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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
VOLUME II
विवाह
CHAPTER-1
PART 06
मैं भाई महाराज, कुलगुरु मृदुल, पिताजी और माताजी के साथ कामरूप चले गए। फ्लाइट में हमारे साथ मेरी नवनियुक्त सचिव हेमा भी थी। आसाम जा कर हम पहले एक होटल में जा कर रुके और उसके बाद कामरूप क्षेत्र के (आसाम) के महाराज उमानाथ के घर में राजकुमारी ज्योत्स्ना से मिलने चले गए।
प्रवेश द्वार पर कामरूप रियासत के महाराज उमानाथ ने माल्यार्पण के साथ हमारा स्वागत किया और मैंने महाराज वीरसेन और पत्नी महारानी को प्रणाम किया फिर हमने महाराज उमानाथ के महल में प्रवेश किया।
महल के अंदरूनी हिस्से को शानदार ढंग से सजाया गया था और मुझे रेशमी तकिये के साथ एक-एक सिंहासन पर बिठया गया पास की खिड़की से एक बड़ा स्विमिंग पूल और उसके साथ ही सुन्दर फूलों और फलों के पेड़ों वाला एक प्यारा बगीचा था। वहाँ मीठी-मीठी ठंडी हवा चल रही थी और अपनी उपस्थिति महसूस कराने के लिए वह जगह बिलकुल उपयुक्त थी।
मेरे पिता और भाई महाराज का आसन महाराज उमानाथ की बगल में था और मेरी माता जी महाराज उमानाथ की महारानी के साथ बैठी हुई थी और महाराज उमानाथ का पुत्र राजकुमार महीपनाथ मेरे पास ही एक दुसरे आसन पर बैठा हुआ था। मेरे साथ की सीट राजकुमारी के लिए खाली थी। हमारे कुलगुरु मृदुल जी महराज उमानाथ के राजपुरोहित और कुलगुरु के साथ बैठे हुए थे। फिर महराज उमानाथ का सचिव उपस्थित हुआ और सबको प्रणाम करने के बाद बोला हमारे अनुरोध को स्वीकार करने के लिए और यहाँ पधारने के लिए आपका दिल की गहराइयों से धन्यवाद, मुझे आशा है कि आप हमारे आतिथ्य का आनंद लेंगे और हम आपके ठहरने को सार्थक और आरामदायक बनाने की पूरी कोशिश करेंगे और फिर सबको जल पान करने के लिए आग्रह किया।
फिर सचिव ने कहा "राजकुमारी ज्योत्स्ना जल्दी ही पधारेंगी और आप उनके साथ चर्चा कर सकते हैं,।" मुझे प्रणाम किया और चला गया।
जल्द ही दरवाजों के पास चहल-पहल हुई और हेमा ने धीमी आवाज़ में मुझ से कहा, "कुमार राजकुमारी आ रही हैं।" मैंने सिर हिलाया और अपने सुंदर आगंतुकों या मेजबानों का स्वागत करने के लिए ख़ुद उठ गया!
जब राजकुमारी ज्योत्स्ना आई तो मेरे दिल की धड़कन ही रुक गयी उसकी उम्र लगभग 18 बर्ष थी बहूत ही सुंदर चेहरा था बहूत ही भोली-भाली थी नैन नकश बहूत ही तीखे थे। मेरी नजरे राजकुमारी ज्योत्सना पर टिक गयी। गोरा रंग लम्बी पतली सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखे, होंठो पर लिपस्टिक मनमोहक मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज़ और यौवन से लदी हुई राजकुमारी ज्योत्सना ने मेरे मन को आज फिर विचिलित कर दिया।
मैं ज्योत्सना को अपलक देखता रहा। सुंदर और गुलाबी होठ, आकर्षक चेहरा और अद्वितीय आाभा में युक्त शरीर राजकुमारी ज्योत्सना आकर्षक साडी और गहने अलंकार और पुष्प धारण किये हुए, सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित दर और बेहद आकर्षक थी।
उसकी कमसिन काया गोल-गोल भरे बूब्स, गोरा रंग, उसकी नाज़ुक-सी पतली कमर उस पर उभरे गुंदाज़ कूल्हे और भरी गांड देखकर मेरा मन और लंड दोनों मचलने लगे।
ज्योत्सना ने भी मुझे देखा और अपनी आँखे शर्मा कर नीचे झुका ली।
18 वर्ष की उम्र की अन्नहड़ मदमस्ति और यौवन रस से परिपूर्ण संसार के द्वितीय सौन्दर्य की सम्राजञी राजकुमारी ज्योत्सना को देखते ही मेरे होश गुम हो गए ।
ऐसा लग रहा था काम देव ने अपनेसारे बाण मेरे ऊपर छोड़ दिए थे।
सब मिल कर एक ऐसा सौन्दर्य जो उंगली लगने पर मैला हो जाए। उसकी कमसिन काया गोल-गोल भरे बूब्स, गोरा रंग, उसकी नाज़ुक-सी पतली कमर उस पर उभरे गुंदाज़ कूल्हे और भरी गांड देखकर मेरा मन और लंड दोनों मचलने लगे।
मेरे मन राजकुमारी ज्योत्स्ना को देख बेकाबू हो रहा था। उनकी गोल-गोल बूब्स से भरी उसकी छाती और भरे-भरे गालों के साथ उसकी नशीली आंखें मुझे नशे में कर रही थी। उसके होठों की बनावट तो ऐसी थी, अगर कोई एक बार उनका रस चूसना शुरू करे तो रूकने का नाम ही न ले। मेरा मन कर रहा था कि बस उसके रस भरे ओंठो और स्तनों को-को चूमता और चूसता और चूमता, चाटता रहूँ और अपनी बाहों में जकड़ कर मसल डालूँ और ज़िन्दगी भर ऐसे ही पड़ा रहूँ और उफ क्या-क्या नहीं करूँ?
मैं ऐसे ही कामुक खयालो में खो गया था और मैंने देखा राजकुमारी भी झुकी हुई आँखों से मुझे चोरी-चोरी देखती थी और जब मुझे उन्हें ही देखते हुए पा कर फिर आँखे झुका लेती थी ।
राजकुमारी के साथ उनकी दो सखिया भी थी जो बेहद सुन्दर थी और वह राजकुमारी को मेरे पोआस ले आयी और मेरे पास बिठा दिया । मैं बस उसे ही देखे जा रहा था । तब मेरे माता जी ने उससे कुछ पुछा जिसका ज्योत्स्ना ने हाजी या सर हिला कर जवाब दे दिए।
तब महाराज ने मुझ से कहाः कुमार आप भी कुछ राज कुमारी से पूछ लीजिये पर मुझे तो होश ही नहीं था। मैं तो राजकुमारी के चेहरे और सौंदर्य को निहारने में खोया हुआ था ।
तब मेरी माता जी ने बॉल आप दोनों एक साथ खड़े हो जाए हमे आपकी जोड़ी को एक साथ देखना हैl
हम दोनों साथ खड़े हुए तो माता जी बोली जोड़ी बहुत सुन्दर लग रही है और जच रही है ।
फिर मेरे पिताजी ने बोला दीपक तुम को राजकुमारी से कुछ पूछना है तो पूछ लो । मैं कुछ बोलता इस से पहले ही मुझे लगा राज कुमारी मुझ से कुछ कहना चाहती है पर सब बड़ो के बीच में कहने से सकुचा रही थी।
मैंने बस इतना ही कहा पिताजी और मन से सोचा। और मैंने महाराज उमानाथ और पिताजी की और देखा और सोचा महाराज हम दोनों को कुछ देर अकेला छोड़ दीजिये और इतने में पिताजी ने महाराज और भाई महाराज से बोला हमे कुमार और राजकुमारी को अकेले छोड़ना चाहिए ताकि ये आपस में बात कर सके।
तो महाराज ने इशारा किया और मेरी सचिव और राजकुमारी की सखियों के साथ हम दोनों बगीचे में चले गए । तो मैंने राज कुमारी से पुछा। कहिए आप मुझ से क्या कहना चाहती हैं ।
क्या मैं आपको पसंद आया? तो राजकुमारी बोली। जी मुझे आपसे ये कहना था मैं अभी अपने पढाई जारी रखना चाहती हूँ । पर मुझे लगता है जैसे अपने अभी मेरे मन में क्या है ये जान लिया आप मेरे मन की बात अभी से जान लेते हो, इसलिए अब मुझे और कुछ नहीं कहना है।
तो मैंने कहा आप मुझे पसंद तो करती हो तो राजकुमारी ने शर्मा कर हाँ में सर झुका दिया । मेरी हाँ तो सब मेरी नजरो से भांप ही चुके थे । तो राजकुमारी की दोनों सखियों ने हमारी बाते सुन ली और ज़ोर से बधाई हो बोलती हुई एक अंदर भाग गयी और दूसरी राजकुमारी के पास आकर हम दोनों को बधाई देने लगी।
उसके बाद सबने एक दुसरे को बधाई दी और मिठाई खिलाई और परंपरा के अनुसार अँगूठिया और शगुन इत्यादि दिए गए। फिर कुलगुरु मृदुल जी ने महाराज के कुलगुरु और पुरोहित के साथ मिल कर 15 दिन बाद विवाह का शुभ महूरत निकाल दिया । उसके बाद दोपहर का भोज महाराज उमानाथ ने दिया और चुकी अब आगे हमे भाई महाराज के विवाह की तयारी करनी थी और फिर महाऋषि के पास हिमालय जाना था तो महाराज उमानाथ से आज्ञा लेकर वापिस आ होटल आ गये।
होटल में भाई महाराज मेरे पास आये और बोले कुमार मैं अपनी मरीना नाम की सबसे भरोसेमंद और सक्षम महिला अंगरक्षक को आपकी सुरक्षा के लिए हमेशा आपके साथ रहने के लिए तैनात कर रहा हूँ।
उन्होंने कहा, " वह आपके सबसे निजी क्षणों के दौरान भी हमेशा आपके साथ रहेगी मुझे आशा है कि आप इस व्यवस्था को स्वीकार करेंगे क्योंकि मुझे लगता है आज सुबह हुई घटना के कारन मैंने पूरी तरह से सोच समझ कर और गुरुदेव और आपके पिता जी के साथ परामर्श के बाद ही ये निर्णय लिया है और मुझे पूरा विश्वास है आप इस निर्णय को बड़े भाई के आदेश की तरह से मानेगे।
फिर महाराज ने "मरीना" कह कर पुकारा तो वह पर्दे के दरवाजे से बाहर आयी।
मुझे कहना होगा कि मैं कई महिलाओं को देखकर उनकी सुंदरता को सराहा है लेकिन मरीना की पहली झलक ने ही मेरी सांसें रोक लीं।
मरीना तेजस्वी गोरी सुनहरे बालो वाली, (blonde.) लगभग इकीस साल की जर्मन थी जिसने आकर्षक ग्रीष्मकालीन पोशाक पहनी हुई थी जो उसके सुन्दर स्तनों के आकार को दर्शा रही थी जिसमे से उसकी आकर्षक और लम्बी टाँगे प्रकट हो रही थी। मैं उसकी काय की कामुकता से प्रभावित हो गया था, वह एक आकर्षक महिला थी, उसे देख मैं अपनी प्रतिक्रिया पर हैरान था और मैं उसे अपनी बाहो में लेकर भोगना चाहता था उसकी आँखे भूरे रंग की थी और वह शारीरिक रूप से शक्तिशाली दिख रही थी। उसका व्यवहार सौम्य था और उसका रूप लुभावना और आकर्षक था।
उसका चेहरा आत्मविश्वास से बेहद शांत था औरउसकी निगाहें स्वाभाविक रूप से चौकस थीं। उसके नितंब अच्छी तरह से गोल थे और उसकी जांघों की मांसपेशियाँ शानदार ढंग से मज़बूत थी और उसके पैर लंबे थे। वह मेरे पास आयी वह झुकी अपनी कमर को तेजी से मोड़ा और मेरे हाथों को अपनी हथेलियों में मजबूती से पकड़ कर उसने मेरे हाथो को धीरे से चूम मेरा अभिवादन किया और दृढ़ आवाज़ में बोली महामहिम! मरीना आपकी सेवा में रात और दिन उपस्थित है।
मैं रोमांचित था। मुझे लगा मुझे नहीं मरीना के शरीर को रखवाली की ज़रूरत थी "मैं भी हूँ," मैंने कहा जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया और मुस्करा कर उसके हाथ को मैंने प्यार से सहला दिया l
कहानी जारी रहेगी