चाचा का उपहार

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चाचा ने कराया चाची की सैर.
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हाय दोस्तो.. कैसे हैं आप सब। आप सबका मैं बेहद शुक्रगुजार हूँ कि आपने मेरी कहानियों को सराह कर मेरा हौंसला और मान दोनों बढ़ाया।

आज मैं फिर से एक रोमांचक किस्सा आप सब को बताने जा रहा हूँ।

यह कहानी तब शुरू हुई थी जब मुझे लण्ड और नुन्नी का मतलब सही से मालूम भी नहीं था। मेरे चाचा सुशील मुझे बेहद प्यार करते थे। जब मैं छोटा था तो वो मुझे अपने कंधो पर बैठा कर पूरे गाँव में घुमाते रहते थे। तब तक वो कुँवारे थे और गाँव मस्त अल्हड़ जिंदगी का मजा ले रहे थे। गाँव के सभी निखट्टू लड़कों का लीडर था मेरा चाचा। दसवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ कर खेत का काम संभाल रहे थे। क्यूंकि मेरे पिता जी भी खेत का काम देखते थे तो चाचा के करने के लिए कुछ ज्यादा बचता नहीं था। इसका एक कारण यह भी कह सकते हो की पिताजी अभी चाचा पर बोझ डाल कर उसकी मस्ती के दिनों को खराब नहीं करना चाहते थे।

क्यूंकि मैं चाचा के साथ ही रहता था ज्यादा समय तो चाचा की कुछ बातें भी पता लगनी शुरू हो गई थी। चाचा मुझे डाकिये के रूप में इस्तेमाल करता था और गाँव की सुन्दर सुन्दर लड़कियों को चिट्ठी देकर आने का काम मेरे ही जिम्मे था। जिस कारण मुझे बहुत बार प्यार तो बहुत बार मार और गालियाँ भी मिल चुकी थी। पर चाचा बदले में मुझे खाने को चीज़ देता और मेरी हर मांग को पूरा करता था सो मुझे भी इस सब से कोई ऐतराज़ नहीं था।

मुझे चाचा के बहुत से गुप्त राज पता लग गए थे।

वक्त गुज़रता गया। मैं भी अब जवान हो गया था। चाचा की भी शादी हो गई थी और चाची भी एकदम मस्त और खूबसूरत औरत है। सच कहूँ तो चाचा जैसे निठल्लू को संगीता जैसी खूबसूरत बीवी मिलना सौभाग्य की ही बात है। चाची बहुत खुशमिजाज थी और घर के काम में एकदम निपुण।

सब कुछ सही चल रहा था पर बस एक कमी थी कि चाचा की आदतों में कुछ भी सुधार नहीं हुआ था जिस कारण सभी घर वाले परेशान थे। वैसे अब एक बात तो थी कि पिता जी ने भी अब थोड़ी सख्ती करनी शुरू कर दी थी जिसके चलते अब चाचा खेत में कुछ न कुछ मेहनत तो करते ही थे पर हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब भागने का मौका मिले और जैसे ही मौका मिलता चाचा छूमंतर हो जाते।

और फिर मैं तो चाचा का सबसे नजदीकी दोस्त और लाडला भतीजा था।

कुछ और समय बीता अब मैं अट्ठारह साल का हो गया था और चाचा की संगत और सीख की मेहरबानी से कुछ मज़े लूट भी चुका था। और एक बार...

चाचा ने मुझे बुलाया और बोला- राज... वो जो गाँव में सुमेर लुहार की लड़की है ना.. मेरा दिल आ गया है उस पर... कुछ मदद कर ना...!

'अरे चाचा! क्या बात कर रहे हो? अभी तो वो छोटी है और तुम... तुम मरवाओगे एक दिन..'

'बेटा तू तो पागल है! जो मज़े इस कच्ची उम्र की लड़की के साथ है, वो दूसरी किसी में कहाँ?'

'नहीं चाचा... वो तो तुम्हारे बच्चो जैसी है और तुम... चाचा आजकल तुम बहुत ठरकी होते जा रहे हो।'

'बेटा, अगर तूने मेरा यह काम करवा दिया तो तुझे एक ऐसा तोहफ़ा दूँगा कि पूरी जिन्दगी में चाचा को नहीं भूलेगा।'

'हाँ...मुझे मालूम है कि बदले में क्या मिलने वाला है... पिटाई मिलने वाली है वो भी सारे गाँव की..'

चाचा मेरी बहुत मिन्नत करने लगा तो मैंने बोल दिया- मैं बात तो कर लूँगा उससे! पर पहले यह बताओ कि तोहफ़े में क्या मिलेगा मुझे?

चाचा बोला- तू भी उसके साथ मज़े ले लेना।

पर मैंने मना कर दिया।

कुछ दिन बीते पर चाचा सुमेर की लड़की की चूत का कुछ ज्यादा ही प्यासा होता जा रहा था। वो हर रोज मुझे सुमेर की लड़की पूजा से बात करने को बोलता और उपहार का लालच भी देता।

मैंने एक दो बार कहा भी- तुम खुद क्यों नहीं बात कर लेते?

पर पूजा उससे बात ही नहीं करती थी। और सच कहूँ तो शादी के बाद अब चाचा की भी फटने लगी थी। अब वो मेरे कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना चाहता था।

एक दिन मैंने उसको बोल ही दिया- चाचा तोहफ़ा बताओ और काम करवाओ।

चाचा बोला- तू ही बता, क्या चाहिए?

'चाचा! बुरा तो नहीं मान जाओगे?'

'अरे राज तू बोल तो बस एक बार...पूजा की चूत के बदले कुछ भी...'

'क्या चाची की एक पप्पी दिलवा सकते हो होंठो पर?' मैंने मजाक में बोल दिया।

चाचा पहले तो एकदम से गुस्सा हो गया पर फिर एकदम से उफनते दूध की तरह नीचे हो गया और बोला- अगर मैं तुझे तेरी चाची की एक पप्पी दिलवा दूँ तो क्या तू मुझे पूजा की चूत दिलवाने में मदद करेगा?

'हाँ चाचा क्यों नहीं... अगर तुमने अपना वादा पूरा कर दिया तो जो तुम कहोगे कर दूंगा मेरे चाचा!'

'चल मैं कोशिश करता हूँ!' कह कर चाचा चला गया।

चाचा के जाते ही चाची मेरी नज़रों के सामने घूमने लगी। आज तक मैंने चाची को इस नज़र से नहीं देखा था और ना ही चाची के बारे में मेरे दिल में कुछ कभी ऐसा कुछ ख़याल आया था। पर जब चाचा ने कहा कि वो कोशिश करेगा तो मेरा दिल उछल कर बाहर आने को हो गया, मेरा जवान दिल धड़क उठा, दिमाग में हथोड़े से बजने लगे थे। चाची के गुलाबी होंठों के बारे में सोचते ही लण्ड देवता हलचल करने लगे थे पजामे में।

हाय क्या रसीले और गुलाबी गुलाबी होंठ थे मेरी चाची के... चाचा के दोस्तों में कोई ही ऐसा होगा जो चाची के इन रसीले होंठो को चूसना नहीं चाहता होगा। ऐसा मुझे उन कमीनों के बीच में बैठ कर उनसे बात कर कर के पता लग ही गया था।

उस दिन के बाद से मैं चाचा के पीछे पड़ गया। चाचा जब भी मिलते मैं पूछ ही लेता- चाचा, कब तक इंतज़ार करवाओगे... अब चुसवा भी दो चाची के होंठ...

फिर हम दोनों में पहले तुम-पहले तुम की बहस शुरू हो जाती। चाचा कहता कि पहले तू पूजा की चूत के दर्शन करवा फिर तेरी चाची के होंठ। और मैं कहता पहले चाची के होंठ फिर पूजा की चूत।

चाचा शायद सोच रहे थे कि मैं मजाक कर रहा हूँ पर मैं अब सच में चाची के होंठो का रसपान करने को उतावला हो रहा था।

कुछ दिन फिर ऐसे ही बीत गए। चाचा का लण्ड पूजा की चूत पाने को ललक के चलते एक दिन चाचा बोला- आज शाम को तू मेरे कमरे में आना।

मुझे तब मालूम नहीं था कि चाचा मुझे अपने कमरे में क्यों बुला रहे हैं।

मैं शाम होते ही चाचा के कमरे में पहुँचा तो चाचा और चाची बिस्तर पर बैठे थे।

तभी चाचा ने कुछ जो बोला उसको सुनकर मैं हैरान हो गया।

चाचा ने चाची को कहा- राज तुम्हारे होंठो पर एक चुम्बन करना चाहता है अगर तुम्हें कोई ऐतराज़ ना हो तो।

यह सुन कर चाची का मुँह खुला का खुला रह गया और वो हैरान परेशान सी चाचा के मुँह की तरफ देखने लगी। फिर चाचा ने चाची के कान में कुछ कहा और फिर चाची ने बोला- बस एक बार कर सकता है और वो भी मुझे छुए बिना।

यह सुन कर तो मैं ऊपर से नीचे कच्छे के अंदर तक हिल गया।

'चाचा मैं तुम्हारे सामने नहीं करूँगा... पहले आप बाहर जाओ!'

'अच्छा जी! मेरी बीवी का चुम्मा लोगे और हम ही बाहर जाएँ?'

'देख लो! तुम्हारी मर्ज़ी।'

'ठीक है बेटा... पर सिर्फ एक... मुझे मालूम है कि तू बहुत बदमाश हो गया है आजकल!'

कहकर चाचा बाहर चले गए। मैं शर्माता हुआ सा जाकर चाची के पास बिस्तर पर बैठ गया।

'क्यों रे... इतना बड़ा हो गया तू कि अपनी चाची को ही किस करने का मन करने लगा तेरा?'

'वो चाची...बस ऐसा कुछ नहीं है...'

मैं हकलाता हुआ सा बोला।

चाची हँस पड़ी, फिर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली- कोई बात नहीं राज... ऐसा होता है इस उम्र में!

'तो क्या आप सच में मुझे अपने होंठो पर किस करने देंगी?'

'हाँ क्यों नहीं..'

चाची को नहीं पता था कि मैं छुपा-रुस्तम हूँ और पहले भी कई लड़कियों का यौवन-रस चख चुका था अपने गुरु चाचा की मदद से।

मैंने चाची का खूबसूरत चेहरा अपने हाथो में लिया तो मेरे हाथ थोड़े कांप रहे थे पर चाची मुस्कुरा रही थी। मुस्कुराती हुई चाची के गुलाबी होंठ देख कर मैं अपने काबू में नहीं रहा था।

मैंने चाची को अपनी तरफ खींचा और अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिए। मैं आनन्दित होकर चाची के रसीले होंठो का रसपान करने लगा।

चाची भी 'किस' का भरपूर मजा ले रही थी और मेरा पूरा साथ दे रही थी। किस करते करते ना जाने कब मेरे हाथ चाची की मदमस्त जवानी की निशानी यानि चाची की चूचियों पर चले गए और मैंने चाची की एक चूची पकड़ कर दबा दी।

चाची के मुँह से 'आह्ह' निकल गई और चाची ने मुझे अपने से अलग कर दिया।

'तू तो कुछ बड़ा बेशर्म हो गया हैं रे... शक्ल से तो कितना भोला लगता है और अपनी ही चाची की चूची दबा रहा है?'

'चाची... तुम्हारी चूचियाँ हैं ही इतनी मस्त कि इनको देखते ही कुछ कुछ होने लगता है।'

'अच्छा..क्या होता है..?'

'वो..वो...मुझे नहीं पता पर कुछ कुछ होता जरूर है।'

मेरे पजामे में तम्बू बन चुका था, चाची ने देखा और हँस कर बोली- तो यह होता है..

कहकर चाची ने अपने हाथ से मेरे लण्ड को हल्के से छू लिया। मैं तो सीधा जन्नत में पहुँच गया। मैंने एक बार फिर चाची को अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठ एक बार फिर चाची के होंठो पर रख दिए। चाची गर्म होने लगी थी और उसके मुँह से मादक सीत्कारें निकलने लगी थी। मैं किस करते करते चाची की चूची को मसल रहा था।

तभी चाचा ने दरवाज़ा खटखटाया तो चाची एकदम मुझसे अलग होकर खड़ी हो गई।

चाचा आकर हमारे पास बैठ गया और बोला- बेटा राज... हमारे माल पर ही हाथ साफ़ करने का इरादा है क्या...? यह मत भूलो बेटा कि यह तुम्हारी चाची है..

मैं वहाँ और देर नहीं बैठ सका। चाचा को थैंक्यू बोल कर मैं बाहर चला गया। मेरे बाहर आते ही चाचा ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

उस दिन से मेरे तनमन में चाची बस गई थी क्यूंकि मैंने इससे पहले इतना मादक कोमल बदन अपनी बाहों में नहीं लिया था। अब तो चाची को देखते ही चाची को अपनी बाहों में भरने को तड़प उठता था। चाची से जब भी नज़र मिलती, चाची मुस्कुरा देती और मेरे अंदर का ज्वालामुखी भड़क उठता था। अब मैं ज्यादा वक्त घर पर ही बिताने लगा था।

कुछ दिन बीते और चाचा अब पूजा की चूत के दर्शन करवाने के लिए मुझे कहने लगा। मुझे भी लगा कि मुझे चाचा का काम कर देना चाहिए क्यूंकि चाचा ने अपना वादा पूरा कर दिया था।

पूजा के बारे में बता दूँ.. पूजा वैसे तो तभी ही जवान हुई थी पर साली की चूचियाँ अच्छी खासी उठ गई थी और वो गांव के एक दो लड़कों के साथ चुदाई का खेल भी खेल चुकी थी। बहुत सुन्दर तो नहीं थी पर अपने शरीर की बनावट के कारण बहुत आकर्षक लगती थी और इसी कारण गांव के बहुत से लड़के जिनमें चाचा भी शामिल था उसकी चूत मारने को तड़पते थे। वो मुझ से बात कर लेती थी या यूँ कहें कि वो मुझ पर लाइन मारती थी और अक्सर मेरे साथ छेड़छाड़ भी कर लेती थी पर मैं उसको घास नहीं डालता था।

एक शाम पूजा मेरे घर आई तो मैंने उसको पूछ लिया- चूत देने का इरादा है क्या?

वो तो पहले से ही तैयार थी मुझ से चुदने को। उसने तुरंत हाँ कर दी तो मैंने उसे रात को मेरे कमरे में आने को कहा। यहाँ मैं बता दूँ कि मेरे घर और पूजा के घर का फासला थोड़ा सा ही है। हमारे घरों की छत भी आपस में मिलती है। वो आने का कह कर चली गई। मेरे दिल में अब नई योजना बनने लगी थी। मैंने सोच लिया था कि अपने कमरे में आज चाचा को भेज देता हूँ और खुद चाची के पास सो जाता हूँ अगर चाची मान जाए तो।

मैं चाचा के पास गया और उसे खुशखबरी दी कि मैंने उसका आधा काम कर दिया है तो वो बहुत खुश हुआ।

मैंने कहा- मैंने पूजा को अपने कमरे में बुलाया है पर अब दिक्कत यह है कि हम दोनों तो पूजा के साथ कमरे में रह नहीं सकते तो अब मैं कहाँ सोने जाऊँगा।

मैंने चाचा को समझा दिया था की वो मुझसे चुदने आ रही है तो लाइट मत जलाना नहीं तो भांडा फ़ूट जाएगा और बदनामी होगी सो अलग। और चाची तुम्हारा क्या हाल करेगी यह भी सोच लेना।

'तू चिंता मत कर, मैं सब संभल लूँगा।'

'पर चाचा मेरा क्या होगा... मैं कहाँ सोऊँगा आज रात?'

'तू मेरे कमरे में सो जाना!' चाचा पूजा की चूत मिलने के उम्मीद से ही उत्तेजित हो रहा था।

'पर अगर चाची ना मानी तो...?'

'उसको मैं बोल दूँगा कि मुझे आज रात खेत पर जाना है फिर तू सो जाना उसके पास।'

मुझे चाची के मानने की उम्मीद नहीं लग रही थी पर फिर सोचा देखेगे जो होगा। अगर मान गई तो आज रात अपने सपनों की रानी के पास सोने का मौका मिल जाएगा। यह सोच कर मैं भी उत्तेजित होने लगा था और इसका असर मेरे पजामे में पता लगने लगा था।

खैर रात हुई और चाचा खेत में जाने का बोल कर चला गया। मुझे मालूम था कि वो कुछ देर बाद ही आकर मेरे कमरे में लेट गया था।

मैं चाची के पास गया और चाची से बातें करने लगा। चाची ने अपना बचा हुआ काम खत्म किया और फिर मेरे पास बैठ कर वो भी मुझ से बातें करने लगी। इधर उधर की बातें करते हुए मेरी नज़र चाची की पहाड़ियों पर थी जो साँसों के साथ उठ बैठ रही थी। चाची ने पल्लू नीचे किया हुआ था जिसके कारण चाची की चूचियों के बीच की घाटी नज़र आ रही थी और मेरे दिल की धड़कन को बढ़ा रही थी।

अब मुझसे भी सहन नहीं हो रहा था। मैंने चाची के थोड़ा नजदीक जाकर पूछ लिया- चाची, अगर तुम बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ?

'हाँ..हाँ बोल ना!'

'चाची..बात यह है कि...'

'अरे बोल ना! शरमा क्यों रहा है?'

'चाची... बात यह है कि जब से मैंने तुम्हारे होंठों का रस चखा है मेरी रातों की नींद उड़ गई है.. सारी सारी रात आँखों के सामने तुम ही तुम घूमती रहती हो.. लगता है कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है।'

चाची कुछ नहीं बोली बस मेरी तरफ देखती रही।

मैंने कुछ साहस जुटा कर चाची के हाथ को पकड़ कर सहलाना शुरू किया और खिसक कर चाची के बिल्कुल पास चला गया। अब मेरे और चाची के बीच की दूरी लगभग खत्म हो चुकी थी। ना चाची कुछ बोल रही थी और ना मैं ही कुछ बोल पा रहा था। और फिर ना जाने कब मेरे होंठ चाची के होंठों से चिपक गए। चाची और मैं एकदम मदहोश होकर एक दूसरे में खोने लगे थे। चाची ने आँखें बंद कर ली थी और किस करने में मेरा पूरा सहयोग कर रही थी।

चाची के होंठ चूमते-चूमते मेरा हाथ चाची की मस्त चूचियों को सहलाने लगा तो चाची का हाथ भी सरक कर मेरे पजामे के ऊपर से ही मेरे लण्ड महाराज को ढूंढने लगा। चाची के स्पर्श मात्र से मेरा लण्ड खड़ा होकर पजामा फाड़ने को तैयार हो गया था।

'यह गलत है राज..' कहकर अचानक चाची मुझ से अलग हो गई।

पर मैं अब रुक नहीं सकता था।

चाची बोली- तू मेरे बेटे समान है राज... मैं तेरी चाची लगती हूँ। मैं तुम्हारे साथ यह सब नहीं कर सकती।

'चाची अब मैं नहीं रुक सकता...अब मत तड़पाओ वरना मर जाऊँगा। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।'

चाची ने मेरी बात सुन कर मुझे अपने गले से लगा लिया और बोली- राज प्यार तो मैं भी करती हूँ तुम्हे पर सोचो, मैं तुम्हारी चाची हूँ।

'चाची कुछ देर के भूल जाओ कि तुम मेरी क्या लगती हो, इस समय तुम सिर्फ एक औरत हो और मैं एक मर्द जो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और प्यार में सब कुछ जायज है।'

मैंने चाची का चेहरा अपने हाथो में लिया और एक बार फिर अपने होंठ चाची के रसीले होंठो पर रख दिए। गर्म तो चाची भी पूरी हो चुकी थी और वो भी अब रुक नहीं सकती थी। चाची ने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया और मेरे होंठो को काटने लगी। मेरे हाथ एक बार फिर चाची की मक्खन जैसी मुलायम चूचियों को सहलाने लगे और चाची के ब्लाउज के बटन खोलने लगे।

कुछ ही क्षण बाद चाची की बड़ी बड़ी चूचियाँ आजाद होकर मेरी आँखों के सामने सर तन कर खड़ी हो गई। क्या शानदार चूचियाँ थी चाची की। एक दम खड़े खड़े चुचूक, मस्त गोलाई जैसे किसी ने दूध के दो लोटे लगा दिए हों छाती पर! इन चूचियों पर तो सारे गांव के मुस्टंडे फ़िदा थे और इनके बारे में सोच सोच कर आहें भरते थे और मुठ मारते थे।

मैंने चाची का भूरे रंग का चुचूक मुँह में लिया और चूसने लगा। चाची की सीत्कारें निकलने लगी थी। मैं तो मस्त हुआ चाची की चूचियों का रसपान कर रहा था। चाची आहें भर रही थी और मेरे बालों में हाथ फेर रही थी। चाची की एक चूची मेरे मुँह में और दूसरी मेरे हाथ में थी। चूची इतनी बड़ी थी कि मेरे हाथ में पूरी नहीं समा रही थी। मैं उँगलियों में पकड़ कर चूची के अग्र-भाग को मसल रहा था जिस कारण चाची और भी ज्यादा मस्त होती जा रही थी।

फिर मैंने चाची के पेटीकोट का नाड़ा ढीला कर दिया तो पेटीकोट साड़ी समेत जमीन पर गिर गया और चाची नीचे से भी नंगी हो गई क्यूंकि चाची ने नीचे कुछ नहीं पहना था।

चाची की चूत पर एक भी बाल नहीं था। चाची की चिकनी चूत देख कर मेरा लण्ड फटने को हो गया था। मैंने अब चूची को छोड़ा और नीचे झुक कर अपना मुँह चाची की चूत पर लगा दिया। चाची की चूत से रस टपक रहा था जो साफ़ संकेत था कि चाची बहुत गर्म हो चुकी थी।

चाची ने अपनी एक टाँग ऊपर उठा कर चूत चाटने में मेरी मदद की। मैं चाची की चिकनी चूत को अपनी जीभ से चाट रहा था और चाची मस्त हो सिसकारियाँ भर रही थी।

कुछ देर चूत को चाटने के बाद अब मेरा मन भी लण्ड चुसवाने को कर रहा था। मैं खड़ा हुआ तो चाची ने बिना देर किये मेरे सारे कपड़े उतार दिए और नीचे बैठ कर मेरा लण्ड मुँह में भर लिया और जीभ घुमा घुमा कर चाटने और चूसने लगी। अब सीत्कारें निकलने के बारी मेरी थी। चाची इतना अच्छा चूस रही थी कि मुझे एक दो मिनट के बाद ही लगने लगा कि अब तो मेरा निकल जाएगा। मैं अभी मजा खराब नहीं करना चाहता था। मैंने लण्ड चाची के मुँह से निकाल लिया तो चाची ऐसे इठलाने लगी जैसे किसी बच्चे का लोलीपॉप किसी ने छीन लिया हो।

मैंने चाची को उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और चाची की टाँगें फैला कर चूत को चाटने लगा।

चाची बोली- राज, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा! जल्दी से अपना मूसल डाल दे मेरी ओखली में.. और कूट दे सारा धान और निकाल दे सारा तेल मेरे राजा..

मैंने अपना लण्ड चाची की चूत पर टिकाया और एक जोरदार धक्का लगा कर आधा से ज्यादा लण्ड चाची की पनियाई हुई चूत पर जड़ दिया। चाची मस्ती और दर्द के मिले जुले आनन्द के साथ चीख पड़ी- फाड़ दी रे बहन चोद तूने तो मेरीईईई... धीरे धीरे कर राजा... तेरा लण्ड बहुत मोटा है रे..

'कैसी बात कर रही हो चाची... चाचा का भी मेरे जितना ही मोटा तो है..'

'हाँ.. मोटा तो है पर तेरा लण्ड कुछ ज्यादा कड़क है रे... पूरी चूत को रगड़ कर अंदर घुसा है... अब डाल दे बाकी का भी जल्दी से और चोद डाल अपनी चाची को मेरे राजा।'

मैंने एक दो धक्के और लगाए और पूरा लण्ड चाची की चूत में फिट कर दिया। लण्ड सीधा चाची की बच्चेदानी से जाकर टकराया तो चाची मस्ती के मारे उछल पड़ी और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। यह एहसास चाची को आज पहली बार हुआ था, यह मुझे चाची ने चुदाई के बाद बताया।

पूरा लण्ड घुसने के बाद मैंने लण्ड को सुपारे तक निकाला और फिर जड़ तक ठोक दिया चूत में। और फिर तो जैसे बिस्तर पर भूचाल आ गया। धक्के पर धक्के लगने लगे। अब नीचे से चाची गांड उठा उठा कर लण्ड ले रही थी और ऊपर से मैं भी लण्ड को पूरा निकाल कर फिर से पूरे जोश के साथ चूत में घुसा देता। अब मैं और चाची बात नहीं कर रहे थे बस चुदाई का मजा ले रहे थे। कमरे में सिर्फ मस्ती भरी आहें और सिसकारियाँ गूंज रही थी। धक्के इतनी जोर से लग रहे थे कि बेड भी चूं-चूं करने लगा था, धप-धप फच-फच की आवाज कमरे के वातावरण को मादक बना रही थी।

मैंने चाची की केले के तने जैसी चिकनी चिकनी टाँगे अपने कंधे पर रखी हुई थी और चाची की चूत पर जोर जोर से धक्के लगा रहा था।

करीब दस मिनट के बाद चाची का बदन अकड़ने लगा और वो अपनी टाँगें मेरी कमर पर लपेट कर जोर जोर से गांड उछालने लगी। मैं समझ गया था कि अब चाची झड़ने वाली है, सो मैंने भी धक्को की स्पीड थोड़ी तेज कर दी और फिर एक चीख के साथ चाची झड़ने लगी। चाची की चूत से सरसराता हुआ चूत रस मेरे अंडकोष को भिगो रहा था।

चाची झमाझम करके झड़ी थी और झड़ने के बाद वो ढीली पड़ गई पर मेरा अभी पानी नहीं निकला था, मैंने धक्के मारने चालू रखे तो चाची बोली- रा..ज.. ला अपना लण्ड मेरे मुँह में डाल! मैं तेरा पानी निकाल देती हूँ...चूत तो पूरी निचोड़ दी तूने... सारा रस निकाल दिया आज तो... बहुत मस्त चुदाई करता है तू तो! तेरे चाचा से भी अच्छी...

मैं अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गया और लण्ड को चूत से निकाल कर चाची के मुँह में दे दिया।

चाची लण्ड चूसने में तो एकदम माहिर थी। अगले दो मिनट में ही मेरा लण्ड भी पिचकारी छोड़ने को मचल उठा और फिर मैं भी चाची के मुँह में ही झड़ गया। सच में आज पहले से कहीं ज्यादा माल निकला था मेरे लण्ड से। यह सब चाची की करामात थी। पूरा माल गटकने के बाद चाची ने मेरा लण्ड अपने मुँह से बाहर निकाल और चाट चाट कर पूरा साफ़ किया।

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपट कर एक दूसरे को चूमने लगे।

फिर इधर उधर की बाते और कुछ ही देर बाद जब लण्ड फिर से खड़ा हो गया तो मैंने एक बार फिर चाची की टाँगें उठाकर लण्ड चूत में घुसेड़ दिया और फिर तो सुबह तक मैं और चाची नंगे ही एक दूसरे से लिपटे रहे। सुबह तक चार बार मैंने और चाची ने चुदाई का आनन्द लिया।

सुबह पांच बजे मैं उठा और उठ कर अपने कमरे में गया यह देखने कि चाचा का क्या हाल है तो देखा चाचा खराटें भर रहा था।

मैंने चाचा को उठाया और रात के बारे में पूछा तो मेरी हँसी छूट गई क्यूंकि पूजा तो रात को आई ही नहीं थी।

मैंने चाचा को थैंक्यू बोला तो चाचा मेरे मुँह की तरफ देखने लगा। शायद वो समझ गया था कि मैं उसको किस चीज़ के लिए थैंक्यू बोल रहा हूँ।

मुझे चाचा का उपहार बहुत पसंद आया था। उस दिन के बाद चाचा के और मेरे बीच की बची-खुची दूरियाँ भी खत्म हो गई और फिर हमने जैसे हम बाहर एक ही लड़की के साथ दोनों सेक्स कर लेते थे चाची के साथ भी बहुत बार सेक्स किया। चाची भी दो दो मदमस्त सांडो के लण्ड से मजा लेकर खुश थी और आज भी बहुत खुश है...

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