फागुनी के साथ कामुकता के झोंके

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एकदम विपरीत स्वभाव वाली दो सुंदरियों के साथ कामक्रीड़ा।
4.5k words
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Part 1 of the 1 part series

Updated 10/12/2023
Created 01/27/2023
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मैं हूँ हैप्पी और यह मेरी दो गोडेसेस ऑफ सेक्स । एक फागुनी, छरहरा ऐथेलेटिक बदन, बूटा सा करीब पाँच फूट का कद, नटखट, आँखों से चंचलता बरसाती,गोद उठाने मे फूल सी हल्की, फाल्गुन के गुलाल सी लाली लिए हुए गुलाबी रंगत,सेक्स को पूरी शिद्दत के साथ एंजॉय करने वाली, कामक्रीड़ा मे सक्रिय सहभागी,खुल कर खिलखिला कर उन्मुक्त हंसी बिखेरने वाली, तो दूसरी स्वर्णा, मझोले कद, भरे लेकिन गठे हुए बदन की, थोड़ी शर्मीली सी मुस्कान, पूर्व दिशा से उगते सूर्य की पहली किरण जैसा स्वर्ण वरणीय गोरा रंग, सेक्स को गैर जरूरी विलासिता मानने वाली, कामक्रीड़ा मे अनमनेपन से सहयोग करने वाली या यों कहें की कुछ कुछ स्नोबिश, कुछ हद तक फ्रिजिड। फागुनी के बाए होठ के नीचे एक भूरे रंग का छोटा सा मस्सा और स्वर्णा के बाएँ गाल के बीचों बीच मे सामने की ओर एक काला मस्सा ( मुझे चेहरे पर तिल जितने नापसंद है, खास खास स्पोट्स पर मस्से उतने ही सेक्सी लगते हैं,और इन दोनों के मस्से तो कयामत ही ढाते हैं)।

स्वर्णा के बोबे गोल गोल दो मखमली गेंदों की तरह,अपने ही भार से कुछ नीचे झुके हुए, फागुनी की चूचियाँ छोटे अनारो की तरह हार्ड और निपल्स बिलकुल बंदूक की तरह सामने तने हुए। जहां सेक्स के समय फागुनी एक एनेर्जेटिक जंगली घोड़ी वही स्वर्णा एक पालतू गाय। फागुनी हुमेशा हॉट पैंट और टाइट टॉप मे एक सेक्स बॉम्ब तो स्वर्णा शालीन लेकिन वेल फिटिंग सलवार सूट और कभी कभार जीन्स और लूज टॉप मे भी एक सेक्सी लुकिंग सुंदरी कन्या। एक तीखी हरी मिर्च जो खाते समय मुंह से सी सी निकलवा दे, लेकिन अगले भोजन के समय पिछला तीखापन भुला जाए और फिर से खाने की इच्छा होने लगे। वहीं दूसरी मीठी खीर। चम्मच भर भर के खाओ लेकिन पेट फुल हो जाने पर भी मन ना भरे और पेट में थोड़ी सी जगह खाली होते ही फिर से टूट पडो।

तो एक सैटरडे की शाम मै सोफ़े पर बैठा हुआ व्हिस्की के हल्के हल्के सिप ले रहा था और फागुनी और स्वर्णा मेरे दोनों पहलुओं मे सटी हुई बैठी थीं। मै बीच बीच मे कपड़ो के ऊपर ही से उनके स्तन, और जांघे सहलाता जा रहा था और अपने ही गिलास से उन दोनों को व्हिस्की सिप भी करवा रहा था, जिसे फागुनी तो मजे ले कर लेकिन स्वर्णा आदत के मुताबिक नाक भौ सिकोड़ कर गटक रही थी। मुझे याद पड़ता है की पहली बार तो मैंने ज़बरदस्ती उसकी नाक दबा के दूसरे हाथ से मुंह खोला था और फागुनी ने पूरा पेग ही वहाँ पर उड़ेल दिया था। अब इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती है। खैर स्वर्णा की यह अदा भी इतनी दिलकश लग रही थी, की मैंने बोतल से नीट व्हिस्की का एक गहरा घूंट मुंह में भरते हुए, उसे अपनी गोद मे खींच लिया और देर तक उसके होंठो को अपने मुंह की शराब से तर करता हुआ संतरे की फांक की तरह चूसता रहा। साथ ही साथ उरोजों को मींजता रहा। । स्वर्णा ने आदत के मुताबिक न कोई सहयोग किया ना ही प्रतिरोध और चुपचाप लेटी लेटी अपने होठ चुसवाती रही। मैंने तो इसका भी लुत्फ उठाया, और दूसरा फायदा यह हुआ की फागुनी भी मूड मे आ कर मेरे ऊपर लद सी गई। अब मैंने स्वर्णा को उसके हाल पर छोड़ा और फागुनी को किस करना चालू कर दिया। उसने पूरा सहयोग करते हुए पहले अपने होठ चुसवाए, फिर मुह खोल कर मेरी जीभ को भी अंदर जाने दिया।

मैंने उसके पूरे मुंह के अंदर जीभ घुमाते हुए चाटा, उसकी जीभ को जी भर कर चूसा और जीभ को अंदर बाहर करते हुए अपनी जीभ से उसके मुह की देर तक चुदाई की। फिर यही सब काम उसने अपनी जीभ से मेरे मुंह मे भी करे। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह मे घुसा कर चुसवाई और मेरे होठों को भी चूसा।मैं उसका निचला होंठ चूसता तो वो मेरा ऊपर वाला होंठ चूसती और जब मैं उसका ऊपर वाला होंठ चुभलाता तो वो मेरा नीचे वाला चुभलाती। अब खेल करते हुए मैंने एक डबल लार्ज नीट पेग बनाया और उसमे जीभ डूबा कर फागुनी से चुसवाई। फिर फागुनी ने अपनी जीभ व्हिसकी मे तर कर के कर स्वर्णा के मुंह मे डाली और घूमा घूमा कर उसके पूरे मुंह को सराबोर करा। इसी तरह स्वर्णा की भी जीभ जाम मे डलवा कर फिर मैंने उसे चूसा। इस तरह हम देर तक एक दूसरे की नशीली डीप किसिंग करते रहे।जाम के खत्म होने तक तीनों ही सुरूर मे आ चुके थे। इस दौरान फागुनी की आआहह आहह आअहह! जैसी उत्तेजनापूर्ण सिसकारियाँ माहौल को और उत्तेजक बनाती रही।

आखिर मैंने सीधे बोतल से एक और बड़ा घूंट भरा और फागुनी के होंठों को किस करते करते उसके मुंह में ड्रॉप बाय ड्रॉप दारू ट्रांसफर करते हुए,उसी पोजिशन में मुंह से मुंह मिलाए मिलाए,गोद में उठा कर बेडरूम मे ले गया।

बेडरूम मे पहुँच कर मैंने खुद बेड पर बैठ कर फागुनी को सामने खड़ा करके जैसे ही उसके टॉप को हल्का सा झटका दिया, उसके गुलाबी बूब्स एक झटके में चिट्पुटिया बटन्स को खोलते हुए स्प्रिंग बाल्स की तरह उछल कर बाहर आ गए। मैंने उसका टॉप उतार फेंका, और उस के दोनों स्तनो को सहलाना शुरू करा, निपल्स को उमेठा, बोबों को मुट्ठी मे भर भर कर ज़ोर ज़ोर से भींचा,आटे की तरह माड़ा, गोल गोल मसलते हुए आपस मे रगड़ा और अपने चेहरे को इनके बीच मे घुसा कर अपने दोनों गालो पर उसकी दोनों चूचियों से मालिश करी। बीच बीच मे उसके नशे और उत्तेजना से गरम और लाल हो चुके दोनों गालों को भी चूमा चाटा और दाँतो से हल्के से काटा। उसके हिप्स को भी दबाना, सहलाना, मसलना साथ ही साथ चल रहा था। वो भी आआहह आहह आअहह!!! का म्यूजिक देती हुई मेरे निपल्स को चुटकी मे ले ले कर उमेठ रही थी। ।

बता दूँ की मेरा बेडरूम पूरी तरह साउंडप्रूफ है और उसमे जगह जगह आईने लगे हुए है। जिनसे हमे सेक्स की किसी भी पोजीशन मे अपने पार्टनर की और अपनी पीछे की पिक्चर भी दिखती रहती है, और अगर कोई उत्तेजना वश मस्ती मे ऊऊ ऊऊई ईई आअई ईईईई जैसी आवाज़े निकाले तो वो अड़ोस पड़ोस मे सुनाई नहीं पड़तीं। यह बात एग्साईटमेंट को दुगना कर देती है।

इसके बाद मैंने फागुनी की हॉट पैंट और चड्डी को भी एक झटके मे उतार दियाऔर खड़े होते हुए उसको दोनों बगलो के बीच मे हाथ डाल कर फर्श से इतना ऊपर उठाया की उसकी दोनों चूंची मेरे मुंह के सामने आ गईं। फागुनी के हल्के वज़न और जिमनास्टिक बॉडी के कारण इसमे कोई दिक्कत भी नहीं थी। उसे मैं एक कपड़े की गुड़िया की तरह उठा सकता था।झुका पलटा सकता था। स्वर्णा के भरे गुदाज बदन के कारण इतनी उठापटक संभव नहीं। मैने अब पूरी नंगी हो चुकी फागुनी की चूचियों का करीब दस मिनट्स तक जी भर के स्तनपान किया, निपल्स को चाटा, पूरी की पूरी टिट्स को मुह मे भर कर चूसा और अपना चेहरा दोनों के बीच मे डाल कर रगड़ा। वो लंबी लंबी साँसे लेती रही और उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्............आहह हह... सीहह जैसे सीत्कार भरती रही, जिससे मेरा मज़ा और बढ़ता रहा। फागुनी ने उत्तेजित हो कर अपनी दोनो टाँगो को किसी तरह उठा कर मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट लिया। मैंने भी अपनी बाहे उसकी बगलों के नीचे से आगे बढ़ाते हुए उसकी पीठ को कस के जकड़ लिया।

अब पोजीशन यह थी की उसके हिप्स के बीच की दरार मेरे पेनिस से रगड़ खाती हुई मालिश कर रही थीं और चूचियाँ मेरे सीने की मालिश कर रही थीं, क्यूंकी उसका पूरा बदन उत्तेजना वश काँप रहा था और वो ऐसे हिल रही थी जैसे कोई चुड़ैल उस पर सवार हो गई हो। इस सब मे उसका चेहरा मेरे मुह के सामने आ गया और मैंने उस चाँद से मुखड़े की पूरी खातिरदारी शुरू कर दी। कभी मै उसके गालो को चूमता, कभी चाटता, कभी ज़ोर ज़ोर से रसीले फलो की तरह चूसता। मैंने उसके होठो को संतरे की फांक की तरह धीरे धीरे चूसा, ठोड़ी को आम की गुठली की तरह और गालो को तो जब मुंह मे भर कर दाँत गड़ाए तो ऐसा लगा की मानो कश्मीरी सेब का स्वाद ले रहा हूँ। फागुनी ऊह आह हाय, मर गई ऊहह ऊहह यी जैसी उत्तेजक आवाज़े निकालती हुई अपनी वेजाईना और क्लिटोरिस को मेरे शरीर से रगड़ रही थी। उसके कामरस ने मेरी त्वचा को काफी कुछ गीला ही कर डाला। मैंने उसकी बॉडी को सपोर्ट देने के लिए अपनी दोनों हथेलियाँ उसके हिप्स के नीचे पोसिशन कर दीं, और उन्हे ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा।

मैंने फागुनी को धीरे से नीचे उतारा और खुद बेड के किनारे बैठ कर उसको घुटनो के बल ज़मीन पर बैठाया और उसकी चूचियों को मुट्ठियों मे भर कर भींचते हुए उनसे अपने लण्ड का मसाज करने लगा। अपने लण्ड को दोनों उभारों के बीच मे रख कर रगड़ते हुए उसकी बूब फकिंग करी। जब मेरा सुपाड़ा उसके होठों से टकरा जाता तो वो जीभ निकाल कर उसे चाट लेती।

यह खेल काफी देर चलता रहा। फागुनी ने खुद भी अपने दोनों हाथों से अपने बूब्स पकड़ कर मेरे लण्ड पर रगड़े। मेरे सुझाव पर स्वर्णा ने भी उसके पीछे बैठ कर अपने हाथो से फागुनी के बूब्स पकड़ कर मेरे लौड़े की मालिश करी।

थोड़ी देर बाद मैंने फागुनी को उठा कर घुमाया और अपनी गोद मे कुर्सी जैसी पोजीशन मे बैठा लिया। अब उसकी चिकनी और मुलायम पीठ मेरी ओर थी। मैंने पीछे से हाथ बढ़ा कर उसकी दोनों चूचियाँ अपनी मुट्ठियों मे ले कर मसलते हुए उसकी गुलाबी पीठ पर धीरे धीरे होंठ छुआते हुए चूमना शुरू करा। कभी जीभ से चाटता तो कभी पूरे प्रैशर से दबा दबा के किस करता, तो कभी दाँतो से निशान बनाता। अब तक उसकी पीठ गुलाबी से लाल हो चुकी थी और उस पर मेरे दांतों के निशानों की चित्रकारी के गहरे गहरे निशान बन चुके थे।

इस बीच मेरे हाथ उसकी चूचियों की पूरी आवभगत मे लगे थे। वो उत्तेजना से काँप रही थी और बेचैनी के साथ एक जल बिन मिछली की तरह उछल रही थी।

मैंने कनखियों से स्वर्णा को देखा, तो वो हमेशा की तरह बिना किसी उत्तेजना के इधर उधर ताक रही थी। ज़रा इधर आओ और कुछ काम धंधा भी करो, मैंने हंस कर बोला। मैने उसको फागुनी के सामने खड़ा करके एक झटके मे उसके कुर्ते को उसके बदन से अलग कर दिया और उसकी चूचियाँ ज़ोर से मसलते हुए उसके निपल्स को उमेठने लगा। जब मेरी उंगलियों की मेहनत से वो तन कर खड़े हो गए तो उन्हें फागुनी के मुह मे दे दिया। फागुनी ने स्वर्णा की चूचियों को बिना किसी भूमिका के ज़ोर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया। इससे उसका खुद का उछलना कूदना कुछ कम हुआ और मैं आसानी के साथ उसके बदन से खेलता रहा। फागुनी ने स्वर्णा की चूचियाँ चूसते चूसते ही उसकी सलवार का नाड़ा खोल डाला और सलवार और पैंटी नीचे खिसकाते हुए उसकी बुर से खेलने लगी। अभी तक मैंने फागुनी के निचले हिस्से को एक बार भी हाथ नहीं लगाया था, लेकिन वो वहाँ पे इतनी तर थी की अनगिनत बार झर चुकी लग रही थी।

अब फागुनी उत्तेजना से बुरी तरह काँप रही थी और बार बार मेरे पेनिस को पकड़ना चाह रही थी, लेकिन मैंने उसकी बेकरारी को और बढ़ाने की गरज से ऐसा नहीं करने दिया और फिर से उठा कर बेड पर पटक दिया। अब बारी निचले हिस्से की थी। मैने स्वर्णा को इशारा किया, तो वो फागुनी का सर अपनी गोद मे ले के बैठ गई और उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। मैंने फागुनी की जांघों के बीच मे बैठ कर उनका हल्के हल्के मसाज करना शुरू करा और एक लंबे समय तक उसके दोनों छेदों के बीच की जगह की अंगूठे से मालिश करता रहा। और धीरे धीरे उसके वेजाईना के होंठो को खोलता बंद करता रहा। इस बीच वो लंबी लंबी साँसे लेती रही।काफी देर बाद मैंने उसकी क्लिटोरिस को हल्के से मसला। वो और उत्तेजित हुई। फिर मैंने क्लिटोरिस को मसाज करना और चुटकी मे लेकर मसलना शुरू करा।

उसकी पूरी बॉडी उत्तेजना से काँप रही थी, मुंह से ऊऊ ऊऊई ईई आअई ईईईई उफ्फ्फ फ्फ्फ् जैसी आवाज़े निकल रही थी,ऐसा लग रहा था की जैसे बिस्तर पर किसी मछली को पानी से बाहर निकाल कर डाल दिया गया हो।भला हो स्वर्णा का की उसने फागुनी के हाथ पकड़े हुए थे और सर को अपनी गोद मे दबा रखा था। और नीचे मै उसके पैरो के बीच मे बैठ कर उन्हे दबाये हुए था। काफी देर तक क्लिटोरिस से खेलने के बाद मैंने दो उँगलियाँ उसकी चूत मे घुसेड़ ही दी। उसे कुछ राहत मिली। मैंने धीरे धीरे वैजाइना के अंदर मसाज शुरू करा। काफी देर तक धेर्यपूर्वक मसाज करते रहने के बाद उसका जी स्पॉट मिल ही गया। जैसे ही मैंने जी- स्पॉट छूआ, फागुनी को तो माने जूड़ी चढ़ गई हो। वो ज़ोर ज़ोर से उईईईईईई मर गई!गर्रर उईईईईईए! जैसी आवाज़े निकालते हुए तड़पने लगी। मेरे इशारे पर स्वर्णा ने जल्दी से उसके होंठो को अपने होंठो मे दबा कर चूसने शुरू कर दिया और फागुनी की चीखें केवल धीमी धीमी ऊंहह... गूं... गूं... अम्म... ऊम्म... गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ... मे तब्दील हो कर रह गई। उसकी चूत से तो मानो कामरस के फव्वारे छूट रहे थे।

अब मैंने फागुनी के पेट को चूमना और चाटना शुरू करा। बीच बीच मे कही पर चूसा तो कहीं पर दाँत गड़ाए। उसकी नाभि मे जीभ की नोक से देर तक मालिश करी और नाभि को मुह मे भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसा। नीचे बढ़ते हुए, उसकी क्लिटोरिस को चाटना और चूमना चालू करा और मुह मे भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसा, और दांतों से हल्के से कचकचा भी दिया। । उसकी चूत तो जैसे परनाले का रूप ले चुकी थी। कामरस एक बहती धार की तरह बाहर आ रहा था। आखिर मे मैंने उसकी चूत की फाँकों को अपनी उँगलियों से फैलाते हुए,अपनी जीभ उसमे घुसेड़ दी, और चारो तरफ घूमाना चालू करा। इस बार जी-स्पॉट ढूँढने मे भी ज्यादा परेशानी नहीं हुई। फागुनी का तो हाल इतना बुरा हो गया की उसकी उईईईईईई मर गई!गर्रर उईईईईईए!की चीख़ों ने कमरा गुंजा दिया। अब स्वर्णा के लिए उसको काबू मे रखना संभव नहीं रहा। लेकिन मैंने उसके हिप्स को कसके पकड़े रखा और अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी। उधर स्वर्णा की पकड़ छूटते ही फागुनी आधी उठ कर अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पर ज़ोर ज़ोर से दबाने और रगड़ने लगी। थोड़ी देर बाद फागुनी की चूत को चाट चाट कर सुखाने के बाद जब मैंने सर उठाया तो देखा तो पाया की इस सब तमाशे से प्रभावित हो कर स्वर्णा भी थोड़ी थोड़ी उत्तेजित होरही है और एक हाथ से अपनी चूत हल्के हल्के सहला रही है तो दूसरे से निपल्स उमेठ रही है। मुझसे नजरे मिलते ही वो सकपका गई और जल्दी से अपने हाथ सामान्य मुद्रा मे ले आई। मै केवल मुस्कुरा दिया। स्वर्णा भी अब लाइन पर आ रही थी।

फिर मैंने फागुनी को पलट कर लिटाया और उसकी टांगों पर बैठते हुए उसके चूतड़ो को मसलना शुरू कर दिया। दोनों चूतड़ो को बिलकुल चूचियों की तरह ही बुरी तरह मसला, सहलाया, आटे की तरह मींजा, आपस मे रगड़ा और फिर मुंह से चूमा,चाटा, चूसा और दाँत भी गड़ाए। मेरी उँगलियाँ उसकी चूत और गांड़ की बकायदा चुदाई कर रही थी। मैंने अपना ध्यान उसके चूतड़ो से ऊपर बढ़ते हुए उसकी माँसल पीठ पर केन्द्रित किया, जहा पर थोड़ी देर पहले की मेरे दाँतो की चित्रकारी अपने जलवा दिखा रही थी। मैंने फिर से अपनी पेंटिंग को अपने दाँतो और जीभ की तूलिका से और सजाना शुरू करा और साथ ही साथ अपने थूक के रंग भरने लगा। साथ ही मैंने अपने हाथ उसकी देह से नीचे ले जा कर उसके बूब्स को मसलना भी चालू रखा। और ऊपर का सफर तय करते हुए मैंने स्वर्णा की गोद मे रखे फागुनी के गुलाबी कपोलों के साइड पोज़ पर धावा बोला और दोनों गालों पर बारी बारी से चूसने कचकचाने और चूमने का आनंद लेने लगा। मैंने उसके दोनों कानो को भी नज़रअंदाज़ नहीं करा। उसके कानो की लवों को चूसा, पूरे पूरे कानो को चाटा और कानो के छेदो मे जीभ डाल कर फड़फड़ाई और गोल गोल घुमायी, यानि कानो की भी चुदाई करी । फागुनी तो एकदम नागिन की तरह बल खा रही थी, और अपना सर स्वर्णा की गोद मे होने का फाइदा उठाते हुए उसकी चूत को चाटने की कोशिश कर रही थी। आSSहाSS..आहा...उSSS ऊहूSSSSहू... फागुनी की सिसकारियों से कमरा गूंज रहा था।

यहाँ यह बता दूँ की मैं शारीरिक सफाई के बारे मे बहुत गंभीर हूँ। किसी भी सेक्स सेशन से पहले हम तीनों टूथ ब्रुश, माउथ वाश से कुल्ला करते है,फिर एकट्ठा शावर लेते है और एक दूसरे की अपनी तसल्ली से शैमपू, फ़ेस वाश,वैजाइनल वाश, बॉडी जेल से सफाई करते है। खास तौर पर मैं उन दोनों की चूत, गांड, नाभि और कान अपने हिसाब से साबुन से अच्छी तरह रगड़ता हूँ, और वो दोनों भी एक दूसरे को ऐसे ही साफ करती हैं। फिर वो दोनों बारी बारी से मेरे लण्ड, टट्टों, नाभि और कानों की सफाई अपने हाथों से करती है। वीट वगैरह से बालो की सफाई भी हम लोग एक दूसरे की करते हैं। आखिर जिसको चाटना, चूसना है, उसको तसल्ली होनी ही चाहिए। यह एक तरह से फुल फोर प्ले सेशन हो जाता है और मूड सेटर का काम करता है।

खैर अब फागुनी अपनी मरवाने के लिए पूरी तरह तैयार और बेताब थी और मै भी बाहर ही डिसचार्ज होने के खतरे मे आ गया था। मैने अब फागुनी की बगल मे लेटते हुए उसे अपने ऊपर खींचा। वो तो पहले से ही बेकरार थी। तेजी से उठी और मेरे सख्त तने हुए लौड़े पर अपनी चूत की फाँकों को सटा कर तेज धक्का मारा। मेरा लौंडा खचाक की आवाज़ के साथ अंदर धँसता चला गया। मुझे भी कुछ शांति मिली। अब उसने अपने चूतड़ो को हिलाते हुए ऊपर नीचे उठना बैठना शुरू करा। उसके उरोज, जो मेरे हाथो और मुंह की कृपा से लाल हो चुके थे,और निपल्स जो लगातार उमेठे जाने से तन चुके थे, दो गुब्बारों की तरह ज़ोर ज़ोर से फुदक रहे थे। करीब पाँच मिनट के बाद मैंने उसके स्तनो से फिर से खेलना शुरू करा।

फागुनी ने भी आगे की ओर झुकते हुए अपनी चूचियों को मेरे होंठो से छूआना शुरू करा। वो मुझे चिढ़ाते हुए निपल्स को मेरे होंठो से टच करती और जैसे ही मैं मुंह खोलता, दूर हो जाती। मेरी आँखों के सामने झूलती हुई दो दो गुलाबी गेंदें मुझे मदहोश कर रही थीं। आखिर मैंने उसके दोनों बूब्स को अपनी मुट्ठी मे ले कर भींचते हुए उसके दोनों निपल्स एकट्ठा ही अपने मुह मे भर लिए और उनका रसास्वादन करने लगा, और नीचे से ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। फागुनी के मुंह से ऊऊ ऊऊई ईई आअई ईईईई उफ्फ्फ फ्फ्फ् जैसी अजीब अजीब आवाज़े निकाल रही थी, जो की माहौल को और उत्तेजक बना रही थी। सच पूछो तो उसकी इसी अदा पर तो मै कुर्बान था। मैंने उसकी चूचियो को छोड़ा और उसके गालो को चूमते हुए प्यार करने लगा।

अब मैं फागुनी के अंदर लण्ड डाले ही डाले उठ कर आलथी पालथी मार कर बैठ गया और उसको लोटस पोजीशन मे पेलने लगा। फागुनी भी अपनी दोनों टाँगे मेरी कमर मे और बाहें गले मे लपेट कर मुझसे एक पेड़ के साथ बेल की तरह लिपट गई।उसको कस कर आलिंगन मे भींचते हुए मैंने उसकी गरदन और कंधों को चूमना और चूसना शुरू करा और उसकी चूचियो के मेरे सीने के साथ घर्षण का आनंद लेने लगा।थोड़ी देर बाद मैने अपने हाथ उसके चूतड़ो पर लगाए और फिर अपनी एक उंगली उसकी गांड मे घुसा दी। वो ज़ोर से चिहुंकी लेकिन मेरे लण्ड पर अपना उठना बैठना जारी रखा।थोड़ी देर तक ऐसे ही चोदने के बाद, मैंने अपनी पकड़ ढीली करी और बिना डिस्कनेक्ट हुए उसको थोड़ा पीछे धकेल के उसके हाथो पर टिका दिया। अब उसकी क्लिटोरिस भी मेरी पहुँच मे आ गई। मैंने मौके का फाइदा उठाते हुए फिर से उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। बार बार चुटकी मे भर कर उमेठा, उंगली से रगड़ा और गोल गोल घुमाया। साथ साथ अपने दूसरे हाथ की उंगली उसकी गांड मे आगे पीछे करता रहा। फागुनी के मुंह से लगातार सीतकारें निकल रही थीं उईईए मम्मी उफ्फ्फ सीईई!और वो तेजी के साथ उछल उछल कर धक्के मार रही थी। इस बीच स्वर्णा को कुछ और इनवॉल्व करने के इरादे से मैंने उसे फागुनी के पीछे बैठ कर उसे सपोर्ट करने के लिए बोला। स्वर्णा ने फागुनी के पीछे बैठ कर उसका सर अपनी छातियों पर टिका लिया और उसके बूब्स से खेलने लगी। फागुनी के हाथ भी फ्री हो कर कुछ रिलैक्स हो गए और वो उनकी माला बनाकर स्वर्णा के गले मे झूल सी गई और अपने पीछे से उसका सर अपने ऊपर खींच कर उसके होठों का रस पीने लगी।

मैं अब फिर से चित लेट गया और फागुनी को चूंचीयां पकड़ कर ज़ोर से अपनी ओर खींचा। वो मेरे सीने पर गिर पड़ी और उसकी चूचियाँ एक थपाक की आवाज़ के साथ आ कर मेरे सीने से टकराईं। मैंने उसको बॉडी टु बॉडी पूरी लंबाई मे अपने ऊपर लिटा लिया और उसकी पीठ और कंधो की मसाज करने लगा। फागुनी का मुह मेरे सीने पर था, उसने मेरे एक निपल को धीरे धीरे चाटना शुरू कर दिया। फिर अपने होंठो से हल्की हल्की मसाज करी और काफी देर तक ऐसा करने के बाद मुह मे ले कर गोल गोल घुमाते हुए पहले हल्के हल्के और फिर तेजी के साथ चूसने लगी। अब आहअह आः निकालने की बारी मेरी थी। मैंने उसका सर पकड़ कर दूसरे निपल पर रखा तो वो भूखी शेरनी की तरह उस पर भी टूट पड़ी। एक दो बार तो उसने उत्तेजित हो कर मेरे सीने पर ज़ोर से काट भी लिया। मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था। काफी देर तक वो बारी बारी मेरे दोनों निपल्स की सेवा करती रही। उसकी निपल्स चूसने की कला के आगे मैं तो बिलकुल नौसिखिया ही महसूस कर रहा था। मेरा लाउडा और फनफनाने लगा। इस सब से उसे भी उत्तेजना आ रही थी, और वो मेरे शरीर पर स्लाइड करती हुई आगे पीछे हिलने लगी, जैसे बॉडी टु बॉडी मसाज दे रही हो। साथ ही साथ अपनी टांगें क्रॉस कर कर के वो मेरे लड को निचोड़े जा रही थी। मैं उसके चूतड़ो को दोनों हाथो से बुरी तरह मसलते हुए उसकी चूत को और टाइट करने की कोशिश कर रहा था। फागुनी जल्दी निकालो जलदी निकालो चिल्ला रही थी। उसके होठो पर एक भरपूर चुंबन देते हुए मैंने उसके कानो मे सरगोशी की -- तसल्ली रखो जानेमन, सितारों के आगे जहां और भी हैं.........

मिशनरी पोसिशन मेरी पसंदीदा पोजीशन रही है और मैं अक्सर अपने सेशन का समापन इसी पोजीशन से करता हूँ। इसलिए मैंने अपना लंड उसकी चूत मे घुसाए घुसाए ही एक पलटी मारी और उसको पीठ के बल नीचे लिटाते हुए उसके ऊपर आ गया। मैंने उसके नीचे से हाथ लिपटाते हुए उसका ज़ोर से भींचते हुए आलिंगन किया और होठों को चूसते हुए फ़ाइनल अटैक शुरू कर दिया। मैंने उसके गालो के ज़ोर ज़ोर से पुच्च पुच्च की आवाज़ करते हुए अनगिनत चुम्मियाँ लीं और फिर बारी बारी से कभी दायें तो कभी बाएँ गाल तो कभी ठोड़ी को पीते हुए लगातार धक्के मारने शुरू करे। बीच बीच मे गालो को हल्के से कचकचा भी देता। फागुनी ने अपने दोनों बाहों और टांगों से मेरी गरदन और कमर को बुरी तरह जकड़ रखा था और वो उत्तेजना मे आआहह आहह आअहह! ओह्ह्ह अह्ह्हह्हउईईईईईई माँ...उईईईईईए! जैसी आवाज़े निकालते हुए धक्के मार रही थी और मेरी पीठ पर अपने लंबे लंबे नाखूनो से चित्रकारी कर रही थी।

मैंने अपनी टांगें उसके दोनों तरफ फैलाते हुए उसकी टागें अंदर आने दीं। अब उसको अपनी चूत से मेरे लण्ड को दबाने मे आसानी हुई। उसकी चूत तेजी के साथ फूलते और सिकुड़ते हुए मेरे लौड़े को निचोड़ रही थी। बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे की वो अपने मुंह के होठो से मेरे लौड़े को चूस रही हो। उसकी क्लिटोरिस भी अपनी एक अलग ही अदा से फुरफुरी ले रही थी।

आखिर एक ज्वालामुखी की तरह मेरा लावा उबल उबल कर निकलने लगा और उसकी चूत भी फव्वारे छोड़ती हुई हम दोनों के जुसेस से लबालब हो गई।उसने मेरे से कस कर लिपटते हुए मेरे कंधे पर अपने दाँत गड़ा दिये। एकसाथ ओरगस्म पर पहुँच कर हम दोनों निढाल हो कर उसी पोजीशन मे नीम बेहोशी के आगोश मे खो गए।

करीब पंद्रह मिनट्स बाद मेरा वज़न अपने ऊपर महसूस करके फागुनी कसमसाई तो मेरी आँख खुली। उसका चेहरा बिलकुल बेड के किनारे पहुंचा हुआ था। मैंने धीरे से अपने वीर्य और उसके चूत के पानी, दोनों से सना, ढीला पड़ा लौडा उसकी चूत से निकाला और सिरहाने की तरफ जा कर उसके गालो पर धीरे धीरे छूआने लगा। उसने हल्का सा मुंह खोला तो मैंने लगे हाथों अपना लण्ड उसके मुंह मे प्रवेश करा दिया। वो उसी नीम बेहोशी की हालत मे रीफ्लैक्स एक्शन से उसे धीरे धीरे चूसने लगी। उस समय फागुनी बिलकुल बोतल से दूध पीते बच्चे की तरह मासूम लग रही थी। लेकिन उसके मुंह का स्पर्श और उसकी नर्म चुसायी से मेरे लौड़े मे फिर से हरकत आने लगी और वो सख्त होते हुए तनने लगा। अब फागुनी शायद सोने की एक्टिंग ही करते हुए उसको पूरी एक्सपरटीज़ के साथ चूसने चाटने लगी। कभी अगले सुपाड़े को लेमन जूस की तरह चूसती तो कभी उसको जड़ से ले कर पूरी लंबाई तक आइसक्रीम की तरह जीभ से चाटती, कभी बिलकुल हलक तक ले कर ज़ोर ज़ोर से दबाती। एक बार तो मैंने बाहर निकालने की कोशिश भी करी, लेकिन उसने अपने मुंह की पकड़ ढीली नहीं होने दी, बल्कि अपने हाथ से भी कस कर पकड़ लिया। अब उसने मेरी बाल्स को सहलाते हुए मेरे लौड़े को अच्छी तरह चूसा और मुझे दोबारा झड़ने पर मजबूर कर दिया। वो मेरा पूरा वीर्य पी गई और चाट चाट कर मेरे लौड़े को साफ भी किया।

मैंने घड़ी देखी तो रात के नौ बज रहे थे। मतलब हमारा यह धमाकेदार सेशन पूरे तीन घंटे चला था। मैं गाउन पहन कर किचन मे गया और तीन बड़े बड़े लस्सी के गिलास भर कर अनार का जूस निकाल कर उसमे वोड्का के डबल शॉट्स मिला कर ले आया। सेक्स सेशन के दौरान पेट हल्का ही रहना चाहिए, नहीं तो पेट के दबने से एसिडिटी और डकारे वगैरा आती हैं और नींद भी आती है। हमने जूस के साथ रोस्टेड ड्राइ फ्रूट्स टूँगते हुए अभी के विडियो का आनंद लेना शुरू कर दिया जो की मैं हमेशा बनाता हूँ। मैंने पूरे घर मे इसी परपस से अलग अलग एंगल्स से औडियो विजुअल रिकॉर्डिंग वाले हाइ डेफ़िनिशन केमरे फिट कराये हुए हैं।अभी हम सभी ने गाउन पहन लिए थे, क्यूंकी मेरा मानना है की लगातार एक दूसरे को नंगा देखते रहने से चार्म फीका पड़ जाता है। हाँ फागुनी और स्वर्णा की नाइटीज़ काफी सेक्सी टाइप की थीं जो की मुझे और बेताब कर रही थीं। मैंने मूवी के दौरान गौर किया था की स्वर्णा बार बार कभी अपनी चूची तो कभी क्लिटोरिस छू रही थी लेकिन अपनी आदत के मुताबिक ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी। यह मूवी खतम होते होते रात के 12 बज गए थे, लेकिन हमारे लिए तो रात अभी जवान थी। अब स्वर्णा की झिझक पूरी तरह खत्म करने का प्रोजेक्ट था।

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