Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereCHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
परिधान'
Update-28
योनि मुद्रा
सचाई को जनना ज़रूरी होता हे। तंत्र को योग को भी कहते है। योग भी कई प्रकार के होता हे जैसे शरीर द्वारा व्यायाम, ध्यान और औषधियाँ के मिश्रण को नक्षत्र में लाकर रोगो कि चिकित्सा करना तथा मंत्र सक्ति से सुद्ध करना ही तंत्र हे। तंत्र और योग पूर्णतया वैज्ञानिक है।
हमारा हिन्दू तंत्र मंत्र सनातन और बडा विज्ञान मय हे। तंत्र मंत्र योग आदि सब का स्थान विशेष हे।
तंत्र में मुद्रा का विशेष महत्त्व हे यह हमारे अंगो के मोड ने से बनती हे जिस के द्वारा देवता को द्रवित और प्रसंन्न करना हे।
देवता को खुस करने को शरीर से द्रवित और प्रसन्न करना आवश्यक है।
योनि मुद्रा कामवासना पर काबु करती हे।
योनी तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे कहते हैं की-भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वह अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था। जिसमें तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है।
योनि पूजा के द्वारा मनुष्य को लाभ होता है मनुष्य वासना पर अधिकार कर, लिंग की ओर योनि की कृपा को प्राप्त कर सकता है।
जो मनुष्य योनि पूजा को नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं, परमात्मा उन्हें सदवुद्धी दे। कृपा करे ऐसे अज्ञानीओं पर। उन्हें पता ही नहीं कि वह जननी शक्ति, श्रृष्टि शक्ति को नकारात्मक दृष्टि से देख रहे हैं। देव उनपर कृपा बरसाये रखे जो योनि पूजा का महत्त्व जानते हीं नहीं हैं। उन्हें इस सत्यता का पत्ता ही नहीं हैे की योनी पूजा के बिना कोई भी साधना पूर्ण नहीं है। लेखक ने लिखा था की बहूत बडी कृपा हुई है कि हमें ये अति महत्त्वपूर्ण ज्ञान मिला है और हमे शक्ति साधक बनाया। योनिपूजा से ही हम साधना, शक्ति साधना, कुंडलिनी साधना और भी बहूत साधना मार्ग पर अग्रसर हो सकते है और सफलता प्राप्त कर सकते है।
लिंग पूजा पूरे विश्व में होती है। सभी बड़ी ख़ुशी के साथ करते हैं, पर योनिपूजा के नाम पर नाक भौं सिकुड़ता है। जबकि सम्पूर्ण विश्व का मूल उत्पत्ति कारक यही योनी है ।
महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित एक प्राचीन कामशास्त्र ग्रन्थ है। यह विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान कामसूत्र का है। महर्षि के कामसूत्र ने न केवल दाम्पत्य जीवन का शृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी सम्पदित किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा खजुराहो, कोणार्क आदि की जीवन्त शिल्पकला भी कामसूत्र से अनुप्राणित है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं तो गीत गोविन्द के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका 'रतिमंजरी' में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है।
वात्स्यायन ने कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है। उन्होने धर्म-अर्थ-काम को नमस्कार करते हुए ग्रन्थारम्भ किया है। धर्म, अर्थ और काम को 'त्रयी' कहा जाता है। वात्स्यायन का कहना है कि धर्म परमार्थ का सम्पादन करता है, इसलिए धर्म का बोध कराने वाले शास्त्र का होना आवश्यक है। अर्थसिद्धि के लिए तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं इसलिए उन उपायों को बताने वाले अर्थशास्त्र की आवश्यकता पड़ती है और सम्भोग के पराधीन होने के कारण स्त्री और पुरुष को उस पराधीनता से बचने के लिए कामशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है।
वात्स्यायन का दावा है कि यह शास्त्र पति-पत्नी के धार्मिक, सामाजिक नियमों का शिक्षक है। जो दम्पति इस शास्त्र के अनुसार दाम्पत्य जीवन व्यतीत करेंगे उनका जीवन काम-दृष्टि से सदा-सर्वदा सुखी रहेगा। पति-पत्नी आजीवन एक दूसरे से सन्तुष्ट रहेंगे। उनके जीवन में एकपत्नीव्रत या पातिव्रत को भंग करने की चेष्टा या भावना कभी पैदा नहीं हो सकती। आचार्य का कहना है कि जिस प्रकार धर्म और अर्थ के लिए शास्त्र की आवश्यकता होती है उसी प्रकार काम के लिए भी शास्त्र की आवश्यकता होने से कामसूत्र की रचना की गई है।
योनी तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे कहते हैं की-भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वह अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था। जिसमें तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है। शक्ति को महायोनी स्वरूपिणी' कहा जाता है। जिसका अर्थ हुआ सभी को पैदा करने वाली।
नीचे लेखक का नोट था: लेखक ने केवल अपना अनुभव लिखा है यह मुद्रा विशैषज्ञ की देख रेख में ही सीखने के बाद करे। तंत्र विद्या में गुरु का बहुत विशेष महत्त्व हे।
आप को सारिरीक क्षति हो शकती हे।
सावधानी रखे ये लेख केवल ज्ञान के लिए है।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार
नोट 1. निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।
2. जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में ने पूरी विधि और नियम विस्तार से समझायी हुई है।