समधन से प्यार

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बेटे की सास से निकटता बढ़ना और शारीरिक संबंध बनना।
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जवानी में तो कईयों पर अपना दिल आया था लेकिन बुढ़ापे में या कहे की अधेड़ अवस्था की समाप्ति पर जब दिल और शरीर के थक जाने पर सेक्स का ख्याल दिल से निकल जाता है, यह अपना दिल फिर से किसी पर आ गया। इस बार जिस पर आया वो कोई और नहीं मेरे बेटे की सास थी। बेटे की शादी की बातचीत के दौरान मेरी ज्यादातर उन से ही बातचीत होती थी, वह बातचीत में बहुत कुशल थी। होना तो यह चाहिये था कि या तो उन के पति मेरे से बात करते या मेरी पत्नी उन से बात करती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हम दोनों ने ही सारी बातें की। इस कारण से बेटे की शादी होते-होते मेरा उन के साथ अच्छा तारत्मय् बैठ गया।

हम दोनों रोजाना ही बातें किया करते थे। रिश्तें के लिये जो कुछ किया जाना चाहिये था वह हम दोनों ही कर रहे थे। वह अपनी बेटी की चिन्ता में थी और मैं इस बात से परेशान था कि मेरे बेटे को सही जीवन साथी मिले। हम लोग इस वजह से कई बार आपस में मिले कई बार मेरा बेटा और उनकी बेटी साथ होते थे और कई बार हम दोनों अकेले होते थे। इस कारण से हम दोनों के बीच की झिझक दूर हो गयी थी और हम दोनों बेझिझक एक-दूसरें से अपनी बात कह पाते थे।

शादी होने तक तो मैं उन से बात करते में थोड़ी औपचारिकता रखता था क्योंकि ज्यादा बोल जाने पर क्या समस्या खड़ी हो जाये, यह मैं नहीं जानता था। शादी धुमधाम से निपट गयी और उनकी बेटी मेरी बहू बन कर हमारे घर आ गयी। बहू बहुत सुन्दर और सुघड़ थी। जैसी बहू मैं अपने बेटे के लिये चाहता था वह बिल्कुल वैसी ही थी। उस के घर आने के बाद मैं और मेरी पत्नी निश्चित से हो गये थे।

हमें लगता था कि हमने अपना कर्तव्य पुरा कर लिया है। दोनों परिवारों के बीच आना जाना लगा रहता था। मैं और पत्नी कभी-कभी बेटे और बहू के साथ या अकेले ही उन के घर मिलने चले जाते थे। बेटी के जाने के बाद वह दोनों भी अकेले से हो गये थे। लड़का था लेकिन वह भी अपने व्यवसाय में लगा रहता था। मेरे समधी तो अपनी नौकरी पर चले जाते थे लेकिन पीछे से समधन अकेली रह जाती थी। बेटी के जाने से घर वैसे ही सुनसान हो जाता है यह मुझे पता था।

मैं कभी-कभी औपचारिकता वश उन्हें फोन कर हालचाल पुछ लिया करता था। अपनी बेटी से भी वह नियमित रुप से बात करती ही रहती थी। अब हम दोनों के मध्य की औपचारिकता खत्म हो गयी थी। समधी और समधन का रुप सामने आ गया था। मुझे लगता था कि वह मुझ से जब बात करती है तो उनकी टोन पहले से अलग होती है। लेकिन मैं इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया करता था। या कहे कि ध्यान देना नहीं चाहता था। लेकिन दिल का क्या किया जा सकता है, वह तो कभी भी किसी पर आ सकता है।

कुछ दिन ऐसा हुआ कि मेरी उन से बात नहीं हो पायी। जब बात हुई तो उन्होंने उलहाना दिया कि लगता है अब आप को मेरी चिन्ता नहीं है। मैंने कहा कि ऐसी बात नहीं है लेकिन मैं अपनी बातों में कुछ ऐसा उलझा था कि आप से बात करना ही भुल गया तो वह बोली कि यह तो कोई बात नहीं हुई कि क्या मैं केवल आप के अच्छे की ही साथी हूँ, अगर आप परेशानी में है तो भी मुझे बता सकते थे। उन की यह बात सुन कर मैं पहले तो हैरत में पड़ गया लेकिन फिर समझ आया कि बात कुछ और ही है। आग दोनों तरफ लगी हुई है।

मेरी समधन को देख कर कोई नहीं बता सकता था कि वह इतनी बड़ी बेटी की मां है। उन्होनें अपने आप को बहुत सभांल कर रखा था। शरीर पर उम्र बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पायी थी। छरहरे शरीर की होने के कारण वह अपनी उम्र से छोटी दिखायी पड़ती थी। यह बात मैंने उन्हें बतायी तो वह शरारत से बोली कि अब इस बात का वह क्या करें। मैं उन के शब्दों का अर्थ उस समय नहीं समझा लेकिन बाद में मुझे समझ आया कि उन के शब्दों के पीछे छिपा दर्द क्या था। ऐसे ही जीवन चल रहा था। उन की बेटी मेरे घर में स्थापित होने का प्रयास कर रही थी। बेटे और बहु में सामंजस्य बैठ रहा था।

दोनों परिवार इस में उन दोनों की सहायता कर रहे थे। इसी वजह से अक्सर दोनों परिवारों का एक-दूसरे से मिलना होता रहता था। मेरे समधी तो ज्यादातर मौन और निष्किय ही रहते थे। बातचीत और मेलजोल की सारी जिम्मेदारी हम दोनों के हिस्से आती थी। हम यह जिम्मेदारी पुरी ताकत से निभा रहे थे। ऐसे मिलने के मौकों पर भी हम दोनों ही एक-दूसरे से बातचीत किया करते थे। हम दोनों की चिन्ता यह थी नया रिस्ता सही चले और अगर कुछ बाधा आये तो हम उसे पहले ही दूर कर दे।

कई बार दोनों परिवारों को किसी रिस्तेदार के यहाँ किसी समारोह में जाना भी पड़ता था। मैं इन अवसरों पर पुरी तरह से तैयार हो कर जाता था। मेरी पुरानी आदत थी कि मैं पुरी तरह से सजधज कर ही जाता था। मेरी यह बात मेरी समधन को बहुत पसन्द थी। वह अक्सर मेरी बहू से यह कहा करती कि तेरे ससुर किसी भी पार्टी में अलग ही नजर आते है। मेरी बहू ने यह बात मुझे भी बताई थी और कहा कि मम्मी की यह बात बिल्कुल सही है आप अलग ही नजर आते है। मैंने उसे बताया कि कपड़ें आप को बनाते है इस लिये उन्हें ढ़ग से ही पहना जाना चाहिये। वह मेरी बात पर मुस्करा कर रह जाती थी। उस का पति यानि मेरा बेटा कपड़ें पहनने के मामले में थोड़ा लापरवाह सा था। या कहे कि आज की पीढ़ी की तरह का था। मैं तो उस पीढ़ी का था जिस के पास कम कपड़ें होते थे, इस लिये उन्हें ही ढंग से, सलीके से पहनना पड़ता था। यह बात आज की पीढ़ी को समझ नहीं आ सकती है। ऐसा मेरा मानना है।

ऐसे ही किसी अवसर पर मैं अपनी समधन के साथ बैठा था, मेरी पत्नी और परिवार के अन्य लोग समारोह में हिस्सा ले रहे थे। मेरी समधन मुझ से बोली कि क्या बात है आज किसी से मिलने नहीं जा रहे है। मैंने उन से कहा कि हर समय मैं ही यह काम करता हूँ अब चाहता हूँ कि हमारी अगली पीढ़ी इस की जिम्मेदारी ले, इस लिये जानबुझ कर यहाँ बैठा हूँ। मेरी बात पर वह बोली कि मेरी भी यहीं हालत है यह कुछ करते ही नहीं है, इस लिये मैं भी आज आप के साथ ही बैठी रहूँगी। इसी बहाने आप से बात तो हो पायेगी। उन की यह बात सुन कर मैंने उन की तरफ मुस्करा कर देखा और कहा कि आप और मैं तो अक्सर ही बातें किया करते है।

वह बोली कि वह बातें तो रुटिन की होती है उस में अपनी बात कहाँ हो पाती है। मैंने उन्हें देखा तो वह बोली कि आप बताओ क्या मैं गलत कह रही हूँ? मैंने ना में सर हिला दिया। वह बोली कि हम दोनों की अपनी भी तो कोई जिन्दगी है, क्या हर समय रोल ही निभाते रहेगे? मैं चुप रहा तो वह बोली कि कभी-कभी लगता है कि अपने रोल से बाहर निकल कर अपने लिये भी कुछ करना चाहिये। उन की बात सुन कर मैं बोला कि क्या बात है आज बहुत दार्शनिक हो रही है। वह बोली कि आप को सब पता है लेकिन मेरे मुँह से सुनना चाहते है।

मैंने उन से कहा कि हाँ यह बात तो सही है कि हम हमेशा परिवार की ही बात करते है, अपनी बातें करने का मौका ही नहीं आ पाता है। आप की बात से मैं पुरी तरह से सहमत हूँ कि कभी तो अपने आप के लिये जीना चाहिये, अपनी पसन्द नापसन्द की बातें भी करनी चाहिये। हमें जो करना था वह हम ने कर दिया है। अब दोनों बच्चों पर है कि वह आगे कैसे चलते है। मेरी बात पर वह बोली कि आप कभी अपने मन की बात क्यों नही करते?

मैं बचपन से ऐसा ही हूँ, शुरु से जिम्मेदारी निभाते-निभाते अपने बारे में सोचना ही भुल गया हूँ

मेरी भी हालत ऐसी है, अपना अस्तित्व ही खत्म सा हो गया है

क्या हुआ है जो इतनी परेशान है, अगर अपना समझे तो बता सकती हैं

आप समधी से ज्यादा मित्र बन गये है

हाँ यह तो आप सही कह रही है

बात कुछ ऐसी है कि सोच रही हूँ कि कहुँ या ना कहुँ

मुझ पर पुरा विश्वास कर सकती है, बात मेरे तक ही रहेगी

हाँ यह तो है किसी को पता नहीं चलनी चाहिये

आप की समधन भी नहीं जान पायेगी

कैसे कहूँ?

चिन्ता ना करें, कह कर अपने मन को हल्का कर लें

वह कुछ देर चुप रही फिर बोली कि जीवन में हर चीज की अपना महत्व है चाहे वह कितना ही छोटा क्यों ना हो। मेरे जीवन में शारीरिक सुख की कमी अब अखरने लगी है। पहले तो जीवन की आपाधापी में ध्यान नहीं दिया लेकिन अब लगता है कि कुछ है जिस की कमी है। आप से क्या शर्म है, यह तो सेक्स के नाम से ही बिदक जाते है। पता नहीं मुझ में ऐसा क्या नहीं है जो यह मुझ से दूर भागते है। मुझे समझ ही नहीं आता है।

शायद आध्यात्म में ज्यादा रुचि लेने के कारण तो ऐसा नहीं हो रहा है

पता नहीं, लेकिन जो हो रहा है, मैं उस से बहुत परेशान हूँ, किसी से कह भी नहीं सकती, वो तो आज आप के सामने मुझ से रहा नहीं गया।

समधी जी से बात करें और अपने मन की बात को उन्हें बतायें, मुझे आशा है कि कोई ना कोई हल जरुर निकलेगा।

मेरी बात पर वह चुप रही लेकिन उन के चेहरे से पता चल रहा था कि वह मेरी बात पर संतुष्ट नहीं थी। उन की बात से यह जरुर मुझे पता चला कि उन के और मेरे बीच संबंध सामान्य समधी-समधन से ज्यादा हो गया था। यह किस ओर जा रहा था, मैं कह नहीं सकता था। उन की समस्या का कोई हल तो मैं नहीं सुझा सकता था, लेकिन उन के साथ सहानुभुति तो जता ही सकता था।

अकेले मिलने का मौका मिलना

समधन जी से अकेले मिलने का मौका भी मिल गया। हुआ यह कि समधी जी को अचानक कही जाना पड़ा, समधन जी अकेली रह गयी। मेरा बेटा भी घर पर नही था, इस लिये बहू ने मुझ से अनुरोध किया कि पिता जी आप रात को रहने के लिये घर चले जाये, मम्मी जी अकेली है। बहू के अनुरोध को टाला नहीं जा सकता था। इस लिये मैं एक जोड़ी कपड़े बैग में रख कर कार ले कर निकल गया। आधे घंटे बाद बेटे की ससुराल पहुँच गया। शाम गहरा गयी थी। बेटे की ससुराल अंधेरे में डुबी पड़ी थी। बहू ने अपनी माँ को फोन पर मेरे आने के बारे में बता दिया था, इस लिये वह मेरा इंतजार ही कर रही थी। मैंने गाड़ी घर के अंदर खड़ी की और अपना बैग निकाल कर उन के साथ घर के अंदर आ गया। वह बोली की आज आप को भी परेशान कर दिया। मैंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है, रिस्तेदार होते ही है सहायता करने के लिये। वह मेरा बैग लेकर चली गयी। कुछ देर बाद पानी का गिलास ले कर वापस आयी और मुझे पानी दे कर बोली कि आप चाय पीना चाहे तो चाय बना कर लाऊँ नहीं तो खाना बना रही हूँ। मैंने चाय लाने के लिये मना कर दिया और कहा कि अब खाना ही खाता हूँ। वह खाना बनाने चली गयी। मैं कमरे में बैठ कर पानी पीने लगा।

कुछ देर बाद वह खाना ले कर आ गयी और मुझ से बोली कि आप हाथ धो ले, फिर खाना खाते है। मैं हाथ धोने बाथरुम में चला गया। हाथ धो कर आया तो वह तौलिया ले कर खड़ी थी। मैंने हाथ पोछ कर तौलिया उन को वापस ले दिया। वह उसे रखने चली गयी।

उन के आने के बाद हम दोनों खाना खाने बैठ गये। खाना खाने के बाद वह बरतन उठा कर किचन में चली गयी। वहाँ से लौटी तो मुझ से बोली कि आप इसी कमरे में आराम किजिये, मैं बिस्तर लगा देती हूँ। वह कमरे से चली गयी और जब आयी तो उन के हाथों में बिस्तर था। उसे कमरे में लगे दिवान पर बिछा कर उन्होंने तकिया रख कर मुझ से कहा कि अब आप आराम करे।

मैंने कहा कि खाना खाने के बाद में थोड़ा टहलता हूँ, उस के बाद सोने जाऊँगा। वह बोली कि अब कहाँ घुमने जायेगे? मैंने कहा कि आप बताये कहाँ पर टहल सकता हूँ? वह बोली कि छत पर चलते है वहाँ पर आप आराम से टहल पायेगे। मैं उन के साथ छत पर चल दिया। छत काफी बड़ी थी हम दोनों वहाँ टहलने लगे। कुछ देर तक हम दोनों चुपचाप टहलते रहें। जब चुप्पी झेलने लायक नहीं रही तो मैंने उनसे कहा कि आप चाहे तो आराम कर सकती है मैं थोड़ी देर टहल कर आता हूँ। वह बोली कि नहीं मैं भी आप के साथ टहल लेती हूँ अभी आराम कर के क्या करुँगी?

उन की बात सुन कर मैं और वह छत पर टहलते रहे। मैंने कुछ देर बाद पुछा कि आप की समस्या का कोई समाधान मिला या नहीं? वह बोली कि बात की थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। मुझे पता है कि दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिलना है।

अब क्या करेगी?

पता नहीं?

मेरी सहायता की जरुरत हो तो अवश्य बताईयेगा

हाँ अब आप का ही सहारा है

मेरी तरफ से आप निश्चित रहिये

आप पर मुझे पुरा विश्वास है

मेरी पुरी कोशिश रहेगी कि आप के विश्वास पर खरा उतरुँ

इस के बाद हम दोनों टहल कर छत से नीचे आ गये। समधन जी मेरे लिये दूध लेने चली गयी। मैं दिवान पर पाँव ऊपर कर के बैठ गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि आज कुछ ऐसा होना है जो मैं नहीं चाहता था लेकिन मैं उसे रोकने की कोशिश नहीं कर सकता था। नैतिकता, अनैतिकता का द्वंद्द मेरे मन में चल रहा था। समाज के बने नियमों को तोड़ने का भय मेरे मन में था। समधन के लिये मेरे मन में पुरा समर्थन था।

मैं यही सब सोच रहा था कि वह दूध ले कर आ गयी और दूध का गिलास मुझे थमा दिया। मैंने गिलास हाथ में ले कर उन से पुछा कि आप दूध नहीं पी रही है तो वह बोली कि मैं भी अपना गिलास ले कर आती हूँ। यह कह कर वह वापस किचन में चली गयी और कुछ देर में अपना दूध का गिलास ले कर आ गयी। हम दोनों चुपचाप दूध पीने लगे। गर्म दूध को धीमा ही पीना पड़ता है, सो हम दोनों ऐसा ही कर रहे थे।

दूध पीने के बाद वह खाली गिलास ले कर किचन में रखने चली गयी। वह गिलास वापस रख कर आयी तो बोली कि मैं घर में ताला लगा कर आती हूँ। वह घर के दरवाजों में ताला लगाने चली गयी। कुछ देर बाद वह वापस आ कर मेरे सामने के सोफे पर बैठ गयी। मुझे लगा कि वह कुछ कहना चाहती है लेकिन कह नहीं रही है। मुझे पता था कि वह क्या कहेगी लेकिन मैं वह सुनना नहीं चाहता था। मेरे मन में बैठा समाज का डर मुझ पर हावी था।

हुआ भी ऐसा ही वह मुझ से बोली कि आप से कुछ चाहिये, आप को पता है क्या चाहिये, लेकिन आप समझ कर भी ना समझने का ढ़ोग कर रहे है। मेरा भाग्य ही ऐसा है कि मैं जब किसी से कोई आशा रखती हूँ तो मुझे वहाँ से निराशा मिलती है। यह कह कर वह मेरा जवाब सुने बगैर अपने कमरे के लिये चली गयी। मैं उन के शब्दों में छुपे तंज को समझ गया था, लेकिन उहापोह में उलझा बैठा रहा। कुछ देर बाद जब उलझन से निकला तो बिस्तर से उठ कर उनके कमरे की तरफ चल दिया।

कमरे का दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा खुला मिला। दरवाजा खोल कर अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर दिया। अंदर वह बिस्तर पर बैठी थी। मुझे देख कर उठ कर खड़ी हो गयी। मैं कुछ पल के लिये झिझका, फिर आगे बढ़ कर उन्हें बांहों में भर लिया। वह भी मेरी बाँहों में सिमट गयी। हम दोनों कुछ क्षण ऐसे ही खड़े रहे। शायद इस से आगे बढ़ने के लिये साहस जुटा रहे थे। उन की बाँहें भी मेरे चारों ओर कसी हूई थी। मुझे उन के बदन की गर्मी और सुंगंध दोनों महसुस हो रही थी। मैंने उन के माथे पर चुम्बन ले लिया। इस के बाद उन के होंठों का नंबर आया और मैं और वह दोनों गहन चुम्बन में डुब गये।

हम दोनों उम्र के ऐसे पड़ाव पर खड़े थे कि जवानी पुरी तरह से विदा हो गयी थी और अधेड़ अवस्था भी खत्म होने को थी। लेकिन दिल तो जवान थे। उन के होंठों की मिठास मेरे को अच्छी लग रही थी। मैंने उन के ऊपर के होंठ को अपने होंठों में ले कर चुसना शुरु कर दिया। मन में जो डर था वह अब गायब हो गया था। वहाँ केवल काम ही था। मेरे हाथ उस की पीठ को सहला रहे थे।

सुघठित शरीर होने के कारण उन के उरोज मेरी छाती में चुभ रहे थे। जब हम दोनों की सांस फुल गयी तो हमारे होंठ अलग हो गये। हम दोनों अभी भी आलिंगन में बंधे थे। वह भी मेरी पीठ को सहला रही थी। मैंने पुछा कि बत्ती बंद कर दूँ तो वह बोली कि हाँ अभी तो बंद ही कर दे। मैंने बत्ती का स्वीच ढुढ़ कर उसे ऑफ कर दिया।

अंधेरा होते ही हम दोनों ने चैन की सांस ली। शायद पहली बार के मिलन में अंधेरा ही सही था। मैंने उन की साड़ी कंधों से उतार दी। फिर उसे पेटीकोट से निकाल कर बेड के ऊपर फैक दिया। वह खड़ी थी मैंने उन्हें बेड पर बिठा दिया। इस के बाद मैं उन के साथ बेड पर बैठ गया। कमरे में नाईट बल्ब की झिनी रोशनी में ही हम दोनों एक दूसरे को देख पा रहे थे। मैंने भी अपना कुर्ता उतार कर किनारे रख दिया। बनियान भी उतर कर कुर्तें के ऊपर आ गयी।

मैंने इस के बाद उन के होंठों पर फिर से चुम्बन ले लिया। मैं अपने डर को ऐसा करके कम कर रहा था। वह बोली कि मुझ से ज्यादा तो आप डरे हुये है। मैंने कहा, आप सही कह रही है। उन्होनें अपना हाथ मेरी छाती पर घुमाया और पीठ पर जा कर नाखुनों से भींचं लिया। मेरी पीठ में उनके नाखुन घुस गये। उन की यह हरकत बता रही थी कि वह पुरी तरह से उत्तेजित हो गयी है। अब देर करने का कोई कारण नहीं था।

मैंने उन का ब्लाउज खोल कर उतार दिया अंदर की ब्रा भी उतर गयी। अब उन के स्तन मेरे सामने आ गये। उम्र के मुकाबले ज्यादा कठोर थे। उन्हें अपने मुँह में ले कर चुसना शुरु कर दिया। वह उत्तेजना के कारण कांप रही थी। मैंने उन्हें धीरे से बेड पर लिटा दिया। मेरे हाथ उन के स्तनों का मर्दन करने लग गये। इस कारण से उरोज और तन गये और कठोर हो गये। स्तनों के निप्पल फुल कर लंबें हो गये। मैंने उन्हें अपने होंठों के बीच ले लिया।

समधन के मुँह से हल्की सी कराह निकल रही थी। मेरा हाथ उन की सपाट कमर पर से होते हुये पेटीकोट के ऊपर से उनकी जाँघों के मध्य में पहुँच गया। कपड़े के ऊपर से ही उन की योनि को सहला दिया। फिर हाथ को पेटीकोट के अंदर डाल कर पेंटी के ऊपर से योनि को सहलाना शुरु कर दिया। वहाँ भी नमी थी। मैंने अपनी उंगली योनि में डाल कर अंदर बाहर करनी शुरु कर दी। मैं उन्हें मिलन से पहले पुरी तरह से गर्म करना चाहता था। वैसा ही मैं कर रहा था।

मुझे उन का जी-स्पाट मिल गया। मैं उसे उंगली से सहलाने लग गया। कुछ देर बाद उत्तेजना के वश हो कर उन्होंने मेरे होंठों को अपने दांतों में दबा लिया। उन के दांत मेरे होंठों को काटने लग गये। मुझे पता था कि अब वह पुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी, अब संभोग किया जा सकता था।

मैंने झुक कर उन के पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे खिसकाया और उस के बाद पेंटी को भी नीचे उतार दिया। उन्होंने हाथ से दोनों को पैरों से निकाल दिया। मैंने अपना पायजामा और ब्रीफ उतार कर रख दी। अब हम दोनों नंगें हो कर एक-दूसरे से चिपक गये। मेरे पाँव उन की कमर पर कस गये। मेरे हाथ उन के कुल्हों को दबा रहे थे।

कुल्हों के बीच की गहराई में मेरी उंगली फिरने लगी। इस हरकत से वह चिहुंक गयी। उन्हें लगा कि मैं कुछ और करने का इरादा रखता हूँ। लेकिन मेरा इरादा ऐसा नहीं था। मैं उन की जाँघों को सहला कर उन की जाँघों के बीच आ गया और अपने लिंग को उन की योनि पर रगड़ने लग गया। मेरा लिंग भी पुरी तरह से तन कर कठोर हो गया था।

मुझ से अब रुका नहीं जा रहा था इस लिये लिंग को योनि के मुँह पर लगा कर जोर लगाया तो लिंग योनि में घुस गया। अंदर नमी की कमी नहीं थी। दूसरी बार जोर लगाया तो आधा लिंग अंदर चला गया। तीसरी बार में पुरा लिंग उन की योनि में समा गया। अब हम दोनों के शरीरों के मध्य में कोई जगह नहीं बची। कुछ देर रुकने के बाद मैंने लिंग को बाहर निकाला और फिर से अंदर डाल दिया। इस बार उन के पाँव मेरी कमर पर कस गये।

मैं अब धीरे-धीरे धक्कें लगाने लगा। कुछ देर बाद समधन भी अपने कुल्हें उठा कर मेरा साथ देने लग गयी। हम दोनों एक साथ दौडने लग गये। पहले धीरे और उसके बाद हम दोनों की गति बढ़ गयी। हम दोनों ही सेक्स के भुखे थे इस लिये दोनों एक-दूसरे में समाने का पुरा प्रयास कर रहे थे। हम दोनों की गति सतत चलती रही। काफी देर तक ऊपर रहने के बाद मैं उन के उपर से उठ कर उन की बगल में लेट गया। मैं थक सा गया था। कुछ आराम मुझे चाहिये था।

अब वह उठ कर मेरे उपर आ गयी और अपने हाथ से सहारा दे कर मेरा लिंग अपनी योनि में डाल लिया और उन के कुल्हें मेरी जाँघों पर टक्कर मारने लग गये। उन के प्रहारों में बहुत ताकत थी मेरी जाँघों का जोड़ उस की ताकत को झेल रहा था। मैंने अपने दोनों हाथों से उन के कुल्हें थाम लिये। हम दोनों काम की अग्नि में जल रहे थे और इस से छुटकारा चाहते थे। कुछ देर बाद वह भी थक गयी और नीचे लेट गयी।

अब मैं बेड पर बैठ गया और उन को अपनी गोद में बिठा लिया। वह मेरे लिंग पर सवार हो गयी और अपने कुल्हें उठा कर लिंग को अंदर बाहर करने लगी। मैं उन के उरोजों का रस पीने लगा। काफी देर तक हम इस आसन में रहे लेकिन चरम की अवस्था से दूर थे। मैंने उन्हें धीरे से पीछे की तरफ झुका कर बेड पर लिटा दिया और उन के उपर आ गया। मेरी गति बहुत बढ़ गयी मैं गर्मी से जल सा रहा था और जल्दी से इस से छुटकारा चाहता था। संभोग करते करते हमें काफी देर हो गयी थी।

हमारी उम्र में यह अच्छा नहीं था। कुछ देर बाद मेरे लिंग के मुँह पर गर्म वीर्य के कारण आग सी लग गयी और मेरी आँखें मुंद गयी। मैं उन के ऊपर लेट गया। मेरा स्खलन बहुत जोर से हुआ था। उन के पैर मेरी कमर पर कस गये यह बता रहा था कि वह भी स्खलित हो गयी थी। हम दोनों एक-दूसरे के बगल में लेट गये। हमारी सांसें बहुत जोर-जोर से चल रही थी।

कुछ देर बाद जब हम दोनों की सांसें सामान्य हुई तो मैंने उन से पुछा कि क्या हाल है? वह बोली कि हाल तो बेहाल है लेकिन आज तक इतना लम्बा संभोग कभी नहीं किया है। कई सालों से तो इस की आदत ही नहीं रही है। इस लिये मेरा कुछ कहना मुश्किल है लेकिन मैंने आज सेक्स का पुरा आनंद लिया है। आप बताये क्या हाल है, मैंने उन्हें बताया कि मैं पसीने से नहाया हुआ हूँ।

कमर का दम निकल गया है, मैंने भी शादी के बाद इतना लंबा संभोग नहीं किया है। इस उम्र में तो ऐसा होना आश्चर्य ही है। आप की मेरी संगति सही रही है। वह बोली कि आप तो डर के मारे कांप से रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि आप सही कह रही है। मेरे मन में बहुत से विचार चल रहे थे। समाज का डर, नैतिकता और अनैतिकता के चक्कर में फँसा हुआ था। आप ने ताना ना मारा होता तो मैं इन से निकल नहीं पाता।

आप के साथ जाने क्या हुआ है कि मैं कुछ भी कह सकती हूँ, आप को बुरा लगा हो तो क्षमा कर दें

क्षमा माँगने की कोई बात नहीं है जो सच्चाई थी वह मैंने आप को बता दी है। अब सब कुछ अतीत की बात हो गयी है।

हाँ यह तो सही कह रहे है

ज्यादा थक तो नहीं गयी है

थक तो गयी हूं लेकिन आज दूबारा लगा है कि मैं महिला हूँ नहीं तो एक मशीन बन कर रह गयी थी। आप ने दूबारा मुझे स्त्री बना दिया है।

मैं भी काफी दिनों से सेक्स से दूर था आप की समधन भी अब सेक्स से दूर ही भागती है

दोनों की हालत एक जैसी है

हाँ, दोनों तरफ कहानी एक जैसी है

तब तो दोनों के बीच अच्छी गुजरेगी

हां लग तो ऐसा ही रहा है

कुछ देर हम दोनों लेटे रहे फिर उठ कर कपड़ें पहनने लग गये। कपड़ें पहन कर मैं बाहर आ गया और अपने दिवान पर जा कर लेट गया। संभोग की थकान के कारण जल्दी ही नींद के आगोश में खो गया। सुबह अलार्म की आवाज से ही जगा। बिस्तर पर उठ कर बैठा ही था कि समधन जी आती दिखाई दी।

पास आ कर बोली कि चाय पीयेगे या पानी। मैंने कहा कि सुबह तो पहले पानी ही पीता हूँ तो वह पानी लेने चली गयी। कुछ देर बाद जग और गिलास ले आयी और मुझ से बोली कि मुझे पता है कि आप सुबह दो गिलास पानी पीते है आप पानी पीजिये, जब तक मैं घर खोल कर आती हूँ। वह दरवाजें खोलने चली गयी और मैं पानी पीने लग गया।

थोड़ी देर बाद वह चाय बना कर ले आयी और हम दोनों चाय पीने लगे। चाय पीते में वह बोली कि कल की बात से मुझ से नाराज तो नहीं है?

नहीं तो, किसी ना किसी को तो आगे बढ़ना ही था, वह काम आपने किया।

कल में कुछ ज्यादा ही बोल गयी थी।

नहीं, जो मन में था वही जुबान पर आ गया था

हाँ, आप के सामने मुझ से रुका नहीं गया और लगा कि आज नहीं हुआ तो फिर कभी नही हो पायेगा

शर्म की दिवार एक ना एक दिन गिरनी ही थी, सो कल गिर गयी

हाँ गिर तो गयी, फिर कब मिलना होगा?

यह तो नहीं कह सकता लेकिन अवसर कब मिल जाये कहा नहीं जा सकता है

मुझे दूसरे मिलन का इंतजार रहेगा, उस में शायद हम दोनों ज्यादा आनंद उठा सके

पहली बार होने के नाते कल जो हुआ वह सही था

मैं आप को बता नहीं सकती कि कल आप ने मुझे क्या दिया है?

मैं भी आप के लिये यही बात कह सकता हूँ

मैंने उन से कहा कि अब मैं चलता हूँ तो वह बोली कि नहा कर नाश्ता कर के जाये तो मैंने कहा कि नाश्ता फिर कभी कर लुँगा, आज तो चलता हूँ

मैं अपना बैग कार में रख कर घर के लिये निकल गया। रास्ते भर सोचता रहा कि कल जो हम दोनों के बीच हुआ वह दूनिया की नजर में सही ना हो लेकिन दो व्यक्तियों के लिये तो सही ही था। दोनों जिस के लिये तड़फ रहे थे वह उन को प्राप्त हो गयी थी। आगे क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में था।

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