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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 99
मेरे प्रेम में कैसे पड़े
सुबह 10: 30 बजे
कमला: हम्म ये लीजिये आप दोनों के लिए नाश्ता । 10 बजने वाले है क्षमा कीजिये देर हो गई मुझे।
(मन मैं: घपा घप पेल रहे थे महारानी को आवाजे बाहर तक आ रही थी और झूठ कह रहे हो की सो रहे थे।)
बलदेव: हम्म अच्छा!
कमला: हाँ महाराज वह आपकी आखे भी लाल-लाल है।
बलदेव: हाँ वह अभी उठा हूँ ना।
कमला: (मन मैं) मुझे ना सिखाओ बलदेव ये आखे रात भर जगने से लाल हुई है और मुझे अच्छे से ज्ञात है तुमने रात भर जग कर क्या किया है ।
बलदेव: क्या सोच रही हो कमला लाओ इधर नाश्ता दो । कुछ और?
कमला: ओर कुछ नहीं महाराज। वह महारानी कैसी है। जैसी चाही थी वैसी पत्नी मिली और सुहागरात.कैसी..?ये कह कर कमला रुक जाती है।
बलदेव: कमला...तुम्हारी महारानी भी ठीक है। सो रही है और मैंने जैसा मैंने सोचा था मुझे उससे कहीं ज़्यादा अच्छी पत्नी मिली है...अब तुम जाओ. लाओ नाश्ता दे दो ।
कमला: (मन में) हाँ अब खजाना मिल गया माँ का तो, सिपाही का क्या काम है।
कमला नाश्ते की थाली को बलदेव को हाथ में देती है और अपनी गांड मटकते हुए बिगड़ते हुए चलने लगती है।"जाओ जाओ दिन रात बनाओ अपनी माँ के साथ सुहागरात जैसे मुझे नहीं पता कि देवरानी अंदर लेटी हुई सोने का नाटक कर रही है और अपने बेटे के आने का इंतज़ार कर रही है।"
कमला ये बड़बड़ाते हुए सीढ़ियों से उतर रही थी तब बलदेव थाली को ले कर अपने पैरों से दरवाज़ा सटा देता है।
"ये कमला भी ना,"बलदेव: (मन में) वैसे बेचारी कमला ने मेरी बहुत मदद की जिसकी वज़ह से आज मैंने अपनी माँ को अपनी दुल्हन बना लिया।और मुस्कुरा कर टेबल पर थाली रख कर दरवाज़ा बंद कर देता है।दरवाजा बंद होते ही देवरानी झट से आंखे खोलती है।
"मां उठो नाश्ता कर लो।
""बेटा मुझसे तो हिला भी नहीं जा रहा उफ़ अंग-अंग टूट गया है ।
"बलदेव ने अपनी माँ जैसी भारी भरकम माल को चोद कर पस्त कर दिया था जिस से वह अपने आप पर गर्व महसूस कर रहा था।
बलदेव मुस्कुराता हुआ कहता है ।
"माता श्री या मेरी पत्नी जी आप मुझे अपने हाथों से खिला दो
"बलदेव देवरानी की ओर बढ़ता है देवरानी अब भी लेटी हुई थी।
बलदेव: सुनिये ना जी.
देवरानी बलदेव को अपनी ओर आता देख कराहती है ।
देवरानी: आह कितना दर्द है।देवरानी अपने पैर खेंचते हुए दर्द से कराह कर अपने सर को पीछे ले कर अपने हाथ से अपना मुंह ढक लेटी हुई थी ।
बलदेव पलंग के पास आकार खड़ा हो जाता है।
बलदेव: रानी माँ आखे खोलिए आपका पति आपको आज से अपने हाथ से खिलाएगा।
देवरानी: अहम्म आह!
बलदेव पलंग पर बैठ जाता है और अपने हाथ से अपना मुँह छुपाये देवरानी का सर उठा कर अपनी जाँघ पर रख लेता है।
"क्या हुआ मेरी माँ मेरी पत्नी को?"
"कुछ नहीं आह!"
"बोलो ना जान दर्द ज़्यादा हो रहा है?"
"नहीं राजा जी रहने दीजिए! एक स्त्री इतना दर्द तो सहती ही है।"
"सच कहो देवरानी क्यूकी आज से हम सिर्फ़ माँ बेटा नहीं पति पत्नी भी है और तुम्हारा दुख मेरा दुख है।"
"महाराज आपको ज्ञात नहीं ये दर्द ये पीड़ा एक स्त्री को कितना सुख देती है और मैं तो बरसो तड़पी हूँ इस दर्द के लिए."
"बस तुम्हारी इसी समझदारी पर मेरा दिल आ गया, मेरी रानी । तुम से बेहतर मेरी पत्नी कोई नहीं बन सकती।"
देवरानी ये सुन कर मुस्कुरा देती है।
"सच कह रहे हो राजा!"
"हाँ देवरानी इसलिए तो झटपट तुम्हें माँ से पत्नी बना लिया।"
देवरानी सब दर्द भूल जाती है और बलदेव से गले लग जाती है। बलदेव उसे उठा लेता है अपने मजबुत कलाई में थाम उसे टेबल पर लाता है।
"देखना बेटा कभी अपनी पत्नी के लिए ये प्यार कम ना हो।"
"मेरी रानी अब तुम्हारे जीवन में सिर्फ़ प्यार ही प्यार मिलेगा।"
देवरानी हस कर कहती है"तब तो बहुत जल्दी मुझे इस दर्द की आदत हो जानी चाहिए।"
बलदेव कुर्सी पर बैठ जाता है और अपनी माँ को अपना गोद के बिठा लेता है, फिर सबसे पहले बलदेव अपनी माँ को पहला निवाला खिलाता है।फ़िर देवरानी अपने पति को अपने बेटे को निवाला खिलाती है
"राजा बेटा मुझे अलग बैठ जाने दो भारी हूँ ऐसे थक जाओगे।"
"मां जब छोटा था तुम अपनी हर ख़ुशी त्याग कर तुमने मेरे सहारे उस कुत्ते राजपाल को झेला । अब से मैं तुम्हारा भार उठाउंगा।"
"अच्छा इतना वीर हो गया है कि महारानी, पारस की रानी का भार उठा लेगा।"
"रानी वह तो अपनी मुनिया से पूछो का मेरा लौड़ा कितना वीर है।"
"बदमाश! चुप पगले।"
"अच्छा माँ क्या तुमने कभी सोचा था एक दिन नंगे बेटे के लंड पर बैठ कर नाश्ता खाओगी।"
"मैंने तो नहीं सोचा था क्या तुमने ऐसा सोचा था?"
"भला मैं कैसे सोच सकता हूँ। मैं तो सोचने के लिए भी डरता था, तुम्हारे जितनी पूजा पाठ करने वाली संस्कारी...असुलो या सिद्धांत पर चलने वाली स्त्री । ऐसी स्त्री जिसे ससुराल के लोग देवी समान मानते हो..."
"बस बस बालक तुमने नहीं सोचा तो मेरे प्रेम में कैसे पड़े? कैसे अपनी माँ को ऐसे प्रेम करने लग गए?"
"मां पहले तो तुम्हारी मटकती जवानी । तुम्हारे ये बड़े-बड़े स्तन । देख मैं पगला गया । फिर जब मुझे एहसास हुआ कि तुमने कितना बलिदान दिया है कितना सहा है।"
"अच्छा राजा जी"
"हाँ जी रानी जी"
"मां ये ओढ़नी फेक दो अब मुझे दूध पीना है।"
"चल हट।"
"अब मेरा नाश्ते से मन भर गया।"
बलदेव झटके से देवरानी की ओढ़नी को खीच खोल देता है।
"बड़े उतावले हो रहे हो राजा जी खाओ पियो नहीं तो इतनी मेहनत करोगे कैसे?"
बलदेव देवरानी को खीच के अपने लौड़े पर बिठा लेता है।
"अब इतनी संस्कारी पत्नी मिली है तो धन्य हो गया। तुम्हारी भक्ति, ही मेरी शक्ति है । भगवान करे हम कभी अलग न हों।"
"आह राजा हाँ राजा बेटा...आज तो मैंने पूजा भी नहीं की..."
"मां आज मैं आपकी पूजा कर रहा हूँ आप कल से करना।"
बलदेव ने फिर टेबल पर रखा शेहद और मद्य को उठा लिया।
"अरे क्या कर रहे हो जी?"
बलदेव शहद और मद्य का डिब्बा उठा कर देवरानी के मम्मो पर उड़ेल देता है।
देवरानी के मम्मे शहद और मद्य से भीग जाते हैं ।
देवरानी: "बेटा ये मद्य और शहद खाने के लिए है, इसे ऐसे व्यर्थ ना करो...अन्न व्यर्थ करना पाप है।"
बलदेव: मेरी माँ कितनी भोली हो । मैं एक बून्द भी व्यर्थ नहीं करुंगा मेरी रानी।दे
वरानी इस से पहले समझ पाती बलदेव अपनी माँ के स्तनो को जीभ से चाटने और लगता है
"स्लर्प""आह माँ उह्म्म!"
फिर स्तन चाटने और चूसने लगता है"उह्म्म आह! आआह बेटा "
"आह माँ ये मद्य से तो तुम्हारे दूध की मिठास और ज़्यादा बढ़ गई मेरी रानी!"
जारी रहेगी