हाय जीजू धीरे धीरे डालो ना!!!

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सीमा तो थक कर सो गयी लेकिन अब मधु कहने लगी मेरी मुंह में भी रस पिलाईये जैसे दीदी को पिलाया था. और मेरी भी चूत चूसिये जैसे आपने दीदी की चुसी थी. मेरी भी तो अब हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मै ये लोभ छोड़ना भी नहीं चाहता था और मधु को दुखी भी नहीं करना चाहता था.
.
मैंने कहा- मधु , ये मेरा लंड आपके हवाले है. आप इसे चूस कर इस से रस निकाल लीजिये.

मधु बोली - ठीक है.

मै बिस्तर पर लेट गया. मधु मेरे बदन पर इस तरह से लेट गयी कि उसकी चूत मेरी मुह के ऊपर और वो मेरे लंड को अपने मुह में ले ली. वो मेरे लंड को चूसने लगी और मै उधर उसके चूत को चूस रहा था. जवान लड़कियों में रस की कमी नही रहती. उसके चूत से लगातार रस निकल रहा था. सचमुच अद्भुत स्वाद था. उधर मेरा लंड फिर तनतना गया. उसके चूसने का अंदाजा भी निराला था. मैंने उसे फिर से सीधा लिटाया और उसकी दोनों टांगों को अपने कन्धों पर रखा. उसकी चूत को दोनों हाथ से सहलाने के बाद अपना लंड पकड़ कर उसके चूत में डाला. लेकिन मैंने मधु को बड़े ही प्यार से धीरे धीरे चोदता रहा. वो मेरे इसी अंदाज़ पर मज़े ले रही थी. इस बार काफी देर तक उसकी चूत की चुदाई करने के बाद मेरे लंड ने चौथी बार क्रीम निकालने का सिग्नल दिया.

मैंने करहाते हुए मधु से पूछा - माल पीना है या डाल दूँ चूत में ही?

मधु ने भी दर्द भरे स्वर में कहा - मुझे पीना है.

मैंने जल्दी से लंड को उसके चूत से निकाला और मधु के मुह को खोल कर उसके मुह के पास लंड ले जा कर हाथ से 3-4 बार मुठ मारा ही था कि मेरे लंड महाराज ने चौथी बार लावा निकाल दिया . सारा लावा मधु ने अपने मुह में गटक लिया. और बड़े ही चटखारे ले ले कर पिया.उसके चूत से भी फाइनली रस निकल गया जो सचमुच किसी जूस से कम नहीं था.

उसके बाद मै भी मधु के साथ ही उसी के बिस्तर पर ही सो गया. रात करीब दस बजे हम लोग उठे सीमा और मधु दोनों ही चल नहीं पा रही थी. मै खाने के लिए बाहर गया और उन दोनों के लिए भी भरपूर मात्रा में खाना पैक करवाया और 2 बोतल बियर ले लिया.

वापस आने पर उन दोनों को खाना खिलाने के बाद दोनों को 2 -2 पैग बियर दिया. पहले तो दोनों मना करती रही. लेकिन जब मैंने कहा कि इस से कोई हानि नहीं होगी बल्कि तुम दोनों का बदन और चूत दर्द ठीक हो जाएगा तब दोनों ने एक बोतल बियर को पीया. इस से सचमुच उन दोनों का दर्द समाप्त हो गया. शेष एक बोतल बियर मै अकेले ही पी गया. हम सभी इतने में फिर से मस्त हो चुके थे. इसके बाद हम तीनो में कोई पर्दा नहीं रह गया. हम तीनो नंगे हो कर रात भर सेक्स गेम खेलते रहे. रात को मैंने दोनों की गांड का भी उद्धार कर दिया. हम तीनो सुबह के सात बजे सोये. मैंने अपने लिए अलग कमरा को भी रखे रखा. जहाँ मै कभी कभी दोनों में से किसी एक को अपने कमरे में ले जा कर एकांत में भी चोदता था. कभी कभी एकांत में भी तो चुदाई होनी चाहिए ना.

शेष सातों दिन हम तीनो ने साथ मिल कर चुदाई का तरह तरह का खेल खेला.

घर वापस आने के बाद भी चुपके चुपके हम तीनो रंगरेलियां मन ही डालते हैं.


दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,

कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...

आपके जवाब के इंतेज़ार में ...

आपका अपना

'लॅंडधारी'रविराम69 (c) (मस्तराम - मुसाफिर) at raviram69atrediffmaildotcom

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