक्टर हूँ कि मैंने उसे कुछ जीवन रक्षक दवाएँ दी हैं और उससे कहा कि मैं महाराजा का रिश्तेदार हूँ। यह सुनकर चीजें बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगीं और जल्दी ही भाई महाराजा भी डॉक्टरों की एक टीम के साथ अस्पताल पहुँचे और अस्पताल के ड्यूटी डॉक्टर भी आ गए और वह लोग मरीज को तुरत ऑपरेशन थिएटर में ले गए।

महाराज मुझे घर वापिस ले आये और घर पहुँचकर उन्हों में मुझे जंगल में इस तरह जाने के लिए डांटा और मैं उन्हें ये नहीं समझा सका कि मैं ऐसे समय एक अनजान जगह में जंगल में क्यों गया। उन्हों में मुझे बोला तुमने ऐसी मूर्खता क्यों की क्या तुम्हे नहीं मालूम ऐसे समय में मेरी हत्या आसानी से की जा सकती थी। पर मुझे ख़ुशी थी मैं इस समय साधू बाबा से मिल पाया और एक घायल आदमी की मदद कर पाया जो वह पता नहीं कितनी देर से घायल पड़ा था और मुझेे उसकी सहायता करने के लिए चुना था।

कुछ घंटों के बाद मैंने अस्पताल को फ़ोन किया और बूढ़े आदमी के स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की, जिसके लिए मेरी अपनी जान जोखिम में पड़ सकती थी और मैंने बोलै वह बजुर्ग जो बुरी तरह से घायल थे और जिन्हे मैं आज सुबह ही अस्पताल लाया था, तब अस्पताल ने मुझे बताया कि रोगी जीवित था लेकिन उसकी हालत बहुत अच्छी नहीं है वह बार-बार बेहोश हो रहा है और होश में, आने पर वह मरीज मेरे बारे में पूछ रहा था।

अस्पताल के कर्मचारियों ने कहा, "हमें पता है, आपने पहले ही बूढ़े व्यक्ति की सहायता करने के लिए बहुत कुछ किया है लेकिन हम चाहते हैं कि आप अस्पताल में आएँ और उस मरते हुए व्यक्ति को आपके आने से शान्ति मिलेगी।" अनिच्छा से मैं अस्पताल जाने के लिए सहमत हो गया उस बूढ़े व्यक्ति से मिलने के लिए अस्पताल चला गया।

अस्पताल पहुँचकर मैंने तुरंत ड्यूटी रिसेप्शनिस्ट को बताया कि मैं कौन हूँ तो मुझे तुरंत गहन चिकित्सा इकाई (ICU.) में ले जाया गया। बूढ़ा आदमी पैरो पर प्लास्टर के साथ बिस्तर पर लेटा हुआ था अभी बेहोश था और उसकी सांस उथली थी और एक ऑक्सीजन मास्क उसे लगा हुआ था। उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, उसके चेहरे और शरीर के अन्य घावों को सिल दिया गया था, लेकिन उसका रंग पीला हो गया था और ऐसा लग रहा था को वह ज़्यादा देर जीवित नहीं रहेगा।

उसके माथे और बाजुओं पर नाग बना हुआ था मैंने नर्सिंग स्टाफ पुछा "इनके ठीक होने की क्या संभावना है?" उन्होंने गंभीरता से नक्कारात्मक सिर हिलाया।

ड्यूटी पर तैनात नर्स ने मुझे बताया की ये काफ़ी समय ऑपरेशन थिएटर में रहे है और डॉक्टरों ने जितना संभव हो सका कर दिया है, लेकिन इन्हे काफ़ी चोटे लगी हैं जिनका इलाज़ अभी भी किया जाना है, इलाज़ उनकी खराब स्थिति के कारण स्थगित करना पड़ा था क्योंकि उसके लिए इन्हे मूर्छित करना होगा और इनकी हालत ऐसी लग रही है कि फिर इन्हे होश में लाना काफ़ी मुश्किल हो जाएगा।

इतने में वहाँ डॉक्टर आ गए और बोले हम इनकी चोटे देख आश्चर्यचकित हैं कि ये अब तक जीवित हैं। इनकी चोटें इतनी खराब और गहरी हैं जिनसे लंबी अवधि के लिए रक्त स्राव होने के कारण इनका काफ़ी रक्त बह चूका है और ऐसी चोटों से तो अब तक एक मज़बूत स्वस्थ आदमी की भी मौत हो चुकी होती। " हमारे राय से किसी जानवर ने इनपे हमला किया था।

फिर मैंने उससे कहा कि मैंने इन्हे जंगल में कुछ प्रारंभिक उपचार दिया है और कुछ जीवन रक्षक दवाएँ दी हैं जो मैं हमेशा अपने साथ रखता हूँ। यह सुनकर नर्स ने कहा कि शायद यही कारण है कि मरीज अब तक जीवित है।

मैं सोच ही रहा था कि क्या ये बूढ़ा आदमी अब होश में आएगा, उससे बात करने की बात तो दूर, मैं बैठ कर उन्हें देख रहा था डॉक्टर ने मुझे मरीज को प्राथमिक चिकित्सा और कुछ जीवन रक्षक दवाएँ देने के लिए धन्यवाद दिया और उसने डॉक्टर को मुझे धन्यवाद देते सुना मैंने डॉक्टर से पुछा क्या मैं इन्हे अपनी दवाये और दे सकता हूँ तो डॉक्टर बोले इसमें कोई बुराई नहीं है।

मैंने भी कहा डॉक्टर साहब आपने जो किया है उसके लिए आपका बहूत धन्यवाद पर शायद मेरी दवाओं से इन्हे कुछ फायदा हो जाए तो डॉक्टर बोले इसमें कोई बुराई नहीं है । मेडिकल साइंस में अभी बहुत से पहेलियाँ अनसुलझी हुई हैं और डॉक्टर फिर चले गए।

उनके जाते ही मरीज ने आँखे खोल दी, मैंने अपने बैग से निकाल कर उस मरीज को कुछ और दवाये दी फिर उसने धीरे-धीरे अपना हाथ उठाया और अपनी उंगली का उपयोग करते हुए उसने मुझे आगे आने के लिए संकेत किया और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया, उस घायल बजुर्ग ने अपनी बाँहें हिलायीं और एक हाथ से एक पुरानी अँगूठी जिसपे सांप बना हुआ था उसे अपनी उंगली से खींच कर मुझे लेने का इशारा किया। मैंने अपने हाथों से वापस इशारा किया और नाकारत्मक सिर हिलाया और धीरे से बोला।

मैंने कहा "नहीं, नहीं, मुझे इनाम के तौर पर आपसे कुछ नहीं चाहिए मैं आपको जंगल में उस हालत में नहीं छोड़ सकता था।"

कहानी जारी रहेगी

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