मनाना हो तो ऐसा

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पर मंजू भी तो एक जंगली बिल्ली से कम नहीं थी वह इतनी आसानी से फँसने वाली नहीं थी। जैसे ही देव खिसका की मंजू उठ खड़ी हुई और उसने एक जोर का धक्का लगा कर देव को एक तरफ गिरा दिया और एक लम्बी छलांग मार के कमरे में से बाहर की और भागी। भागते हुए वह देव को अपना अंगूठा दिखाकर बोली, "ले लेते जा। मैं देखती हूँ तू मुझे अब कैसे पकड़ता है। अब मैं तेरे हाथ में नहीं आने वाली। बड़ा मर्द बनता फिरता है। हिम्मत है तो अब बाहर रास्ते पर आ और फिर मुझे पकड़ के दिखा।"

उस समय देव के चेहरे के भाव देखते ही बनाते थे। पहले तो वह भौंचक्का सा देखता रहा और फिर वह एकदम झल्लाया और उसके मुंह से निकल ही पड़ा, "यह मादर चोद की औलाद ऐसे नहीं मानेगी। अब मैं तुझे दिखाता हूँ की मर्दानगी किसे कहते हैं।"

ऐसा बोलकर वह भी घर के बाहर मंजू के पीछे दौड़ पड़ा। मंजू भागती हुई थोड़ी आगे निकली की एक और से कोई कार आ रही थी तो उसे रुकना पड़ा। इतना समय देव के लिए काफी था। देव ने एक छलांग लगाई और मंजू को पकड़ा और उसे अपनी बाहों में उठा कर वापस घर में ले आया। मंजू उसकी बाहोंमें छटपटाती रही और बोलती रही, "अरे साले हरामी, एक गाडी आगयी तो मुझे रुकना पड़ा, जो तूने मुझे पकड़ लिया। इसमें कौन सी बहादुरी है?" ऐसा बोलते हुए मंजू कई हलकी भारी गालियां देव को देती रही और जोर जोर से हाथ देव के सीने में पिट पिट कर मारने लगी और जोर से पाँव आगे पीछे करती रही। हाथ पाँव मार कर अपने आपको छुड़ाने की कितनी कोशिशें की। पर अब देव एकदम सतर्क था। उसने मंजू को हिलने का ज़रा भी मौक़ा नहीं दिया।

रास्ते में कई लोग यह तमाशा देखते भी रहे पर देव ने उसकी परवाह किये बिना उसे घर में ले आया। जैसे ही वह घरमें घुसा तो उसने मुझसे कहा, "छोटे भैया, घर का दरवाजा अंदर से बंद करलो प्लीज। आज मैं इस लौंडियाँ को मेरी मर्दानगी दिखाता हूँ। कोई भी आ जाये तो दरवाजा मत खोलना जब तक मैं इस लौंडियाँ से निपट न लूँ। आज मैं इसकी बजा कर ही छोडूंगा। बेशक देखना चाहो तो आप भी देख लो।"

मैं मंजू को देख रहा था। देव की बाहों में वह छटपटा रही थी और छूटने की कोशिश में लगी हुई थी पर उसने एक भी बार न तो मुझे न तो रास्तेमें खड़े तमाशाबीन लोगों को चिल्ला कर बचाने के लिए आवाज लगाई।

मैं सोच रहा था की कहीं देव मंजू पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? मैंने थोड़ा घबड़ाते हुए मंजू से चिल्ला कर पूछा, "मंजू, क्या देव तुम पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? क्या मैं तुम्हारी मदद करूँ? क्या मैं दूसरे लोगों को बुलाऊँ?"

मंजू ने भी चिल्लाते हुए मुझे जवाब में कहा, "अरे यह भड़वा क्या मुझ पर बलात्कार करेगा? मुझमें अपने आप को छुड़ाने की पूरी क्षमता है। अगर मैं न चाहूँ तो यह मुझे छू भी नहीं सकता। आप निश्चिन्त रहो। मुझे कोई भी मदद नहीं चाहिए। अब यह मामला मेरे और देव के बिच का है।"

मंजू खुद देव से निपटना चाहती थी। वह शायद जानती भी थी की देव उसे नहीं छोड़ेगा। वह जानती थी की देव उसे चोद कर ही छोड़ेगा। यह साफ़ था की वह भी देव से चुदवाना चाहती थी। वह हांफ रही थी, पर उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। वह मदमस्त लग रही थी। उसकी जवानी और खिली हुई लग रही थी। मंजू की आँखों में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था।

शायद कोई औरत यह जानते हुए की अब थोड़ी ही देर में पहली बार उसकी चुदाई होने वाली है, उसके मुंह पर शायद ऐसे ही भाव होंगे, क्यूंकि अब मुझे पूरा यकीन हो गया था की मंजू देव से उस दिन जरूर चुदने वाली थी। मंजू भी अब अच्छी तरह समझ गयी थी की उसकी सील उसदिन टूटने वाली थी। वह तो कई महीनों से इसका इंतजार कर रही थी। पर शायद वह देव को परखना चाहती थी। वह ऐसे वैसे किसी भी मर्द को अपनी जात आसानी से देने वाली नहीं थी।

देव मंजू को उठाकर मेरे कमरे में ले आया। मंजू अपनी छटपटाहट से देव का काम मुश्किल बना रही थी। मंजू जैसे तैसे देव के चुंगल से छटकना चाहती थी। पर अब देव ज़रा भी असावधान रहने वाला नहीं था। देव ने मंजू को पलंग पर लिटाया। मैं कमरे से बाहर निकल आया और पीछे से दरवाजा बंद किया तो देव ने कहा, "छोटे भैया, दरवाजा खुला ही रहने दो। आज यह छमनियाँ मुझसे कैसे चुदती है वह तुम भी देखो।"

पर मैं बाहर निकल आया। मुझे अंदर से दोनों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मंजू अभी भी देव को चुनौती दे रही थी। वह बोली, "अच्छा! तो तू सोच रहा है तू मुझे आज चोदेगा? तू अपने आपको क्या समझता है? तू मुझे छूना भी मत। अगर तूने मुझे छुया भी तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी।"

तब देव बोला, "अरे छमिया, तू मुझे छोड़ना भी मत। मैं भी तुझे चोदुँगा जरूर, पर छोडूंगा नहीं। आज मैं तुम्हें पहली बार चोदुँगा पर आखरी बार नहीं। अब तू मेरी ही बन कर रहेगी। तू मेरे बच्चों की माँ बनेगी और मेरे पोतों की दादी माँ।"

मंजू ने यह सूना पर पहली बार उसका जवाब नहीं दिया। देव ने उसे मेरे पलंग पर लिटाया और भाग न जाए इसके लिए देव ने मंजू को अपने बदन के नीच दबा कर रखा। देव ने अपना सारा वजन मंजू के बदन पर लाद दिया था। मंजू ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया पर अब देव उसे छोड़ने वाला नहीं था।

मुझसे रहा नहीं। गया मैंने दरवाजे के अन्दर झांका तो देखा की देव मंजू को अपने तले दबा कर उसके ऊपर चढ़ गया था। मंजू को देव ने अपनी दो टाँगों में फाँस कर अपना लण्ड उसकी चूत से सटा कर वह मंजू के ऊपर लेट गया। मंजू के लिए अब थोड़ा सा भी हिलना नामुमकिन था। उसने अपना मुंह मंजू के मुंह पर रखा और अपने होंठ मंजू के होंठ से भींच कर उसे चुम्बन करने लगा। इतना घमासान करने के बावजूद जब देव के होंठ मंजू के होंठ से सट गए तो मंजू चुप हो गयी और देव को चुम्बन में साथ देने लगी। उसके हाथ फिर भी देव की छाती को पिट रहे थे।

देव ने अपनी जीभ मंजू के मुंह में डाली और उसे अंदर बाहर करने लगा। मुझे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा की मंजू ने अपने होठों से देव की जीभ को जकड लिया और उसकी जीभ को चूसना शुरू किया। अब ऐसा लग रहा था जैसे देव मंजू के मुंहको अपनी जीभ से चोद रहा था। इस तरह देव मंजू के मुंह को अपनी जीभ से काफी समय तक चोदता रहा और मंजू चुपचाप इसे एन्जॉय करती रही।

जब देव ने अपना मुंह मंजू के मुंह से हटाया तो मंजू बोली, "देव तुम अपना शरीर ऊपर से थोड़ा हटा कर तो देखो, मैं कैसे भागती हूँ।"

देव ने मंजू की हुए हँस कर बोलै, "अच्छा? मैं उपर से हट जाऊं तो तुम भाग जाओगी?" मंजू ने मुंडी हिलायी।

अचानक एक ही झटके में देव ने मंजू की चोली जोर से खिंच कर फाड़ डाली। फिर उसने मंजू की ब्रा को पकड़ा और एक ही झटक में तोड़ फेंका। मंजू ऊपर से नंगी हो गयी। उसकी बड़े बड़े स्तन एकदम पहाड़ की दो चोटियों की तरह उन्नत और उद्दण्ड दिख रहे थे। मैं दरवाजे की फाड़ में से मंजू की इतनी सुन्दर रसीली भरी हुई चूचियों को देखता ही रहा। देव ने अपना मुंह मंजू की चूँचियों पर सटा दिया और वह उनको चूसने लगा।

मंजू की शकल उस समय देखने वाली थी। वह अपने मस्त स्तनों को पहली बार कोई मर्द से चुसवा रही थी और उसका नशा उसकी आखों में साफ़ झलक रहा था। अब वह अपने बाग़ी तेवर भूल ही गयी हो ऐसा लग रहा था।

अब वह देव के मुंह को अपने स्तनों पर अनुभव कर रही थी और ऐसा लग रहाथा की वह चाहती नहीं थी की देव वहाँ से अपना मुंह हटाए। देव भी जैसे सालों का प्यासा हो ऐसे मंजू के स्तनों पर चिपका हुआ था। लग रहा था जैसे मंजू के स्तनों में से कोई रस झर रहा था जिसे पीकर देव उन्मत्त होरहा था। ऐसे ही कुछ मिन्टों तक चलता रहा। उसके बाद देव ने अपना मुंह मंजू के स्तनों से हटाया और स्वयं भी बाजू में हट गया। देव मंजू की और देखने लगा। वह मंजू को खुली चुनौती दे रहा था, की अगर मंजू में हिम्मत हो तो वह भाग कर दिखाए।

मंजू ने देव की और देखा। वह धीरे से बैठ गयी। मैं हैरान था की मंजू के बैठने पर भी उसके स्तन ज़रा से भी झुके नहीं। उनमें ज़रा सी भी शिथिलता नहीं थी। उसकी निप्पलेँ कड़क और एकदम अकड़ी हुई थी। उसके स्तन ऐसे भरे हुए अनार के फल के सामान फुले हुए और मंजू की अल्हड़ता को साक्षात् रूप में अभिभूत कर रहे थे।

मंजू ने एक नजर देव की और देखा और बोली, "लेले मजे, तुम मुझे इस तरह नंगी कर के कह रहे हो भग ले? तुम जानते हो की मैं ऐसे बाहर नहीं जा सकती। तुम बहुत चालु हो। आखिर तुमने मुझे फाँस ही लिया। अब मैं तुमको छोडूंगी नहीं। तू क्या समझता है अपने आपको।"

ऐसा कह कर मंजू ने देव का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। देव असावधान था और धड़ाम से मंजू के ऊपर जा गिरा। अब मंजू ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, "अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।"

मंजू ने आगे बढ़ कर देव के पाजामे का नाडा खोल दिया और देखते ही देखते देव का पजामा निचे गिर पड़ा। देव अपने निक्कर में अजीब सा लग रहा था। मंजू ने अपना हाथ देव के निक्कर पर उसकी टांगों के बिच में फिराया। वह उसके लण्ड का जैसे मुआयना कर रही थी। मंजू ने देव के निक्कर के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहलाना शुरू किया। जरूर उसका हाथ देव ले लण्ड से रिस रही चिकनाहट से चिकना हो गया होगा। मुझे भी देव के लण्ड के फूलने के कारण उसकी निक्कर पर उसके पाँव के बिच बना हुआ तम्बू साफ़ दिखाई दे रहा था। मंजू शायद देव के लण्ड की लम्बाई और मोटाई की पैमाइश कर रही थी। शायद उसके लिए किसी मर्द के लण्ड को छूने और सहलाने का पहला ही मौक़ा था। शायद मंजू देखना चाहती थी की जो लण्ड जल्द ही उसकी चूत में घुसने वाला है वह उसकी चूत को कितना फैलाएगा और उसको कितना मजा देगा।

मंजू के सहलाते ही देखते ही देखते देव का लण्ड फैलता ही जा रहा था। देव के पाँवोँ के बिच का तम्बू बड़ा ही होता जा रहा था। अब तो मुझे भी उसके पाँव के बिच का गीलापन साफ़ नजर आ रहा था। देव के लण्ड की पैमाइश करते ही मंजू की बोलती बंद हो गयी। मंजू शायद यह सोच कर चुप हो गयी की आखिर उसे भी तो देव का लण्ड चाहिए था। उसे भी तो उसके पाँव के बिच जवानी की ललक लगी हुई थी। वह भी तो पिछले कितने हफ़्तों से इस लण्ड के सपने देख रही थी। शायद मंजू ने यह नहीं सोचा होगा की देव का लण्ड उतना बड़ा होगा। जो भी कारण हो। मंजू जो तब तक इतना हंगामा कर रही थी अब जैसे एक अजीब सी तंद्रा में देव के लण्ड का अपने हाथों में अनुभव कर रही थी और मंत्र्मुग्ष जैसी लग रही थी।

जबकि देव की नजरें मंजू के सुगठित दो पके हुए आमके फल सामान स्तनों के मद मस्त आकार को देखने और हाथ दोनों को मसल ने और सहलाने में लगे हुए थे। मंजू के उन्मत्त उरोज की निप्पलेँ आम की डंठल की तरह फूली और कड़क दबवाने और चुसवाने का जैसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक इंतजार कर रही थीं। उसकी मदमस्त चूँचियाँ देव के लण्ड पर केहर ढा रही थीं। देव के लिए रुकना तब बड़ा ही मुश्किल हो रहा होगा। तो फिर मंजू का भी तो वैसा ही हाल था। मुझे साफ़ दिख रहा था की मंजू भी देव से चुदवाने के लिए जैसे बाँवरी हो रही थी। अब उसका भी पूरा ध्यान देव के लण्ड पर था।

मंजू ने धीरे से देव के निक्कर के बटनों को अपनी लम्बी उँगलियों से खोला और एकदम देव का लण्ड जैसे एक बड़ा अजगर छेड़ने से अपने बिल में से फुफकार मारते हुए बाहर आता है, वैसे ही देव की निक्कर से निकल कर मंजू के हाथों में फ़ैल गया। देव का फुला हुआ लण्ड मंजू की हथेली में देख कर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मंजू बड़ी मुश्किल से अपनी हथेली में उसे पकड़ पा रही थी। बार बार देव का लण्ड मंजू की हथेली से फिसल कर निचे गिर कर लटक जाता था। मंजू उसे बार बार वापस अपनी छोटी सी हथेली में ले रही थी।

देव का लण्ड देखते ही मंजू को तो जैसे साप सूंघ गया हो ऐसी शकल हो गयी। वह मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप वह एकटक लण्ड को ही देख रही थी। देखते ही देखते मंजू ने पलंग से निचे उतर कर अपना सर देव की टांगों के बिच रखा और देव के लण्ड के करीब अपना मुंह ले गयी। कुछ देर तक तो वह देव के लण्ड को एकदम करीब से निहारती रही फिर धीरे से उसने अपनी जीभ लम्बी करके देव के लण्ड के टोपे को चाटना शुरू किया। देव का पूर्व रस देव के लण्ड के टोपे के केंद्र बिंदु से रिस्ता ही जा रहा था। मंजू उसे अपनी जीभ से चाटकर निगलने लगी।

धीरे से फिर मंजू ने अपना मुंह और निकट लिया और देव के लण्ड को अपने मुंह में अपने होठों के बिच ले लिया। धीरे धीरे उसने अपना सर हिलाना शुरू किया और देव के लण्ड के टोपे को पूरी तरह अपने मुंह में लेकर अपने होंठ और जीभ से अंदर बाहर करने लगी और साथ साथ चूसने लगी। देव भी तो अब मंजू के कार्यकलाप से पागल हो रहा था। उसे तो कल्पना भी नहीं थी की ऐसी शेरनी जैसी लगने वाली यह अल्हड लड़की अब उसकी इतनी दीवानी हो जाएगी और एक भीगी बिल्ली की तरह उसके हाथ लग जायेगी ।

अनायास ही देव भी अब अपना पेडू से अपना लण्ड मंजू के मुंह में धक्के देकर अंदर बाहर करते हुए घुसेड़ने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे देव मंजू के मुंह को चोद रहा था। मंजू देव के इतने मोटे लण्ड को अपने मुंहमें पूरी तरह से ले नहीं पा रही थी। फिर भी अपने गालों को फुलाकर वह देव के लण्ड को चूसने लगी।

देव से रहा नहीं जा रहा था। देव ने हलके से अपने लण्ड को मंजू के मुंह से निकाला और धीरे से मंजू को बोला, "पगली, आज मुझे तुझे तेरी चूत में चोदना है। मैं अब तुझे मेरे इस लण्ड के लिए ऐसा पागल कर दूंगा की तू अब मेरे पीछे पीछे मुझसे चुदवाने के लिए मिन्नतें करेगी और तब ही मैं तुझे चोदूँगा।

यह सुनते ही जैसे मंजू अपने मूल रूप में आ गयी और बोली, "हट बे लम्पट! यह तो मुझे तुझपे रहम आ गया। सोचा, चलो तू इतना पीछे पड़ा था तो तुझे ही देती हूँ। तू भी क्या याद करेगा। वरना मैं और तुझे मिन्नतें करूँ? अरे एकबार अपनी शकल आयने में तो देख।"

मंजू देव को हड़काने में लगी हुई थी, की देव ने मंजू के घाघरे का नाडा खोल दिया और मंजू को पता भी नहीं चला। जैसे ही मंजू समझी तो खड़ी हुई। मंजू के खड़े होते ही उसका घाघरा निचे गिर पड़ा। मंजू अब सिर्फ एक चड्डी जैसी पैंटी पहनी हुई थी। मंजू को इसकी भनक लगे उसके पहले ही एक झटके में देव ने मंजू की पैंटी को निचे की और खिंच लिया और मंजू पूरी नंगी हो गयी।

बापरे! मैंने उससे पहले इतनी खूबसूरत कोई जवान नंगी लड़की नहीं देखि थी। (वैसे भी मैंने तब तक और कोई नंगी लड़की नहीं देखि थी। ) नंगी खड़ी हुई मंजू कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। क्या गजब के घुंघराले बालों के गुच्छे और कान पर और नाक पर फैली उसके बालों की लटें! क्या घनी और धनुष के अकार सामान उसकी भौंहें! ऑयहोय! कैसा गज़ब ढ़ा रही थीं उसकी लम्बी पलकें! क्या मदहोश उसकी आँखें! क्या नशीले और कुदरती लाल होंठ जो कटाक्ष पूर्ण मुद्रा में दिख रहे थे! उसकी लम्बी और पतली गर्दन जो निचे से उसके हसीं कन्धों से जुडी हुई थी। क्या जवान कड़क और ग़ज़ब के खूबसूरत उसके मम्मों का आकार! कैसे फूली हुई करारी उस मम्मों पर उद्दंडता से खड़ी हुई निप्पलेँ! क्या ईमान ख़तम करने वाला उसके पेट, कमर और नितम्ब का घुमाव और क्या उसकी हल्केफुल्के बालों वाली उभरी हुई चूत! उसके नितम्ब और उसकी मदहोश करने वाली चूत से निचे उसकी उत्तेजना से थिरकती हुई सुआकार जांघें ऐसी लग रहीथीं जैसे एक बड़ी नदी में से पतली सी दो नदियाँ निकल रही हों!

उस नंगी मूरत को देख मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया। और ऐसा खड़ा हो गया की मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था।

जब मैं छुपा हुआ इतनी दूर खड़ा हुआ था और फिर भी मेरा यह हाल था; तो सोचो की उस क़ुदरत की अति सुन्दर नग्न मूरत को इतने करीब से देख रहे देव का हाल क्या हुआ होगा? वह तो कोई दक्ष कलाकार की तराशी हुई अद्भुत संगमरमर की उस नग्न मूरत समान खड़ी मंजू को ठगा हुआ देखता ही रहा। उसका लंबा घंट के सामान लण्ड एकदम सावधान पोजीशन में अकड़ा हुआ खड़ा था जिसमें से उसका पूर्व रस रिसता ही जारहा था।

मंजू ने उसका अक्कड़ खड़ा हुआ घंटा अपने हाथों में पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाती हुई बोली, "अरे फक्कड़, क्या देख रहा है? मैं यहां एक औरत हो कर नंगी खड़ी हूँ और तू साला पहले तो बड़ी डिंग मारता था, की "तुझे चोदुँगा तुझे चोदुँगा" तो अब तुझे क्या साप सूंघ गया है? कुछ न करते हुए बस मुझे नंगी देखकर घूरता ही जा रहा है? घूरता ही जा रहा है? चल कपडे निकाल! तू भी नंगा होकर दिखा। साले मुझे भी तो तुझे नंगा देखना है। देखूं तो सही की कैसा लगता है मेरा मर्दानगी भरा छैला?"

देव जो मंजू की नग्न अंगभँगिमा में खोगया था उस तंद्रा से वापस धरती पर आया। देव ने पाया की उसके सपनों की रानी जिसे सपनों में देखकर मूठ मारते मारते उसकी हालत खराब हो जाती थी, स्वयं वह तब उसके सामने नग्न खड़ी उसे चोदने का आह्वान कर रही थी।

उस सुबह की और उसके पहले की कई महीनों की उसकी मंजू को फ़साने की मेहनत फलीभूत होती हुई नजर आ रही थी। उस नंगी खड़ी हुई औरत का हरेक अंग देव के सपनों में आयी हुई मंजू के हर अंग से कितना मिलता था! देव तो जैसे नंगी खड़ी हुई मंजू का दीवाना ही हो गया। तब उसे उस देवी को कैसे मैं खूब खुश करूँ? यही बात मन में आ रही थी।

अपने लण्ड की बेचैनी की और न ध्यान देते हुए देव जमीं पर घुटनों के बल आधा खड़ा हुआ और उसने बड़े प्यार से मंजू को पलंग पर बिठाया और मंजू के पैरों को चौड़े कर उनके बीचमें अपना सर घुसेड़ा। उसने देखा की मंजू की चुदवाने की उत्तेजना उसकी चूत में से बूँदें बन कर टपक रही थीं। मंजू की उत्तेजना से भरा उसका पूर्व रस उसकी चूत में से निकल कर उस की जाँघों पर पतली सी धारा बनकर बह रहा था।

देवको उसका आस्वादन करना था। देव ने अपनी जीभ लम्बाई और मंजू की चूत की दरार में घुसादी। देव की जीभ जब मंजू की संवेदनशील त्वचा को चाटने और कुरेदने लगी तो मंजू मारे उत्तेजना से पगला सी गयी। एक अकल्पनीय सिहरन मंजू के बदनमें दौड़ रही थी। उसकी चूत की अंदरूनी त्वचा ऐसे चटक रही थी जैसा मंजू ने पहले कभी अनुभव नहीं किया था।

देव का सर अपने हाथों में पकड़ कर मंजू देव के काले घने घुंघराले बालों को जैसे अपनी उँगलियों से कंघा करने लगी। मंजू देव के बालों द्वारा देव का सर अपने हाथों में पकड़ कर जैसे अपनी चूत में और अंदर घुसेड़ रही थी और अपनी चूत को चटवाने की देव की प्रक्रिया पर अपने उत्तेजित बदन का हाल बयाँ कर रही थी। जैसे देव ने अपनी जीभ और ज्यादा घुसेड़ी और और फुर्ती से चाटना शुरू किया की मंजू कांपने लगी और उत्तेजना के शिखर पर जैसे पहुँचने वाली ही थी। तब शायद देव थोड़ा सा थका सा लगा। उसने थोड़ा पीछे हट कर अपनी दो उंगलियां मंजू की चूत में डाली।

जैसे ही देव की दो उंगलियां मंजू की चूत की अंतर्त्वचा को स्पर्श करने लगी की मंजू उछल पड़ी। शायद मंजू की चूत से उसके पूर्व रस का प्रवाह ऐसा बहने लगा की मैंने देखा की देव ने उसमें से डूबी हुई उंगलियां को मुंह में रखकर उन्हें ऐसे चाटने लगा जैसे वह शहद हो। जब मंजू ने देव को उंगलियां चाटते देखा तो वह अनायास ही हँस पड़ी। उसे तब एहसास हुआ की देव उसे सिर्फ चोदने के लिए ही इच्छुक नहीं है, वह वास्तव मैं मंजू को चाहता है। तब मंजू ने देव के होंठ से अपने होंठ मिलाये और देव की बाँहों में समा गयी। अब उसे देव से चुदने में कोई भी आपत्ति नजर नहीं आ रही थी। बल्कि वह देव से चुदवाने के लिए बड़ी आतुर लग रही थी।

एक हाथ की दो उँगलियों से देव मंजू को चोद रहा था तो उसका दुसरा हाथ मंजू के स्तनों को जोर से पकडे हुए था। बार बार वह उन उन्मत्त स्तनों को कस कर भींचे जा रहा था। तो कभी वह झुक कर उनमें से एक स्तन को अपने मुंह में लेकर उन्हें चूसता था। जैसे जैसे देव की मंजू को उँगलियों से चोदने की रफ़्तार बढ़ने लगी, वैसे वैसे मंजू अपने कूल्हे उठाकर देव को और जोर से उंगली चोदन करने का आह्वान कर रही थी।

उन दोनों प्रेमियों की हालत देखकर मेरा बुरा हाल हो रहा था। पहले मैं जब भी मंजू को देखता था तो मेरी नजर सबसे पहले उसकी चूचियों पर ही जाती थी। उसकी चोली के पीछे उसकी चूचियां इतनी मदमस्त लगती थीं की क्या बताऊँ? मुझे बचपन से ही लडकियां और बड़ी औरतों के मम्मे बहुत भाते थे। जब कोई औरत के भरे हुए स्तनों का उभार ऊपर से अगर नजर आ जाता था तो उन स्तनों का उभार देख कर ही मेरे लण्ड में से पानी झर ने लगता था। जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा तो यह पागल पन बढ़ता ही गया।

जब मैंने मंजू के नंगे स्तन देखे तो मैं पागल सा हो गया। मेरा मन किया की मैं भी अंदर घुस जाऊं और मंजू की चूचियों को चूसने लगूं और उसकी फूली हुई निप्पलों को काट कर लाल करदूँ। पर सब मुझे छोटा मानते थे। देव लगा हुआ था तो मेरा नंबर कहा लगने वाला था? खैर, मैं मन मारकर अपने लण्ड को हिलाता हुआ, जो अंदर चल रहा था वह अद्भूत दृश्य देखने में जुट गया।

देव के दोनों हाथ मंजू को चरम सीमा रेखा पर पहुंचाने में ब्यस्त थे। मंजू की आँखें बंद थीं और वह पूरी तरह से देव के एक हाथ से उंगली चोदन और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को जोश से दबवाने का उन्माद भरा आनंद अपनी आखें बंद कर महसूस कर रही थी। मुझे लगा की उसके बदन में अचानक जैसे कोई भूत ने प्रवेश किया हो ऐसे मंजू का बदन कांपने लगा। मैं अचम्भे में पड गया की यह मंजू को क्या हो गया। मंजू के मुंहसे आह... आह... निकलने लगी। मंजू जो कुछ समय पहले देव से भाग रही थी अब देव को चोदने के लिए बिनती कर रही थी। उस के मुंह से बार बार, "ओह... देव... आह... ओह... आह.. मुझे चोदो और.. और..." मंजू का बदन इतने जोर से हिलने लगा की साथ साथ मेरा पूरा पलंग भी उसके साथ हिल रहा था। और फिर अचानक एक झटके में वह शांत हो गयी।

इतनी फुर्ती से मंजू की टांगों के बिच में उसकी चूत में से अपने हाथ और उँगलियों को अंदर बाहर करते हुए देव भी थोड़ा सा थक गया था। थोड़ी देर के लिए दोनों शांत हो गए। मैंने देखा की मंजू पलंग पर से थोड़ी उठी और उसने देव को उसकी बाहों में लेने के लिए अपनी बाहें उठायीं। देव खड़ा हुआ। उसका लंबा घंट जैसा लण्ड एकदम्म कड़क खड़ा हुआ था। वह अपना लण्ड एक हाथ से सेहला रहा था। मंजू ने देव का लण्ड अपनी एक हथेली में पकड़ा और उसे हिलाती हुई वह पलंग पर ठीक तरह से लम्बी होती हुई लेट गयी और तब उसने देव को उसके ऊपर चढने के लिए इंगित किया।

देव मंजू के लेटे हुए नंगे बदन को देखता ही रहा। मंजू की हलके फुल्के बालों से छायी हुई उभरी हुई चूत उसके मोटे लण्ड को ललकार रही थी। देव ने लेटी हुई मंजू की टांगों को अपनी टांगों के बिच में लेते हुए अपने घुटनों के बल दो हाथ और दो पाँव पर झुक कर मंजू के नंगे बदन को निहार ने लगा। नग्न लेटी हुई मंजू गज़ब लग रही थी। मंजू ने अपने दोनों हाथों को लंबाते हुए देव का सर अपने हाथों में लिया और देव का मुंह अपने मुंह से चिपका कर उसके होंठ अपने होठों से चिपका दिए।

दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। देव का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच मंजू की जांघों के बिच था। वह मंजू की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला। थोड़ी देर के बाद मंजू ने देव का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी।

मंजू ने देव की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, 'देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?"

देव चुप रहा। उसने फिर झुक कर मंजू के लाल होठों पर अपने होंठ रख दिए और थोड़ा सा उठकर अपने घोड़े से लण्ड को ऊपर उठाया। मंजू ने देव का लण्ड अपनी हथेली में लिया और उसे हलके से हिलाते हुए धीरे से अपनी चूत के केंद्र बिंदु पर रखा। फिर थोड़ा ऊपर सर करके मंजू देव के कानों में बोली, "देख, अब तू तेरे यह मरद को धीरे धीरे ही घुसेड़ियो। तेरा लण्ड कोई छोटा नहीं है। मेरी बूर को फाड़ न दे।"

मंजू फिर पहली बार देव से डरी, दबी हुई प्यार भरे लहजे में बोली, "देख यार, अच्छी तरह उसे गीला करके हलके हलके डालियो। ध्यान रखना अब मैं और मेरी यह चूत सिर्फ मेरी नहीं है। यह तेरी भी है। अब यह जनम जनम के लिए तेरी हो गयी। जब तू चाहे इसका मजा ले सकता है।"

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