Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereमैं दिल्ली में एक ऑफ़िस में काम करती हूँ। मेरे पति और मेरी, हम दोनों की महनत से घर ठीक से चल जाता था। मेरे पति एक कनिष्ठ वैज्ञानिक थे। वे हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते थे। मेरे पति की मेहनत आखिर रंग लाई, उनका पेपर आखिर पास हो गया और उन्हें उसके लिये तीन माह के लिये अमेरिका जाने के लिये आज्ञा मिल गई थी।
जाने से पहले उन्हें मेरी बहुत चिन्ता हो गई थी। दिल्ली जैसी जगह पर हादसे होने की खबर से वो चिन्तित थे। अन्त में उन्होंने यह फ़ैसला किया कि वे अपने छोटे भाई को इन तीन महीने के लिये बुला लेंगे।पर उनकी बात पापा ने ठुकरा दी। पापा ने उन्हें मना कर दिया, कारण था कि उसके फ़ाईनल समेस्टर की परीक्षा थी। फिर मैंने ही उन्हें एक उपाय बताया कि मेरे साथ ही ऑफ़िस में मेरे दो जान पहचान के हैं यदि वे यहाँ तीन महीने के लिये यहाँ रुक जाये तो मुझे आराम हो जायेगा। पहले तो उन्होंने शंकित दृष्टि से मुझे देखा फिर उन्होंने उनसे मिलना चाहा। पर उन्हें मेरे पत्निव्रता होने पर कोई शक नहीं था। जी हाँ, वैसे भी मैं अपने पति के अलावा किसी से चुदवाया भी नहीं था।
... मेरा मतलब है शादी के बाद... समझ रहे हैं ना आप... मैंने अपने दोनों कलीग रोहन और मोहित को मैंने पति से मिलवा दिया। उनके मासूम से चेहरे और भोला भाला सा व्यवहार उन्हें भा गया और उन्होंने तुरन्त हाँ कह दी।
मेरे पति दो तीन दिन तक तो उन दोनों से रोज मिलते, उनके साथ चाय पीते... और उन्हें टटोलते रहते... पर वो इतने सीधे साधे थे कि उन पर शक किया ही नहीं जा सकता था। फिर वो दिन भी आया कि वे शान्त मन से अमेरिका के लिये रवाना हो गये।
उनके जाते ही मुझे खाली खाली सा लगने लगा। मुझे समझ में आता था कि अब मैं क्या करूँ? उनकी तो आदत थी रोज शाम को शराब पीने की और मुझसे फिर वो छेड़छाड़ करते... कभी मेरी चूचियाँ दबाते तो कभी मुझे चूम लेते... कभी मेरी गाण्ड के गोले दबा देते तो कभी कभी मेरी गाण्ड में अपनी अंगुली डाल कर गुदगुदाते...
फिर खूब उत्तेजित हो कर मुझे चोद देते थे। मुझे भी इसमें बहुत आनन्द आता था।
चार-पाँच दिन गुजर गये... मैं बहुत बोर होती थी। रोहन और मोहित तो शाम को खाना खाकर अपने कमरा में गप्पें मारते और सो जाते थे। आज मैंने तो शराब की बोतल अलमारी से निकाल ही ली और डबल पेग व्हिस्की और सोडा निकाल कर बर्फ़ डाल दी। गर्मी के दिन थे तो मैं अपना गिलास लेकर तीसरी मंजिल की छत पर आ गई। एक किनारे पर कुर्सी डाल कर बैठ गई और धीरे धीरे शराब की चुस्कियाँ लेने लगी। सच मानो... अकेले में बिल्कुल मजा नहीं आ रहा था। आप ही बतायें, इस भरपूर जवानी में बिना लण्ड की पूजा किये आनन्द कैसे आता।
"हाय दीदी..."
मैंने नीच झांका... रोहन खड़ा था
"हाय... नीचे क्या कर रहे हो... यहीं ऊपर आ जाओ...!"
"जी... मोहित को आने दो..."
"अरे वो आ जायेगा... तुम तो आ जाओ..."
कुछ ही क्षण में रोहन छत पर था। तेजी से आया था सो उसकी सांस फ़ूली हुई थी। अंधेरा सा होने लगा था सो छत की लाईट जला दी थी। वो आकर मेरे समीप ही दीवार पर बैठ गया।
"दारू है क्या?"
"हूँ... लोगे क्या?"
"नेहा दीदी... आप दारू पीती हैं? अच्छा... कैसा लगता है...?"
"अरे पीनी हो तो बोलो..."
"वो मोहित पीता है..."
"तो जा... कमरे में से बोतल... सोडा और बर्फ़ ले आ... बैठना हो तो कुर्सी भी ले आना।"
रोहन बाहर के कमरे में पड़ी खाट उठा ले आया... फिर जाकर बोतल... सोडा... और बर्फ़ भी ले आया। इतनी देर में मोहित भी आ गया था।
दीदी... छत पर कितना अच्छा लग रहा है... आपकी आज्ञा हो तो हम रात को ऊपर ही सो जाये... वो चहकता हुआ सा बोला
अच्छा आईडिया है... रोहन... मेरा भी बिस्तर यहीं लगा देना। मोहित ये लो तुम्हारा ड्रिंक...
रोहन अपना और मेरा बिस्तर लगाने को नीचे चला गया। दोनों नई उमर के जवान लड़के... दुबले पतले से... सलीके वाले थे। मोहित ने सिगरेट निकाली और मुंह से लगा ली। सिगरेट जलाई और एक गहरा कश लिया।
(वैधानिक चेतावनी... सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।)
"मोहित कैसी लगती है सिगरेट?"
"दीदी, ट्राई करोगी?"
मैं उठी... और खाट पर मोहित के समीप ही बैठ गई। उसने अपनी सिगरेट मेरी तरफ़ बढ़ा दी और अपने ही हाथ से मेरे होंठों पर लगा दी।
"धीरे से... नेहा दीदी..."
मैंने धीरे से एक कश खींचा पर सावधानी के बावजूद भी गले में धुंआ लग गया। मुझे तेज खांसी उठी। मोहित ने जल्दी से मेरी पीठ को थपथपाया... थोड़ी सी पीठ को सहलाई... मुझे एक मीठी सी सिहरन हुई। मैंने जाने क्या सोच कर अपना मुख और झुका कर उसकी जांघों पर रख दिया। वो मेरी पीठ सहलाता रहा... मुझे महसूस हुआ कि जैसे मेरे पति मेरी पीठ सहला रहे हैं और कुछ ही देर में वो मेरी गाण्ड में अंगुली पिरो देंगे। मैंने उसकी दोनों जांघें थाम ली। उसके लण्ड की महक भी आ गई।
"बस... बस... हो गया दीदी... पहली बार ऐसा होता है..."
पर तब तक मेरी दृष्टि उसके लिये बदल चुकी थी। नशा असर करने लगा था। उसे भी नशा होने लगा था। मैंने अपनी नशीली नजरें उठा कर मोहित की ओर देखा... मैंने धीरे से उसके कंधे पर अपना सर रख दिया। तब तक रोहन आ चुका था। वो बहुत ध्यान से हमें देख रहा था। पर मुझे इससे क्या फ़रक पड़ता भला? मुझ पर तो अब धीरे धीरे वासना का भूत सवार होता जा रहा था। मैंने अपनी एक चूची मोहित की बाहों पर दबाई और एक आह भरी...
"दीदी... यह आपको क्या हो रहा है...?" शायद ऐसा करने से वो कुछ समझ चुका था।
"मोहित... बस सिगरेट का असर है...!"
मैंने अपनी मांसल चूची जोर से उसकी बांह से एक बार और रगड़ दी... और एक आह सी भरी। उसने मेरी चूची को धीरे से दबाते हुये अपनी बाहों से दूर कर दी।
तभी रोहन बोला- दीदी... आओ कुर्सी पर बैठ जाओ...
"अरे चुप रहो ना... मुझे तो मोहित की गोदी में बैठना है... कुछ कड़क सा मुझे भीतर चाहिये..."
मोहित धीरे से बोला- नेहा दीदी... बोलो क्या चाहिये...? लण्ड की बात कर रही हो क्या?
"इस्स... साले मोहित के बच्चे... लण्ड... सच देगा क्या... देखूँ तो कितना मोटा है?"
मोहित ने ताकत लगा कर मुझे उठाया और कुर्सी पर बैठा दिया।
"ऐ रोहन... जरा ये साड़ी तो उतार दे... देख कैसी फ़ंस रही है!!" मुझे कुछ तड़प सी महसूस हुई।
रोहन ने सब कुछ भांप लिया था। उसका लण्ड भी खड़ा होने लगा था। तभी मैंने जानकर के अपनी साड़ी को उतार दिया... और साथ में पेटीकोट भी ढीला कर दिया।
"अब साले रोहन तू क्या कर रहा है... चल उतार तो अपनी पैन्ट... और ये हरामी मोहित..."
"दीदी, उतार तो रहा हूँ..."
दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कराये... दोनों ने अपनी पैन्ट उतार दी। मुझे दोनों का तम्बू सा तना हुआ लण्ड चड्डी के ऊपर से ही नजर आ रहा था। मुझे नशे में सब कुछ मोहक सा लग रहा था।
"हम्म... रे... हंसो साले भड़वो... मुझे क्या रण्डी छिनाल समझ रखा है... अरे मैं तो पतिव्रता नारी हूँ, ये अपना लौड़ा मुझे क्या दिखा रहा है?"
"दीदी... वो तो जोर मारेगा ही ना... बताओ ना चुदना है क्या? मजा आयेगा!" मोहित धीरे से बोला।
"तू क्या समझता है कि आज तक मैं चुदी नहीं हूँ...? अरे ये चूत तो मेरी अब तक भोसड़ा बन चुकी है।" नशा मुझ पर वासना के साथ बहका रहा था।
"दीदी... एक बार अपनी मुनिया दिखाओ तो पता चले... लाओ एक पेग बना दूँ।" यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
"मुनिया क्या... ये भोसड़ा... देखोगे... फिर देखो, दोनों मुझे अपना अपना लौड़ा दिखाओगे ना?"
मुझे नशे में समझ कर दोनों मुझसे खेल कर कर रहे थे। पर मुझे भी इसमे बहुत बहुत आनन्द आ रहा था। मैंने दारू पीते हुये नाटक जारी रखा...
कितना आनन्द आ रहा था उन दोनों से इतनी अश्लील बातें करना... मैंने झटक कर अपनी टांगों में उलझा हुआ पेटीकोट जानबूझ कर नीचे गिरा दिया। बिना पैन्टी के मैं अब बिल्कुल नंगी थी। उफ़्फ़! कैसा मजा आ रहा था! दो जवान लड़कों के मध्य मैं नंगी बैठी हुई थी। मैंने आगे सरक कर अपनी चूत को फ़ैला दी और दोनों अंगुलियों से चूत को फ़ाड़ कर उन्हें दिखाई। जाने छत की मामूली सी रोशनी में उन्हें क्या दिखाई दिया होगा। पर मुझे बहुत जोर से झुरझुरी छूट गई। दोनों लपक कर पास आ गये...
"दीदी... एक बार फिर से प्लीज...!"
मैंने उन्हें खोल कर फिर से दिखा दिया। दोनों अपनी आँखें फ़ाड़ कर ध्यान से मेरी खुली हुई शेव की हुई चिकनी चूत को देख रहे थे। मोहित ने तो अपनी जीभ खोल कर मेरी चूत की ओर बढ़ा दी और लपक कर एक लम्बी सी चूत की चुस्की ले ली।
"ओह्ह्ह... माँ... मर गई मैं तो... साले हरामजादे... कहा ना! मैं पतिव्रता हूँ... खबरदार जो हाथ लगाया।"
"दीदी... कितनी रस से भरी है... चूसने दो ना...!"
"चल उधर खड़ा हो जा और अपना लौड़ा बाहर निकाल...!"
दोनों ने अपनी चड्डी उतार दी और उनके तने हुये लण्ड सीधे खड़े हुये थे। इतने सुन्दर कि मेरी तो नजरें ही नहीं हट रही थी उन पर से। मेरी चूत कड़कने लगी... फ़ड़फ़ड़ाने लगी... पानी उगलने लगी। हाय! पर क्या करती। मैं अपनी चूत खोले उस पर अपनी अंगुली सहलाने लगी।
उफ़्फ़्फ़... मोहित अपना लौड़ा रगड़ ना... आह रगड़ यार!
दीदी... यूँ तो ये झड़ जायेगा।
"तो क्या हुआ... देख मैं भी तो झड़ूँगी ना...... कर ना यार... कितने नखरे करता है यार..."
दोनों ने अपना लण्ड धीरे धीरे घिसना आरम्भ कर दिया। कितना कड़क लण्ड... कैसा घिस रहे थे... लाल सुपारा... उस पर एक सुन्दर सा छेद... मेरा मन कर रहा था कि उन्हें हाथ बढ़ा कर जोर से पकड़ लूँ और उन्हें रगड़ डालूँ। मेरी अंगुली मेरी चूत पर तेजी से चलने लगी।
"दीदी... बहुत हो गया... चोदने दो ना..."
"आह... चुप हो जा साले... बिना लौड़े के ही कैसा आनन्द आ रहा है..."
"नेहा दीदी... प्लीज मान जाओ ना... देखो तो ऐसे तो ये झड़ जायेगा..."
"अरे मुठ्ठ मार ना यार जोर से... और जोर से हाथ चला..."
"इस्स्स... हाय रे दीदी..."
फिर जोर से पिचकारी के रूप में उनका वीर्य झर झर करके उछल कर मेरे तक आने लगा। वो जान करके मेरे नजदीक आकर मेरे अंगों पर वीर्य छलकाने लगे। तभी मेरी भी रस की धारा छूट पड़ी। हम तीनों ही अपना अपना काम रस छोड़ रहे थे... मैं तो उत्तेजना और नशे के मारे निढाल सी होने लगी थी। मैं कुर्सी से उतर कर धीरे से नीचे बिस्तर पर लेट गई और गहरी निद्रा में डूब गई। सुबह जब नींद खुली तो मैं छत पर नहीं, अपने कक्ष में अपने बिस्तर में नंग धड़ंग सो रही थी। नीचे कारपेट पर मोहित और रोहन नंगे ही सो रहे थे।
मैं बहुत देर तक उन दोनों के नंगे बदन को निहारती रही। मेरे दिल में उनसे लिपटने की इच्छा होने लगी,"उफ़्फ़! चुदवा लूँ क्या? भीतर तक चोद डालेंगे मुझे!!! शान्ति तो मिल जायेगी... दो दो लौड़े मिल जायेंगे।"
"अरे नहीं! किसी दूसरे से... फिर मेरी पत्नीव्रता धर्म का क्या होगा? यदि वे मुझे ऊपर से ही रगड़ डाले तो...?"
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी... जाने कब मेरी मेरी एक अंगुली मेरी चूत में घुस गई। उन दोनों को नंगे देख कर मेरा मन भटकने लग गया था। खासे मोटे लण्ड थे... चुद लेती तो मस्ती आ जाती। मैं जोर जोर से अपनी चूत को घिसने लगी और फिर अपना ढेर सारा यौवन रस निकाल दिया।
मैंने एक गहरी सांस ली और स्नान करने चली गई। मैंने नाश्ता वगैरह बना लिया फिर दोनों को जगाया। वे भी अपनी नग्न दशा को देख कर शरमा गये। फिर स्नान आदि से निवृत हो कर नाश्ता करने बैठ गये। दस बजे हम तीनों ही ऑफ़िस चले आये। वहाँ पर भी मेरी नजरें बार बार रोहन या मोहित को ढूंढती रही। मेरे उरोज दबने के लिये कसकते रहे। मुझे बहुत खराब लग रहा था कि उन दोनों को रात को बेकार ही तड़पाया... चुदा भी लेती तो मेरा क्या बिगड़ जाता? मेरे मन की तड़प भी मिट जाती। अब देखो तो चूत कैसी लप लप कर रही है।
तभी मेरी सहेली मेघा आ गई, मुझे परेशान देख कर बोली- किस सोच में हो? अरे तीन महीने तो यूं ही कट जायेंगे देखना...
"अरे नहीं... आज तो तीन चार दिन ही हुए हैं... मेरी तो रात ही नहीं कटती है राम।"
"ऐसा कर... तेर कोई दोस्त हो तो बुला ले उसे... राते मस्त कटेंगी..."
"चल हट... पति के साथ बेवफ़ाई... ना बाबा ना..."
"कैसी बेवफ़ाई! चुदवाने से बेवफ़ाई हो गई... अच्छा इधर तो आ..."
उसने सावधानी से यहाँ-वहाँ देखा... मेरे केबिन की तरफ़ किसी की नजर नहीं थी। उसने झट से मेरी साड़ी के भीतर हाथ डाल दिया। मैं उछल सी पड़ी।
"अरे क्या कर रही है मेघा?"
उसने मेरी चूत में अंगुली घुसा कर बाहर निकाल ली, फिर अपनी गीली अंगुली दिखा कर बोली-नेहा जी... रस से भरी है आपकी चूत... इसे लौड़ा चाहिये... कड़क और लम्बा लण्ड...
फिर उसने बहुत चाव से उसे अपने मुख में डाल कर उसे चूस लिया।
"चल चल... ऐसा क्या बोलती है..."
'सच नेहा दी... अब ढूंढो लौड़ा... मेरा दोस्त चलेगा क्या। साले का सॉलिड लण्ड है!"
मेरा तो चेहरा लाल हो गया। मेघा तो सब समझ गई थी... मेरा दिल अब गुदगुदी से भर गया। मेरी आँखों के आगे अब तो मोहित और रोहन के लण्ड लहराने लगे थे। मैंने मुस्करा कर मेघा को देखा। उसने अपने हाथ की हथेली को लण्ड का आकार बना कर हिला कर मुझे एक अश्लील इशारा किया और मेरे केबिन से बाहर निकल गई।
अब तो मन में रोहन और मोहित अपना लण्ड चुभा रहे थे। मेर दिल लहूलुहान हो रहा था। मेरा तो समय काटना ही मुश्किल हो रहा था। जैसे तैसे पाँच बजे, हम तीनो ऑफ़िस से निकले। मेरे मन में तो अब चोर था सो नजर भी नहीं मिला पा रही थी। घर पहुँची, मेरा तो खाना पकाने का मन ही नहीं हो रहा था। मोहित तेज था वो मेरे की बात शायद समझ गया था। वो बाजार जाकर भोजन पैक करवा कर ले आया।
मैंने अपनी साड़ी फ़ेंकी और पैंटी उतार कर हल्की हो गई और मात्र पेटीकोट में सोफ़े पर बैठ गई। मैंने अपने मांसल उभरे हुये उरोजों को देखा को उनकी तड़प देखी। उफ़्फ़्फ़! मैंने उन्हें जोर से दबा लिया।
"बस बस दीदी... इन बेचारों का क्या दोष... इन पर तो रहम करो!"
मैं एकदम से घबरा गई... फिर सोचा शरमाना क्या... कल रात तो मैंने अपनी चूत तक इन्हें खोल कर दिखा दी थी।
"मोहित जी... मुझे तो बार बार बस अपने पति के बारे ख्याल आता है, क्या करूँ?"
"दीदी, आप तो पत्नीव्रता का मतलब ही नहीं जानती हैं।"
"कैसे नहीं जानती... बस पति की होकर रहना और क्या?"
"बिल्कुल सही... पति तो दिल में होता है... उसका मान रखना... उसकी हर बात मानना... दिल से उसकी पूजा करना... उसकी सेवा करना..."
"वही तो... यही सब तो मैं करती हूँ... तो हूँ ना पतिव्रता!"
"जी हाँ... पर खुशियाँ भी तो कुछ होती हैं... छोटी छोटी खुशियाँ कहीं से भी मिलें, कितना अच्छा लगता है...!"
"जैसे... कैसी छोटी छोटी खुशियाँ... मतलब?"
"अब जैसे कल रात को आप अपना मन मार कर दिल जलाती रही..."
"तो क्या चुदा लेती? ले लेती लौड़ा...?"
"क्या फ़र्क पड़ता... इससे आपका धर्म तो नहीं टूटता ना... मन में तो वही रहते ना... पति भी वही रहते..."
"पर कोई दूसरा चोद जाये? हाय राम... कैसा लगेगा? सुनने में तो मजा आता है पर चोदना?"
"चोदने से क्या होता है? बस आपको आनन्द ही तो आयेगा ना... इससे आपको खुशी ही तो मिलेगी ना?"
मोहित ने मुझे पीछे से थाम लिया और अपना कड़क लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे अन्दर एक आनन्द भरी सिरहन उठ गई। उई माँ! यह तो मार डालेगा मुझे... यह तो चोदेगा ही... चुदा लूँ? कैसा लण्ड ठोक रहा है मेरी गाण्ड में...
"मजा आया ना दीदी... अब बताइये... आपके पति को क्या मालूम चलेगा?"
उसके लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ कर मुझे रोमांचित कर रहा था।
उसने मेरे मम्मे दबा दिये... मेरे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई। मुझे उसकी बातों में सच्चाई नजर आने लगी। वो मेरे साथ बिस्तर पर बैठ गया। मेरा शरीर एक मीठी सी कसक से भर उठा।
"अब बताओ दीदी... हमने आपका भोसड़ा देखा... कैस रसीला... गुलाबी सुन्दर सा था... यदि लण्ड खा भी लेती तो क्या बिगड़ जाता।"
"उफ़्फ़... कैसी बातें करते हो? चुद नहीं जाती मैं?" मेरे मुख से एक ठण्डी आह निकल गई।
"नहीं दीदी नहीं... बस चमड़ी से चमड़ी रगड़ा जाती और क्या? खुजली मिट जाती फिर मजा कितना आता?"
"मोहित... चमड़ी से चमड़ी... मीठी मीठी सी खुजली... उफ़्फ़... लण्ड... मोहित... बस करो... मुझे कुछ कुछ होने लगा है।"
उसने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। रोहन भी मेरे बालों से खेलने लगा। मुझ पर एक नशा सा छाने लगा। उसकी बातों से मुझे बहुत आनन्द आने लगा था। मेरा शरीर वासना के मारे कड़कने लगा था। अब तो मुझे उसकी बातें सही लगने लगी थी। उसने धीरे धीरे मेरा पेटीकोट ऊपर सरकाना चालू कर दिया था। मैंने तो आज अन्दर पेन्टी भी नहीं पहनी थी। रोहन भी मेरे ऊपर झुक सा गया था। फिर उसने मुझे प्यार से चूम लिया।
"मेरी प्यारी दीदी... सुन्दर सी दीदी..."
मैंने भी वासना में रोहन को चूम लिया। अब रोहन का हाथ मेरे सीने पर मांसल उरोज पर गुदगुदी करने लगा था। मोहित ने इतनी देर में मेरा पेटीकोट कूल्हों से ऊपर कर दिया था। मेरी सुन्दर सलोनी गाण्ड ट्यूब लाईट की रोशनी में चमक उठी थी। मुझे लगा मेरा शरीर आग सा हो गया था।
"दीदी, पता है आपने हमें रात को कितना तड़पाया था?"
मोहित का कड़क लण्ड मेरी गाण्ड की दरार को कुरेदने में लगा था। मुझे उसके लण्ड का स्पर्श घायल किये दे रहा था।... घुसा क्यों नहीं देता साले... कैसे कहूँ... उफ़्फ़ कितनी प्यारी गुदगुदी कर रहा है। डाल दे अन्दर... ।
तभी उसके सुपाड़े का नरम दबाव मेरी गाण्ड के छल्ले पर महसूस हुआ।
"क्या करती मोहित... बस पति की याद में... कैसे करने देती... हाय रे... ये क्या कर रहा है तू जानू?"
"दीदी भोसड़ा तो पति का है ना... ये तो हमारी है... इसे तो उनसे मुक्त रहने दो..."
तभी उसके नरम सुपारे ने जोर लगाया और मेरी गाण्ड का छल्ला फ़ैलता चला गया। उसका लण्ड मेरी गाण्ड को छेदता हुआ मुझे घायल कर गया। मन में आनन्द की... वासना की तेज लहरें उमड़ पड़ी। तभी रोहन मेरे सामने आ गया... उसने अपना पायजामा उतार दिया था। उसका मोटा लण्ड सख्त हो कर बहुत ही लहरा रहा था।
मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका लिया। अब तो दोनों ही मुझसे चिपके जा रहे रहे थे। मेरी टांगें अपने आप ही चौड़ी हो कर खुलने लगी। चुदने को आतुर मेरी जवानी... लण्ड और चूत का मधुर मिलन... रोहन के लण्ड का दबाव भी मेरी पनीली चूत पर पड़ने लगा।
"नेहा दीदी... ध्यान से कही लण्ड भोसड़े में घुस ना जाये... वो तो..."
"आह्ह्ह रोहन! मां चुदने दे पत्निव्रता की... लौड़ा घुसा ही दे यार... जल्दी कर... मेरी चूत तो लण्ड खाने के लिये तड़प रही है।"
"ओह्ह्ह्ह... मेरी मैया... और अन्दर... उफ़्फ़... पूरा डाल दे यार..."
उसका लण्ड अन्दर सरक कर गहराइयों में बैठने लगा। पीछे से मोहित का लण्ड मेरी गाण्ड के पैंदे तक में बैठ गया था।
"बस... बस... अब ऐसे ही पड़े रहो... मोहित जी... बहुत आनन्द आ रहा है... रोहन... मेरी चूत तो बस मीठी मीठी सी गुदगुदी से पागल हुई जा रही है... बस आनन्द लेने दो..."
मुझे तो मोहित और आनन्द दोनों ही अपने दिल के टुकड़े लगने लगे थे। धीरे धीरे उनके लण्ड मेरी चूत और गाण्ड में अन्दर बाहर होने लगे... मेरा आनन्द बढ़ने लगा था। दोनों के मुख से जोर की सिसकारियाँ निकलने लगी थी। मैं तो लगभग खुशी के मारे चीखने लगी थी।मेरी एक टांग रोहन की कमर से जोर से लिपटी हुई थी। मैं अपनी चूत उछाल कर चुदने में तेजी नहीं ला पा रही थी... दोनों ओर से वे दोनों बुरी तरह से चिपक कर मुझे चोद रहे थे। इस दौरान मैं तीन बार स्खलित हो चुकी थी। बारी बारी से एक एक करके दोनों ने अपना प्रेम रस जब पिचकारी के रूप में छोड़ा तब जाकर मैं उनसे आजाद हुई। पर हाँ! उन दोनों ने मुझे ऐसा कस कर चोदा कि मेरे शरीर के कस बल सब निकल गये।
मेरे पति के आने तक दोनों ने मुझे जी भर कर चोदा... मेरा तो दिल खिल कर बाग बाग हो गया था। चुदाई का भूखा मेरा शरीर शान्त होने के बदले उसकी भूख और भी बढ़ गई थी... उसे तो अब दो दो लण्ड खाने की आदत पड़ गई... अब तो छुप छुप कर मौका मिलने पर चुदाना पड़ता है... मेरा पति अब टूर पर जयपुर, मुम्बई कोलकाता, चेन्नई भी जाता है... उनके जाते ही फिर से मुझे दो दो लण्ड खाने को मिल जाता है। पर सच कहती हूँ जब जब पति घर पर होते हैं, मैं तो उनकी ही बन कर रहती हूँ... मैंने पतिव्रता रहने की जो ठान रखी है ना...