पेंटर ने मेरी चूत को रंग दिया

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हमने अपना बंगलो पेंट करने का फैसला लिया. पेंटर जब घर देखने...
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मेरा नाम नीतू पाटिल है, उम्र 24, हाइट 5'4″ साइज 32-28-36 है, मेरा रंग गोरा है और दिखने में बहुत सुन्दर हूँ, मैं हमेशा ट्रेंडी और अट्ट्रक्टिव रहती हूँ.

मेरे पति नितिन पाटिल 32 साल के मुझसे 8 साल बड़े हैं, मेरे जितनी हाइट है और दिखने में गोरे और हैंडसम हैं, उनका खुद का बिज़नेस है, हमारी शादी को 2 साल हुए हैं।

हमने अपना बंगलो पेंट करने का फैसला लिया और हमारे 4bhk बंगलो को रंगने का काम एक पेंटर को दिया, वो पेंटर कॉन्ट्रैक्ट लेता था और जरूरत के अनुसार दो तीन पेंटर भेज देता था, उसके और जगह पे भी काम चालू थे.

सबसे पहले वो पेंटर घर देखने और रेट फिक्स करने आया तभी मुझे उसकी नज़र ठीक नहीं लगी, वो सुबह सुबह घर पर आया तब मैंने 3 पीस लाल रंग की नाईटी पहनी हुई थी, मेरे पति नाशता कर रहे थे तो मैंने दरवाजा खोला तो सामने 6 फुट का एक सांवला सा मस्क्युलर आदमी खड़ा था, उसकी नजर मेरे स्तनों पर टिकी थी.

उसने मुझे मुस्कुरा कर 'हेल्लो' बोला पर मेरे स्तनों से नजर नहीं हटाई.

'हेल्लो' मैंने सोचते हुए जवाब दिया.

'मैं मोहन लाल पेंटर...' वो मेरे सारे बदन को देखते हुए बोला.

'आओ अंदर आओ!' मैं दरवाजे से बाजु होकर बोली और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

'बैठो...' मैं सोफे की तरफ इशारा करके किचन की तरफ जाने लगी तो वो मेरे गोल नितम्बों की तरफ देखने लगा.

'सुनते हो... पेंटर आया है!' मैंने अपने पति से कहा.

मेरे पति बाहर आये, नार्मल बातचीत हुई फिर पेंटर घर देखने लगा, ग्राउंड फ्लोर पे दो बैडरूम किचन और हॉल था और ऊपर के फ्लोर पर दो बैडरूम थे, हमारा मास्टर बैडरूम ऊपर के फ्लोर पर था और सास-ससुर अगर गांव से आये तो उनके लिए नीचे का बैडरूम था. मेजरमेंट टेप लेकर मैं, नितिन और पेंटर हर रूम में जाने लगे.

ऊपर के फ्लोर पे जाने के बाद पहले दूसरा बैडरूम देखा, फिर हमारे बैडरूम में जाने लगे।

तभी मेरे पति का मोबाइल किचन में बजने लगा, उसको लेने के लिए वो नीचे चले गए.

'बिज़नस डील होगी तो फोन पे कितना टाइम लगेगा, उसका भरोसा नहीं, मैं दिखाती हूँ बैडरूम!' मैंने पीछे से उसे कहा तो वो पीछे देखने लगा और एक फुट के दूरी से आँखों से मेरा नाप लेने लगा.

इतनी देर पति साथ में थे तो उसने मुझ पे जरा भी ध्यान नहीं दिया था।

'चलेगा मेम साब...' बोल कर उसने मुझे दरवाजा खोलने के लिए जगह दी, मैं दरवाजा खोलने के लिए आगे गई तो मेरे हाथ को उसका टच हुआ, वो टच गलती से हुआ या जानबूझ कर किया ये मुझे पता नहीं चला, मैं दरवाजा खोल कर जल्दी से अंदर आ गई, वो मेरे पीछे अंदर आ गया, उसकी नजर अब भी मेरे नितम्बों पर ही थी.

'आपने बैडरूम तो बहुत अच्छे से सजाया है मेमसाब!' वो हमारे किंग साइज बेड की तरफ देखते हुए बोला.

तभी मेरी नजर बेड के करीब के टेबल लैंप पे गई और मुझे शॉक ही लगा, आज सुबह सुबह लगभग एक घंटे पहले ही मैंने और मेरे पति ने सेक्स किया था, सेक्स के दौरान प्रोटेक्शन के लिए कंडोम्स हम दो साल से इस्तमाल कर रहे हैं.

'ओ गॉड...' सुबह सेक्स में इस्तमाल किया हुआ कंडोम मेरे पति ने टेबल लैंप के बाजु में ही रखा था.

पेंटर लैंप के नजदीक खड़ा था और मैं बेड के दूसरी तरफ खड़ी थी, मेरी टेंशन शायद उसको समझ आई थी, मेरी नजर कहाँ पे है उसने देखा, तो उसकी नजर इस्तमाल किये हुए कंडोम पर गई, उस हरामी ने कंडोम को उंगली से पकड़ के उठाया और हवा में लहराया, पेंटर कुछ बड़बड़ाया.

मुझे बस इतना ही सुनाई दिया- कितना छोटा है!

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'क्या बोला तू? ला वो इधर!' मैंने हाथ आगे किया.

'आपको इससे बड़ा मांगता है?' उसने मेरे हाथ में कंडोम रखते हुए बोला.

'शट अप!' मैंने गुस्से से उसे बोला, तभी पैरों की आवाज सुनाई दी, मेरे पति ऊपर आ रहे थे, मैंने कंडोम अपने मुट्ठी में छुपा लिया.

'सच में मेमसाब!' वो फिर भी बोला.

'चुप रहो!' मैंने गुस्से से कहा.

'गिनना हो गया?' मेरे पति ने बैडरूम में आते हुए कहा.

'पेंटर कहता है बहुत छोटा है!' मैंने पेंटर पर बम गिरा दिया, उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया।

'मतलब?' पेंटर ने डरते हुए पूछा.

'अच्छा?' पति ने कंफ्यूज होकर पूछा- आमतौर पर पेंटर 'काम बहुत बड़ा है' बोलते हैं, ये कैसे 'काम छोटा है' बोल रहा है?

'हाँ, अभी मुझे बोला छोटा है, तो पेंटिंग का खर्च भी कम आएगा.' मैं उसकी टांग खींचते हुए बोली.

'क्या मेम साब, बहुत बड़ा है आपका, बहुत काम करना पड़ेगा!' उसने मेरी चुची को देख के बोला, काम के बहाने वो मेरे स्तनों के बारे में बोल रहा था.

वो नीचे चले गए, मैंने हाथ में छुपाया हुआ कंडोम डस्ट बिन में फेंक दिया और नीचे चली आई.

सब घर गिन के काम की कीमत फिक्स की, वह कल से काम चालू करने का बोल के घर चला गया, मेरे पति तैयार होकर कंपनी में चले गए.

कचरा फेंकने के लिए मैंने डस्ट बिन उठाई, मुझे उसमे कंडोम दिखा तब मुझे पेंटर की याद आई, मैंने कंडोम उठा कर हाथ में लिया, जैसे उस पेंटर ने हवा में पकड़ा था, वैसे ही मैंने भी पकड़ा, मैंने कंडोम के साइज का अंदाजा लिया, पेंटर ने साइज के बारे में जो बात कही थी वो मेरे पति के लिंग के लिए थी, उसके हिसाब से उनका लिंग आकार में छोटा था, पर मुझे ऐसा नहीं लगा, मैंने कंडोम के साइज का अंदाज लगाया, लगभग 5 इंच का था, मुझे मेरे पति ने कई बार सुख दिया था, पर मुझे कभी भी उसके साइज में कोई कमी नहीं लगी।

मुझे उस पेंटर पे बहुत गुस्सा आया और कैसे मैंने उसकी विकेट ली यह सोच कर मुझे बहुत हंसी भी आई, मेरे पति का लिंग नार्मल साइज का था, फिर भी वो पेंटर ऐसा क्यों बोला, शायद उसका लिंग...

मैं सोच बदल कर काम मैं लग गई.

दूसरे दिन मोहन पेंटर दो और पेंटर को लेकर आया, खाली किये हुए रूम मैं उन्हें काम पे लगा दिया, मैंने तीनों को चाय दी.

थोड़ी देर में मेरे पति ऑफिस चले गए, मोहन उन दोनों पेंटर के काम पे ध्यान दे रहा था.

मैं बैडरूम मैं जाने लगी तो वो भी मेरे पीछे पीछे आ गया- मेमसाब मुझे ऊपर के रूम का नाप लेकर कलर मंगवाना है, कल नाप नहीं लिया था ना!

वो मेरे पीछे पीछे चलते हुए बोला.

'बाद में नाप ले लेना, मुझे अभी नहाना है.' मैं उसे बोल कर ऊपर जाने लगी.

'कसम से क्या गांड है!' मोहन जान बूझ के 'मुझे सुनाई दे' इतनी ऊंची आवाज में बोला.

'क्या बोला?' मैंने आवाज ऊंची करके उसे पूछा.

'मैंने कहाँ कुछ बोला?' उसने ऐसे कहा जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

मैंने उसे मना किया था आने के लिए... फिर भी वो मेरे चूतड़ों पे नजर गड़ाये हुए मेरे पीछे पीछे बैडरूम तक आ गया.

'शर्म नहीं आती क्या? मैंने मना किया ना... जाओ नीचे!' मैंने चिल्ला के उसे बोला.

पर वो बड़ा बेशर्म था- क्यों गुस्सा होती हो मेमसाब, आप जाओ बाथरूम मैं, मैं बेडरूम मैं मेरा काम कर लेता हूँ!

'पर मेरे कपड़े यहाँ बैडरूम मैं हैं' मैंने कहा.

'क्या आप बिना कपड़ों के बाहर आती हो क्या?' उसने मुझसे कहा.

'मैं तुमको क्यों बताऊ कि मैं कहाँ क्या करती हूँ, ज्यादा होशियारी की तो में साहब से बोल दूंगी' मैंने उसे कहा,

'गुस्सा क्यों होती हो मेमसाब, मैं बाहर रुकता हूँ.' उसने मुझसे कहा.

'बाहर नहीं, नीचे जाओ!'

मेरे कहते ही वो नीचे चला गया और उसने कहा- तुझको मेरे नीचे लेता हूँ.

मैंने सुन लिया.

मैं दरवाजा लॉक करके बाथरूम में गई, उसके शब्द याद आये और मैं उत्तेजित हो गई, फिर मुझे उसका डर लगने लगा.

मैंने नहा कर साड़ी पहनी और नीचे आ गई.

दो तीन दिन काम बहुत तेजी से होता रहा, मोहन आकर काम देख जाता था, पर मुझसे काम ही बात होती थी, मेरी डांट की वजह से वो सीधा हो गया था, पर उसकी नजर अब भी मेरे बदन पर होती थी.

दो तीन दिन बाद उसके दोनों आदमी नहीं आये, मैंने फ़ोन करके मेरे पति को यह बात बता दी.

मेरे पति ने मोहन को फ़ोन किया तो उसने बताया- वो दोनों आज काम पे नहीं आएँगे.

लेकिन काम न रुकने का वादा भी किया।

एक घंटे बाद मोहन आया, उसकी नजर हमेशा की तरह मेरे स्तनों पर ही थी। ये मेरे लिए कुछ नया नहीं था.

'मेमसाब आज लोग काम पर नहीं आएंगे!' उसने कहा.

'तो फिर काम कैसे पूरा होगा?' मैंने उसे बीच में टोकते हुए पूछा.

'आप बहुत टेंशन लेती हो मेमसाब, मैं आपका काम रुकने नहीं दूंगा.'

नीचे के रूम की घिसाई हो गई थी, पर ऊपर के रूम का कुछ भी नहीं हुआ था.

नीचे के बैडरूम में मोहन गया और काम शुरु कर दिया, मैं भी उसके पीछे पीछे गई, उसने कलर का डिब्बा खोला.

'यह तो सफ़ेद कलर है!' मैंने चौंकते हुए कहा.

'मेमसाब, यह कलर नहीं है, यह प्राइमर है कलर से पहले लगाना पड़ता है.' उसने इधर उधर देखते हुए कहा.

'मेमसाब, वो कैरी बैग देना!'

मेरे पैरों में एक कैरी बैग पड़ी थी, मैंने उसे वो उठा के दी, वो बेडरूम के दरवाजे के पास खड़ा था, बीच में एक सीढ़ी थी और मैं बेड के पास खड़ी थी.

एकाएक वो अपने शर्ट के बटन खोलने लगा, उसने अंदर बनियान नहीं पहनी थी, उसकी सांवली त्वचा चमक रही थी, उसका पूरा शरीर कसरती था.

शर्ट उतारने के बाद वो शर्ट को टांगने के लिए जगह ढूंढने लगा, हेंगर मेरे तरफ के दिवार पे था, वो मेरे एकदम पास में आके खड़ा हुआ, अब हम दोनों बेड और सीढ़ी के बीच में खड़े थे, एक तो वो छह फुट लंबा और तगड़ा था उस पर उसने शर्ट निकाली हुई थी और ऐसा आदमी मेरे पास खड़ा था तो मुझे अजीब फील हो रहा था, क्या करूँ यह सोच कर मैं वहीं खड़ी रही क्योंकि बाहर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था.

उसने पैंट की चैन खोली और झट से पैंट उतार दी, तो मेरी नजर उसके अंडरवियर पे गई, उसने ग्रीन कलर की फ्रेंची पहनी हुई थी और उसका वो वाला हिस्सा बहुत फूल गया था, अब मैं एक छोटी सी फ्रेंची पहने हुए आदमी के बहुत पास खड़ी थी।

'आपको यकीन नहीं होता ना साहब की साइज छोटा है... मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि उससे काफी बड़ा भी होता है.' वो अपनी फ्रेंची के फूले हुए हिस्से पे हाथ घुमाते हुए बोला।

मेरी नजर फिर उसके उस वाले हिस्से पे गई, यह बात उसने भी देख ली.

'चलो मेमसाब आप को दिखा ही देता हूँ!' ऐसे कह कर उसने अपना हाथ फ्रेंची के अंदर डाला.

'नहीं, कोई जरुरत नहीं, जाने दो मुझे!' मैं उसे मना कर रही थी पर 'उसका लिंग कैसा होगा' इसके बारे में सोच भी रही थी.

'अरे मैडम, आपको कुछ करने वाला थोड़ी हूँ, आप देख लो असली लौड़ा कैसा होता है.' वो अपने फ्रेंची के अंदर हाथ हिलाने लगा.

'ईई... कितना गन्दा बोलते हो, कोई जरूरत नहीं!' पर मैं उसके हिलते हुए हाथ की ओर देख रही थी.

'मेमसाब लंड को लंड नहीं कहेगे तो क्या कहेंगे?' वो बेशर्मी से बोला.

मेरी नजर वहीं थी, यह देख कर उसने अपना लिंग फ्रेंची से बाहर निकाल लिया.

'ये क्या है?' मेरा मुंह खुला का खुला ही रह गया, बहुत मोटा और काला लिंग था उसका, अभी नॉर्मल था फिर भी 5 इंच का था, पूरा खड़ा हो गया तो कितना मोटा होगा मैं सोचने लगी.

'इसे कहते हैं लौड़ा, आपको कैसा लगा मैडम?' उसने बेशर्मी से पूछा और मेरा खुला मुंह देख के बोला- मेमसाब, आपको तो सदमा लगा है!

'नहीं वो... मतलब!' मैं क्या बोल रही थी मुझे ही पता नहीं था, मेरी नजर उसके लिंग से हटकर उसकी नजर से जा मिली.

'देख के क्या होगा मेमसाब, इसको हाथ में ले के देखो!' उसने हंस के बोला.

'नहीं प्लीज!' मैं उसको रिक्वेस्ट करने लगी.

'अरे मेमसाब, आप पकड़ के तो देखो, ऐसा लंड आपने थोड़े ही पहले पकड़ा होगा? और मैं थोड़े ही आपको कुछ करूँगा!'

मैंने 'ना' में सर हिलाया तो वो जोर से हँसने लगा.

मैं बाहर जाने के लिए एक कदम आगे बढ़ी लेकिन उसके आगे मैं नहीं जा सकी क्योंकि वो वहीं खड़ा था और उसने आगे आकर मेरा रास्ता रोक लिया.

'जाने दो मुझे!'

यह सुनते ही वो जोर से हँसा, उसको भी पता चल गया कि मेरा विरोध कम हो गया है।

'मेमसाब अपुन जबर्दस्ती नहीं करेगा... वैसे अपुन जानता है लौड़ा लेने का मन आपका भी है.' उसको मेरे मन की बात पता चल गई थी.

'डरो मत, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा!'

'मैं नजर नीची करके अपने दोनों हाथों से अपने साड़ी के पल्लू से खेल के टाइम निकाल रही थी, मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, मेरे मन में युद्ध चल रहा था, 'लिंग इतना बड़ा भी होता है, हाथ में लेने में क्या जाता है.'

'नहीं, लिंग देखा वो ही बड़ी बात हो गई... अगर इसने जबर्दस्ती की तो?'

'तो... तो मैं कुछ नहीं कर सकती, कितनी मस्क्युलर बॉडी है इसकी...'

'वैसे ही वो हाथ में लेने के लिए ही जोर दे रहा है, उसकी ख्वाइश पूरी हो जायेगी, मैं भी यहाँ से चली जाऊँगी और इतना बड़ा लिंग हाथ में लेने को मिलेगा.'

'और किसी को पता चला तो?'

'वो कह रहा है ना किसी को पता नहीं चलेगा!'

'कितना बड़ा लिंग है... बस हाथ में लूँगी, बाकी कुछ नहीं!'

'चलो मेमसाब जल्दी करो, अब तो ये लौड़ा भी रुकने को तैयार नहीं, देखो कैसे फूल गया है.'

मैंने लिंग पे नजर डाली वो अपने विराट रूप में आ गया था, मैंने पल्लू से खेलना रोक दिया और हाथों को नीचे छोड़ दिया, उसको मेरा इरादा पता चल गया और उसने मेरे हाथ की कलाई को पकड़ लिया, मैंने उसकी तरफ देखा और तुरंत नजर चुरा ली.

'अरे मेमसाब क्या शरमा रही हो!' उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपने हाथ से अपना लिंग हिलाया और फिर छोड़ दिया.

'ले ले जल्दी से, शरमा मत!' वो अब आप से तू पे आ गया था, वो अब उतावला हो गया था.

'मैंने हाथ आगे किया, मेरे कांपते हुए हाथों ने उसका लिंग मुट्टी में पकड़ लिया और फिर मुट्टी टाइट कर ली. मुझे लगा कि मैंने कोई गर्म लोहे का रॉड पकड़ा है... उसका लिंग इतना कड़क था और बहुत मोटा था, मेरे हाथ में नहीं बैठ रहा था, लंबे लंड पर मेरा एक हाथ काम पड़ने लगा, तो मैंने दूसरे हाथ की मदद ली, बायें हाथ से लिंग के जड़ को पकड़ा और दायें हाथ से आगे की ओर पकड़ कर मैं दोनों हाथ से उसका लिंग हिलाने लगी.

मैं उसके सामने खड़ी होकर दोनों हाथों से लिंग हिला रही थी इसलिए स्पीड बहुत कम थी.

मेरी तकलीफ उसके समझ में आ गई, एकाएक उसने मेरा हाथ छुड़ा लिया और मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया, मेरे दोनों हाथ पकड़ के उसने मुझे अपने पीछे से खींचा और मेरा हाथ उसके लिंग पर रखा, मैं उसको पीछे से पूरी चिपकी हुई थी, मेरे स्तन उसके पीठ में गड़ गए थे.

'मत करो प्लीज...' मैंने उसे कहा.

लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. 'बहुत बड़े मम्मे हैं तुम्हारे!' मेरे स्तनों को अपनी पीठ पे फील करते हुए उसने कहा.

'मत करो न... प्लीज!' मैंने उसे फिर से रिक्वेस्ट की और थोड़ी देर और उसके लिंग को मसला.

उसने मेरे दोनों हाथ छुड़ा लिए और अपना एक पैर सीढ़ी पे रखा और मुझे बोला- नीचे से हाथ में लो!

मैंने बैलेंस बनाने के लिए एक हाथ उसकी कमर पर रखा और अपना दायाँ हाथ उसके नीचे से सामने लेकर आई, पीछे से मुझे उसका लिंग नहीं दिखाई दे रहा था, मैं अंदाजे से उसके लिंग को पकड़ने की कोशिश करने लगी, मेरे हाथ में उनके अंडकोष आ गये, उसके अंडकोष बहुत बड़े थे, मैंने गलती से उनको जोर से दबाया तो पेंटर जोर से चिल्लाया- आह... माँ कसम क्या चुदासी रांड है! उम्म्ह... अहह... हय... याह...

वो ख़ुशी से बोला.

'नीचे बैठ के कर!' उसने मुझे हुक्म दिया.

मैं नीचे बैठ गई उसके नितम्ब अब मेरे सामने आ गये, उसका लिंग हिलाने के समय मेरा होठों का घर्षण उसके अंडकोष और नितम्ब के बीच की जगह में होने लगा, मैंने बैलेंस बनाने के लिए मेरा हाथ उसके नितम्बों पे रखा तो गलती से मेरा हाथ उसके नितम्ब के छेद को लगा.

'गांड मारना चाहती है क्या मेरी?' वो फिर से अश्लील भाषा में बोलने लगा, लेकिन मुझे वो सुनने में मजा आने लगा था, इतने बड़े सांड को मैंने चिल्लाने पे मजबूर किया था, अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी, मैं अपनी उंगली उसके नितम्ब के होल में गोल गोल घुमाने लगी तो वो सिसकारियाँ भरने लगा था 'उम्म्ह... अहह... हय... याह...'

उसने मेरा हाथ खींचा और मुझे अपनी दोनों टांगों के बीच में से खींच कर अपने सामने लेकर आ गया, उसने उसका लिंग अपने हाथ से पकड़ कर मेरे मुंह के सामने लेकर आया, मुझे उसका इरादा समझ में आ गया, मैंने उसका लिंग हाथ से पकड़ कर अपने मुंह में डाला, मेरे जीभ के हमले से वो फिर से सिसकारियाँ लेने लगा- क्या चूसती है साली... पक्की चुदासी रंडी है... तेरे पति से बड़ा है कि नहीं?

वो मुझे चिढ़ाने के लिए बोला, मैंने उसे कुछ नहीं बोला और चूसना चालू रखा.

'पति का चूसने से भी ज्यादा मजा आ रहा है कि नहीं?' उसने मेरे मुंह से लिंग बाहर निकाला.

क्या मस्त चूसती है तू, क्या बोलती है तू इसको?' वो अपना लिंग हिलाते हुए बोला.

'लिंग!' मैं शरमाते हुए बोली.

तो वो हंस पड़ा- लंड बोल इसको, बोल! क्या चूसती है तू?'

'लंड...' मैं जैसे तैसे बोली, पर मुझे बहुत उत्तेजक लगा.

'हां, ऐसे ही बोलने का, लंड को लंड बोलने में ही ज्यादा मजा आता है!' ऐसे बोल कर वो मेरे मुख में धक्के देने लगा, उसके विशाल लंड के धक्कों से मेरी सांस फूलने लगी, तो मैंने उसका लंड बाहर निकाल लिया, तो वो अपने लंड को मेरे गाल पर मारने लगा.

अचानक उसने अपने मर्दाने हाथों से मेरा दायाँ स्तन दबा दिया और बायें कंधे को पकड़ लिया.

'नहीं बहुत हो गया!' मैं उसके हाथों को मेरे स्तनों से हटाने लगी, पर उसने मजबूती से मेरा स्तन पकड़ रखा था.

'चल अब ज्यादा नाटक मत कर!' कहते हुए उसने मुझे खड़ा किया, मेरा पल्लू पकड़ के एक झटके में मेरी साड़ी को उतार दिया और पेटीकोट का नाड़ा खींचा तो पेटीकोट मेरे पैरों में गिर गया.

'क्या मक्ख़न बदन है साली का!' वो मेरे पेट, जांघ जो जो भाग खुला था उस पर हाथ फेरने लगा.

उसका हाथ घूम कर मेरे ब्लाउज पर आ गया और वो मेरे ब्लाउज के हुक्स को खोलने लगा, मैं मेरा हाथ उसकी छाती पर घुमाने लग गई.

उसने जल्दी से हुक्स खोल कर ब्लाउज को मेरे शरीर से अलग कर दिया, मैंने सफ़ेद ब्रा पहनी थी, उसने ब्रा के कप को नीचे करके मेरा एक स्तन बाहर निकाल लिया.

'माँ कसम... क्या मम्मे है साली के!' कह कर वो मेरे स्तन दबाने लगा.

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'ऐ गली मत दो न!' मैंने उसे रिक्वेस्ट की तो वो हंस कर बोला- मजा आता है... तुमको भी आ रहा है!

वो मेरे ब्रा के हुक्स खोलते हुए बोला, मैं उसका साथ दे रही थी.

उसने मेरी ब्रा उतार दी, अब मेरे शरीर पर सिर्फ पेंटी बची थी, वो अब पागलों की तरह मेरे स्तनों को दबाने और मसलने लगा, मैं बस आँख बंद करके मजा ले रही थी.

फिर उसने मुझे गले लगा लिया, मेरे गोरे शरीर पर उसके विशाल सांवले शरीर को सटा लिया, अपने हाथों को मेरे नितम्बों पर लाया, मेरी पेंटी को मेरे नितम्बों की दरार में घुसा दिया और मेरे नितम्बों को नंगा कर दिया, वो अपने हाथों को धीरे धीरे मेरे नितम्ब पर गोल गोल घुमाने लगा और फिर जोर से दबाने लगा, उसका मुँह मेरे गालों पे, गर्दन पे घूम रहा था, उसने अपना एक हाथ मेरे नितम्ब से हटाया और मेरे सर के पास लाया, फिर एक गाल पर चार उंगलियाँ और एक गाल पे अंगूठा रख कर मेरे सर को पकड़ कर मुझे जबर्दस्त किस करने लगा.

वो बहुत जंगली तरीके से सब कुछ कर रहा था, मैंने बचावात्मक तरीका अपनाया और मजा लेने लग गई.

सब कुछ वो ही कर रहा था.

मेरी पेंटी के इलास्टिक को पकड़ कर उसने मेरी पेंटी जांघों तक नीचे की, फिर अपने पैर के अंगूठे में पकड़ कर नीचे की, मैंने भी अपने पैर उठा कर उसकी मदद की.

मैं अब पूरी नंगी हो गई थी, मेरा एक पैर पकड़ कर उसने सीढ़ी के दूसरे स्टेप पे रखा, उससे मेरे पैर फ़ैल गए. उसने भी अपने पैर फैला लिए और अपने लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मेरी योनि के पास ले आया.

मैं उसे मना करने लगी पर वो अब सुनने के मूड में नहीं था- एक बार लेकर तो देखो, बार बार मांगोगी! वो बोला.

'नहीं... प्लीज नहीं!'

मैं उसे मना करने लगी 'नहीं... प्लीज नहीं!'

मैं ऊपर ऊपर से ना कह रही थी.

वो अपना एक हाथ मेरे योनि पे लाया, मेरी योनि ने बहुत पानी छोड़ दिया था, उसने उंगलियों से मेरी योनि को छेड़ा तो मेरा पानी उसकी उंगलियों पर लग गया.

'साली छिनाल, नौटंकी करती है, चूत ने देख कितना पानी छोड़ा है!' उसने अपनी उंगलियों को सूंघ लिया.

'वाह क्या खुशबू है तेरी चूत के रस की!' फिर उसने अपनी उंगलियों को चाट लिया- रंडी साली, तेरी चूत का स्वाद भी बहुत अच्छा है!

उसका गन्दा बोलना शुरू रखते हुए उसने अपना लंड मेरे योनि तक लाया, मुझे एक हाथ से जोर से पकड़ा, फिर अपना लंड मेरी योनि मुख पे रखा और मुझे कुछ समझ में आने से पहले एक जोर का धक्का दिया.

'आह! माँऽऽऽ' मैं जोर से चिल्लाई और अपने नाख़ून उसके कंधे में गड़ा दिए.

उसने मेरी तकलीफ पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और फिर एक बार जोर से धक्का देकर अपना लंड जोर से मेरी योनि के और अंदर डाल दिया.

'आऽऽऽह! हे भगवान! बहुत बड़ा है तुम्हारा!' मैं चिल्लाई.

'बहुत टाइट चूत है तेरी, मजा आ रहा है!' वो धक्कों पे धक्के लगाते जा रहा था.

'कुत्ते कितना बड़ा लंड है तेरा, उम्म्ह... अहह... हय... याह... मेरी योनि फट गई.'

'आऽऽह आऽऽह आऽऽह' उसके हर धक्के के साथ मैं सिसकारियाँ लेने लगी, मैं भी उसके रंग मैं रंगने लगी थी.

'योनि नहीं चूत बोल!' उसने स्पीड से धक्के देना चालू रखा.

'नालायक कितना बड़ा लंड है तेरा, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा, चूत फड़ेगा आज मेरी!' मैं चुदाई के नशे में कुछ भी बोल रही थी.

कुछ भी कहो 'बड़ा लंड चूत में लेने का मजा ही कुछ और है.'

उसका मजबूत शरीर, जंगली जैसा मेरे शरीर से खेलना, गन्दी बातें करना और सबसे ज्यादा अपने विशाल लंड से जोरदार और न रुकते हुए धक्के लगाना... इन सबसे आगे में कब तक टिकने वाली थी?

और मैं जोर से झड़ गई, मैं अब ठीक से खड़ी भी नहीं रह सकती थी, मेरी पूरी ताकत खत्म हो गई थी, मैंने अपना पूरा शरीर उसकी बांहों में छोड़ दिया.

'बस रुको अब... मैं झड़ गई!' मैं उसको बोली.

लेकिन वो तो हरामी निकला, मुझे बांहों में पकड़ के उसने मेरी चूत को फाड़ना चालू ही रखा, उल्टा उसका जोश और भी बढ़ गया, मैं उसकी बांहों में दब गई थी और उसका मेरी बुर को पेलना चालू ही था, मैं अब चिल्लाने लगी, झड़ने के बाद अब मुझे उसके धक्के सहन नहीं हो रहे थे- हरामखोर... झड़ गई हूँ फिर भी मेरी चूत को कूट रहा है... निकाल बाहर... प्लीज, प्लीज ना!' मैं उसे गाली भी दे रही थी और रिक्वेस्ट भी कर रही थी.

मैं पूरी थक गई थी, मुझे आराम चाहिये था, उसने उसका लौड़ा बाहर निकाला तो मुझे कुछ सुकून मिला, उसने मुझे मेरे दोनों हाथों से सीढ़ी को पकड़ने के लिए बोला.

'क्या कर रहा है ये? मुझे सीढ़ी क्यों पकड़ने के लिए बोल रहा है?' मैं मन ही मन सोच रही थी, और उसके कहे जैसे सीढ़ी पकड़ ली.

मेरे पीछे खड़ा रहकर उसने भी मेरे जैसे ही सीढ़ी पकड़ ली, उसका लंड मेरी गांड को चुभ रहा था, उसने एक हाथ से मेरा एक पैर पकड़ के हवा में उठा लिया, और पीछे से अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया.

'ओह गॉड! तो उसको पीछे से चोदना था इसलिए मुझे ऐसा खड़ा किया है!'

उसने पीछे से एक जोर का धक्का दिया, वैसे मैं दर्द से चिल्ला उठी- आऽऽऽह...

मैं अपना पूरा मुँह खोल कर चिल्लाई पर उस पर कोई असर नहीं हुआ.

'ऐसा चोदता है क्या तेरा पति?' उसने मुझसे पूछा.

'हरामखोर छोड़ मुझे!' मैं दर्द से बोली.

'अब गालियाँ दे... मजा आता है तेरे मुँह से गालियाँ सुनने में!' ऐसा कहकर वो मेरी कमर पकड़कर जोरदार धक्के लगाने लगा और मेरी गांड पे चपत लगाने लगा. एक हाथ से वो मेरे स्तन दबा रहा था, दूसरे हाथ से मेरी गांड पे चपत लगा रहा था और अपने विशाल लंड से मेरी चूत को कूट रहा था, ऐसे तीनों तरफ से चढ़ाई कर रहा था.

'भोसडी के जल्दी कर...' मैंने अपने पति से सुनी हुई गाली उसको दी.

'अच्छी गाली देती हो, पति ने सिखाई क्या?'

यह हिंदी चुदाई की सेक्सी कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

गाली के साथ मुझे मेरा पति भी याद आ गया और उसका खाने का टाइम भी याद आ गया, मैंने घबरा कर दीवार पर देखा पर वहाँ पर घड़ी ही नहीं थी, पेंट करने के लिए उतार कर रखी थी.

'मेरे पति का घर आने का टाइम हो गया है!' मैंने घबराते हुए उससे कहा.

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