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Click hereरॉय ने मुम्बई में वो सब कुछ पाया था जिसकी उसे चाह थी । बड़ा और सफल व्यापार था,इसलिए पहली पत्नी की मौत के बाद विशाखा जैसी खूबसूरत पत्नी से उसने दूसरी शादी की थी । विशाखा का पहले से ही एक बेटा अमन और एक बेटी अलीशा भी थी, जो पिछले साल ही अठारह के हुए थे । पैंतालीस साल की उम्र में भी रॉय ने खुद को मजबूत बना रखा था । पत्नी के साथ अभी भी बिस्तर पर भरपूर मजे लेता । बेटे और बेटी के साथ सैर पर जाता और जीवन का हर सुख लेता । उसकी सभी तमन्नाएं पूरी हो चुकी थीं, बस एक को छोड़कर ।
बचपन से ही रॉय के अंदर औरतों के प्रति गुलामी के भाव पैदा हो गए थे । जवान होते-होते ये भावनाएं बढ़ गयी थीं। इन्टरनेट की दुनिया मे अब वो अब 'फेमडम' पोर्न की ओर चल पड़ा था । गुलाम मर्दों पर क्रूर औरतों के ज़ुल्मों वाले वीडियो और फ़ोटो का एक बड़ा कलेक्शन उसके पर्सनल लैपटॉप में हमेशा रहता । उसकी ख्वाहिश थी कि वो भी किसी विदेशी डॉमिनेट्रिक्स के कंट्रोल में गुलामो की ज़िंदगी जिये । इंडिया में ये हो पाना सम्भव नही था । और यूरोप के किसी देश मे लंबे समय के लिए जाना बिज़नेस के लिए समस्या हो सकता था ।
इसलिए अभी तक इंटरनेट पर ही वो अपनी फैंटेसी को जमकर पूरा कर रहा था । ऐसे ही एक दिन आफिस में किसी पोर्न साइट पर गुलामों को हंटर से पीटने के वीडियो देखते वक्त उसकी नज़र एक ऐड पर पड़ी । उस ऐड में इस बात का दावा किया गया था कि गुलामों की सबसे बड़ी ट्रेनिंग दुनिया की क्रूरतम डॉमिनेट्रिक्स के कंट्रोल में किसी सीक्रेट आइलैंड पर होने वाली थी । पूरी जानकारी के लिए दिए गए मेल के पते पर ईमेल करना था । रॉय का दिल ज़ोर से धड़कने लगा था । उसने कुछ देर सोचने के बाद उस मेल पर अपना ईमेल भेज दिया और आफिस के काम मे लग गया ।शाम तक उधर से कोई जवाब नही आया था ।
इसी तरह बेचैनी के दिन बीतते रहे और दो हफ्तों तक कोई रिप्लाई नही आया। रॉय को लगा कि वो किसी तरह का स्कैम था । लेकिन अचानक एक दिन उसके पास उसके मेल का जवाब आया । जवाब 'लेडी डी' नाम की रहस्यमयी मिस्ट्रेस की तरफ से था । जिसमे रॉय से उसका नाम, शहर और देश का नाम, उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति और गुलामी के वास्तविक अनुभव के बारे में पूछा गया था । रॉय ने हर एक चीज का जवाब दिया और उधर से जवाब का इंतज़ार करने लगा । दो घण्टे बाद 'लेडी डी' की तरफ से आखिरी जवाब आया । जवाब के हिसाब से रॉय को अगले महीने की तीन तारीख को लंदन पहुंचना था, जहां से उसे आगे की ट्रेनिंग की पूरी जानकारी मिलती ।
गुलामों की ट्रेनिंग के लिए पेमेंट भी वहीं से होना था ।रॉय के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी । ट्रेनिंग पंद्रह दिन की थी, जिसके लिए इक्कीस हज़ार यूरो ट्रेनिंग फीस थी, जो कि लगभग पच्चीस लाख भारतीय रुपये के बराबर था। आने जाने और रुकने का खर्च पांच से दस लाख के अंदर ही था । ये खर्चे रॉय के बजट में थे इसलिए उसने अगले महीने लंदन जाने का फैसला कर लिया ।लेकिन सबसे बड़ी समस्या बेटी अलीशा की तरफ से आ गयी । वह भी रॉय के साथ लंदन जाने की ज़िद करने लगी। विशाखा और अमन ने उसे समझाया कि रॉय काम के मामले में लंदन जा रहा है लेकिन अलीशा कुछ भी सुनने को तैयार नही थी । रॉय का सारा प्लान खतरे में था । उसने अलीशा को समझाया कि लंदन से किसी और जगह भी जाना पड़ सकता है । अलीशा इस बात पर अड़ी थी कि अगर 'पापा लंदन से कहीं और जाते हैं तो भी वो अकेले लंदन घूम लेगी ।' रॉय को कुछ उम्मीद जगी लेकिन जवान बेटी को अकेले लंदन में किसी होटल में छोड़ना उसे ठीक नही लग रहा था ।
'तो तुमने तय कर लिया है कि तुम लंदन चलोगी?'-रॉय ने अकेले में अपनी सौतेली बेटी अलीशा से पूछा ।
'हाँ '-अलीशा ने जवाब दिया ।
रॉय ने कुछ सोचकर कहा,-' ठीक है लेकिन हो सकता है कि मैं पंद्रह दिन के लिए बाहर रहूं, उस दौरान तुम्हे अकेले होटल में ध्यान से रखना होगा।'
अलीशा इसके लिए राज़ी हो गयी ।
रॉय का ये पूरा महीना जिम में अच्छी कसरत में बीता था । गुलामों की ट्रेनिंग कठोर होने वाली थी इसलिए ताकत का होना बहुत जरूरी था । उधर अलीशा लंदन जाने के लिए पूरी तैयारी कर चुकी थी । वीज़ा मिलने में कोई समस्या नही हुई । रॉय में इंटरनेशनल ट्रांजेक्शन के डेबिट-क्रेडिट कार्ड भी रख लिए थे । जरूरत भर की यूरो करेंसी और ऑनलाइन बैंकिंग के सारे जरूरी रिकार्ड्स भी रख लिए थे । अगले महीने की एक तारीख की फ्लाइट से अलीशा और रॉय लंदन पहुंच चुके थे । एक होटल में रूम लेकर दोनों लंदन शहर घूमने चल पड़े। रॉय ने 'लेडी डी' के दिये नम्बर पर कॉल करके अपने पहुंचने की खबर कर दी थी । 'लेडी डी' ने उसे एक जहाज़ का नाम और पोर्ट की लोकेशन दी अगर सख्त हिदायत दी कि तीन तारीख की रात दो बजे वो उस पोर्ट पर पहुंच कर उस जहाज़ में अपनी जगह लेले। रॉय को अपने साथ बस दो कपड़े और उसका मोबाइल फ़ोन लाने की अनुमति थी । रॉय ने 'लेडी डी' की सभी शर्तें मान ली ।
दो तारीख की रात को होटल के रेस्टोरेंट में डिनर के बाद अलीशा और रॉय अपने कमरे में आ चुके थे । अलीशा दिन भर घूमने के बाद इतना थक चुकी थी कि रात नौ बजे ही सो गई थी । रॉय ने एक छोटे बैग में अपने कपड़े, बैंकिंग के जरूर कागज़ और मोबाइल रखे और रात दो बजने का इंतजार करने लगा । समय तेजी से बीत रहा था और जल्द ही रॉय होटल से बाहर आ गया । तय समय पर पोर्ट पर उसे वो जहाज़ मिल गया । उसे उसके अंदर आने से किसी ने नहीं रोका । कैप्टन के आफिस के बगल में एक कमरे में उसे भेजा गया । जब वह उस कमरे में पहुँचा तो वहाँ एकदम अंधेरा था । अचानक एक झटके से कमरे का दरवाजा बंद हुआ । उसे किसी गैस की गंध महसूस हुई और अगले तीस सेकेंड में वह बेहोश होकर गिर गया ।उधर अलीशा की नींद सुबह चार बजे खुली तो उसने देखा कि उसके पापा नहीं थे । वो मुस्कुराई और फिर से सो गई।
हंटर की मार से रॉय की नींद खुली तो उसने जो देखा उससे उसके होश उड़ गए । वो पूरी तरह से नंगा, जहाज़ के एकदम निचले हिस्से में था जहां उसी की तरह बाकी उनतीस गुलाम नंगे, हाथों में चप्पू चला रहे थे। सभी के हाथ-पैर मोटी जंजीरों से बंधे हुए थे । और उन सभी पर बस एक अकेली मिस्ट्रेस लगातार हंटर बरसा रही थी । रॉय ने अब तक जो भी 'फेमडम पोर्न' में देखा था, वो उसके सामने था और वो भी एकदम क्रूर और निर्दयता के साथ । उस मिस्ट्रेस ने एक कैटसूट और जांघ की ऊंचाई वाले ऊंची हील के बूट्स पहने थे । उसके हाथ मे मोटे चमड़े का आठ फ़ीट लंबा हंटर था, जो लगातार गुलामों की नंगी पीठ पर बरस रहा था । रॉय को मिलाकर वहां कुल तीस गुलाम थे ।
रॉय की पीठ पर हंटर की मार से लाल निशान पड़ने लगे थे । हंटर की आवाज़ इतनी डरावनी थी कि जिस गुलाम की पीठ पर वो पड़ता, अगल-बगल के गुलाम डर से कांप उठते । उस मिस्ट्रेस ने अब तक सभी गुलामों को कम से कम चालीस हंटर मारे थे । कुछ गुलामों के लन्ड और अंडों को अपने बूट्स के नीचे कुचलकर उन्हें थप्पड़ मारती हुई वो मिस्ट्रेस उन्हें जर्मन भाषा में गालियां दे रही थी । रॉय समझ चुका था कि उसकी ट्रेनिंग शुरू हो चुकी थी । कुछ देर के बाद उस मिस्ट्रेस ने एक जगह रुककर अंग्रेजी में बोलना शुरू किया,-"तुम सब कुत्तों की ट्रेनिंग यहां से शुरू होती है । तुम सबको गुलामों की ज़िंदगी के हर उस पहलू से रूबरू कराया जाएगा जिसे तुमने कभी सोचा नही होगा । तुम्हारे सभी सामान हमारी संस्था के पास सुरक्षित हैं, जो तुम्हे ट्रेनिंग पूरी होने के बाद दे दिए जाएंगे ।"
रॉय ने आस पास देखकर गुलामों को समझने की कोशिश की । सभी के सभी अंग्रेज थे । शायद सभी यूरोप के अन्य देशों के रहने वाले थे। सभी की उम्र तीस से पचास के बीच समझ आ रही थी ।कुछ देर में जहाज़ रुका । मिस्ट्रेस ने सभी गुलामों को अपनी जगह से उठने का आदेश दिया और जहाज़ के बाहर आ गयी। सभी गुलामों के गले मे बंधे लोहे के मोटे पट्टे से एक मोटी चेन बंधी गयी थी, जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी । सभी गुलाम लाइन से जहाज़ के बाहर आये । इससे पहले की वो कुछ देख पाते, वो जहाज़ वापस चला गया । सभी गुलाम एक सीक्रेट आइलैंड पर थे जहां दूर-दूर तक बस समुंदर ही दिखाई दे रहा था । वो मिस्ट्रेस, जो सभी गुलामों को यहां तक लायी थी, उसने कहना शुरू किया,"- पैंडोरालैंड में तुम कुत्तों का स्वागत है ।
मैं यहां की 'मेम्बर वार्डन' लेडी एम हूँ और अगले पंद्रह दिन तक तुम सबकी ट्रेनिंग यहीं होगी । हम जिस शिप से आये हैं, उसने हमारे लिए राशन और जरूरी सामान अनलोड किया है, जिसे तुम सबको लेकर पैंडोरा कैपिटल तक ले चलना होगा, जो कि यहाँ से तीन मील दूर है ।" लेडी एम ने पास में रखे बड़े आकार की पंद्रह घोड़ागाड़ियों की ओर इशारा किया, जिसमें घोड़ों की जगह दो-दो गुलामों को जोता जाना था ।सभी गुलामों ने सारे सामान को बराबर करके उन बग्घियों में लाद दिया । एक बग्घी में लेडी एम खुद बैठ गईं और सभी गुलामों को बढ़ने का आदेश दिया ।
सुबह के ग्यारह बजे थे और धूप की वजह से आइलैंड की रेत एकदम गर्म हो चुकी थी। उसपर नंगे पैर, जलती धूप में बिना कपड़ों के उस भारी बग्घी को लेकर चलना मुश्किल हो रहा था। हंटर की मार से जो खूनी निशान सभी गुलामो के नंगे बदन पर थे, उन पर पसीने की बूंदे पड़ने लगी थीं, जिसकी वजह से गुलामों को घातक जलन हो रही थी। अभी तक किसी भी गुलाम को पीने के लिए पानी तक नही मिला था । रॉय का भी बुरा हाल था । उस बग्घी को जानबूझकर भारी बनाया गया था, जिससे गुलामों को जरूरत से ज्यादा मेहनत करनी पड़े ।तीन मील की दूरी तय करने में उन सभी गुलामों को एक घण्टे का समय लगा था। उसके बाद वो सभी पैंडोरा कैपिटल पहुंच चुके थे । पैंडोरा कैपिटल उस आइलैंड के एकदम बीच मे बना था, जिसके चारों ओर बीस फ़ीट ऊंची कंक्रीट की मोटी दीवार थी और आने-जाने का एकमात्र रास्ता वो बड़ा सा दरवाजा था, जिसके सामने रॉय और बाकी गुलाम बग्घियां लेकर अभी खड़े थे । लेडी एम ने अपनी बग्घी दरवाजे के सामने रुकवाई और दरवाजे पर लगे एक बटन को दबाया ।
दो मिनट में वो दरवाजा खुल गया । सभी गुलाम अंदर जा चुके थे । लेडी एम सबसे आखिरी में अंदर आयीं और उन्होंने दो गुलामों को दरवाजा बंद करने का आदेश दिया । पैंडोरा कैपिटल अंदर से किसी भी राजमहल से कम नहीं था लेकिन वहां अभी कोई नज़र नहीं आ रहा था । लेडी एम ने दायीं ओर बने एक बड़े से हॉल में सब सामान पहुंचाने का आदेश दिया और उस हॉल के ठीक सामने बने एक ऑफिस में चली गईं । रॉय और बाकी गुलाम अपनी-अपनी बग्घियां खींचते हुए उस हॉल में पहुंच गए ।वो हॉल जरूरत से ज्यादा बड़ा था । उसमें फुटबॉल के कम-से-कम तीन मैदान समा सकते थे । सभी गुलामों ने अपनी अपनी बग्घियों से सामान उतारा और एक कोने में बने बड़े से किचन में रख दिया । सभी गुलाम अब तक थक कर चूर हो चुके थे। सभी को पानी की तलाश थी । लेकिन वहां पानी नही था ।
शिप के सफर के दौरान नंगी पीठ पर लगे हंटर के निशान अब खत्म होने लगे थे लेकिन उनकी जलन बरकरार थी। सभी गुलाम नंगे बदन ही जमीन पर बैठ गए ।थकान की वजह से कुछ तो सो गए थे । बाकी बस अपनी चोटों को सहलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मोटी जंजीरो से बंधे होने के कारण उनके हाथ पीठ तक नही पहुंच पा रहे थे । भूख-प्यास से सभी का बुरा हाल था । जो जग रहे थे, उनमे इतनी ताकत नही थी कि वो आपस मे बात कर सकें। करीब एक घंटे बाद एक नई मिस्ट्रेस उस हाल में आईं । उन्होंने अपना परिचय 'लेडी जे' के रूप में दिया । अंग्रेजी के लहजे से स्पष्ट था कि लेडी जे ब्रिटिश थीं। उनकी उम्र पच्चीस साल से ज्यादा नही लग रही थी। लेडी एम की तरह उन्होंने भी काले रंग का कैटसूट पहन रखा था । उनके हाथ मे पैंडोरा के गुलामों की 'रुलबुक' थी, जिसमे गुलामों की ट्रेनिंग के सभी नियम लिखे थे । इन नियमो का पालन सभी गुलामों के लिए जरूरी था ।
गुलामों में अनुशासन बना रहे इसलिए नियम तोड़ने की सजा कठोरतम रखी गयी थी । लेडी जे ने वो रुलबुक गुलामों के सामने फेंक दी और आदेश दिया कि उसे अच्छे से पढ़-समझ के सभी गुलाम ठीक तीस मिनट बाद सामने वाले बड़े मैदान में पहुंचे।'रुलबुक' के नियम एकदम साफ थे । पंद्रह दिन की ट्रेनिंग में गुलाम पर इतने ज़ुल्म कर दो कि वो अपनी मालकिन की दया पर जीते रहने को ही अपना सबसे बड़ा सुख समझें। सभी गुलामों को अगले पंद्रह दिन तक नंगे ही रहना था । सभी को सुबह चार बजे उठकर मैदान में पहुंचना था, जहाँ बिजली पैदा करने वाले 'मैन्युअल टरबाइन' को पांच घण्टे तक चलाना था। 'मैन्युअल टरबाइन' जमीन पर लगा एक बड़े पहिये जैसा था, जिसके ठीक बीच में जनरेटर था और चारो तरफ दस पंखे लगे थे। ये पंखे लकड़ी की मोटी और लगभग दस फ़ीट लंबी बल्ली के बने थे।
सभी बल्लियों पर तीन-तीन गुलामों को लगाया जाता था, जो धक्का देते थे। एक साथ तीस ग़ुलाम जब इसे धकेलते तो टरबाइन चारो ओर घूमता और अंदर से बिजली पैदा होती, जिसका कनेक्शन पैंडोरा के पावरहाउस से था । पांच घण्टे लगातार चलने से इतनी बिजली स्टोर हो जाती थी कि अगले बीस घण्टे तक सभी मिस्ट्रेस के कमरों में लाइट और पंखे चल सकते थे ।गुलामों को टरबाइन के काम मे मॉनिटर करना सबसे ज्यादा जरूरी था क्योंकि बिना बिजली के वहां कोई काम नहीं हो सकता था, और आइलैंड पर बिजली का कोई और साधन नहीं था । गुलाम लगातार पांच घण्टे तक बिना रुके टरबाइन चलाते रहें, इसके लिए पैंडोरा की सबसे क्रूर मिस्ट्रेस 'लेडी सिग्मा' को सुबह चार बजे से नौ बजे तक कि ड्यूटी पर लगाया जाता था ।
लेडी सिग्मा के हाथ मे दो इंच मोटा और करीब बारह फ़ीट लंबा एक हंटर रहता था, जिसे वो दूर खड़े होकर भी घुमा सकती थीं और एक साथ एक पंखे पर लगे तीन ग़ुलामों की नंगी पीठ और गांड पर हंटर का मोटा निशान बना सकती थीं। इससे ज्यादा अमानवीय सजा किसी गुलाम के लिए कुछ नही सकती थी। रॉय ने जब इस नियम को पढ़ा तो उसे महसूस हुआ कि पंद्रह दिन की यह ट्रेनिंग वास्तव में नरक जैसी थी । टरबाइन ट्रेनिंग के दौरान गुलामों को खाने के लिए कुछ नही दिया जाता था। सभी को बस पानी की एक-एक बोतल ही दी जाती थी । अगला नियम सुबह नौ बजे के बाद के कामों का था । नौ बजे टरबाइन से हटने के बाद लेडी सिग्मा वापस पैंडोरा पैलेस के अंदर चली जातीं थी । पैंडोरा में गुलामों की ट्रेनिंग के लिए कुल दस मिस्ट्रेस थीं।
सुबह नौ बजे के बाद सभी गुलाम वापस उस हॉल में जाते, जहां किचन बना हुआ था । सभी गुलामों को अगले एक घण्टे में सभी मिस्ट्रेस के लिए उनके मनपसन्द नाश्ते बनाने होते थे । किचन की मॉनिटरिंग लेडी जेन के जिम्मे थी। लेडी जेन के रहते कोई भी गुलाम खाने-पीने का कोई सामान न तो चुरा सकता था और न ही खा सकता था । खाने की चोरी की सजा के तौर पर गुलाम को एक दिन के लिए बिना खाने-पीने के मैदान के बीच मे लगे खंभे से मोटी जंजीरों में बांध दिया जाता था और सभी दस मिस्ट्रेस को उस गुलाम पर बीस-बीस कोड़े बरसाने का अधिकार था । ऐसी सजा के डर से कोई भी ग़ुलाम पैंडोरा में चोरी करने की सोच भी नहीं सकता था ।
ठीक दस बजे सभी गुलाम नाश्ता लेकर पैंडोरा पैलेस में घुसते और हर एक मिस्ट्रेस के लिए तीन गुलाम सेवा में लगे रहते । मिस्ट्रेस के नाश्ते के बाद सभी गुलामों को नाश्ता मिलता था । गुलामी के लिए उनकी सेहत बनी रहे इसलिए नाश्ते में उन्हें पांच केले, एक ग्लास जूस और प्रोटीन बार मिलता था । साथ मे एक बोतल पानी दिया जाता । सुबह ग्यारह बजे के बाद किसी भी गुलाम को नाश्ता नही दिया जाना था । ग्यारह बजे से दो बजे तक का समय पैंडोरा कैपिटल के बाहर बीतता था । इस समय सभी गुलाम और सभी मिस्ट्रेस बाहर आ जाते ।इन तीन घण्टों में सभी ग़ुलामों को अपनी-अपनी मिस्ट्रेस को बग्घियों पर बैठाकर आइलैंड के चारो ओर चक्कर लगाना होता था । ये पूरा चक्कर करीब पांच मील का था और एक बग्घी में सीधी लाइन में तीन ग़ुलामों को इस तरह से जोता जाता था कि उनकी नंगी पीठ और गांड हमेशा मिस्ट्रेस के हंटर के निशाने पर थी ।
मिस्ट्रेस की सैर के लिए बनी ये बग्घी कुछ अलग थी । इसके पहिये बड़े थे और इसका प्लेटफार्म बड़ा था, जिसपर बड़े से सोफ़े की तरह बैठने की कुर्सी लगी थी, उसके ऊपर बड़ा भारी से छाता लगा था, जिससे मिस्ट्रेस को धूप न लगे । इस सैर के लिए सभी मिस्ट्रेस को पूरा अधिकार था कि वो एक से ज्यादा चक्कर ग़ुलामों से लगवा लें। कभी कभी तो दसों बग्घियों में रेस भी लगती, जिसे जीतने के लिए मिस्ट्रेस ग़ुलामों पर लगातार और बहुत तेज हंटर बरसाती थीं । जीतने वाली मिस्ट्रेस को संस्था की तरफ से सर्टिफिकेट भी दिया जाता था, और उस मिस्ट्रेस के तीनों ग़ुलामों की किसी एक सजा को एक-चौथाई कर दिया जाता था । दो बजे रेस खत्म होने के बाद सभी गुलाम बग्घी को साफ करके वापस अंदर लाते और मिस्ट्रेस के गंदे हो चुके बूट्स को अपनी जीभ से चाटकर साफ करते ।
उसके बाद मिस्ट्रेस वापस अपने पैलेस में नहाने के लिए चली जातीं । इधर सभी गुलाम दोपहर के लंच की तैयारी में लग जाते । ठीक तीन बजे गुलाम वापस पैलेस में आते और मिस्ट्रेस को लचं कराते । बचे हुए लंच को मिस्ट्रेस अपने बूट्स से कुचल देतीं थी, उसके बाद ही ग़ुलामों को जमीन से ही जीभ से चाटकर लंच करने की अनुमति थी। पैंडोरा ने इस तरह से मानसिक गुलामी की ट्रेनिंग भी दी जाती थी। इसके बाद तीन-तीन ग़ुलामों को शाम छः बजे तक एक-एक मिस्ट्रेस की पर्सनल सर्विस में लगाया जाता था । हर दिन सभी को बदल दिया जाता था जिससे सभी गुलाम, सभी मिस्ट्रेस की सर्विस कर सकें।'पर्सनल सर्विस' के तीन घण्टे में मिस्ट्रेस का ग़ुलामों पर पूरा अधिकार था । इस दौरान बड़े-बड़े स्ट्रैपॉन डिल्डो से मिस्ट्रेस ग़ुलामों की गांड़ को चोदती थीं। कुछ ग़ुलामों को बांधकर उनके लन्ड और अंडों पर बूट्स से ठोकरें मारी जातीं ।
इन तीन घण्टों सबसे बड़ा चैलेंज ये था कि किसी भी मिस्ट्रेस के पैर जमीन पर नही पड़ते थे । कोई न कोई गुलाम हमेशा अपनी हथेलियों या अपने बदन को जमीन पर रखता और मिस्ट्रेस उसी पर अपने पैर रखतीं। सर्विस टाइम में ही ग़ुलामों के दिन भर के काम की मार्किंग की जाती थी और उनकी गलतियों को भी नोट किया जाता था । शाम छः बजते ही ग़ुलामों को 'कोर्ट रूम' में भेज दिया जाता था । कोर्ट रूम में लेडी अल्फा को जज के रूप में रखा गया था । लेडी अल्फा पैंडोरा की सबसे अनुभवी मिस्ट्रेस थीं। उनकी उम्र पैंतीस साल थी और वो पिछले पंद्रह साल से मिस्ट्रेस के तौर पर काम कर रहीं थीं। कोर्ट रूम शाम सात बजे तक चलता था और सभी मिस्ट्रेस की रिपोर्ट के आधार पर ग़ुलामों की ट्रेनिंग की रिपोर्ट ली जाती और सुबह से शाम तक कि गलतियों और नियम तोड़ने की सजाएं सुनाई जातीं थीं।
किसी मिस्ट्रेस की ओर आंखें करके देखने की सजा सौ बेंत थी, जो उस मिस्ट्रेस की तरफ से बरसाए जाते थे, जिसकी ओर गुलाम ने आंखे उठाकर देखी थी ।अगर कोई गुलाम अपने लन्ड को छूता हुआ पकड़ा जाता तो उसे पचास कोड़े मारे जाते थे, और साथ मे सभी मिस्ट्रेस उसके अंडे और लन्ड पर बूट्स पहन के दस ठोकरें मारती थीं। 'पर्सनल सर्विस' में मिस्ट्रेस की संतुष्टि न होने पर गुलाम को बीच मैदान में उल्टा लटका के उसकी गांड़, पेट और पीठ पर चाबुक और बड़े हंटर से पांच सौ स्ट्रोक्स मारने की सजा दी जाती थी । सबसे बड़ी सजा किसी आदेश को न मानने की थी । यह सजा बस इस डर को बनाये रखने के लिए थी कि गुलाम अपनी मालकिन के किसी आदेश को मना नही कर सकता था ।
इसकी सजा में उस गुलाम को चौबीस घण्टे के लिए बिना खाने के रखा जाता था, पानी की बस एक बोतल की परमिशन थी, टरबाइन को एक घण्टे तक अकेले घुमाना पड़ता था, उसकी गर्दन और पैर को बांधकर उसे इस तरह बैठाया जाता था कि उसकी गांड़ का छेद ऊपर आ जाता था जिसमे बहुत ही मोटी और लंबी मोमबत्ती लगा दी जाती थी, जो कि पूरे एक घण्टे तक जलती थी और गरम मोम पिघलकर उसकी गांड़ और लन्ड तक फैल जाती थी। इसके बाद उस ग़ुलाम को एक ऐसी बग्घी में जोत दिया जाता था, जिसमे दसों मिस्ट्रेस बैठ सकती थीं और तब उस गुलाम को उस बग्घी को खींचकर पैंडोरा कैपिटल के बीच वाले मैदान का एक पूरा चक्कर लगाना होता था ।
इतनी सजाओं के बाद सबसे आखिर में उस ग़ुलाम एक हजार कोड़े मारने की सजा का ऐलान होता था । यह सजा सभी दस मिस्ट्रेस सौ-सौ कोड़ों के हिस्से में देती थीं। इसके लिए लंबे हंटर, पतले चमड़े के चाबुक और बेंत की गीली लकड़ी का इस्तेमाल होता था । इस सजा के बारे में जब सभी ग़ुलामों ने जाना तो उन्होंने कसम खायी की कभी किसी मिस्ट्रेस के आदेश को मना नहीं करेंगे । लेकिन इस सजा को कम करने का अधिकार उस मिस्ट्रेस को था जिसके आदेश को गुलाम न नही माना था, लेकिन उसके बदले में उस गुलाम को उस मिस्ट्रेस को दस हज़ार यूरो की पेनाल्टी देनी पड़ती थी। कोर्टरूम से दी गयी सजाओं को रात के खाने के बाद पूरा किया जाता था ।
कोर्टरूम की सुनवाई खत्म होने के बाद सभी गुलाम रात का डिनर बनाते और रात नौ बजे तक सभी मिस्ट्रेस को खाना खिला देते थे । सभी मिस्ट्रेस अपना खाना खत्म करने के बाद सजाओ को पूरा करतीं थी । रात बारह बजे तक कोड़े मारने, हंटर से पीटने, घोड़े की बग्घियों में जोत कर सैर करने जैसी सजाएं चलती रहती जिसकी वजह से पूरे पैंडोरा कैपिटल में ग़ुलामों की चीख सुनाई देती । कुछ ग़ुलामों पर तो सुबह से रात तक इतने हंटर पड़ चुके होते थे कि उनकी गांड़ और पीठ की त्वचा फट जाती और उसमें से खून रिसने लगता था ।रात बारह बजे सजा के पूरे होने के बाद ही ग़ुलामों को डिनर मिलता था, जिसमें प्रोटीन बार और कुछ फल खाने को दिए जाते । उसके बाद तीस अलग-अलग पिंजरों में ग़ुलामों को बंद कर दिया जाता था ।
ये पिंजरे पैंडोरा कैपिटल की जमीन के नीचे बने तहखाने में रखे गए थे जहाँ कोई लाइट नही रहती थी । पिंजरे इतने छोटे थे कि सभी ग़ुलामों को पैर मोड़कर सोना पड़ता था । सुबह चार बजे फिर से उठकर उन्हें 'रुलबुक' की रूटीन शुरू करनी पड़ती थी ।रॉय के साथ बाकी जितने ग़ुलामों ने ये रुलबुक पढ़ी थी, उन सभी का डर मारे बुरा हाल था, लेकिन वापस जाने का कोई रास्ता नही था । उनकी ट्रेनिंग अब शुरू हो चुकी थी । नियमों के हिसाब से अब हर एक दिन कठोरतम ट्रेनिंग हो रही थी । रॉय के पूरे नंगे बदन पर हण्टरों के निशान आ चुके थे । सभी ग़ुलामों पर औसतन हर दिन करीब सात सौ से एक हज़ार कोड़े पड़ते थे ।रॉय की सारी फैंटेसी पूरी हो चुकी थी । पंद्रह दिन की कठिन और अमानवीय ट्रेनिंग को वो पूरा कर चुका था ।
इस दौरान सबसे अच्छी बात यह रही कि किसी भी गुलाम ने किसी भी मिस्ट्रेस के आदेश को मना नही किया था इसलिए सबसे कठोर और क्रूर सजा किसी भी गुलाम को नही मिली थी । ट्रेनिंग के आखिरी दिन पैंडोरा आइलैंड पर एक बार फिर से वो शिप वापस आयी, जिसमें लेडी डॉक्टर्स की एक टीम भी थी। सभी ग़ुलामों के बदन पर कुछ ऐसी जादुई दवाएं लगा दी गईं थी कि अगले दो दिन में उनके घाव भर गए थे। हंटर के निशान जाने में अभी भी दो-तीन महीने लगने वाले थे । तीन दिन बाद सभी वापस उस शिप पर आ गए और कुछ घण्टों में लंदन पहुंच चुके थे। किसी को भी उस आइलैंड की लोकेशन नही पता चल पाई थी क्योंकिं सभी की आंखों पर पट्टी बांध दी गयी थी। रॉय में ऑनलाइन तरीके से ट्रेनिंग फीस का पेमेंट कर दिया था ।
इतने दिनों बाद अलीशा को वापस होटल में मिलकर उसकी खुशी का ठीकाना नही था । अलीशा भी समझ रही थी कि उसके पापा किसी जरूरी 'बिज़नेस' में व्यस्त थे। दोनों ने उसी रात वापस फ्लाइट ली इंडिया आ गए । अलीशा ने लंदन के ढेर सारे किस्से विशाखा और अमन को सुनाए । रॉय के पास झूठे किस्से गढ़ने के अलावा कोई रास्ता नही था । ट्रेनिंग के बाद के आराम के लिए उसने पंद्रह दिन की छुट्टी ले ली थी और दिन भर घर मे पड़ा 'फेमडम पोर्न' देखता, जिसे वो जी कर आया था । कुछ दिनों बाद 'लेडी डी' का एक मेल आया जिसमें उन्होंने फीडबैक लिया और साथ मे एक वीडियो फ़ाइल का प्राइवेट लिंक भी था ।
रॉय में उस फ़ाइल को डाउनलोड किया तो उसने देखा कि वो वीडियो ट्रेनिंग की तीन घण्टे कि फिल्म थी, जिसमे सभी ग़ुलामों के साथ उसका चेहरा भी था। उसने उस वीडियो को अपने पर्सनल ड्राइव में सेव करके हमेशा के लिए डिलीट कर दिया । 'लेडी डी' ने उसे फिर से ट्रेनिंग में आने को कहकर अलविदा बोला । रॉय के लिए ट्रेनिंग का ये अनुभव अंतहीन सुख देने वाला था । लेकिन जल्दी ही अगले कुछ सालों में उसे 'फेमडम' के साथ-साथ कुछ और भी अलग अनुभव मिलने वाले थे ।
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