मेरी नौकरानी -1

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एक बासठ वर्ष का आदमी से उसकी नौकरनी उससे चुदने के लिए लालियत
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मेरी नौकरानी -1

पीएन अभिराम

एक बासठ वर्ष का आदमी से उसकी नौकरनी उससे चुदने के लिए लालियत थी।

दोस्तों मै हूँ रामवर्मा, 62 वर्ष, एक सार्वजानिक क्षेत्र में प्रभंध के पदपर काम कर, अब रिटायर हो चूका हूँ। मै विदुर हूँ, मेरी पत्नी दस वर्ष पहले कैंसर के कारण गुजर चुकी है। मेरी तीन संतान हैं 2 बेटियां और एक बेटा। एक बेटा और एक बेटी इसी शहर में अन्य भाग में रहते है जब कि एक बेटी पुणे में रहती है। मेरी जाती घर में मै अकेला ही रहता हूँ। वैसे बच्चे मुझे उनके यहाँ आकर रहने को कहते लेकिन मै स्वतंत्र रहना चाहता हूँ ... so I am in my house. वैसे मै कहचुका हूँ की मै बासठ का हं फिर भी फिट हूँ। हर रोज दो से तीन km वाकिंग करता हूँ। दिन में कोई किताब या पत्रिकाएं पढ़ता हूँ और शाम को एक senior citizen क्लब में चले जाता वहां मित्रों के साथ गपशप के साथ, साथ ताश या चैस य पोकर जैसे खेल खेलता हूँ।

मै अपना खाना खुद बनालेता हूँ, कभी कभी बाहर से ऑर्डर करता हूँ। सिर्फ घर का झाड़ू पोंछा और कुछ बर्तन साफ करनेके लिए एक कामवाली बाई अति है और वह अपना काम करके चालि जाति है।

कोई छह महीने पहले मेरी कामवाली बाई अपने गांव चली गयी और मुझे दूसरी कामवाली को रखना पड़ा। वह कोई 35 वर्ष की थी और दिखने में अच्छी थी और संवलि थी। वह रेगुलर आकार अपना काम करके जाती है। लेकिन वह बहुत बातूनी थी। काम करते करते वह मुझे तरह तरह के प्रश्न पूछती थी; जैसे, मेरे बच्चे कहाँ रहते हैं, मै क्या काम करता था, मेरी पत्नी कब गुजर चुकी है वगैरा.. वगैरा।

लेकिन एक महीना पहले एक दिन कुछ ऐसा हुआ की मै कुछ और सोचने पर मजबूर हुआ। रोज दस बजे के समय मुझे कॉफ़ी या चाय पीने की आदत लग चुकी थी। यह आदत मुझे मेरे ऑफिस से ही लगीहै। मै बोलचुका हूँ की मै प्रबंधक था और मेरे अपना केबिन और एक पैंट्री भी थी। दस के अस पास मेरा अटेंडेंट मुझे चाय बनाकर देता था।

उस दिन मै कुछ सुस्त था और अपना बिस्तर पर अधलेटा कोई किताब पढ़रहा था, और नौकरनी आकर पहले बर्तन साफ करि और झाड़ू देने लगी।

"सुमित्रा... तुम्हे कोई आपत्ति न हो तो एक कप चाय बनादोगी..?" पुछा; उसका नाम सूमित्रा है।

"आपत्ति कैसी साहब.. अभी बनादेति हूँ..." वह बोली और दस मिनिट बाद चाय का मग मुझे थमादि।

"तुमने अपने लिए बनाया की नहीं?" मै फिरसे पुछा।

तो वह कहीं 'हाँ'। फिर वह अपने काम में जुट गयी। जब वह मेरे कमरे को झाड़ू देरही थी तो जब वह झुकी तो मुझे उसके बूब्स के झलक मिले। उसके वक्ष ज्यादा बड़े नहीं थे वैसे छोटे भी नहीं थे। वह अंदर ब्रा या बॉडीस नहीं पहनी और मुझे उसकी वजनसे लटकती चूचीकी झलक दिख यही थी। उन गेंदो को देख कर मेरा मन विचलित हुआ। बहुत दिन हुआ मुझे सेक्स करके... दिनों क्या सालों गुजर गए। मेरी पत्नी के मरने से पहले सी हम सेक्स से दूर थे। यूं कहो तो मुझे सेक्स करके लगभग चौदह पंद्रह वर्ष गुजर गए। इन वर्षोंमें मुझे कभी सेक्स का खायल ही नहीं आया। अब इतने वर्षों बाद मेरा मन डग मगाया।

उस दिन के बादसे तो मै हर रोज चोरी छुपे उसकी चूचियों और उसकी घाटी को नजारा करता था उसे देख कर एक अजीब सी सुखद महसूस होती थी।

मै हर रोज रातको बड़ी आराम की नींद सोता था। लेकिन अब मुझे मेरी नौकरानी के बूब्स और क्लेव्ज मेरे आँखों के सामने घूमने लगा, और सोचने लगा की कैसी होगी उसकी चोदने में। कमाल की बात यह है की मेरा लंड जो अकड़ना भूल हि गया था अब फिरसे अकडने लगा। जब मै अपने अकड़े लंड को सहलता हूँ तो एक सुर सूरी सी होने लगी। मेरा लवड़ा कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है.. (Average) सधारण सी लम्बाई है। लग भाग छह इंच का होगा लेकिन मोटापा अच्छासा है। जब मै मेरी पत्नी को लेता था तो वह दर्द के मारे तिल मिलाने लगती थी।

15 दिन और गुजर गए। जैसे जैसे दिन गुजरते गाये मेरी हालत ख़राब होने लगी। मै हर रोज सुमित्रा के दुद्दुओं का नजारा करता था। मै अपने आप में निर्णय किया की मेरी नौकरानी सुमित्रा को किसी भी हाल में चोदना है। वर्षों बाद उस सुख पानेकी तमन्ना बढ़ते ही जा रही थी। लेकिन आगे कैसे बड़े समझ में नहीं आरहा था। वैसे ही चार महीने और गुजर गए। एक दिन वह झाड़ू देकर पोंछा कर रही थी। मै हर रोज की तरह अपने बिस्तर पर अधलेटा था और वह अपने घुटनों पर आकर पोंछा करते करते मेरे पलंग के निचे पोंछा करने झुकी जो नजारा मुझे दिखी मै पागल सा होगया। उसके दोनों वजनी चूचिया झुक्ने की वजह से लटक रही थी; तो मेरेसे संभाला आया और मेरे मुहंसे निकला "वाह... क्या चूची है...?" मै अपने आप में कहने की जगह ऊँची आवाज में कहदिया।

मेरी बात पर वह चुहंक उठी और पूछी.. "आप क्या कह रहे थे साब ..."

उसकि यह प्रश्न सुनते ही मै गभरा गया।

"नहीं.. कुछ नहीं सुमित्रा..." कहते उस दिन मै उसे समझाया।

एक ओर मेरी रेप्युटेशन (reputation) का सवाल; तो दूसरी ओर उसकी मदभरी मस्तियों का नजारा... मै असमंजस में रहने लगा। एक और हप्ता गुजर गया।

उस दिन वह पोंछा कर रही थी तो फिरसे मैं आंखे फाड़ फाडकर उसे देख रहा था। मै सारी मर्यादाओं को भूलकर उसके ब्लाउज से लटकती चूचियों को घूर रहा था।

"क्यों बाबू उतने पसंद आये क्या ऐसा घूर घूर के देख रहे हो...?" वह पूछी। लेकिन वह नाराज नहीं थी। उपर से मुस्कुरा रहि थी। उसकी बात सुनकर मै अचम्भे से उसे ही देख रहा था।

"क्या हुआ साब.. ऐसा क्या देख रहे हो... अगर उतना पसंद है तो बोलो..."

मै अपने सूख आये होंठों पर जीभ फेर रहा था।

वह हँसते हुए मेरे बिस्तर पर बैठी और और मुझे रिझाते, एक एक करके अपने ब्लाउज के हुक्स खोलने लगी। मै विस्फारित आंखोंसे उसे ही देख रहा था। दो या तीन मिनिट में सुमित्रा ने अपनि ब्लाउज के सारे हुक्स खोलकर ब्लाउज को दोनों ओर करदी। वह सांवली होने पर भी उसके चूहियँ गोरे ही थे। शायद हमेश ब्लाउज खैद रहनेकी वजह से। मै अपने सूख आयी गलेको तर करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन गले मे saliva भी नहीं है।

"क्यों साब पसन्द आया....?" वह मंद मुस्कान के साथ पूछी।

"बहुत..." अनजाने में ही मेरे मुहं से निकला...

"तो देख क्या रहे हो... पकड़ो इसे.. खेलो..." कहते उसने मेरा एक हाथ पकड़कर अपने चूची पर लगायी।

उसकी चूचि की त्वचा इतनी मुलयम थि की जैसे कोई साटन हो। उस नरमी को एन्जॉय करते उसे जोर से दबाया।

"स्स्सस्स्स्स...हहहहहह साहब इतना जोर से नहीं... आराम से खेलो..." कही और वह खुद मेरी जांघों में हाथ डाली।उस समय मै बरमूडा और ऊपर टी शर्ट में था। बरमूडा के अंदर कच्ची नहीं थी। उसके हाथ मेरे उफान लेरहे लंड को पकड़कर दबायी।

"आअह्ह्ह्ह...." मेरे मुहाँसे आवाज निकली।

"क्या हुआ साब..?" वह अपना काम जारी रखते पूछी। .

"कुछ नहीं तुम अपना काम करते रहो..." मै बोला मेरे आंखे ख़ुशी से बंद होने लगे।

वह कुछ देर मेरे लंड से खेलते रही और फिर मेरे बरमूडा उतारने लगी। मै भी उसे सहयोग किया। अब मै कमर के निचे नग्न था। वहां झंठों का घना जंगल था। वहां के कुछ झांटे भूरे भी थे।

आखिर मै 62 का था।

"वह मेरी लम्बाई को मुट्टीमे बांधते बोली "यह क्या साब..आपने तो यहाँ इतना घना जंगल उगाके रखे हैं..." उसे भींचती बोली।

"और क्या करता अब उसकी देखबाल करने वला कौन है... बस वैसे ही छोड़ दिया" मैं उसकी दुद्दुओं से खेलते बोला।

"अगर आप कहे तो अबसे मै इसका देखभाल करूंगी साब..." सुमित्रा मेरे लंड को ऐसे ही ऐंठते बोली।

"इसमें पूछने कि क्या बात है.. अगर तुम इस नालायक का देखबाल करना ही चाहो तो करलो... रोक किसने..."

"अरे क्यों साब इस नन्हे को नालायक कह रहे है.. देखो तो देखो तो कितना भोला है...." उसकी इस बात पर मै कुछ बोला नहीं तो वह पूछी..: "साब आपका दाडी बनाने वला ब्लेड किधर है?" वह पूछी

"बाथरूम में" मेरे ऐसे कहते ही वह गयी और मेरा रेजर लेकर आई और फिर उसने मेरी झांटों को साफ करदी। पूरा साफ करने के बाद उसे गीले कपडे से पूंछती बोली... "देखो साब अब आपका नालायक कैसा चमक रहा है..."

"वाह तुमने तो कमाल करदिया सुमित्रा.. वैसे अब तुम्हारा नगीना का दर्शन करादो..." मै उसे देखते बोला।

"अभी लो साब, जब मै आपके लिंग का दर्शन कर ही चूका हूँ तो अब आप को भगवती का दर्शन में क्या रोक होगी...यह लो..." कहती सुमित्रा ने " पहले उसने अपने कंधेसे साड़ी निकाली और फिर साड़ी के फ्रिल्स एक झटके में निकाल दी। साड़ी उसके पैरों के पास पड़ी है। अब वह सिर्फ पेटीकोट और हुक्स खुले ब्लाउज में ठाहरी थी। उसके हर मूव के साथ उसकी चूचियां भी हिलने लगे। फिर उसने कमर के यहांसे पेटीकोट के अंदर हाथ डाली, वह हाथ रेंगते रेंगते उसकी बुर तक पहुंची। उसके हाथ का हर मूव मुझे दिख रही थी।

वह मुझे देखते अपने दांतों को काटते अपने उंगलीयों को अपने चूत पर चला रहीथी। उसके हाथों के हरकत से मालूम हो रहाथा की वह अपनी योनि में ऊँगली कर रही है। उसका हाथ आगे पीछे होने लगी। उसे ऐसे करते देख तो मेरी जान निकली जा रही है। दो तीन बार अंदर बहार ऊँगली कर वह अपना हाथ बाहर खींची। उसकी बीच वाली ऊँगली चूत रस से चिपुड़ा था। वह देखते ही मेरे मुहं में पानी आगया और मै उसे निगलने लगा। वह ऊँगली दिखाते मुझे आँखों से ही पूछ रही थी की "चाहिए क्या...?' मै हाँ में सर हिलाया तो आगे आयी और अपना ऊँगली मेरे नाक के पस रखी। मै उसे जोरसे सूंघा... 'आआह्ह्ह्हह... क्या मस्त गंध थी.. जमाना होगया ऐसी गंध को सूंघ कर.. मै उस हाथ को जल्दीसे पकड़ा और अपने मुहं में लिया नमकीन के साथ एक अजीब सी टेस्ट (taste) थी। उसे सूंघकर उसकी ऊँगली को चाटते ही मुझमे नशा चढ़ने लगि।

अब मेरे से रहा लगाया; एकझटके में मै उसकी पेटीकोट का नाडा खींचा.. "wwaaaaaaaaavvvvv ... क्या नजारा था। उसकी चूत खूब फूली फूली थी और पूरा सफाचट थी। एक भी बाल नहीं थी उसके चूत और आस पास। उस पर अपना हथेली फेरता कहा... "सुमित्रा लगता है तुमने आज ही साफ करि हो..."

"हाँ साब सवेरे नहाते समय निकाली थी।

"क्या मेरे लिये निकाली थी...?"

"आपके लिए नहीं तो और किसके लिए..."

"थैंक्स" कहके मै उसे उसके पीठ के बल लिटाया और उसकी नंगी जांघों के बीच आया। वह भी अपने जंघे जितना होसके उठा खोल दी। जैसे उसके जांघें फैली उसकी फंक भी खुल गए। मेरा मुहं में पानी से लबालब भरीथी। मै उसकी खूब चुदी चूतको अपने मुहंमे लिय और चुभलाने लगा। "स्स्सस्स्स्स...ससाहेब..." वह तिल मिला उठी और उठने की कोशिश कर रहीथी।

मै उसे टाइट पकड़ा और लगा उसकी बुर को चाटने।

"आमंममआयए...." वह चीखी और मेरे सिर को वहां दाबाई। मै उसे लपालप चाटने लगा और मेरा जीभ अंदर घूसेड दिया। कितने सालों बाद मुझे एक चूत चाटने को मिली। मै स्वाद ले लेकर अंदर तक जीभ चलाता चाट रहा था कभी कभी उसके भगनासे को (Clit) होंठों के बीच लेकर चुभला रहा था। जैसी ही भगनासा मेरे मुहंमे यी वह अम्मा..अम्मा.. करते फुदकने लगी। एक मशीन की भांति उसकी कमर ऊपर निचे हो रही थी। मै उसकी फांकों को, सारी चूत की बाहरी हिसे को चाट चाट कर तर कर रहा था।

वह मेरे लिए अपना कमर उछालते बोली "साब.. मुझे भी आपका डंडा दीजिये..मेरी मुहं में भी खूजली होरही है..." मै वैसे ही उसके ऊपरसे उठे बिना ही मेरि कमर को घुमाया और उसके मुहं के पास मेरा खूब अकड़ी लंड थी।

वह उसे अपने मुट्ठी में बांधकर "आअह्ह्ह.. क्या मस्त है साब आपका..." कही और मेरे लंड के टोपे को चाटने लगी। सारे टोपे को चाटती, कभी कभी नन्ही सी चेध में जीभ से खुरेद रही थी। और वह हाथ में मेरा आंड (Testis) लेकर उस से खिलवाड़ करने लागि।

मै कोई 6 या 8 मिनिट उसके चूत को चाटा होगा वह बोली..."साब अब आजाईये ... अब मेरेसे रहा नहीं जाता ..."

"इतनी जल्दी...?" मैने कहा। वैसे मुझे भी अब रोक के रखना कठिन हो रहा था।

"हां साब.. अब बर्दस्त नहीं होता.. वह क्या लंड है.. एक दम मस्त ...."

"इस बूढ़े का पसंद आया तुम्हे..."

"बूढ़े होंगे तुम्हरे दुश्मन.. आपका तो एक दम मस्त है ... और आज कल के बूढ़ोंका इतना कड़क कहाँ होती है..."

"सुमित्रा.. तुम तो ऐसे बोल्ररही हो जैसे तमने सैकड़ों का देखि हो..."

"सैकड़ों नहीं साब.. हाँ कोई 10, 12 तो जरूर देखि हूँ..."

तब तक मै उसके ऊपर से उठा और उसकी जंघोंके बीच आया और अपना शिश्न उसकी मोटे फांकों के बीच रगड़ते चूची दबाने लगा। जैसे ही मैंने दबाव दिया... उसके मुहं से... "ममममम.. .सससस....हां" की आवाज निकली।

"क्या हुआ सुमित्रा....?" मै पुछा..

"आपका मोटा है साब..."

"झूट.. मेरे कुछ पुरानी सहेलियां कहती थी की मेरा छोटा है।"

"लम्बाई में छोटा होगा सब.. लेकिन मोटा हाय तौबा..."

"क्या इस से पहले इतना मोटा नहीं ली हो क्या...?"

"हाँ साब... बहुत दर्द हो रही है..."

जब मुझे गर्व हो रही थी की इस उम्र में भी मेरा मोटा है ज्यादा कड़क भी है.." मै उसके मम्मे पकड कर दबाता मेरा लैंड अंदर देने लगा...

"साब दबाना बस; थोड़ा चूस लो...." वह अपनी चूची मेरे मुहं में ठेलती बोली। मै उसक एक को चूसते दूसरा दबाने लगा। फिर क्या, पांच मिनिट में उसकी चूत पानी छोड़ने लगी। इसका मुझे अहसास होने लगा। उपरसे वह भी अपना कमर उठाने लगी। देखते ही देखते मै उसे फिरस चोदने लगा। एक दो बार कोशिश करते ही मेरा पूरा छह इंच वह लील गयी। एक बार मेरा पूरा अंदर तो मुझे जोश आगया और मै अपना कमर ऊपर निचे करते उसे चोदने लगा।

"आअह.. साब.. वैसे ही... ज्यादा जोर मत दो अभी... वैसे ही आराम से पेले जाओ...ममम.. सच में बहुत मजा आ रहा है..." वह कह रही थी।

मै उसे दाना दन चोदने लगा.. वह भी मजे ले लेकर चुदने लागि.. इस उम्र में भी मै उसे दस मिनिट तक पेलते रहा और फिर उसके चूत में अपना रस छोड़ दिया। इस बीच वह भो दो बार झड़ी, और वह संतुष्ट भी दिख रही थी।

फिर भी मुझे शक था की मै उसे सतुष्ट कर पाया की नहीं; मैने उसे यही बात पूछी...

सच कहूँ साब आपका कुछ छोटा है पर आप तो मेरे पति से ज्यादा अच्छे करेंहैं..."

तब इतने दिनों में मै पहली बर पुछा... "सुमित्रा तुम्हरा पति क्या काम करता है..."

वह यहाँ नहीं रहता साब.. मकान बनाने का मिस्त्री है वह... वह मुंबई में एक कांट्रेक्टर के यहाँ काम करता है.. और दो साल से वही है.. साल में एक बार आता है..."

"और बच्चे ...?"

दो बचे है बडा लड़का 12 का है तो लड़की 9 साल का है... दोनों इस्कूल जाते हैं..."

फिर उस दिन के बाद मै लग भाग उसे हर रोज चोदने लगा.. और वह भी दिल खोलकर चुदवाने लगी।

अब मुझे एक बात की ख़ुशी है की मैं इस उम्र में भी (62 में भी) औरत को खुश कर सकता हूँ .. यह मेरे लिए बड़ी अच्छी बात थी जो मुझे कुछ और अनुभवों के लिए प्रेरित करने लगी..

यह अनुभव आपको पसंद आया होगा तो कमेंट करके बताये की मै आगे लिखू या नहीं..

पढ़ने के लिए धन्यवाद; अब आज्ञा दीजिये...

आपका

पिनाभिराम

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