औलाद की चाह 085

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परिधान की आजमाईश.
809 words
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153
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Part 86 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update-33

परिधान की आजमाईश

संभवत: पहली बार इस नई पैंटी को पहनकर मेरी आवाज में ख़ुशी झलक रही थी। मुझे और सम्भवता मास्टरजी और दीपू को भी पता था कि मैंने उस समय मैंने अंतर्वस्त्रो के अलावा कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उन्हें पहने हुए ही मैं मास्टर-जी को उत्तर दे रही थी।

इसलिए, मैंने दरवाज़े के ऊपर से महायज्ञ में पहने जाने वाली मिनी स्कर्ट को ज़ोर से खींच कर उतार लिया वह आशा के अनुसार बहुत छोटा थी और उसे पहने के बाद मैंने देखा मेरी संगमरमर जैसी गोरी और केते के तने जैसी चिकनी जांघें पूरी तरह से उजागर हो गईं।

मास्टर-जी: स्कर्ट की फिटिंग कैसी है? ठीक है क्या?

मुझे पता था कि वह देख रहे थे कि स्कर्ट टॉयलेट के दरवाजे के ऊपर से गायब हो गई थी और मास्टरजी और दीपू ने अनुमान लगाया था कि अब मैंने स्कर्ट पहन ली होगी।

मैं: हम्म।

मास्टर जी: मैडम आप बहुत संतुष्ट लग नहीं रहे हो। विशेष रूप से स्कर्ट के साथ कोई समस्या है क्या?

मैं: नहीं, नहीं। फिटिंग ठीक है। मैं अभी भी इसकी छोटी लंबाई इसके बारे में चिंतित हूँ ।

मास्टर-जी: ओहो! मुझे पता है लेकिन इसके बजाय आपको भाग्यशाली महसूस करना चाहिए मैडम।

मैं-ऐसा क्यूँ?

जब मैंने जवाब दिया तब मैं अपनी स्ट्रैपलेस ब्रा के ऊपर चोली पहनने वाली थी।

मास्टर-जी: महोदया, कुछ साल पहले तक महा-यज्ञ में भाग लेने वाली महिलाओं को बिलकुल नंगी रहना पड़ता था!

दीपू: सच में मास्टर-जी?

मैंने सुना कि दीपू अपनी नाक से इस में मजे दार मसाले सूंघ रहा है।

मास्टर-जी: दीपू बेटा, यह एक पवित्र जगह है और आपको इसे अलग कोण से नहीं देखना चाहिए।

दीपक: सॉरी मास्टर-जी।

मास्टर-जी: मुझे भी महा-यज्ञ में आने या उपस्तिथ होने की अनुमति नहीं है, लेकिन मैंने कुछ साल पहले एक महिला को पवित्र कुंड से बाहर आते देखा था क्योंकि उस समय मैं किसी काम के लिए आश्रम आया हुआ था।

दीपू: नंगी?

क्या? ये नंगी शब्द सुन कर मुझे मिनाक्षी की बात याद आ गयी । ईमानदारी से अब मैं भी अपने भीतर जिज्ञासा महसूस कर रही थी। मैं सोचने लगी, मेरे लिए भविष्य के गर्भ में और क्या-क्या है?

मास्टर-जी: हाँ दीपू।

दीपू: आपके कहने का मतलब है कि आपने आश्रम के मध्य में मैडम जैसी विवाहित महिला को उस टब से निकलते देखा है? और वह भी बिलकुल नग्न।

मास्टर-जी: मैंने तुमसे कहा था दीपू!

दीपू: नहीं, नहीं, मैं तो बस, उत्सुकतावश पूछ रहा था मास्टर-जी!

मास्टर-जी: मैडम, क्या आपने चोली को आजमाने या पहनने की कोशिश की है?

मास्टर जी की बात सुन कर जैसे मैं अचानक नींद से जाएगी और मैंने चोली पहनना शुरू किया और इस बार मैं काफी चकित थी ब्लाउज मेरे आधे स्तन को उजागर कर रहा था। जैसा कि मैंने ब्लाउज को पहना तो देखा मेरे ब्लाउज की चकोर नेकलाइन ने मेरे दोनों स्तनों को उस तरह से ऊपर से उजागर किया था मानो वह उछल कर बाहर आना चाहते हो। ब्लाउज की ऊपरी खुले हुए चकोर ने मेरी छाती और स्तनों के ऊपरी हिस्सों को खोलकर उजागर कर दिया था और जब मैंने पूरी चोली पहन ली तो मैं यह नोट करते हुए चौंक गयी कि नेकलाइन मेरे ब्रा कप के ठीक ऊपर तक गहरी थी।

इसके अलावा, मेरे ब्लाउज का सबसे ऊपरी हुक भी ठीक से बंद नहीं-नहीं हो रहा था, क्योंकि थ्रेड लूप बहुत छोटा था। इसलिए मेरे सफ़ेद स्ट्रैपलेस चोली का एक हिस्सा मेरे ब्लाउज के ऊपर भी दिखाई दे रहा था और साथ ही एक इंच से अधिक स्तनों के बीच की दरार भी ढकी हुई न होकर उजागर थी।

मैं: मास्टर-जी!

मुझे अपनी समस्या व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं मिले।

मैं: बस एक मिनट।

मास्टर-जी: हाँ, मैडम?

मैंने बाथरूम से बाहर निकलने का फैसला किया और फिर मास्टर-जी के साथ बातचीत की। ऐसा करने से पहले मैंने टॉयलेट में लगे लाइफ साइज मिरर में अपनी छवि को देखा। कम से कम कहें तो उस पोशाक में बहुत सेक्सी लग रही थी।

मैंने अपने ब्लाउज को थोड़ा समायोजित करने की कोशिश की, लेकिन असफल रही, क्योंकि यह मेरे बड़े प्रचुर ग्लोब पर पूरी तरह से फिट था। मैंने टॉयलेट का दरवाजा खोला और बाहर निकल आयी। उम्मीद के मुताबिक दीपू उस सेक्सी ड्रेस में मुझे देख कर खुश हो गया।

दीपक: ऐ आयी ला! मैडम, आप इस सफेद पोशाक में बहुत अच्छी लग रही हैं।

मैंने उसकी टिप्पणी को नजरअंदाज किया और मास्टर-जी को अपने ब्लाउज के शीर्ष हुक की ओर इशारा किया।

मैं: मास्टर जी, मैं इसे बंद नहीं कर सकी।

मास्टर-जी: क्यों? क्या हुआ मैडम?

मैं उनके सामने ही अपने दोनों हाथों को मेरे वक्षस्थल मध्य तक ले आयी और हुक को हुक के पाश में डालने की कोशिश की, लेकिन फिर से विफल हो गयी, क्योंकि धागे का लूप बहुत छोटा था। (चोली आगे से बंद होती थी।)

मास्टर-जी मेरे पास आए।

कहानी जारी रहेगी

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