Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereमेरे अंतरंग हमसफ़र
आठवा अध्याय
हवेली नवनिर्माण
भाग 4
वासना का एक उत्कृष्ट नमूना
उसके बाद हम घूम फिर कर वापिस इस्तांबुल के मंदिर लौटे और उस रात मैंने फ्लाविआ क्सान्द्रा जीवा और और पर्पल के साथ सम्भोग किया और सुबह के समय हमने वापिस लंदन लौटने का फैसला किया तो फ्लाविआ जो की इस्तांबुल के मंदिर की मुख्य पुजारिन थी वो मुझसे बिछड़ने के विचार से थोड़ा दुखी थी. और अब लंदन से शेष सभी मुख्य पुजारिने भी अपने अपने शहर के मंदिरो की और लौट गयी थी और अब वहांके मंदिर में जीवा और पर्पल रहने वाली थी. और वो अब मेरे साथ खूब मस्ती कर सकती थी और मेरे साथ स्नान करते करते इस विचार पर पर्पल ने अपना पूरा निचला होंठ काटा और धीरे से सिर हिलाया,।" वह पानी में पहुंच गई और अपने बदन को कोमलता से तब तक ऊपर उठा लिया, जब तक कि ऐसा नहीं लग रहा था कि वह पानी की सतह पर तैर रही है। फ्लाविआ अपने दूसरे हाथ से मेरे लंड को आधार से सिर तक सहलाया, उसकी उँगलियाँ लंड की नसों के मार्ग को सहला रही थीं क्योंकि वह उसके स्पर्श के जवाब में मोटा होने लगा था।
"क्या आप कम से कम मुझे आपको याद करने के लिए कुछ छूट देंगे? मैं इसे अपने हाथ से कर सकती हूं," फ्लाविआ ने थोड़ा और जोर से कहा, " मैं इसे अपने मुंह से कर सकती हूं," उसने अपने होंठ चाटे, "आप मेरी दरार के बीच में इसे आगे पीछे करो," उसने अपनी बाहों को मेरे आलिंगन में दाल कर मुझे निचोड़ा और अपने विशाल स्तन एक साथ मोहक रूप से दबाए, " आप जो चाहे वो कर सकते हैं चुदाई भी कर सकते हैं ।"
मैंने आनंद और प्रलोभन में आह भरी, मेरी विशाल गेंदें इच्छा में धड़क रही थीं। मैं लंड उसकी योनि में डालने के लिए बेताब था ।
"तुम बहुत प्यारी हो, लेकिन मैं तुम्हें इंतज़ार करवा रहा हूँ।" इस बार जब मैं आगे झुका और हमारे होंठ एक भावुक चुंबन में मिले, जिसने फ्लाविआ के शरीर में एक कंपकंपी भेज दी, ये चुंबन भी वासना का एक उत्कृष्ट नमूना था। जब तक मैं उसे चूमता रहा तक वह उसमें पिघलती रही।
"मैं तुम्हें हमेशा याद करने वाली हूँ लेकिन मैं तुम्हारे साथ एक या उससे अधिक बार मिलने के लिए उत्सुक हूँ।" उसने कहा। मुझे आपके साथ बहुत मजा आया!
"मैं भी आपको याद करूँगा," मैंने कहा, उसने मेरे लंड को एक हार्दिक निचोड़ देते हुए, "लेकिन आप भी जबरदस्त सम्भोग करते हो ।"
वह मुड़ी और पानी छोड़ते हुए बाहर आ गयी और पानी के मोती उस पर से फिसल रहे थे जिससे उसका दिमाग उनके साथ-साथ नीचे की ओर खिसक गया और वो बाहर चली गयी । मेरा लंड अब पूरी तरह से खड़ा था, क्सान्द्रा के हाथ में मेरे लंड का सिर जीवा की टांगो के बीच की खाई को दूर तक फैला रहा था लेकिन जीवा कल रात की पॉवरफकिंग के बाद को सावधानी से मुझे साफ कर रही थी ।
जैसे ही मैं अंत के करीब पहुंच गया, जीवा अपने हाथों को मेरे से दूर नहीं रख सकी, मोटे मांसल स्तंभ को सहलाते हुए, अपने हाथों और पानी के गर्म-ठंडे कंट्रास्ट का आनंद लेते हुए, मेरी भारी गेंदों को सहारा देने के लिए एक हथेली को नीचे कर दिया। क्सान्द्रा अधिक से अधिक तात्कालिकता में स्ट्रोक कर रही थी मैंने अपनी आँखें बंद कर ली थी था क्योंकि मैं चरमोत्कर्ष के करीब और करीब आ गया था।
तभी स्नानागार में रखे गमलो में पत्तों की सरसराहट ने उसे बाधित कर दिया, और मैं सोच रहा था कि क्या फ्लाविआ मेरे लंड से वीर्य उत्सर्जन देखने के लिए वापस आई थी।
हालांकि, जब मैंने अपनी आंखें खोलीं, तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया । यह हरी आंखों वाली फ्लाविणा नहीं थी जो उस स्नानागार की जलधारा के किनारे घास में आराम से बैठी थी, बल्कि एक ऐसी महिला थी जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वह लम्बे कद वाली थी, आसानी से छह फीट के आस पास लम्बी थी और सुंदर दिखने वाली बाहों और लम्बी पिंडलियों वाली थी जो उसकी उस पोशाक से मैं देख सकता था। उसके बाल घने, चमकदार गोरे थे जो धूप में सुनहरे-पीले चमकते थे और नीलम की आँखों से एक निर्दोष चेहरे को ढँकते थे।
उसकी हर चीज़ नायाब थी... लंबी, छरहरे बदन की मालकीन...5'१०-11" की लंबाई, बदन में सही जह सही गोलाई और उभार...लम्बी नाक सुडौल रंग गोरा... पतली और झीनी सी ड्रेस पहने, हाथ में जाम लिए बैठी थी।
शायद उसके स्तन की जोड़ी ने मेरा सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया था जिसके आगे जीवा या क्सान्द्रा की छाती बिलकुल स्पॉट लगती थी । विशाल ग्लोब उसकी छाती पर ऊँचे थे और इतनी स्पष्ट दृढ़ता के साथ उसके अंगरखा में दब गए थे कि लगता था अभी अंगरखा फाड़ कर बाहर निकल आएंगे और उनके केंद्र में दिखाई देने वाले निपल्स मानो उस झीने कपड़े को फाड़ डालने पर आमादा थे । क्सान्द्रा ने झटके से मेरे लंड पर हस्तमैथुन बंद कर दिया लेकिन इस महिला की दृष्टि ही मुझे एक पल में लगभग चरम पर पहुंचाने के लिए पर्याप्त थी।
हम चारो मैं फिर क्सान्द्र पर्पल और जीवा सभी पूल से एक एक कर बाहर निकल आये और हम सभी नंगे थे.. एक दूसरे को सहलाते, चिपकते, नोचते, चूमते और कमर हिलाते एक दूसरे में समा जाने को बेताब... सिसकारियाँ.. थपथपाहट, चूमने की चटखारों, अया...उईईईई.. हाई... की धीमी पर मदहोश आवाज़ें निकाल रहे थे. मेरे हाथों की उंगलियाँ उन तीनो की चूचियों की गोलाई...चूत की गहराई, बदन के भरपूर गोश्त का जायज़ा ले रही थी..होंठ एक दूसरे के होंठों से चिपक कर एक दूसरे को पूरी तरेह खा जाने को बेताब थे. फ्लाविआ भी वहां आ गयी और उससे अब और रहा नही गया., उसके सब्र का बाँध फूट पड़ा था...उसने अपनी टाँगें फैला दी..अपने हाथों से अपने गीली, रसीली चूत की फाँकें अलग कर दी, और सनागार के गीले फर्श पर झूमती हुई जीवा के पास लेट गयीं.. क्सान्द्रा मेरे तने हुए, फन्फनाते लौड़े को सहलाते हुए जीवा का आमंत्रण क़बूल करते हुए मेरे लंड को जीवा की टाँगों के बीच ले गयी....और फिर मैंने लंड एक झटके में जीवा की चुत में घुसा दिया फ्लोर पर चुदाई का आलम शूरू हो गया।
अब तक हम स्नानागार के पानी के पूल में मस्ती कर रहे थे और..अब जोड़े फर्श पर पड़े थे...कमरऔर टाँगे पानी में भी हिल रही थी और कमर और टाँगे अब पड़े पड़े भी हिल रही थी..पर अब साथ में लौदे और चूत का खेल भी बराबर चल रहा था..पूरा स्नानगार जीवा की आआआः.....उूुउऊहह...हाईईईईईईई....हाआँ... उईईईई की धीमी सिसकारियों और चीखों से गूँज रहा था...हवस का नंगा नाच अपनी बुलंदियों पर था।
जीवा फ्लाविआ की मुलायम, गीली, रसीली चूत का मज़ा चाट चाट कर ले रही थी.दूसरी तरफ पर्पल फ्लाविआ के होंठों की मस्ती, उसकी जीभ की मीठे और गीले स्वाद का मज़ा उन्हें चूस चूस कर ले रही थी....क्सान्द्र की हथेलिया जीवा की 34D साइज़ वाली चूचियों से खेल रही थीं...उन्हें दबा रही थी....उनकी घुंडीयों को सहला रही थी जितना ज़्यादा फ्लाविआ की चूचियाँ और होंठ चूसे जाते..उतना ही मस्ती से उसकी चूत फदक उठ ती और उसकी चूत भी उतनी ही गीली होती जाती...और चूत चाटने वाली जीवा का मुँह भर उठता था फ्लाविआ की चूत रस से ।
चारो लड़कियों ने मस्ती की सीढ़ियों पर आगे और आगे बढ़ते जा रही थी..फ्लाविणा कराह रही थी, सिसकारियाँ ले रही थी..उसकी आँखें बंद थी ।
क्सान्द्रा और पर्पल ने उसे उठाया और सामने पड़े बड़े से सोफे पर लीटा दिया और अपनी अपनी पोज़िशन बदल ली.....चूत चाटनेवाली अब उसकी चूचियों से खेलने लगी और चूचियों से खेलनेवाली उसके ओंठो पको चूमने लगी और ओंठ चूमने वाली अब उसकी चूत पर टूट पड़ी ।
फ्लाविआ अपनी टाँगे फैलाए..घूटने उपर किए लेटी लेटी मज़े ले रही थी..उसकी चूत से रस की बारिश हो रही थी...चूचियों की घुंडी कड़ी, तनी हुई और ऐसे उपर उठी थी मानो किसी बच्चे की लुल्ली कड़ी होती है.... उन्हें छूते ही फ्लाविआ के बदन में करेंट सा दौड़ जाता ।
उफफफफ्फ़....मास्टर अब आ भी जाओ अरे मुझे चोद मास्टर...अब चोद भी दो ना...कम ऑन.. मास्टर.जीवा तो तुम्हार्रे पास ही रहने वाली है उसे जब मर्जी चोद लेना। "
मैंने अपना लंड जीवा की योनि से निकाला और फ्लाविआ की योनि के ओंठो पर रगड़ा तो वो बोली
" हां मास्टर बस आ जाऔ.....भर दो री चूत अपने लंड से...अया देर मत करो.. आ जाऔ. अरे तड़पाओ मत.." फ्लाविआ ने अपनी टाँगें और भी फैला दीं ।
फ्लाविआ की बातों से मैं और भी जोश में आ गया, और उसकी टाँगें उठाता हुआ अपने कंधों पर ले लिया और अपना लंड उसकी चूत पे रखा और एक जोरदार धक्का मारा..फच से पुर का पूरा लंड साना की चूत के अंदर था।
फ्लाविआ का पूरा बदन सीहर उठा, कांप उठा " है हाँ ओह्ह्ह हान हाअन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह...बस ऐसे ही लगाओ धक्के, रूकना मत..आआअह्ह्ह्ह् हां और ज़ोर..और ज़ोर से करो आह ओह्ह लगा....अयाया अयाया...और ज़ोर..." फ्लाविआ की अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, उसने मेरे कन्धों को जोर से जकड रखा था। हमारे सम्भोग की गति और तेज़ हो गई-फ्लाविआ की रस से भीगी चुत में मेरे लंड के अन्दर बाहर जाने से 'पच-पच' की आवाज़ आने लग गई थी। उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आहें भी निकल रही थीं। उसने आवाज न करने की कोशिश की लेकिन मेरे-मेरे लंड के धक्को की वजह से जो खुशी की सुनामी आयी उसे वह रोक नहीं सकी।
उसकी बातें सुन कर मैं जोश में पॉवरफकिंग धक्के लगाता रहा और फ्लाविआ बुरी तरह से कांपती हुई झड़ गयी लेकिन मैं अभी भी फारिग नहीं हुआ था..आग बूझने का नाम नहीं था।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार