कमसिन लड़की की गांड

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कमसिन लड़की की गांड
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मेरा नाम उत्पल है. मैं बिहार का रहने वाला हूं। कहानी शुरू करने से पहले मैं आपको अपने बारे में बता देता हूं. मैं शरीर से फिट हूं लेकिन रंग थोड़ा गेहुंए से ज्यादा गहरा है. मगर सांवला नहीं कहा जा सकता. मेरी हाइट भी सामान्य है और कद-काठी से आकर्षक ही दिखता हूं.

ये स्टोरी तब की है जब मेरी एक प्राइवेट कंपनी में जॉब लगी थी। मेरे ऑफिस से सटा दो कमरे का एक फ्लैट था जिसमें एक परिवार रहता था। उस परिवार में पति पत्नी और उनके तीन बच्चे थे. उनकी बड़ी बेटी रोज़ी उस समय मुश्किल से 18-19 वर्ष की थी। जबकि एक छोटी बेटी और एक बेटा था।

रोज़ी इतनी सुंदर थी कि एक नज़र में कोई भी उस पर फिदा हो सकता था। मेरे ऑफिस में प्रवेश के लिए उस घर के गेट के सामने से होकर ही रास्ता था. इसलिए सुबह से शाम तक हम कई बार उधर से आते जाते थे। इस तरह अक्सर मेरी नज़र रोज़ी पर पड़ जाती थी।

उसके माता-पिता की मार्केट में अलग-अलग दो दुकानें थीं तो दोनों पति पत्नी बच्चों को स्कूल भेजकर अपनी अपनी दुकान पर चले जाते थे और देर रात में वापस आते थे। इस बीच रोज़ी के साथ ही उसके भाई बहन भी दिन में अकेले ही रहते थे.

रोज़ी के मां-बाप की सख्ती के कारण सभी भाई बहन न तो हमारे ऑफिस के किसी भी आदमी से बात करते थे और न हम लोग ही उन लोगों को कभी टोका करते थे। मेरी जॉब लगे हुए पांच महीने हो चुके थे.

उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी तो हर लड़की को देख कर मन काफी मचल उठता था। रोज़ी तो फिर अप्सरा थी. इतनी कमसिन, भोली और मासूम सी दिखती थी कि दिल एक दिन में उस पर कई बार फिदा हो जाता था।

मैं अक्सर उसके घर के सामने कभी चाय तो कभी सिगरेट पीने के बहाने ऑफिस से निकल जाता और उसके घर मे ताक झांक करता रहता था ताकि उसकी एक झलक मिल सके. कभी वो नज़र आती थी और कभी नहीं।

एक दिन ऐसा हुआ कि मैं चाय के बहाने ऑफिस से निकला तो वो मुझे गेट पर खड़ी दिखी. मैंने उसे देखा और उसने भी मुझे देखा. चूंकि मैं अक्सर गोगल्स पहने हुए था तो शायद उसे नहीं पता चला कि मैं उसे देखता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ.

तभी मैं सामने से ऑफिस आ रहे एक आदमी से टकरा गया. ये देख कर वो मुस्कुरा दी. मैंने हड़बड़ी में कोई रिस्पोन्स देने के बजाय खुद को संभाला. सामने एक अधेड़ व्यक्ति मुझे अजीब निगाहों से घूर रहा था।

मैंने उस आदमी से पूछा- क्या काम है?

उसने कहा- ऑफिस जाना है, आप इतना बड़ा चश्मा लगाए हुए हैं फिर भी नहीं दिखता?

इस पर मैं सॉरी बोलकर आगे बढ़ गया।

उस घटना के दो तीन दिन बाद वो फिर मुझे दरवाजे पर दिखी. वो मुझे देखते ही मुस्करा दी और मैं भी मुस्करा दिया।

उसने पूछा- अंकल, आप यहां नए-नए आए हैं?

मैंने कहा- पांच-छह महीने हो गए हैं। तुम लोग यहां किराए में रहती हो?

उसने हां में सिर हिलाया।

मैंने अन्जान बनते हुए पूछा- तुम्हारे पापा मम्मी जॉब करते हैं?

उसने कहा- नहीं, हमारी दुकान है।

फिर मैंने पूछा- तुम किस क्लास में पढ़ती हो?

रोज़ी बोली- मैंने अभी बाहरवीं के एग्जाम दिये हैं.

मैं कुछ और पूछता इससे पहले अंदर से आवाज आई- सिस, किससे बात कर रही हो?

वो बोली- ऑफिस के एक अंकल से।

ये कहती हुई वो अंदर चली गई।

उसके कुछ दिन बाद वो फिर गेट पर दिखी तो मैंने पूछा- कैसी हो?

वो बोली- जी, अंकल ठीक हूं. आप कैसे हैं?

मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया- बढ़िया.

मैं आगे बढ़ गया।

तभी पीछे से उसने आवाज लगाई- अंकल! आप दुकान जा रहे हैं?

मैंने कहा- हां! क्या हुआ, कुछ लेना है?

तो उसने दस रुपये का नोट मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा- मेरे लिये एक पर्क ला दीजिए न प्लीज़!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है, मैं ला देता हूँ.

बिना उससे पैसे लिए मैं चला गया और जब पर्क लेकर आया तो वो गेट पर नहीं थी.

मैंने हल्की आवाज में उसे पुकारा तो उसकी छोटी बहन बाहर आई.

पूछने लगी- क्या हुआ अंकल?

चॉकलेट मैंने उसकी तरफ बढ़ाई तो उसने हंसते हुए लेने से मना कर दिया. मैंने उससे कहा कि तुम्हारी दीदी ने मुझे पैसे दिये थे, ये उसके लिये है, उसको ले जाकर दे दो.

उसकी छोटी बहन ने बिना कुछ बोले मेरे हाथ से चॉकलेट ली और फिर अंदर चली गयी.

अगले दिन वो फिर से रोज़ी मुझे गेट पर खड़ी हुई मिली और बोली- अंकल आपने पैसे नहीं लिये चॉकलेट के लिये? ये लीजिये कल के पैसे.

मैंने कहा- कोई बात नहीं बेटा, अंकल की तरफ से रख लो.

उसने मना कर दिया और बोली कि या तो आप पैसे ले लीजिये नहीं तो फिर ये पर्क भी अपने पास रख लीजिये.

अब मैं असमंजस में फंस गया. मैंने उसके हाथ से पैसे और चॉकलेट ली और फिर आगे बढ़ गया. कुछ देर बाद मैं बिना सिगरेट या चाय पीये हुए ही वापस लौटा तो देखा कि वो गेट पर खड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही थी. मैंने उसको चॉकलेट वापस की और उसने खुशी खुशी ले ली. फिर मैं जल्दी से वहां से आ गया ताकि ऑफिस का कोई आदमी मुझे देख न ले.

इस घटना के बाद मेरे मन में जो उल्टे सीधे विचार आ रहे थे, वो बदल गए. मैंने कभी किसी लड़की से खुल कर बात नहीं की थी. पहली बार किसी लड़की से ये सोच कर घुलने मिलने का प्रयास किया था कि अगर पट गई तब मजे लूंगा.

मगर उसके व्यवहार से मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। मेरे मन में बार बार ये सवाल उठ रहे थे कि वो क्या सोच रही होगी? मैं उसे पटाने की कोशिश तो नहीं कर रहा? ऐसे ही कई सवाल बार बार मन में आ रहे थे।

ऑफिस से मैं घर लौटा तब भी रोज़ी का ही ख्याल आता रहा, कई विचार आए-गए। फिर मैंने सोचा कि क्यों न कुछ देर उससे बात की जाए और उससे दोस्ती की जाए!

ये सोचकर मैं जब दूसरे दिन ऑफिस आया और बहाने बहाने से बार बार बाहर गया तो वो मुझे एक बार भी नहीं दिखी। मन ही मन मुझे बहुत पछतावा हुआ, क्यों मैंने ऐसे हरकत की? अगर उससे पैसा लेकर सामान लाता तो वो मुझे गलत नहीं समझती!

खैर, ऐसे ही कई दिन निकल गए। मैं रोज उसी तरह ऑफिस के अंदर बाहर घूमता रहा और उसका इंतजार करता रहा। कुछ दिनों बाद वो फिर से मुझे दिखी।

मैं उसके सामने से गुजरने लगा तो उसने मुझे टोका- अंकल कहाँ जा रहे हैं? दुकान?

मैंने हां में गर्दन हिलाई तो फिर उसने दस का नोट मेरी तरफ बढ़ाया और जब तक वो कुछ बोलती मैंने झट से उसके हाथ से नोट लिया और आगे बढ़ गया. तुरंत दुकान से पर्क ले आया और उसे दे दी।

वो मुस्कुराने लगी। मगर कुछ कहा नहीं। बस उस दिन के बाद से हम दोनों की लव स्टोरी शुरू हो गई। उस समय मेरी उमर करीब 28 वर्ष थी और उसकी 18-19 वर्ष के करीब थी।

उस दिन के बाद से मेरी अक्सर उससे छुप छुप कर बात होने लगी। मुझे ऑफिस वालों का डर रहता था और उसे अपने छोटे भाई-बहन का। ये सिलसिला करीब दो-तीन महीने तक चलता रहा। बस हम दोनों एक दूसरे को देखकर पहले मुस्कुराते और हाल चाल पूछते।

कभी कभी घर की और खाने पीने की बातें भी पूछ लेते। इसी बीच उसके छोटे भाई और बहन से भी मेरी बातचीत होने लगी। मैं अक्सर उन तीनों के लिए पर्क अथवा कोई टॉफी लाता. अब वो लोग बिना हिचक के मेरा लाया हुआ सामान ले लेते थे।

कभी मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं कोई और बात रोज़ी से कर सकता. इस बीच उसने बाहरवीं की परीक्षा काफी अच्छे नंबरों से पास की।

रिज़ल्ट आने की खुशी में उसके पापा ने ऑफिस में सबको मिठाई खिलाई. उस दिन उसके मां-पापा से भी मेरी बात हुई.

मैंने कहा- भाई साहब, खाली मिठाई से काम नहीं चलने वाला है, बिटिया इतना अच्छा मार्क्स लाई है, पार्टी तो बनता ही है।

मेरे साथ मेरे दूसरे साथी भी हां में हां मिलाने लगे.

उसके पापा ने कहा- ठीक है, अगले महीने रोज़ी का बर्थडे है तो आप लोग हमारे साथ ही डिनर कीजिएगा। रोज़ी 19 साल की हो रही है.

दूसरे साथी क्या प्लानिंग कर रहे थे मुझे तो इसकी जानकारी नहीं थी मगर मैं रोज़ी के लिए महंगा गिफ्ट खरीदने की जुगाड़ में लग गया। चूंकि मेरा वेतन बहुत ही कम था तो मुझे महंगा गिफ्ट खरीदना काफी मुश्किल लग रहा था।

मैंने अपने एक दोस्त से दो हज़ार रुपये उधार लिए और अपनी जेब से दो हज़ार लगाकर रोज़ी के लिए एक लॉन्ग डार्क ब्लू रंग का गाऊन खरीद कर पैक करवा लिया। मैं बड़ी बेसब्री से उस शाम का इंतजार करने लगा।

आखिर वो शाम आ ही गई। ऑफिस से फ्री होने के बाद हम लोग रोज़ी के पापा के बुलाने का इंतजार कर रहे थे। चूंकि ऑफिस का काम 7.30 बजे तक समाप्त हो चुका था तो हम लोग आपस मे गपशप मार रहे थे।

तभी उसके पापा आए और बोले- बस आधा घंटा और लगेगा। रोज़ी अपनी मम्मी के साथ कुछ सामान लाने गई है, उनके आते ही आप लोगों को बुलाते हैं।

दोस्तो, इंतजार की ये घड़ी कितनी मुश्किल थी, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। खैर, वो घड़ी भी आ गई। हम लोग अपने ऑफिस से निकले और उसके घर में घुसे। तीसरी मंजिल की छत पर सारी व्यवस्था की गई थी।

मैंने सबको आगे जाने दिया और मैं अपना मोबाइल निकाल कर उसमें कुछ खोजने की एक्टिंग करता हुआ धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। मेरी निगाहें सिर्फ रोज़ी को तलाश रही थी।

अचानक वो हुस्न की मलिका चांद सा रौशन चेहरा लिए हंसती मुस्कराती हाथों में पकौडों से भरी प्लेट लिए सीढ़ी की तरफ बढ़ती दिखी. मैं लपक कर उसके पास पहुंचा और हैप्पी बर्थडे बोलते हुए उसे विश किया।

वो मुस्कराकर मेरी ओर देखने लगी और बोली- अरे अंकल आप अभी तक नीचे ही हैं? ऊपर चलिए ना, सब लोग ऊपर ही हैं।

मैंने कहा- बस मैं भी ऊपर ही जा रहा हूं। तुम चलो.

उसने डार्क ग्रीन कलर की पंजाबी कुर्ती और येलो रंग की चूड़ीदार पजामी और यलो रंग का ही दुपट्टा पहन रखा था। तेज़ दूधिया लाइट में उसका चांद सा मुखड़ा जैसे लाइट मार रहा था। वो मेरे आगे आगे सीढ़ी चढ़ने लगी. मैं उसे पीछे से खा जाने वाली नज़रों से देखता हुआ सीढ़ियाँ चढ़ रहा था।

अचानक वो रुकी और मेरी तरफ मुड़ी.

मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो बोली- अंकल आप आगे चलिए न!

मैं हड़बड़ा गया और 'अच्छा' बोलकर उससे सटकर आगे बढ़ गया। उससे सटने से मुझे जैसे 440 वोल्ट का करंट लगा। मन गदगद हो गया.

मैं तेज़ तेज़ सीढियां चढ़ता हुआ छत पर पहुंचा. सभी लोग टेबल पर बैठ कर गपशप करने में बिजी थे। मैंने देखा रोज़ी प्लेट लेकर हमारी ही तरफ बढ़ रही है.

वो आई और हमारे सामने वाले टेबल पर प्लेट रखते हुए सभी से पकौड़े खाने को बोलने लगी। मैं सोच रहा था कि जब मेरा बदन उसके बदन से सटा था तो उसे भी तो ज़रूर मज़ा आया होगा। वो मेरी तरफ देख कर फिर मुस्कुराई और आगे बढ़ गई।

कुछ देर बाद केक भी काट दिया गया. सभी लोग खाना खाकर अपना अपना गिफ्ट रोज़ी को सौंपने लगे। सबसे अंत में मैं उठा और अपना पैकेट मैंने रोज़ी की तरफ बढ़ा दिया। उसने मुस्कराते हुए मेरे हाथों से पैकेट ले लिया और उसे अपनी गोद में रख लिया।

अब रोज़ी अक्सर मुझसे बात करने लगी थी. अपने आगे के भविष्य और पढ़ाई के बारे में भी चर्चा करती थी. कभी कभी मेरा फोन भी ले लेती थी क्योंकि उसके पास फोन नहीं था. वो उसमें गेम खेलती थी.

मैंने अपने फोन में कठिन सा पासवर्ड लगाया हुआ था लेकिन जब फोन उसको देता था तो अनलॉक कर देता था. इसी बीच एक बार वो मेरे मोबाइल पर गेम खेल रही थी तभी मुझे रिंग होने की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुनकर मैं बाहर आया. मैंने रोज़ी को आवाज दी. मेरा फोन अभी भी बज रहा था. फिर फोन कट गया. मगर रोज़ी बाहर नहीं आई. मुझे शक हुआ कि कहीं वो मेरे फोन में बाकी चीजें तो नहीं देख रही?

मैंने अपने फोन में बहुत सारे पोर्न वीडियो रखे हुए थे. मुझे डर लगा कि कहीं रोज़ी उस फोल्डर तक न पहुंच जाये और वो सारे सेक्स वीडियो देख ले. इसी डर से मैंने उसको दोबारा से आवाज लगाई.

दो मिनट बाद वो चेहरा झुकाए हुए बाहर आई. उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वो कुछ चोरी करके आई हो. अब मेरा शक और भी गहरा हो गया. उसने कुछ नहीं कहा और चुपचाप मुझे मोबाइल पकड़ा कर अंदर भाग गयी.

अगले दिन रोज़ी को मैंने फोन दिया. वो मुस्करा कर फोन ले गयी. फिर जब उसने वापस किया तो मैंने खोली गयी ऐप्स को देखा तो पाया कि उसने पोर्न वीडियो का फोल्डर भी खोला हुआ था. अब मुझे यकीन हो गया कि रोज़ी की कु्ंवारी चूत तक पहुंचने का रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.

फिर उसके दूसरे दिन मैं बाहर आया तो वो गेट पर खड़ी होकर इंतजार कर रही थी और मुस्करा रही थी.

मैं भी मुस्कराता हुआ उसके करीब जा पहुंचा और पूछा- कैसी हो?

वो बोली- ठीक हूं.

मैंने पूछा- अकेली हो क्या?

वो बोली- नहीं, अंदर छोटा भाई है और छोटी बहन मम्मी के साथ दुकान गई है।

आज मैं आगे बढ़ना चाहता था. वो भी शायद इसी इंतजार में थी कि मैं कुछ पहल करूं. उसकी जवानी की आग शायद उसको मर्द के स्पर्श के लिए बेचैन किये हुए थी. ऊपर से फोन में मेरे द्वारा जानबूझ कर डाले गये कामुक सेक्स वीडियो देख कर तो उसकी चूत में जवानी को चखने की आग और तेज हो गयी होगी.

फिर मैं उससे इधर उधर की बातें करने लगा और दाएं बाएं देखकर हाथ अंदर कर उसकी चूत की तरफ तेज़ी से हाथ बढ़ा दिया तो वो हड़बड़ा कर पीछे हटी और गेट से टकरा गई।

अंदर से छोटे भाई ने पूछा- दीदी क्या हुआ?

ये सुनकर मैं जल्दी से बाहर की ओर भागा। 15-20 मिनट के बाद वापस लौटा तो वो फिर वहीं खड़ी किताब पढ़ती दिखी. मैंने उसे देख कर स्माइल दी तो वो भी मुस्कराकर गेट से बिल्कुल सटकर खड़ी हो गई और मुझे देखने लगी.

मैंने हल्की आवाज़ में पूछा- भाई??

वो आहिस्ता से बोली- बाथरूम में है!

ये सुनते ही मैंने जल्दी से उसकी चूची पकड़ी और हल्के से मसल दी. इस बार न तो वो पीछे हटी और न मुझे मना किया, बस सिसकारते हुए 'आओउच...' कहा।

मेरे लंड में जैसे करंट सा दौड़ गया और लौड़ा उसके बदन के पहले स्पर्श से ही जैसे पागल हो उठा. मैं मुस्कराता हुआ ऑफिस की ओर बढ़ने लगा तो वो मुझे टुकुर टुकुर देखने लगी. आज तो जैसे वासना ज्वार बन कर मुझे बार बार रोज़ी की ओर धकेल रही थी.

ऑफिस में घुसने का मन ही नहीं किया और मेरे कदम वहीं ठिठक गए. मैं चार कदम पीछे हुआ और फिर से उसकी चूची मसली और उसकी चूत पर हाथ फेर दिया। वो कुछ नहीं बोली तो मेरा हौसला सातवें आसमान पर पहुंच गया.

मैंने फिर हाथ अंदर कर उसकी चूत को लेगीज के ऊपर से दबाया और उसे पकड़ने की कोशिश की. मैं बस एक बार उसकी चूत की फीलिंग अपने हाथ में लेना चाह रहा था किसी भी तरह. एक कुंवारी लड़की की चूत को छूकर पकड़ने का मजा ही कुछ और था दोस्तो।

तभी मेरे ऑफिस से किसी के बाहर निकलने की आहट हुई तो मैं जल्दी से ऑफिस की तरफ भागा और वो अपने रूम में घुस गई।

उस दिन के बाद ये मेरा रोज का काम हो गया. मैं बस बेसब्री से उसके बाहर निकलने का इंतजार करता रहता था. वो भी मौका पाकर बाहर आ जाती थी और मैं उसकी चूचियों और चूत को हाथ से छूने का मजा लेता था.

उसको भी इस सब में मजा आ रहा था. मैं उसके चूचों मसलता और उसकी चूत को रगड़ता. समस्या ये थी कि स्कूल से लौटने के बाद सभी बच्चे अपने घर में चले जाते थे और मेन गेट में अंदर से ताला बंद कर लेते थे।

मैंने कई बार रोज़ी से ताला खोलने को कहा, मगर उसने हर बार भाई बहन के होने की बात कही। मैं खाली बाहर से उसके स्तन और चूत को छूता था. कभी कभी उसकी सलवार में हाथ डाल कर उसकी मुलायम बालों वाली भीगी चूत को छूता था।

ऐसे ही करीब साल भर तक तक चलता रहा। अब उसने कॉलेज के प्रथम वर्ष में भी फर्स्ट डिवीजन हासिल किया तो फिर उसके पिता ने ऑफिस के सभी स्टाफ को निमंत्रण दिया। काफी कम लोगों को निमंत्रण दिया गया था।

इस बार मैं रोज़ी के लिए गिफ्ट में कोई कीमती सामान देने की जगह बस 150 रूपये का डेरीमिल्क चॉकलेट पैक लेकर गया और इस मौके की तलाश में रहा कि वो कब अंधेरी जगह पर अकेली मिले। वो भी शायद इसी प्रयास में थी कि कुछ पल के लिए वो मेरे साथ अकेली हो जाये।

कुछ देर के बाद जब खाना टेबल पर लगने लगा तो मैं पेशाब करने के लिए नीचे जाने लगा. ये देखकर रोज़ी भी कुछ सामान लेने नीचे उतरने लगी. मैंने सीढ़ी पर उसे पकड़ लिया और जोर से किस कर दी और उसके चूचे मसल दिए.

वो कसमसाकर मुझ से अलग हुई और बोली- कोई देख लेगा!

फिर वो जल्दी-जल्दी नीचे उतर गई।

नीचे उसकी मां खड़ी थी. उसके हाथ में कुछ सामान था तो उसने वो रोज़ी की तरफ बढ़ाते हुए कहा- इसे जल्दी लेकर जाओ.

उसने बिना कुछ बोले अपनी मां के हाथ से सामान लिया और तेज़ तेज़ चढ़कर ऊपर चली गई।

मुझे देखते ही उसकी मम्मी ने पूछा- भैया जी, कुछ चाहिए क्या?

मैं बोला- नहीं, बाथरूम किधर है?

रोज़ी की मां ने सामने इशारा किया और खुद किचन में चली गई।

मैं बाथरूम गया और अपने तने हुए लंड को पैंट की बेल्ट के नीचे से आजाद किया. लौड़ा तन कर फटने को हो रहा था. पेशाब का तो बहाना था.

मैं बाथरूम में मुठ मारने के लिए आया था. माहौल इतना गर्म हो गया था कि बिना वीर्य निकाले लंड बैठ ही नहीं पाता. फिर मैं तेजी से अपने लंड को हाथ में लेकर हिलाने लगा. रोज़ी के साथ सीढ़ियों पर हुई घटना को याद करके मुठ मारने लगा.

दो-तीन मिनट में ही लौड़े ने जोर की पिचकारी बाथरूम की दीवार पर दे मारी. वीर्य शरीर में लगते झटकों के साथ नीचे फर्श पर गिरने लगा और तब जाकर मेरी वासना कुछ देर के लिए ठंडी हुई. मैं माथे पर आया पसीना पोंछ कर हाथ- मुंह धोकर बाहर आया तो सामने रोज़ी खड़ी हुई थी.

उसकी पीठ मेरी तरफ थी. उसकी मम्मी भी दूसरी तरफ कुछ कर रही थी.

आहट होने पर रोज़ी मेरी तरफ मुड़ी और बोली- अंकल आपको सब ऊपर खोज रहे हैं, जल्दी जाइये।

तभी उसकी मम्मी ने रोज़ी को एक बड़ी प्लेट में पुलाव देते हुए कहा- अंकल के साथ तुम भी जल्दी इसे लेकर ऊपर जाओ।

उसने मां के हाथ से प्लेट ली और सीढ़ी की तरफ बढ़ने लगी. मैं उसके आगे आगे सीढ़ी चढ़ने लगा. सीढ़ी पर जैसे ही पहला मोड़ आया तो मैंने पीछे मुड़कर उसकी मम्मी को देखा, वो किचन में जा चुकी थी.

ऊपर देखा तो उधर भी कोई नहीं था. मौका देखते ही मैंने रोज़ी की चूची दबाई और उसे किस किया.

वो फुसफुसाकर बोली- छोड़िए न, ऊपर चलिए। मैंने उसकी गांड को एक हाथ से भींच दिया और फिर वो ऊपर जाने लगी.

हम दोनों आगे पीछे ऊपर पहुंचे। सबने खाना खाया और अपने अपने घरों को चले गए। मैं भी उदास मन लिए लौट आया अपने घर। मेरा मन था कि उनके घर में मिले इस मौके का कुछ तो फायदा मिलेगा. ज्यादा नहीं तो कम से कम उसकी ब्रा में हाथ डाल कर उसकी चूची की फील ले लूंगा.

मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमें मौका ही नहीं मिल पाया. पार्टी के दूसरे दिन जब मैं ऑफिस पहुंचा तो देखा रोज़ी नाइट सूट में अपने गेट पर खड़ी थी. उसने मुझे देखा और हम दोनों की नजरें मिलीं.

उस वक्त मगर मेरे साथ ऑफिस के दूसरे स्टाफ भी थे तो हमने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया.

हमारे सीनियर ने रोज़ी से पूछ लिया- आज कॉलेज नहीं गई?

उसने बताया- मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, इसलिए मैं और मम्मी घर पर हैं।

मेरा मूड ऑफ हो गया था ये सुनकर कि उसकी मम्मी आज घर पर है। फिर हम लोग ऑफिस में अंदर चले गये.

फिर दोपहर के समय उसके गेट खुलने की आवाज सुनाई दी, मगर मैं ये सोच कर नहीं उठा कि उसकी मम्मी है, जाने का कोई फायदा नहीं होगा। तभी रोज़ी की आवाज सुनाई दी- मम्मी अब कब आओगी?

मम्मी का जवाब मिला- रात में, तुम अंदर से ताला लगा कर आराम कर लो, देर रात तक काम कर रही थी.

रोज़ी बोली- जी मम्मी।

फिर जाती हुई सैंडल की आवाज सुनाई दी। मेरे मन में तो जैसे लड्डू फूटने लगे. धड़कनें तेज़ हो गईं, मैं दस मिनट तक बस खुद को शांत करता रहा. जब कुछ नार्मल हुआ तो चाय पीने के बहाने बाहर निकल गया।

ये बता दूं कि मेरे ऑफिस और रोज़ी के घर का गेट एक गली में है. सामने ऊंची दीवार है और ऑफिस से निकलने के बाद अंदर से बाहर सीधा नहीं देखा जा सकता है। मैं बाहर निकला तो सामने गेट खुला था और रोज़ी बालों में कंघी करती नज़र आई.

मुझे देख कर उसने स्माइल दिया और इशारे में पूछा- किधर जा रहे हैं?

मैं धीरे से उसके गेट के सामने पहुंचा और हल्की आवाज में पूछा- अकेली हो?

उसने गर्दन हां में हिलाया तो मैं दाएं बाएं देख जल्दी से उसके घर मे घुस गया.

हड़बड़ा कर मैं सीधा बेडरूम में चला गया. रोज़ी अंदर आने की बजाय बेडरूम के गेट पर खड़ी होकर तेज़ी में फुसफुसाते हुए बोली- अंकल बाहर निकलिए!! कोई देख लेगा!

मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया। वो बुरी तरह डर गई और मुझसे भाग कर दीवार से जा सटी और रिक्वेस्ट भरी आवाज में बोली- अंकल प्लीज़, प्लीज़ अंकल, जाइये न।

मैं बेड पर बैठ गया और समझाते हुए बोला- आ जाओ जल्दी, कोई नहीं आने वाला. मैं बस किस करके चला जाऊंगा.

वो डरती डरती मेरी तरफ बढ़ी मगर रुक गई.

फिर बोली- पहले मेन गेट बंद करने दीजिए.

फिर वो बाहर चली गई।

दो मिनट के बाद वो गेट बंद करके लौटी तो मैंने उसे कस कर पकड़ लिया और उसे किस करने लगा. दो पल बाद उसने कसमसाकर मुझे पीछे धकेला और बोली- अब हो गया, अब जाइये।

मगर मुझ पर तो जैसे वासना का भूत सवार था. उसे फिर से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और किस करते हुए एक हाथ से उसकी छाती और एक हाथ से उसकी चूत सहलाने लगा। कुछ ही देर में उसकी सांसें तेज़ चलने लगीं और उसका विरोध काफी कम हो गया।

मैंने महसूस किया कि अब उसे भी मज़ा आ रहा था. मगर जैसे ही मैंने अपने होंठ उसके होंठ से हटाए वो फिर बोलने लगी- अंकल प्लीज़ छोड़िए न ... कोई आ जाएगा।

मैंने जोर से उसे पकड़ कर खुद से सटा लिया और बोला- तुमने तो गेट बंद कर दिया है न?

उसने गर्दन हां में हिलाई तो मैंने कहा- ताला लगा लो, वो न न करने लगी तो मैं खुद उठा और पर्दे के पीछे से बाहर झांका. बाहर कोई नहीं था। मैंने झट से गेट में ताला लगा दिया. वापस आया तो वो दोनों हाथ अपनी जांघों के बीच मे फंसाए सिर झुकाकर बैठी थी।

मैं उसके करीब गया तो वो गिड़गिड़ाने लगी- छोड़ दीजिए न अंकल, ये गलत है।

मैंने उसे समझाया- देखो तुम्हें इस बात का डर है न कि सेक्स करने से तुम्हारी वर्जिनिटी खत्म हो जाएगी? मगर तुम बेफिक्र रहो, मैं आगे से नहीं करूंगा, सिर्फ सहला कर और रगड़ कर सिर्फ तुम्हें मजा दूंगा। फिर अगर तुम्हें इतना ही डर है तो मैं पीछे से कर लूंगा. पीछे करने में कोई हर्ज नहीं है. इससे वर्जिनिटी पर भी कोई असर नहीं होगा. थोड़ा सा लेकर देखो, अगर अच्छा नहीं लगेगा तो कहना, मैं नहीं करूंगा।

वो कुछ नहीं बोली तो मैंने उसे पकड़कर खड़ा किया और उसे किस करने लगा. उसके गालों पर किस किया, उसके होठों पर किस किया, उसकी गर्दन पर चूमा।

थोड़ी ही देर में उस पर भी हवस चढ़ गई और वो मेरा साथ देने लगी.

मैंने अपनी जीन्स का जिप खोल दिया दिया और उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. जैसे ही उसका हाथ मेरे लंड से टच हुआ उसने तेज़ी से हाथ खींच लिया वापस। मैंने फिर से उसका हाथ खींच कर लंड पर रखा.

इस बार उसने मेरे लंड से हाथ को वापस तो नहीं खींचा लेकिन लंड को हाथ में पकड़ा भी नहीं.

मैंने कान में फुसफुसाया- एक बार पकड़ो ना प्लीज!

उसने मेरी रिक्वेस्ट का कोई रेस्पोन्स नहीं दिया.

फिर मैंने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी खोल कर लंड उसके हाथ में दे दिया. वो बस उसे पकड़े खड़ी रही। फिर मैंने उसके ट्राउज़र में हाथ घुसाया और सीधा उसकी चूत को पकड़ लिया. वो जोर से कसमसाई मगर मेरी मजबूत पकड़ के कारण वो हिल नहीं सकी.

मेरा लंड छोड़ कर वो मेरे हाथ को ट्रॉऊजर से बाहर खींचने लगी। मगर मैं मजबूती से उसे पकड़े रहा. उसकी चूत पर बहुत ही मुलायम बाल थे. सिर्फ ऊपरी भाग में थोड़े से थे. बाल कम जरूर थे मगर काफी लंबे थे.

शायद उसने अभी तक बालों पर कैंची नहीं लगायी थी. उसकी चूत बिल्कुल अनछुई थी. उसकी चूत अब गीली हो चुकी थी. मैंने उसके ट्राउजर को पैंटी सहित नीचे खींच दिया तो वो शर्म से लाल हो गयी.

देसी चूत के दर्शन भी नहीं हुए थे कि उसने झुक कर तेजी से अपना ट्राउजर फिर से ऊपर खींच लिया. तभी मेरे ऑफिस के गेट की आवाज हुई. मेरी सांसें अटक गयीं. शायद कोई ऑफिस से बाहर की ओर आ रहा था. रोज़ी ने भी मेरी ओर गुस्से से देखा. मगर मैंने उसको चुप रहने का इशारा किया.

हम कुछ देर ऐसे ही चुपचाप खड़े रहे. जब कदमों की टॉप हम से दूर जाती हुई सुनाई दी, तब हम दोनों ने राहत की सांस ली।

वो गुस्से में फुसफुसाई- मैंने कहा था न चले जाइये, कोई आ जाएगा, मगर आप अपनी जिद पर अड़े रहे. अभी तो बाल बाल बच गए। अब जाइये यहां से।

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