औलाद की चाह 204

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7.35 योनि सुगम-गुरूजी का सेक्स ट्रीटमेंट
4.6k words
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Part 205 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-35

योनि सुगम- गुरूजी का सेक्स ट्रीटमेंट

मैं कामोत्तेजना से सिसक रही थी। मुझे अपने पति के साथ पहली रात याद आई और उस रात को मुझे भी ऐसा ही दर्द, आँसू, कामोत्तेजना और कामानंद का अनुभव हुआ था जैसा अभी हो रहा था। लेकिन सच कहूँ तो मेरे पति का लंड 6 इंच था और गुरुजी के मूसल से उसकी कोई तुलना नहीं थी।

रश्मि-ओओओहहहह...गुरूजी...आआ आहहहह...अम्मममा! फीलिंग ग्रेट गुरुजी!

गुरूजी नीचे पहुंचे और लंड से मेरी योनि को सहलाने लगा। गुरूजी ने योनि में लंडमुंड घुसाया तो मैं ना कराहने लगी, गुरूजी ने लंड एक दो बार अंदर हिलाया और घुमाया मैं अब गुरूजी से चुदाई के ख्यालात से अविश्वसनीय रूप से उत्साहित और उत्तेजित थी और कभी भी इससे पहले इतनी गीली नहीं हुई थी।

मेरे अपर लेट कर गुरूजी ने धक्का मारा और उनका खड़ा लन्ड मेरी योनि की फांकों से जा टकराया। मैंने गुरूजी को अपने आगोश में भर लिया।

मेरे नंगे बदन को बाहों में भरने पर मिलने वाले मजे से गुरूजी मदहोश हो गए औअर जैसे ही उनका लंड मेरी योनि में अंदर जाकर मेरे गर्भशय के द्वार को र छुआ गुरु जी मुझे चूमते हुए कान के पास धीरे से बोला-

"हाय... रश्मि...तेरी... चूततत्तत"

मैं उनके मुँह से हाय और चूत शब्द सुनकर वासना से भर गई, अपनी कसी-कसी चूचीयों को गुरूजी की नग्न छाती पर स्वयं ही दबाते हुए उनसे लिपट गयी।

यह कहकर गुरूजी मेरे गुदाज मखमली बदन पर ऐसे छा गए मानो किसी शेर ने हिरणी को दबोच लिया हो। गुरूजी का मुसल बड़ा और कड़ा काला लंड मेरी चिकनी मोटी-मोटी जांघों पर, चूत पर, नाभि पर इधर उधर रगड़ खाने लगा, मैंने अपनी जांघे उठायी और गुरूजी की कमर पर लपेट दी, ऐसा करते ही योनि के ओंठ फैल गए और गुरूजी के लंड का मोटा सुपाड़ा योनि की फांकों में अच्छे से दस्तक देने लगा, गुरु जी ने मेरी जाँघों को और भी दूर धकेल दिया जिससे मेरे पैर मेरे सिर के ऊपर आ गए! गुरु जी तेजी और ताकत से अपना लंड मेरी तंग चुत में घुसाते रहे। मैं गद्दे पर अपने नितम्ब ऊपर-नीचे कर रही थी था क्योंकि मेरी चुत को उसका जोरदार झटके लग रहे थे। मुझे स्वाभाविक रूप से बहुत पसीना आ रहा था क्योंकि गुरु जी ने अपना लंड मेरी बालों वाली योनी में उत्साह से पंप करना जारी रखा।

गुरु जी: रश्मि, क्या बात है तेरी प्यारी योनि! इतना तंग! वाह! मजा आ रहा है!

मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.

अब हम दोनों गुरूजी और बेटी नहीं बल्कि प्रेमी और प्रेमिका थे जो सम्भोग का मजा ले रहे थे । मुझे मालूम था गुरूजी के मूसल लंड से चुदवाने का मौका मुझे बार बार नहीं मिलने वाला है इसलिए मैं पूरा मजा लेना चाहती थी और गुरूजी को भी मालूम था ऐसी तंग योनि बार बार नहीं मिलने वाली इसलिए वो भी चुदाई का पूरा मजा लेना चाहते थे।

मैं गुरूजी के मोटे सुपाड़े को तेज-तेज अपनी रसीली चूत की फांकों में डुबकी लगाते हुए महसूस कर एक बार फिर लजा गयी, गुरूजी ने मस्ती में मेरे कानों को चूम लिया, मैंने सिसकते हुए अपने होंठ आगे किये तो गुरूजी मेरे रसीले होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगे।

मैं अब खुल कर मजे ले रही थी, सब दर्द खत्म हो गया था और मचलते हुए गुरूजी के सर को पकड़ कर उन्हें और अपने होंठों पर दबाने लगी फिर धीरे से मुंह खोल दिया । गुरूजी ने एक बार मेरी आंखों में देखा तो मैं मुस्कुराकर लजा गयी।

गुरूजी _ रश्मि-बेटी... लजा गयी...अरे बेटी शर्म मत करो... मुँह खोलो और अपने गुरूजी को अपनी जीभ का रस पिलाओ।

यज्ञ की अग्नि की रोशनी में मेरा का गोरा-गोरा अति उत्तेजित चेहरा दमक रहा था, शर्म और वासना की लाली मेरे चेहरे को और भी आकर्षित और कामुक बना रही थी।

मैंने गुरूजी की-की आंखों में वासना भरी अदा से देखते हुए अपने होंठ खोल दिये और अपनी जीभ को हल्का-सा बाहर निकाल दिया।

गुरूजी मेरी इस अदा पर कायल हो मारे उत्तेजना के एक झटका अपने लंड से मेरी योनि में मारते हुए मेरी जीभ को अपने मुंह में भर लिया, मैं उनके मुंह में ही "ऊऊऊऊ ईईईईईई ईई... अममम्म्ममा" कहते हुए चिहुंक उठी।

गुरूजी मेरी जीभ को कुल्फी की तरह धीरे-धीरे नीचे से ऊपर की ओर अपने मुंह में भर-भर कर चूसने लगे साथ कि साथ वह अपने लंड को मेरी योनि जो अब बहुत गीली हो गयी थी उसमे डुबो-डुबो कर रगड़ने लग गए और अपने हाथो से मेरे स्तन दबा रहे थे, मेरा बदन गुरूजी बाबू के इस खेल की तिहरी मार से अति उत्तेजना में रह रहकर कंपकपा जा रहा था जिसको गुरूजी बखूबी महसूस कर रहे थे, मैं अब गुरूजी के सर को पकड़कर खुद मुंह खोले अपनी जीभ उनके मुंह में जितना अंदर हो सके डालने लगी, गुरूजी की जीभ को कुल्फी की तरह पूरा मुंह में भर भरकर नीचे से ऊपर की ओर चूसती रही, बीच-बीच में गुरूजी मेरी जीभ चूसते और अमीन उनकी जीभ चूस कर जवाब देने लगी । नीचे मेरी योनि का बुरा हाल होता जा रहा था और लंड लगातार चूत की फांकों के अंदर ठोकर मार रहा था और उनके बड़े अब्दे अंडकोष मेरे दाने को मसल रहे थे, गुरूजी में बहुत संयम था और वह बहुत अनुबह्वी थे, वह जानते थे कि स्त्री को कैसे भोगा जाता है।

उनके धक्को से मेरा शरीर और मेरी गांड, मेरे नितम्ब ऊपर-नीचे हो रहे थे मैं जोर-जोर से कराह रही थी और जब भी गुरूजी बीच में मेरे ओंठो को छोड़ते थे तो मैं अपने होठों को जोर से काट रही थी। मैं निश्चित रूप से अपने चरमोत्कर्ष के एक और निर्वहन के जा आरही थी ये देख गुरु जी अब अपना लंड पूरी ताकत और जोर से मेरी चुत में पटकने लगे।

मैं: ऊउउउउउउउइइइइ...

जीभ चूसते-चूसते काफी देर हो गयी, दोनों सारी दुनियाँ भूल कर एक दूसरे में डूबे हुए थे, मंने हाँफते हुए गुरूजी के मुँह से अपनी जीभ निकाली और अच्छे से सांस भरने के लिए अपने चेहरे को कभी दाएँ तो कभी बाएँ करने लगी, गुरूजी मेरे कान के आस पास चूमने लगा, मेरा बदन फिर सनसना गया, साँसे धौकनी की भांति चलने लगी।

मैं एक बार फिर अपने गुरुजी से कस के लिपट गयी। मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.

मैं-आआआआ हहहहहह...गुरूजी। मैंने सिसकते हुए बड़ी अदा से हल्की-सी अंगड़ाई लेकर अपने बदन को धनुषाकार में ऊपर को उठाते हुए अब खुली हवा में आजाद अपनी दोनों चूचियों को और भी ऊपर की ओर तान दिया, मोटी-मोटी गोरी-गोरी 36 की साइज की दोनों चूचीयाँ गोल-गोल फुले हुए गुब्बारे की तरह तनकर ऊपर की ओर उठ गयीं। उत्तेजना में दोनों चूचीयाँ फूलकर और भी बड़ी हो गयी थी, दोनों रसीले गुलाबी निप्पल तनकर कब से खड़े थे और हो गए थे, यज्ञ की आग की रोशनी में मेरी 36 साइज की मोटी-मोटी छलकती दोनों चूचियों को देखकर गुरूजी मंत्रमुग्ध-सा हो गए, ऐसा नहीं था कि वह मेरे स्तन पहली बार देख रहे थे पर हर बार मेरी मदमस्त चूचीयाँ जो सबका मन मोह लेती थी, वह गुरूजी को भी ललचा रही थी और बिना एक पल गवाएँ वह मेरी चूचीयों पर टूट पड़े, मैं जोर से सिसक उठी।

मैं " आह गुरूजी...पीजिये न...दबाइये... हाँ ऐसे ही गुरूजी...ऐसे ही...ऊ ऊ-ऊ ईईई... हाय दैय्या... ऊऊईईईईई माँ... धीरे गुरूजी...थोड़ा धीरे-धीरे मसलिये...ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़...आह गुरूजी (गुरूजी ने नीचे मारे उत्तेजना के लंड मेरी की चूत में कस के रगड़ कर पेल दिया...ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़ गुरूजी...धीरे धीरे ठोकर मारिये...आआआह हहहह...गुरूजी...अब पीजिये. मैंने बायीं चूची को गुरूजी के मुंह में डालते हुए कहा...अअअआआआआआहहहहहहहहह...गुरूजी की गरम-गरम जीभ अपने निप्पल पर महसूस कर मैं पागल होती जा रही थी, मेरा वासनामय शरीर गुदगुदी और उत्तेजना से रह रहकर थिरक-सा जा रहा था, पूरे बदन में सनसनाहट और कंपन दौड़ रही थी, हर बार एक नया एहसास मुझे कायल कर दे रहा था।

गुरु-जी ने अपने लंड को मेरी योनि में और भी तेज और गहराई से पटक दिया और मैं उनके लंड के अपनी योनि के अंदर पूरा महसूस कर रही थी। जाहिर तौर पर पहले मेरे मन में एक शंका थी कि क्या मैं गुरु जी के राक्षसी लण्ड को अपनी चुत में पूरी तरह से ले पाऊँगी लेकिन अब मैं हैरान और बहुत खुश थी कि थोड़े से शुरूआती दर्द के बाद और फ़िब्रोइड को ध्वस्त करने के बाद मैं बिना किसी कठिनाई के उसे पूरी तरह से अपनी चूत में ले रही थी!

अब मैंने अपनी बाहों और जाँघों को उनके चारों ओर कस कर लपेट लिया और मैंने अपनी योनि को ऊपर की ओर गुरु जी के लिंग पर जोर से और दबाव के साथ उछलना शुरू कर दिया। मुझे पता था कि मैं इसे और अधिक नहीं रोक सकताी क्योंकि मैं बहुत अधिक पानी छोड़ रही थी। मेरे पूरे शरीर में झटका लगा क्योंकि मेरी योनि की मांसपेशियाँ गुरु जी के लिंग को जकड़ रही थीं और मेरा चरम सुख चरम पर था। और मैं कराह रही थी ।

में: ऊऊउ.........। मममम माआ...उउउउउ... आआ आआज़...ऊऊऊओईईईईई ii...

गुरूजी बेसुध होकर मेरी चूचीयों को दबा-दबा कर पिये जा रहे थे कभी रुककर सहलाने लगते, कभी निप्पल को चूसने लगते, कभी मुँह में भरकर तेज-तेज पीने लगते, कभी निप्पल को दोनों होंठों के बीच दबा कर चूसते, कभी जीभ से पूरी चूची को चाटने लगे और गुरूजी के थूक से मेरी गोरी-गोरी चूचीयाँ उस रोशनी में और भी चमकने लगी। गुरूजी के सख्त हाँथ मेरी कोमल नरम गुदाज चूचियों को रगड़-रगड़ कर मसल रहे थे, जब गुरूजी कस के चूची को दबाते और फिर निप्पलों को गुरूजी जीभ से चाट रहे थे मैं गुरूजी की मस्ती देख वासना में कराह उठती।

मैं गुरूजी से अपनी चूचीयाँ मसलवा रही थी। मैं सनसना कर कभी आंखें बंद कर लेती, कभी गुरूजी को चूची पीते हुए देखने लगती, लगातार मेरा एक नरम-नरम हाँथ अपने के सिर को प्यार से सहला रहा था और दूसरा हाथ उनकी पीठ पर था, रह-रह कर मैं गुरूजी का सर अपनी दोनों चूचियों के बीच दबा भी देती, कस के खुद ही अपनी चूचियों को गुरूजी के मुंह में भरकर कराह उठती "...आह...!

फिर कराहते हुए मैंने अपना दाहिना हाँथ नीचे ले जाकर मैंने गुरूजी का दहकता काला मूसल लंड जो मेरी गीली योनि की फांकों में रगड़-रगड़ कर हलचल मचा रहा था, पकड़ लिया और उनके अंडकोषों को पकड़ कर सहला दिया, गुरूजी के मूसल लंड को पकड़कर मेरे चेहरे पर फिर शर्म की लालिमा तैर गयी, गुरूजी का लंड पहले से भी विकराल रूप ले चुका है, काफी देर से उत्तेजना में होने की वजह से मोटी-मोटी नसे खून के वेग से उभरकर खुरदरा अहसाह कर रही थी, लंड को हाँथ में लेते ही मेरी आह भरी सिसकी निकल गयी।

मेरे नरम-नरम हाँथ का अहसाह अपने लंड पर पाकर गुरूजी की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, मैंने लंड और अंडकोषों पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा, एक-एक हिस्से को हल्का दबा-दबा कर सहलाया, गुरूजी के दोनों मोठे-मोठे अण्डकोषो पर काले-काले बाल भी थे उन्हें अपनी हथेली में लेकर कुछ देर तक बड़े प्यार से सहलाया, गुरूजी का लंड मेरे नरम-नरम हाथों की छुवन पाकर बार-बार उछलने लगा।

गुरूजी मस्ती में चूची पीना छोड़कर रश्मि की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगे । मैं धीरे-धीरे लंड को सहलाती रही और दोनों के होंठ मस्ती में मिल गए, गुरुजी ने अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को उठा लिया ताकि मुुझे हाँथ चलाने में दिक्कत न हो और मैं लंड को अच्छे से महसूस कर सहला सकूँ। मैं गुरूजी के बड़े चौड़े लंड को कभी हथेली में भरती, कभी उसकी पूरी लंबाई पर हाँथ फेरती, कभी लंड के जोड़ पर घने घुंघराले बालों में उंगलियाँ चलती, कभी हाँथ नीचे की तरफ कर उनके बड़े अंडकोषों को सहलाती, मारे उत्तेजना के लंड सख्त होकर लोहा बन गया था, बार-बार मस्ती में ठुनक रहा था, उछल रहा था, गुरूजी ने मेरे होंठों और गालों को चूमना जारी रखा।

लंडमुंड पर खून लगा था जो इस बात का सबूत था की योनि के अनदर का अवरोध अब छिन्न भिन्न्न हो चूका है.

मैं गुरूजी के लंड को सहलाये जा रही थी और गुरूजी भी अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरी गर्म और गीली योनि को हथेली में भर लिया, मैं सिसक उठी " आआआह हाय... आह गुरूजी...आआआह...चोदिये न मुझे...अच्छे से...चोद दीजिये...अब बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...मजा लीजिये न मेरी इस तंग योनि का और दूसरे ही पल मैंने अपनी जांघों को अच्छे से खोलते हुए अपनी मदमस्त गोरी-गोरी प्यारी-सी मखमली चूत गुरूजी के सामने परोस दी और मैंने गुरूजी के मूसल लिंग को एक दो बार योनि के ओंठो और दाने पर रगड़ा फिर बड़ी मादकता से शर्माते हुए लजाते हुए अपनी तर्जनी और मध्यमा दो उंगली से अपनी चूत की फांकों को खोलकर उसका गुलाबी छेद जो चाशनी से भरा था उस पर लिंग लगा कर अपनी गांड ऊपर उठा दी और लंड अंदर ले लिया ।

गुरूजी से मेरा ये आग्रह सुना और साथ में लंड के सुपाड़ी पर योनि का कसाव अनुभव किया ।

गुरूजी े अब रहा नहीं गया उन्होंने आगे झुक कर मेरे ओंठो को अपने ओंठो में भर लिया चूसते हुए अपनी कमर नीचे को दबा दी, मैं अब हाय-हाय करने लगी " आआआआआआआ हहहहहहहह बाबू...हाय मेरी चूत...धीरे धीरे गुरूजी...नही तो मैं झड़ जाउंगी...आआआह माँ......प्यार से...आआआह...आआआह...ऊऊईईईईई... ओ-ओ ओ ओ-ओ हहहहहह अम्मा...धीरे धीरे मेरे राजा मेरे प्यारे गुरूजी...हाय मेरी चूत (अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को पागलों की तरह सहलाये जा रही थी और मस्ती में सिसकते हुए बड़बड़ाये जा रही थी), आआआह गुरूजी आपकी गरम-गरम जीभ...आह बस गुरूजी मैं झड़ जाउंगी...आह बस...मुझे आपके लंड से झड़ना है गुरूजी...ऊऊईईईईई माँ...गुरूजी ।

तो गुरूजी ने लंड बाहर निकाल लिया तो मैं तड़प उठी और बोली ।

मैं:-अब करिये न गुरूजी ।

गुरूजी मुझे छेड़ते हुए बोले ।

गुरूजी: क्या करूँ रश्मि?

मैं:-और क्या गुरूजी... अब चोदिये मुझे मैं शर्माते हुए बोली और आँखे बंद कर चेहरा उनकी छाती में छुपा लिया ।

अब गुरूजी पूरी तरह बेकाबू हो गए और बोले-हाय री रंडी...रश्मि बेटी!...कैसे डालूं...धीरे धीरे या एक ही बार मे?

(ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा चेहरा अपने छाती से अलग किया और ओंठो को चूम लिया, मैंने बड़े प्यार से कहा ।

मैं :-एक ही बार में गुरूजी...एक ही बार में!

गुरूजी-एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक?

मैं कराहते हुए- हाँ गुरूजी...हाँ एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक!

गुरूजी ने मुझे चूमा और बोले

गुरूजी:-रश्मि! तो फिर लंड को पकड़ कर सीध में लगा दो और एक हाथ से अपनी चूत की फांक को खोल कर रखो "

मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.

ऐसा कहते हुए दोनों ने पोजीशन ली और गुरूजी मेरे ऊपर झुक गए, कमर को जरूरत भर के हिसाब से उठा लिया।

गुरूजी ने मुझे चूमा और मैंने भी मारे उत्तेजना के गुरूजी को ताबड़तोड़ कई बार चूम लिया और जल्दी से दोनों जांघों को अच्छे से फैलाकर कराहते हुए अपने हाँथ नीचे ले जाकर एक हाँथ से गुरूजी के दहकते कड़े बड़े सख्त और मूसल लंड को पकड़कर एक बार फिर अच्छे से सहलाया, चमड़ी को और अच्छे से खोलकर पीछे किया और जल्दी से अपना हाँथ अपने मुंह तक लायी और ढेर सारा थूक लेकर गरम-गरम थूक काले फंफनाते लंड पर लगा दिया, फिर मैंने लंड को ठीक चूत के छेद पर लगाया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फांकों को चीरकर खोल दिया।

गुरूजी ने मेरे होंठों को चूमते हुए पहले तो पांच छः बार लंड कोचूत की दरार में रगड़ा, फिर चिकने सुपाड़े को चूत के गुलाबी छेद के मुहाने पर कई बार छुआया जिससे दोनों मस्त हो गए, मैं बस सिसकती जा रही थी, एकाएक लंड को छेद पर लगाकर गुरूजी ने तेज धक्का मारा और लंड चूत की फांकों को फैलाता हुआ संकरी रसीले छेद को चीरता हुआ पॉर्रा का पूरा चूत की गहराई में उतर गया और उनके अंडकोष योनि के ओंठो से टकराये और ठप्प की आवाज आयी ।

में:-आआआ आआआआआ हहहहहह... गुरूजी!

मैं मस्ती में कराह उठी, लंड सीधा बच्चेदानी से जा टकराया, मैंने दोनों हाथों से गुरूजी के नितम्बो को अपनी योनि पर दबा दिया और हल्के दर्द में कराह उठी, पूरा कमरा मेरी कामुक सीत्कार और फिर ठप्प की आवाजों से गूंज उठा, दर्द बहुत तीखा तो नहीं था पर हल्का-हल्का हो रहा था, योनि बहुत चिकनी हो गयी थी तो दर्द से कहीं ज्यादा मीठेपन का अहसाह था, मीठे दर्द से मेरा बदन एक बार फिर धनुष की भांति ऐंठ गया, गुरूजी का मोटा लंड अपने बच्चेदानी तक महसूस कर मैं कँपकँपा गयी, लंड के ऊपर की मोटी-मोटी उभरी नशें अपनी चूत की अंदरूनी दीवार की मांसपेशियों पर बखूबी महसूस हो रही थी।

मैं धीरे-धीरे कराह रही थी और कस के अपने गुरूजी से लिपटी हुई थी, गुरूजी भी मेरी योनि के की नरम-नरम एहसास में अपना मूसल जैसा लन्ड जड़ तक घुसा कर उसकी माँसपेशियो की नरमी, नमी, चिकनाहट गर्माहट और कसाव को अच्छे से महसूस कर रहे थे, मेरी योनि के मांसपेशिया अब गुरूजी के लंड की मोटायी और लम्बाई के हिसाब से समायोजित हो रही थी और लंड के चारो और कस गयी थी। मैंने कराहते हुए अपने पैर गुरूजी की कमर पर कैंची की तरह आपस में लपेट कर कस लिए और उन्हें चूमते हुए सहलाने लगी। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था चूत लंड को अपने अंदर जितना हो सके आत्मसात कर रही थी, गुरूजी का लंड मेरी योनि की गहराइयों में घुसकर उसकी अंदरूनी दीवारों की गर्माहट को महसूस कर, अंदर ही बार-बार ठुनक कर हल्का-हल्का उछल रहा था जिसे मैं बखूबी महसूस कर उत्तेजना से सनसना जा रही थी।

चूत अंदर से बहुत गर्म हो चुकी थी जिससे लंड की अच्छे से सिकाई भी हो रही थी, गुरूजी ने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर मेरी गोल गुदाज मोटी-मोटी गांड को हथेली में भरा और सहलाया और फिर निचोड़ा और हल्का-सा ऊपर की ओर उठाते हुए एक बार फिर कस के लंड को और भी ज्यादा चूत में ठूंस दिया।

मैं फिर मस्ती में कराह उठी "

मैं; उफ़! बस गुरूजी...आआआआ हहहह... अम्मा...बस कितना अंदर डालोगे ।अब जगह नहीं है...पूरा बच्चेदानी तक चला गया है गुरूजी...ऊऊईईईईई माँ... हाय मेरी चूत अपने फाड़ डाली है...कितना मोटा है आपका...कितना लम्बा है... बिकुल मूसल है...आआआह...बस करो...ऊऊईईईईई । मैं गहरी और बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया।

गुरूजी ने गच्च से एक बार फिर लंड हल्का-सा बाहर निकाल कर रसीली चूत में जड़ तक पेल दिया)

गुरूजी-आआआह बेटी... मेरी रानी... रश्मि रानी क्या शानदार और कसी हुई चूत है तेरी ।...कितनी गहरी है...कितनी टाइट है । ।बहुत मजा आ गया...आआआह

मैं सिसकते हुए-

मैं:-मजा आया गुरूजी को...अपनी रंडी की चुदाई कर उसकी टाइट योनि में लंड डालकर मजा आया आपको।

गुरूजी -आआआह हाँ बेटी...बहुत

मैं:-आपको मजा आया तो एक बार फिर निकाल कर तेजी से डालिये!

मैंने मस्ती में कहा.

गुरूजी ने झट से पक की आवाज के साथ योनि में घुसा हुआ लंड बाहर निकाल लिया और अपनी गांड को ऊपर की तरफ उठा कर पोजीशन ली, मैं चिहुंक गयी, लंड पूरा चूत रस की चाशनी से सना हुआ था, मैंने मदहोशी से एक बार फिर गुरूजी के दहकते हुए मूसल लंड को थामा, लंड अबकी बार ज्यादा गर्म था, जैसे ही मैंने एक हाँथ से लंड को पकड़ा और दूसरे हाँथ से अपनी चूत की फांकों को खोलकर रसीले गुलाबी छेद को खोला गुरूजी ने एक बार फिर कस के एक ही बार में पूरा लंड चूत की गहराई में उतार दिया, पर इस बार मैंने भी अपनी गांड नद उठा कर गुरूजी के धक्के में उनका साथ दिया और हम दोनों इस बार मीठे-मीठे मजे से भरे रसीले दर्द के अहसास से सीत्कार उठे एक बार फिर मेरा बदन मस्ती में ऐंठ गया, गुरूजी ने-ने एक ही बार में मेरी योनि में अपना लंड जड़ तक घुसेड़ दिया और तुरंत ही तेज-तेज तीन चार बार थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल कर गच्च-गच्च धक्के मारे, मैं मदहोश हो गयी और तेजी से सिसकते हुए गुरूजी से उत्तेजना में बोली-" आआआह गुरूजी...अब रुकिए मत...तेज तेज चोदिये...चोदिये गुरूजी और तेज और कस के।

फिर से एक ज़ोर का शॉट मारा तो उनका लंड मेरी चूत की जड़ में समा गया। मैं तेज चीख के साथ बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। मेरे नाखून गुरु जी की पीठ में गहरे धँस गए और मेरी जाँघें उनके धड़ के चारों ओर और अधिक कस गईं। मेरा कामोन्माद एक मिनट से अधिक समय तक चला और मैं पूरे समय कराहती रही। और अंत में मैं थक कर बेदम हो कर गिर पड़ी ।

गुरु जी: बेटी, अब मेरी बारी है तुम्हारा घड़ा भरने की।

गुरु जी अब अपने मजबूत और विशाल मर्दानगी के साथ मेरे स्त्रीत्व को पूरी तरह से चख रहे थे छोड़ रहे थे और मजे ले रहे थे और मेरी योनि की मांसपेशियों ने उनके लंड को पकड़ लिया और वीर्य निकालने के लिए लंड पर दबाब बनाने लगी। गुरु जी का लयबद्ध प्रहार मेरे बड़े-बड़े स्तनों को लगातार झकझोर रहे थे और मुझे निश्चित रूप से ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में हूँ। गुरु जी वास्तव में एक विशेष पुरुष थे क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि कोई भी सामान्य पुरुष मेरी चुस्त चूत ने में इतनी देर तक अपना लंड घुसाने और चुदाई करने के बाद भी अपना वीर्य रोक नहीं सकता था, लेकिन गुरु जी असाधारण थे। एक बार जब हम दोनों पूरी तरह से चार्ज हो जाते हैं तो मेरा पति मेरी चूत में 2-3 मिनट से ज्यादा कभी नहीं टिक पाया था, मेरे पति के विपरीत, गुरु-जी ने मेरी चूत के नादर की बाधा को दूर करने के बाद इस सुंदर सेक्स के अनुभव को लगभग 20 मिनट तक खींच लिया था और फिर भी वे मुझे और स्खलित करने के लिए तैयार थे! वह अभी भी अपने खड़े मूसल से मेरी फिसलन भरी योनि को उसी गति से चौद रहे थे जिस गति से उन्होंने शुरू किया था, फिर भी एक बार भी स्खलित नहीं हुए थे!

लेकिन अंत में गुरु-जी ने अपने खुद के संभोग का नुभव करने का निर्णय किया और-और उन्होंने अपने लंड को मेरी योनि में जोर से धक्का मार दिया जिससे मुझे सातवें आसमान का एहसास हुआ। मैं उत्साह में चिल्ला रही थी । मुझे लगा कि उनके वीर्य के स्खलन से मेरी चुत भर रही है। मेरे पति के विपरीत, उनके वीर्य का उतरना भी अनोखा था क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया थी ।

मेरे पति अपने वीर्य को मेरे छेद में डालने के बाद और फिर खर्राटे लेना शुरू कर देते हैं! और गुरु जी का वीर्य मेरी योनि से टकरा रहा था। दीवारें पर धार के प्रहर का वेग मुझे किसी भी चीज़ की तरह ही मदहोश कर रहा था। मेरा पूरा शरीर काँपने लगा और मैंने अपनी बाँहों को कस कर गुरु जी के चारों ओर लपेट लिया और उन्हें गले से लगा लिया।

गुरु जी: (मेरे कानों में फुसफुसाते हुए) : बेटी, क्या तुम अब खुश हो?

मैं: उम्म्म्म्म्म्म्म्म्...।

मैं और कुछ प्रतिक्रिया नहीं कर सकी।

गुरु जी: मेरे बीज तुम्हें गर्भवती करने में मदद करेंगे रश्मि। चिंता मत करो!

संतोष और थकान से मेरी आंखें बंद हो गईं।

गुरु-जी: रश्मि, तुम बहुत अच्छी हो। शादी केइतने साल के बाद भी तुम्हारी योनि बहुत चुस्त हैं और-और तुम बहुत सेक्सी हो। आपके पति पूरे दिन कुत्ते की तरह आपके आसपास घूमते होंगे। आपके पास क्या शानदार योनि है! आह! एक अंतराल के बाद मैं बहुत ज्यादा संतुष्ट हूँ। इसने मेरे लंड को वैक्यूम क्लीनर की तरह चूस लिया। हा-हा हा...

आँखे बंद करके उनकी बातें सुन कर मैं मुस्कुरायी। मुझे बहुत राहत महसूस हो रही थी क्योंकि मैं अपने भीतर अशांति चरणामृत से दवा के प्रभाव के कारण महसूस कर रही थी।

मैं अभी भी गुरु जी द्वारा की गई जबरदस्त चुदाई के प्रभावों का आनंद ले रही थी और सोच रहा था कि मैं आखिरी बार कब था जब मैं संभोग के बाद संतुष्ट हुई थी? मेरे वैवाहिक जीवन में मुश्किल से ही ऐसे दिन थे जब मैंने सेक्स करने से इतनी "लंबी" उत्तेजना और रोमांच निकाला हो। मुझे वह सुख देने के लिए मैंने मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दिया। मैं अभी भी अपनी नशे की स्थिति से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी और गुरु जी और उनके चार शिष्यों के सामने सफेद गद्दे पर बिल्कुल नग्न अवस्था में आँखें बंद करके लेटी हुई थी।

गुरु जी: बेटी, क्या यह पहली बार तुम्हारे पति के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति से चुद रही थी?

मैं: जी गुरु-जी।

गुरु-जी: ठीक है... जिसका मतलब है कि आप धार्मिक रूप से सामाजिक मानदंडों से चिपकी रहती हो। बेटी मैं तुमहे बताना चाहता हूँ । योनी पूजा के लिए यहाँ आने वाली अधिकांश विवाहित महिलाओं ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने पति के अलावा एक या दो बार किसी अन्य पुरुष के साथ मैथुन किया था। लेकिन बेटी, उनके बारे में कोई गलत धारणा मत रखो क्योंकि वास्तव में उनमें से ज्यादातर ने ऐसा इसलिए तब किया कि जब वे पूरी तरह से निराश थीं क्योंकि शादी के 5-7 साल बाद भी बच्चा नहीं हो पाया था।

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