दर्जी के साथ Ch. 02

Story Info
दर्जी घर पे.
5.4k words
4.44
464
8

Part 2 of the 2 part series

Updated 06/11/2023
Created 10/22/2021
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

उस रात जब मै सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो मेरा बदन दर्जी वाले हादसे को सोच सोच के काँप रहा था। मेरे को रह रह के अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था की मै कितनी आसानी से इस दर्जी से फंस गयी। साले ने पेल ही दिया मुझे, यकीन ही नहीं हो रहा था पर हाथ लगाने पर अभी भी चूचियो मे दर्द हो रहा था।

सोने के बाद सपने मे भी दर्जी आ गया, उसकी दाढ़ी मेरे चेहरे पर चुभने लगी और उसका हाथ मेरे स्तनो मे दर्द भरने लगा। मुझे पता नहीं चला कब मै अपनी पैंटी उतार दी और तकिया टाँगो के बीच मे भीच ली। मेरी साँसे भारी हो गयी और मै अपनी चूत तकिये पर घिसने लगी।

सुबह मै देर तक सोती रही और मम्मी के चिल्लाने पर ही उठी।

"आज घर मे मेहमान आने वाले है और ये मैडम जी अभी तक सो रही है," मम्मी चिल्लाई तो मुझे याद आया की मेरे चाची की लड़की रीनी के ससुर आज हमारे शहर आ रहे थे और एक दो दिन हमारे यहाँ ही रुकने वाले थे। मै जल्दी जल्दी नहाना धोना निबटाने लगी। करीब 12 बजे मेहमान लोग आ गए और मम्मी पापा उनके साथ नीचे ड्राइंगरूम मे बैठ गए। मै भी अपने कमरे से नीचे आ गयी मम्मी की हेल्प करने के लिए।

जैसे ही मै ड्राइंगरूम मे पहुंची तो मेरे पैरो तले जमीन निकाल गयी, वहाँ रीनी के ससुर के साथ वो दर्जी भी बैठा हुआ था। मै एकदम हकबका गयी और किसी तरह नमस्ते की दोनों को। दर्जी भी मुझे देख के चौंक गया पर फिर संभल के बैठ गया। मै मम्मी की हेल्प करने लगी चाय वगैरा पिलाने मे, लड़की के ससुर थे तो थोड़ी आव भगत तो होनी ही थी। वही मुझे पता चला की ये दर्जी रीनी के ससुर का दोस्त था और जिस दुकान मे मै गयी थी वो उसकी ही थी। मै कनखियो से जब दर्जी की तरफ देखा तो वो मुझे देख मे मुस्कुरा दिया।

उधर दर्जी ने जब बबली को देखा तो वो भी चौंक गया पर फिर मन ही मन खुश होने लगा। बबली साधारण से सलवार सुट मे थी पर वो कुर्ता उसके बदन पर फिट आ रहा था और उसका गदराया हुआ शरीर मस्त लग रहा था। दर्जी उसके उठे हुए नितांबो के कटाव को निहारते हुए उसके नंगे शरीर की कल्पना करने लगा। उसके भोले से चेहरे पर परेशानी के भाव उसे और मोहक बना रहे थे।

ससुर जी दर्जी का परिचय कराते हुए बता रहे थे की उसकी वेव माल मे दुकान है और वो लेडिज कपडो की बहुत अच्छी वराइटी रखता है और अच्छा सिलता भी है, तभी वो हरामी मम्मी को देख बोल पड़ा,

"आप भी आइएगा माल मे, बिटिया तो आती रहती है कपड़े सिलवाने," वो धूर्त की तरह मेरी तरफ देख के बोला। जब मम्मी मेरी तरफ देखी तो मै खिसियाती हुई हाँ मे गर्दन हिला दी।

"अभी कल ही तो आई थी बिटिया, लेकिन नाप ठीक से नहीं हो पाया एक बार फिर लेना पड़ेगा," वो बड़े आराम से बोला, "चलो अब जब मै यहाँ आया हूँ तो नाप भी ले लूँगा।"

"मै... मै... फिर कभी दुकान पे आ जाऊँगी," मै घबराते हुए बोली तभी पापा बोल पड़े,

"अरे दुकान पर क्यू चक्कर लगायगी जब अंकल यही पर आए हुए है,"

सभी हाँ के हाँ मिलने लगे तो मै गर्दन झुका के चुप हो गयी। उसके बाद चाय नाश्ता होने लगा और मै मौका मिलते ही उठ के अपने कमरे मे चली गयी। जब दोपहर के खाने का टाइम हुआ तो मुझे फिर जाना पड़ा मम्मी की मदद करने। जब भी दर्जी से नजरे मिली वो मुस्कुरा दिया।

खाने के बाद मै अपने कमरे मे लेट गयी पर थोड़ी ही देर बाद मेरे कमरे के बाहर कुछ खटर पटर सुन के मै बाहर आयी तो देखा की पापा दोनों को लेकर मेरे बाजू वाले कमरे मे जा रहे थे। वो कमरा गेस्ट रूम की तरह ही इस्तेमाल होता था और उन्होने दोनों को दोपहर मे वही आराम करने के लिए बोल दिया।

"बबली का कमरा भी यही बाजू मे है कोई जरूरत हो तो बता दीजिएगा," पापा बोले तो ससुर जी गर्दन हिलाने लगे।

"बढ़िया है मै नाप भी ले लूँगा जाने से पहले," दर्जी बोला तो पापा ठीक है कहते हुए चले गए और मै धड़कते हृदय से अपने कमरे मे घुस गयी। मै कमरे मे बैठी घबरा रही थी की ये तो घर तक आ गया है, अब क्या होगा और अभी नाप भी लेने आयेगा।

तभी मैंने देखा की दर्जी धीरे से मेरे कमरे मे घुस गया और पीछे दरवाजे की कुंडी लगा दी।

"क्या... क्या... दरवाजा क्यू बंद कर दिया," मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा।

"तेरा नाप लेना है," वो मुसकुराते हुए बोला, "और तुझे तो पता है की मै नाप कैसे लेता हूँ।"

वो मेरी तरफ बढ़ा तो मै पीछे हटने लगी, "नहीं... प्लीज।"

वो तेजी से आगे बढ़ के मुझे अपनी बाहो मे जकड़ लिया, "कल तो ज़ोर से करो, ज़ोर से करो बोल रही थी," वो फुसफुसाया।

"नहीं प्लीज कोई आ जाएगा," मै काँपने लगी।

"दरवाजा बंद है," वो फुसफुसाया और मेरी गोलाइयों को कुर्ते के ऊपर से ही नापने लगा।

"छोड़ दो, मम्मी पापा घर मे है," मै कसमसाई और उसका हाथ पकड़ने लगी पर वो कहा मेरे काबू मे आने वाला था।

"आज तो कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही है," वो मेरे गालो पर किस करता हुए बोला, "कल तो तूने नाप बड़े प्यार से दिया था आज न न क्यू कर रही है।"

"मम्मी पापा घर मे है।"

"कोई बात नहीं दोनों दोपहर मे आराम कर रहे है।" वो मुझे अपने मरदाने शरीर मे समेट लिया और होंटो पर किस करने लगा। वो अपनी मनमानी करने लगा और मै एक नाज़ुक गुड़िया की तरह उसकी गिरफ्त मे जकड़ी रही। मेरे बदन मे कपकंपी दौड़ने लगी जब उसके मजबूत हाथ मेरे नितंबो को मसलने लगे।

मै उत्तेजना और डर के मारे काँपती रही की मम्मी आ गयी तो क्या होगा, पापा आ गए तो क्या होगा और वो मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया।

"प्लीज, प्लीज, यहा मत करो, मै तुम्हारे पास दुकान पर आ जाऊँगी," मै मिमियाने लगी पर वो नहीं रुका। सलवार टखनो मे जा गिरी और वो मेरी टाँगे फैला के हथेली मेरी कच्छी मे घुसेड़ दिया।

"पावरोटी की तरह फूली हुई है तेरी चूत तो," वो मसलते हुए फुसफुसाया और अपनी मोटी उंगली मेरी फाँको के बीच घिसने लगा।

"अहह," मै कराह पड़ी जब उसकी मोटी सी उंगली घप से अंदर घुस गयी। वो पहले एक उंगली से फिर दो उंगली से घपाघप करने लगा।

"अहह अहह आई, क्या कर रहे हो," मै कसमसाने लगी।

"तेरी चूत को तैयार कर रहा हु, देख पानी निकलने भी लगा है।"

मै कसमसाती रही और वो मेरी चूत मे घपाघप करके पूरी गीली कर दिया। मै समझ गयी थी की ये जो करना चाहता है वो कर के मानेगा तो मै चुपचाप खड़ी रही और वो मेरे सारे कपड़े उतार डाला। खुद भी वो नंगा हो गया और मुझे बिस्तर पर लिटा के ऊपर चढ़ गया।

"अहह अंकल," मै कराह पड़ी जब वो मेरे ऊपर अपना वजन डाला और उसका लंड मेरी चूत पे ठोकर मारने लगा।

"आह, आह आई अहह," मै कसमसाती रही और उसका लन्ड फिसलता हुआ अंदर समा गया। मै सिसकारी भर्ती हुई उसको कस कर चिपट गयी।

"अब आई न लाइन पे, तब से न न कर रही थी," वो खुश होता हुआ बोला। वो मेरे को अपने नीचे समेट लिया और धक्के लगाने शुरू कर दिये।

"अहह, तुम बहुत गंदे हो... आई अह... मै मना थोड़े ही कर रही थी... अहह अहह, मै दुकान पर आ जाती।"

"पुच पुच, गुड गर्ल, तेरे घर मे घुस के चोदने का मज़ा ही कुछ और है, एसे मौके को मै कैसे छोड़ सकता हूँ।"

वो पूरी मस्ती मे आ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा और मै अपनी टाँगो को दोनों हाथो से पकड़ के ऊपर उठा ली।

"अहह, अहह, आई मम्मी," हर धक्के पर मेरी कराह निकल जाती। वो एक पंजे से मेरी छाती मसलने लगा और दूसरे से मेरे मुह सीधा करके मेरे होंटो को चूमने चूसने लगा। उत्तेजना मे मेरी आंखे बंद हो गयी और मै अपनी जीभ उसकी जीभ से मिला कर किस करने लगी।

मै दर्जी से मिलने से पहले कूवारी नहीं थी पर मेरे बॉयफ्रेंड ने कभी भी मुझे एसे नहीं चोदा था। दर्जी से करवाने के बाद ही मुझे पता लगा की मर्द से चुदने का मज़ा क्या होता है। वो मेरे पूरे शरीर को आटे की तरह गूँथ रहा था और उसके सख्त हाथ मेरा पूरा कसबल निकाल दे रहे थे।

धीरे धीरे मेरे अंदर उबाल आने लगा और मै कसमसाते हुए उत्तेजना के चरम पर पहुँच गयी। थोड़ी देर और मुझे पेलने के बाद वो भी अपना माल मेरी चूत मे भर दिया और हाँफता हुए मेरे बाजू मे लुढ़क गया।

"जाओ अब," मै उसकी छाती पर चपत लगती हुई बोली तो वो हंसने लगा। मेरे पूरे बदन मे मीठी मीठी टीस हो रही थी। मै बिस्तर पर लेटे हुए उसे कपड़े पहनते हुए देखने लगी।

वो कपड़े पहन के मेरे पास आया और मेरे गालो पर किस करते हुए कहने लगा, "यही तो दिन है तेरे मज़ा करने के, बाद मे शादी के बाद बच्चो को पालने मे मज़ा लेने का कहा मौका मिलता है।"

"धत," मै शर्मा गयी।

"छोड़ो, मुझे कपड़े पहनने दो," मै इठलाई।

"पहले वादा कर की अब मेरे साथ नखरा नहीं करेगी।"

"ठीक है नहीं करूंगी, अब खुश।"

"चल अब मै चलता हूँ, अभी ज्यदाह टाइम नहीं है, रात मे दरवाजा खुला रखना तो इतमीनान से करेंगे।"

मै हैरत से उसे देखने लगी, "रात को आप यही रुकेंगे।"

"तुझे छोड़ के कहा जाऊंगा," वो मुस्कुराया।

उसके जाते ही मै दरवाजा बंद कर ली और नंगी ही बिस्तर पर लेट गयी, रात को वो फिर आएगा ये सोच सोच के मुझे घबराहट भी हो रही थी और रोमांच भी। थकावट की वजह से कब मेरी आँख लग गयी पता ही नहीं चला। जब आँख खुली तो देखा की शाम होने को आई थी। मै नीचे पहुंची और मम्मी का काम मे हाथ बटाने लगी। मम्मी से बात करते हुए पता चला की रिनी के ससुर जी और वो दर्जी पूराने दोस्त है और मम्मी बताने लगी की आज रात दर्जी भी उनके साथ हमारे घर मे रुकेगा। मै मन ही मन के मुस्कुराइ क्योकि मै जानती थी की दर्जी क्यो रात को रुकना चाहता है।

रिनी के ससुर जी बाहर वाले कमरे मे बैठे हुए थे जब मै वहाँ गयी तो वो मेरे से बाते करने लगे।

"बबली तुम और रिनी बिलकुल एक जैसी दिखती हो," वो बोले तो मै शिष्टाचारवश हाँ मे गर्दन हिला दी।

"वो तो तुम से करीब 4 साल बड़ी है न,"

"नहीं अंकल 7 साल,"

"अच्छा तो तुम अभी सिर्फ 19 की हो और मै तो तुम्हारे लिए रिश्ते भी बताने लगा था तुम्हारे पापा को," वो हँसते हुए बोला तो मै शर्मा गयी।

"अरे यहाँ आओ, यहाँ बैठो," वो मेरे को अपने बगल मे बैठा लिए और इधर उधर की बाते करने लगे।

"आज दोपहर मे अंकल काफी देर तक तुम्हारा नाप ले रहे थे," वो इधर उधर की बाते करते करते अचानक बोल पड़े तो मेरे तो जैसे काटो तो खून नहीं।

"अः हु," मै हकबका गयी पर वो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

वो एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिये, "हम दोनों काफी पूराने दोस्त है, मुझे पता है वो कैसे लेता है और कितनी देर तक लेता है," वो दुअर्थी लहजे मे बोले।

मै जड़ सी बैठी रही और वो मेरी पीठ सहलाने लगे, "लगता ही नहीं की तुम अभी सिर्फ 19 की हो, शरीर काफी भरा भरा है," उनकी आवाज मे हवस साफ झलक रही थी।

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने भरी सभा मे नंगा कर दिया हो। मै उठने की कोशिश करने लगी पर वो मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझे बैठा दिये।

"रुको अभी कहा जा रही हो," उनके लहजे मे अनुरोध कम और हुक्म जयादह था।

"मै... मै..." मै रसोई की दिशा मे देखने लगी पर रसोई वहाँ से नज़र नहीं आ रही थी। बर्तनो की आवाजो से लग रहा था की मम्मी वही काम के लगी हुई है। इधर रिनी के ससुर जी मेरी कमर पर हाथ फिराने लगे।

"बबली तुम अभी फ़र्स्ट इयर मे हो न," वो एसे औपचारिक बाते करने लगे जैसे कुछ खास न हो और मेरा कुर्ता हटा के बगल से मेरी कमर पे हाथ फिराने लगे।

मै कसमसने लगी, "मम्मी।"

"क्या मम्मी," उनका हाथ तेजी से मेरे कुर्ते मे अंदर घुस गया। मै कसमसाती रह गयी और वो मेरी ब्रा को ऊपर उठा के मेरा एक स्तन जकड़ लिए।

"आह, मम्मी,"

"श्स्स श्स्स, आवाज नहीं, मम्मी सुन लेगी नहीं तो,"

"छोड़ो," मै फुसफुसाई, मेरी हिम्मत नहीं हुई ज़ोर से बोलने की।

"गुड गर्ल, बहुत मुलायम बूब्स है," वो मेरे स्तनो को मसलता हुआ बोला और मेरे निप्पल और उसके घेरे को अपनी चुटकी मे लेकर रगड़ने लगा।

"अहह, आह," कुछ देर मसलने के बाद वो हाथ बाहर निकाल लिया।

"ब्रा ठीक कर ले," वो बोला तो मै जल्दी से अपनी ब्रा एडजस्ट करके उठने लगी पर वो फिर मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया।

"इतनी जल्दी क्या है, बैठ थोड़ी देर, मै खा थोड़ी न जाऊंगा।"

"मै... मै, मम्मी की हेल्प करनी है किचन मे।"

"कर लेना हेल्प," वो मुस्कुराया और फिर मेरे बालो मे हाथ फिराता हुआ बोला, "कितनी सुंदर हो कोई भी तुम्हें देख के पागल हो जाए, तुम्हें देख के प्यार करने का मन करता है।"

मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की मै क्या कहूँ, मै बार बार वहाँ से जाने की कोशिश करती किन्तु वो मुझे रोके रखता।

"अच्छा तुम्हें जाना है तो चली जाओ पर एक किस तो देना पड़ेगा," वो बोला।

"नहीं... नहीं," मै घबरा गयी की वो कहीं फिर से न पकड़ ले, "यहाँ कोई देख लेगा।"

"अच्छा, तो फिर कहाँ।"

"अ उम्म," मै अचकचा गयी।

"ऊपर कमरे मे," वो मुस्कुराने लगा।

मै किसी तरह वहाँ से भाग के किचन मे मम्मी के पास आई। किचन के मेरा काम मे मन नहीं लग रहा था और बार बार ससुर जी की हरकत के बारे मे सोच सोच के दिल ज़ोर से धड़कने लगता था। मै किचन मे मम्मी के साथ ही खड़ी रही, बाहर जाने मे घबराहट हो रही थी की वो कहीं फिर से न पकड़ ले।

मेरे स्तनो मे टीस हो रही थी, कमीने ने इतनी ज़ोर से मसल दिया था। मै रसोई मे खड़ी खड़ी ये सब ही सोचती रही और बार बार रिनी के ससुर जी का वासना से तमतमाया चेहरा मेरे सामने आ जाता। फिर मुझे याद आया की रात मे तो दर्जी भी आने वाला है कहीं दोनों तो नहीं पकड़ लेंगे रात मे। बीच बीच मे मम्मी कुछ काम कह देती तो मै यंत्रवत कर देती पर दिमाग मे यही सब चलता रहा और मेरी साँसे भरी होने लगी।

थोड़ी देर मे पापा घर आ गए और ससुर जी के साथ बातों मे लग गए, फिर दर्जी भी आ गया और मम्मी और मैंने खाना लगा दिया। खाने के बाद मै अपने कमरे मे आ गयी और नाइट सूट पाजामा और कमीज पहन ली। बिस्तर पर लेट कर मेरे दिल मे फिर से वही सब चलने लगा की ये दोनों क्या करेंगे, क्या दोनों एक साथ चोदेगे जैसे पॉर्न मे देखा था या फिर एक एक करके। मेरा दिमाग इतना दूषित हो गया था की मै क्या सही है और क्या गलत ये नहीं सोच पा रही थी। मै एक बार भी ये नहीं सोची की मुझे ये सब रोकना चाहिए या अपना दरवाजा बंद करके लेटना चाहिए।

थोड़ी देर बाद नीचे की आवाजों से पता चलने लगा की अब सोने की तयारी हो रही है और मेरे दिल की धड़कने बढ्ने लगी। दरवाजो के बंद होने की आवाज फिर बगल के कमरे मे कुछ आहाट और फिर सन्नाटा छा गया।

करीब पंद्रह मिनट के बाद मुझे दरवाजे पर कुछ आहाट लगी और नाइट बल्ब की माध्यम रोशनी मे भी साफ दिखाई पड़ा की रिनी के ससुर जी है। उनके पीछे पीछे दर्जी भी घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मै उठकर बैठ गयी, मेरा दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था। मैंने देखा की रिनी के ससुर जी बनियान और हाफ पैंट पहने थे जबकि दर्जी टीशर्ट और हाफ पैंट मे था। दोनों ही हट्टे कट्टे थे पर ससुजी की थोड़ी तोंद निकली हुई थी।

"आप... आप लोग," मेरी समझ मे नहीं आया की क्या कहूँ। मुझे पता तो था की दोनों क्यो मेरे कमरे मे आए है, दोनों मुझे चोदेगे, मेरे बदन मे सनसनाहट होने लगी।

ससुर जी मेरे करीब आए और फुसफुसाते हुए बोले, "मेरी किस बाकी रह गयी थी।" मै दर्जी की तरफ देखने लगी पर वो थोड़ी दूर ही खड़ा रहा,

"तुमने प्रोमिस किया था," वो कंधे उचकाता हुआ बोला, "तुम जानो"

"मैंने कब किया था, मौसा जी तो अपने आप ही..." मै हकलाने लगी।

ससुर जी बिस्तर पर मेरे बगल मे बैठ गए। उन्होने अपना हाथ मेरे गर्दन मे डाल के मेरा सर अपने कंधे पर रख लिया।

"गुड गर्ल," वो बुदबुदाये और मेरे गालो को सहलाते हुए मेरा सर सीधा कर दिये।

मै कनखियो से अभी भी दर्जी की तरफ देख रही थी, उसके चेहरे पर धूर्त सी मुस्कुराहट थी और वो अपने कपड़े उतारने लगा था। मुझे अचानक शर्मिंदगी महसूस होने लगी, ये दोनों मुझे बिलकुल चरित्रहीन लड़की समझ रहे होंगे की कैसे मै किसी से भी चुदने के लिए तयार हूँ।

"मौसा जी, प्लीज," मेरे मुह से जैसे कराह निकली और मै दर्जी की तरफ एसे देखने लगी जैसे वो अभी ये सब रोक देगा। तभी ससुर जी के रूखे होंट मेरे होंटो के ऊपर चिपक गए और उसकी सफ़ेद मूछे मेरे गालो और होंटो पर गड़ने लगी। वो मेरे सर को सीधा किए रहे और होंटो को चूसने लगे।

मेरे हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर पहुँच गए और मै उसे पीछे धकेलने की कोशिश करने लगी पर वो आसानी से मुझे जकड़े रहे। थोड़े से प्रयास के बाद ही मै ढीली पड गयी और वो मेरे होंटो को संतरे की फाँको की तरह अपने होंटो से चुभलाने लगे और उसकी जीभ होंटो पर फिसलने लगी। वो इतमीनान और प्यार से मेरे होंटो को चूमने चाटने लगे और कब उसकी जीभ मेरे मुह मे घुस गयी मुझे पता ही नहीं चला। स्वत ही मेरे होंट खुल गए और मै भी उसकी जीभ से अपनी जीभ रगड़ने लगी और किस करने मे उनका पूरा सहयोग करने लगी।

मै कनखियो से दर्जी की तरफ देखी तो वो चेहरे पर धूर्त सी मुस्कुराहट लिया पूरा नंगा खड़ा था और अपने लन्ड को धीरे धीरे सहला रहा था। जैसे मुझ पर झपप्टा मारने के लिए पूरा तयार हो। मुझे अपने ऊपर ग्लानि होने लगी की मै कैसे मर्द का हाथ लगते ही गर्म हो जाती हू।

थोड़ी देर होंटो को चूमने के बाद उसके होंट मेरे गालो पर फिसलने लगे और एक हाथ वो मेरी शर्ट को ऊपर कर के पेट पर रख दिया।

"बस... बस मौसा जी अब छोड़ो," मै उनका हाथ पकड़ते हुए बोली।

"क्यो क्या हुआ बबली।"

"नहीं प्लीज ये ठीक नहीं है।"

"पुच पुच," वो मेरे गालो पर किस करने लगे, "एंजॉय करना कोई गलत नहीं है, यही तो उम्र है एंजॉय करने की।" उनका हाथ पेट पर फिसलता हुआ ऊपर आने लगा तो मै उसे पकड़ ली।

"मै कोई गलत लड़की नहीं हूँ," मेरे मुह से निकल गया, "गलती से दर्जी अंकल के साथ हो गया था, अब आप दोनों मेरा फायदा उठाने लगे हो।"

"अरे ये क्या कह रही हो, तुम कोई गलत लड़की थोड़े ही हो, तुम तो बहुत अच्छी और प्यारी हो," वो मेरे गालो को बार बार किस करने लगे।

"सेक्स करने से कोई गलत थोड़े ही हो जाता है और मै कोई तुम्हारा फाइदा नहीं उठा रहा हूँ मै तो तुम्हें प्यार कर रहा हूँ," वो मुझे पटाने लगे और मेरा हाथ पकड़ के अपने हाफ पैंट मे तन कर खड़े लन्ड पर रख दिये।

"मै तुम्हे बहुत प्यार करूंगा," वो फुसफुसाए, "मै तो तुम्हारा अपना हूँ, इस दर्जी की तरह पराया नहीं हूँ।"

उनका हाथ फिसलते हुए मेरे स्तनो को दबोच लिया, "मै तुम्हारे साथ कोई जबर्दस्ती तो करूंगा नहीं, पर मुझे पता है तुम भी अपने मौसा जी को प्यार करोगी।"

वो मेरे स्तनो को बारी बारी से दबाने लगे और होंटो को किस करने लगे और साथ ही साथ मुझे पटाने मे लगे रहे। मेरे मन मे उथलपुथल मची हुई थी, दीमाग कह रहा था की जो हो रहा है वो गलत है और मुझे इसे रोकना चाहिए पर मन मुझे बहला रहा था की क्या फर्क पड़ता है जब दर्जी से चुदवा लिया, जो की एक अजनबी है तो अब मौसा जी से क्या फर्क पड़ता है।

"आह ऊ ऊह, शाम को आप बहुत ज़ोर से दबा दिये थे, दर्द हो रहा है," मै ढीली पड़ने लगी।

"पुच... पुच... थोड़ा दर्द होने दो, तभी तो मज़ा है," उनकी भर्राई हुई आवाज मेरे कानो मे पड़ी और फिर उनके हाथ मेरे पूरे शरीर को मसलने नोचने लगे।

"अहह, ओहह, उफ़्फ़, अहह, आई," वो मेरे कपड़े उतारते गए और मेरे को भी उनका लन्ड बाहर निकालने के लिए बोले। मै उनका हाफ पैंट नीचे सरका दी और मोटे से लन्ड को सहलाने लगी।

मैंने सारी शर्म, ग्लानी और झिझक को झटक दिया और जब वो मेरी टाँगो के बीच मे हाथ डाले तो मै टाँगे फैला दी और उनकी उँगलियो को अपनी चूत पर महसूस करने लगी।

"उफ़्फ़, आहह, मौसा जी आप बहुत बदमाश हो।"

"बढ़िया, तेरा शरीर पूरा भर गया है," वो मेरी चूत की फाँको को खोलते हुए बोले, "रिनी की शादी मे तुझे देखा था तब तो तू कितनी पतली और छोटी सी थी, पर लन्ड तो तब भी खड़ा हो गया था तेरे को देख के।" वो मेरी चूत मे अपनी एक उंगली घुसा दिये और अपनी जीभ मेरे मुह मे डाल के होंटो को चूसने लगे।

मेरी पूरे बदन मे सनसनी दौड़ने लगी और मै चुदने के लिए पूरी तयार हो गयी। उत्तेजना मे मै भी उनसे चिपक गयी और उनकी पीठ को मसलने लगी। तभी मैंने महसूस किया की दर्जी मेरे पीछे आ गया था और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगा तो मै चिहुक गयी।

"अभी नहीं," मै कुछ बोलती इससे पहले ही मौसा जी बोल पड़े, "मुझे इतमीनान से पेलने दे।"

"बीच मे ले लेते है लड़की को," दर्जी फुसफुसाया।

"नहीं मुझे ऊपर चढ़ना है, साइड से मज़ा नहीं आता।"

"अरे यार!!! घोड़ी बना ले, मै मुह मे डाल दूँगा।"

उनकी बाते सुनके मेरे बदन मे झुरझुरी दौड़ने लगी,

"नहीं, नहीं, छोड़ो," मै छटपटाई।

"यार समझा कर," ससुर जी गुर्राये, "मज़ा न खराब कर।"

"ठीक है, ठीक है," वो खीसे निपोरने लगा।

"पुच, पुच, मेरी प्यारी बच्ची," ससुर जी मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे दूधिया चूचियो को मसलने लगे।

"मौसा जी," मै कराही, दो दो मर्द मेरे को चोदने के लिए बेताब थे। उत्तेजना मे मेरी आंखे मुँदने लगी और मै ससुर जी की पीठ को कस कर जकड़ ली। वो भी अब पूरे जोश मे थे और मेरी छातियो को ज़ोर ज़ोर से चूस रहे थे और मेरे बदन पर जगह जगह दाँत गड़ा रहे थे।

उनका लन्ड मेरे जांघों पे गड रहा था मै उसे अपनी हथेली मे पकड़ के सहलाने लगी और चूत पे घिसने लगी। वी मेरी टाँगो के नीचे हाथ डाल के उठा दिये और फुसफुसाय, "निशाने पे रख इसे।"

जैसे ही वो धक्का मारे तो आनंद के अतिरेक से मेरा बदन काँपने लगा, मोटा डंडा जैसे मेरी चूत को फाड़ता हुआ अंदर तक घुस गया।

"अहह, आहह, ओहह, मम्मी, आहह, अहह," मेरे मुह से उत्तेजना मे आवाज़े निकालने लगी, लगा जैसे शरीर मे सैकड़ो चिटीया रेंग रही हो।

"शाबाश, मस्त लौंडिया है तू तो, क्या गरम गरम टाइट बुर है तेरी," वो खुश होते हुए बोले, "एसी बुर तो बरसो से नहीं मिली," वो ज़ोर से धक्का मार के पूरा अंदर पेल दिये।

"ओह माँ....आ... यह क्या कर रहे हो... मौसा जी.. उफ्फ्फ... बहुत मोटा है आपका तो..." मै उनके होंटो को बार बार चूमने लगी। ससुर जी अब मेरे को अपने नीचे पूरी तरह से जकड़ लिए और धक्के पे धक्का मारने लगे।

दर्जी कमरे के कोने मे बैठ के देख रहा था की कैसे वो इस नादान लड़की वो बिस्तर पर फैला दिया था और उसकी टाँगो के बीच ज़ोर ज़ोर से चोट कर रहा था। जैसे नदियो की दो धराए पूरे वेग से पहाड़ो से नीचे बहती हुई आती है और आपस मे मिल जाती है, कुछ वैसा ही नज़रा बिस्तर पर था। दोनो एक दूसरे मे समाने के लिए जैसे कुश्ती लड़ रहे हो।

"एक बात तो माननी पड़ेगी," ससुर जी बुद्बुदाय, "रिनी के मायके मे मेरी बहुत खातर तवाजों हुई है, बढ़िया खाना पीना और रात को अपनी लड़की भी देते है चोदने के लिए।"

मै उनके इस गंदे कमेंट को तवाजों नहीं दे पायी क्योकि मै अपने चरम पर पहुंची हुई थी और उनसे चिपक चिपक के झड रही थी। वो भी अब रोक नहीं पा रहे थे और मुझे बूरी तरह भभोड्ते हुए मेरी चूत के अंदर ही अपना गरम गरम वीर्य भर दिये।

झड़ने के बाद वो हाँफते हुए मेरे बगल मे ही लुढ़क गए, मै भी लेटे लेटे अपनी साँसे व्यवस्थित करने लगी। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वो धीरे से उठ के बाथरूम मे घुस गए और दर्जी मेरे सिरहाने आ के बैठ गया।

वो मेरे बालो को सहलाने लगा और अर्थ भरी दृष्टि से मेरी तरफ देखने लगा।

"मै नी, थक गयी हूँ," मै उसका इरादा समझ गयी।

"मै बिलकुल भी परेशान नहीं करूंगा," वो बोला और वो एक हाथ से मेरे बालो को सहलाने लगा और दूसरे हाथ से मेरी चूचि को।

"अहह," मै कराह पड़ी।

"क्या हुआ,"

"मौसा जी ने इतनी ज़ोर से दबाया," मै शिकायती लहजे मे बोली।

"तो मज़ा भी तो आया की नहीं," इतने मे ससुर जी बाथरूम से निकाल के बोले।

"धत्त!!!"

ससुर जी फिर हाफ पैंट पहन के बिस्तर के कोने मे बैठ गए और दर्जी मेरे होंटो को चूमता रहा और मेरे बदन को सहलाता रहा। वो होंटो को चूमने के बाद मेरे चेहरे को अपनी छाती पर ले आया और मै उसकी बालो भरी छाती से लग कर सुस्ताती रही। फिर उसके फुसलाने पे मै उसके निप्प्ल्स को जीभ से चूमने और चाटने लगी। वो मेरे बालो को पकड़ के मेरा सर अपनी पूरी छाती पर फिराता रहा। धीरे धीरे वो मेरे को नीच और नीच धकेलने लगा। छाती से पेट, नाभि और फिर लन्ड के ऊपर वाले भाग पे।

"ऊह मै नी, नहीं न," मै कसमसाने लगी पर मै जानती थी उसकी मंशा को वो अपना लन्ड चुसवाए बिना मानने वाला नहीं है।

"पुच, पुच, रुक मत," वो मुझे प्रोत्साहित करने लगा।

"बहुत गंदे हो तुम," मै शिकायती लहजे मे बोली।

"जब लड़की अपने मर्द का लन्ड चूस के उसे मज़े देती है तभी तो मर्द भी उस लड़की को तबीयत से चोद के मज़ा देता है," वो बोला और अपना लन्ड मेरे होंटो पर थपथपाने लगा।

12