मैं सीमा और मेरे मस्तराम सर

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मैं "आआआअह्" करके चीख उठी और उसका मोटा तगड़ा लंड मेरे मुँह मे.
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raviram69
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मस्तराम यही नाम बताया था उसने और कहता था कि उसका बाप अंग्रेजी राज में जमींदार था। हैदराबाद में उसकी शानदार हवेली थी, जो वीरान पड़ी थी। वह जिन्दगी को अपने ढंग से जीना चाहता था।

उसने अब तक अभावों का सामना नहीं किया था और गरीबी या मुफलिसी की जिन्दगी उसे स्वीकार नहीं थी। वह तो यह भी नहीं जानता कि गरीबी क्या चीज होती है? लोग गरीब क्यों होते हैं? वर्तमान समय में वह लाखों में खेल रहा था।

यूं मस्तराम काफी स्मार्ट था। लगभग छः फुट लंबा, गोरा रंग, क्लीन शेव चेहरा, घुंघराले बाल। जींस-शर्ट पहन कर वह घूमने निकलता, तो लोगों को देखकर प्रिंस का भ्रम होता था। वैसे वह खुद को प्रिंस कहलाना ही ज्यादा पसंद करता था।

एक बार ए.आर. डिस्यूजा की बीवी सीमा ने मस्तराम से पूछा भी था, "आपको प्रिंस कहकर संबोधित करूं या मस्तराम..?"

"आपको जो अच्छा लगे, अगर आपको मैं प्रिंस के रूप में नज़र आता हूं, तो प्रिंस ही सही...।"

मस्तराम आहुजा अपार्टमेंट के दूसरे तले पर रहता था। उसके फ्लैट के सामने दो फुट का एक गलियारा था। गलियारे के छोर पर स्थित दूसरे फ्लैट में एयरलाईंस में प्रबंधक ए.आर. डिस्यूजा अपनी नयी-नवेली पत्नी सीमा के साथ रहते थे।

लगभग एक वर्ष पहले डिस्यूजा ने सीमा से शादी की थी। सीमा का रंग गोरा, मक्खन-सा चिकना बदन, सुतवा नाक और उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें देखकर मस्तराम उसकी तरफ मस्तराम हुआ था। वह सीमा को स्वीटी कहकर संबोधित करता था। स्वीटी, कहलाना सीमा को ज्यादा पसंद था।

एक दिन की बात है। मस्तराम दोपहर में अपने घर में बैठा डैक पर कोई फिल्मी गीत सुन रहा था। सीमा उस समय अपने कमरे में पलंग पर लेटी कोई मैग्जीन पढ़ रही थी। जब उसने डैक पर फिल्मी गीत की आवाज़ सुनी, तो मैग्जीन एक ओर रखकर वह पलंग से उठी और दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी। मस्तराम ने सीमा को आवाज़ दी, "आओ, स्वीटी मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। दरअसल, एक तुम ही तो जिससे बात करके दिल को हल्का कर लेता हूं।"

मस्तराम की आवाज़ पर सीमा उसके कमरे में चली गयी। उसने कभी मस्तराम की बात का सम्मान नहीं किया हो, उसे खुद को याद नहीं था। कभी-कभी तो सीमा को लगता था कि मस्तराम उसे हिप्नोटाईज्म्ड कर रहा था।

सीमा, मस्तराम की तरफ कब मस्तराम हुई, उसे ठीक से याद नहीं। मस्तराम शायर तो नहीं था, लेकिन कुछ-कुछ शायरी कर लेता था। सीमा को बचपन से ही शेरो-शायरी मंे गहरी दिलचस्पी थी। जब उसने जवानी की दहलीत पर कदम रखा, उसका यही शौक तरन्नुम बनकर उसकी रगों में महकने लगा था।

जबसे मस्तराम यहां रहने आया था, सीमा के अधरों पर स्वतः शेर के मुखड़े बोलने लगते थे।

एकाध बार मस्तराम से सामना हुआ। हलांकि दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई, फिर भी उनके अधरों की मुस्कान तथा आंखों की चमक बहुत कुछ कह गयी थी।

यह अजीब-सी बात थी कि दोनों मन ही मन एक-दूसरे को चाहते थे, लेकिन वे अपनी चाहत का इजहार नहीं कर सकते थे। मस्तराम, सीमा को हसरत भरी निगाहों से देखता था। सीमा एक अजनबी युवक से बात करते हुए झिझक रही थी।

अगर उस दिन वह घटना नहीं घटती, तो कदाचित दोनों अब तक अपनी चाहत का इजहार करने से दूर ही रहे होते। सीमा जाने क्यों और कैसे मस्तराम के कमरे के दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गयी थी।

वह शायद यही सोच रही थी कि अंदर जाये अथवा नहीं कि तभी मस्तराम ने दरवाजा अपनी तरफ खींचा था। अगर उसने संभाला नहीं होता, तो सीमा फर्श पर गिर गयी होती। जैसे ही वह लड़खड़ाई, मस्तराम ने फुर्ती से आगे बढ़कर उसे अपनी बांहों में संभाल लिया। पलभर के लिए दोनों एक-दूसरे के चेहरे को देखते रह गये।

फिर सीमा बोली, "शुक्रिया!"

"इसमें शुक्रिया की क्या बात है। आपको गिरने से बचाना मेरा फर्ज था। वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि आप यहां क्यों खड़ी थीं?"

"दर....दरअसल, म....मैं।" सीमा की जुबान हकलाने लगी। सीमा की समझ में नहीं आया कि वह इसका क्या जवाब दे। वह हड़बड़ा कर रह गयी और वहां से जाने लगी।

"स्वीटी, तुम यहां से नहीं जा सकती।" सीमा ठिठक कर रूक गयी और पलट मस्तराम की तरफ देखने लगी। मस्तराम खड़ा मुस्करा रहा था।

"मेरा नाम सीमा है स्वीटी नहीं।" सीमा ने कहा।

"जानता हूं, लेकिन मैं तुम्हें स्वीटी ही कहकर बुलाऊंगा।"

उस दिन से दोनों के दरम्यान बातचीत का क्रम हुआ।

प्रायः दोपहर के वक्त जब घर में कोई नहीं होता और नौकरी-पेशा लोग ड्यूटी पर जा चुके होते, सीमा चुपके से मस्तराम के कमरे में चली आती अथवा मस्तराम ही उसके कमरे में आ जाता।

एक दिन मस्तराम बोला, "स्वीटी, मैं तुम्हें चूमना चाहता हूं। मैं तुम्हें अपनी बांहों में भींचना चाहता हूं।"

स्वीटी उर्फ सीमा मना नहीं कर सकी, लेकिन उसने इतना जरूर कहा, "मस्तराम, मैं एक शादीशुदा औरत हूं....मुझे बर्बाद मत करो।"

"स्वीटी तुम झूठ बोल रही हो। तुम्हारी शादी नहीं हुई है और तुम्हारी कभी शादी भी नहीं होगी, क्योंकि तुम किसी और से प्यार करती हो, जो अब इस दुनिया में नहीं है।"

"य....यह तुम क्या कह रहे हो मस्तराम। मेरे पति का नाम ए.आर. डिस्यूजा है। एक साल पहले मेरी उनसे शादी हुई है। उनके अलावा मैंने किसी अन्य युवक से कभी प्यार नहीं किया है।" सीमा ने कहा। वह कुछ सहमी-सी नज़र आ रही थी।

"वक्त बर्बाद मत करो स्वीटी। मेरी बांहों में आ जाओ।"

फिर मस्तराम ने आगे बढ़कर सीमा को अपने आगोश में भींच लिया। सीमा को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उसके बदन को बेरहमी पूर्वक मसल डाला हो। वह अचानक जोरों से चीखी। उसकी चीख की आवाज़ सुनकर बगल में सो रहे ए.आर. डिस्यूजा जाग गये। उन्होंने झंझोड़ कर सीमा को जगाया। फिर घड़ी देखी, तो रात्रि के 2 बज रहे थे। सीमा के चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।

"तुमने कोई डरावना सपना देखा है?" डिस्यूजा ने पूछा।

सीमा ने डिस्यूजा को सपने वाली बात नहीं बताई और वह आंख मूंद कर सोने का उपक्रम करने लगी। डिस्यूजा, सीमा को थपकियां देते हुए सो गये।

कुछ समय पश्चात् एक बार फिर मस्तराम उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। कुछ देर सीमा को देखता रहा। फिर आगे बढ़कर उसने सीमा को निर्वस्त्रा करना शुरू कर दिया। मस्तराम, सीमा को निर्वस्त्रा करके जब उसके गदराये यौवन को चूमने-मसलने लगा, तब उसके हलक से वासनात्मक सीत्कारों का सैलाब फूट पड़ा।

"स...ओह...।" सीमा सीत्कार भरती हुई बोली, "मस्तराम, तुम कौन सा जादू है, कौना सा आकर्षण है, कि मैं तुम्हारे नाम की तरह तुम्हारी ओर मस्त होने लगती हूं। दिल कर रहा है कि तुम मेरी एक-एक हड्डी को अपनी बांहों में चटका डालो।"

"वही तो करने वाला हूं मैं सीमा।" कहकर मस्तराम ने सीमा को पूर्ण निर्वस्त्रा कर डाला और स्वयं भी उसी दशा में आकर बोला, "अब तुम याद करोगी कि किसी मर्द की बांहों में आई थी।"

फिर मस्तराम एक ही प्रहार में सीमा की पनाह में जा समाया। हलक की आवाज हलक में ही अटक गई सीमा के। वह घुटी हुई आवाज में बोली, "आ..मस्तराम ओह... उई, प्लीज थोड़ा रूक जाओ।"

"नहीं अब नहीं रूका जायेगा मेरी रानी।" आगे-पीछे होते हुए बोला मस्तराम, "अब तो तीर कमान से निकल चुका है। बिना निशाना बेधे कहीं नहीं रूकेगा।"

"ये ले जानेमन और लो।" कहकर घोड़े की तरफ्तार से चलने लगा मस्तराम, "अब बोलो आ रहा है न मजा।"

"हां...मस्तराम...सच में।" सीमा भी सुखद दुनियां में पहुंच कर बोली, "ओह..स.हूम...आह..करते रहो... बहुत मजा आ रहा है जानू।"

सीमा ने खुद को मस्तराम की बांहों में सौंप दिया। मस्तराम ने सीमा को जैसा प्यार दिया, उसे महसूस करके उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा।

सुबह हुई, तो डिस्यूजा ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार होने लगे। सीमा ने उनका नाश्ता तैयार कर दिया और टिफिन रखकर गुसलखाने में घुस गयी।

रात वाली घटना उसकी आंखों के आगे चकरा उठी। उसने सोचा मस्तराम कौन है? तथा उससे उसका क्या रिश्ता है? लेकिन कोशिश करके भी वह इसका जवाब ढूंढ नहीं सकी।

आहूजा अपार्टमेंट में यूं तो कई किरायेदार रहते थे, लेकिन मस्तराम नाम का कोई किरायेदार उसमें नहीं रहता था। न ही उस शक्ल के किसी व्यक्ति को ही वह जानती थी, जो उसके सपने में हर रात आता था और उससे सहवास करके चला जाता था। कौन था वह, जो अधिकार पूर्वक उसके जिस्म से खेलता था?

सीमा ने यह बात अपने पति को कभी नहीं बताई। दरअसल, उसका ख्याल था कि कोई उसकी बात पर यकीन नहीं करेगा।

सीमा शाम ढलते ही सहमी-सहमी रहती थी। जैसे-जैसे रात गहरी होती जाती, उसके मन में आंतक बढ़ता जाता और जब मस्तराम उसके बेडरूम में घुसकर उसे अपनी बांहों में भींच लेता था, तो उसका डर बिल्कुल ही गायब हो जाता था।

मस्तराम दिन में कमरे में आ जाता और उससे प्यारी-प्यारी बातें करता था। दिन हो या रात सीमा, मस्तराम के हाथों का खिलौना बनती जा रही थी।

उस रात मस्तराम बेडरूम में घुसते ही सीमा से बोला, "स्वीटी, मैं तुमसे कुछ जरूरी बातें करना चाहता हूं। आज आखिरी मुलाकात होगी हमारी....तुम मेरे साथ बगीचे में चलो।"

सीमा यंत्रा चालित-सी मस्तराम के पीछे-पीछे बगीचे में आ गयी। मस्तराम ने कहा, "सुनो स्वीटी, मैं वही शख्स हूं, जिससे तुम प्यार करती थीं। मैं तुम्हें जान से बढ़कर चाहता था। हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खायी थीं। तुम्हारे घर वाले बड़े निष्ठुर निकले। उन्होंने मुझे गोलियों से भून डाला और तुम्हारी डिस्यूजा के साथ शादी कर दी। लेकिन मैं इसे शादी नहीं मानता। तुम्हारी शादी होगी, सिर्फ मुझसे होगी। तुम सिर्फ मेरी हो। मैं अपनी अमानत लेने आया हूं। तुम चलो मेरे साथ हम कहीं दूसरे देश में शादी करके बस जायेंगे....।"

सीमा इंकार नहीं कर सकी, लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने कभी किसी लड़के से मोहब्बत की थी। मस्तराम ने सीमा के साथ चलते हुए कहा था, "मैं आत्मा हूं। आत्मा और शरीर का मिलन ही संस्कार है। तुम्हारा शरीर और मेरी आत्मा मिलकर संसार की नई संरचना करेंगे।"

सीमा को पहाड़ की चोटी पर खड़ा करके मस्तराम ने उसकी कलाई थाम ली और मौत की खाई में झांकते हुए सीमा से बोला, "छंलाग लगाओ, स्वीटी।"

सीमा ने मस्तराम के आदेश का पालन किया। दोनों के जिस्म हवा में विलीन हो गये। इसके साथ ही सीमा की चीख पूरी बिल्डिंग में गूंजती चली गयी। डिस्यूजा व दूसरे लोग उसकी तरफ झपटे, देखा नब्ज़ की गति पल-पल शिथिल पड़ती जा रही थी। जब तक उसे डाॅक्टर के पास ले जाया गया, सीमा की आत्मा ने शरीर छोड़ दिया।

लेकिन जिन्दगी के आखिरी लम्हों में मस्तराम नाम का कोई स्मार्ट युवक आया था, जिससे वह प्यार कर बैठी थी। किसी को इसका रहस्य समझ मंे नहीं आया। स्वयं सीमा को भी इसका पता नहीं चला।

कौन था वह? कोई भी तो नहीं जान सका कि वह भूत था अथवा इंसान? हवा था या शैतान?

ए.आर. डिस्यूजा घटना को याद करते हुए कहते हैं, "सीमा से उसका रिश्ता केवल डेढ़ वर्ष का था। उसके बाद हृदय गति रूकने से उसका प्राणान्त हो गया। मौत के समय उसकी आंखों में आंतक ही आंतक था। सीमा की मौत के बाद मैंने दूसरी शादी नहीं की। मैं उसे बहुत चाहता था न!"

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