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Click hereलेडी डाक्टर
लेखक: गुलशन खत्री ©
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उस लेडी डाक्टर का नाम ज़ुबैदा कादरी था। कुछ ही दिनों पहले उसने मेरी दुकान के सामने अपनी नई क्लिनिक खोली थी। पहले ही दिन जब उसने अपनी क्लिनिक का उदघाटन किया था तो मैं उसे देखता ही रह गया था। यही हालत मुझ जैसे कुछ और हुस्न-परस्त लड़कों की थी। बड़ी गज़ब की थी वो। उम्र यही कोई सत्ताइस-अठाइस साल। उसने अपने आपको खूब संभाल कर रखा हुआ था। रंग ऐसा जैसे दूध में किसी ने केसर मिला दिया हो। त्वचा बेदाग और बहुत ही स्मूथ। आँखें झील की तरह गहरी और बड़ी-बड़ी। अक्सर स्लीवलेस कमीज़ के साथ चुड़ीदार सलवार और उँची ऐड़ी की सैंडल पहनती थी, मगर कभी-कभी जींस और शर्ट पहन कर भी आती थी। तब उसके हुस्न का जलवा कुछ और ही होता था। किसी माहिर संग-तराश का शाहकार लगती थी वो तब।
उसके जिस्म का एक-एक अंग सलीके से तराशा हुआ था। उसके सीने का उभरा हुआ भाग फ़ख्र से हमेशा तना हुआ रहता था। उसके चूतड़ इतने चुस्त और खूबसूरत आकार लिये हुए थे, मानो कुदरत ने उन्हें बनाने के बाद अपने औजार तोड़ दिये हों।
जब वो ऊँची ऐड़ी की सैंडल पहन कर चलती थी तो हवाओं की साँसें रुक जाती थीं। जब वो बोलती थी तो चिड़ियाँ चहचहाना भूल जाती थीं और जब वो नज़र भर कर किसी की तरफ देखती थी तो वक्त थम जाता था।
सुबह ग्यारह बजे वो अपना क्लिनिक खोलती थी और मैं अपनी दुकान सुबह दस बजे। एक घंटा मेरे लिये एक सदी के बराबर होता था। बस एक झलक पाने के लिये मैं एक सदी का इंतज़ार करता था। वो मेरे सामने से गुज़र कर क्लिनिक में चली जाती और फिर तीन घंटों के लिये ओझल हो जाती।
“आखिर ये कब तक चलेगा...” मैंने सोचा। और फिर एक दिन मैं उसके क्लिनिक में पहुँच गया। कुछ लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। मैं भी लाईन में बैठ गया। जब मेरा नंबर आया तो कंपाउंडर ने मुझे उसके केबिन में जाने का इशारा किया। मैं धड़कते दिल के साथ अंदर गया।
वो मुझे देखकर प्रोफेशनलों के अंदाज़ में मुस्कुराई और सामने कुर्सी पर बैठने के लिये कहा।
“हाँ, कहो... क्या हुआ है?” उसने मुझे गौर से देखते हुए कहा।
मैंने सिर झुका लिया और कुछ नहीं बोला।
वो आश्चर्य से मुझे देखने लगी और फिर बोली... “क्या बात है?”
मैंने सिर उठाया और कहा... “जी... कुछ नहीं!”
“कुछ नहीं...? तो...?”
“जी, असल में कुछ हो गया है मुझे...!”
“हाँ तो बोलो न क्या हुआ है...?”
“जी, कहते हुए शर्म आती है...।”
वो मुस्कुराने लगी और बोली... “समझ गयी... देखो, मैं एक डॉक्टर हूँ... मुझसे बिना शर्माये कहो कि क्या हुआ है... बिल्कुल बे-झिझक हो कर बोलो...।“
मैं यहाँ-वहाँ देखने लगा तो वो फिर धीरे से मुस्कुराई और थोड़ा सा मेरे करीब आ गयी। “क्या बात है...? कोई गुप्त बिमारी तो नहीं...?”
“नहीं, नहीं...!” मैं जल्दी से बोला... “ऐसी बात नहीं है...!”
“तो फिर क्या बात है...?” वो बाहर की तरफ देखते हुए बोली, कि कहीं कोई पेशेंट तो नहीं है। खुश्किस्मती से बाहर कोई और पेशेंट नहीं था।
“दरअसल मैडम... अ... डॉक्टर... मुझे...” मैं फिर बोलते बोलते रुक गया।
“देखो, जो भी बात हो, जल्दी से बता दो... ऐसे ही घबराते रहोगे तो बात नहीं बनेगी...!”
मैंने भी सोचा कि वाकय बात नहीं बनेगी। मैंने पहले तो उसकी तरफ देखा, फिर दूसरी तरफ देखता हुआ बोला... “डॉक्टर मैं बहुत परेशान हूँ।”
“हूँ...हूँ...” वो मुझे तसल्ली देने के अंदाज़ में बोली।
“और परेशानी की वजह... आप हैं...!”
“व्हॉट ???”
“जी हाँ...!”
“मैं??? मतलब???”
मैं फिर यहाँ-वहाँ देखने लगा।
“खुल कर कहो... क्या कहना चाहते हो..?”
मैंने फिर हिम्मत बाँधी और बोला... “जी देखिये... वो सामने जो जनरल स्टोर है... मैं उसका मालिक हूँ... आपने देखा होगा मुझे वहाँ...!”
“हाँ तो?”
“मैं हर रोज़ आपको ग्यारह बजे क्लिनिक आते देखता हूँ... और जैसे ही आप नज़र आती हैं...”
“हाँ बोलो...!”
“जैसे ही आप नज़र आती हैं... और मैं आपको देखता हूँ...”
“तो क्या होता है...?” वो मुझे ध्यान से देखते हुए बोली।
“तो जी, वो मेरे शरीर का ये भाग... यानी ये अंग...” मैंने अपनी पैंट की ज़िप की तरफ इशारा करते हुए कहा... “तन जाता है!”
वो झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगी और फिर लड़खड़ाती हुई आवाज़ में बोली... “कक्क... क्या मतलब??”
“जी हाँ”, मैं बोला, “ये जो... क्या कहते हैं इसे... पेनिस... ये इतना तन जाता है कि मुझे तकलीफ होने लगती है और फिर जब तक आप यहाँ रहती हैं... यानी तीन-चार घंटों तक... ये यूँ ही तना रहता है।”
“क्या बकवास है...?” वो फिर झेंप गयी।
“मैं क्या करूँ डॉक्टर... ये तो अपने आप ही हो जाता है... और अब आप ही बताइये... इसमें मेरा क्या कसूर है?”
उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या बोले... फिर मैं ही बोला, “अगर ये हालत... पाँच-दस मिनट तक ही रहती तो कोई बात नहीं थी... पर तीन-चार घंटे... आप ही बताइये डॉक्टर... इट इज टू मच।”
“तुम कहीं मुझे... मेरा मतलब है... तुम झूठ तो नहीं बोल रहे?” वो शक भरी नज़रों से मुझे देखती हुई बोली।
“अब मैं क्या बोलूँ डॉक्टर... इतने सारे ग्राहक आते हैं दुकान में... अब मैं उनके सामने इस हालत में कैसे डील कर सकता हूँ... देखिये न... मेरा साइज़ भी काफी बड़ा है... नज़र वहाँ पहुँच ही जाती है।”
“तो तुम... इन-शर्ट मत किया करो...” वो अपने स्टेथिस्कोप को यूँ ही उठा कर दूसरी तरफ रखती हुई बोली।
“क्या बात करती हैं डॉक्टर... ये तो कोई इलाज नहीं हुआ... मैं तो आपके पास इसलिये आया हूँ कि आप मुझे कोई इलाज बतायें इसका।”
“ये कोई बीमारी थोड़े ही है... जो मैं इसका इलाज बताऊँ...।”
“लेकिन मुझे इससे तकलीफ है डॉक्टर...।”
“क्या तकलीफ है... तीन-चार घंटे बाद...” कहते-कहते वो फिर झेंप गयी।
“ठीक है डॉक्टर, तीन चार घंटे बाद ये शांत हो जाता है... लेकिन तीन चार घंटों तक ये तनी हुई चीज़ मुझे परेशान जो करती है... उसका क्या?”
“क्या परेशानी है... ये तो... इसमें मेरे ख्याल से तो कोई परेशानी नहीं...!”
“अरे डॉक्टर ये इतना तन जाता है कि मुझे हल्का-हल्का दर्द होने लगता है और अंडरवियर की वजह से ऐसा लगता है जैसे कोई बुलबुल पिंजरे में तड़प रहा हो... छटपटा रहा हो...” मैं दुख भरे लहजे में बोला।
वो मुस्कुराने लगी और बोली... “तुम्हारा केस तो बड़ा अजीब है... ऐसा होना तो नहीं चाहिये..!”
“अब आप ही बताइये, मैं क्या करूँ?”
“मैं तुम्हें एक डॉक्टर के पास रेफ़र करती हूँ... वो सेक्सोलॉजिस्ट हैं...!”
“वो क्या करेंगे डॉक्टर...? मुझे कोई बीमारी थोड़े ही है... जो वो...”
“तो अब तुम ही बताओ इसमें मैं क्या कर सकती हूँ...?”
“आप डॉक्टर है... आप ही बताइये... देखिये... अभी भी तना हुआ है और अब तो कुछ ज़्यादा ही तन गया है... आप सामने जो हैं न...!”
“ऐसा होना तो नहीं चाहिये... ऐसा कभी सुना नहीं मैंने...” वो सोचते हुए बोली और फिर सहसा उसकी नज़र मेरी पैंट के निचले भाग पर चली गई और फिर जल्दी से वो दूसरी तरफ देखने लगी। कुछ देर खामोशी रही और फिर मैं धीरे-धीरे कराहने लगा। वो अजीब सी नज़रों से मुझे देखने लगी।
फिर मैंने कहा, “डॉक्टर... क्या करूँ?”
वो बेबसी से बोली... “क्या बताऊँ?”
मैने फिर दुख भरा लहजा अपनाया और बोला... “कोई ऐसी दवा दीजिये न... जिससे मेरे लिंग... यानी मेरे पेनिस का साइज़ कम हो जाये...।”
उसके चेहरे पर फिर अजीब से भाव दिखायी दिये। वो बोली, “ये तुम क्या कह रहे हो... लोग तो...”
“हाँ डॉक्टर... लोग तो साइज़ बड़ा करना चाहते हैं... लेकिन मैं साइज़ छोटा करना चाहता हूँ... शायद इससे मेरी उलझन कम हो जाये... मतलब ये कि अगर साइज़ छोटा हो जायेगा तो ये पैंट के अंदर आराम से रहेगा और लोगों की नज़रें भी नहीं पड़ेंगी...।”
वो धीरे से सर झुका कर बोली... “क्या... क्या साइज़ है... इसका?”
“ग्यारह इंच डॉक्टर...” मैंने कुछ यूँ सरलता से कहा, जैसे ये कोई बड़ी बात न हो।
उसकी आँखें फट गयीं और हैरत से मुँह खुल गया। “क्या?... ग्यारह इंच???”
“हाँ डॉक्टर... क्यों आपको इतनी हैरत क्यों हो रही है...?”
“ऑय काँट बिलीव इट!!!”
मैंने आश्चर्य से कहा... “ग्यारह इंच ज्यादा होता है क्या डॉक्टर...? आमतौर पर क्या साइज़ होता है...?”
“हाँ?... आमतौर पर ...???” वो बगलें झांकने लगी और फिर बोली... “आमतौर पर छः-सात-आठ इंच।”
“ओह गॉड!” मैं नकली हैरत से बोला... “तो इसका मयलब है मेरा साइज़ एबनॉर्मल है! मैं सर पकड़ कर बैठ गया।“
उसकी समझ में भी नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले।
फिर मैंने अपना सर उठाया और भर्रायी आवाज़ में बोला... “डॉक्टर... अब मैं क्या करूँ...?”
“ऑय काँट बिलीव इट...” वो धीरे से बड़बड़ाते हुए बोली।
“क्यों डॉक्टर... आखिर क्यों आपको यकीन नहीं आ रहा है... आप चाहें तो खुद देख सकती हैं...दिखाऊँ???”
वो जल्दी से खड़ी हो गयी और घबड़ा कर बोली... “अरे नहीं नहीं... यहाँ नहीं...” फिर जल्दी से संभल कर बोली... “मेरा मतलब है... ठीक है... मैं तुम्हारे लिये कुछ सोचती हूँ... अब तुम जाओ...”
मैंने अपने चेहरे पर दुनिया जहान के गम उभार लिये और निराश हो कर बोला... “अगर आप कुछ नहीं करेंगी... तो फिर मुझे ही कुछ करना पड़ेगा...” मैं उठ गया और जाने के लिये दरवाजे की तरफ बढ़ा तो वो रुक-रुक कर बोली... “सुनो... तुम... तुम क्या करोगे?”
मैं बोला... “किसी सर्जन के पा जा कर कटवा लूँगा...”
“व्हॉट??? आर यू क्रेज़ी? पागल हो गये हो क्या?”
मैं फिर कुर्सी पर बैठ गया और सर पकड़ कर मायूसी से बोला... “तो बोलो ना डॉक्टर... क्या करूँ?”
वो फिर बाहर झांक कर देखने लगी कि कहीं कोई पेशेंट तो नहीं आ गया। कोई नहीं था... फिर वो बोली, “सुनो... जब ऐसा हो... तो...”
“कैसा हो डॉक्टर?” मैंने पूछा।
“मतलब जब भी इरेक्शन हो...”
“इरेक... क्या कहा?”
“यानी जब भी... वो... तन जाये... तो मास्टरबेट कर लेना...” वो फिर यहाँ-वहाँ देखने लगी।
“क्या कर लेना...?” मैंने हैरत से कहा... “देखिये डॉक्टर, मैं इतना पढ़ा लिखा नहीं हूँ... ये मेडिकल शब्द मेरी समझ में नहीं आते...”
वो सोचने लगी और फिर बोली, “मास्टरबेट यानी... यानी मुश्तज़नी... या हाथ... मतलब हस्त... हस्त-मैथुन!”
मैं फिर आश्चर्य से उसे देखने लगा... “क्या? ये क्या होता है???”
“अरे तुम इतना भी नहीं जानते?” वो झुंझला कर बोली।
मैं अपने माथे पर अँगुली ठोंकता हुआ सोचने के अंदाज़ में बोला... “कोई एक्सरसाइज़ है क्या?”
वो मुस्कुराने लगी और बोली... “हाँ, एक तरह की एक्सरसाइज़ ही है...”
“अरे डॉक्टर!” मैंने कहा... “अब दुकान में कहाँ कसरत-वसरत करूँ?”
वो हँसने लगी और बोली... “क्या तुम सचमुच मास्टरबेट नहीं जानते?”
“नहीं डॉक्टर!”
“क्या उम्र है तुम्हारी?”
“उन्नीस साल!”
“अब तक मास्टरबेट नहीं किया?”
“आप सही तरह से बताइये तो सही... कि ये आखिर है क्या?”
“अरे जब...” वो फिर झेंप गयी और बगलें झाँकने लगी और फिर अचानक उसे कुछ याद आया और वो झट से बोली... “हाँ याद आया... मूठ मारना... क्या तुमने कभी मूठ नहीं मारी...?”
मैं सोचने लगा... और फिर कहा, “नहीं... मैं अहिंसा वादी हूँ... किसी को मारता नहीं...!”
“पागल हो तुम...” वो फिर हंस पड़ी... “या तो तुम मुझे उल्लू बना रहे हो... या सचमुच दीवाने हो...!”
मैंने फिर अपने चेहरे पर दुखों का पहाड़ खड़ा कर लिया। वो मुझे गौर से देखने लगी। शायद ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि मैं सच बोल रहा हूँ या उसे बेवकूफ बना रहा हूँ।
फिर वो गंभीर हो कर बोली... “ये बताओ... जब तुम्हारा पेनिस खड़ा हो जाता है और तुम अकेले होते हो... बाथरूम वगैरह में... या रात को बिस्तर पर... तो तुम उसे ठंडा करने के लिये क्या करते हो?”
“ठंडा करेने के लिये???”
“हाँ... ठंडा करेने के लिये...!”
“मैं नज़ीला आंटी से कहता हूँ कि वो मेरे लिंग को अपने मुँह में ले लें और खूब जोर-जोर से चूसे...!”
वो थूक निगलते हुए बोली... “नज़ीला आंटी...??? आंटी कौन?”
“मेरे घर की मालकीन... मैं उनके घर में ही पेइंग गेस्ट के तौर पर रहता हूँ...!”
“अरे, इतनी बड़ी दुकान है तुम्हारी... और पेइंग गेस्ट?”
“असल में ये दुकान भी उन ही की है... मैं तो उसे संभालता हूँ...!”
“पर अभी तो तुमने कहा था कि तुम उस दुकान के मालिक हो...!”
“एक तरह से मलिक ही हूँ... नज़ीला आंटी का और कोई नहीं है... दुकान की सारी जिम्मेदारी मुझे ही सौंप दी है उन्होंने...!”
“तो वो... मतलब वो तुम्हें ठंडा करती हैं...?”
“हाँ वो मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर बहुत जोर-जोर से रगड़ती हैं और चूस-चूस कर सारा पानी निकाल देती हैं... और कभी-कभी मैं...”
“कभी-कभी....?” वो उत्सुकता से बोली।
“कभी-कभी मैं उन्हें...” मैं रुक गया। वो बेचैनी से मुझे देखने लगी। मैंने बात ज़ारी रखी... “मैं उन्हें भी खुश करता हूँ!”
“कैसे?” वो धीरे से बोली।
मैं इत्मीनान से बोला... “नज़ीला आंटी को मेरे लिंग का साइज़ बहुत पसंद है... और जब मैं अपना लिंग उनकी योनी में डालता हूँ... तो वो मेरा किराया माफ कर देती हैं!”
मैंने देखा कि डॉक्टर ज़ुबैदा हलके-हलके काँप रही है। उसके होंठ सूख रहे हैं।
मैंने एक तीर और छोड़ा... “ग्यारह इंच का लिंग पहले उनकी योनी में नहीं जाता था... लेकिन आजकल तो आसानी से जाने लगा है... अब तो वो बहुत खुश रहती हैं मुझसे... और उसकी एक खास वजह भी है...!”
“क्या वजह है?” डॉक्टर की आँखों में बेचैनी थी।
“मैं उन्हें लगभग आधे घंटे तक...” मैंने अपनी आवाज़ को धीमा कर लिया और बोला... “चोदता रहता हूँ...!”
डॉक्टर अपनी कुर्सी से उठ गयी और बोली... “अच्छा तो... तुम अब जाओ...!”
“और मेरा इलाज???”
“इलाज??? इलाज वही... नज़ीला आंटी!” वो मुस्कुराई।
“दुकान में???”
“मैंने कब कहा कि दुकान में... घर पर...”
“दुकान छोड़ कर नहीं जा सकता... और वैसे भी आजकल आंटी यहाँ नहीं है... बैंगलौर गयी हुई है।”
“तो ऐसा करो... सुनो... अ...”
मैं उसे एक-टक देख रहा था।
वो बोली... “देखो...”
मैंने कहा... “देख रहा हूँ... आप आगे भी तो बोलिये।”
“हुम्म... एक काम करो... जब भी तुम्हारा पेनिस खड़ा हो जाये... तो तुम मास्टरबेट कर लिया करो... और मास्टरबेट क्या होता है वो भी बताती हूँ...”
वो दरवाजे की तरफ देखने लगी, जहाँ कंपाऊंडर खड़ा किसी से बात कर रहा था। वो मेरी तरफ देख कर धीरे से बोली... “अपने पेनिस को अपने हाथों में ले कर मसलने लगो... और तब तक मसलते रहना... जब तक कि सारा पानी ना निकल जाये और तुम्हारा पेनिस ना ठंडा हो जाये...!”
मैंने अपने सर पर हाथ मारा और कहा... “अरे मैडम! ये ग्यारह इंच का कबूतर ऐसे चुप नहीं होता। मैंने कईं बार ये नुस्खा आजमाया है... एक-एक घंटा लग जाता है, तब जा कर पानी निकलता है।”
वो मुँह फाड़कर मुझे देखने लगी। उसकी आँखों में मुझे लाल लहरिये से दिखने लगे।
“तुम झूठ बोलते हो...”
“इसमें झूठ की क्या बात है...? ये कोई अनहोनी बात है क्या?”
“मुझे यकीन नहीं होता कि कोई आदमी इतनी देर तक...”
“आपको मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं आ रहा है... मुझे बहुत अफसोस है इस बात का...” मैंने गमगीन लहज़े में कहा। फिर कुछ सोच कर मैंने कहा... “आपके हसबैंड कितनी देर तक सैक्स करते हैं?”
उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और वो कुछ ना बोली... मैंने फिर पूछा तो वो बोली... “बस तीन-चार मिनट!”
“क्या?????” अब हैरत करने की बारी मेरी थी जोकि असलियत में नाटक ही था।
“इसीलिये तो कह रही हूँ...” वो बोली, “कि तुम आधे घंटे तक कैसे टिक सकते हो? और मास्टरबेट.. एक घंटे तक???”
फिर थोड़ी देर खामोशी रही और वो बोली... “मुझे तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं है... ना ग्यारह इंच वाली बात... और ना ही एक घंटे... आधे घंटे वाली बात...”
मैं बोला... “तो आप ही बताइये कि मैं कैसे आपको यकीन दिलाऊँ?”
वो चुप रही। मैं उसे एकटक देखता रहा। फिर वो अजीब सी नज़रों से मुझे देखती हुई बोली... “मैं देखना चाहती हूँ...”
मैंने पूछा... “क्या... क्या देखना चाहती हैं?”
वो धीरे से बोली... “मैं देखना चाहती हूँ कि क्या वाकय तुम्हारा पेनिस ग्यारह इंच का है... बस ऐसे ही... अपनी क्यूरियोसिटी को मिटाने के लिये...”
मुझे तो मानो दिल की मुराद मिल गयी... मैंने कहा... “तो... उतारूँ पैंट...?”
वो जल्दी से बोली... “नहीं... नहीं... यहाँ नहीं... कंपाऊंडर है और शायद कोई पेशेंट भी आ गया है...”
“फिर कहाँ?” मैंने पूछा।
“तुमने कहा था कि तुम्हारी आंटी घर पर नहीं है... तो... क्या मैं...?”
“हाँ हाँ... क्यों नहीं...” मैं अपनी खुशी को दबाते हुए बोला। “तो कब?”
“बस क्लिनिक बंद करके आती हूँ...”
“मैं बाहर आपका इंतज़ार करता हूँ...” मैंने कंपकंपाती हुई आवाज़ में कहा और क्लिनिक से बाहर आ गया। फौरन अपनी दुकान पर पहुँच कर मैंने नौकर से कहा कि वो लंच के लिये दुकान बंद कर दे और दो घंटे बाद खोले और मैं क्लिनिक और दुकान से कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया। मेरी नज़रें क्लिनिक के दरवाजे पर थीं।
आखिरी पेशेंट को निपटा कर डॉक्टर ज़ुबैदा बाहर निकली। कंपाऊंडर को कुछ निर्देश दिये और दायें-बायें देखने लगी। फिर उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। नज़रें मिलते ही मैं दूसरी तरफ देखने लगा। उसने भी यहाँ-वहाँ देखा और फिर मेरी तरफ आने लगी। जब वो मेरे करीब आयी तो मैं बिना उसकी तरफ देखे आगे बढ़ा। वो मेरे पीछे-पीछे चलने लगी।
जब मैं अपने फ्लैट का दरवाजा खोल रहा था तो मुझे अपने पीछे सैंडलों की खटखटाहट सुनायी दी। मुड़ कर देखा तो डॉक्टर ही थी। जल्दी से दरवाज़ा खोल कर मैं अंदर आया। वो भी झट से अंदर घुस गयी। मैंने सुकून की साँस ली और डॉक्टर की तरफ देखा। मुझे उसके चेहरे पर थोड़ी सी घबड़ाहट नज़र आयी। वो किसी डरे हुए कबूतर की तरह यहाँ-वहाँ देख रही थी।
मैंने उसे सोफ़े की तरफ बैठने का इशारा किया। वो झिझकते हुए बोली... “देखो, मुझे अब ऐसा लग रहा है कि मुझे यहाँ इस तरह नहीं आना चाहिये था... पता नहीं, किस जज़्बात में बह कर आ गयी।”
मैंने कहा, “अब आ गयी हो... तो बैठो... जल्दी से चेक-अप कर लो और चली जाओ।”
“हाँ... हाँ...” उसने कहा और सोफे पर बैठ गयी।
मैंने दरवाजा बंद कर लिया और सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिये। वो भी मुझे देखने लगी।
“कुछ पीते हैं...” मैंने कहा और इससे पहले कि वो कुछ कहती, मैं किचन की तरफ बढ़ा।
मैंने सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल फ्रिज से निकाली और फिर ड्रॉइंग रूम में पहुँच गया।
वो बोली.... “कुछ बियर वगैरह नहीं है?"
ये सुनकर तो मैं इतना खुश हुआ कि क्या बताऊँ। जल्दी से किचन में जा कर फ्रिज से हेवर्ड फाइव-थाऊसैंड बियर की बोतल निकाल कर खोली और साथ में गिलास ले कर बाहर आया और फिर गिलास में बियर भर के उसे दी।|
अचानक उसकी नज़र सामने टीपॉय पर पढ़ी एक किताब पर पड़ी, जिसके कवर पेज पर एक नंगी लड़की की तस्वीर थी। मैंने कहा, “मैं अभी आता हूँ...” और फिर से किचन की तरफ चला गया। किचन की दीवार की आड़ से मैंने चुपके से देखा तो मेरा अंदाज़ा सही निकला। वो किताब उसके हाथ में थी। किताब के अंदर नंगी औरतों और मर्दों की चुदाई की तस्वीरें देख कर उसके माथे पर पसीना आ गया। ये बहुत ही बढ़िया किताब थी। चुदाई के इतने क्लासिकल फोटो थे उसमें कि अच्छे-अच्छों का लंड खड़ा हो जाये और औरत देख ले तो उसकी सोई चूत जाग उठे। मैंने देखा कि बियर पीते हुए वो पन्ने पलटते हुए बड़े ध्यान से तस्वीरें देख रही थी। उसके गालों पर भी लाली छा गयी थी।
मैं दबे कदमों से उसके करीब आया और फिर अचानक मुझे अपने पास पा कर वो सटपटा गयी। उसने जल्दी से किताब टीपॉय पर रख दी। वो बोली... “कितनी गंदी किताब!”
मैं बोला... “आप तो डॉक्टर हैं... आपके लिये ये कोई नई चीज़ थोड़े ही है...”
मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी। मैं भी मुस्कुराता हुआ उसके पास बैठ गया। इतनी देर में उसका गिलास खाली हो चुका था। शायद उत्तेजना की वजह से उसने बियर काफी कुछ ज्यादा ही तेज़ पी थी। खैर मैंने फिर उसका गिलास भर के उसे पकड़ाया। मैंने देखा कि उसकी नज़र अब भी किताब पर ही थी। मैंने किताब उठायी और उसके पन्ने पलटने लगा। वो चोर नज़रों से देखने लगी। मैं उसके थोड़ा और करीब खिसक आया ताकि वो ठीक से देख सके।
वो बियर पीते हुए बड़ी दिलचस्पि से चुपचाप देखने लगी| मैंने पन्ना पलटा जिसमें एक आदमी अपना बड़ा सा लंड एक औरत की गाँड की दरार पर घिस रहा था। फिर एक पन्ने पर एक गोरी औरत दो हब्शियों के बहुत बड़े-बड़े काले लंड मुठियों में पकड़े हुए थी और उस तसवीर के नीचे ही दूसरी तस्वीर में वो औरत एक हब्शी का तेरह-चौदह इंच लंबा लंड मुँह में लेकर चूस रही थी और दूसरे का काला मोटा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था। फिर जो पन्ना मैंने पलटा तो डॉकटर ज़ुबैदा की धड़कनें तेज़ हो गयीं। एक तस्वीर में एक औरत घोड़े के मोटे लंड के शीर्ष पर अपने होंठ लगाये चूस रही थी और दूसरी तस्वीर में एक औरत गधे के नीचे एक बेंच पर लेटी हुई उसका विशाल मोटा लंड अपनी चूत में लिये हुए थी।
मैंने अपना एक हाथ डॉक्टर के कंधों पर रखा। उसने कोई आपत्ति नहीं की। फिर धीरे से मैंने अपना हाथ उसके सीने की तरफ बढ़ाया। वो काँपने लगी और पानी की तरह गटागट बियर पीने लगी। धीरे-धीरे मैं उसकी छातियों को सहलाने लगा। उसने आँखें बंद कर लीं। उस वक्त वो सलवार और स्लीवलेस कमीज़ पहने हुई थी। मेरी अंगुलियाँ उसके निप्पल को ढूँढने लगीं। उसके निप्पल तन कर सख्त हो चुके थे। मैंने उसके निप्पलों को सहलाना शुरू किया। वो थरथराने लगी।
अब मेरा हाथ नीचे की तरफ बढ़ने लगा। उसकी कमीज़ ऊपर उठा के जैसे ही मेरा हाथ उसकी नंगी कमर पर पहुँचा तो वो हवा से हिलती किसी लता की तरह काँपने लगी। अब मेरी एक अँगुली उसकी नाभि के छेद को कुरेद रही थी। वो सोफे पर लगभग लेट सी गयी। उसका गिलास खाली हो चुका था तो मैंने गिलास उससे ले कर टेबल पर रख दिया।
मैंने अपने हाथ उसकी टांगों और पैरों की तरफ बढ़ाये तो मेरी आँखें चमक उठीं। उसके गोरे-गोरे मुलायम पैर और उसके काले रंग के ऊँची ऐड़ी के सैंडलों के स्ट्रैप्स में से झाँकते, उसकी पैर की अँगुलियों के लाल नेल-पॉलिश लगे नाखुन बहुत मादक लग रहे थे। उसकी सलवार का नाड़ा खोल कर मैंने सलवार उसकी टाँगों के नीचे खिसका दी। उसकी गोरी खूबसूरत टांगें और जाँघें जिन पर बालों का नामोनिशान नहीं था, मुझे मदहोश करने लगीं। जैसे सगमरमर से तराशी हुई थीं उसकी टांगें और जाँघें। मैंने अपने काँपते हाथ उसकी जाँघों पर फेरे तो वो करवटें बदलने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पाउडर लगे कैरम-बोर्ड पर हाथ फ़ेर रहा हूँ। पैंटी को छुआ तो गीलेपन का एहसास हुआ। पिंक कलर की पैंटी थी उसकी जो पूरी तरह गीली हो चुकी थी। अँगुलियों ने असली जगह को टटोलना शुरू किया। चिपचिपाती चूत अपने गर्म होने का अनुभव करा रही थी। मैंने आहिस्ते से पैंटी को नीचे खिसका दिया।
ओह गॉश!!! इतनी प्यारी और खूबसूरत चूत मैंने ब्लू-फिल्मों में भी नहीं देखी थी। उसकी बाकी जिस्म की तरह उसकी चूत भी बिल्कुल चिकनी थी। एक रोंये तक का नामोनिशान नहीं था। मुझसे अब सहन नहीं हो रहा था। मैंने दीवानों की तरह उसकी सलवार और पैंटी को पैरों से अलग करके दूर फेंक दिया। पैरों के सैंडलों को छोड़ कर अब वो नीचे से पूरी नंगी थी। उसकी आँखें बंद थीं। मैंने संभल कर उसकी दोनों टाँगों को उठाया और उसे अच्छी तरह से सोफे पर लिटा दिया। वो अपनी टाँगों को एक दूसरे में दबा कर लेट गयी। अब उसकी चूत नज़र नहीं आ रही थी। सोफे पर इतनी जगह नहीं थी कि मैं भी उसके बाजू में लेट सकता। मैंने अपना एक हाथ उसकी टाँगों के नीचे और दूसरा उसकी पीठ के नीचे रखा और उसे अपनी बाँहों में उठा लिया। उसने ज़रा सी आँखें खोलीं और मुझे देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।
मैं उसे यूँ ही उठाये बेडरूम में ले आया। बिस्तर पर धीरे से लिटा कर उसके पास बैठ गया। उसने फिर उसी अंदाज़ में अपनी दोनों टाँगों को आपस में सटा कर करवट ले ली। मैंने धीरे से उसे अपनी तरफ खिसकाया और उसे पीठ के बल लिटाने की कोशिश करने लगा। वो कसमसाने लगी। मैंने अपना हाथ उसकी टाँगों के बीच में रखा और पूरा जोर लगा कर उसकी टांगों को अलग किया। गुलाबी चूत फिर मेरे सामने थी। मैंने उसकी टांगों को थोड़ा और फैलाया। चूत और स्पष्ट नज़र आने लगी। अब मेरी अँगुलियाँ उसकी क्लिटोरिस (भगशिशन) को सहलाने के लिये बेताब थीं। धीरे से मैंने उस अनार-दाने को छुआ तो उसके मुँह से सिसकारी-सी निकली। हलके-हलके मैंने उसके दाने को सहलाना शुरू किया तो वो फिर कसमसाने लगी।