बात बरसात की एक रात की

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It's happen in a rainy night.
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बात बरसात की एक रात की

16 सितंबर 2022

उस रात किसी की शादी में अकेला गया था। रात को जब लौटने लगा तो किसी संबंधी ने एक महिला को रास्ते में छोड़ने के लिये कहा। मैं मना नहीं कर पाया। बाहर मौसम बहुत खराब हो रहा था। जोर से बारिश आ रही थी, इस कारण काफी देर तक इंतजार करने के बाद जब बारिश कम नहीं हुई तो उन महिला को साथ ले कर कार में बैठ कर घर के लिये निकल पड़ा। बारिश के कारण 5 मीटर से ज्यादा दिखायी नहीं दे रहा था। शादी स्थल शहर से बाहर था इस लिये मुझे पहले शहर तक पहुंचना था, उस के बाद साथ की महिला को उस के घर छोड़ कर अपने घर जाना था। उस घनघोर बारिश में कार चलाते में मैं यही प्रार्थना कर रहा था कि आराम से शहर तक पहुंच जाऊं उस के बाद तो रास्ते पता थे, ज्यादा परेशनी नहीं होने वाली थी। साथ बैठी महिला बोली कि आज तो मौसम बहुत खराब हो गया है, घर कैसे पहुंचेगें? मैंने उन्हें दिलासा देते हूये कहा कि अब चल पड़े है तो पहुंच ही जायेगे। वह मेरी बात सुन कर बोली की इस अवस्था में भी आप मजाक कर लेते है। मैंने कहा कि रोने से काम नहीं चलेगा, इस लिये हंस कर डर को भगा रहा हूँ। वह मेरी बात सुन कर बोली कि यह सुन कर अच्छा लगा कि आप ने माना तो कि आप को डर लग रहा है नहीं तो आदमी तो इसे मानने से भी इंकार करते है। मैं उन की बात सुन कर बोला कि जब डर लग रहा है तो उसे मानने में क्या हर्ज है? वह बोली कि यह बड़ा हिम्मत का काम है। मैं धीरे-धीरे कार चला रहा था। आगे कुछ नहीं दिख रहा था केवल अंदाजे से कार चला रहा था। समय था कि कट ही नहीं रहा था। आज पास का कुछ दिखायी नहीं देने के कारण यह पता नहीं चल पा रहा था कि शहर कितनी दूर है यो हम कहां पर है।

हार कर मैंने कार सड़क किनारे लगा कर रोक दी। लाइटें जलने दी। कार के अंदर से यह देखने की कोशिश की कि हम कहां पर है लेकिन रोड़ के दोनों तरफ अंधेरे की वजह से कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। हार कर मैंने कार दूबारा स्टार्ट की और चल पड़ा। कुछ देर बाद सड़क के किनारे लगे एक बोर्ड से पता चला कि हम शहर के पास ही थे। यह देख कर मन को कुछ शान्ति मिली। साथ बैठी महिला को कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने उन से उन का पता पुछा तो वह बोली कि अमर कालोनी में घर है। अमर कालोनी नयी बनी थी और शहर के एक कोने में थी। मेरा घर उन के घर से दूसरी तरफ था। कैसे भी हालात थे लेकिन उन को उन के घर छोड़ना जरुरी था। सो अंदाजे से कार को अमर कालोनी की तरफ मोड़ दिया। शहर में सड़कों को पहचानना आसान था। धीमी गति से कार चला कर मैं शहर के दूसरी तरफ के लिये चल दिया। रात के एक बज चुके थे। बारिश पुरे शबाव पर थी। अमर कालोनी पहुंचा तो उन से पता कर के कालोनी में उन के मकान तक पहुंच गया। मकान एकदम सुनसान जगह पर था। आसपास कोई और मकान नहीं था। उन के घर के सामने कार रोकी तो वह महिला बोली कि आप अंदर आ जाईये। इस बारिश में मैं आप को कहीं नहीं जाने दूगी। मैंने कहा कि रात को आप के घर जाना उचित नहीं रहेगा तो वह बोली कि मैं भी घर में अकेली हूँ, आप मुझे ऐसी रात में ऐसे सुनसान इलाके में अकेला छोड़ कर चले जायेगे? मैं उन की बात सुन कर असमंजस में फंस गया। वह सही कह रही थी, ऐसे माहौल में किसी महिला को अकेले छोड़ना सही नहीं था। मैं भी ऐसी बारिश में ड्राइव नहीं कर पा रहा था। यह सब सोच कर मैंने कहा कि आप सही कह रही है, रात को आप के घर पर ही रुकता हूँ। यह कह कर मैंने कार से उतर कर उन के साथ चल कर गेट खुलवाया। फिर कार घर के पोर्च में खड़ी कर दी। उन्होनें घर का गेट बंद कर दिया। इस सब में हम दोनों बुरी तरह से भीग गये थे। जब हम दोनों ने घर में प्रवेश किया तब दोनों पानी से सराबोर हो चुके थे।

घर में घुसने के बाद में खड़ा रहा क्योकि मेरे शरीर से पानी गिर रहा था। मुझे खड़ा देख कर वह बोली कि मैं अभी आप को कपड़ें ला कर देती हूँ। यह कह कर वह अंदर चली गयी। मैं वही खड़ा रहा। मुझे लग रहा था कि मैं जो कर रहा हूं वह सही है या गलत मुझे समझ नहीं आ रहा था लेकिन मैं जानता था कि ऐसी बारिश में मैं बाहर नहीं जा सकता था। मेरे सामने उन के घर पर रात में रुकने के सिवा कोई चारा नहीं था। मैं यहीं सब सोच रहा था कि वह तोलिया और ट्रेक सुट लेकर आ गयी और बोली कि आप जुते यहीं उतार दे मैं आप को बाथरुम ले कर चलती हूँ। आप वहां जा कर कपड़ें बदल ले। मैंने जूते उतार दिये। जुते भीगे नहीं थे यही गनीमत थी। फिर उन के साथ बाथरुम की तरफ चल दिया। उन्होंने बाथरुम का दरवाजा खोल कर अंदर की लाइट जला कर मुझ से कहा कि आप गीले कपड़ें वही छोड़ दिजियेगा। मैं उन को ड्रायर में सुखा दूगी। मैं तोलिया और ट्रेक सुट ले कर बाथरुम में घुस गया। दरवाजा बंद करके गीले कपड़ें उतारने शुरु किये। अंतः वस्त्र भी भीग गये थे। उन्हें भी उतार कर नीचे रख दिया और ट्रेक सुट पहन लिया। साइज सही था। इस के बाद मैं बाथरुम से बाहर निकल आया। बाहर आ कर खड़ा ही हुआ था कि वह आ कर बोली कि आइये चल कर ड्राइग रुम में बैठते है। मैं उन से साथ चल दिया। वह मुझे ड्राइग रुम में बिठा कर किचन में चाय बनाने चली गयी। बाहर बारिश अपने पुरे शबाव पर थी। बरसात के शोर की वजह से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। ऐसा भी लग रहा था कि बिजली भी गयी हुई थी। घर में शायद इन्वरटर था उस के कारण लाइट आ रही थी। कुछ देर बाद वह चाय ले कर आ गयी। रिश्ते में साली लगने के कारण बोली कि जीजा जी चाय पीजिये। लगता है आज आप घर नहीं जा पायेगे? मैंने कहा कि ऐसी बारिश मैंने आज तक नहीं देखी। कम ही नहीं हो रही है। मैंने निशा की तरफ देख कर कहा कि अब क्या होगा? वह बोली कि घर पर बता दिजिये कि बारिश के कारण फंस गये है। रात में नहीं आ पायेगे। मैंने जेब से फोन निकाल कर घर पर फोन करके बीवी को बता दिया कि जोरदार बारिश के कारण मैं रात में नहीं आ पाऊंगा तो वह बोली कि आप ऐसी बारिश में ना आये। यह कह कर फोन कट गया।

हम दोनों चाय पीने लग गये, गरमा-गरम चाय पीने के बाद बदन में कुछ जान आयी नहीं तो पानी में भीग जाने से शरीर ठंड़ से कांप सा रहा था। निशा बोली कि जीजा जी अभी तो बिजली नही आ रही है कपड़ें सुख नहीं पायेगे। मैंने कहा कि तुम वाशिग मशीन चला कर देखो शायद चल जाये और कपड़ों में से पानी निचुड़ जाये तो पंखें में सुखा देगे। वह मेरी बात सुन कर बाथरुम में चली गयी, मैं वहां पर अपने कपड़ों को पानी में से निकाल कर हाथ से निचोड़ कर रख आया था। रात के दो से ज्यादा बज रहे थे। अब नींद आने की आशा नहीं थी। कुछ देर बाद वह कपड़ें हाथ में ले कर लौटी और कपड़ों को कुर्सियों पर डाल दिया। इस के बाद वह बोली कि आप यही पर सोफे पर लेट जाये मैं तकिया ला कर देती हूँ। मैंने सहमति में सर हिला दिया। वह तकिया ला कर मुझे दे गयी। मैं सोफे पर तकिया लगा कर ले गया। नींद तो नहीं आ रही थी लेकिन लेटने से शरीर को आराम मिल रहा था। निशा कमरे की बत्ती बंद करके चली गयी। कुछ देर बाद दरवाजा बंद होने की आवाज आयी। किसी गैर औरत के साथ अकेला रात बिताने का मेरा पहला मौका था। मन में डर सा था लेकिन कोई चारा नहीं था। मन यह सोच कर खुश था कि इतनी जोरदार बारिश में मैं बाहर नहीं घर के अंदर था। यही सोचते-सोचते कब आंख लग गयी पता नहीं चला।

किसी की आवाज सुन कर नींद खुली तो कुछ दिखायी नहीं दिया। चारों तरफ अंधेरा था। आंखें जब अंधेरें की अभ्यस्त हुई तो देखा कि निशा खड़ी थी। मैं उठ कर बैठ गया। निशा भी साथ में बैठ गयी। मैंने पुछा कि अंधेरा क्यो है तो वह बोली कि इंवर्टर भी बंद हो गया है।

मोमबत्ती है?

देखनी पड़ेगी

देखो

याद ही नहीं आ रहा कहां पर रखी थी।

चलो ऐसे ही हो जाओ, कुछ किया नहीं जा सकता

मुझे डर लग रहा है

किस से?

अंधेरे से

मुझे लगा कि मुझ से

आप से क्यों लगेगा?

ऐसे ही सोच रहा था।

अच्छा सोचा किजिये

बताओ क्या करें?

पता नहीं

अगर नींद आ रही है तो कमरे में जा कर लेट जाओ, नींद आ जायेगी

नींद नहीं आयी थी तभी तो उठ कर आयी हूँ

बताओ क्या करुं?

अब यह भी मैं बताऊं?

बता भी दो नहीं तो यही मेरे पास बैठी रहो, अब नींद क्या आयेगी

आप भी बिल्कुल बुद्धू है

तुम अक्लमंद हो तो बता तो

उस ने मेरी बांह पकड़ी और मुझे उठा कर अपने साथ ले कर चल दी। अंधेरे में मैं उस के सहारे ही चल रहा था। बाहर बारिश का शोर मच रहा था। लगता था कि अंदर भी तुफान आने वाला था। उस ने मुझे बेड पर बिठा दिया। कमरा भी अंधेरे में डुबा था। वह मेरे साथ बेड पर बैठ गयी। उस के बदन की खुशबु मेरे नथुनों में समा रही थी। वह क्या चाहती थी मैं समझ रहा था लेकिन मैं हिचक रहा था। ऐसे वन नाईट रिलेशन में मेरा विस्वाश नहीं था। वह धीरे से मेरे नजदीक खिसक कर बैठ गयी। अब उस के बदन की गरमी भी मुझे महसुस होने लगी थी। जांघों के बीच में तनाव के कारण लिंग अकड़ कर खड़ा हो गया था। उस का सिर मेरे कंधे पर आ गया। उस ने मेरे कान में फुसफुसाया कि चलिये लेटते है। यह कह कर उस ने मुझे बेड पर गिरा कर लिटा दिया और मेरी बगल में लेट गयी। कुछ दिखायी नहीं दे रहा था केवल अनुभव हो रहा था। उन की गर्म सांसे मेरे चेहरे से टकराई और उस के लरचते होंठ मेरे होठों से चिपक गये। मेरा अपने पर से नियंत्रण जाता रहा। मैंने अपने हाथ उस की पीठ पर कस दिये और उसे अपने से लिपटा लिया। वासना ने मेरे पर पुरा अधिकार कर लिया था। मेरी बुद्धि मेरे बस में नहीं थी। उस के उरोजों के कठोर निप्पल मेरी छाती में चुभने लगे। उस ने भी ब्रा नहीं पहनी थी। उस के होंठ मेरे होंठों को चुम रहे थे और मेरे हाथ उस की पीठ को सहला रहे थे। फिर हाथ नीचे उस की कमर से होते हुये कुल्हों को सहलाने लगे। हाथ उन की दरार में घुस गये। नीचे भी कोई बाधा नहीं थी। उस के हाथ भी मेरी पीठ को सहला रहे थे। इस से मेरे शरीर में भी गर्मी बढ़ती जा रही थी। मैंने उस की मैक्सी को हाथों से खींच कर सिर के ऊपर कर के उतार दिया। अब वह बिल्कुल नंगी थी। इस के बाद मैंने अपने कपड़ें भी उतार कर फेंक दिये।

दोनों नगें बदन एक-दूसरे में समाने के लिये लालायित थे। मेरे हाथ उस के उरोजों को मसल रहे थे जो काफी कठोर थे उत्तेजना के कारण वह पत्थर के समान हो गये थे। निशा की उम्र भी 30 साल की ही थी इस लिये शरीर का कसाब भरपुर था। यह अब मुझे पता चल रहा था। उस के कुल्हें भी कठोर थे। मेरे होंठ उस की गरदन पर चुम्बन लेते हुये उस के उरोजों पर आ गये और तने निप्पलों को चुसने लग गये। निशा के मुंह से आहहह उहहहहहहहहहहह निकलने लगी थी। फिर मैंने होठों से उस के उरोजों को मुंह में भर कर चुसना शुरु कर दिया। निशा आहहहहह करने लगी, मैं अपने काम में लगा रहा। मेरा एक हाथ उस की कसी कमर को सहला कर उस की जांघों के मध्य उतर गया। योनि की भंग को उगलियां सहलाने लग गयी, इस से निशा की उत्तेजना बहुत अधिक बढ़ गयी। फिर वही ऊगलीं योनि के अंदर बाहर होने लगी। अंदर नमी की कमी नहीं थी। मैं संभोग से पहले उसे भरपुर उत्तेजित करना चाहता था। कुछ देर बाद उस ने मेरे होंठों को उत्तेजना वश काटना शुरु कर दिया। मुझे पता चल गया कि अब निशा को चोदने का समय आ गया है। इसी लिये उस के ऊपर आ कर मैंने हाथ से लिंग को पकड़ कर अंदाजे से उस की योनि के मुंख पर रखा और जोर लगाया। पहली बार में ही लिंग योनि में प्रवेश कर गया। अंदर नमी भरी थी। इस कारण से लिंग को योनि में गहराई में जाने में आसानी हुई। मैंने जोर जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिये। कुछ देर बाद निशा ने भी नीचे से मेरा साथ देना शुरु कर दिया। हम दोनों की गति तेज हो गयी। कमरा फचाफच की आवाज से भर गया। कुछ देर बाद निशा मेरे ऊपर आ गयी और मेरे ऊपर बैठ कर अपने कुल्हें हिला कर लिंग को अंदर बाहर करने लगी। उस की गति भी बहुत तेज थी। मैं उस के उरोजों को सहलाता और दबाता रहा।

जब निशा थक गयी तो वह नीचे ऊतर गयी। अब मैं उस के ऊपर आ गया और जोर जोर से धक्के लगाने लग गया। सारा शरीर जल सा रहा था। लेकिन डिस्चार्ज नहीं हो रहा था। मेरा शरीर एक लकीर में सीधा हो कर जोर से धक्कें लगाता रहा। नीचे से निशा कराहने लगी। फिर अचानक मेरी आंखों के सामने सितारे चमचमा गये और मैं डिस्चार्ज हो गया। गर्म गर्म वीर्य निशा की योनि में भर गया। वह भी डिस्चार्ज हो गयी उस के गर्म योनि द्रव से मेरा लिंग नहा गया था। निशा ने अपनी टांगें मेरी कमर पर कस ली। हम दोनों कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे फिर अगल-बगल लेट गये। शरीर पसीने से नहा गया था। सांस धौकनी की तरह चल रही थी। कुछ देर बाद जब सांसे सामान्य हुई तो निशा ने मेरी चकौटी काट कर कहा कि आप ने तो दम ही निकाल दिया था। मैं बोला कि ऐसा हो जाता है। मेरी हालत भी तुम्हारी जैसी ही है।

वह बोली की दीदी की शादी से ही आप को पसन्द करने लगी थी और सोचती थी कि कब आप से प्यार करने का मौका मिलेगा। लेकिन यह नहीं पता था कि ऐसा मौका मिलेगा। भाग्य ने आज मेरी वह इच्छा पुरी कर दी है। आज तो मैं अपने मन की हर इच्छा पुरी करोगी। मैंने पुछा कि अब भी कोई इच्छा बची है तो वह बोली कि उन की तो लम्बी लाइन है। मैं उस की बात सुन कर हैरान था कि यह शादी शुदा है और मेरे पीछे पागल है। कुछ देर बाद वह मुझ से लिपट कर बोली कि जीजा जी एक बार फिर हो जाए? मैंने कहा कि नीचे हाथ लगा कर देखो अगर महाराज तैयार है तो मैं भी राजी हूं। निशा ने मेरी जांघों के मध्य हाथ लगाया तो मेरा लिंग तैयार मिला। यह देख कर वह मेरे ऊपर आ गयी और फिर से वासना का आदिम खेल शुरु हो गया। इस बार निशा कमांडिग पोजिशन में थी। उस के कुल्हें उछल-उछल कर लिंग को अंदर ले रही थी और आहे भर रही थी। जब वह थक गयी तो मैं उस के ऊपर आ गया और जोर-जोर से धक्कें लगाना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद तुफान आ कर चला गया। हम दोनों इस में इतना थक गये थे कि अगल-बगल लेट कर थकान मिटाने लगे। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। तभी लाइट जल गयी इस का मतलब था कि बिजली आ गयी थी। बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी। सुबह होने को थी, इस लिये मैं कुछ देर बाद बेड से उठ कर बाथरुम में अपने को साफ करने चला गया। निशा बेड पर ही लेटी रही। मैं जब बाथरुम से बाहर निकला तो वह कपड़ें पहन चुकी थी। मुझ से बोली कि आप के कपड़ों पर प्रेस कर देती हूँ सुख जायेगे। ड्राइग रुम में जा कर देखा तो कपड़ें सुख चुके थे। निशा उन्हें प्रेस करने ले गयी। कुछ देर बाद वह उन्हें सुखा कर ले आयी। मैंने उन्हें पहन लिया और निशा से विदा लेकर अपनी कार लेकर घर के लिये चल पड़ा, बारिश तो अभी भी हो रही थी लेकिन उस का जोर कम हो गया था। रास्ते भर सोचता रहा कि पत्नी को क्या जबाव दूंगा। लेकिन घर पहुंच कर पत्नी ने कुछ नहीं पुछा और मैं आराम करने के लिये कपड़ें बदल कर लेट गया। थोड़ी देर बाद उठ कर ऑफिस के लिये चला गया।

मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूँ इस लिये इस घटना को भुलना चाहता था इस लिये कभी निशा के बारे में कोई बात नहीं की, ना ही कभी उस से मिलने की कोशिश की। समय के साथ-साथ मैं इस घटना को भुल गया। जो मेरे लिये सही था।

इस घटना के पांच या छ साल बाद एक मॉल में खरीदारी करते में निशा से मुलाकात हो गयी। उस ने मुझे आवाज दे कर पुकारा तो मैं रुक गया। वह मेरे पास आयी तो बोली कि जीजा जी कैसे है? मैंने उसे पहचान कर कहा कि तुम बिल्कुल नहीं बदली तो वह बोली कि आप भी कहा बदले है। मैं मुस्करा दिया। तभी उस के साथ खड़ें बच्चे पर मेरी निगाह पड़ी तो मैंने पुछा कि निशा यह तुम्हारा है तो वह बोली कि हां मेरा ही है। उसकी आंखों की चमक में एक शरारत सी थी। मैंने बच्चे को दूलारा तो मुझे पता लगा कि यह तो मेरे बचपन की फोटो जैसा लगता है। मुझे कुछ याद आया तो मेरी हालत देख कर वह मुस्करा कर बोली कि क्या देख रहे है? है ना आप की कॉपी। मैंने कुछ कहने को मुंह खोला लेकिन कुछ सोच कर चुप हो गया तो वह बोली कि यह उसी रात की सौगात है। आप को डरने की जरुरत नहीं है किसी को कुछ नहीं पता है। मैंने कहा कि पता भी नहीं चलना चाहिये। यह कह कर मैं बच्चे के सर पर हाथ फिरा कर आगे बढ़ गया। अपने आप को अपनी आंखों के सामने देख कर अचंभित था। लेकिन कुछ ना कहना ही सही था। निशा खुश थी यही मेरे लिये काफी था। मैं कुछ सोचने वाला या करने वाला कौन होता हूँ?

~~ समाप्त ~~

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