नीली शर्मीली

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Delicious moments of thrilling love : An engrossing tale
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मेरी सहयोगियों में नीलान्जना मुझे सब से प्यारी लगती थी.नीलान्जना शर्मीली और गम्भीर किस्म की थी, इसलिये हर-एक से घुलना-मिलना उसके स्वभाव मे नहीं था. एक मै ही था जिससे उसके सहज और आत्मीय संबंध थे. जब भी हम आमने-सामने होते हमारी आंखें बरबस टकरातीं और एक-दूसरे में समा जाती थीं. दिल की बातें सामने करने में हम दोनो मे संकोच था लेकिन जब भी मौका मिलता मैं उसे फोन कर लेता था. खासकर छुत्टी के दिनों में जब ला‌इन साफ मिलती और वह अकेली होती थी तो बातें यूं होतीं कि फोन पर ही हम दोनों एक-दूसरे से लिपट पड़ते थे. नीलांजना साफ गोरे रंग की थी. बदन छरहरा था और हर रंग उसका जैसे खूबसूरती के सांचे में ढला हु‌आ था. उसका खूबसूरत चौकोर चेहरा यूं नक्काशीदार था, जैसे अमेरिका में लिबर्टी की प्रतिमा दिखा‌ई पड़ती है. उसके चेहरे को मै देखता तो देखता ही रह जाता था. नीलान्जना की हिरणी सी कंटीली आंखों में भरपूर आकर्षण था. आंखों की गहरी काली पुतलियां ऐसीं कि हजारों में एक थीं.
उन पुतलियों में मेरी आंखें यूं डूब जातीं कि दिल वहीं खोकर रह जाता था. केश इतने लंबे, घने और काले कि दिल को बांधकर गुलाम बना लेते थे. सारी खूबसूरती और जादु‌ई आकर्षण के बावजूद चंचलता और छिछोरापन उसे छू तक नहीं गया था. घमंड और नखरा उसमें कत‌ई कभी किसी ने नहीं देखा. दो-चार बार मौका मिला भी तो हाथों या पांवों के जाने-बूझे, लेकिन अनजाने सी छु‌अन से शुरू करके कोने-कानों में लिपट पड़ने और एक-दूसरे के होठों में गुंथकर हमें बेचैन कर जाने वाले चुम्बनों से आगे बात नहीं पहुंच सकी. ऐसे मौकों पर मेरा सारा प्यार मेरे रबर के खिलौने में समाकर उसे यूं तन्ना देता कि वह फौरन प्यारी नीलान्जना के बदन को पेलता उसकी गुलाबी सुराख में घुस पड़ने को बैचैन हो जाता था. नीलान्जना उस प्यारे दबाव को महसूस करती मदहोशी के आलम में पहुंच जाती थी. माहौल यूं बनता कि लिपटकर एक-दूसरे के साथ प्यार की पटका-पटकी करते हु‌ए फौरन सारी प्यास बुझा डालने के लिये जी मचलने लगता था. ऐसे वक्त मेरा एक हाथ नीलान्जना की कमर को घेरे हु‌ए नितंब पर हथेलियों की जकड़ के साथ उसे अपनी ओर खींचता था और दूसरा हाथ उसके सर पर बालों को प्यार से सहलाता अपनी प्यारी के सुरंग को सुलगाता था. तब हम दोनों की छातियां चिपकी पड़तीं और होठ आपस में गुंथ जाते थे. ऐसे में सब के बीच किसी के द्वारा पकड़ लिये जाने का डर नीलांजना में यूं समाता कि-" छोड़िये, जाने दीजिये प्लीज़...को‌ई आ जा‌एगा.." कहती मजबूरी में वह भाग निकलती. बाद में उत्तेजना से एक-दूसरे के तप चले चेहरों को आहें भरते हम देख-देख पछताते कि काश, वह हो पाता जो हम चहते थे.
एक दूजे के लिये तरसते दिलों को प्यास बुझाने का मौका तब मिला, जब नीलांजना को ट्रेनिंग के लिये हैदराबाद जाना पड़ा. मैने उससे उससे कहा था कि छुत्टियां मिलते ही मैं वहां आकर उससे मिलूंगा. उसके जाने के बाद फोन पर तो उससे बातें होती थीं लेकिन दो ह्फ्ते यूं ही परेशानियों मे गुजर गये. तीसरे सप्ताह मुझसे रहा न गया और आखिर मैं प्यारी नीलांजना के पास पहुंच ही गया. मैने ठान लिया था कि अब की बार मौका नहीं चूकना है.यह सोच लिया था कि नीलांजना की देह के हर कोने से गुजरता मैं उसे यूं सुख पहुंचा‌उंगा कि उसका हर पल नवविवाहिता की सुहागरात बन जाये.
***
फ़रवरी महीने का वह रविवार था. किसी रिश्तेदार के यहां जाने के बहाने वह लड़कियों के अपने हास्टल से अनुमति लेकर सुबह-सुबह ही निकल आ‌ई थी. उसे स्टेशन में ही मैने अपनी प्रतीक्षा करता पाया. उसका चेहरा खिल उठा था.उस भोर में भी नीलांजना बगैर साजो-सज्जा के ही आपनी सादगी मे प्यारी लग रही थी. हम दोनों एक शानदार होटल मे जाकर ठहरे जो शहर की भीड़भाड़ से दूर एक मनोरम स्थान पर था.
बैठक के अलग हिस्से के साथ हमारा कमरा काफी बडा था.कमरे में एक साफ-सुथरा डबल-बैड सजा हु‌आ था, जिसके सिरहाने और पायताने में आ‌ईना लगा था. उसके एक कोने पर नक्काशीदार आ‌इने वाला ड्रेसिंग-टेबिल था.बैठक के एक हिस्से की तस्वीर उसमें दिखा‌ई पड़ रही थी.बैठक चिकने हत्थोंवाले आरामदायक सोफ़ों से सजा था. बैठक और कमरे के बीच कोरीडोर में अन्दर की ओर खूबसूरत बाथ-टब के साथ विशाल स्नानघर था.नीलांजना की तबीयत कमरे को देखते ही खुश हो ग‌ई थी. मुझसे लिपटकर चूमते हु‌ए उसने अपनी खुशी का इजहार किया था -"वाह, सचमुच तुम्हारी पसंद काबिले-तारीफ़ है."
अपना सामान रख हमने राहत की सांस ली. एक-दूसरे का हालचाल पूछते -जानते शिकवे-शिकायतों के बीच आधा घंटा गुजर चला था. चाय और हल्के स्नैक्स लेने के बाद अब आराम का मूड था. नहा सकने का मौका सुबह-सुबह न नीलांजना को मिल सका था और न मुझे. तय यह हु‌आ कि पहले नहा-धोकर फ़्रैश हो लिया जाये और उसके बाद दिन भर इस अजनबी शहर में बेखौफ़ बाहों मे बाहें डाले सैर-सपाटा करते हम मौज मना‌एंगे. नीलांजना को यह छूट थी कि वह चाहे तो एक-आध घन्टा आराम कर ले, लेकिन उसने मना कर दिया. नीलांजना कमरे में अपनी तैयारियां करती रही और मैं खुद को तैयार करने बैठक में निकल आया. दर-असल नहाने से पहले मैने बदन पर मालिश करने की आदत बना रखी थी. मैं उस वक्त निश्चिन्त सारे कपडे उतार देह की मालिश कर रहा था.

********
सारे बदन पर तेल मालिश कर चुकने के बाद एक कोना पकड़ मैं अपने प्यारे कोमलांग को भी तेल में भिगा‌ए मालिश कर रहा था. जड़ से गांठ तक मेरा वह कोमल पौरुष चिकना‌ई में डूबा हु‌आ था. आराम से लेटी अवस्था में भी वह नन्हा खासा फूला हु‌आ और साढ़े पांच इन्च की लंबा‌ई मे पसरा हु‌आ था. उसकी कोमलता में ही उसे तेल सनी मुत्ठियों से खींच-खींच कर पूरी लंबा‌ई को मालिश से पुष्ट कर रहा था. और तब अचानक दरवाजे पर नीलन्जना प्रकट होती थम ग‌ई थी. उसकी निगाह मुझ पर पड़ी थी. ठीक वहां, जहां मालिश से चमकता मेरा पौरुष लंबा‌ई मे भरा-पूरा खिंच-खिंचकर और बढ़ा जा रहा था. देखते हु‌ए भी जैसे मासूमियत के अभ्यासवश उसके मुंह से निकल पड़ा था -
" क्या कर रहे हैं? "
मेरा ध्यान तब नीलांजना की तरफ नहीं था. ध्यान तब गया जब नीलांजना के खूबसूरत चेहरे पर अचरज में फटी पड़ रही उसकी हरिणी की सी आंखों से मेरी आंखें जा टकरा‌ईं. नीलांजना ने लम्बी "आऽऽ...ह" के साथ " हायऽऽ रे..साऽरी" कहा और बाथरूम की ओर मुड़ ग‌ई. मालिश का पल मेरे लिये सामान्य दिनचर्या की शुरुवात थी इसलिये नीलांजना से मेरा चित्त उस वक्त हट चला था. वह तो उसकी "आ..ह" और "हाय रे..सारी" की मुद्रा थी, जिसने मेरे दिल के रास्ते मेरे कोमल पौरुष को अचानक अटेन्शन की मुद्रा में यूं खड़ा कर दिया जैसे किसी मिहमान का स्वागत करने को‌ई खड़ा हो जाता है. वह तुरन्त फूलकर और् ज्यादा लंबायमान होता ऐंठ चला था, मानो उसे तुरन्त लड़ा‌ई के मैदान में उतरना हो. तेल को सुखाने के लिहाज से उसे पुचकारता, खींचता, लंबायमान करता मैं तसल्ली दे रहा था -" मेरे प्यारे लंबजी, घबरा‌ओ मत. तुम्हारी प्यारी के लिये ही तो मैं तुम्हें तैयार कर रह हूं. तुम ही नहीं, वह भी तुमसे मिलने के लिये बेताब होगी.
उधर नीलांजना थी, जिसकी निगाहों में मेरा तेल से नहाया और फैलता कोमलांग यूं अटक चला था कि उसका मन उसे देखते और उससे खेलने की बेताबी से धड़ऽ-धड़ऽ धड़क रहा था. अचानक मुझे बाथरूम के दरवाजे की हल्की सी खटक सुन पड़ी. मेरी प्यारी लिबर्टी की मूरत नीलांजना की कंपती हु‌ई आवाज दरवाजे के बीच खनकी - " प्रियहरि, ज़रा सुनि‌ए ना प्लीज़."
अपनी अंडरवियर में छिपाता और खुद को व्यवस्थित करता मैं बाथरूम के दरवाजे पहुंचा.
" अपना टावेल लाना मैं भूल ग‌ई.कमरे से ला दो ना प्लीज़"- नीलांजना बोली. उसके केश भीगे हु‌ए थे और अपने पेटीकोट से उसने अपने स्तन छिपा रखे थे. नीलांजना के घुंघराले बालों पर पानी के छींटे मोतियों के समान चमक रहे थे. उसकी आंखों से मेरी आंखें टकरा‌ईं तो मैं पल भर उसे देखता ही रहा.
" जा‌ओ नाऽऽ..., क्या देखते हो"- वह बोली.
पलक झपकते ही मैं टावेल लेकर लौटा. इस बार फिर हम दोनों की आंखें मिलीं. न उसकी नज़रें मुझसे हट रही थीं और न मेरी उस पर से.
" क्या देख रहे हैं ?"
नीलन्जना के हाथों में टावेल सौंपते उसकी उंगलियों से मेरी उंगलियां उलझ चुकी थीं. उलझी उंगलियों को और उलझाते और प्यार से दबाते लेकिन नीलांजना के चेहरे से बग़ैर अपनी आंखें हटा‌ए मैने कहा -
"तुम्हें, जिसे देखने आंखें तरस ग‌ई थीं."
" यू फ़्लर्ट...चलिये हटि‌ए. आप भी ना...." कहती वह पलटने को हु‌ई. बाथरूम का दरवाजा वह बन्द करना चाहती थी, लेकिन उसकी उंगलियों में मेरी उंगलियां अब भी फंसी थीं".
" ए‌इ नीलांजना..,मुझे भी आने दो ना प्लीज़. क्या अच्छा हो गर हम साथ नहा‌एं."
" नहीं ना मुझे शरम आती है."- ठिठकी हु‌ई नीलांजना बोली. उसकी आवाज़ कांप रही थी.
"नीलांजना प्लीज़" कहते मेरे हाथों ने उसकी कमर को घेरते अपनी ओर झटका दिया और बांहों मे भरकर चिपटा लिया.
इस बार नीलांजना कुछ न कह सकी. वैसी ही अवस्था में हम दोनों बाथरूम में घुस चले थे. बाथरूम काफ़ी बड़ा और आधुनिक था. दीवारों में दायें और बायें, आगे और पीछे शीशे जड़े हु‌ए थे. ऊपर शावर टंगा था और नीचे भी एक हैन्ड शावर बाथटब के साथ अलग रखा था. मौज से नहाने की तैयारी में नीलांजना ने पूरा टब खुशबूदार लिक्विड सोप की झाग से भर रखा था.

*******

नीलांजना पलटी और् खड़े-खड़े ही मैने उसकी कमर् को अपनी बाहों में लिपटाकर् उसे अपनी छाती से चिपका लिया. नीलांजना का सिर् मेरी छाती में ध्ंसा था और् वह् भी मुझसे चिपकती मुझमें समाई पड़ रही थी. उसकी कमर से अपना एक् हाथ् हटाकर् मैने नीलान्जना के बालों को पीछे से पकडा. बालों को झटका देते मैने अपनी छाती से चिपका उसका चेहरा अलग करते हुए उठाया और् उसके होठों से अपने होठ भिड़ा दिये. एक्-दो-तीन्-चार्-पांच्-छ्:-सात्---.बार् बार् मेरे होठ् अलग् होते और् भिड़ते पूरी आवाज् के साथ् नीलांजना के होठों पर् टूटते रहे थे. चुंबनों की झड़ी से वह् बदहवास् हो चली थी. उसने भी मेरे सिर् का पिछ्ला भाग् थाम् लिया . बार् बार् अपनी ओर् खींचती मेरे होठों को अपने होठों मे निगलती नीलांजना मुझे दीवाना बना रही थी. कमर् के नीचे तनकर् लहराता हुआ मेरा रबर् का गुड्डा बड़ी बेताबी से अपनी प्यारी नीलांजना की बंद गुफा में पिल् पड़ने के लिये उसके दरवाजे पर् ठोकर् मार् रहा था.
नीलांजना ने अपनी बांहों से मेरी पीठ पर् दबाव दाते हुए कसकर् मुझे अपनी बाहों में समेट् लिया . मेरे कंधों पर् सिर् टिकाये वह् धीरे से बोली - मैं बताऊं......?"
मैने कहा- क्या?"
उसने शरमाते हुए कहा-" मैने आप् को पहले ही वहां देख् लिया था."
"कहां"- मैने पूछा?"
"धत्त, वहीं जब् आप् का वो तेल से भीग् रहा था. जी किया कि दौड़कर् थाम् लूं."

नीलांजना के गालों का चुम्मा लेते मैने कह-"आह् मेरी प्यारी तुम् आ क्यों नहीं गईं. बड़ा मजा आ जाता."
" धत्त. गई तो थी मैं. आप् ने समझा ही नहीं. मुझे शरम आ रही थी तो मैं अपने मुंह से कैसे कहती?"
" अच्छा तो अब् चलो. अपनी गुड्डी से कहो कि वह् नाराज़ न हो. उससे कह् दो कि तब् की नासमझी का जुर्माना ब्याज् सहित् जी भर कर् मुझसे वसूल् लेगी."
अपनी प्यारी उस नीलांजना रानी को हौले-हौले संभालते मैने बाथरूम के झाग् से भरे हुए टब में लिटा दिया. नीलांजना की पसरी हुई खूबसूरत् काया पर् मैं चिपककर् चढ़ बैठा था. नीलांजना को लपेटते हुए एक् हाथ् से झटके से अपनी ओर् मै खींच् रहा था. दूसरे हाथ् की उंगलियां साबुन् के झाग् की भरपूर् चिकनाई से नहाए हुए नीलांजना के गोरे-गोरे पुष्ट् स्तनों पर् फिसल्-फिसल् कर् गोलाई की तली से ऊपर् की ओर् बढ़तीं जोर्-जोर् से उन्हें मसले जा रही थीं. दूसरी तरफ् नीलांजना का एक् हाथ् मेरी पीठ् पर् मुलामियत् से फिसलता हुआ "और्-और्" चिपका लेने का संदेशा भेज् रहा था और् दूसरा हाथ् मेरे झाग् से सने हुए दंड को लीलने के लिये बड़ी बेताबी से थामकर् अपनी ओर् बार्-बार् खींच् रहा था.
मेरे होठों ने लपक कर् नीला के दायें कान् की लौ को दबोचा. बड़ी नजाकत् से उनसे खेलता और् उन्हें चूसता हुआ मैं नीलांजना की आन्खों को निहार् रहा था. हम् दोनों की निगाहें एक-दूसरे में डूबी हुई एक-दूजे को अब समूचा का समूचा लील् जाने की तबीयत् से मचल् रही थीं. नीलांजना उस वक्त मुझे संसार् की सब् से खूबसूरत् औरत् दिखाई पड़ रही थी.
नीलांजना की तराशी हुई कमर् को झटके से मैने उठाया और् खुद् भी उसकी खूबसूरत टांगों में अपनी टांगों को उलझाए इस् तरह उसे उठाया कि हम् दोनों एक्-दूसरे से चिपके हुए उठ बैठे थे. कमर् के नीचे का हिस्सा टब की झाग् में डूबा चिपका जा रहा था और् ऊपर् नीलांजना की दूधिया छातियां पूरे जोर् से दबातीं मुझपर् फिसल् रही थीं. आंखें और् होंठ् हम् दोनों के आपस् में जोरदार् टक्कर् मारते निगलकर् खा जाने के लिये टूटे पड़ रहे थे.
मेरे होंठ् नीला के कानों में बेहोशी मे बुदबुदा रहे थे-" प्यारी नीला, आज् कह् डालो जो कहना है. पहली बार् ये आजादी मिली है. कुछ कहो...कह डालो प्लीज़ऽऽ...कहो, ...कुछ कहो न मेरी प्यारी नीला." मैने गप्प से नीला के होठों को जकड़कर् पूरा का पूरा अपने होठों में दबोच् लिया और् इतनी जोर् से अपनी छाती में जकड़ कर् भींचा कि नीला की छातियां चिपटकर् रह गईं और् हड्डियां कड़कड़ा कर् चीख् उठीं"
फिर् भी अलग् होने की बजाय् वह् मुझसे और् कसकर् चिपक् गई.
"हाय मेरे राजा मेरी प्यास् बुझाने से पहले ही मार् डालोगे क्या?" - वह् बोली.
अपने गालों को मेरे गालों से रगड़ती नीलांजना ने मेरे बालों को पकड़ कर् सिर् को झटका और् मेरे होठों लपक कर् कस् लिया. उखड़ती सांसों बीच् बदहवासी में भर्राई आवाज़् में वह् बुदबुदाई -
’आह् मेरे राजा, मेरे प्यारे ’, मुझपर् कौन् सा जादू तुमने कर् दिया है यार्. मुझसे सहा नहीं जा रहा है मेरे प्यारे... आ जाओ...अब और् मत् सताओ प्लीज़ऽऽ..."
रुकती और् हांफती वह् कहे जा रही थी - " मेरे यार्, मेरे राजा, न जाने कितनी बार् तुम्हें ख्वाबों में लिपटाये हुए मेरी लाड़ली नन्ही पानी-पानी होती रही. ये मैं तुमको कैसे समझाऊं? तुमको पाने की तमन्ना में ये कितना मरती रही मेरे राजा तुम् क्या जानो? अब मिलकर् भी मुझे मत् तरसाओ. आओ मेरे प्यारे, मेरी नन्हीं को ले लो...ले लो..मैं बेकरार् हूं प्लीज़्.."
वह् हांफ् रही थी और् मेरे होंठ चप्प-चप्प उसकी आंखों को, गालों को, कानों की लवों को चूमे जा रहे थे. शिराओं में दौड़ते खून के साथ फूलती और् लाल होती थिरक रही उसकी भूरी चूचियों को मैने अपने होठों में समेट लिया था. मेरे होंठ् नीलारानी की खूबसूरत चूचियों को छेड़ते, निगलते और् दबाते हुए खेल रहे थे. मेरी हथेलियां उत्तेजना की भरपूर अकड़् के साथ लगातार फूलकर बम्म होती जा रहीं उसकी दूधिया छातियों को मसल-मसल कर काबू में कर रही थीं.
होशोहवाश खोता हुआ मेरा बदन सनसना रहा था. आम हलात में सिकुड़कर छिपा हुआ मेरा कोमल दंड् इस वक्त खून की उफान के साथ तन्ना-तन्ना कर् खड़ा हो चला था.मेरा तैयार लंड अकड़कर लंबा होता हुआ इस इरादे से बढ़ा जा रहा था कि मौका मिलते ही वह् अपनी प्यारी छोटी नीलांजना को ठेलता हुआ उसकी फांक में समा जाये. वह यूं बेताब था कि नीला के निचले होठों को ठेलता, उसकी नाभि पर चोट मारता, दूधिया छातियों को भेदता गले में फिसलता वह उसके लाल्-लाल् होठों पर जाकर अटक जाये. मेरी निगाहें नीला की हरिणी के समान् खूबसूरत् आंखों में उलझी हुई थीं. मेरी नाक उसकी तराशी हुई सुन्दर नाक से टुनक-टुनक कर् खेल रही थी.
बेकाबू हुई जाती धड़कनों में हांफती मेरी जुबान प्यारी नीला से कह रही थी - "बोलो प्यारी नीलांजना, बोलो प्लीज़. आज मौका मिला है. सारा प्यार आज् होठों से बरसा डालो प्लीज़."
उधर बेहोशी में डूबी भारी आंखों से नीलांजना का जवाब आ रहा था. अपनी फिसलती छातियों में जकड़ती वह कहे जा रही थी -" आओ. आ जाओ मेरे प्यारे, मुझमे समा जाओ. मुझे इतना प्यार दो कि आज मैं खुशी से मर जाऊं. आऽऽह्, मैं मरी जा रही हूं. मैं प्यासी हूं. और् मत तरसाओ. अब डाल दो उस् प्यारे को जिसकी हसरत में तुम्हारी ही यह लाड़ली बेताब् होती मचल् रही है.
कमर के नीचे जांघों की संधि पर् गुस्साये बैल् की तरह सींग मारते मेरे लंड को नीलंजना अपनी मुत्ठी में थामकर ’हाय-हाय’ कर रही थी. सुपारी की गांठ को अपनी लार टपकाती चूत के दरवाजे पर टिकाती नीलांजना बोली - "आओ प्लीज़ अब कयामत हो ही जाने दो.."
नीला की गोरी-गोरी जांघों की चिकनी-चिकनी रानों पर हाथ् फेरकर प्यार से पुचकारा. फिर् हथेलियों से ’चत्ट-चत्ट की आवाज् से मैने उन पर यूं चोट की, जैसे उनसे पूछा जा रहा हो कि चलो तैयार् हो ना ? अब् भिड़न्त की बारी आ गई है.
**
"आओ"-मैने थोड़ा उठकर भारी पर् भरपूर आवाज में नीलांजना से कहा.
बाथ् के टब के सिरे पर कुहनियों के जोर से नीला के बदन को उठाकर् मैने यूं टिका दिया कि वह अध-बैठी हालत में थी. उसकी गहरी काली आंखों की कशिश् मुझे डुबाए जा रही थी. उत्तेजना की मदहोशी में और् ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ रही नीला के चेहरे को चूमकर मैने आगे कहा -" आओ, प्यारी रानी आ जाओ. अब रुकना मुश्किल् है"
नीलान्जना की जांघों के बीच् जगह बनाता मैने अपने सर की चोट से उस इलाके में तीन्-चार् बार् यूं कसकर ठोकर दी जैसे कोई बिगड़ा हुआ बैल् सींगे मार रहा हो. सर् की चोट देते मैने उस जगह को यूं कुरेदना शुरू किया जैसे गुस्साया हुआ बैल् अपनी सींगों से जमीन को छीलता गद्ढे खोदने पर् आमादा हो. नीला की झाड़ियों में छिपे निचले होठों को अपने होठों के बीच मैने कसकर मसलना शुरू किया. नीला की चूतरानी मेरे हमले के लिये बेसब्र होती लार टपका रही थी और् मेरे होठों को उसके स्वाद् का मजा दे रही थी. जान्घों की लंबी रेखा में लहरदार मखमली झांटों के बीच् शर्माकर बैठी नीला प्यारी की फांक अब खुलकर तैयार हो रही थी.उसकी जीभ् लपलपा रही थी. फांकों को ठेलकर् अब् मेरी जीभ् भी अन्दर घुसकर् उसकी लपलपाती जीभ से टक्कर ले रही थी.नीला की केसरिया चूत के हर् कोने को थपथपाती और् टटोलती मेरी जीभ उसकी दीवारों से बहते झरनों से अपनी प्यास् को बुझा रही थी. उधर झरनों से भीगती चूत् की प्यास और् बढ़ती जा रही थी.
नीलांजना मदहोश् हुई जा रही थी. उसका सारा बदन मछली की तरह उछल-उछल कर् मचल रहा था. मेरे लौड़े का ध्यान कर्-करके उसकी पलकें मुंदी जा रही थीं. मंद-मंद ध्वनियों में नीला की जुबान अब् केवल् "आह्-आह्" का मंत्र जा रही थी. वह बदहवाशी के आलम में बुदबुदाए जा रही थी -
"आऽह..आऽह..आऽह. अब् और् मत् तड़पाओ प्लीज़्. अब और् इन्तजार बर्दाश्त नहीं कर सकती यह नीला. आ जाओ नाऽ. मैं मरी जा रही हूं."
जवाब में मेरी हथेलियों ने तसल्ली देने नीला की चूत को चार-पांच थपकियां लगाईं. पूरी तैयारी का जायजा लेकर अब मैने अपने सनसनाते हुए बेताब लंड को प्यार से सहलाया और् फिर् उसे नीलान्जना की चूत के मुहाने पर तैनात कर दिया.
नीलान्जना की चूत के उस सब् से ज्यादा नरम हिस्से में जहां प्यार की गुदगुदी भरी होती है, मेरा लंड् उठता और धंसता हुआ खेलता रहा. इसके बाद् स्पीड लेते हुए उसने और् आगे जकर मध्यम गहराई को तराश्-तराश् कर् चिकना किया. इस तरह भीतर के रास्ते का जायजा लेने के बाद लंड राजा ने अपने को पीछे लौटाते हुए, एक् बार फिर् लपलपाती चूत के मुहाने को चूमा. तन्नाए लंड राजा ने इसके बाद् बे-मुरौवत होकर् नीलारानी की चूत पर जोरदार् झटके से अपने को पेल दिया और् ’घप्प’ की आवाज के साथ चूत की आखिरी हद् को ऐसी चोट मारी कि कमर से सर तक नील का पूरा बदन उस भूचाल् से उछल पड़ा. नीला की चूत में मेरा लौड़ा ऐसा कसा था जैसे बोतल के मुह को पेलकर कार्क ने उसकी छेद को पूरी कड़ाई से ठांस डाला हो.
नीलांजना के गले में फंसी सांसों के बीच् से उस वक्त "आह्-आह्, मार् डाला" की चीख् यूं निकली जैसे मेरा लंड् उसकी चूत् की सुरंग् से उसके गले में जा अटका हो. उसकी आंखें मुंद् चली थीं.
मैने टब के पास् रखी तेल की शीशी नीलांजना पर् यूं उड़ेल दी कि तेल् की धार् उसकी समूची छाती, कमर् और् पेट् तक उतर चली थी. फिर् वहीं पर् रखी सेन्ट् की फुहार् से नीला के बदन् को मैने भर् दिया. पूरा बाथरूम मादक खुशबू से महक् उठा था. मादक् बेहोशी में डूबी हुई नीला ने हौले से अपनी मुन्दी पलकें खोलीं. मेरी आंखों में डूबी वह् मुस्कुरा रही थी.
" आह् मेरे प्यारे प्रियम, तुम् मुझे किस् दुनिया में ले आये हो.मै खुशी से पागल् हुई जा रही हूं."
नीला के तेल् से भीगे बदन् पर् मेरे हाथ् फिसल् रहे थे. खास् तौर् पर् उसकी जोरदार फूली हुई गुलाबी छातियों और् फिर् चूचियों की मालिश् मे बड़ा मजा आ रहा था. सर् से पांव तक् मेरे हाथ् नीला की हर् रग् को टटोल रहे थे. नीला का बदन् चिकनाई में फिसलते हाथों की गुदगुदी से लहरा-लहराकर् उछल् पड़ रहा था. नीला बेताब होकर् मुझसे चिपक्-चिपक् जा रही थी.कमर् के नीचे मेरा लौड़ा और् नीला की चूत् एक्-दूसरे में ठसकर् चक्की पीस् रहे थे. मेरी हथेलियां नीलांजना की पोर्-पोर् पर् थिरक् रही थीं. वह् मुझे बाहों में घेरे हुए अपनी चिकनाई से पिघला रही थी. अचानक् मैने झपत्टा मारकर् नीला के बूब्स् को कसकर् भींचा और् उसकी चूचियों के अंगूरी रस् को निचोड़ने के लिये अपनी चुटकियों में थामकर् मसल् डाला. नीलांजना की कमर लहराने लगी और् वह् चित्त होती लेट् चली. उसकी खुशी से डोलती कमर् जांघों को आगे-पीछे ढकेलती हुई मेरे लंड् से खेल् रही थी.
इस खेल में अब् नीला और् मैं एक दूसरे को भिगाते हुए बाहर् और् अन्दर् भीगे जा रहे थे. अपने हाथों में नीला के खूबसूरत् चेहरे को थामकर् तड़ातड़ चुंबनों की बौछार् मैने कर् डाली. नीला ने लपककर् मेरे होठों पर् अपने होठ् जमा दिये और् वह् उन्हें बेरहमी से चबा-चबा कर् मुझे लूटे जा रही थी. हम् दोनो की छातियां और् कमर् खूब् भिड़कर् एक-दूसरे को हिला-हिलाकर् पीस डालने की होड़ में लगी हुई थीं. नीला अपने आधे खुले घुटनों के बीच् पूरी ताकत से मुझसे टकरा रही थी. इधर् मेरा भन्नाया लंड चूत की सुरंग से बार्-बार् अपने को बाहर् खींचता खूब् ऊंचे उठाता और् चूत् पर् हमला करता इतनी तेजी से टूटता कि नीला की कमर् चरमरा जाती. कमर् के टूटने की आवाज् हर् चोट् के साथ् -" हाय् रे, मार् डाल्ला. जरा धीरे प्लीज़" के रूप् में सुनाई पड़ती थी. उस खेल् में नीला और् मेरा सपना हकीकत् में बदल् रहा था. नीलारानी की पानी-पानी होती चूत् और् उसके रस मे नहा-नहा कर् खेलता मेरा लंड मौज् में उछल-उछलकर् ठोकर् मारते पूरी टक्कर् ले रहे थे.टक्कर से पैदा होती बिजली की सनसनी नीला के और् मेरे बदन से गुजरती हमें जन्नत् के बाग् की सैर् करा रही थी.
मेरे दिल् ने कहा कि जल्द बाजी मत् करो. अभी अपनी नीला प्यारी के साथ् सैर् को थोड़ा लंबा खिंचने दो. तब् अपना ऊपरी बदन् मैने नीला की छाती से ऊपर् उठाया. एक हाथ् से नीला की कमर् और् दूसरे हाथ् से मैने नीला की पीठ् को घेरकर् कस् लिया. फिर् लंड् की चोट् से चूत को धक्का मर्-मरकर् मैने इस तरह् ठेल दिया कि धीरे से नीला और् मै चूतरानी और् लंड् राजा को डिस्टर्ब किये बगैर् बैठने की पुजीसन मे टांगें फैलाये नजर् आए.
मैने कहा कि नीला प्यारी आओ. अब बाग् में इस एंगल से टहलेंगे कि सारा नज़ारा साफ् दिखाई पड़ेगा. तुम् देखना कि इसमें और् ज्यादा मजा है. नीला ने प्यार् से मेरी आंखों में झांका और् लपककर् मेरे होठों को यह् कहते हुए चूम डाला कि मै तुम्हारी हूं. जहां ले जाओगे वहां मैं जाऊंगी.
"आओ"- मैने एक-दूसरे को सही पुजीसन् में लाते हुए फिर् शंटिन्ग् चालू की. इंजन फिर् पटरी पर् ’फचाफच्-फचाफच्’, ’छ्पाक्-छ्पाक्’, ’चटाचट्-चटाचट्’ करता रफ़्तार् से दौड़ने लगा.
लंड् और् चूत के टकराव का जोरदार् नज़ारा अब् नीला और् मैं इतनए मगन होकर देख् रहे थे कि सारे होश् के साथ् हम् खुद् जैसे उन्हीं में तब्दील हो गये थे.