स्वाति सुरंगिनि श्यामा प्यारी

Story Info
Sweet-tale of Coitus in an Unforgettable Hot Confrontation.
3.4k words
3.34
22.1k
00
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

आज मुझे न जाने क्यों स्वाति की बहुत याद आ रही है. मै जानता हूं कि वह आज घर में अकेली होगी क्यों कि आज छुट्टी है और उसकी सहेली हमेशा की तरह घर चली गई होगी. जी कर रहा है कि उस नमकीन तन्वंगी की तांबई छरहरी काया को मैं आज सितार की तरह बजाऊं और उसकी झन्कार में खुद को डुबा कर विसर्जित कर दूं.मेरी आंखों मे स्वाति की घुंघराली बारीक झांटों की भूरी रेखा मे छिपी उसकी संकरी सांवली चूत का वह छोटा सा छेद दिखाई पड़ता है जिसे मेरा मोटा लौड़ा फाड़ता हुआ घुसेगा और मेरी रानी की पतली कमर तक पेलता हुआ सारी छेद को ठांसकर जाम कर देगा. मैं सोचता हूं कि वह मेरी प्यारी श्यामा स्वाति मेरे लौड़े को संभाल पाएगी या नही संभाल पाएगी.मैने फोन करके अपने दिल की बात स्वाति से कही. वह बोली-" मुझसे अब बिल्कुल सहा नहीं जा रहा है मेरे प्यारे राजा.मेरी चूत मुझसे सम्भाली नही जा रही है. मेरे ख्वाबों में दिन-रात तुम्हारा मोटा,चिकना,जोरदार लंड झूलता रहता है. उसकी याद करती मेरी चूत मे गुदगुदी की खलबली मची रहती है. सच बताऊं? मेरा बस चले तो फोन से ही पकड़कर तुम्हारे लौड़े को खींच लूं और प्यासी चूत में निगल लूं. बस चलता तो अभी उसको पकड़कर लील लूं और इतना चुदवाऊं कि अब तक की ख्वाहिश को चुदवा-चुदवा कर ब्याज सहित लेकर वसूल कर लूं. मैने अपनी नमकीन सुन्दरी से कहा कि-"हाय मेरी रानी, जी तो मेरा भी कर रहा है कि फोन से ही घसीटकर तुम्हारी चूत में इस बेकरार लौड़े को डाल दूं और चोद-चोद कर तुम्हें बेहाल कर दूं,लेकिन मै डरता हूं कि मेरी मुट्ठी की जकड़ से तुम्हारी छुइ-मुई सी कमर कहीं टूट न जाए. मेरी प्यारी स्वाति, पहले तुम खुद बताओ प्लीज़ कि तुम चुदवाने के लिये तैयार हो या नहीं ? बाद में शिकायत न करना कि मेरे लंड ने तुम्हारी नाजुक चूत को चिथड़े-चिथड़े करके उसकी शक्ल क्यों बिगाड़ डाली?"
" हाय...अब पूछने का वक्त गया मेरे प्यारे. बस फौरन आओ और इस चूत पर टूट पड़ो प्ली़ज. मेरी चूत तो इस कदर बेकरार है कि आज वो खुद इतने चिथड़े उड़वाने को आमादा है कि या तो वो रहेगी या फिर तुम्हारा लौड़ा रहेगा.मेरे सनम आओ. हो जाने दो आज इस प्यासी चूत की टक्कर उसके लौड़े राजा से. तुम और मै दोनो देखेंगे कि आज दोनों की भिड़न्त मे कौन किसको पछाड़ता है.
आज मै पूरे मूड में था.मेरा लौड़ा इस वक्त किसी को भी खा जाने के मूड में था. खास तौर पर सांवली स्वाती की अनछुई चूत की लुभावनी फांक को याद कर-कर के मेरा लौड़ा तन्ना-तन्नाकर अकड़ा पड़ रहा था. मौका देख फ़ौरन मैं स्वाति के पास जा धमका. वह अभी अभी नहाकर केवल अधखुली चोली और ब्लाउज पहने लेटी थी.मैने किवाड़ बंद किये और कपड़े एक ओर फेककर स्वाति पर लपका. मेरे भन्नाते लौड़े पर उस्की नज़र पड़ते ही वह दबी आवाज में चीखी- ओ...न..न्नो...प्लीज़. आज नहीं..आज नहीं......मैने तो बस मज़ाक किया था..आज नहीं...फिर कभी."
वह कमरे में भाग रही थी और मैं उसको पकड़ने पीछे भाग रहा था. उसको आखिर मैने दबोच कर दीवार से चिपकया और बाहों मे उसकी सोलह इन्ची कमर को जकड़ उसके होठों पर टूट पड़ा."
वह कुछ ढीली पड़ी लेकिन बुदबुदाती रही- "छोड़ो प्लीस. अभी सर्वेन्ट सरोज उधर कपड़े धो रही है."
"धोने दो.आज मै तुम्हे चोदकर रहूंगा फिर चाहे कोई आ जाए."
मैने स्वाति की टान्गों और पीठ को घेर बाहों में थामा और बिस्तर पर ला पटका.चोली उतार फेकी और लहंगे को उलट मैने अपने लौड़े की मुन्डी उसकी चूत के मुहाने जा टिकाई.
स्वाति ने झपट्कर लौड़े को थाम लिया और आंसू बहाती बोली -" बाप रे, इतना मोटा और लंबा .....? नो प्लीज़..छोड़ दो. अभी वो आ जाएगी."
मैने उसकी मुट्ठी पर अपनी मुट्ठी जकड़ी और लौड़े की मुन्डी को स्वाति की चूत में ठेल दिया. सचमुच स्वाति की चूत का जवाब नहीं था.उसने अपनी चूत को अच्छा मैन्टेन किया था.रगड़ से उसकी चूत को छीलता मुन्ड घुस तो गया मगर स्वाति ने अपनी नसें इतनी जकड़ लीं कि आगे घुसना मुश्किल हो गया था. मैं उसे चूम-चूमकर और बूब्स को थाम चूचियां मसलता रास्ते पर ला रहा था और वह सिसकरियां भर रही थी.स्वाति के होटों को अपने होठों से बंद करके मैने अपने लौड़े का जोरदार धक्का उसकी चूत में दिया. इस बार वो जोर से चीख पड़ी -" आह,..मै मर गई रे.." धक्का देकर मुझे हटाने की कोशिश करती वह बोली - " बहुत प्यार करते हो.देख लिया न कि मेरी चूत अभी तुम्हे नहीं ले पा रही है. यू आर क्रूएल..छोड़ोगे नहीं, चाहे तुम्हारी प्यारी स्वाति की चूत फटकर दुखने लगे..बहुत अच्छे प्रेमी हो."
अचानक हम दोनों की निगाह उस चेहरे पर पड़ी जो मेरे पीछे झुकी चूत और लौड़े की पुजीसन को बड़े गौर से भांप रहि थी.वह स्वाति की नौकरानी सरोज थी.
आंखें फाड़कर चूत मे धंसे लौड़े को ताकती वह बोली-
" हाय,गजब का लौड़ा है स्वाति रानी.तभी तो कहूं कि तुम गुस्सा क्यों रही हो."
जीभ से लार टपकाती और अपने होठों पर उंगलियां फेरती सरोज मेरी आंखों में झांकती बोली-" छोड़ दो न बाबू. हमारी स्वाती रानी खूब पढ़ी है. उमर में हमसे बड़ी है लेकिन संभालने लायक नहीं हुई है. छोड़ दो बाबू..मान लो."
तकलीफ़ से घबराती स्वाति सरोज से बोली-"साली, खड़ी-खड़ी देख्ती है छुड़ा ना..हा...आ..आ...य्य्य..य."
सरोज की मुट्ठी मेरे आधे धंसे लौड़े पर कस गई. मेरे गले से लिपटती वह बोली - " चलो न बाबू.इसके बदले मै तैयार हूं. आज मेरी ले कर देखो.स्वाति को पहले सीखने तो दो.वो हम लोगों को देख लेगी तो उसका भी मूड आ जाएगा. चलो प्लीज़.तुम्हार फोन सुन-सुन के , तुमको याद कर-करके बहुत दिनों से मेरी चूत तुम्हारे लिय्र मचल रही है.चलो आज अपने लौड़े के साथ मेरी चूत को खेलने दो.जब मुजह्को चोदोगे तो चुदाई का मजा देख-देखकर दीदी का भी मूड बन जाएगा. फिर देखना सारा डर चला जाएगा और दीदी की नन्ही सी चूत गीली हो-होकर खुद तुम्हारे लौड़े को लपककर ठांस लेगी."
सरोजनी ने झटककर मेरा लंड पकड़ा और घप्प से मुंह मे ले लिया. सरोजनी गोरी थी. उमर कोई सतरह-अठारह साल की थी और कसे हुअ बदन गदराया हुआ था.वह अभी-अभी खिला हुआ ताजा फूल थी. उसकी चोली खुल चली थी और लिपटने-झिपटने से उसने मेरे बदन मे अलग किस्म की हरारत पैदा कर दी थी. उसपर बहुत दिनों से मेरी निगाह थी.मेरे जी में एक बार आया कि उसे ही पटकूं और खड़े-खड़े इन्तज़ार करते लौड़े को उसकी प्यासी चूत में डाल दूं.लेकिन सामने मेरी तन्वंगी स्वाति की अन्छुई चूत की कसावट थी जिसे ढीला करते हुए मुझे उसका ताज़ा-ताज़ा स्वाद लेना था.इस बीच बिस्तर पर स्वाति उठ बैठी थी.उसकी चूत का मुंह लौड़े की कड़क ठांस से छिल गया था और हल्का सा खून वहां चूत की रस के साथ घुल गया था.वह कभी अपनी चूत को देख रही थी और कभी मेरे उस भारी लंड को जिसने उसे छील डाला था.तब भी वह सरोज की बातें सुनती उसे घूर रही थी.वह मुझको भांप रही थी. उसकी आंखें मुझसे कह रही थीं कि अच्छा इतनी जल्दी मूड बदल गया ? देखती हूं कि तुम किसको चोदते हो - उसको या मुझको ?
मैने पीछे से लिपटी पड़ रही सरोज को झटके से पलटकर अपने और स्वाति के बीच यूं गिराया कि उसकी छातियां और चेहरा मेरे पैरों पर बिस्तर मे था. झुककर मैने उसके चमकते कपोलों को हिलाते आंखों मे झांककर कहा -
"साली सरोज, देखती नहीं कि मेरी प्यारी स्वाति रानी की नाजुक चूत कैसी छिल गई है?" झुके हुए ही हौले से उसकी गुदाज छातियों को प्यार से चपकते मैने आगे कहा-
"घबरा मत तेरी तमन्ना भी मै पूरी करूंगा, लेकिन बाद में.अभी तो तेरी स्वाति दीदी की बारी है. आज तो मेरा लंड खूब पानी पी-पीकर अपनी रानी स्वाति को ही चोदेगा."
स्वाति खुश हो गई थी . अपनी चोट खाई चूत को पुचकारना छोड़कर उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और मुझे चूम लिया.
मेरा मन तो कर रहा था कि सरोज की गुलाबी नरम चूत मै फ़ौरन अपने भूखे लौड़े को पेलकर चोद डालूं लेकिन उसकी जोरदार छातियों को कसकर झिंझोड़ते हुए नकली गुस्से से मैने कहा- साली सरोज तू फौरन जा. पहले तेल लेकर आ और अपनी मालकिन सखी को राहत दे. फिर तू देखना कि कैसा मज़ा चखाता हूं तुझे बाद में."
सरोज समझ गई थी कि मजा चखाने का क्या मतलब था. स्वाति की आंख से बचने वह यूं झुकी जैसे वह स्वाति की दुखती चूत का मुआयना कर रही है फिर सिर को पलटाकर गप्प से मेरे लौड़े को होठों मे निगलने के बाद लौड़े को मुठ्ठी से हिलाकर वह बिस्तर छोड़कर आगे बढ़ी - "लाती हूं तेल मैं, लेकिन याद रखना कि मैं भी हूं."
" जा न साली. तेरे ही कहने पर तो आज मैं गलती कर बैठी."-स्वाति चिल्लाई.
सरोज बादाम के तेल की शीशी उठा लई थी.
" दीदी, जरा लेटो ना तब तो" -वह बोली.
स्वाति के लेटते-लेटते ही चमकती आंखों से मेरी तरफ़ देखा और आंख मार दी.
"दीदी घुटने तो मोड़ो जरा" स्वाति से सरोज बोली.
स्वाति ने जैसे ही घुटने मोड़े थे कि उसकी खूबसूरत पतली टांगों के बीच से जगह बनाता मेरा लौड़ा फिर उसकी चूत पर पिल पड़ा.
" फिर चालाकी ..? नहीं प्लीज़"- कहती स्वाति ने घुटनों को सटाकर जांघों को सिकोड़ना चाहा.इस बार सरोज ने साथ दिया. वह स्वाति की मुलायम और मझोली छातियों पर बिछ गई और उसके गालों पर गाल टिकाती बोली - ना मेरी रानी.. अच्छे बच्चे मान जाते हैं.तेरी किस्मत कि इतना अच्छा लौड़ा मिल रहा है मेरी रानी. अब नखरा मत कर. बोल, नहीं तो मै तेरे प्यारे के लन्ड को छीनकर अभी तेरे सामने ही अपनी चूत की तिजोरी में डालकर रख लूं."
सरोज के मनाते-मनाते स्वाति की बारीक फांक में मेरे लौड़े का मुंड फिर धंस चला. तेल से मुहाने में तो चिकनाई आ गई थी ,लेकिन आगे फिर घाटी इतनी संकरी थी कि लौड़ा फंस रहा था.मुन्डी की गांठ के धक्के से फिर स्वाति सिसकियां भर रही थी -" हाय.., अब कैसे होगा रे. मै डरती हूं कि कैसे संभलूंगी."
मैने झुकी हुई सरोज की छाती के एक स्तन को थामा और उसके पुट्ठे पर चिकोटी काटी. वह समझ गई थी.उसने मेरे लौड़े और स्वाति की चूत के ढक्कन यानी घुंघराली मुलायम झांटों के बीच के ओठों को अपनी उंगली से फैलाते तेल की पतली धार से चूत और लौड़े खूब नहला दिया. मैने अपनी उंगलियों में लौड़े की गांठ को थाम हौले-हौले स्वाति की चूत की सुरंग के मुहाने की सैर कराई और फिर अपने पुट्ठे ऊपर उठाते जोर की ठोकर मार घप्प से एक बार मे ही पूरी लम्बाई में लौड़े को ऐसा पेला कि स्वाति की चूत उसे -"आह मर गई रे मार डाला" कहती निगल गई.
इस बार स्वाति पर रिएक्शन यह हुआ कि मुझसे मुझे हटाने की जगह वह नाजुक लता की तरह और कसकर मुझसे लिपटकर जकझोरने लगी.
हमने सरोज को इशारा किया कि वह अब चली जाए, लेकिन वह -"देखने दो प्लीज़" कहती खड़ी रही.
स्वाति को बाहों मे लिपटाये चूमते मैने उसकी चुदाई शुरू कर दी. शुरू-शुरू में लौड़ा इतनी नजाकत के साथ पूरे का पूरा इस तरह हौले-हौले बाहर आकर चूत को अंदर तक ठेलता रहा कि हर स्ट्रोक की गुदगुदी के साथ एक-दूसरे की आंखों में झांकते, होठों से होंठों को निगलते हम दोनों एक- दूसरे से-
" आह कितना अच्छा लग रहा है",...."और ये लो",..."और दो",... "आह प्यारे तुम कितने अच्छे हो",..".मेरी प्यारी स्वाती तुम्हरी चूत का जवाब नहीं,"...."आह तुम्हारी हिरनी जैसी आंखें ..इन्हें जी भर देखने दो रानी"..."आह मेरे प्यारे आज चूस डालो मुझको"...."अब छोड़ो मत राजा..चोदते रहो..चोदते रहो". कहते चुदाई के एक-एक पल के साथ स्वर्ग की सैर करते रहे.
कभी स्वाति मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में थामकर प्यार से चूमती जाती,.. कभी मेरी हथेलियों मे उंगलियों से उंगलियां फंसाये प्यार में पंजे लड़ाती,..कभी मेरी आंखों, माथे या कानों को होठों में लपक लेती और कभी कसकर मेरे चेहरे को अपने कपोलों से चिपटाकर जकड़ लेती.
मैने भी बीच-बीच में स्वाति की चूत के रस मे नहाए अपने लंड को बाहर निकालकर बड़े प्यार से एक-एक करके उसके तने हुए स्तनों की,उनपर सजे भूरे-भूरे अंगूरों की,खूबसूरत काली आंखों और पलकों की, माथे और उसपर खेलती जुल्फ़ों की,धारदार पतली नाक और रसीले ओठों की, कमर की संकरी घाटी और उसके बीच खुदी नन्ही बावली की, पतले-पतले हाथों, कलाइयों और बाहों की, च्किनी जांघों और लम्बी टांगों की सैर कराई. हर स्पाट पर कभी मुट्ठी में जकड़कर चाटते हुए और कभी प्यार से उंगलियों को फिराते हुए, और कभी होठों से चूम-चूम कर बड़ी दीवानगी के साथ सारे अंगों से वह अप्नने प्यारे दोस्त को इन्ट्रोड्यूस कराती रही.जब चूत रानी बौखलाकर आवाज देने लगती तो "राजा चलो अब अंदर ना प्लीज़.वो अकेली तरस रही है" कहती अपने प्यारे लंड यार को स्वाति फिर से उसकी चिकनी कलाई थामकर संकरी घाटी की सुरंग में ठेल देती थी .
एक किनारे लार टपकती नज़रों से बिस्तर को ताकती सरोज " हाय..हाय अब मैं कहां जाऊं.. इस अपनी प्यासी चूत का क्या कर डालूं.."कहती छातियों को मसलती भूरी झांटों में रिसती चूत को अपनी उंगलियों से कुरेद रही थी.मेरा दिल आवाज दे-दे कर मुझे पुकारती सरोज की रिसी जा रही चूत पर पसीजा पड़ रहा था.जी करता था कि सुपरफ़ास्ट की स्पीड से स्वाति की सुरंग में पिस्टन की तरह धंसकर तेज रफ़्तार से भागते लौड़े पर ब्रेक दूं और सरोज की भाफ छोड़ती तैयार इंजन पर चढ़ बैठूं पर वह मुमकिन नहीं था क्यों कि स्वाति जल्दी से जल्दी अपने मुकाम पर पहुंचने के मूड में आ गई थी. उसके नितंब नीचे से ऊपर उछल-उछल कर लम्बू मियां को टक्कर दे रहे थे.
नसों में खून तेजी से दौड़ने लगा था और लगातार आगे बढ़ते लंबूजी के हर स्ट्रोक के साथ दिल की धड़कनें बढ़ रही थीं.ऊपर से मैं और नीचे से स्वाति दोनों ही एक दूसरे को धक्का देते जोरदार टक्कर में भिड़ रहे थे. दोनों की सांसें तेज हो रही थीं.सांसों की रफ़्तार के साथ-साथ मेर तन्नाया लौड़ा और स्वाति की भाफ़ छोड़ती गरमाई हुई चूत जोश में आ-आकर दीवानगी मे खूब तेजी के साथ "घपाघप-...चपाचप-...भकाभक-...छपाछप" की आवाज में न समेटी जा रही खुशी को उजागर किये जा रहे थे.
स्वाति और मेरे होठों पर यह जोश " आह मै कितनी खुश हूं मैं आज"......"मारो,मेरे राजा ठोंक डालो जमकर इसे"....."चोदो"....."चोदे जाओ"....."और जोर से"....."वाह क्या जोरदार स्ट्रोक है"..........."शाब्बास...आह"....."फाड़ डालो"......"हाय-आ...आय, रे"..."हाअ..य्य.ये. .....कितना प्यारा जोड़ा है हमारा"...."आह मेरे प्यारे.."...कितना जोरदार फ़िट है..एकदम टाइट"....."उड़ा डालो अपनी इस लाड़ली चूत के चिथड़े आज राजा"...."लो मेरी प्यारी सम्भालो इसे"..."लो और जोर से"...."वाह प्यारी चूतरानी.....कितनी कोमाल हो तुम" "रानी.....मेरे लौड़े को तुमने दीवाना बना डाला प्यारी"....."लो प्यारी...लीलती जाओ आज"..."शाब्बास, लो राजा,.. ये मेरी तरफ़ से लो अब..." की लगातार तेज होती आवाज़ में बदहवाश हो रहा था.
आखिर वो पल आया जब मेरा लौड़ा ऐसी तेजी से स्वाति की चूत पर टूटा कि हाथ से मेरे गुस्साये लौड़े को थामकर रोकती वह चीखने लगी..." बस करो....बस करो प्लीज़....रोको,..रोको ना, नहीं तो मै मर जाऊंगी...मर गई रे ...फाड़ डला आज तो....बस करो प्लीज़.." मेरी प्यारी श्यामा की नाजुक छरहरी देह लौड़े की चोट से बदहवाश होती लहरा-लहराकर हिल रही थी और मुझे रोकने वह उठ-उठकर बैठी पड़ रही थी.
ठीक इसी वक्त अपनी साड़ी-चोली एक तरफ फेंककर सरोज रानी भी झपटकर स्वाति और मुझपर सवार हो गई थी. कभी स्वाति और कभी मेरे बदन को चूमती जाती सरोज बड़बड़ाती हुई न जाने क्या-क्या बातें किये जा रही थी.
कभी स्वाति के कपोलों को थपथपाती उसपर अपने गाल सटाये वह बुदबुदाती-" हाय मेरी नाजुक छड़ी...चुद गई रे आज..."..." हाय-हाय कैसा कसकर चोदा है रे निरदयी ने...बिलकुल फाड़ डाला रे मेरी सांवली सखी की कोमल चूत को.."...." हाय मेरी छ्बीली...तूने तो चूत में तो कभी उंगली भी घुसने ना दी मेरी कली, आज इत्ता बड़ा लौड़ा कैसे निगला होगा मेरी बन्नो"...."हाय री स्वाती कैसा लगा रह होगा री तुझको भला आज की इस भयंकर चोदवाई मे."...."हाय-हाय,.. काश मै तेरी जगह चुदवा लेती री..तेरी चूत तो छितरा-छितरा डली रे आज इस जबरदस्त लौड़े ने"..."आह..आह मेरी सांवरी...काश चुदने से पहले मेरी चूत और तेरी चूत भी टकरा-टकरा कर गले मिल लेते मेरी सखी."... "हाय रानी,..अब तू उठ भर जा फिर मेरी चूत तेरी चूत को रगड़ेगी जरूर".. "मै तो तरस कर रह गई रे.."
सरोज वह सब कहती जाती और कभी अपनी शानदार छातियों को मेरी पीठ पर चिपका कर मसलती मुझसे कहती- " छोड़ दो..अब मेरी स्वाती को.. छोड़ दो मेरे राजा. उसकी नाजुक देह को छोड़ दो प्यारे. खूब मसल डाला रे मेरी नाजुक कली को...छोड़ दो ना अब छोड़ भी दो...जरा तो सोचो कि छोटी सी सूराख का तुम्हारे लंड ने क्या बुरा हाल कर दिया होगा.."
मैने स्वाति का कंधा अपने हाथों से कसकर दबा रखा था ताकि चुदाई की आखिरी चोटों से घबराकर वह कोई गड़बड़ न कर बैठे. प्यारी स्वाति की नाज़ुक टांगें मेरे कन्धे पर चढ़ी थीं. उसकी चूत की फांक खुल चली थी और रस से भीग रही थी फिर भी संकरी और टाइट थी. इस वक्त लौड़ा अच्छी दूरी तक पीछे जाता और फिर बाहर से पक्का निशाना साधकर स्वाति की चूत पर टूट्ता पूरी गहराई को माप रहा था.टक्कर ऐसी तूफानी चाल से हो रही थी कि चूत और लौड़े के साथ जांघों के अन्दरूनी पठार भी "चटाचट" और "छ्पाक-छपाक" की आवाज करते टकरा रहे थे. चूत की संकरी सुराख मे लंड के घुसते-निकलते "फ़ुक्क-फुक्क" की आवाज़ बनती और उसके साथ ही पठार टकराकर "चटाक-छपाक" करके चीखते थे.
उधर सरोज बड़बड़ा रही थी और अपनी "हाय-हाय" करती सखी को मुझसे अलग करने के चक्कर में थी और इधर उसकी ओर से बेखबार स्वाति और मै चुदवाते और चोदते हिमालय की चोटियों की तरफ बढ़ रहे थे.स्वाति और मेरी छातियों के बीच आड़ी होकर सरोज चित्त पड़ी थी. स्वाति की चूत "मार डाला रे" की धुन में चीखती हुई भी अपने को सिकोड़ती और फैलाती खूब मजे ले रही थी. स्वाति आहें भरती " चोदो राजा" ..."और जोर से आह".."फाड़ डालो आज मेरी चूत" कहती लौड़े के हर वार को लपक-लपक कर झेलती जा रही थी, लेकिन सरोज के चढ़ जाने से उसका चेहरा छिप गया था.मेरा झुका मुंह इसीलिये अब सरोज के चेहरे से चिपका होठों से भिड़ने लगा था. एक तरफ़ स्वाति की कड़क चूत थी तो दूसरी तरफ सरोज की गदराई छातियां और रसीले होठ थे. दोनों मिलकर मुझे दीवाना किये जा रहे थे.मेरे पांव का अंगूठा सरोज की खुली चूत से खेलने लगा था.
स्वाति बोल रही थी- "धीरे राजा...तुम्हारी चुदाई की जबरदस्त चोट से तो मेरी जान निकली जा रही है.."
"सह लो मेरी प्यारी छ्बीली.ऐसी प्यारी चोट के लिये फिर तुम तरस जाओगी और मै भी ऐसी प्यारी चूत कहं पाऊंगा"...."बस मेरी रानी,...मेरी प्यारी स्वाती...बस ये आखरी झटका" .."बस ये लो"...."लेती जाओ मेरी रानी.".."लो बस ये हो गया" कहता मेल ट्रेन की तेजी से"फकाफक...फकाफक" चोदता मैं उसे उस स्टेशन तक ले आया जहां बिजली की सनसनी से मेरा प्रचन्ड लौड़ा और स्वाति की रसीली चूत दोनों थरथराने लगे. दोनो के दोनो आपस में कसकर लिपटे हुए एक-एक कर बरसती फुहारों से नहा-नहा कर भीग गये. इन फुहारों के समय स्वाति और मैं आपस मे लिपटकर एक-देह और एक-प्राण हो गये थे. हम दोनों को पता नहीं चला कि हम उस वक्त कहां गुम हो गये थे.
बहुत देर तक हम तीनों आपस में चिपके हुए बेहोश पड़े रहे. जब अलग हुए तो सरोज स्वाति पर मेरे समने ही चढ़ बैठी और चूम-चूमकर उसे उसकी चुदाई की हिम्मत और स्टेमिना के लिये बधाई देने लगी.
सरोज ने मेरी तरफ नज़र फ़ेंकी और कहा कि "राजाजी, जाइयो मत अभी.अपना वादा याद करो. अब मेरी बारी है." स्वाति से वह बोली कि तुम बुरा मत मानन मेरी रानी. चुदवाने मे जितना मजा है उससे कम मजा इसके देखने में नहीं है.
स्वाति ने शर्त रखी कि प्यारे, इसका दिल मत तोड़ो, लेकिन आज दिन और रात अब आप को यहीं रहना है. मेरी चूत की प्यास आप ने भड़का दी है. चूत फट ही गई तो डर कैसा. देखूं कि दिन और रात चोदने और चुदवाने की टक्कर में बाजी कौन जीतता है.
इसी वक्त सरोज उठी और वहां पहुंची जहां मै अपने ट्राउज़र को पहनता खड़ा था. इससे पहले कि मै कुछ समझ पाता वह मेरे पांव के पास घुटनों के बल बैठ गई. झपटकर ट्राउज़र को एक ओर फेंका और अपनी मुट्ठी को मुट्ठी में घेर सरोज रानी ने मेरे लौड़े की मुन्डी को होठों के बीच निगल लिया.मेरा संकोच अब टूट गया.सरोज का चुस्त बदन, उसके रसभरे होठ, और नुकीली चूचियों वाले कोमल पहाड़ो से गुजरता हुआ मैं जल्द से जल्द उसकी गुलाबी चूत से खेलना चाहता था, जो मेरी टक्कर की थी.
स्वाति ने देखा. अंदर जाती-जाती वह बोली कि अभी शुरू मत करना तुम लोग. मै भी आ रही हूं. अकेले-अकेले नहीं,..तीनों मिलकर खेलेंगे तो मजा आएगा.

********************************************************************************

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous