मेरी दो नौकरानियां Ch. 01

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घर का मालिक अपने नौकरानि को चोदने की दास्ताँ
4.1k words
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Part 1 of the 3 part series

Updated 08/05/2023
Created 05/22/2023
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मेरी दो नौकरानियां 1

पिनाभिराम

घर का मालिक अपने नौकरानि को चोदने की दास्ताँ

उस दिन रविवार था। मैं अपने किसी दोस्तों से मिलने बाहर गया और जब वापिस आया तो शामके चार बजे थे। हमारा इंडिपेंडेंट खुद का माकन है। जैसे ही मैं गेट खोलकर अंदर आया तो देखा कि वाश एरिया (Wash area) में एक लड़की बैठकर बर्तन मांज रही है। वह बैठी थी और मैं उसे पिछेसे देखा था इसीलिए उम्र का अंदाजा नहींलगा..लेकिन दुबली, पतली कोई 16 - 17 की होगी यही समझा। मैं अंदर आया और फ्रेश होकर पत्नीके साथ बैठकर चाय पीते उस से पूछा..

"यशोदा... यह नयी नैकरानी है क्या...?"

"हाँ आज ही और अभी रखी हूँ..." मेरी पत्नी का जवाब। मैं ऊसके बाद खामोशी से चाय पीने लग गया।

कुछ देर बाद वह लड़की जब अंदर आई और मेरी पत्नी से पूछी "मैडम जी झाड़ू कहाँ है..?"

तब में उसके मांग में सिंदूर देखा तो ढंग रहगया.. इतनी छोटी उम्र में शादी भी हो गयी इसकी..." जब यह झाड़ू लगा रहीथी तो उसे बारीकी से देखा। वह दुबली,पतली थी, लंबा मुहं और अब खड़ी थी तो ऊंचाई का अंदाजा लगाया की होगी कोई 5' 4", लम्बा गर्दन, वह पंजाबी सूट में थी और अपने चुन्नी की एक कंधेसे क्रॉस कर कमर पर बंधी है। चूचीतो बहुत छोटी थी। शायद A कप के साइज के थे। कमर पतली, मेरा अंदाजा कोई 28 इंच की होगी और नितम्ब 30 के होंगे। रंगत में संवलि थि। और निचे देखा तो उसके जाँघे भी पतले हि थे। एक बात तो सच है.. उसके मुहं पर आकर्षण था और सांवली होने की वजह से उसके दान्त, और आंखोमे चमक भी थी।

दोस्तों मैं हूँ अनुराग, उम्र 40 साल और एक सरकारी फैक्ट्री में फिटर का काम करता हूँ। मेरी पत्नी यशोदा भी उसि फॅक्टरी में असेम्ब्ली सेक्शन मे काम करति है। मैं वर्कशॉप में काम करने की वजह से मुझे शिफ्ट्स रहते थे। लेकिन मैंने परमेन्टली सेकंड शिफ्ट ले ली है। दोपहर ढाई बजेसे रात के ग्यारह बजेतक का शिफ्ट। कारण यह है बच्चोंकी स्कूल फी भरना हो, ये करंट, पनिका बिल जमा करना हो, और बैंक के कामों में सुविधा होती है। वैसे मुझे रात के ग्यारह बजेसे पहले सोने की आदत नहीं है तो यह शिफ्ट सुविधा जनक है। मेरी पत्नी की ड्यूटी सवेरे 8.30 से शाम 5 बजे तक। वह मेरेसे पांच वर्ष छोटी है यानि कि आजके समय उसकी उम्र 35 वर्षकी हैं। हमारे दो बच्चे भी है। बड़ी वाली लड़की 11 वर्ष और लड़का 7 वर्षका। दोंनो नौकरी करते है और मजेमें रहरहे हैं। जैसेकि मैंने ऊपर कहा है घर जाती है।

एक बात बोलना जरूरी है, वह यह है की मैं जरा रसिया हूँ। औरत या जवान लड़कीको देखता हूँ तो मेरे जंघोंमे मेरा यार फुदकने लगता है। अब इस नौकरानी को देखकर भी यहि हाल हुआ मेरा। भगवान ने मुझे एक अच्छा खासा औजार भी दिया है और वह हमेषा, कामुक आलोचना आते ही कड़क होकर 'मैं हूँ..' का अहसास दिलाता है। मैं अपने आपमें सोचरहा था 'साली की नयी नयी शादी हुई लगती है.. मौका निकालना है पटानेके लिए' लेकिन मुझे सावधान भी रहना है अपने पत्नी से।

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नौकरानी दिन में दो बार अति है; सवेरे 8 बजे अति है, घर का सरा काम करके कपडे धोने के बाद वह दोपहर का और रात का खना भी बना देति है। फैक्ट्रीसे थके आये यशोदा को सिर्फ खाना गर्म करलेना पड़ता है बस। शाम साढ़ेपांच बजे एक बार अति है। सहज ही शाम में उसे ज्यादा काम नहीं रहती। कुछ झूटे प्लेट वगैरा और शाम के चाय के कप और बर्तन बस यही शाम में उसका काम।

नौकरानी के ज्वाइन होने के तीन दिनबाद एक शाम मैं और मेरी पत्नी चाय पी रहेथे तो मेरी पत्नी ने नौकरानी को बुलाकर उसे चाय दी और एक बिस्कुट का पैकेट देते बोली "वसंती यह बिस्कुट अपने बच्चों को देना..." यह सुकर में ढंग रहगया की इसके बच्चे भी हैं।

तब मैं पहली बार उस से बातचीत किया और पुछा "क्या तुम्हारे बच्चेभी हैं...?"

"जी साब मेरे तीन बच्चे हैं..." उसका जवाब सुनकर मैं और सकते में आगया। मेरे बगल में ही मेरि पत्नी यशोदा बैठी है।

"क्या...? तुम्हारे तीन बच्चे हैं...?"

वह हाँ में सिर हिलाई।

तब मैं पुछा "तुम्हारा उम्र क्या है... ठहरो...ठहरो..पहले तुम्हारा नाम बोलो" वैसे मैंने सुना यशोदा उसे वासंती कह कर बुलाई थी।

"वसंती... साब मैं अब 26 साल की हूँ.. मेरी बड़ी बेटी की उम्र 9 साल और दो बेटे हैं 5 साल और 1 सालके हैं।

बापरे यह 26 वर्षकी है.. लेकिन उतने की नहीं दिखति; तीन बच्चों कि माँ तो बिलकुल ही नहीं। अब मेरि रूचि उसमे और भी बढ़गयी है। अब तो अपनी पत्नीको लेते समय भी मैं वासंती को बारे में सोचने लगा।

वासंती को हमारे यहाँ काम करते दो महीने गुजर गए हैं। लेकिन मुझे आगे बढ़ने का कोई अवसर नहीं मिल रहा था। मैं एक चांस की तलाशमे था। वैसे मैं उसके साथ ढाई से तीन घंटे रहता हूँ पर.....

मेरी एक गलती से मेरी पत्नी यशोदा को मुझ पर अनुमान है। छह महीने पहले जब काम करने वाली नौकरानी के साथ मुझे पीछे की आँगन मे छेड़छाड़ करते देखली थी। तबसे उसे मुझपर अनुमान है। इन दो महीनों मे यशोदा ने दोबार बीचमें ही घर आगयी। दो बार भी मैं लकी था। पहली बार जब वह आई तो नौकरानी पिछे आंगन में नल के पास कपडे धोरही थी। दूसरे बार वह किचन में खाना पका रही थी तो में बाहर पेड़ोंको पानि दे रहा था। वैसे दो बार बचगया। इसलिए बहुत सावधान बरतता रहा हूँ।

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पन्दरह दिन और गुजर गए हैं। उस दिन मुझे कुछ आशा के असार दिखे। उस दिन साढ़े दस बजे हमेशा की तरह वह चाय बनाकर लाई। मेरे लिए भी और अपने लिए भी। जब वह पहली बार चाय बनई थी तो एक हि कप बनाई थी। तब मैं उससे कहा, "देखो तुम जब भी मेरे लिए चाय बनाती हो तो दो कप बनालेना, एक मेरे लिए और दूसरा अपने लिया और तुम मेरे साथ ही यहीं पियोगी... समझग यी.."

"जी सब.." कहकर वह चली गयी और तबसे वह दो कप चाय बनाती थी और हम दोनों मिलकर चाय पिते थे। मैं उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना चाहता था। उस दिन भी वह चाय बनाकर लाती और हम चाय पिरहे थे। मै सोफ़े पर बैठा था और वह निचे। में उसे ही देख रहा था। चाय ख़तम होनेके बाद वह मेंरा कप लेते बोली.. "सब आप से एक बात पूछनी थी..." उसके स्वर में कंपंन थी और वह झिझक रही थी।

"पूछो...." मैं बोला, लेकिन वह अभी भी झिझक रही थि।

"क्या बात है वासंती...तुम कुछ परेशान दिख रही हो...?"मैं नरमी से पुछा।

मेरे नरमी से पूछने पर उसे हिम्मत आई और पूछी.. "साब मुझे कुछ रुपये चाहिए थी।"

"कितने रुपिये चाहिए..?" में उसे ही देखता पुछा। में समझा वह शायद सौ दो सौ पूछेगी।

"बीस रुपये..?

"क्या सिर्फ बीस रुपये... क्यों...?"

"मेरी बेटी के लिए कुछ कॉपियां खरीदने है..."

मैं जेबसे पचास का नोट निकला और उसे दिया।

"बीस बस है साब.."

"अरे रखलो..बच्ची की पढ़ायी के बारे में है .. रखलो..." में पहली बार उसका हांथ पकड़ा और जबरदस्ती उसके हाथ में पचस का नोट थमा दिया।

वह नोट लेली पर फिर भी कुछ कहने के लिए झिझक रही थी।

मैं उसे सवालिया दृष्टी से देखा।

"साब यहबात मैडम जी को मत बताईये..." जैसेही उसने यहबात कही में समझगया की अब मैं उसे पटा सकता हूँ।

फिर भी पुछा "क्यों...?"

"साब मैं पहले ही मैडमजी से 200 रूपये एडवांस लेचुकि हूँ.. मेरे बेटे कि तबियत बिगड़ गई थी। डॉक्टर के यहाँ लेजाने लिया था।

में खामोश रहा।

आप बोलेँगे तो यह पैसे भी काट कर पगार देगी.. घर चलाना मुश्किल होगा.. मैं आपके पैसे धीरे से लौटा दूंगी..."

ठीक है मैं नहीं बोलूंगा मैडम जी से..." में इसे देख कर हँसते बोला।

"शुक्रिया साब..." कहते वह मेरे पैर छूने लगी।

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इसके चार दिन बाद उस सुबह कोई 10.30 वासंती मेरे लिए और अपने लिए चाय ले आई और हमदोनो पीने लागे। मैं इधर उधर की बातें करते चाय पीरहा था।

मेरे हाथ में एक मागज़ीने थी जिसमे मैं उस समय एक मॉडल की तस्वीर देख रहा था। बहुत मस्त थी वह मॉडल। तब मुझे एक आईडिया आया।

"वासंती अगर तुम्हारा शरीर कुछ और भरा होता और तुम्हारे छाती कुछ बड़े होते तो तुम इस मॉडल की जैसे दिखती थी" कहते मैंने उस मॉडल की तस्वीर उसके सामने राखी। तस्वीर मे मोडेल एक लेग्गिंग और शार्ट कुर्ती पहनी उस कपड़ों की advertise कर रही थी।

वासंती ने मेरे हाथसे मैगज़ीन ली और उस मॉडल को देखते बोली "जाईये सब आप मेरा हंसी उडा रहे हैं.. मैं कहाँ और वह कहाँ.... मैं तो उस लड़की की पांव की नाखून के बराबर भी नहीं हूँ..."

"अरे नहीं वासन्ती... वह भी तुम जैसे ही एक लड़की है.. लेकिन उसकी कपड़ों से उसकी फिगर चमक रही है... आगर तुम भी वैसे कपडे पहनो थो..." मैं रुक गया..

वासंती कुछ पल उसे देखती रही और एक निश्वास छोड़ते बोली.... "होसकता है आप ठीक बोल रहे हो.. लेकिन उतने महंगा कपडे मैं कैसे पहन सकति हुँ...?"

"अरी वासंती, मुझे मालूम है यह कपडे तुम्हे जचते हैं... है की नहीं...?" पुछा।

"जचते होंगे .. लेकिन..." उसके बाद हम दोनो में कोई बात चीत नहीं हुई। उस दिन में छुट्टी लगाया और शाम मेरी पत्नीके आने के बाद में मार्किट गया और अंदाजे से वासंती के लिए एक लेग्गिंग, कुर्ती और एक पेअर ब्रा और पैंटी खरीदा और उसे मेरी गाड़ी में छुपाकर रखा। दूसरे दिन जब वासंती आयी तो उसे दिया और बोला "यह लो इसे घर में पहन कर देखो जचती है या नहीं.." उन कपडों को देखकर वह चकित हो गयी लेकिन मैने उसके आँखों में चमक देख लिया।

"यह सब क्यों साब...?" वह बोली।

मैं कोई समाधान नहीं दिया। फिर हर रोज की तरह हम चाय पिए; फिर वह बोली "साब, हमारे यहाँ आदमकद शीशा नहीं है..क्या मैं उसे यहीं पहन कर देखूं...?"

"देखलो कौन मना कर रहा है... मैं तो इसलिए बोला था की तुम यहाँ शायद लजाओगी.."

मैं हाल में बैठा और वह हमारे कमरे में ड्रेसिंग मिरर सामने ठहरकर कपड़े पहनि। वह कमरे में जाते ही मैं उसके पीछे गया और दरवाजे के बाजु से उसे झांक रहा था। पहले वह पैंटी और ब्रा पहनी, पैंटी तो ठीक है लेकिन ब्रा लूस होगयी। आखिर उसके चूची छोटे जो थे। फिर उसने लेग्गिंग और कुर्ती पहनी... उसके शरीर पर खूब जची। वह एक बार तृप्ति से आईने में देखि और बाहर के लिए पलटी। मैं झट फिरसे सोफेपर आगया... "साब कैसी है...?" वह मेरे सामने ठहरकर मुझे ड्रेस दिखाते पूछी।

मैंने उसे आगे पीछे घुमकर और फिर दो कदम चलकर दिखाने को कहा तो वह करि।

"अब बोलो कैसी है...?" मैं पुछा।

अच्छी है साब.. आप जो बोले वह सच है अगर मेरा बदन कुछ और भरा होता तो..." वह रुक गयी।

अरे वजन बढानेके लिए और शरीर में कुवत अनेके लिए टॉनिक मिलती है... वह लेलो बस तुम्हारी बदन तीन महीने में भर आएगी..." में उसके शरीर पर हल्कासा हाथ फेरते बोला। मेरे हाथ फेरने को उसने टोका नहीं तो मुझमे हिम्मत बद्दी।

"साब वह टॉनिक महंगी होगी..."

वासंती.. तुम इसकी फिक्र मत करो..आखिर तुम घरका इतना काम जो करती हो.. म्हारे आने से मैडम जी को पूरा आराम मिलरहा है... मैं तुम्हे टॉनिक ले देता हूँ..." में उसके हाथ को दबाते बोला।

"साब.. अगर मैडम जी को मालूम पड गया तो...?" उसने शंका जताई।

"क्या तुम बताओगी...?" मैं उसके आंखोमे दखते पुछा...

"ना बाबा..." बोली और उसका शरीर एक झुर झूरी ली।

"तो कैसा मालूम पड़ेगा.. सब मै संभालता हूँ.. बस तुम रोज उस टॉनिक पिया करो..." कहते मैं उसका हाथ छोड़ दिया। फिर वह अपने काम में जुट गयी और मैं अपने कमरे में जाकर उसे कैसे अपने नीचे लेने प्लान बनारहा था।

दूसरे ही दिन उसके लिए टॉनिक ले आया और वह उससे रोज सेवन करने लगी।

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दो महीने बीत गए, अब वासंती के शरीर में कुछ चरबि बढ़ने के साथ उसके चेहरे पर निखार भी आई। मैं निर्णय लिया की जल्द से जल्द उसकी रिसती चूत में मेरा हलब्बी लावड़ा घुसने का। आज कल वह मेरे से बहतु से बातें करने लगी। उसके बस्ती के बातें और सिनिमे के बातें वगैरा। अब उसकी साड़ी या दुपट्टा कंधे से फिसलने पर भी वह उसे ठीक नहीं करति।

उस दिन हर दिन की तरह वह चाय लेकर आयी और हमदोनो बैठकर कर चाय पी रहे थे।

मैं एक सूती बरमुडा और बनियम पहनकर बिस्तर पर बैठा था। मेरे सोच में उसे लेने का ख्याल आया। जैसे ही वह ख्याल आया मेरा डंडा खड़ा होकर बरमूडा के ऊपरसे ही उसके उभार दिखने लगी। मैंने देखा की वासंती चोरी छुपे मेरे उभार को देहने लगी।

उसे मेरी डंडा को चोरी छुपे देखना देख कर मेरे में हिम्मत बढ़ी। मैं उसे टॉनिक लेने के बाद उसे कैसा लग रहा है पुछा।

"बहुत अच्छा लग रहा है साब.. में महसूस कर रही हूँ की मेरा वज़न कुछ बढ़ा है..."

"हाँ वह तो है... में भी तुम्हे देख रहा हूँ..साथ ही साथ तुम्हारे चेहरे पर एक निखार आयी है.. देखो सामने के शीशेमें.. तुम्हारे चहरे की चमक दिखती है.." कहते में उसक ध्यान शीशे की ओर किया। वह शीशे में अपने आप को देख कर लजाने लगी।

"निखार आया है न...?" मैं उसके कंधेपर हाथ रख कर दबाते पुछा।

"हाँ साब कुछ चमक तो आयी है..." वह शरमाते बोली।

"अरे वासंती शर्माओ नहीं.... यह तो हर लड़की या औरत की ख्वाईश होती है की वह अच्छा दिखे..."

"आप बहुत अच्छे हैं सब... जो आप मेरे लिए ऐसा टॉनिक ले आये..." वह भावुक स्वर में बोली।

"छोड़ो यह बात.. तुम हमारे यहाँ काम करति हो.. यह तो हमारा फर्ज बनता है कि तुम्हरी सेहत का खयाल रखे" मैं उसके हाथ को पकड़कर बोला ।

"आप बहुत अच्छे हैं साब.. सब अपने नौकरों की ऐसा देखबाल तो थोड़े ही करते हैं..."

मैं यह बात नोट क्या की यह रह रहकर मेरे बरमुडे की ओर देख रही है और उसके गालों पर लालिमा आई है। वह साँवली है; इसके बावजूद मुझे उसके गालों पर लालिमा दिखी।

"अच्छा वासन्ति यह बताओ.. तुम्हे और जल्दी अपने चेहरे पर निखार लानी है..?"

"यह कैसे हो सकती है...?" वह पूछी।

"इसके लिए तुम्हे स्पेशल टॉनिक लेना पड़ेगा..."

"इस्पेशल टॉनिक....? वह बहुत महँगी होगी ना साब....?"

"अरे यह टॉनिक कुछ महंगी नहीं है.. सिर्फ तुम्हे हाँ करने की जरूरत है.. तुम अगर हाँ बोलोगी तो वह टोनिक मैं ही तुम्हे दे सकता हूँ..." में उसके आँखों में देखते बोला।

"महँगी नहीं है तो पीलूँगी साब.. लेकिन आप कैसे दे सकते है.. यह टॉनिक...?"

"तुम मुझे यह बताओ उसे लेना हैं या नहीं...?"

उसे समझ मे नहीं आरहा है मैं क्या बोल रहा हूँ... वह संकोच के साथ बोली..."हाँ..."

मैं झट उसके हाथ को खींच कर मेरे लावड़े पर बरमुडे के ऊपर से ही रखा और कहा.. "एहि है.. जहाँ से उस टॉनिक निकलती है.. बस तुम्हे इसे पीना है और इसका इंजेक्शन लेना है... देखो एक ही महिनेमे तुम्हारा कायाकल्प होजयेगा..."

वह गभरा गयी और कही.. "साब यह क्या कर रहे हैं आप..." वह बोलने को बोली लेकिन अंजाने में ही उसने मेरे लंड को जकड़ी। यह उसका शरीर का रेस्पांस था।

"देखो वासंती इसमें कोई जोर जबरदस्ती नहीं हैं; तुम्हे अगर अपने चेहरे पर निखार लानी है.. तो ही.. नहीं तो छोड़ो यह बात.. वैसे जो टॉनिक तुम अब तक ले रही थी.. उसे तो मैं तुम्हारे लिए लाता रहुँगा..." में बोला और उसके हाथों को छोड़ दिया।

वह मेरे पलंग के पास निचे बैठे रही...

कोई पांच छह मिनिट ख़ामोशी के बाद वह बोली... मुझे क्या करना होगा...?"

जैसे ही वासंती यह बात पूछी मैं झट अपने बरमूडा निचे खींचा। अंदर अंडरवियर नहीं था.. तो मेरा नंगापन उसके आंखों के सामने..." वासंती उसे अचम्भेसे देखने लगी।

दोस्तों मैंने कहा था की भगवान ने मुझे बहुत ही उम्दा औजार दियाहै... वह विस्परित आँखों से उसे देखती हकलाई..."साब.. यह .. यह..."

"वसंती ऐसे क्या देख रहे हो.. जैसे पहली बार देख आहे हो...?"

"हाँ साब.. पहली बार ही देख रही हूँ.. इतना लम्बा और मोटा..क्या इतने बड़े भी होते हैं...?"

"क्यों तुम्हारा पति का देखि नहीं हो क्या... उसके पास भी तो होगा न...?"

"है साब..लेकिन इतना बड़ा नहीं है.. उसका तो इसमे आधा भी नहीं है...?

"यह क्या कह रहि हो तुम...?"

"हाँ साब मैं सच कह रहि हूँ..."

"लेकिन मैने तो सुना है की देहातियों का तगड़ा होता है..."

"होगा साब..लेमिन मेरा पतिका तो बस छोटा है.. एक बार मैं उसे मेरी बेटी की स्केल से नपी हूँ.. वह मुश्किल से पांच इंच की थी .. बस.. वैसे आपका कितना लम्बा है साब....?" वह पूछी।

"तुम्ही नाप के देख लो; हाल के drawer में बेबी का स्केल होगा... देखो..." वह झट उठी और स्केल लेकर आई और मेंरे नगीने को नाप ली और बोली.. बाप रे साब आपका तो 9 इंच के ऊपर है; मैंने कहा तह न की मेरे पतिका इसमें आधा ही होगी..." वह अपनी छाती पर हाथ रखते बोली।

"चलो बहुत हो गया.. टॉनिक पीना है की नहीं...?" मैं पुछा...

"साब क्या सच में इस टॉनिक पीनेसे चेहरे पर चमक अति है और बदन की वजन बढ़ती है...?" वह पूछी।

"इस टॉनिक के बहुत से फायदे हैं.. इस टॉनिक को क्रीम की तरह चेहरे पर लेप कर मर्दन करो तो भी चमक अति है.. और इसे अपने छाती पर लेप कर मर्दन करे तो छाती भी बढ़ती है...." में उसे पटाने के लिए कहा।

"अब मैं क्या करूं...?" वासंती मेरे लंड को ऐंठती पूछी।

"अरे करना क्या है..इसे मुहं में लो और चूसो..."

"छी..." वह मुहं बनाकर बोली.. "यह तो गन्दी है.. इसे कैसे मुहंमे लेंगे...?"

उसकी बात सुनकर मैं सकते में आया... क्या इसने अभी तक लंड नहीं चूसी... इसका शादी होकर 10 वर्ष बीत गए और इसे लैंड चूसना नहीं मालूम। यह बात समझ में आते ही मेरी उत्तेजना और बढ़ी।

"अरे रानी.. एह साफ सुतारा है, इसे मुहं में लो और चूसो, चाटो" में उसे समझा रहा था।

"नहीं... मुझे गिन्न अति है... इस से तो सिर्फ दो काम करते हैं..." वह बोली।

"अच्छा.. वह क्या है...?"

"एक तो इस से पिशाब करते हैं.. और...." वह रुक गयी।

"और.... और क्या..?"

"और... और.. और वो करते हैं...?"

"और क्या करते हैं...?" मुझे इसकी बातों से मजा आ रहा था।

".... और क्या करते हैं...?"

"जाओ साब.. आप भी ... आपको मालूम है"

"लेकिन वसंती मैं तुमसे सुन ना चाहता हूँ..."

इस से.. इस... से.. चूत चोदते हैं..."

"लेकिन इसे चूस कर इसका टॉनिक पीने से चमक भी आती है.. क्या तुम्हे अपने बदन को और चहरे को चमकाना नहीं है..?"

"लेकिन..."

"अच्छा एक काम करो..इसे सिर्फ सिर्फ दो मिनिट के लिए मुहं में लो... अगर अच्छा नहीं लगा तो निकाल देना..."

यह सब बातें चल रहि है लेकिन मैं अब तक उसका हाथ पकड़ने के सिवाय कुछ और नहीं किया.. मैं बनते काम को बिगाड़ना नहीं चाहता था।

वह हीच खिचाते उसने शिश्न के उपरि भाग को ही मुहं में ली...

शाबाश.. बस तोडा और अंदर लो... जैसे मैंने कहा... अच्छा नहीं लगा तो निकाल देना..." कहा और हिम्मत कर उसके मुहं को मेरे लवडे पर दबाया।

उसने मेरा पूरा सुपाडे को मुहं में ली। उसे वैसे ही रख रखी, मैंने उसे दो मिनिट रखने को कहाँ था लेकिन, मुश्किलसे एक मिनिट बीती होंगी, उसने मेरे सुपाडे को चूसने लगी। अब उसे चूसनेमे मजा मिलरहा था... और वह जोर जोर से मेरे लवडे चूस रही थी। देखते ही देखते मेरा आधेसे ज्यादा लंड उसके मुहं में चालीगयी और वह चाहत के साथ चूसने लगी।

कोई तीन चार मिनिट बाद उसने सर उठाकर मुझे देखि।

"कैसी है.. अच्चा लग रहा है की नहीं...?" मे पुछा।

उसने जवाब नहीं दिया पर फिर से मेरे लंड को मुहं में भर ली। उसके चूसन से मेरी आंखे बंद होने लगे। पांच छह मिनिट यह चूसना चलता रहा, फिर मैं खलास होनेको आया। में मेरा हथियार उसके मुहं से खींचा.. और साइड पड़ी एक कटोरी लंडके सामने रख उसमे खलास होने लगा। मेरा घाड़ा सफेद वीर्य से कटोरे में गिरा। "यह देखो... एहि है स्पेशल टॉनिक..." कहते उस वीर्य को ऊँगली से निक्ला कर उसके गालों पर लगाया। वह अपने उँगलियों से उसे गालोंपर लेप करने लगी। मैं कुछ और वीर्र्य को लेकर उसे मुहं खोलने को कह उसके जीभ पे लगाया.. वह उसे निगल गयी.. पहले उसने अपना मुहं अजीब तरह से बनाया फिर समान्य होगयी।

"कैसी है...?"

"कसैला और कुछ कुछ नमकीन भी... "

अपना ब्लाउज खोलो.. में इसे वहां पर लगाता हूँ..." में चालाकी से कहा।

वह एक क्षण संकोच करि और हुक्स खोलदी। वाह क्या चूची थे उसके... बिलकुल मध्यम साइज की संतरे की तरह.. छोटीसी चूचिकी गुंडियां... में उस पर वीर्य का लेप कर धीरेसे मर्दन करने लगा... कुछ ही देर में वह गरमा गयी...अपना हाथ मेरे हाथ पर रख कर दबई। मुझे इशारा काफी था में अब दिल खोलकर उसे दबाने लगा.. "वह आअह्ह्ह... सससस...." करने लगी। मैं मौका देख कर उसकी एक चूचिको मुहं मे दबाया और घुंडीको दांतो से दबाया।

"आआह्ह्ह... साब...." वह कही। में धैर्य से उसे चूसता रहा.. कोई दस मिनिट तक मैं उसके चूचीको चूसता, चुभलाते रहा...

"साब .. कुछ हो रहा है..." वह तिल मिलाते बोली।

"क्या....?"

"वहां खुजली हो रही है.. आआह्ह.. अब नहीं होता.. करिये..." वह तडपते बोली।

"क्या करूं ...?"

"चोदिये मुझे..." वह निर्लज्ज होकर कही और मुझे अपने ऊपर खींची।

"वसंती.. यह क्या कह रहि.. यह गलत है.. मेरा यह इरादा नहीं था..."

"आपका जो भी इरादा हो.. लेकिन अब तो मुझे चोदिये मेरी झुलस रही है और उसने मेरे फिर कड़क हो उठे लवडेको जकड़ती बोली ...

बोलने के साथ वह पलंग पर चित लेटकर अपना साड़ी कमर तक खींची। मेरी नजर उसके जांघों के बीच गयी। वहां ढेर सारे गुन्घरले बाल थे। सच मानो तो मुझे चिकनि बुरे पसंद है...लेकिन अब उसे साफ करने का समय नहीं है, सो मैं उसके जांघों में आगया...

वह अपने टंगे पैलाकर रखी... मैं उसके घने बालोंको हटाकर उसके फांकों पर अपना मेरे डंडे को रखा... वह दुबली थी लेकिन उसके फांके मोटे थे...

मैं वासंती के चूत के मुहाने मेरा औजार रख कर फांकों पर रगड़ा... "साब देर मत कीजिये.. हाहाहा... करो मुझे..." वह कहि और अपनी कूल्हे उठायी। मैं अपने डंडे पर दबाव डाला तो वह 'फच' की आवाज के साथ उसके फाँकों में अड़स गई।

"अम्म्माआ... साब.. धीरे.. आआआह। . दर्द हो रही है..." उसके आँखों में आंसू थे।

उसकी चूत एकदम तंग थी.. जैसे कुंवारी बुर हो... "बापरे.. वसंती तुंहारा इतना तंग क्यों है....?" मैं आश्चर्य से पुछा।

"साब.. मैं चुदके लग भाग दो साल हो गए..."

"क्या... दो साल.. तुम्हारा पति...?"

"वह कहाँ है साब.. मेरा छोटा लड़का पेटमे गिरते ही स्साला.. एक भैंसे के साथ भाग गया.. मालूम नहीं कहाँ है.." वह रुकी फिर बोली.. साब बातें बाद में...अब तो पहले मुझे चोदो ..."

मैं फिर से चोदने पर ध्यान दिया.. उसकी तंग बुर में मेरा टाइट है.. में हाथ बढ़ाकर मेरी पत्नी की face cream की शीशी उठायी और उसे मेरे लंड पर और कुछ उसके बुर पर लगाया और एक जोर का दक्का दिया.... मेरा आधे से ज्यादा वासंती की तंग बुर में समागयी।

"आआह... मैं मरी... हाय .. साब मार डाला.. मममम... नहीं.. बुहत दुःख हो रहा है निकालो..." कहते उसने मुझे अपने ऊपर से ढकेलने की कोशिश की।

वह कह ही रही थी की में अपना कुछ बहार खींचा और एक शॉट दिया.... अब की बार मेरा पूरा 9 इंच उसके अंदर चाली गयी...

"नहीं साब.. नहीं.. हाय...कितना दर्द हो रहा ही...मुझे नहीं चुदाना .... अम्मा कितने जालिम हो साब आप..." कही।

साली इतनी टाइट होगी मैं सोचा नहीं था.. "होगया.. बस.. अब होगया.. थोड़ा सब्र करो..." कहते मैं पहली बार उसके होंठो को चूसने लगा...

वह भी मेरे होंठों को अपने में लेकर चुबलाने लगी। में उसके छोटी चूची को दबाते, घुंडी को मसलते गलों को काट रहा था... कोई चार पांच मिनिट बाद मैंने महसूस किया की उसकी बुर अपना मदन रस छोड़ने लगी...

फिर क्या था.. वह रस मेरे लवडे को चिकना करने लगी और मैं ऊपर निचे करने लगा ...

अब मेरा डंडा उसके बुर के दीवारों को रगड़ता अंदर बहार होने लगी।

कोई पांच मिनिट बाद उसका पीड़ा कम हुआ और मजा आने लगी.. वह अपनी कमर उछालते बोली.. अब चोदो साब.. दर्द कम हुआ.. चोदो.. जोर से चोदो जैस आप मैडम जी को चोदते वैसे ही चोदो" वह बोली।

उसकी बात सुनकर में हैरानी मे रह गया... और कहा.. तुम...तुम..."

साब सब बातें चुदने के बाद... आप अपना टॉनिक दीजिये... मैं तरस रही हूँ..." बोली।

फिर उसके बाद हम दोनो की धमसान चुदाई हुई.. मैं अपने हलब्बी लंड से मेरी नौकरानी को पूरा 15 मिनिट तक चोदता रहा... और फिर खलास होने को आया तो पुछा.. "वासंती.. कहाँ निकलूं.. अंदर या बहार...?"

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