किरन की कहानी

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एक दिन अच्छी खासी बारिश हो रही थी। एस-के भी नहीं आ सका था और अशफाक हमेशा की तरह कहीं बाहर टूर पे गये हुए थे। सलमा आँटी भी कहीं मसरूफ थीं। दो दिन से चुदाई नहीं हुई थी तो मैं थोड़ा सा उदास थी और मौसम भी ऐसा ही था कि मैंने अकेले ही बैठ कर व्हिस्की के दो तगड़े पैग पी लिये। फिर जैसे मैं एस-के के लिये मेक-अप वगैरह करती हूँ, वैसे ही मेक-अप किया और हाई-हील सैंडल पहने और एस-के को याद करते हुए नशे में अपनी चूत को एक केले से खूब चोदा। थोड़ी देर बाद, शाम के वक़्त जब डॉली ने बेल बजायी तो मैंने फटाफट एक नाईटी और उसके ऊपर गाऊन पहन लिया और डोर खोला। वो अच्छी खासी भीग चुकी थी। मैंने कहा कि “अरे डॉली.... तुम तो भीग चुकी हो.... चलो अंदर, मैं तुम्हें टॉवल देती हूँ... अपने जिस्म ड्राई कर लो और तुमको इतनी बारिश में आने की क्या ज़रूरत थी.... कल आ जाती ना!” उसने कहा, “नहीं आँटी मुझे कुछ आप से समझना था.... कल हमारी क्लास में सायंस का टेस्ट है.... इसी लिये आना ज़रूरी था”, तो मैंने कहा, “ठीक है पहले तुम चलो और अपना जिस्म पौंछ लो.... फिर पढ़ लेना।“ मैं डॉली को लेकर अपने रूम में आ गयी और उसको बड़ा सा टॉवल दिया और कहा कि “तुम अपने कपड़े उतार दो और ये टॉवल लपेट लो.... कपड़े जब सूख जायें तो पहन लेना।“ तो उसने कहा, “ठीक है आँटी!” डॉली कुछ हिचकिचा कर रही थी कपड़े चेंज करने के लिये क्योंकि मैं कमरे में ही थी लेकिन मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया। मैं समझ रही थी कि वो कपड़े चेंज कर लेगी पर उसने नहीं किये तो मैंने पूछा “क्या हुआ? तुमने चेंज नहीं किया?” वो थोड़ा शर्मायी तो मैं समझ गयी कि शायद मेरे सामने चेंज नहीं करना चाह रही है तो मैंने हँस कर कहा, “अरे डॉली हम दोनों ही फीमेल हैं और पता है लड़कियाँ हमेशा एक दूसरे के सामने कपड़े चेंज करने में शर्माती नहीं.... चलो बदल लो।“ फिर मैंने कहा कि “अच्छा चलो.... मैं भी तुम्हारे सामने ही अपने कपड़े चेंज कर लेती हूँ ताकि तुमको अगली बार शरम नहीं आये” और मैंने अपनी नाइटी और गाऊन उतार दिये। मैं अब उसके सामने बिल्कुल नंगी थी। सिर्फ हाई-हील सैंडल पहने हुए थे। एक-दो मिनट मैं ऐसे नंगी हालत में ही अलमारी में कपड़े टटोलती रही और फिर बिना पैंटी और ब्रेज़ियर के एक पतली सी झीनी नाइटी पहन ली। इतनी देर तक डॉली मेरे जिस्म को गौर से देखती रही। फिर डॉली ने भी अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और शर्मा कर मेरी तरफ़ देखने लगी। मैंने देखा कि उसकी चूचियाँ तो अच्छी खासी हैं। बड़ी मस्त लग रही थी डॉली.... नंगी खड़ी हुई। उसने भी सैंडल पहने हुए थे पर उसकी हील मेरे सैंडल जैसी ऊँची नहीं थी, ढाई-तीन इंच ऊँची ही रही होगी। उसकी चूचियों भी अच्छी खासी थीं, ऐसा लगाता था के जब चूचियाँ कुछ और बड़ी हो जायेंगी तो इस शेप में आ जायेंगी। मैंने देखा कि डॉली ने स्कर्ट के अंदर पैंटी पहनी हुई थी और पैंटी भी भीग चुकी थी और उसकी गोरी-गोरी बगैर बालों की चूत साफ़ नज़र आ रही थी। वो पैंटी नहीं उतार रही थी। मैंने कहा कि “डॉली, पैंटी भी उतार दो.... ये गीली रहेगी तो तुम्हें सर्दी लगेगी!” तो उसने शर्माते हुए पैंटी भी उतार दी और पूरी नंगी हो गयी। मैंने गौर से देखा तो वो आसमान से उतरी हुई कोई हूर लग रही थी और इतना पर्फ़ेक्ट जिस्म किसी तराशी हुई मूर्ती में ही दिख सकता था।

मैंने डॉली की स्कर्ट, ब्लाऊज़, ब्रा और पैंटी लेकर बालकोनी में सूखने के लिये फैला दिये। मैंने कहा कि “तुम मेरे बाथरूम में जा के गरम पानी से शॉवर लेकर आ जाओ और टॉवल लपेट लो और हाँ अंदर से लॉक नहीं करना क्योंकि शायद अंदर से तुमसे ना खुले.... उसका बोल्ट कुछ टाइट है।“ मैं उसके साथ बाथरूम में आ गयी। मेरे बाथरूम में बड़े साईज़ का बाथ टब है जिसमें कभी मैं ड्रेन होल को बंद करके गरम पानी भर करके उसमें कोई पर्फयूम डाल कर बैठ जाती हूँ और बाथ टब में जकूज़ी भी लगा हुआ है जिसके बुलबुलों से मेरा जिस्म रिलैक्स हो जाता है और जिस्म में पर्फयूम की महक भी आ जाती है। मैंने ऐसा ही उसके लिये भी किया और बाथ टब में गरम और ठंडा पानी मिक्स करके डाल दिया और थोड़ा सा पर्फयूम भी डाल दिया और उसमें पानी उतना ही डाला जितना डॉली के जिस्म को बर्दाश्त हो सके और डॉली से कहा कि थोड़ी देर वो इसमें ऐसे ही बैठ जाये... उसके बाद ड्रेन होल खोल दे तो सारा पानी निकल जायेगा और फिर बाहर आ जाये। उसने ऐसा ही किया। वो सैंडल उतार कर बाथ टब में बैठ गयी। बाथरूम का डोर खुला हुआ था। मैं अपने रूम में आकर बिस्तर पर बैठ गयी। मेरा सिर नशे में हल्का महसूस हो रहा था और मेरा सारा ध्यान एस-के की तरफ़ था। वो दो दिनों से नहीं आ सका था। कुछ तो बारिश का असर था कुछ उसको काम भी ज़्यादा था। मैं यही सोच रही थी और फिर एक और पैग बना कर पीते हुए एस-के के साथ अपने न्यू-यॉर्क के ट्रिप के बारे में सोचने लगी और यही सोच-सोच कर मेरे होंठों पे मुस्कुरहाट भी आ रही थी।

बाथरूम से डॉली के चींखने की आवाज़ से मैं अपने न्यू-यॉर्क के ख्वाब से बाहर आ गयी और बाथरूम कि तरफ़ दौड़ के गयी तो देखा कि डॉली टब के बाहर के हिस्से में नीचे गिरी हुई है। उसने शायद टब से बाहर निकल कर सैंडल पहने होंगे और फर्श थोड़ा गीला होने से उसका पैर फिसल गया था। मैं उसको नंगी ही उठा कर सहारा देकर अपने बेडरूम में लेकर आ गयी और बेड पे बड़ा सा टॉवल बिछा कर वैसे ही उसको टॉवल पे लिटा दिया और उसके जिस्म को उसी टॉवल से सुखाते वक्त देखा कि उसकी चूत तो मक्खन जैसी चिकनी और मलाई जैसी गोरी है। उसकी बिना बालों वाली और मोटे लिप्स की चूत, जिसके दोनों लिप्स एक दूसरे से थोड़े से अलग हुए थे और अंदर से पिंक कलर, बहुत सैक्सी लग रही थी। मेरा दिल कर रहा था कि बस मैं इसकी चूत को चूम लूँ और अपनी ज़ुबान उसकी चूत के अंदर डाल के चाट डालूँ। मैंने उसके जिस्म को सुखा कर के ऐसे ही टॉवल से लपेट दिया और पूछा कि क्या हुआ तो वो बोली कि “आँटी, मैंने बाहर निकल कर सैंडल पहने ही थे कि मेरा पैर फिसल गया और मैं गिर गयी!” मैंने कहा कि “तुम फिक्र न करो मैं तुम्हारे जाँघों पे ऑलिव ऑयल कि मालिश कर दूँगी तो थोड़ी ही देर में तुम ठीक हो जाओगी!” तो उसने कहा “ठीक है आँटी” और बोली कि “यू आर सो स्वीट आँटी.... आप बहुत अच्छी हो.... कितना खयाल रखती हो मेरा.... मेरी मम्मी के पास तो मेरे लिये टाईम ही नहीं है।“ मैं अपनी तारीफ सुन कर थोड़ा सा शरमा गयी और कहा “नहीं डॉली, ऐसी बात नहीं.... तुम देखो कि तुम्हारे मम्मी और डैडी दोनों काम करते हैं, ताकि तुम को अच्छी तालीम दे सकें और तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी कर सकें।“ उसने कुछ कहा नहीं, बस अपना सिर हिला दिया।

मैं ऑलिव ऑयल लेकर आ गयी और डॉली से कहा कि “मैं तुम्हारी जाँघों पे तेल लगा कर थोड़ी सी मालिश कर दूँगी तो तुम ठीक हो जाओगी पर ये टॉवल तुम्हारे नीचे रहा तो ये खराब हो जायेगा। मैं इसको निकाल देती हूँ और एक पुरानी बेडशीट बिछा देती हूँ।“ उसने कहा, “ठीक है आँटी” तो मैंने टॉवल निकाल दिया और एक पुरानी बेडशीट उसके नीचे बिछा कर उसको नंगी ही लिटा दिया और मैं उसकी दोनों टाँगों को फैला के बैठ गयी। उसने अपने हाथों से अपनी चूत को छुपा लिया तो मैं हँस पड़ी और कहा कि “अभी तो तुम से कहा था कि लड़कियाँ एक दूसरे से नहीं शर्माती” तो फिर भी उसने अपना हाथ नहीं हटाया तो मैंने कहा कि “देखो दोनों हाथ यहाँ रखने से तुम्हारी मौसंबी जैसी चूचियाँ मुझे दिखायी दे रही हैं” तो उसने दोनों हाथ चूत पे से हटा के चूचियों पे रख लिये तो मैंने कहा कि “देखो अब ये नज़र आ रही है” तो वो हँसने लगी और बोली कि “आँटी.... आप भी तो नाईटी पहने हुए हैं... वो भी तो खराब हो जायेगी, अगर उसको तेल लग गया तो!” मैंने हँस के कहा, “क्या मतलब है तुम्हारा?? मैं भी अपनी नाईटी उतर दूँ क्या?? वैसे भी इसमें से तुम्हें मेरा सब कुछ तो दिख रहा है।“ तो वो कुछ बोली “नहीं”, बस हँसने लगी तो मुझे भी कुछ शरारत सूझी और कहा, “ठीक है! तुम्हें शरम आती है तो मैं भी अपनी नाईटी निकाल देती हूँ।“ ये कहते हुए अपने हाथ से बैठे-बैठे नाइटी को ऊपर उठा के जिस्म से निकल दिया और नंगी हो गयी और बोली कि, “लो मैं भी तुम्हारी तरह अब सिर्फ सैंडल पहने हुए हूँ।“

डॉली ने मेरा जिस्म देखा तो बोली कि, “वॉव आँटी आप बहुत ब्यूटीफुल हो तो मैंने कहा कि तुम्हारी मम्मी भी तो ब्यूटीफुल है।“ उसने कहा कि “हाँ! है तो सही पर आप जितनी ब्यूटीफुल नहीं... आप तो बहुत ही ब्यूटीफुल हो” और मेरी चूचियों की तरफ़ इशारा करके बोली कि “मेरी मम्मी के ये भी ढीले हैं, आपके देखो कैसे शेप में हैं” और फिर मेरी चूत कि तरफ़ इशारा करके बोली कि “ये देखो आपके यहाँ तो एक भी बाल नहीं है और मेरी मम्मी के यहाँ तो बहुत बाल हैं।“ मैंने कहा कि “जैसे मैं तुमसे करीब दस साल बड़ी हूँ वैसे ही तुम्हारी मम्मी भी मुझसे दस-बारह साल बड़ी होंगी... इसलिये उम्र के हिसाब से इतना फर्क़ तो आ ही जाता है... वैसे तुमने कब और कैसे देखा तुम्हारी मम्मी को?” तो उसने बतया कि “बचपन से कईं दफ़ा देखा है... बाथरूम से बाहर आते हुए और कपड़े चेंज करते हुए।“ मैं समझ गयी कि डॉली के घर का माहौल बिल्कुल फ्री है तो मैंने पूछा, “डैडी का भी कुछ देखा?” तो उसने कहा कि “हाँ, कईं दफ़ा देखा है कपड़े चेंज करते वक्त और कभी सोने के टाईम पे क्योंकि आँटी, मेरे मम्मी और डैडी दोनों बिल्कुल नंगे सोते हैं बेड में।“ मैं हैरान रह गयी। फिर सोचा कि हो सकता है और फिर नंगे सोने में कुछ गलत बात भी तो नहीं है। मैं भी तो नंगी ही सोती हूँ। मैंने पूछा “और क्या-क्या देखा है तुमने” तो उसने कहा कि “मैंने तो बहुत कुछ देखा है आँटी। दोनों रात को ड्रिंक करके नशे में खुल्लमखुल्ला सब करते हैं। कभी डैडी को मम्मी के ऊपर और कभी मम्मी को डैडी के ऊपर चढ़े हुए भी देखा है और कभी जब उनके जिस्म से ब्लैंकेट हट जाती है तो देखा कि दोनों नंगे एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर चुदाई करते हैं।“ मैंने पूछा “तुमने कैसे देखा?” तो डॉली ने कहा कि “नशे में वो बेडरूम बंद नहीं करते और मैंने छुप कर सब देखा।“ मुझे अपनी चुदाई याद आ रही थी जैसे कभी मैं एस-के पे और कभी एस-के मुझ पर चढ़ कर उछल-उछल के चोद रहे होते हैं। मैं यही सोचती रही और अपने खयालों में गुम हो गयी।

डॉली ने कहा कि “क्या हुआ आँटी ??” तो मैं अपने सपनों से बाहर आ गयी और उससे कहा कि “नहीं कोई खास बात नहीं.... मैं तुम्हारी मम्मी और डैडी के बारे में सोच रही थी.... तुम बहुत शरारती हो... अपने मम्मी-डैडी की चुदाई देखती हो.... और तुम्हें कैसे पता ये चुदाई है?” वो बोली, “आँटी, मैं बच्ची नहीं हूँ.... सब समझती हूँ।“ ये कहकर वो हँस पड़ी। “तो और क्या-क्या करती हो तुम छुप कर...” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा। वो थोड़ा शर्मा गयी और बोली, “आँटी आप भी ना...!” मैंने फिर उसे उकसाया तो उसने बताया कि उसने अपने पेरेंट्स की ब्लू फिल्मों की सी-डियाँ कई बार छुप कर देखी हैं और शराब भी पी है। मैं उसकी बातें सुनकर गरम हो गयी थी। मैं अपनी टाँगें फ़ोल्ड करके उसकी दोनों टाँगों के बीच में बैठी थी और मैंने उसकी दोनों टाँगों को फैला करके तेल दोनों जाँघों पे डाल दिया और धीरे-धीरे पहले तो तेल फैलाया और फिर मालिश करने लगी। उसकी दोनों टाँगों को अपनी मुड़ी हुई जाँघों पे रख लिया और डॉली को थोड़ा सा अपनी तरफ़ खींच लिया जिससे वो थोड़ा सा सामने खिसक आयी और उसकी चूत के दोनों लिप्स खुल गये। मैंने देखा कि उसकी चूत अंदर से बहुत पिंक है और छोटी सी क्लीटोरिस चूत के ऊपर टोपी कि तरह है और चिकनी चूत मस्त लग रही थी। मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उसकी मक्खन जैसी चूत को सहलाऊँ, मसाज करूँ और उसकी चूत को चूम लूँ पर ऐसा करने से अपने आपको रोक लिया। मैं बस उसकी जाँघों की ही मालिश कर रही थी।

मैंने डॉली से पूछा कि “कैसा लग रहा है तो उसने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है आँटी, थोड़ा सा और ऊपर तक दर्द हो रहा है” और उसने अपनी चूत के करीब हाथ रख कर बताया कि करीब यहाँ तक दर्द हो रहा है तो मैं और ज़्यादा ऊपर तक मालिश करने लगी। उसकी जाँघें बहुत ही हसीन थी क्योंकि वो डाँस सीख रही थी और डाँस क्लास अटेंड करती थी। मालिश करते वक्त मेरी चूचियाँ आगे पीछे हो रही थीं तो डॉली उनको गौर से देख रही थी। मेरी नज़र डॉली पे पड़ी कि वो मेरी चूचियाँ देख रही है तो मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या देख रही हो डॉली?” तो वो शर्मा गयी और बोली कि “ये मुझे अच्छे लग रहे हैं, पता नहीं मेरे कब इतने बड़े होंगे।“ मैंने कहा, “फिक्र ना करो.... जल्दी ही बड़े हो जायेंगे.... दो या तीन साल में ही बड़े हो जायेंगे।“ उसने पूछा कि “और क्या क्या होगा मेरे जिस्म में”, तो मैंने उसकी मोसंबी जैसी चूचियों को पकड़ के कहा कि “ये बड़े हो जायेंगे.... इतने बड़े कि पूरे हाथ में समा जायें।” मेरे हाथ उसकी चूचियों पे लगते ही उसके मुँह से एक “आआहह” निकल गयी तो मैंने पूछा, “क्या हुआ डॉली.... क्या दर्द हो रहा है?” तो उसने कहा “नहीं आँटी, आप के यहाँ हाथ रखने से बहुत अच्छा लगा और मुझे बहुत मज़ा आया” तो मैं हँस पड़ी और उसकी चूचियों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर दबा दिया। उसने फिर से सिसकरी ली तो मैं समझ गयी कि ये लड़की बेहद गरम है और जवानी में तो कयामत बन जायेगी।

जाँघों पे मालिश करते-करते मेरे अंगूठे उसकी चूत के मोटे-मोटे लिप्स तक आ रहे थे और जब भी अंगूठा उसकी चूत से टकराता तो वो अपने चूतड़ उछाल देती और सिसकरी लेती। मैंने पूछा, “क्या हो रहा है?” तो वो बोली कि “बहुत मज़ा आ रहा है आँटी, अब जाँघों को छोड़ कर यहीं पे करो ना मालिश।“ मुझे भी अपने स्कूल के टाईम का अपनी क्लासमेट ताहिरा के साथ चूतों से खेलना और सिक्स्टी-नाईन पोज़िशन में एक दूसरे की चूतों को चाटना याद गया तो मैं सब कुछ भूल कर डॉली की चूत का मसाज करने लगी और अपनी अँगुलियों से उसकी क्लिटोरिस को मसलने लगी। उसके मुँह से बस सिसकारियाँ ही निकल रही थीं। मैंने डॉली की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा और अपनी तरफ़ खींचा तो उसकी टाँगें और खुल गयीं और चूत थोड़ा ऊपर उठ गयी और कुछ और करीब आ गयी। मैं झुक कर उसकी चूत को किस करने लगी। मेरे लिप्स उसकी चूत पे लगते ही उसके मुँह से एक चींख सी निकल गयी और उसने मेरे सिर पर हाथ रख लिया और अपने चूतड़ उछाल के मेरे मुँह पे चूत को रगड़ने लगी। मैंने अपने दोनों हाथ उसके चूतड़ों के नीचे रख कर उसकी चूत को और उठाया और उसकी चिकनी चूत के अंदर ज़ुबान डाल कर उसकी मक्खन जैसी चिकनी चूत को चाटने लगी। उस वक्त मैं अपने आप को वही ग्यारहवीं-बारहवीं में पढ़ने वाली लड़की समझ रही थी और डॉली को अपनी क्लासमेट ताहिरा समझ रही थी और ये बिल्कुल भूल गयी थी कि मैं एक शादी शुदा औरत हूँ और डॉली से काफी बड़ी हूँ। पर उस वक्त मुझे याद था तो बस ताहिरा का मेरे बेड में रहना और हमारा एक दूसरे की चूतों को चाटना। अपने आप को छोटी ग्यारहवीं-बारहवीं की किरन समझते हुए और नीचे लेटी हुई डॉली को ताहिरा समझते हुए मैं पलट गयी और अपनी चूत को डॉली के मुँह पे रख दिया और उसकी गाँड के नीचे हाथ रख कर उसकी चूत को थोड़ा ऊपर उठा लिया और उसकी छोटी सी मक्खन जैसी चूत को चूसने लगी। उसने मेरी चूत में अपनी ज़ुबान डाल दी और मेरी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मेरे जिस्म में मस्ती छायी हुई थी और मैं जितनी तेज़ी से अपनी चूत उसके मुँह से रगड़ रही थी, उतनी ही तेज़ी से उसकी चूत को भी चूस रही थी और अपनी ज़ुबान उसकी चूत में डाल कर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर और पूरी चूत को मुँह में लेकर काटने लगी। उसने अपने चूतड़ उछाल कर मेरे मुँह में चूत को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ना शुरू कर दिया और वो जोश में मेरी चूत ज़ोर-ज़ोर से चाटने और चूसने लगी और मेरे जिस्म में एक बिजली सी दौड़ने लगी। मैं काँपने लगी और मुझे महसूस हुआ कि अब मेरा जूस निकलने वाला है और मेरा जिस्म हिलने लगा और मेरी चूत में से जूस निकलने लगा, जिसे डॉली मज़े ले लेकर पीने लगी और एक ही सैकेंड में डॉली काँपने लगी और उसकी चूत में से भी जूस निकल पड़ा। उसकी चूत भी बहुत ही नमकीन हो गयी और उसकी आँखें बंद हो गयी थी उसकी चूत से बहुत ज़्यादा जूस निकला। मैं उसके ऊपर ऐसे ही लेटी रही। थोड़ी देर में फिर जब मुझे होश आया तो पलट के उसके बगल में सीधी लेट गयी और बोली कि “सॉरी डॉली, पता नहीं मुझे क्या हो गया था.... मुझे तुम्हारे साथ ये सब नहीं करना चहिये था” तो उसने कहा “नहीं आँटी, आप ऐसा कुछ मत सोचिये.... ये तो मैं अपनी फ्रैंड के साथ कईं दफ़ा कर चुकी हूँ और मुझे इसमें बहुत मज़ा भी आता है।“ मुझे फिर अपनी फ्रैंड ताहिरा का खयाल आया और मैं सोचने लगी कि शायद ये सब स्कूल की लड़कियों के लिये नॉर्मल सी बात है और शायद सभी स्कूल की लड़कियाँ जो एक दूसरे की बेस्ट फ्रैंड्स हैं, छिपछिपा कर ऐसे ही करती हैं।

दिन और रात ऐसे ही गुज़रते रहे और मैं कभी एस-के, कभी अशफाक, कभी सलमा आँटी तो कभी डॉली के बीच झूलने लगी पर किसी को भी ऐसे शक नहीं होने दिया कि मैं किसी और के साथ भी हूँ। सब यही समझते थे कि मैं सिर्फ़ उसके ही साथ हूँ। कईं दफ़ा लंच से पहले एस-के के साथ उसके ऑफिस में या अपने घर पे उसके लंड से चुदवा कर मज़े करती, दोपहर में सलमा आँटी और फिर शाम को डॉली के साथ लेस्बियन चुदाई का मज़ा लेती। रात को अशफ़ाक के होने या ना होने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।

दिन ऐसे ही गुज़रते चले गये। अब मैं कभी-कभी ऑफिस भी जाने लगी थी। जो काम घर बैठ कर किया उसकी सी-डी बना कर और पेपर लेकर ऑफिस जाती और वहाँ से दूसरे इनवोयस एंट्री के लिये लेकर आ जाती। कभी-कभी तो एस-के अपने ऑफिस में ही मुझे चोद देता और ऑफिस में व्हिस्की के एक-दो पैग भी पिला देता। मुझे भी व्हिस्की की हल्की से मदहोशी में चुदाई का दुगना-तिगुना मज़ा आता। मैंने ऑफिस जाने के टाईम पे हमेशा अच्छे से तैयार होती पर मैंने ब्रेज़ियर और पैंटी पहनना छोड़ दिया था क्योंकि एस-के कभी बिज़ी होता तो फटाफट जल्दबाज़ी की चुदाई के लिये मैं बगैर ब्रा और पैंटी के रेडी रहती। मुझे बगैर ब्रा और पैंटी के कपड़े पहनना अब बहुत अच्छा लगने लगा क्योंकि कमीज़ जब निप्पल से डायरेक्ट टच करती तो चलने के टाईम पे बहुत मज़ा आता और निप्पल खड़े हो जाते और सलवार की चूत के पास की सीवन (सिलाई) जब चूत के दोनों लिप्स ले बीच में घुस जाती तो क्लीटोरिस से रगड़ते- रगड़ते मज़ा आता और कभी-कभी तो जब सलवार चूत में घुस जाती तो मैं ऐसे ही झड़ भी जाती। कभी ऐसे होता कि एस-के अपनी चेयर पे बैठा होता और मैं अपने सलवार नीचे कर के उसकी दोनों जाँघों के दोनों तरफ़ अपनी टाँगें रख के उसके रॉकेट लंड पे बैठ जाती और वो मेरी कमी उठा कर मेरी चूचियाँ चूसने लगता और मैं उसके ऊपर उछल-उछल कर लंड अंदर-बाहर करती। मेरी चूचियाँ एस-के के मुँह के सामने डाँस करती और एस-के उनको पकड़ के मसल देता और चूसने लगता तो मज़ा आ जाता। ऐसी पोज़िशन में मुझे बेहद मज़ा आता और लगता जैसे मूसल जैसा लौड़ा चूत फाड़ के पेट में घुस गया हो। कभी तो वो मुझे अपनी टेबल पे ही झुका देता और पीछे से डॉगी स्टाईल में चोद देता। ऐसे में हाई-हील सैंडल पहने होने का बहुत फायदा होता क्योंकि एक तो मेरी चूत एस-के लंड ले लेवल में आ जाती और एस-के का कहना था कि मेरी लंबी सुडौल टाँगें, हाई-हील सैंडलों में और भी सैक्सी लगती हैं। दिन ऐसे ही गुज़रते रहे और मस्त चुदाई चल रही थी और ज़िंदगी ऐसे ही खुशग़वार गुज़र रही थी।

मेरे घर से ऑफिस का पैदल रास्ता तकरीबन बीस-पच्चीस मिनट का होगा। मैं पैदल ही आती जाती थी ताकि कुछ चलना भी हो जाये और अगर घर के लिये कुछ सामान की ज़रूरत हो तो बज़ार से खरीद भी लेती थी। वैसे तो घर वापिस आते वक्त मैं हमेशा थोड़े-बहुत नशे में ही होती थी पर मुझे एहसास था कि इससे हाई-हील सैंडलों में मेरी चाल और भी हिरनी जैसी सैक्सी हो जाती थी। घर और ऑफिस के बीच में बहुत सारी अलग-अलग तरह के मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हैं और उन में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में एक लेडीज़ टेलर की दुकान भी है। दुकान के बिल्कुल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के बाहर के हिस्से में सड़क की तरफ है और उसके बोर्ड पे एक बहुत ही खूबसूरत लड़की की फिगर बनी हुई है जिसके बूब्स मस्त शेप में थे और बोर्ड पे इंगलिश में लिख था "एम एल लेडीज़ टेलर एंड बुटीक: आल काइंड ऑफ लेडीज़ नीड्स। दूसरी लाईन में लिखा था, "वी सेटिसफायी ऑल अवर कस्टमर्स और तीसरी लाईन में लिखा था सेटिसफाईड एंड कस्टमर प्लेज़र इज़ अवर ट्रेज़र" और सबसे आखिरी लाईन में लिखा था, "ट्राई अस टुडे" और उसके नीचे लिखा था, “प्रॉपराईटर एंड मास्टर टेलर अन्द फेशन डिज़ाईनर: अनिल कुमार, बी.कॉम।“

ये अनिल कुमार अच्छी शकल सूरत का लड़का था और बहुत यंग था। उसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में ब्यूटी पॉर्लर या ग्रोसरी की दुकान में आते-जाते उसकी दुकान के आगे से गुज़रते हुए कभी हम दोनों की नज़र मिल जाती तो दोनों ही एक दूसरे को कुछ पल तक नज़र गड़ा कर देखते रहते। कभी-कभी तो मैं उसकी दुकान से आगे जाने के बाद मुस्कुरा देती जिसका मतलब मुझे भी नहीं समझ में आता था। थोड़े ही दिनों में मुझे अनिल अच्छा लगने लगा और उससे बात करने को मेरा मन करने लगा। अच्छे कपड़े पहनता था। मीडियम हाईट, एथलेटिक बॉडी, रंग गोरा और स्मार्ट। काले बाल जिनको स्टाईल से सेट करता था और लाईट ब्राऊन बड़ी-बड़ी आँखें। देखने से ही लगाता था जैसे किसी अच्छे खानदान का है। मैंने सोच लिया कि किसी दिन अनिल से ज़रूर अपने कपड़े सिलवाऊँगी। उसकी दुकान पे लड़कियाँ बहुत आती जाती थीं। हमेशा कोई ना कोई लड़की खड़ी होती और कभी-कभी तो एक से ज़्यादा भी लड़कियाँ होतीं अपने कपड़े सिलवाने या खरीदने के लिये। ज़ाहिराना उसकी दुकान खूब चलती थी और ज्यादातर वक्त उसकी दुकान पे भीड़ ही रहती थी। काफ़ी बिज़ी टेलर था।

एक शाम जब मैं ऑफिस से वापस आ रही थी तो बारिश शुरू हो गयी और मैं उसकी दुकान के सामने आ कर खड़ी हो गयी। बारिश अचानक शुरू हुई थी तो मेरे कपड़े भीग चुके थे और जैसा मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि ऑफिस जाने के टाईम पे मैंने ब्रा और फैंटी पहनना छोड़ दिया था तो बारिश में भीगने से मेरे कपड़े मेरे जिस्म से चिपक गये थे और मेरा एक-एक अंग अच्छी तरह से नज़र आ रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं नंगी हो गयी हूँ। शरम भी थोड़ी आ रही थी पर अब क्या कर सकती थी। ऊपर से आज ऑफिस में एस-के के साथ व्हिस्की के दो तगड़े पैग पी लिये थे और थोड़े नशे में मुझे अपना सिर बहुत हल्का महसुस हो रहा था और ऐसे मौसम में जिस्म में जैसे मीठी सी मस्ती दौड़ रही थी। चूत में अभी भी एस-के की मलाई का गीलापन महसूस दे रहा था।

अनिल अकेला ही था दुकान में। उसने मुझे अंदर बुलाया और मैं उसकी दुकान के अंदर आ गयी। उसने एक गद्देदार स्टूल दिया मेरे बैठने के लिये। उसे शायद मेरी साँसों में व्हिस्की की महक़ आ गयी थी और मुझे ठंड से काँपते देख वो बोला कि “आपके लिये चाय मंगवाऊँ या शायद आप रम प्रेफर करेंगी... मेरे पास ओल्ड कास्क रम है इस वक्त।“ मैं मना नहीं कर सकी.... ठंड बहुत लग रही थी। थोड़ी देर पहले ही एस-के के ऑफिस में व्हिस्की पी थी तो अब चाय पीने से बेमेल हो सकता था। इसलिये मैंने कहा कि इस मौसम में रम ही ठीक रहेगी। मैं स्टूल पे बैठ गयी और उसने मुस्कुराते हुए अपनी दराज़ में से रम की बोतल निकाल कर एक ग्लास में थोड़ी सी डाल कर मुझे दी। मैंने दो घूँट में ही पी ली.... ठंड में रम बहुत अच्छी लग रही थी। मैंने ग्लास रखा तो इससे पहले मैं मना करती, उसने थोड़ी सी और मेरे ग्लास में डाल दी और इस बार दूसरे ग्लास में अपने लिये भी थोड़ी सी डाल दी। वो धीरे-धीरे सिप कर रहा रहा था और मुझे देख रहा था। हम दोनों कभी इधर उधर की बातें भी कर लेते। उसने मुझे बताया कि वो कॉमर्स का ग्रेजुयेट है और फैशन डिज़ाईनिंग का कोर्स भी कर रहा है। इसी लिये ट्रायल के तौर पे लेडीज़ टेलर की दुकान खोल ली है। उसका घर कहीं और था लेकिन दुकान हमारे इलाके में थी। वो डेली आता जाता था अपनी मोटर बाईक पर। उसने मेरे बारे में भी पूछा। उसने मेरे ड्रेसिंग सेंस की भी काफी तारीफ की। वो बोला, कि “मैंने आपको कईं बार यहाँ से गुज़रते देखा है और आप हमेशा ही लेटेस्ट फैशन के कपड़े बहुत ही एप्रोप्रियेटली पहनती हैं... और आपकी चाल तो बिल्कुल किसी मॉडल जैसी है।“ मैं उसकी बात सुन कर हँस दी। ऐसे ही हम बातें करते रहे। थोड़ी देर के बाद बारिश रुक गयी तो मैं उसको थैंक यू कह कर जाने लगी तो उसने कहा कि “इसमें थैंक यू की क्या बात है मैडम.... कभी हमें अपनी खिदमत का मौका दें तो हमें खुशी होगी।“ वॉव.... जब उसने मैडम कहा तो मुझे अनिल एक दम से बहुत ही अच्छा लगने लगा। उसकी ज़ुबान से अपने लिये मैडम सुन कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो गयी। फिर उसने पूछा कि “मैडम, आप ठीक हैं ना... आप कहें तो मैं आप के साथ घर तक चलूँ।“ उसका मतलब समझकर मैंने हंस कर कहा कि “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.... मैं ठीक से चल सकती हूँ.... मुझे अक्सर ड्रिंक्स लेने की आदत है... और फिर तुम्हारे दुकान छोड़कर मेरे साथ आने से कस्टमर्स को परेशानी होगी।“