पूजा की कहानी पूजा की जुबानी Ch. 10

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जेठजी के बेटे (भतीजे) के साथ मेरी मस्ति भरी चुदाई।
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Part 10 of the 11 part series

Updated 03/13/2024
Created 11/26/2022
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पूजा की कहानी पूजा की जुबानी - 10

मैं और मेरा भतीजा (जेठजी का बेटा)

पूजा मस्तानी

जेठजी के बेटे (भतीजे) के साथ मेरी मस्ति भरी चुदाई।

शाम के पांच बज रहे थे। मैं गुमसुम और उदास बैठी थी। क्या करना मेरी समझ में नहीं आ रहा था। मेरा उदासी की कारण है मेरे पति। वह एक MNC में सेल्स एक्सक्यूटिव है और महीने में 15 से 20 दिन अपना सेल्स टारगेट पूरा करने के लिए दौरे प्र रहते है। वह जब भी आते है कमसे कम एक हप्ता घर में ठहरते है और मेरी अच्छी खातिर करते हैं। आप समझ गए न मेरी बात को। लेकिन पिछले दो बार से ऐसा नहीं हुआ। वह आये और दूसरे दिन ही चले जा रहे थे। यह बात मझे जची नहीं। मेरे यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं। एक बड़ासा घर, कार, मेरे नाम पर बैंक अकॉउंट और बैंक बैलेंस। बस कमी थी तो उनकी हाजिरी। उनकी गैरहाजिरी मुझे खलती थी। पिछले दो बारसे तो यह और ही ज्यादा खलने लगा।

आज भी वैसे ही हुआ। कल शाम तीन बजे आये और आज शाम चार बजे फिर दौरे पर चल दिए। पूछने पर बोले.. "अरे पूजा यह नौकरी की बात है..अगर मैं टारगेट पूरा नहीं करूंगा तो नौकरी जा सकती है.." कहे और चल दिए।

मैं उनके घर आने की कितनी तमन्ना से इंतज़ार करति हूँ। वह आएंगे; हम कहीं बाहर घूमने जायेंगे.. किसी शाम बाहर खना खाएंगे... और मेरी बुर की खुजली मिटायेंगे.. यही सोचती समय बिताती हूँ। लेकिन....

में बहुत उदास थी। कल जब शामको आये और रात को थकावट कहकर कर्राटे भरने लगे। अब मैं क्या करती मेरे रिसते और खजुलाते बुरको सहलाते सो गयी। दोस्तों मैं 35 साल की जवानी से भरपूर और एक कामुक औरत हूँ। वैसे मेरे दो बच्चे भी है जिनकी उम्र आजकी समय 12 वर्ष के है और दोनों ही residential convent स्कूल में पढ़ते है।

आपको मालूम ही है की मुझे सेक्स बहुत पसंद है। मेरी चूचियों में ठीस उठती है और जांघों के बीच उभारदार बुर में खुजली होती है। और कल भी यही हुआ। रातको मैं अपनी रसीली चूत को सहलाते सो गयी। और आज शाम वह फिरसे टूर पर चले गए, फिर पंद्रह या बीस दिन लगेंगे उन्हें आने में। तब तक फिर मेरी मुनिया भूखी रहेगी।

क्या करूँ यही उधेड़ बुन मे थी की दरवाजे की घंटी बजी।

आँखों में आये आंसू पोंछते मैं दरवाजे पर गयी और दरवाजा खोली। सामने मेरा भतीजा; देवआनंद खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह मेरे जेठजी (मेरे पतिके बड़े भैया) का लड़का है।

"अरे देव.. आओ... कैसे हो आज ऐसे कैसे आगये...?" मैं उसे अंदर बुलाई। वह 20, 22 साल का जवान लड़का है और मेरे जेठ जी का बेटा है, डिग्री कर रहा है। वह कभी कभी मेरे यहाँ आकर टाइम पास कर लेता है।

वह मेरे साथ अंदर आया, में उसे सोफे पर बिठाकर उसके बगल में ही बैठी। "बोल देव.. कैसा चल रहा है तुम्हरे स्टडीज..." उसे देखते पूछी।

"बस काकी चल रहा है... सब ठीक ठाक है.." वह मेरी ओर देखता बोला और फिर पुछा "काकी आप कुछ उदास दिख रही है... तबियत तो ठीक है ..?"

"हाँ..हाँ.. तबियत को क्या होना है.. ठीक ही है.." मेरे स्वर में उदास झांकी। "बोलो क्या पियोगे.. चाय, या कॉफी या और कुछ..." मैं पूछी।

"और कुछ का मतलब क्या है काकी..?"

"अरे और क्या हो सकता है.. हॉर्लिक्स या बूस्ट, या शरबत..."

"ओह मैं कुछ और समझा..." वह मेरी ओर देखता बोला।

"तुम क्या समझे थे...?" मैं पूछी।

"वो...वो.. मै... खैर छोड़ो..."

"अरे बोल तो सही तू क्या समझा..."

"मैं समझा था की आप व्हिस्की या बियर की बात कर रहे है..." वह मेरे आँखों में देखता बोला।

"देव यह क्या बात कर रहा है रे तू... तू व्हिस्की भी पी रहा है क्या..?" मैं चाकित होकर पूछी।

"वह क्या है न काकी.. कभी कभी दोस्तों के साथ... आज कल तो यह आम बात है..वैसे काका घर में पिते है और आप भी कभी, कभी काका के साथ देते है.. यह मुझे मलूम है..."

"यह तुमसे किसने कहा है रे...सब झूट.."

"काकी मैं खुद अपनी आँखों से देखा हूँ..."

"कब...?"

कोई 15 दिन पहले शाम 7 बजे में घर आया था; दरवाजा खुला ही था.. तो मैं आपको शॉक देने के लिए धीरे से अंदर आया..तब देखा की आप और काका हॉल में ही ईसि सोफे पर अगल बगल बैठे है...आप काका से सटकर बैठे है...और काका अपना गिलास को आपके मुहं में देरहे थे... यह देख मैं खामोश बाहर चला गया..."

उसकी बात सुनकर मैं सकते में रह गयी। यह बात सच् है की मैं उनके साथ ड्रिंक्स में शामिल थी। वह दौरे से आकर बहुत थके रहते थे और एक आध् पेग लेते है और मुझे कंपनी देने को कहते है। मैं कुछ देर खामोश रही और फिर बोली तू बैठ मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ कहते मैं किचन की ओर चली।

"मैं भी चलता हु यहाँ अकेले बैठना पड़ता है.." कहते वह भी उठा और मेरे पीछे, पीछे आने लगा।

मैं स्टोव पर चाय का पानी चढादी और देव भी आकर मेरे पीछे खड़ा होगया। वह मेरे पीछे इतना समीप खड़ा था की उसकी उसका गर्म साँसे मेरे गर्दन पर पड रहे थे; और उसका फ्रंट मेरे नितम्बों को टच करने लगी। इतने में मैंने महसूस किया की मेरे नितम्बों पर कुछ सख्त सा चुभ रहा है। मैं एकदम सकते में आगयी। यह क्या.. यह लड़का क्या कर रहा है... अपना लिंग मेरे चूतड़ों पर सटा रहा है.." मैं सोची।

देव मुझे बहुत चाहता है यह बात मुझे मालूम है वह जब भी आता है तो वह बाते मेरेसे कर रहा होता पर उसकी निगाहें मेरे उभरते चूची पर या मेरी नितम्बों पर या फिर मेरे चिकने कमर पर भटकती है। यह बात मैंने बहुत पहले समझ गई थी, उसे मैं बच्चा समझ कर अनदेखा करती थी। लेकिन आज तो हद पार करदी साले ने काकी, काकी कहता है और.. अपना.. अपना लिंग मेरे गांड में दबाने लगा।

खैर हम दोनों चाय लेकर हॉल में आये और सोफे पर बैठ कर चाय पीने लगे। आज मैं साड़ी और लौ कट ब्लाउज पहनी थी। ज्यादा तर मैं सलवार सूट में रहती हूँ। ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है तो, मेरे सीने के उभार बहुत ही प्रोमिनेंटली (prominently) दिखने लगे। देव का नजर उस पर गिरी और वह चोरी चुपे उन्हें ही देखे जा रहा है।

"और बोल देव क्या बात है.. आज इधर किधर आगये..?" मैं पूछी।

"कुछ नहीं काकी, बस घर बैठे बोर होरहा था सोचा काकी के यहाँ चलते हैं.. बस इधर का रुख पकड़ा" वह बोला।

"अरे बोर होरहे होते तो अपने दोस्तों के पास जाता..या कोई सिनेमा...." में उसे ही देखती पूछी।

"नहीं काकी मुझे आपसे बात करने मे अच्छा लगता है..आज कल दोस्त तो बोर होने लगे... "

"आरी यह कैसी बातें कर रहा है रे तू... दोस्त भी कहीं बोर होते है क्या..?"

"हाँ काकी..सब के सब अपने GF के साथ इधर उधर घूमने चल देते है... वैसे भी मुझे आप बहुत अच्छे लगते हो.. इसी लिए..."

में उसके बातों पर हंसी और बोली.. "मैं और अच्छी... क्यों बातें बना रहा है देव..तम्हे मालूम भी है मेरी उम्र क्या है..मैं 35 साल की हूँ और जुडवा बच्चो की माँ हूँ... मेरे बच्चे 12 वर्ष के है और तुम कहते हो की..."

"लेकिन काकी आप तो तीस के भी दीखते नहीं..बच्चों की माँ तो कतई नहीं... कोई आपको देख के यही कहेगा की कोई 25, 26 बस..वैसे काकी जब मैं आया तो देखा की आप बहुत उदास थे..क्यों..? वैसे आपके बच्चे कहा है दिखे नहीं...?" वह पुछा।

"नहीं वैसी कोई बात नहि..देव.. तुझे भ्रम हुआ है.. बच्चे तो हॉस्टल में रहते हैं तुझे मालूम ही है... लेकिन आज कल बड़ेदिन (क्रिसमस) की छुट्टियां चल रहे है न तो आजकल.. बच्चे अपने नाना के यहाँ गए है।

"काकी आप झूट बोल रहे है.. मैंने आपको अपने आंसू पोंछते देखा है... बोलो न काकी... क्या मैं इतना पराया हूँ की आप मुझसे अपनी बात नहीं कहेंगे..."

"अरे नहीं बेटा तू मेरा बेटा है..ऐसी कोई बात नहीं है....तू अभी बच्चा है मेरी परेशानी तुम्हे कैसे बताऊं बस..." में फिर मेरे पति की बात सोचते उदास हुई।

"बताओ न काकी क्या बात है..?"

"अरे कुछ नहीं...बस तुम्हारे काकाजी की बात.."

"काकाजी की क्या बात..है काकी..?"

"बस येही की हमेषा टूर पर ही रहते है; घर और घर वालों का ख्याल ही नहीं रखते..घर पर रहते ही नहीं... न बाहर घूमना, घुमाना..न सिनेमा..न सैर सपाटा जिंदगी बोर होने लगी..बस यही सोच कर कभी कभी उदास हो जाति हुँ..."

"सच है काकी, वैसे काकी; काका की गैरहाजरी में आपका टाइम पास कैसे होता है..?" देव मेरे से पुछा।

"टाइम पास का क्या कभी किसी सहेली के पास चली जाती हूँ तो कभी सहेलियों को मेरे यहाँ बुला लेती हूँ..या फिर हप्ते में एक बार किसी न किसी सहेली के यहाँ किट्टी पार्टी चलता ही है... बस ऐसे ही वक्त गुजर जाता है..."

"लेकिन काकी.. काका की अनुपस्थिति आप को बहुत खलती होगी न..."

"हाँ वो तो है..."

"वैसे काकी...आपको रात को तो और ही ज्यादा तकलीफ होती होगी काकाजी जो नहि रहते... तब कैसे ..."

"कैसे क्या बात? वैसे ही हर रोज की तरह उनकी याद में गुजार लेती हूँ.. अब तो यह आदत सी बन गयी"

"आप को बहुत तकलीफ (pain) महसूस होता होगा.. काका की एब्सेंस" (Absense)

"हाँ वह तो है..आखिर पति जो ठहरे..."

"काकी आप बुरा न माने तो मैं कुछ कहना चाहता हूँ..." देव सीधा मेरे आँखों में देखते बोला।

"अरे बोलना अभी तो कही थी की तू मेरा बेटा है; बेटे की बात का भी कोई माँ बुरा मानती है क्या?

"काकी... काकी..." वह हकला रहा था।

"देव यह क्या काकी, काकी लगा रखा है..बोलना क्या बात है...?"

"कुछ नहीं काकी अगर आप चाहे तो मैं काकाजी के अब्सेंस को दूर कर सकता हूँ" उसने कहा और मुझे ही देखने लगा।

मेरी समझ में उसकी बात कुछ कुछ आयी लेकिन फिर से पक्का करने के लिए बोली "देव..यह क्या कह रहाहै रे तू.... तू वही कह रहा है न जो मैं समझ रही हूँ..." मैं उससे पूछि।

"आप क्या समझ रहे है.. मुझे नहीं मालूम; लेकिन में यह कह रहा हूँ की काकाजी से आप जो मिस कर रहे है उसकी पूर्ती मैं पूरा कर सकता हूँ..." वह एकदम निढर होकर मुझसे बोला। सीधा सीधा मुझे चोदने की बात कर रहा है...मेरे जेठ जी का बेटा...जो 20 साल का है; मेरे से पंद्रह साल छोटा है वह सीधा सीधा मेंरे से कह रहा है की वह मुझे चोदकर संतृप्त कर सकता है।

"देव तू पागल होगया रे.. कोई अपनी काकी के बारे में ऐस सोचता है क्या बला। तू अभी बच्चा है..." में बोल ही रही थी की उसने मुझे टोका और कहा....

"हाँ... काकी.. मैं पागल हुआ हूँ.. अब नहीं.. जबसे मैं 16 साल का हूँ.. तब से.. मुझे दिन रात आप और आपकी खूबसूरत चेहरा ही घुमते रहता है... किताब खोलूं तो आप, मैग खोलूं तो आप, खेलखुद में मन नहीं लगता... बस दिन रात आपकी नाम जपता रहता हूँ... इसी लिए तो कोई लड़की मुझे जचती ही नहीं..." वह एक टक बोला।

में उसे अचम्भे से देख रहीथी। 'यह कल का छोकरा येह क्या कह रहा है..?' मैं सोच रही थी।

"सच काकी... में आपके बिना पागल हो जावूंगा... प्लीज.. काकी एकबार मान जाओ... मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा.. तुम्हरा गुलाम बनूंगा.." वह बोले जा रहा था। मैं क्या बोलूं या क्या करूँ समझ में नहीं आरहा था।

वह फिरसे बोलने लगा... "काकी तुम्हरी कसम.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ... जबसे मैंने होश संभाले मैं आपका नाम से मूठ मार रहा हूँ... तुम्हारा सामने मुझे कोई लड़की अच्छी दिखती ही नहीं.. वैसे मेरे कॉलेज में आधे डज़ेन से ज्यादा लड़किया मुझपर मरती है.. मेरे से एक हलो सुनने को तरसते है.. और क्या तुम्हे मालूम..वह क्या कहते है..."साला...देव..बहुत घमंडी है.. अपने आप को बहुत हैंडसम समझता है... और कुछ लड़कियां तो मुझे नपुंसक भी समझने लगी। यह देखो क्या मैं न...न... नपुंसक हूँ...?" कहते उसने अपना शर्ट उठाया।

मैं उधर देखि। उसके बलिष्ट जाँघों के बीच का उभार मुझे क्लियर दिख रही है...

उस उभार को देखते ही मैं आपा खो गयी। वैसे मेरे पाठकों को मालूम है की मैं कितना चुड़क्कड़ औरत हूँ। जवानी में मेरे कदम बहके तो फिर सुधरे ही नहीं, लंड चूत और चुदाई का ख्याल आते ही मैं अपने आपको भूल जाती हूँ।

अब भी वैसे ही हुआ। देव की जांघों के बीच की उभार देखते है मेरे मुहं में पानी उभर आया.. "क्या देव तू सच में मुझसे इतना प्यार करता है..?" कहते मैं अपना राइट हैंड से उसके उभार पर रखी, और धीरे से दबायी।

"हाँ काकी आप कहो तो मैं जान दे दूँगा.." वह जोश में बोला।

"अरे पगले.. सच् में तू पागल है रे.. जान देदेगा तो तमन्ना कैसे पूरी होगी... हाँ.. तमन्ना पूरा करने के लिए जुगाड़ करने पड़ते है.." में बोली और उसे देख कर हंसी।

"बोलो काकी क्या करूँ...?"

"तू कुछ मत कर..अब सब कुछ मैं कर लेती हूँ.. आखिर तू मेरा जेठजी का बेटा है...मेरा लाडला है... मेरे लिये जान दे सकता है तो काकी का भी कुछ फ़र्ज़ बनता हैं की बेटे के लिए कुछ करें.. है न...?"

देव मुझे बिना पलके झपकाए देख रहा था।

"बोल तुझे क्या चाहिये...?" मैं मेरी मुट्ठी में उभरते उसके लंड को दबाती बोली। मेरी साडी की पल्लू कंधे से गिरी है। वह मेरी चूचियों की ओर भूखी नजरों से देख ने लगा।

"काकी का मम्मे अच्छे है न..?" मैं पूछी, और वह 'हाँ' में सर हिलाया।

मैं अपने हाथ से ब्लाउज के बटन खोलने लगी। पहला हुक, फिर दूसरा..और फिर तीसरा.. एक एक करते मेरे हुक्स खुलने लगे, मैं अंदर ब्रा नहीं पहनी थी। जिस से मेरे नंगे गोरे उभार उस जवान लड़के के सामने! मैं देखि की मेरे चूचियों का उभार देखते ही उसके पैंट के अंदर हलचल बढ़ गयी। वह वहां टुनकियाँ मारने लगी।

देव मेरी चूचियों को मंत्रमुग्ध हो कर देख रहा था।

"क्यों देव.. कैसे है काकी के मम्मे...?" में उस से पूछी और उसका हाथ लेकर मेरी एक चूची पर रखी।

"आअह्ह। ... काकी कितने अच्छे है आपके यह उफ़... कितना घटीला और मुलायम भी है..." कहते उसने मेरी चूची को अपने मुहं में लेकर चूसने लगा।

"ooohhh ह...देव.. उम्म्म..." कहते में उसके सर को मेरे सीने पर दबायी। मेरी मुट्ठी में उसका उछाल खुद कर रही है। मैं उसका पैंट ज़िप खोल कर उसे बाहर निकाली तो ढंग रह गयी। बापरे.. यह क्या इस छोकरे का इतना लम्बा और मोटा है.." मैं सोची।

तब तक देव ने मेरी दूसरी चूची को पकड़ कर दबाने लगा और निप्पल को पिंच करने लगा.. मेरे सारे शरीर में एक झूर झूरी सि हुयी।

"अरे देव यह क्याहै रे तुम्हारा इतना बड़ा और मोटा है" कहते उसके लंड को ऊपर निचे करने लगी। जैसे ही मैने उसे निचे खींची उसका चमड़ा फिसलकर उसका गुलाबी सुपाड़ा मेरी आँखों के सामने था। उसे देखते ही मेरेमुहं में पानी भर आया।

"काकी तुम तो ऐसे बोल रहे हो की तुमने पहली बार इतना बड़ा लंड देखे हैं... काका का भीतो इतना ही बड़ा है.." वह बोला।

"देखि है लेकिन एक 20 साल के बच्चे का इतना बड़ा होगा मुझे नहीं मालूम.. वैसे तुम्हे कैसे मालूम है की काका का इतना बड़ा है..?" में उसके चढ़ पर हाथ चलती पूछी।

"एकबार काका पानी नहाते समय अनजाने में में बाथरूम में घुसा तो काका जी अपना हाथ से हिला रहे थे" वह अब मेरे गलों को और होंठों को चूमता बोला।

जैसे जैसे वह मेरे गलों को और मेरे होंठों को चूम रहा था मेरे में आग बढ़ती गयी। मेरे बुर में खुजली होने लगी और साथ ही साथ रिसने लगी। में भी उस से लिपट कर मेरे मम्मे उसकी छाती पर दबाते रगड़ रही थी।

"काकी..." वह बुलाया...

"voonn .... क्या है रे..." में बोली।

"कमरे में चले..." वह पुछा। हम अभी तक भी हॉल में ही सोफे पर बैठे थे।

"चलो..." कहती मैं सोफे पर से उतरी। जैसे ही मैं सोफे से उतरी मेरी साडी और पेटीकोट मेरे पैरों पर गिरी। देव ने कब मेरी साडी के फ्रिल्स खींचे और पेटीकोट का नाडा खींचा मुझे पता ही नहीं चला। मैं अब उसके सामने सिर्फ पैंटी और हुक्स खुले ब्लाउज में थी। जैसे ही मैं कमरे की और कदम बढाई "काकी वैसे नहीं..." देव बोला।

में पीछे पलट कर उसे देखि। उसने मुझे समीप खींच मेरे दोनों हथों को अपने गले में डाला और बोला "काकी तुम्हारे टाँगें मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेटो..."

"देव मैं गिर जावूंगी रे..." मैं ढ़रते बोली।

"नहीं काकी.. मैं हूँ न..." कहते वह मेरे कूल्हों पर अपने हाथ रख मुझे ऊपर उठाया। मैं उचक कर उसके कमर के गिर्द पैर लपेटी। जैसे ही मेरे पैर उसके गिर्द लिपटी पैंटीके अंदर मेरी बुरके फांके खुली और उसका सुपाड़ा मेरी फांकों के बीच रगड़ रही थी। 'आह... ऐसे अनोखा तारीख तो मुझे मालूम हि नहीं थी'। उसके सुपाडे का रगड़ एक अनोखा मजा देने लगी।

देव वैसे ही मुझे उठा कर मेरे कमरे में पहुंचा और मुझे एक गुड़िया ककी तरह धीरे से बेड पर लिटाया। में आंखे मूँद कर उसे मेरे ऊपर अनेका इंतज़ार कर रही थी।

जब वह दो, तीन मिनिट तक भी मेरे ऊपर नहीं आया तो मैं आंखे खोली। वह बिना अपने पलके झपकाए मुझे ही देख रहा था।

'क्या है रे...' मैंने अपने आंखे उछाली।

"तुम कितने सुन्दर हो काकी.. सच तुम एकदम अनुष्का शेट्टी जैसे हो" वह मुझे घूरता बोला।

"चुप रे.. मैं कहाँ.. और वह फिल्म की हेरोइन कहाँ... मैं उतनी सुन्दर नहिं हूँ" मैं छेड़ते बोली।

वह सच में चिढ गया और मेरे हाथ पकड़ कर मुझे आदम कद शीशे के समाने ठहराया और बोला.. "देखो कितनी सुन्दर हो..."

"मैं क्या देखूं... तुम बताओ.. मैं किधर से सुन्दर हूँ..." मैं बोली। उसे छेड़ने में मुझे आनंद आ रहा था। मेरे होंठो पर एक हलकी सी मुस्कान थी। मुझे मालूम है मैं सुन्दर हूँ.. लेकिन मैं उसके मुहं से सुनना चाहती थी।

"ठीक है.. मैं ही बोलता हूँ.. सुनो..." कह कर वह कुछ देर रुका और फिर बोलने लगा........

"काकी तुम्हारे यह घने काले बाल जो आपके मितंबों को छूते है.. यह एक काली घटा जैसे नहीं है क्या? आज कल किस लड़की के पास इतनी लम्बे और सुन्दर बाल है.. बोलो....." वह एक क्षण रुका और फिर बोलने लगा.. "यह बड़ी बड़ी चमकदार आंखे... उसके ऊपर घने eye brows, सतुवा नाक, चिकने गाल, पतले गुलाबी होंठ, और फिर तुम्हारी टोढ़ी (chin), नीचे लम्बी गर्दन, और नीचे.. उफ्फ्फ.. इतनी सुन्दर, उभरी चूची... देखो तो तुम्हारी घुंडी बिलकुल हनी कलर (honey color) में.... सपाट बेदाग tummy ..." वह जैसा जैसा बोल रहा हटा..वैसे वैसे उसके हाथ मेरे उस अंगों को छू रहा था।

उसके ऐसे हलके से छूना.... मेरे में झुर झूरी पैदा कर रही थी। वह फिर से शुरू हुआ... "काकी तुम्हारी यह गहरी खाई जैसी नाभि... फिर ढलान लेती तुम्हारी पेडू... वह आगे चल कर दो फाकों में बट कर तुम्हारी स्वर्ग द्वार की लालिमा..." उसने मेरे बुर के फांकों को खोल कर अंदर की लालिमा को दिखाते बोला।

अब उसके हाथ मेरे पीठ पर रेंगने लगी।

"यह देखो कितना मुलायम् पीठ है... और निचे तुम्हारी उभार लेती मांसल, गद्देदार कूल्हे.. उसके बीच की दरार.. बस यह देख कर ही किसी 80 साल का बूढ़े का भी खड़ा होजाये.. फिर जवान लड़के उसे देखते ही झड़ जायेंगे..." कहता वह अपना डंडा मेरी गांड की दरार में रगड़ने लगा।

उसकी ऐस वर्णन से मैं उस पर निहाल हो गयी और मैं झड़ने भी लगी। देव ने मुझे मेरी सुंदरता का वर्णन कर कर ही मुझे मेरे क्लाइमेक्स (Climax) पहुंचाकर झड़ा दिया।

"देव...मेरा बेटा..मेरे राजा.. तू अपनी काकी को कितना प्यार करता है रे.. मुझे नहीं मालूम था की तू मेरा इतना आराधक है। मेरे लाल... मैं तुम्हारी हूँ.. अब तू जब चाहे और जैसा चाहे यह काकी तुम्हारी है..." कहते मैं पीछे पलटी अपने घुटनों पर बैठ कर उसके लंड को मुट्ठी में दबाकर प्यार करने लगी।

वह तो पूरा अकड़ कर एक इस्पात की चढ़ बन गयी। आगे का चमड़ा पीछे को फिसल कर उसका गुलाबी नॉब लाइट की रौशनी में चमक रही है। मैं एक बार मेरी जीभ उस नोब के गिर्द घुमाई।

"aaaaahhhhhh काकी..." वह सीत्कार करा।

"देव क्या हुआ मेरे राजा..." में पूछी और फिर उसे मुहं में लेकर चूसते उसके गोलियों से खिलवाड़ करने लगी। फिर उसका पूरा लावड़ा अपने मुहं में लेकर चूसने लगी। उसके लवडे से एक मदभरी महक आ रही थी जो मुझे पागल बना रही थी। कुछ देर उसके डंडे को चूसने के बाद मैं उसके वजनी गोलियों को एक एक करके मरे मुहं में लेका चूसने लगी।

"आह... काकी..ओह्ह ह्ह्ह... कितना गर्म है.. तुम्हारा, एक गर्म भट्टी की तरह... काकी..और अंदर लेलो काकी.. चूसो... और अंदर तक चूसो काकी... मममम..." और वह मेरी mouth fuck करने लगा... और ऊपर मेरे स्तनों को पकड़ कर मसल रहा था। स्तन की घुंडियों को पिंच कर रहा था। जैसे जैसे मैं मेरे मुहं को उसके लंड पर चला रही थी.. वैसे वैसे वह मेरे मुहं को चोद रहा था... एक बार इतना जोर से अंदर तक पेला की उसके औज़ार मेरे हलक में ठोकर मारने लगी।

"हहा.. जरा धीरे मेरे लाल इतना जोर से नहीं.. काकी का मुहं दर्द हो रहा यही.. आह..." मैं बोली।

"क्या करूँ काकी.. तुम्हारा इतना गर्म है और ऊपर से तुम्हारा चूसने का अंदाज.. तो उफ़ बोलो मत... आअह्ह्ह... काकी वैसे ही मेरे बाल्स को सहलाओ काकी...ममम.. काकी... काकी..आआ.. अब मेरी निकलने वाली है......आअह्ह्ह" वह कहा और मेरे सर को अपने से जोरसे दबाया।

में उसके वृषणों को सहलाते दुसरा हाथ उसके कमर के गिर्द लपेटकर मेरे मुहं को आगे पीछे चला रही थी।

"देव.. मई डियर.. छोड़दे मेरे मुहं में अपना गर्म मलाई.. जरा काकी को चखने दे अपने मलाई का स्वाद.. छोड़..अंदर.. छोड़.." कहती में और जोरसे उसके लंड पर मुहं चला रही थी। देव आठ दस दकके मेरे मुहं में मारा और "आअह्ह्ह" कहता झड़ने लगा। उसका घाड़ा, गर्म वीर्य मेरे मुहं में गिरने लगी.. जिसका स्वाद कुछ नमकीन कुछ कसैलापन का मिला झूला था। वह मेरे मुहं को इतना भरा की मैं पूरा एकदम निगल न पायी; कुछ मेरे मुहं के कोरों से निकला कर मेरे स्तनों पर भी टपके।

देखते ही देखते उसके मेरे मुहं में नरम पड़ने लगी और कुछ सेकंड बाद मैं उसे बहार निकली। वह पूरा सिकुड़ कर.. छोटा बनगया...

"वाह... देव तुम्हारा तो बहुत ही स्वादिस्ट है मेरे राजा" कहते मैं उसे खींच कर मेरे सीने से लगायी और उसके मुहं को चूमने लगी। दोनों भी थक चुके थे। दोनों की साँसे धौंकनी की तरह चलने लगी।

++++++++++

रत के आठ बजे थे। में खाना बनाने उठी तो वह बोला.. अब क्या खाना बनती हो काकी.. में बाहर से कुछ लता हूँ और फिर एक अद्दा विस्की ले आता हूँ" वह बोला और पैंट पहन ने लगा।

"देव अब क्यों बहार जाता रे.. घर में बियर है चलेगा क्या...?" मैं उसे पूछी।

"चलेगा काकी..."

"तो ऑनलाइन खाना आर्डर कर.. चल हाल में नैठते है..." मैं कही और मेरी साड़ी लपेटी। हम दोनों हाल में आये और वहां निचे कारपेट पर ही बैठे। मैं दो बियर बोतल दो गिलास और कुछ नमकीन ले आयी। एक बियर खोलकर दोनों ग्लासों में डाली एक उसे दी और दूसरा मैं ली।

"देव चियर्स.." मैं मेरा गिलास उसके गिलास से टकराती बोली।

"चियर्स काकी की मस्ति भरी चूत के लिए.." वह बोला और गिलास टकराया। दोनों बियर सिप करने लगे। दो तीन चुस्की लेने के बाद वह बोला। ..

"काकी...." वह मुझे बुलाया।

"क्या है मेरे राजा..."

"काकी आपको याद है जब मैं छोटा था तो आप मुझे अपने गोद में बैठकर खाना खिलाती थी...."

"हाँ.. तो...?"

"आज बी वैसे ही...." वह रुक गया।

"तू चाहता है की आज भी मैं तम्हे गोद में बिठाकर बियर पिलावूं ...?" मैं पूछी।

वह हिचकते अपना सर हिलाया।

मेरे सारे शरीर में एक अनोखी झुर झूरी (tingle) होने लगी, एक बीस साल के बच्चे को गोद में बिठाने का अनुभव लेना चाहती थी। मैं उसके आँखों में देखि.. और बोली.. "चल आजा..." और मेरी गोद तप तपाई।

वह पूछने को पुछा लेकिन गोद में आनके लिए हीच किचा रहा था मैं उसे अपने ऊपर खींची।

उसके कमर के गिर्द मेरा एक हाथ लपेटी और उसके मुहं के पास बियर का गिलास लेगाई। वह मुझे देखता शर्मा रहा था और धीरे से बियर चूसक रहा था। मेरा हाथ उसके जांघों के बीच गयी तो पाया की उसक फिर से तन ने लगा है। वह मेरे स्तनों का दबाव अपने पीठ पर पाकर मजा ले रहा था। मैं, मेंरे वक्ष को उसके पीठ पर दबाती मस्ती करने लगी।

दोनों ने अपने गिलास खली किये। मैं दूसरी बोतल खोली और फिरसे गिलास भरी।

"काकी ....ड्रिंक का स्पेशल मजा लेना चाहोगी...?" वह पुछा।

"स्पेशल मजा? यह कैसा मजा है रे...?" मैं उत्सुकुता वश पूछी

वह उठकर सोफे पर बैठा और अपने गिलास का बियर में अपना तन रहे लंड को डुबाया और मुझसे कहा.."काकी अब इसे चूसो और चाटो.."

मैं झट आगे बढ़ कर उसके डंडे को अपने मुहं में ली। वह एक एक करके बियर के बूँद अपने लवडे पर दाल रहा था और में उसे मजे ले लेकर चूस रही थी। यह तो एक अनोखा तारीखा है... फिर उसने कुछ बूंदे अपने निप्पल पर डाली और मुझे बोला "काकी चाटो" में सोफे पर आयी पूरा उसके ऊपर झुक कर उसके छाती और निप्पल को चाटने और दांतों से हल्का सा काटने लगी।

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